कक्षा 11 इतिहास, अध्याय-2: "लेखन कला और शहरी जीवन"
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कक्षा 10 इतिहास, अध्याय-2: "लेखन कला और शहरी जीवन" इस अध्याय में प्राचीन भारत में लेखन कला और शहरी जीवन की भूमिका पर �...
कक्षा 10 इतिहास, अध्याय-2: "लेखन कला और शहरी जीवन" इस अध्याय में प्राचीन भारत में लेखन कला और शहरी जीवन की भूमिका पर चर्चा की जाती है। यह अध्याय हमें प्राचीन सभ्यताओं के बारे में जानकारी देता है, जहां लेखन कला और शहरी जीवन के विकास ने समाज, संस्कृति और प्रशासन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। विशेष रूप से, सिंधु घाटी सभ्यता और अन्य प्राचीन भारतीय सभ्यताओं के संदर्भ में लेखन कला और शहरी जीवन के पहलुओं को समझाया गया है।
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इतिहास
अध्याय-2: लेखन कला और शहरी जीवन
(1)
लेखन कला और शहरी जीवन 02
मेसोपोटाममया :-
दजला और फरात नददयों के बीच स्थित यह प्रदेश आजकल इराक गणराज्य का हहस्सा है। शहरी
जीवन की शु�आत इसी सभ्यता में होती है। शहरी जीवन की शु�आत मेसोपोटाममया में हुई।
मेसोपोटाममया की सभ्यता अपनी संपन्नता, शहरी जीवन, ववशाल एवं समृद्ध साहहत्य, गणणत और
खगोलववद्या के णलए प्रससद्ध है।
मेसोपोटाममया की ऐतिहामसक जानकारी के प्रमुख स्त्रोि :-
इमारतें, मूर्ततयााँ, कब्रें, आभूषण, औजार, मुद्राएाँ, ममट्टी की पट्टट्टकाएं तथा णलखखत दस्तावेज हैं।
मेसोपोटाममया की भाषा :-
• इस सभ्यता में सबसे पहले ‘ सुमेररयन ‘ भाषा, उसके बाद ‘ अक्कदी ‘ भाषा और बाद में ‘
अरामाइक ‘ भाषा बोली जाती थी।
• 1400 ई . पू . से धीरे – धीरे अरामाइक भाषा का प्रवेश हुआ, यह हहब्रू भाषा से ममलती –
जुलती थी और 1000 ई . पू . के बाद यह व्यापक �प से बोली जाने लगी थी और आज भी
इराक के कु छ भागों में बोली जाती है।
मेसोपोटाममया की भौगोललक स्थिि :-
• यह क्षेत्र आजकल इराक गणराज्य का हहस्सा है।
• इसके शहरीकृ त दणक्षणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था, बाद में इस भाग को
बेबीलोननया कहा जाने लगा।
• इसके उत्तरी भाग को असीररयाईयों के कब्जा होने के बाद असीररया कहा जाने लगा।
• इस सभ्यता में नगरों का ननमााण 3000 ई . पू . में प्रारम्भ हो गया था। उ�क, उर और मारी
इसके प्रससद्ध नगर थे।
• यहााँ स्टेपी घास के मैदान हैं अतः पशुपालन खेती की तुलना में आजीववका का अ�ा साधन
है। अतः यहााँ कृ ट्टष, पशुपालन एवं व्यापार आजीववका के ववमभन्न साधन हैं।
(2)
लेखन कला और शहरी जीवन 02
• यहााँ के लोग औजार बनाने के णलए कॉसे का इस्तेमाल करते थे। यहााँ के उ�क नगर में एक
स्त्री का शीषा ममला है जो सफे द संगमरमर को तराश कर बनाया गया है – वाकाा शीषा।
• श्रम ववभाजन एवं सामाणजक संगठन शहरी जीवन एवं अथाव्यविा की ववशेषता थे।
• यहााँ खाद्य – संसाधन तो समृद्ध थे परन्तु खननज – संसाधनों का अभाव था, णजन्हें तुकीी,
ईरान अथवा खाडी पार देशों से मंगाया जाता था।
• यहााँ व्यापार के णलए पररवहन व्यविा अ�ी थी जलमागा द्वारा। फरात नदी व्यापार के णलए
ववश्व मागा के �प में प्रससद्ध थी।
• शहरी अथाव्यविा में हहसाब – दकताब, लेन – देन, रखने के णलए, यहााँ लेखन कला का
ववकास हुआ।
मेसोपोटाममया की कृ तष और जलवायु :-
दज़ला और फरात नाम की नददयााँ उत्तरी पहाडों से ननकलकर अपने साथ उपजाउ बारीक ममटटी
लाती रही हैं। जब इन नददयों में बाढ़ आती है अथवा जब इनके पानी को ससिंचाई के णलए खेतों में
ले जाया जाता है तब यह उपजाऊ ममटटी वहााँ जमा हो जाती है।
