6th Sanskrit Complete Book learn Sanskrit trought Sanskrit.pdf

CantodaSereia 33 views 85 slides Nov 03, 2024
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About This Presentation

Learn Sanskrit trought Sanskrit


Slide Content

सुरभि:
कक्षा – 6



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विकल्प 1: अपने मोबाइल ब्राउज़र पर diksha.gov.in/app टाइप करें।
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सत्र 2019-20
भ िःशुल्क भितरण हेतु

राज्य शैभक्षक अ ुसंधा और प्रभशक्षण पररषद् छत्तीसगढ़, रायपुर

प्रकाशन वर्ष - 2019
राज्य-शैक्षिक-अनुसूंधान और प्रलशिण-पररषद् छत्तीसगढ़, रायपुर
-ः ाा्षरशषन -
1. डॉ. रमाकारत अजननहोत्री, प्राध्यापक
भाषा विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्िविद्यालय दिल्ली
2. डॉ. मनीषा पाठक, सेिा तनिृत्त प्राचायाा
3. डॉ. तोयतनधध िैष्णि, प्राध्यापक शा.ि . श्री िैष्णि
स्नातकोत्तर सूंस्कृत महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
-ः ंयोजकक -
डॉ. विद्यािती चरिाकर
-ः िवर्ो ंा्वोक ववय ं्पाारक -
श्री बी.पी. ततिारी, सहायक प्राध्यापक, एस.सी.ई.आर.टी.,रायपुर
-ः ेखकक ंाह: -
श्री बी.पी. ततिारी, डॉ. मनीषा पाठक, डॉ. तोयतनधध िैष्णि, डॉ. कुमुि कारहे, श्री आर. पी. िािपेयी, श्री
शूंकर लाल ध्रुि, श्रीमती प्रभािरी झा, श्रीमती मीना पाण्डेय, डॉ. एस. आर. शमाा, श्रीमती उषापिार लसूंह
-ः ित्ायकन -
रािेरि लसूंह ठाकुर, समीर श्रीिास्ति
-ः पाष्ठ ंज्का -
रेखराि चौरागड़े
-ः ववण पाष्ठ -
श्रीमती मूंिुषा बेडेकर
-ः ं:ोज् -
आलसफ, लभलाई, सुरेश साह , मुकुरि साह
प्रकाशक
छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक तनगम, रायपुर (छ.ग.)
ाुद्रक

मुदित पुस्तकों की सूंख्या - ........................

प्राक्कक्कथन
लशिण में पाठ्यपुस्तकों की उपािेयता महत्िप णा सहायक उपकरण के �प में होती है।
इसके माध्यम से छात्रों के व्यिहार में िाूंतछत पररितान हेतु प्रयास ककया िाता है, जिससे उरहें नए
ज्ञान एिूं अनुभिों की सम्प्प्राजप्त सुगमताप िाक हो िाती है। सूंस्कृत विषय की निीन पाठ्यपुस्तकों
का सृिन छत्तीसगढ़ राज्य की आिश्यकताओूं एिूं अपेिाओूं के अनु�प ककया गया है।
हमारी लशिा में सूंस्कृत का विशेष महत्ि है। भारतीय सूंस्कृतत के सूंरिण तथा दहरिी
भाषा और सादहत्य के सम्प्यक ज्ञान के ललए सम्प्प्रतत सूंस्कृत का ज्ञान परमािश्यक है। किा सातिी
में पठन-पाठन की व्यिस्था को ध्यान में रखते हुए यह पाठ्यपुस्तक निीन पाठ्यक्रम पर आधाररत
है। राष्रीय लशिा नीतत 1986 के अनु�प विद्यालयों के प्रत्येक स्तर पर रय नतम अधधगम-स्तर
की प्राजप्त पर बल दिया गया है। पाठ्य-सामग्री का चयन छात्रों की मानलसक िमता ि �धच को
ध्यान में रखकर ककया गया है। सूंस्कृत-लशिण को अधधक सरल, सुबोध एिूं व्यिहारपरक बनाने
की दृजष्ट से पाठ्य सामग्री का चयन सामारय िनिीिन में कक्रयाकलापों के आधार पर ककया गया
है। इस पाठ्यपुस्तक में तनम्प्नललखखत बबरिुओूं पर विशेष बल दिया गया है -
1. पाठों की सरल भाषा ि प्रस्तुतीकरण की रोचक विधध।
2. भाषाई कौशलों का विकास।
3. सूंिाि िालय एिूं उसकी शब्िािली अगली किाओूं में छात्रों की समझ को पुष्ट बनाएगी।
4. पाठ्यपुस्तक छात्रों में अपने राष्र एिूं सूंस्कृतत के प्रतत समािर एिूं भािनात्मक एकता
उत्परन करने पर पुनबालन िेगी।
5. आधुतनक िैज्ञातनक अविष्कार सङ्गणक (कम्प्प्य टर), पयाािरणगीत, छत्तीसगढ़ के पिा,
पौराखणक कथा, छत्तीसगढ़ की लोकभाषा, छत्तीसगढ़ के धालमाक स्थल, गीताऽमृत, चाणलय के
िचन, ईिमहोत्सि, राष्रीय पिा, महापु�षों की िीिनी, नीततश्लोक, स जलतयाुँ आदि का समािेश
इसमें प्रासूंधगकता ि निीनता लाएगी।
6. प्रत्येक पाठ के अरत में अभ्यास के प्रश्न दिए गए हैं। इस बात का ध्यान रखा गया है
कक भािबोध एिूं कक्रयात्मक अभ्यास के प्रश्नों द्िारा पाठ में तनदहत ममा, (अिधारणाएुँ)
भाषा-शैली एिूं लशिण-विधधयों के विविध पि ग्राह्य एिूं अलभव्यजलत िमता िे सकें ।
फलस्ि�प िे अपनी ितानी, उच्चारण, शब्ि एिूं िालय रचना सूंबूंधी िमताओूं एिूं
प्रिीणताओूं में तनखार ला सकें ।
7. पाठ्यपुस्तक में छात्र-कक्रयाकलाप (गततविधधयों) पर विशेष ध्यान (बल) दिया गया है।

8. पाठ्य सामग्री को रोचक बनाने हेतु आिश्यक धचत्रों का भी यथास्थान समािेश ककया गया
है।
बच्चों के मन में सूंस्कृत भाषा के प्रतत �धच तथा सृिनात्मक अलभव्यजलत िमता विकलसत
करने में लशिण विधा की महती भ लमका होती है। अतः किालशिण के समय पाठ्य सामग्री का
रचनात्मक उपयोग परमािश्यक है। पाठ्यपुस्तक विकास की सहभाधगता आधाररत प्रकक्रया के
अरतगात विषय विशेषज्ञों के गहन विचारविमशा के उपरारत पाठ्यपुस्तक का विकास ककया गया
है। सूंस्कृत पाठ्यपुस्तक के उन सभी विशेषज्ञों के प्रतत आभार व्यलत करता ह ुँ। जिनके ज्ञान,
अनुभि और सतत् पररश्रम से इस पुस्तक को आकार लमला है।
स्क ल लशिा विभाग एिूं राज्य शैक्षिक अनुसूंधान और प्रलशिण पररषद्, छ.ग. द्िारा लशिकों
एिूं विद्याधथायों में ििता सूंिधान हेतु अततररलत पाठ्य सूंसाधन उपलब्ध कराने की दृजष्ट से
Energized Text Books एक अलभनि प्रयास है, जिसे ऑन लाईन एिूं ऑफ लाईन (डाउनलोड
करने के उपराूंत) उपयोग ककया िा सकता है। ETBs का प्रमुख उद्िेश्य पाठ्यिस्तु के अततररलत
ऑडडयो-िीडडयो, एनीमेशन फॉरमेट में अधधगम सामग्री, सूंबूंधधत अभ्यास, प्रश्न एिूं लशिकों के ललए
सूंिभा सामग्री प्रिान करना है।


सूंचालक
राज्य शैक्षिक अनुसूंधान और प्रलशिण पररषद्
छत्तीसगढ़, रायपुर

पााठ्ोक्रा
पााठ्ो िवर्ो
(1) सूंस्कृत पाठ्यिस्तु को रोचक एिूं आनरििायी बनाने के ललए गद्य, पद्य, कथा तथा
सूंिाि पाठ को समामेललत ककया गया है।
(2) किा 6 सूंस्कृत में अध्ययन-अध्यापन की व्यिस्था को ध्यान में रखते हुए प्रयाणगीत,
छत्तीसगढ़ के पिा, कम्प्प्य टर (सूंगणक) रायपुर नगर चाणलय के िचन, ईिमहोत्सिः,
गीताऽमृतम्, भोरमिेि, आिशा छात्र, छत्तीसगढ़ की लोकभाषाएुँ, सूंस्कृत में पत्र लेखन सूंस्कृत
भाषा का महत्ति, िसरत िणान, पौराखणक कथा, पयाािरण, नीतत श्लोक, महापु�षों की िीिनी,
होललकोत्सि ि सूंस्कृत स जलतयों को समािेलशत ककया गया है।
कौशेपाणक रक्षतावँ -
1. श्रव -
1. छात्र सूंस्कृत की विलशष्ट ध्ितनयों को सुनकर पहचान सकेगा. जिसमें अकारारतपि विसगा,
अनुनालसक एिूं अनुस्िार की ध्ितनयाुँ, सूंयुलतािर ऊष्म ध्ितनयाुँ आदि.
2. सूंस्कृत के सरल िालयों को सुनकर अथा समझ सकेगा.
2. भार् -
1. सूंस्कृत ध्ितनयों से बने पिों का शुद्ध उच्चारण कर सकेगा.
2. पाठ्यपुस्तक में आए सुभावषतों को कण्ठस्थ कर सुना सकेगा.
3. सूंस्कृत में छोटे-छोटे सरल प्रश्नों का उत्तर िे सके गा.
3. वातन-
1. सरल सूंस्कृत गद्याूंश का शुद्ध िाचन कर सकेगा.
2. सुभावषतों को कण्ठस्थ कर सुना सकेगा.
4. ेखकन-
1. सरल शब्िों का शुद्ध ितानी में लेखन कर सकेगा.
2. सरल सूंस्कृत िालयों को सुनकर शुद्ध �प से ललख सके गा.
5. ित्तन- पाठ्यपुस्तक को पढ़कर अथिा सुनकर उसमें विद्यमान गुण-िोषों के विषय में मत
रख सके गा.
6. भािर्क तत्व-

1. िालय में विशेष्य के साथ सही विशेषण का अरिय कर सके गा.
2. िालय में प्रयुलत नाम पर ( सूंज्ञा, सिानाम) के साथ कक्रया पिों का अरिय कर सके गा.
3. सूंस्कृत में सरल प्रश्न प छ सकेगा तथा उनमें उत्तर भी िे सकेगा.
7. अभभरुित- बालगीतों, कहानी एिूं सूंिाि के माध्यम से सूंस्कृत के प्रतत अलभ�धच उत्परन करना.
ंयस्कषत व्ोाकण
ंयज्ञा- अकारारत पुजल्लङ्ग- बालक, नर, िेि, िृि आदि.
अकाणा्त नपाुयंकभेङ्् - पुस्तक, पुष्प, िन,िल, फल, नयन, मुख, ग्रह, िस्त्र, भोिन, शयन, शरण,
नगर स्थान आदि.
अकाणा्त स््ीभेङ््- बाललका,शाला,रमा, करया, बाला, िनता, तृष्णा परीिा, लता, यात्रा,िषाा, विद्या,
सेिा, कथा, सभा आदि।
इकाणा्त पाुल्लेङ््- मुतन, हरर, कवि, कवप, रवि, आदि। उकारारत पुजल्लङ्ग-धेनु, तनु, चञ्चु, रज्िु
आदि। ईकारारत स्त्रीललङ्ग - निी, िाणी, भारती, भागीरथी, भधगनी, सरस्िती, िननी, पृथ्िी आदि।
सिानाम - अस्मद्, युष्मद्, तद्, ककम्
िवशखर् - (सूंख्यािाची) एक से पाुँच तक
सूंख्यािाचक एक, द्वि, बत्र, चतुर् एिूं पञ्चन् शब्ि के �प तीनों ललङ्गों में चलते हैं।
उपां्ष - प्र, परा, अप, सम्, अनु, अि, तनस्, तनर्, िुर्, पुर्, वि, आङ्, तन, अधध, अवप, अतत, सु, उत्, अलभ,
प्रतत, परर, उप। कारक- कारक धचरहों का ज्ञान एिूं विभजलत में प्रयोग कतााकारक, कमाकारक, करण
कारक सम्प्प्रिान कारक, अपािान कारक, सम्प्बरध कारक, अधधकरण कारक, सम्प्बोधन कारक। कक्रया-
कक्रया का ज्ञान कर लकारों में प्रयोग।
धातु - भ (भि्) ललख् ,हस्, पा (वपब्) नी (नय्)। लकार - लट्, लङ् एिूं लृट् लकार का प्रयोग।
वतन - एक िचन, द्वििचन, बहुिचन।
भेङ्् - पुजल्लङ्ग, स्त्रीललङ्ग, नपुूंसकललूंङ्ग। पु�ष - प्रथम पु�ष, मध्यम पु�ष, उत्तम पु�ष।
अव्ोो - अधुना, श्िः, अधः, पश्चात्, उपरर, ततः, यतः, कुतः, सिात:, पुरतः, पुरः, यिा, किा, तिा, कथम्,
अतः, कुत्र आदि ।

अनुक्राण का

क्राायक पााठ पाष्ठ क्राायक

स्तुततः 1
1. सूंिािः
2. गािोविश्िस्य मातरः
3. राष्रध्ििः
4. मम पररिार:
5. प्रश्नोत्तरम्
6. छत्तीसगढप्रिेशः
7. बालकः ध िः
8. आधुतनकयुगस्य आविष्काराः
9. मेलापकः
10. बालगीतम्
11. शृूंधगऋषे: नगरी
12. अस्माकम् आहारः
13. शोभनम् उपिनम्
14. ििाहरलालनेह�ः
15. िषाागीतम् (बालगीतम्)
16. िीपािललः
17. छत्तीसगढराज्यस्य धालमाकस्थलातन
18. नीततनिनीतम्
19. स लतयः खण्ड (अ)
20. ियतु छत्तीसगढप्रिेशः खण्ड (ब)
21. पररलशष्ट-व्याकरणम्

सूंिािः पाठः 2
गद्यम् 11
गद्यम् (राष्रीय पाठः) सूंिािः 13
गद्यम् (पाररिाररक पाठः) 15
गद्यम् (सूंिािः पाठः) 17
गद्यम् (छत्तीसगढ़ पररचय पाठः) 19
पौराखणक कथा (गद्यपाठः) 21
गद्यम् 24
(गद्यपाठः) 28
बालगीतम् (पद्यम्) 30
गद्यम् (श्रृूंगीऋवषस्थलपाठः) 32
गद्यम् (स्िास्थ्यपाठः) 33
गद्यम् (स्िास्थ्यपाठः) 37
गद्यम् (महापु�षपाठः) 40
पद्यम् (ऋतुपाठः) 42
गद्यम् 45
गद्यम् 48
पद्यम् (श्लोकपाठः) 50
स लतयः 52
गीतम् 54
"व्याकरणम्" 56

1
स्तुततिः

शुक्लां ब्रह्म-विचलर-सलर-परमलमलद्लां जगद््लवपनीम्,
िीणलपुस्तक- धलररणीमभ्दलां, जलड््लन्धकलरलपहलम्।
हस्तेस्फलटिकमलल्कलां विदधतीां, पदमलसने सांस्स्ितलम्,
िन्दे तलां परमेश्िर ां भगिती, बुदधधप्रदलां शलरदलम् ॥

अर्थ
श्िेत िणण िल् , ब्रह्म विचलर-सलर �पी परम तत्ि से
्ुकत, आटद�पल, सांसलर में ््लप्त रहने िल् , िीणल और
पुस्तक धलरण करने िल् , अभ् प्रदलन करने िल् ,
जड़तल (अज्ञलनतल) �पी अांधकलर को दूर करने िल् , हलिों
में शुभ्र मणण्ों की मल्ल धलरण करने िल् , कम् �पी
आसन में विरलजमलन रहने िल् एिां बुदधध प्रदलन करने
िल् उस परमेश्िर भगिती देिी को (मैं) प्रणलम करतल
हूूँ।

शब्दार्ाथिः
शुक्लम् = श्िेतिणण
सलरपरमलद्लम् = (सलर-परमलम् + आद्लां)
सलर �पी परम तत्ि से समस्न्ित
जगद््लवपनीम् = सांसलर में ््लप्त रहने िल्
हस्तेस्फलटिक = हलिों में स्फटिक
मलल्कलम् = मल्ल

पदमलसने = कम् �पी आसन में
बुदधधप्रदलम् = बुदधध प्रदलन करने िल्
शलरदलम् = सरस्िती देिी को
जलड््लन्धकलरलपहलम्= जड़तल �पी अन्धकलर को दूर
करने िल्
सांस्स्ितलम् = विरलजमलन रहने िल्

2
1. संवादिः
1.1 हट्टवाताथिः (गीता गच्छतत हट्टम्)

मोहनः - गीते ! त्िां कुत्र गच्छलस ?
गीतल - मोहन ! अहां हट्िे प्रतत गच्छललम ।
मोहनः - गीते ! ककमिणम् ?
गीतल - मोहन ! शलकां फ्ां च क्रेतुम् । अधुनल त्िां कुत्र गच्छलस ।
मोहनः - गीते ! अधुनल अहां गृहां प्रतत गच्छललम ।
शब्दार्ाथ:
त्िम् = तुम
कुत्र = कहलूँ
गच्छलस = जल रहे हो
हट्िां प्रतत = बलजलर की ओर
ककमिणम् = ककसल्ए
शलकम् = शलक
क्रेतुम् = खर दने के ल्ए
अधुनल = अब
गच्छललम = जलतल हूूँ

3
1.2 छात्रालापिः



िलसुदेिः - भोः लमत्र ! त्िां कस््लां कक्षल्लां पठलस ?
सुरेशः - लमत्र ! अहां षष्ठ्लां कक्षल्लां पठललम ।
त्िां कस््लां कक्षल्लां पठलस ?
िलसुदेिः - अहां सप्तम्लां कक्षल्लां पठललम ।
सुरेशः - ति कक्षल्लः आचल्णस्् ककां नलम अस्स्त ।।
िलसुदेिः - मम कक्षल्लः आचल्णस्् नलम ज्ञलनलनन्दः अस्स्त ।
ति कक्षल्लः आचल्णस्् नलम?
सुरेश: - मम कक्षल्लः आचल्णस्् नलम परमलनन्दः अस्स्त । ।
िलसुदेिः - ति कक्षल्लां कतत छलत्रल: पठस्न्त ?
सुरेशः - मम कक्षल्लां चत्िलररांशत् छलत्रल: पठस्न्त ।
ति कक्षल्लम् च ?
िलसुदेिः - मम कक्षल्लां पञ्चलशत् छलत्रल: पठस्न्त ।



शब्दार्ाथिः
कस््लां कक्षल्लम् = ककस कक्षल में, पठललम = पढ़तल हूूँ, पठलस = पढ़ते हो, सप्तम्लां कक्षल्लम् = सलतिीां कक्षल
में, कक्षल्लः आचल्णस्् = कक्षल आचल्ण कल, कतत = ककतनल, पठस्न्त = पढ़ते हैं, चत्िलररांशत् = चल् स, पञ्चलशत्
= पचलस, पठस्न्त = पढ़ते हैं।

4
1.3 परिजनसंवादिः

शी्ल - सणख ! ति ककां नलम अस्स्त ?
विम्ल - मम नलम विम्ल अस्स्त ।
सणख ! ति ककां नलम अस्स्त ?
सुशी्ल - मम नलम सुशी्ल अस्स्त ।
विम्ल - त्िां कुत्र िसलस ?
सुशी्ल - अहां रल्पुर आख््े नगरे िसललम । त्िां च ?
विम्ल - अहां बब्लसपुर आख््े नगरे िसललम ।
सुशी्ल - ति वपतुः ककां नलम अस्स्त ?
विम्ल - मम वपतुः नलम श्री सुशी्कुमलरः अस्स्त ।
ति वपतुः नलम ?
सुशी्ल - मम वपतुः नलम चन्रकुमलरः अस्स्त ।
विम्ल - ति वपतल ककां कल्ं करोतत ?
सुशी्ल - मम वपतल कृवषकल्ं करोतत । ति वपतल ?
विम्ल - मम वपतल अध््लपकः अस्स्त ।
सुशी्ल - मम एकल अग्रजल अस्स्त । ति ?
विम्ल - मम दिौ अनुजौ स्तः । अग्रजल न अस्स्त ।
सुशी्ल - ति मलतल कीदृशी अस्स्त ?
विम्ल - मम मलतल अतत सर्ल अस्स्त । ति मलतल ?
सुशी्ल - मम मलतुः स्िभलिः सर्ः मधुरः च अस्स्त ।
शब्दार्ाथिः
िसलस = रहते हो, आख््े = नलमक, िसललम = रहतल हूूँ, ति वपतुः = तुमहलरे वपतल कल, मम वपतुः = मेरे वपतल
कल, करोतत = करते है, अग्रजल = बड़ी बहन, दिौ अनुजौ स्तः = दो भलई हैं, कीदृशी = कै सी, मम मलतल = मेर
मलतल, ति मलतल = तुमहलर मलतल