यहााँ का रेमगस्तानी भाग जो दणक्षण में स्थित है यहााँ भी कृ ट्टष की जाती है और फरात नदी जब इन
रेमगस्तानों में पहुंचती है तो छोटे – छोटे कई धाराओं में बंटकर नहरों जैसे ससिंचाई का काया करती
है। यहााँ गेंहाँ, जौ, मटर और मसूर की खेती की जाती है।
दणक्षणी मेसोपोटाममया की खेती सबसे ज़्यादा उपज देने वाली हुआ करती थी। हालांदक वहााँ फसल
उपजाने के णलए आवश्यक वषाा की कु छ कमी रहती थी।
स्टेपी क्षेत्र का प्रमुख काया पशुपालन था। यहााँ खेती के अलावा भेड बकररयााँ स्टेपी घास के मैदानों,
पूवोत्तरी मैदानों और पहाडों के ढालों पर पाली जाती थीं।
मेसोपोटाममया के प्राचीनिम नगर :-
• इस सभ्यता में नगरों का ननमााण 3000 ई . पू . में प्रारम्भ हो गया था। उ�क, उर और मारी
इसके प्रससद्ध नगर थे।
(3)
लेखन कला और शहरी जीवन 02
• यहााँ उर नगर में नगर – ननयोजन पद्धनत का अभाव था, गणलयां टेढ़़ी – मेढ़़ी एवं संकरी थी।
जल– ननकास प्रणाली अ�ी नहीं थी। उर वासी घर बनाते समय शकु न – अपशकु न पर
ववचार करते थे।
• 2000 ई . पू . के बाद फरात नदी की उर्ध्ाधारा पर मारी नगर शाही राजधानी के �प में
फला – फू ला। यह अत्यन्त महत्वपूणा व्यापाररक िल पर स्थित था। इसके कारण यह बहुत
समृद्ध तथा खुशहाल था। यहााँ णजमरीणलयम का राजमहल ममला है तथा एक मंददर भी ममला
है।
लेखन कला :-
मेसोपोटाममया में जो पहली पट्टट्टकाएाँ पाई गईं हैं वे लगभग 3200 ई . पू . की हैं, इन पर सरकण्डे
की तीखी नोंक से कीलाकार णलट्टप द्वारा णलखा जाता था। इन पट्टट्टकाओं को धूप में सुखा णलया
जाता था।
लेखन प्रणाली की तवशेषिाएँ :-
• र्ध्नन के णलए कीलाक्षर या दकलाकार मचन्ह का प्रयोग दकया जाता था वह एक अके ला
व्यंजन या स्वर नहीं होता है।
• अलग अलग र्ध्ननयों के णलए अलग अलग मचन्ह होते थे णजसके कारण णलट्टपक को सैकडों
मचन्ह सीखने पडते थे।
• सुखने से पहले इन्हें गीली पट्टी पर णलखना होता था।
• णलखने के णलए कु शल व्यक्ति की आवश्यकता होती थी।
• इसमें भाषा – ववशेष की र्ध्ननयों को एक दृश्य �प देना होता था।
कीलाकार (क्यूनीफामम) :-
यह लानतनी श� ‘ क्यूननयस ‘, णजसका अथा छूटी और फोमाा णजसका अथा ‘ आकार ‘ है, से
ममलकर बना है।
काल – गणना :-
(4)
लेखन कला और शहरी जीवन 02
• काल – गणना और गणणत की ववद्वतापूणा परम्परा दुननया को मेसोपोटाममया की सबसे बडी
देन है।
• इस सभ्यता के लोग गुणा – भाग, वगामूल, चक्रवृणद्ध ब्याज आदद से पररमचत थे।
• काल गणना के णलए यहााँ के लोगों ने एक वषा का 12 महीनों में, 1 महीने का 4 हफ्तों में,
1 ददन का 24 घंटों में तथा 1 घंटे का 60 ममनट में ववभाजन दकया था।
मेसोपोटाममया के शहरों के प्रकार :-
• वे जो मंददरों के चारों ओर ववकससत हुए शहर
• वे जो व्यापार के के न्द्रों के �प में ववकससत हुए शहर
• शाही शहर
शहरीकरण / नगरों की बसावट :-
• शहर और नगर बडी संख्या में लोगों के रहने के ही िान नहीं होते थे। जब दकसी
अथाव्यविा में खाद्य उत्पादन के अनतररि अन्य आर्थथक गनतववमधयााँ ववकससत होने लगती
है तब दकसी एक िान पर जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाता है। इसके फलस्व�प कस्बे बसने
लगते हैं।
• शहरी अथाव्यविाओं में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन और तरह – तरह की
सेवाओं की भी महत्त्वपूणा भूममका होती है। नगर के लोग आत्मननभार नहीं रहते और उन्हें
नगर या गााँव के अन्य लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं के णलए उन पर
आणश्रत होना पडता है। उनमें आपस में लेनदेन होता रहता है। इस प्रकार हम देखते है दक