5
1.4 मनोहिम् उद्यानम्


गोपल्ः - कृष्ण ! त्िां प्रलत: कल्े कुत्र गच्छलस ?
कृष्णः - गोपल् ! अहां प्रलतः कल्े उद्लनां प्रतत गच्छललम ।
गोपल्ः - कृष्ण ! उद्लने कतत िृक्षलः सस्न्त ?
कृष्णः - गोपल् ! उद्लने अनेके िृक्षलः सस्न्त ।
गोपल्ः - कृष्ण ! केषलस्ञ्चत् िृक्षलणलां नलमलतन िद ।
कृष्णः - गोपल् ! अशोकिृक्षलः, िििृक्षलः,
तनमबिृक्षलः इत््लद्ः बहिः िृक्षलः सस्न्त।
गोपल्ः - कृष्ण ! त्िम् उपिने किम् अनुभिलस ?
कृष्णः - गोपल् ! अहम् उपिने मनोहरम् अनुभिललम ।


शब्दार्ाथिः

त्िम् = तुम
उद्लनां प्रतत = उद्लन की ओर
केषलस्ञ्चत् िृक्षलणलम् = कुछ िृक्षों के
किम् = कैसे
मनोहरम् = सुन्दर

कुत्र = कहलूँ
बहिः = बहुत
नलमलतन = नलमों को
अनुभिलस = अनुभि करते हो
अनुभिललम = अनुभि करतल हूूँ ।

6
1.5 बुभुक्षिता लोमशा


पल््िी - पूजे ! अहम् अद् एकलां ्ोमशलम् अपश््म् ।
पूजल - पल््वि ! त्िां तलां ्ोमशलां कुत्र अपश््ः ?
पल््िी - पूजे ! अहां िने अपश््म् ।
पूजल - पल््वि ! सल ्ोमशल अतत बुभुक्षक्षतल आसीत् ।
पल््िी - पूजे ! सल ्ोमशलांक्षुधलशलन्त््िं िृक्षस्् उपरर भलगे रलक्षल्लः फ्लतन दृष्ट्िल उत्पततत।
पूजल - पल््वि ! परन्तु रलक्षल्लः फ्लतन अतत उपरर आसन् ।
पल््िी - पूजे ! सल ्ोमशल पुनः पुनः उत्पततत । परां रलक्षल्लः फ्लतन न प्रलप्नोत् ।
पूजल - पल््वि ! सल ्ोमशल कि्तत- अहां रलक्षल्लः फ्लतन न खलदललम ।
रलक्षल्लः फ्लतन अम्लतन सस्न्त ।

7
शब्दार्ाथिः
एकलां ्ोमशलम् = एक ्ोमड़ी को अपश््म् = देखल
बुभुक्षक्षतल = भूखी रलक्षल्लः फ्लतन = अांगूर के फ्
उपरर = ऊपर में आसन् = िे
उत्पततत = उछ्ती है कि्तत = कहती है
अम्लतन = खट्िे सस्न्त = हैं।
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित संवादों को पढ़िए
मोहनः - गीते ! त्िां कुत्र गच्छलस ?
गीतल - मोहन ! अहां हट्िे प्रतत गच्छललम ।
मोहनः - गीते ! ककमिणम् ?
गीतल - मोहन ! शलकां फ्ां च क्रेतुम् । अधुनल त्िां कुत्र गच्छलस ?
मोहनः - गीते ! अधुनल अहां गृहां प्रतत गच्छललम ।
2. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए –
मोहनः - गीते ! त्िां कुत्र गच्छलस ।
गीतल - मोहन ! ..............................................
मोहनः - गीते ! ककमिणम् ।
गीतल - मोहन ! ..............................................
मोहनः - गीते ! अधुनल अहां गृहां प्रतत गच्छललम ।

8
(ि) तनम्नललखिात संवादों को पढ़िए
गोपल्ः - कृष्ण ! त्िां प्रलतः कल्े कुत्र गच्छलस ?
कृष्णः - गोपल् ! अहां प्रलतः कल्े उद्लनां प्रतत गच्छललम।
गोपल्ः - कृष्ण ! उद्लने कतत िृक्षलः सस्न्त ।
कृष्णः - गोपल् ! उद्लने अनेकलः िृक्षलः सस्न्त ।
गोपल्ः - कृष्ण ! केषलस्ञ्चत् िृक्षलणलां नलमलतन िद ।
कृष्णः - गोपल् ! अशोकिृक्षलः, िििृक्षलः, तनमबिृक्षलः इत््लद्ः बहिः िृक्षलः सस्न्त ।
गोपल्ः - कृष्ण ! त्िम् उपिने किम् अनुभिलस ?
कृष्णः - गोपल् ! अहम् उपिने मनोहरम् अनुभिललम ।

रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए
गोपल्ः - कृष्ण ! त्िां प्रलतः कल्े कुत्र गच्छलस ?
कृष्णः - गोपल् ! ..........................................
गोपल्ः - कृष्ण ! उद्लने कतत िृक्षलः सस्न्त ?
कृष्णः - गोपल् ! ..........................................
गोपल्ः - कृष्ण ! केषलस्ञ्चत् िृक्षलणलां नलमलतन िद ।
कृष्णः - गोपल् ! ..........................................
गोपल्ः - कृष्ण ! त्िम् उपिने किम् अनुभिलस ।
कृष्णः - गोपल् ! ..........................................

9
(ग) तनम्नललखित संवादों को पढ़िए
पल््िी - पूजे ! अहम् अद् एकलां ्ोमशलम् अपश््म् ।
पूजल - पल््वि ! त्िां तलां ्ोमशलां कुत्र अपश््ः ।
पल््िी - पूजे ! अहां िने अपश््म् ।
पूजल - पल््वि ! सल ्ोमशल अतत बुभुक्षक्षतल आसीत् ।
पल््िी - पूजे ! सल ्ोमशल क्षुधलशलन्त््िं िृक्षस्् उपरर भलगे रलक्षल्लः फ्लतन दृष्ट्िल
उत्पततत।
पूजल - पल््वि ! परन्तु रलक्षल्लः फ्लतन अतत उपरर आसन् ।
पल््िी - पूजे ! सल ्ोमशल पुनश्च उत्पततत । परां रलक्षल्लः फ्लतन न प्रलप्नोत् ।
पूजल - पल््वि ! सल ्ोमशल कि्तत- अहां रलक्षल्लः फ्लतन न खलदललम । रलक्षल्लः फ्लतन
अम्लतन सस्न्त।
रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए
पल््िी - पूजे ! अहम् अद् एकलां ्ोमशलम् अपश््म् ।
पूजल - पल््वि ! ..........................................
पल््िी - पूजे ! अहां िने अपश््म् ।
पूजल - पल््वि ! ..........................................
पल््िी - पूजे ! सल ्ोमशल क्षुधलशलन्त््िण िृक्षस्् उपरर भलगे रलक्षल्लः फ्लतन दृष्ट्िल उत्पततत।
पूजल - पल््वि ! ..........................................
पल््िी - पूजे ! सल ्ोमशल पुनश्च उत्पततत । परां रलक्षल्लः फ्लतन न प्रलप्नोत् ।
पूजल - पल््वि ! ..........................................
अभ्यासिः “मोहन" अकािान्त पुज्लंग
ववभजक्त एकवचन द्वववचन बहुवचन कािकाढद
प्रिमल मोहनः मोहनौ मोहनलः कतलण
दविती्ल मोहनम् मोहनौ मोहनलन् कमण
तृती्ल मोहनेन मोहनलभ््लम् मोहनैः करण
चतुिी मोहनल् मोहनलभ््लम् मोहनेभ््ः समप्रदलन
पञ्चमी मोहनलत् मोहनलभ््लम् मोहनेभ््ः अपलदलन
षष्ठी मोहनस्् मोहन्ोः मोहनलनलम् समबन्ध
सप्तमी मोहने मोहन्ोः मोहनेषु अधधकरण
समबोधन हे मोहन! हे मोहनौ ! हे मोहनलः ! समबोधन

10
ढहन्दी �प - संस्कृत �प - कािक
रलम ने - रलमः - कतलण
रलम को, के दिलरल - रलमम् - कमण
रलम से - रलमेण - करण
रलम के ल्ए - रलमल् - समप्रदलन
रलम से - रलमलत् - अपलदलन
रलम कल - रलमस्् - समबन्ध
रलम में - रलमे - अधधकरण
हे रलम - हे रलम - समबोधन
उप्ुणकत विभस्कत्ों को क्रमशः प्रिमल, दविती्ल, तृती्ल आटद नलमों से जलनल जलतल है। इससे कलरक
आटद कल ज्ञलन प्रलप्त कक्ल जलतल है । सांस्कृत में एकिचन, दवििचन ि बहुिचन कल प्र्ोग एक, दो, तीन एिां
तीन से अधधक के ल्ए प्र्ोग होते हैं।
1. कलरकों में समबन्ध और समबोधन कलरक नह ां कहे जलते । चूांकक कलरक के ल्ए कक्र्ल कल समबन्ध
कर्त्लण से होनल चलटहए । अतः कहल ग्ल है “कक्र्ल जनकां कलरकम्” कलरक कक्र्ल को उत्पन्न करतल है ।
2. तृती्ल करण कलरक में णत्ि विधलन के अनुसलर 'न' कल 'ण' होतल है जैसे रलमेन न होकर रलमेण होतल
है। इसी तरह षष्ठी बहुिचन में रलमलनलम् के स्िलन पर रलमलणलम् होतल है। अन्् अकलरलन्त बल्क कल
बल्के न, सोहन कल सोहनेन होगल।
3. ऊपर ल्खे कलरकों पर विचलर कक्ल जल् तो विविधतल के बीच बहुत कु छ समलनतल है ।
(अ) कतलण और समबोधन में दवििचन और बहुिचन के �प
(ब) कतलण और कमण में
(स) करण, समप्रदलन और अपलदलन में ।
(द) समबन्ध और अधधकरण में दवििचन के �प ।
तनम्नांककत शब्दों के �प “मोहन' के समान चलेंगे-
रलम, श््लम, बल्क, देि, सोहन, गजलनन, कृष्ण, छलत्र, अश्ि, मृग, शुक, गज आटद ।

11
2. गावो ववश्वस्य मातििः


गौः न केि्ां भलरतस्् अवपतु विश्िस्् मलतल
अस्स्त । सिेषु पशुषु गौः एकल अटहांसकल बुदधधमती
स्नेहकलररणी पलररिलररकल पशुः अस्स्त । मलतल इि सल
अस्मलकां जीिनां रक्षक्षतुां समिलण अस्स्त। ्िल मलतल दुखां
सोड््िल अवप पुत्रां रक्षतत, ्ल््तत, पल््तत च, तिैि गौः
शस््लतन बुषां भुकत्िल शीतलतपां िषलं च सोड््िल अस्मभ््ां
दुग्धां ददलतत । तस््लः दुग्धां सिेषलां पशुनलां दुग्धलत् श्रेष्ठतरां,
सुपलच््ां, स्फूततणदल्कां, मेधलिधणकां च भितत। दुग्धलत्
पररिततणतां दधध, तक्रां, घृतां च स्िलस्िल् विलशष्िां ्लभप्रदां
भितत । तक्रेण घृतेन च प्रलणरक्षकल: अनेकलः औषध्ः
तनलमणतलः भिस्न्त । गो: मूत्रां नेत्र्ोः अपूिलण औषधधः, अनेकलसु औषधधषु अवप प्र्ुकतां भितत । गोम्ेन ि्ां
स्िगृहलन् पवित्रीकुमणः गोम्स्् स्पशेन अनेकलन् मलनलसकरकतचलपसमबस्न्ध रोगलन् शम्तत। अनेन लसदध्तत
्त् गौः अनेकेन प्रकलरेण अस्मलकां मलतृित् रक्षलां करोतत । गोित्सलः अस्मलकां कृवषप्रधलने देशे कृषकलनलम् अपूिलणः
सहल्कलः सस्न्त । ते कृषकैः सह न केि्ां कृवषकल्ं कुिणस्न्त अवपतु शकिम् अवप िहस्न्त। गोम्ां गोमूत्रां च
श्रेष्ठतमां कृवष-पोषक तत्िां खलद इतत सांज्ञकम् अस्स्त। ्टद गोः समपूणणभलिेन रक्षल स््लत् तदल तनश्च्मेि
समस्तां विश्िां दुग्धेन, घृतेन, अन्नेन च जनलन् पल्त्तुां समिो भविष््तत । अतः इ्म् उस्कतः सत््ल ्त् “गलिो
विश्िस्् मलतरः” इतत ।
शब्दार्ाथिः
सोड््िल = सहकर
शस््लतन = घलस
बुषम् = भूसल
गोम्म् = गोबर
तक्रम् = मट्ठल
कृवष = खेती
शकिम् = बै्गलड़ी
िहस्न्त = ढोते हैं

12
रक्षक्षतुम् = रक्षल करने के ल्ए
अवपतु = और भी
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में ललखिए –
क. गौः कीदृशः पशुः अस्स्त ?
ख. गो: दुग्धां कक्त् ्लभकलरकां भितत ?
ग. गोम्स्् उप्ोग: केषु केषु कल्ेषु भितत ?
घ. किम् गौः विश्िस्् मलतल अस्स्त ?
ङ. गोित्सलनलां प्र्ोगः केषु कल्ेषु ि्ां कुमणः ?
2. सह = सलि के ्ोग में तृती् विभस्कत कल प्र्ोग होतल है अिलणत् स्जसके सलि “सह' कल प्र्ोग हो उस
शब्द में तृती्ल के एक िचन, दवि िचन, बहु िचन कल प्र्ोग करनल चलटहए । जैसे कृषकैः ‘सह' में
कृषक शब्द में तृती्ल कल बहुिचन हो जलतल है । इसी आधलर पर तनमन िलक्ों कल सांस्कृत अनुिलद
कीस्जए –
क. रलम के सलि ्क्ष्मण भी िन को जलते हैं ।
ख. कृष्ण के सलि गोप खे्ते हैं ।
ग. ककसलनों के

13
3. 'िाष्ट्रध्वजिः'

प्रमोदः - लमत्र सुबोध ! धचत्रे ककां दृश््ते ?
सुबोधः - लमत्र प्रमोद ! धचत्रे एको ध्िजो दृश््ते ।
प्रमोदः - लमत्र ! अ्ां कस्् देशस्् ध्िजः अस्स्त ?
सुबोधः - लमत्र ! अ्म् अस्मलकां रलष्रस्् भलरतस्् ध्िजः
अस्स्त। अतः रलष्रध्िजः कथ््ते।
प्रमोदः - लमत्र सुबोध ! ज्ञलतां म्ल । ककम्मेि रलष्रध्िजः
अस्मलकां देशे ‘ततरांगल' इतत नलमनल प्रलसदधध प्रलप्तः ?
सुबोधः - अि ककां लमत्र प्रमोद ! अस्स्मन् ध्िजे त्र्ोरांगलः िणलणः िल सस्न्त । अत: 'ततरांगल' कथ््ते ।
प्रमोदः - लमत्र ! अत्र बत्रपट्टिकल: दृश््ते ! तलसु त्रीन् िणलणन् पश््ललम । उपररतन: वपण््लकिणणः (केसरिणणः)
दृश््ते। अ्ां कस्् भलिस्् प्रतीकः ितणते ।
सुबोधः - लमत्र ! वपण््लकिणणः (के सरिणणः) त््लगस््, जलगरणस््, शौ्णस्् च प्रतीको अस्स्त ।
प्रमोदः - लमत्र ! श्िेतपट्टिकल्लः िणणः कां भलिां द्ोत्तत ।
सुबोधः - मध््स्स्ितल्लः श्िेतपट्टिकल्लः िणणः सत््ां तनमण्तलां च द्ोत्तत ।
प्रमोदः - लमत्र ! अधः स्स्ितल्लः हररतपट्टिकल्ल: िणणः कां भलिां प्रदशण्तत ?
सुबोधः - लमत्र ! अधो भलगे विद्मलनल्लः हररतपट्टिकल्ल: िणणः जीिनसमृदधधां सुखां च प्रदशण्तत ।
प्रमोदः - लमत्र ! अहां श्िेतपट्टिकल्लम् एकां चक्रमवप पश््ललम । ककञ्च द्ोत्तत?
सुबोधः - लमत्र ! इदम् अशोकचक्रमस्स्त एतत् चक्रां गततशी्तलां द्ोत्तत । रलष्र ्पिणसु रलष्रध्िजलरोहणां
कक्र्ते । अस्मलकां प्रधलनमांत्री प्रत््ेकमगस्त मलसस्् पञ्चदशतलररकल्लां देहल््लः रकतदुगलणत्
रलष्रध्िजोर्त्ो्नां करोतत ।
प्रमोदः - लमत्र सुबोध ! अिगतां रलष्रध्िजस्् महत्िम् । अ्ां रलष्रध्िजोऽस्मलकां सिेषलां भलरती्लनलम्
आदरभलजनम्। अ्ां सिेषलां भलरती्लनलां िन्दनी्ः ।
सुबोध प्रमोदः च रलष्रध्िजां श्रदध्ल नमतः स्िगृहम् च गच्छतः ।

14
शब्दार्ाथिः
द्ोत्तत - सूधचत करतल है ।
पिणसु - उत्सिों में ।
रलष्रध्िजलरोहणम् - रलष्रध्िज कल फहरलनल ।
रकतदुगलणत् - ्ल् कक्े से ।
उर्त्ो्नम् - फहरलनल ।
अभ्यासिः
1. संस्कृत में उत्ति दीजजए ।
क. धचत्रे ककां दृश््ते?
ख. ध्िजे कततिणलणः सस्न्त ?
ग. श्िेतपट्टिकल्लः िणण: कां भलिां द्ोत्तत ?
घ. अशोकचक्रां ककां द्ोत्तत ?
2. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए ।
क. रलष्रध्िजः ............ इतत नलमनल प्रलसदधम् ।
ख. रलष्रध्िजस्् उपररतनः ............ िणणः दृश््ते ।
3. संस्कृत में अनुवाद कीजजए ।
क. मैं श्िेत पट्टिकल में एक चक्र भी देखतल हूूँ।
ख. रलष्रध्िज रलष्र की एकतल कल प्रतीक है ।
ग. दोनों रलष्रध्िज को प्रणलम करते हैं ।
4. ववभजक्त-तनदेश कीजजए।
अस्मलकम्, रलष्रस््, रकतदुगलणत्, सिे ।
5. सजन्ि ववच्छेद कीजजए।
अििे्ां, ध्िजोर्त्ो्नम्, ध्िजोऽस्मलकम् ।