शहरी दक्रयाकलाप से गााँव लोग भी जुडे रहते हैं।
शहरी जीवन का तवशेषिाएं :-
• शहरी जीवन में श्रम – ववभाजन होता है।
• ववमभन्न काया से जुडे लोग आपस में लेनदेन के माध्यम से जुडे रहते हैं।
(5)
लेखन कला और शहरी जीवन 02
• शहरी ववननमााताओं के णलए ईंधन, धातु, ववमभन्न प्रकार के पत्थर, लकडी आदद ज�री चीजें
मभन्न – मभन्न जगहों से आती हैं।
मेसोपोटाममया के शहरों में माल की आवाजाही :-
• मेसोपोटाममया के खाद्य – संसाधन चाहे दकतने भी समृद्ध रहे हों, उसके यहााँ खननज –
संसाधनों का अभाव था। दणक्षण के अमधकांश भागों में औजार, मोहरें मुद्राएाँ और आभूषण
बनाने के णलए पत्थरों की कमी थी।
• इराकी खजूर और पोपलार के पेडों की लकडी, गादियााँ, गादियों के पहहए या नावें बनाने के
णलए कोई खास अ�ी नहीं थी |
• औजार, पात्र, या गहने बनाने के णलए कोई धातु वहााँ उपल� नहीं थी।
• मेसोपोटाममयाई लोग संभवतः लकडी, तााँबा, रााँगा, चााँदी, सोना, सीपी और ववमभन्न प्रकार
के पत्थरों को तुकीी और ईरान अथवा खाडी – पार के देशों से मंगाते थे णजसके णलए वे अपना
कपडा और कृ ट्टष – जन्य उत्पाद काफी मात्रा में उन्हें ननयाात करते थे।
पररवहन :-
पररवहन का सबसे आसान और सस्ता साधन जलमागा था। मेसोपोटाममयाई शहरों के णलए जलमागा
सबसे प्रमुख साधन होने का कारण था।
मेसोपोटाममया के मंदिर :-
मेसोपोटाममया के कु छ प्रारंमभक मंददर साधारण घरों की तरह थे अंतर के वल मंददर की बाहरी दीवारों
के कारण था जो कु छ खास अंतराल के बाद भीतर और बाहर की ओर मुडी होती थीं। ‘ उर ‘ (चंद्र)
एवं इन्नाना (प्रेम एवं युद्ध की देवी) यहााँ के प्रमुख देवी देवता थे।
• ये क�ी ईंटों का बना हुआ होता था।
• इन मंददरों में ववमभन्न प्रकार के देवी – देवताओं के ननवास िान थे, जैसे उर जो चंद्र देवता
था और इन्नाना जो प्रेम व युद्ध की देवी थी।
(6)
लेखन कला और शहरी जीवन 02
• ये मंददर ईंटों से बनाए जाते थे और समय के साथ बडे होते गए। क्योंदक उनके खुले आाँगनों
के चारों ओर कई कमरे बने होते थे।
• कु छ प्रारंमभक मंददर साधारण घरों से अलग दकस्म के नहीं होते थे – क्योंदक मंददर भी दकसी
देवता का घर ही होता था।
• मंददरों की बाहरी दीवारें कु छ खास अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुडी हुई होती
थीं यही मंददरों की ववशेषता थी।
िेविा पूजा :-
• देवता पूजा का कें द्र नबिंदु होता था।
• लोग देवी – देवता के णलए अन्न, दही, मछली लाते थे।
• आराध्य देव सैद्धांनतक �प से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और िानीय लोगों के पशुधन का स्वामी
माना जाता था।
• समय आने पर उपज को उत्पाददत वस्तुओं में बदलने की प्रदक्रया जैसे तेल ननकालना, अनाज
पीसना, कातना आरै ऊनी कपडों को बुनना आदद मंददरों के पास ही की जाती थी।
मेसोपोटाममया के शासक :-
समय का यह ववभाजन ससकं दर के उत्तरामधकाररयों द्वारा अपनाया गया और वहााँ से यह रोम तथा
इस्लाम की दुननया में तथा बाद में मध्ययुगीन यूरोप में पहुाँचा।
गगल्गेममश :- उ�क नगर का शासक था, महान योद्धा था, णजसने दूर – दूर तक के प्रदेशों को
अपने अधीन कर णलया था।
• असीररयाई शासक असुर बननपाल ने बेनबलोननया से कई ममट्टी की पट्टट्टकायें मंगवाकर नननवै
में एक पुस्तकालय िाट्टपत दकया था।
• नैबोपोलास्सर ने 625 ई . पू . में बेनबलोननया को असीररयाई आमधपत्य से मुि कराया था।
• 331 ई . पू . में ससकं दर से पराणजत होने तक बेबीलोन दुननया का एक प्रमुख नगर बना
रहा। नैबोननिस स्वतंत्र बेबीलोन का अंनतम शासक था।