15
4. मम परिवाििः



एकस्स्मन् ग्रलमे जगत्पल्ो नलम एकः
सज्जनो िसततस्म। तस्् पररिलर: सीलमत-पररिलरः
अस्स्त । तस्् पत्नी क्ल अस्स्त । जगत्पल्:
सप्तबत्रांशदिषी्: क्ल दिलबत्रांशदिषी्ल च स्तः ।
जगत्पल्स्् हृद्मतीिोदलरां, क्ल्लः
स्िभलिश्चलतीि मधुरो विद्ते । तौ दमपती
तनिसतः।
त्ोः दिे सन्तती स्तः । एकस्तन्ः एकल
तन्ल च। तन्स्् नलम सुरेश: तन्लश्च नलम
प्रततभल अस्स्त । सुरेशः एकलदशिषी्ः प्रततभल
सप्तिषी्ल च । सुरेशः सप्तम्-कक्षल्लां पठतत
प्रततभल तृती्-कक्षल्लां च।
आम्रतनमबकलटदिृक्षैः आच्छलटदतां जगतपल्स्् गृहमत््न्तां रमणी्ां ितणते । जगत्पल्ः एकः ्ोग््ः
कुश्-कृषकः । सः सिणदल कृवष कमणणण ््लपृतः स्िकर्त्ण््ां पल््तत । सः पररश्रमां कृत्िल स्िक्षेत्रे प्लणप्तमन्नां
शलकां फ्ां च उत्पलद्तत । तस्् गृहे एकल श्िेत-िणलण धेनुः ितणते । सल दुग्धां ददलतत ।
सुरेशः प्रततभल च स्िलस्थ््प्रदां पुस्ष्िप्रदां च भोजनां कु�तः । त्ोः आहलरे शलकस्् फ्स्् चलधधक्ां
ितणते। तौ भ्रलतृभधगन््ौ ्िेच्छां दुग्धां वपितः । स्िच्छलतन िस्त्रलणण पररधल् प्रसन्नौ स्िस्िौ तौ मलतरां वपतरां च
प्रणम् पठनल् स्ि विद्ल््ां प्रतत गच्छतः ।
क्ल एकल स्िस्िल आदशणभूतल च गृटहणी अस्स्त । पतत जगत्पल्ोऽवप स्िपत्नी क्लां बहु मन््ते ।
अनेन कलरणेन परस्परस्नेह-सौहलरणबध्दः अ्ां ्घुपररिलरः एकः आदशणपररिलर: । आहलरस्् िस्त्रस्् गृहस्् च
््िस्िल ्घुपररिलरे एि समुधचत�पेण भितत । ्घुपररिलरेणैि समलजस्् रलष्रस्् च कल््लणां भवितुम् अहणतत।

16
शब्दार्ाथिः
एकस्स्मन् ग्रलमे - एक गलांि में ।
िसतत - रहतल है ।
जगत्पल्स्् - जगतपल् कल ।
कक्षल्लम् - कक्षल में ।
आच्छलटदतम् - ढकल हुआ ।
कमणणण - कमण में ।
््लपृतः - ्गल हुआ , तत्पर ।
तस्् गृहे - उसके घर में ।
अभ्यासिः
1. तनम्नांककत प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में दीजजए ।
क. जगत्पल्स्् हृद्ां कीदृशम् अस्स्त ?
ख. प्रततभल कस््लां कक्षल्लां पठतत ?
ग. कीदृश: पररिलर: सुखीपररिलर:?
घ. क्ल कीदृशी गृटहणी आसीत् ?
2. िाली स्र्ान पूर्थ कीजजए –
क. त्ोः आहलरे ............ चलधधक्ां ितणते ।
ख. जगत्पल्स्् गृहम् अत््न्तम् ............. ितणते ।
3. संस्कृत में अनुवाद कीजजए ।
क. जगत्पल् कल हृद् उदलर है ।
ख. उसकी पत्नी कल नलम क्ल है ?
ग. उसके पुत्र कल नलम सुरेश है ।
घ. सुरेश ककस कक्षल में पढ़तल है ?
ङ. ्ह छोिल पररिलर है।
4. तनम्न का संधि ववच्छेद कीजजए ।
क. तन्लश्च
ख. जगत्पल्ोऽवप
ग. एकस्तन्ः
घ. पररिलरेणैि

दमपती - पतत - पत्नी ।
तनमब - नीम कल िृक्ष ।
तन्ः - पुत्र
तन्ल - पुत्री ।
शलकम् - सब्जी ।
प्रणम् - प्रणलम करके ।
अनेन - कलरणेन - इस कलरण से ।
अहणतत - ्ोग्् है ।

17
5. प्रश्नोत्तिम्
)गु�-लशष््सांिलदः(
लशष््लः - नमस्ते गु�देि !
गु�ः - नमः लशष््ेभ््ः ! मोहन, ककां. त्िां पश््लस ? अद्
अन्धकलरः अस्स्त।
मोहनः - गु�देि ! ककां कलरणां अन्धकलरस्् ?
गु�ः - सू्णस्् न दशणनां एि अन्धकलरस्् कलरणम् ।
गु�ः - सू्णस्् नलमलतन- आटदत््ः, रविः, भलस्करः,
टदनकरः, टदनपततः, टदिलकरः, प्रभृतीतन सस्न्त ।
छलत्रलः - सू्णः ककां करोतत ?
गु�ः - सू्णः प्रलतः कल्े उद्ते सल्ङ्कल्े च अस्तां गच्छतत ।
छलत्रलः - सू्ण इतत शब्दस्् कोऽिणः ?
गु�ः - सू्णः आकलशे सरतत इतत कलरणलत् सू्णः । अत्र ‘सृ' धलतौ क्प् प्रत्््ः । सू्णस्् अन््लऽवप
पररभलषल भवितुां अहणतत । सुितत अिलणत् ्ोकां कमणणण प्रेर्तत इतत सू्णः ।
छलत्रलः - सू्णः ककां ककां करोतत ?
गु�ः - प्रकलशां ददलतत, अन्धकलर दूर करोतत, रोगकीिलणुसमूहां नलश्तत, सिंजीिां जीि्तत, बुदधधां िधण्तत,
ज्ञलनां ददलतत, ब्ां िधण्तत, शस्कत सञ्चलर्तत, अत: अस्् दैिीकरणां कृतम् । सू्णस्् रस्श्मषु सप्त
रङ्गल: परर्क्ष््न्ते ।
छलत्रलः - पुरलणे सू्णः रलमस्् कु्देिः अस्स्त ?
गु�ः - सत््ां िदलस, रलमः आज्ञलकलर अस्स्त । सः आज्ञलां पल्त्तुां िेदां पठतत ।
मलर चां मलर्तत, रलिणां हस्न्त इतत ।
छलत्रलः - गु� देि ! रलमस्् स्ि�पां िणण् ।
गु�ः - मस्तके मुकुिां धलर्तत । सः ््लिे चन्दनां धलर्तत । स्कन्धे ्ज्ञोपिीतां, शरलसनां च धलर्तत।
पृष्ठे बलण-सटहतां तूणीरां धलर्तत इतत ।

18
शब्दार्ाथिः
पश््लस - देखते हो।
सू्णस्् - सू्ण कल ।
कतत - ककतने ।
उद्ते - उगतल है।
सरतत (च्तत) - च्तल है ।
प्रभृतीतन - इत््लटद ।
प्रलतःकल्े - सुबह ।
भवितुम् अहणतत - होतल है ।
अभ्यासिः
प्रश्न 1. तनम्नांककत प्रश्नों के उत्ति दीजजए ?
अ. पलठ में आ्े कक्र्लपदों को ल्खकर सांस्कृत में स्ितांत्र िलक् बनलइए ।
ब. पलठ के सांज्ञल पदों को ल्खकर विभस्कत के अनुसलर िगीकरण कीस्जए ।
स. सू्ण के पलूँच प्लण्िलची शब्द ल्णखए।
द. सू्ण को अपनी मलतृभलषल में क्ल-क्ल कहते हैं ल्णखए ।
ई. कक्र्लपदों को अपनी मलतृभलषल में ल्णखए।
फ. कक्र्लपदों से धलतु एिां प्रत््् अ्ग कीस्ज्े ।
प्रश्न 2. रिक्त स्र्ान की पूततथ कीजजए ।
अ. सू्णः ------- ददलतत ।
ब. स. िेदां ------------ ।
स. ------------ रलिणां हस्न्त ।
द. मस्तके ---------- धलर्तत ।
प्रश्न 3. संस्कृत में अनुवाद कीजजए ।
अ. गोपल् पुस्तक देतल है ।
ब. सू्ण प्रकलश देतल है ।
स. रलम िेद पढ़तल है।
द. सीतल घर जलती है ।
प्रेर्तत - ्े जलतल है ।
जीि्तत - जीवित रखतल है ।
िधण्तत - बढ़लतल है ।
सञ्चलर्तत - सांचलर करतल है ।
कु्देिः - कु् देितल ।
िणण् - िणणन करो ।
धलर्तत - धलरण करतल है ।

19
6. छत्तीसगढप्रदेशिः

भलरतः अस्मलकां देशः अस्स्त। भलरतिषणस््
मध््दक्षक्षणभलगे छ र्त्ीसगढप्रदेशः विरलजते ।
छर्त्ीसगढप्रदेशस्् प्रमुखनद महलनद अस्स्त ।
लसहलिल पिणतलत् उदभूतल महलनद छर्त्ीसगढप्रदेशस््
पवित्रतमल नद अस्स्त । ्स््लः सहल्क नद षु
लशिनलि , हसदो , ईब , पैर , जोंक , के ्ो ,
उदन्ती प्रभृत्ः नद्ः अनिरतां छर्त्ीसगढप्रदेशस््
भूलममुिणरलां विदधतत । दक्षक्षणे गोदलिर नद
प्रिहतत। ्स््लः सहलत्कल इन्रलिती नद बस्तर
मण्ड्लन्तगणतां पस्श्चम टदशल्लां प्रिहतत ।
छर्त्ीसगढप्रदेशस्् रलजधलनी रल्पुरनगरम् अस्स्त ।
छर्त्ीसगढप्रदेशः 2000 तमे खीस्तलब्दे
निमबर मलसस्् प्रिम टदनलङ्के सुघटितः ।
प्रदेशस्् रलस्जमनगरां महत्िपूणण धललमणकस्ि्म्
अलभधी्ते। ्त्र महलनद पैर - सोढर प्रभतीनलां
बत्रसणलां नद नलां सांगम स्ि् छर्त्ीसगढप्रदेशस््
'गङ्गल' इतत उच््ते। ऐततहललसकस्ि्ां 'लसरपुरम्'
सोमिांशी्रलजलनलां रलजधलनी आसीत् । तत्र
आनन्दपुर बबहलरभग्नः बौदधविहलरः चलवप सस्न्त।
प्रदेशस्् किधलणक्षेत्रे भोरमदेिः छर्त्ीसगढप्रदेशस्् खजुरलहो नलमनल विख््लतः । छर्त्ीसगढप्रदेशस्् रलजस्ि -
समभलगः बब्लसपुरमस्स्त। बब्लसपुर मण्ड्लन्तगणतां रतनपुरम् इतत ऐततहललसकस्ि्मस्स्त । पुरल क्चुरररलजलनलां
रलजधलनी आसीत् । तत्र महलमल्ल मस्न्दरां सुवि ख््लतम् । सरगुजल - स्ज्लन्तगणतां रलमगढक्षेत्रस्् ‘ पहलड़ी ' स्िलनां
महलकविकलल्दलसस्् मेघदूतकल््स्् रचनलस्ि् अलभधी्ते । दन्तेिलड़लस्ज्ल्लां दन्तेिलड़ल दन्तेश्िर दे््लः
इतत नलमनल प्रलसदधल ।
अस्स्मन् प्रदेशे प्रभूतमन्नमुत्पन्नां भितत । अतः छर्त्ीसगढप्रदेशः ' धलन कल किोरल ' इतत उच््ते ।
छर्त्ीसगढप्रदेशः अरण््लनलां प्रदेशोऽवप अस्स्त । िनेभ््ः ि्ां कलष्ठलतन - फ्लतन औषध्ः च प्रलप्नुमः। िनेषु
खगलः मृगलः ््लघ्लः च तनिसस्न्त । अस्स्मन् प्रदेशे बलरनिलपलरल सीतलनद
अभ््लरण्् , मैत्रीउद्लनां च ख््लतत्ब्धलतन उद्लनलतन सस्न्त । प्रदेशस््
बस्तरक्षेत्रे आटदिललसजनलनलां बलहुल््ां ्क्ष््ते । ते जनलः िनेषु तनभण्ां भूत्िल
विचरस्न्त । सलमप्रतां शलसनम् एषलम् उन्नत््ै बहु्ततल प्रदेशस्् देिभोगः
मैनपुरां च रत्नलनलां खतनभूलमः । इस्पलत नगर लभ्लई ्ौहलद्ः खतनजलः
उद्ोगलनलां कृते आधलरभूतलः । एिां रलष्र जीिने छर्त्ीसगढप्रदेशः वप्र्तरः।
ज्तु ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेशः ।

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शब्दार्ाथिः
विरलजते - विद्मलन है ।
उदभूतल - उत्पन्न हुई ।
विदधतत - बढ़लते हैं ।
अलभधी्ते - कहते हैं।
ततसृणलां नद नलम् - तीनों नटद्ों कल ।
प्रभूतम् - बहुत ।
प्रलप्नुमः - प्रलप्त करते हैं ।
सलमप्रतम् - अब ।
खतनभूलमः - खतनज भूलम।
्क्ष््न्ते - टदखलई देते है।
अभ्यासिः
1. तनम्नांककत प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में दीजजए ।
क. छर्त्ीसगढप्रदेश: कुत्र विरलजते ?
ख. अस्मलकां प्रदेशस्् रलजधलनी कल अस्स्त ?
ग. छर्त्ीसगढप्रदेशस्् कस्स्मन् भलगे रत्नलतन प्रलप्नुिस्न्त ?
घ. आटदिललसनः कुत्र विचरस्न्त ?
2. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए ।
क. छर्त्ीसगढप्रदेशस्् प्रमुखल नद ........... अस्स्त?
ख. छर्त्ीसगढप्रदेशस्् किधलणक्षेत्रे ...............छर्त्ीसगढप्रदेशस्् खजुरलहो नलमनल विख््लतः ।
ग. बस्तर स्ज्ल्लां दन्तेिलड़ल ............ नलमनल प्रलसदधल ।
घ. छर्त्ीसगढप्रदेशः ........... इतत उच््ते ।
3. सही जोडी बनाइए –
1. लभ्लई नगरम् - लसहलिल
2. छर्त्ीसगढ़ - सरगुजल
3. महलनद - इस्पलत
4. रलमगढ़ - रल्पुर

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7. बालकिः िुविः


पुरल उर्त्लनपलदः नलम एकः रलजल आसीत् । तस््
दिे पत्न््ौ स्त:-एकल सुनीतत: अपरल च सु�धचः । रलज्ञी
सु�धचः रलज्ञोऽतीि वप्र्लसीत् । उर्त्मः नल म तस््लः पुत्रः
आसीत् । सुनीततः रलजलनां नलततवप्र्लसीत् तस््लः पुत्रः
ध्रुिः आसीत् ।
एकस्स्मन् टदने रलजल सु�चेः पुत्रम् उर्त्मम् अङ्के
तनधल् स्नेहां कुिणन्नलसीत् । तस्स्मन् सम्े सुनीतेः पुत्रः
ध्रुिः वपतुः अङ्के स्िलतुमैच्छत्। तद दृष्ििल विमलतल
सु�धचः अब्रिीत् । ित्स ! त्िां रलजलसांहलसने आरोढुम्
अ्ोग््ः अलस ्तः त्िम् अन््स्त्रीगभलणत् उत्पन्नोऽलस।
्टद त्िां रलजलसांहलसने आरोढुम् इच्छलस तटहण भगितः
नलरल्णस्् आरलधनलां कु� । मम कुक्षौ च आगत्् जन्म
गृहलण।
विमलतुः मुखलत् एतलतन किु िचनलतन श्रुत्िल बल्कः ध्रुिः उच्चस्िरेण रोदनमलरभत । ककन्तु रलजल
उर्त्लनपलदः इदां सिं तूष्णीां भूत्िल पश््न्नलसीत् । अत्रलन्तरे बल्कः ध्रुिः रोदनां कुिणन् मलतुः सुनीतेः पलश्िण गतः
अिदत् च विमलतुः किु-््िहलर विष्े । पुत्रलत् सु�चेः किुिचनमलकण््ण सुनीततः सां्मेन ध्रुिमब्रिीत् - ित्स !
धै्ण शलस्न्तां च धलर् । ्द्वप त्िां विमलतुः आचरणेन प्रतलडडतोऽलस तिलवप त्िां परलिे कदलवप अमङ्ग्ां कलमनलां
मल कु� । ्ः पु�षः अन््लन् णखन्नां करोतत सः तस्् फ्ां अिश््मेि प्रलप्नोतत। अतः भौ ित्स ! त्िां विमलतुः
किुसत््ां पल््न् भगितः नलरल्णस्् चरणकम््ोः आरलधनलां कु� । तपसल ति पूिणजलः परलां शलस्न्तम् अ्भन्त।

मलतुरलदेशेन ध्रुिः ईश-ध््लनां प्रतत प्रेरणलां गृह त्िल स रलजप्रलसलदां त््कत्िल च िनम् अगच्छत् । िने ध्रुिः
घोरतपः अकरोत् । तस्् मन्त्रः आसीत् - 'ओम् नमो भगिते िलसुदेिल्' ध्रुिस्् तपसल प्रसन्नो भूत्िल भगिलन्
विष्णुः तस्् समक्षां प्रकि भूतः ईस्प्सतां िरां च प्रलदलत् ।
ध्रुिः स्िगण्ोके अच्ां पदां प्रलप्तिलन् ।

22
शब्दार्ाथिः
अपरल - दूसर
अङ्क - गोद में
स्िलतुम् ऐच्छत् - बैठने की इच्छल कक्ल
ित्स - पुत्र
्तः - क्ोंकक
कुक्षौ - कोख में
गृहलण - ्े ्ो
पलश्िे - पलस में
आकण््ण - सुनकर
कदलवप - कभी भी
अन््लन् - दूसरों को
णखन्न - दुःखी
परलम् - श्रेष्ठ, उर्त्म
अ्भन्त - प्रलप्त कक्े
प्रलसलदम् - मह्
त््कत्िल – छोड़कर

अतीि - बहुत
तनधल् - बैठलकर
अब्रिीत् - बो्
आरोढुम् - चढ़ने के ल्ए
तटहण - तो
आगत्् - आ करके
श्रुत्िल - सुनकर
आरभत - आरमभ कर टद्ल
तूष्णीां भूत्िल - चुप रह कर
अत्रलन्तरे - इसी बीच में
प्रतलडड़तः - दुखी कक्ल ग्ल
परलिे - दूसरे के टहत के ल््े
प्रलप्नोतत - प्रलप्त करतल है
प्रलदलत् - टद्ल, प्रदलन कक्ल
प्रकि भूतः - प्रकि हुए (उपस्स्ित हुए)
ईस्प्सतम् - इस्च्छत

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अभ्यासिः
1. अिोललखित प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में ललखिए
1. रलज्ञः उर्त्लनपलदस्् कतत पत्न््ौ आस्तलम् ?
2. ध्रुिस्् मलतुः ककां नलम ?
3. ध्रुिस्् मलतल ककां कतुणम् आटददेश ?
4. ध्रुिस्् विमलतुः नलम ककम् ?
2. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए ।
1. सुनीतेः पुत्रः ............ आसीत् ।
2. ध्रुिः तपस््लां कतुं ............ अगच्छत् ।
3. िने .......... तपः अकरोत् ।
4. �दन् ध्रुिः मलतुः सुनीतेः ...........
3. संस्कृत में अनुवाद कीजजए -
1. उर्त्लनपलद एक रलजल िल ।
2. सु�धच उनकी वप्र् रलनी िी ।
3. गिलन कल भकत िल ।
4. ध्रुि नलरल्ण को प्रणलम करतल है ।
5. ध्रुि ने अच् पद प्रलप्त कक्ल ।
4. तनम्नललखित शब्दों से संस्कृत वाक्य बनाइए –
1. ध्रुिः 2. उर्त्लनपलदः 4. सुनीततः
5. अब्रिीत् 3. सु�धच 6. अस्स्त

24
8. आिुतनकयुगस्य आववष्ट्कािािः


1. शीतलकं यन्त्रम्
अधुनल विज्ञलनेन अतत उन्नततः कृतल । तेषु शीत्कां ्न्त्रां प्रिममस्स्त। जनलः अस्् महती आिश््कतलां
प्रततगृहम् अनुभिस्न्त । ग्रीष्मकल्े च अस्् महती उप्ोधगतल परर्क्ष््ते।



शीतलकयन्त्रम्


2. सङ्गर्कयन्त्रम्
अस्स्मन् ्ुगे सांगणक्न्त्रस्् उप्ोग: सिेषु क्षेत्रेषु दृश््ते । अनेन ्न्त्रेणक्रलस्न्तकलरर पररितणनम्
अभित्। अद् लशक्षलक्षेत्रे अस्् महती आिश््कतल ितणते । देशविदेशलनलां समलचलरम् इन्िरनेि मलध््मेन प्रेषत्तुां
समिणः अ्ां सङ्गणकः। अधुनल सङ्गणकस्् उप्ोधगतल ितणते ।


सङ्गर्कयन्त्रम्



3. वायुयानम्
एतद िल्ु्लनम् अस्स्त । िल्ु्लनां शीघ्गललम भितत । अतत रुतगत््लः गगने उड्ड्तत । जनलः अनेन
िल्ु्लनेन दूरस्िलनप्णन्तां गन्तुां शकनुिस्न्त ।


वायुयानम्

25
4. दूिदशथनम्
समपकणसलधनेषु दूरदशणनम् अत््लधुतनकसलधनम् अस्स्त । प्रततटदनां ि्ां नूतनसमलचलरां प्रलप्नुमः । विविधविष्लणलां
सूचनलां दूरदशणनां सूच्तत ्िल - क्रीड़ल-लशक्षल-विज्ञलन-कृवष-््िसल्लद नलां विष्लणलां समलचलर: शीघ्मेि जनैः प्रलप्तुां
शक्ते ।


दूिदशथनम्


5. िेडियो यन्त्रम्
रेडड्ो ्न्त्रेण विविध समलचलरल: भलषणलतन गीतलतन च श्रू्न्ते । अस्मललभः अनेन ्न्त्रेण अनेके शैक्षक्षककल्णक्रमलः
िैज्ञलतनकप्र्ोगलः च ज्ञल्न्ते ।


िेडियो यन्त्रम्


7. चललतदूिभाषयन्त्रम्
एतद आधुतनकां -चल्त - दूरभलष-्न्त्रम् (मोबलई्) ्ेन मलध््मेन कस्स्मांस्श्चदवप स्िलने विद्मलनलः जनलः
स्िलमत्रैः सह िलतलण्लपां कतुं शकनुिस्न्त । अस्् ्न्त्रस्् ध्ितनः अततमधुरल प्रती्ते । (जनलः) एतद ्न्त्रां
कोिररकल्लां स्िलप्स्न्त । कोिररकलरत: बटह तन:सल्ण कणणस्ि्े आनी् जनैः स्िजनेन, स्िलमत्रेण, स्िबन्धुनल
सह िलतलण्लप: कक्र्ते । अस्् ्न्त्रस्् उप्ोधगतल अधुनल सिेषु क्षेत्रेषु अनिरतां भितत ।



चललत दूिभाष यन्त्रम्

26
ि्ां अनेन ्न्त्रमलध््मेन ल्णखत-सांदेशां-अलभनन्दन पत्रां च प्रेषत्तुां शकनुमः । बल्क-बलल्कलश्च क्रीडन्तः
आनन्दमनुभिस्न्त । एतद ्न्त्रम् इन्िरनेिमलध््मेन अलभनन्दनपत्रां, शोकपत्रां, सांदेशपत्रां अन््महत्िपूणण समलचलर
प्रेषत्तुां समिणम् । अधुनल अस्् ्न्त्रस्् अतत उप्ोधगतलस्स्त । अतः एतद ्न्त्र्ोकवप्र्म् अस्स्त ।
शब्दार्ाथिः
अधुनल - आजक्
प्रततगृहम् - घर-घर में।
अनुभिस्न्त - अनुभि करते हैं।
सङ्गणक्न्त्रम् - कमप््ूिर ्न्त्र ।
देशविदेशलनलम् - देश विदेशों कल।
प्रेषत्तुम् - भेजने के ल््े ।
िल्ु्लनम् - हिलई जहलज ।
गगने - आकलश में ।
उड्ड्तत - उड़तल है।
शकनुिस्न्त - समिण होते हैं।
प्रलप्नुमः - प्रलप्त करते हैं।
सूच्तत - सूधचत करतल है।
ज्ञल्न्ते - ज्ञलत होते हैं।
चल्तदूरभलष्ांत्रम् - चल्त िे् फोन (मोबलई्)
कोिररकल - जेब (पॉके ि)
तनःसल्ण - तनकल्कर
आनी् - ्लकर
िलतलण्लपः - बलतचीत
कक्र्ते - कक्ल जलतल है ।
अनिरतम् - ्गलतलर ।

27
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित प्रश्नों का संस्कृत में उत्ति दीजजए ।
1. अधुनल केन ्न्त्रेण क्रलस्न्तकलररपररितणनम् अभित् ?
2. ककां ्लनां गगने रुतगत््ल: उड्ड्तत ?
3. दूरदशणनां ककां सूच्तत ?
4. अस्मललभः रेडड्ो्न्त्रेण कलतन-कलतन श्रू्न्ते ?
5. कस्् ्न्त्रस्् ध्ितनः मधुरल प्रती्ते ?
2. रिक्त स्र्ान की पूततथ कीजजए ।
1. .............. महती आिश््कतलां प्रततगृहम् अनुभिस्न्त ।
2. िल्ु्लन् ............. भितत ।
3. विविध विष्लनलां सूचनलां ............ सूच्तत ।
4. रेडड्ो ्न्त्रेण ........ श्रू्ते ।
5. चल्त दूरभलष ्न्त्रां ........ स्िलप्स्न्त ।
3. युग्म बनाइए
1. चल्त दूरभलष ्न्त्रम् - शीघ्कल्ण्न्त्रम्
2. सङ्गणक ्न्त्रम् - दृश््-श्र्् ्न्त्रम्
3. रेडड्ो ्न्त्रम् - आकलशगलमी ्न्त्रम्
4. िल्ु्लनम् - श्रिणम्
5. दूरदशणनम् - श्र््भलषण ्न्त्रम्
4. 'इदम्' पुज्लङ्ग सवथनाम शब्द की कािक िचना ललखिये।
5. 'भू' (भव्) िातु का लट्लकाि पिस्मैपद में �प चलाइये ।

28
9. मेलापकिः



अहमदः - मोहन ! अद् तु ति िेशः
अतीि सुन्दरः अस्स्त ।
कि्, किां निीनलतन िस्त्रलणण
धलर्लस ?
मोहनः - अहमद ! ककां त्िां न जलनललस,
्द अद् अस्मलकां ग्रलमे
विज्दशम्ल: मे्लपकः
अस्स्त । अद् अहां तत्र
गच्छललम । ग्रलमस्् अन््े बल्क: बलल्कलः अवप तत्र गलमष््स्न्त । ककां त्िां म्ल सह न
चल्ष््लस ?
अहमदः - मोहन ! अ्ां तु महलन् सुअिसरः अस्स्त । िद तत्र ककां भविष््तत ?
मोहनः - भ्रलतः ! तत्र महलन् जनसममदणः भविष््तत । तत्र आिलां विविधलतन दृश््लतन रक्ष््लिः । रलमरलिण्ो:
्ुदधस्् अलभन्ः अवप तत्र भविष््तत ।
अहमदः - कीदृशां ्ुदधां सुस्पष्िां कि् ? ककां तत्र रलम् ्ल भविष््तत?
मोहन: - आम् तलित् त्िां तु जलनललस एि । पुनः ककां पृच्छलस ? अतः त्िम् अवप सस्ज्जतः भि ।
अहमदः - क्षणां विरम, अहम् अवप सस्ज्जत: भिललम । स्मरललम गत िषे अवप अहां मलतु्ग्रलमे रलम् ्लम्
अपश््म्। तत्र ऋक्षरलजजलमबितः अलभन्ः अतत मनोहरः आसीत् । अन््लतन अवप बहूतन दृश््लतन
मनोहरलणण आसन् । तत्र अहम् अिश््मेि गलमष््ललम ।
मोहनः - आगच्छ, आिलां च्लिः ।

29
अभ्यासिः
1. तनम्नांककत प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में ललखिए ।
1. मे्लपकः कुत्र अभित् ?
2. ऋक्षरलजजलमबितः अलभन्ः कीदृशः आसीत् ?
3. तत्र के गलमष््स्न्त ?
4. तत्र कः अिश््मेि गलमष््तत ?
2. संस्कृत में अनुवाद कीजजए -
1. हमलरे देश में बहुत से मे्े होते हैं ।
2. उनमें विज्दशमी कल मुख्् स्िलन है ।
3. हम दोनों मे्ल देखने जल्ेंगे ।
4. गतिषण भी हमलरे गलांि में मे्ल हुआ िल ।
5. मे्े में रलम-रलिण के ्ुदध कल दृश्् होगल।
3. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए -
1. तत्र आिलां ............ रक्ष््लिः ।
2. गतिषे अवप ................. मलतु् ग्रलमे ................... अपश््म् ।
3. तत्र .................... अिश््मेि गलमष््ललम ।
4. क्षणां विरम्, अहम् अवप ............... भिललम ।
5. रलम-रलिण्ोः ्ुदधस्् ................ अवप तत्र भविष््तत ।
शब्दार्ाथिः
मे्लपकः - मे्ल
विविधलतन - अनेक प्रकलर के
जनसममदणः - भीड़
सस्ज्जतः - तै्लर
'अिसर' में 'सु' उपसगण जोड़कर 'सुअिसर' शब्द बनतल है, स्जसकल अिण है अच्छल मौकल, इसी प्रकलर ‘स्पष्ि'
में सु जोड़कर ‘सुस्पष्ि' शब्द बनल, इसकल भी अिण हुआ अच्छी प्रकलर से स्पष्ि (््कत) ।

30
10. बालगीतम

(प्रस्तुत पलठ गे् है। हम स्िललभमलनी बने स्ि्ां भी प्रसन्न रहें और सांसलर में भी प्रसन्नतल फै्लएां । द न
दुणख्ों और अनलिों कल सहलरल बने ्ह इस गीत कल भलि है । आइए इसे स्िर और ्् सटहत गलएूँ ।)

मल कु� दपण मल कु� गिणम्
मल भि मलनी, मलन् सिणम् ।
मल भज दैन््ां, मल भज शोकम्
मुटदतमनल भि मोद् ्ोकम् ।।
मल िद लमथ््लां मल िद ््िणम्,
न च् कुमलगे, न कु� अनिणम्
पलटह अनलिां, पल्् द नम् ।
्ल्् जननीजनक-विह नम् ॥
शब्दार्ाथिः
मल = मत
दपणम् = घमण्ड को
भि = बनो
मलन = अलभमलनी
मोद् = प्रसन्न करो
पलटह = रक्षल करो
अभ्यास प्रश्नािः
प्रश्न (1) अिोललखित में कमथ जोडिए -
(क) .................... मोद् ।
(ख) ...................... पलटह ।
(ग) ................... पल्् ।
(घ) .................... मलन् ।
मलन् = आदर करो
दैन््म् = द नतल को
भज = ग्रहण करो
मुटदतमनल = प्रसन्न मन िल्े
लमथ््ल = झूठ
जननीजनकविह नम् = मलतल वपतल से िांधचत

31
प्रश्न (2) अिोललखित शब्दों को ववलोम शब्दों के सार् लमलाइए –
(1) सनलिः - शोकः
(2) सुमलगणः - लमथ््ल
(3) हषणः - अनलि:
(4) सत््म् - मलनी
(5) नम्रः - कुमलगणः
प्रश्न (3) अिोललखित वाक्यों में अव्यय शब्द भरिए –
लमथ््ल ............... िद ।
कुमलगे ...................... च् ।
...................... मल िद ।
दपं ...................... कु� ।
प्रश्न (4) अिोललखित पङ्ककतयों को गीत के क्रम में ललखिए -
(1) ्ल्् जननीजनक विह नम् ।
(2) मल भज दैन््ां मल भज शोकम् ।
(3) मल भि मलनी मलन् सिणम् ।
(4) पलटह अनलिां, पल्् द नम् ।
(5) मल कु� दपं, मल कु� गिणम् ।
(6) मुटदतमनल भि मोद् ्ोकम् ।
(7) न च्ु कुमलगे न कु� अनिणम् ।
(8) मल िद लमथ््ल, मल िद ््िणम् ।
(सांकल्त - सांस्कृत धलरल रलष्र ् शैक्षक्षक अनुसांधलन और प्रलशक्षण पररषद नई टदल्् )

32
11. श्रृङ्धगऋषेिः नगिी

छर्त्ीसगढरलजस्् पूिणटदलश धमतर स्ज्लन्तगणतां लसहलिलनगर विद्ते । पिणतस्् सघनगुहललभ: विविधैः
मठैः च आच्छलटदतल इ्ां नगर प्रलसदधल । पिणतस््ोपररभलगे श्रृङ्धगऋषेः आश्रमः अस्स्त । श्रृङ्धगऋषेः धमणपत्नी
शलन्तलदेिी अवप अस्स्मन् पिणते विरलजते ।
पिणतस्् गुहल्लां शस्कतस्ि�वपणी दुगलण प्रततस्ष्ठतल । अस्् क्षेत्रस्् इ्ां लसहलिलनगर प्र्लगः इतत
अलभधी्ते। लसहलिलक्षेत्रस्् समीपे सलांकरल नलम ग्रलमः अस्स्त । ्त्र दन्तेश्िर मलतल बस्तररलज्ञः कु्देिी इतत
ख््लतत प्रलप्तल । नगरिललसनः देिी दन्तेश्िर ां शस्कतस्ि�पलां मन््न्ते । अत्रैि शस्कतस्ि�पल सतीमलई गलद मलई च
विरलजेते । ग्रलमदेितल ठलकुरदेिः अवप जनैः पूज््ते । सघनिनलनलां मध््े प्रततस्ष्ठतल देिीकलल्कल
खल््लर ग्रलमलन्तगणतां विद्ते । अत्र आगन्तुकलः श्रदधल्ुजनलः स्िकलमनलप्रलप्त््िं देिी प्रलिण्न्ते । देिीकलल्कल
तेषलम् आकलांक्षल: पूर्तत ।
देिीकलल्कल न केि्ां छर्त्ीसगढ रलज््े प्रत््ुत सिणत्र प्रलसदधल । अत्र कणेश्िरधलम -
स्िविपु्सलांस्कृततकसमपदललभः पररपूणणम् अस्स्त । भौगोल्क-प्रलकृततक-आटदम-सांस्कृतत-पुरलतलस्त्िक-समपदलनलां
तनधधः सप्तऋषीनलां स्ि् च इ्ां लसहलिलनगर छर्त्ीसगढरलज््े अततप्रलसदधल ।
शब्दार्ाथिः
पिणतस्् - पिणत कल
उपररभलगे - उपर भलग में
विरलजते - विद्मलन है
अलभधी्ते - कहते हैं
मन््न्ते - मलनते हैं
अभ्यासिः
1. तनम्नांककत प्रश्नों के उत्ति संस्कृत में दीजजए ।
1. शस्कतस्ि�पल दगलण कुत्र प्रततस्ष्ठतल ?
2. लसहलिलक्षेत्रां ककम् अलभधी्ते ?
3. सघनिनलनलां मध््े खल््लर ग्रलमलन्तगणतां कल देिी विद्ते ?
4. सप्तऋषीनलां तपस्ि् कल अस्स्त ?
2. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए ।
1. लसहलिलक्षेत्रस्् समीपे ............... ग्रलमः अस्स्त ।
2. पिणतस्् गुहल्लां ............... प्रततस्ष्ठतल ।
3. बस्तररलज्ञः ................ इतत ख््लतत प्रलप्तल ।
4. .................. केि्ां छर्त्ीसगढरलज््े न ख््लतल प्रत््ुत विश्िप्रलसदधल ।
3. अस् िातु के लट्, लुट औि लङ् लकाि के सभी �प ललखिये ।
प्रलप्त््िणम् - प्रलस्प्त के ल््े
प्रलिण्न्ते - प्रलिणनल करते हैं
नगरिललसनः - नगरिलसी ्ोग
समपदलनलां तनधध - समपदलओां कल भण्डलर

33
12. अस्माकम् आहाििः


अस्स्मन् सांसलरे सिे प्रलणणनः
आहलरां गृह्णस्न्त। जीिनरक्षलिणम् आहलरस््
अतीि आिश््कतल भितत ।
मलनिस्् आहलरः कीदृशः भिेत्
इतत विष्े अस्मलकां ऋष्ः मुन्ः
िैद्लश्च उपटदशस्न्त ्त् बलल््कल्लत्
िृदधलिस्िलप्णन्तम् अस्मलकम् आहलर:
सन्तुल्तः भिेत् । सद्ः प्रसूतः लशशुः
मलतुः दुग्धमेि वपबतत । मलतुदुणग्धां पौस्ष्िकां भितत । पौस्ष्िक आहलरेण लशशिः सांिध््णन्ते । सिण-जनेभ््ः आहलरे
पौस्ष्िक फ्लनलां महती आिश््कतल ितणते अन््िल ते दुबण्ल: अशकतलश्च भविष््स्न्त ।
अस्मलकम् आहलर: उष्णम्, स्स्नग्धः, स्िलद्ुकतः च भिेत् । मलनिः लमतभोगी भिेत् अन््िल अजीणं
भविष््तत, िैद्लः कि्स्न्त- ‘अजीणणमन्नां रोगस्् कलरणमस्स्त । प्रसन्नधचर्त्ेन स्िच्छस्िलने सां्मेन उपविश््
नलत््धधकां नलततरुतम् आहलरां कु्लणत् ।
चणकः तण्डु्ः, गोधूमः, दविदि्ां, ्िः, आढकी, मुदगः, मलषः इत््लद तन अन्नलतन सस्न्त । कूष्मलण्डकः,
ककण ि , अ्लबूः, मूल्कल, आम्रम्, इक्षुः, कद् फ्ां इत््लद तन शलकफ्लतन सस्न्त । निनीतां दुग्धां, घृतां, तक्रां, दधध
इत््लटदकां पे्म् अस्स्त । एते सिे शलकलहलरर-मलनिलनलम् आहलरलः ।
बल्लनलां कृते दुग्धम् अमृतां कथ््ते । घृतां तु ब्िधणकम् । मधु रकत शोधनां करोतत ।श्रीफ्म् आम्कः,
आम�द्ः स्िलस्थ््ां रक्षस्न्त, उदर-शोधनां ब्िधणनां च कुिणस्न्त । उकतञ्च-आहलर-शलस्त्रे “शलकलहलर मनुष््ः द घलण्ुः
भितत ।”
शब्दार्ाथिः
सिे प्रलणणनः - सभीप्रलणी
गृह्णस्न्त - ग्रहण करते हैं
प्रलणरक्षलिणम् - प्रलण रक्षल के ल््े
कीदृशः - कै सल
उपटदशस्न्त - उपदेश देते हैं

34
्त् - कक
सद्ः प्रसूतः - तुरन्त पैदल हुआ
लशशुः - बल्क
एि - ह
पौस्ष्िकम् - ब् बढ़लने िल्ल
सांिधण्न्ते - बढ़ते हैं
अशकतलः - शस्कतह न
उष्णम् - गमण, तलजल
स्स्नग्धः - धचकनल
स्िलद्ुकतः - स्िलटदष्ि
लमतभोगी - कम खलने िल्ल
अजीणणम् - अपच
सां्मेन - सां्मपूिणक
उपविश्् - बैठकर
अततरुतम् - बहुत शीघ्
न - नह ां
चणकः - चनल
तण्डु्ः - चलि्
गोधूमः - गेहूां
दविद्म् - दल्
्िः - जौ
आढकी - अरहर की दल्
मुदगः - मूांग
मलषः - उड़द
इक्षुः - ईख
कूष्मलण्डकः - कुमहड़ल
अ्लबूः - आ्ू
मूल्कल - मू्

35
कद् फ् - के ्ल
निनीतम् - मकखन
तक्रम् - मह (मट्ठल)
दधध - दह
पे्म् - पीने ्ोग््
एते - ्े
कृते - के ल््े
कथ््ते - कहल जलतल है
रकतशोधनम् - खून को शुदध करनल
श्रीफ्म् - नलरर््
आम्कः - आांि्ल
आम�द्ः - अम�द
उकतम् - कहल ग्ल है
च - और

संधि-ववच्छेद
िैद्लश्च - िैद्लः + च
मलतुदुणग्धम् - मलतुः + दुग्धम्
फ्लद नलम् - फ् + आद नलम्
अशकतलश्च - अशकतलः + च
नलत््धधकम् - न + अततअधधकम्
नलततरुतम् - न + अततरुतम्
इत््लद तन - इतत + आद तन
इत््लटदकम् - इतत + आटदकम्
उकतञ्च - उकतम् + च
द घलण्ुः - द घण + आ्ुः
भितीतत - भितत + इतत

36
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति संस्कृत में ललखिए
1. प्रलणरक्षलिं कस्् अतीि आिश््कतल ितणते ?
2. सद्ः प्रसूतः लशशुः कस््लः दुग्धम् वपबतत ?
3. के न आहलरेण लशशिः सांिध््णन्ते?
4. कः लमतभोगी भिेत् ?
5. अजीणणमन्नां कस्् कलरणमस्स्त?
6. कः मनुष््ः द घलण्ुः भितत ?
2. कोष्ट्ठक में ढदये गये शब्दों से रिक्त स्र्ान भरिये ।
(लशशिः, घृतम्, भिेत्, पे्म्)
1. मलनिस्् आहलरः कीदृशः .................. ।
2. .................... आहलरेण सांिधणन्ते ।
3. दुग्धां, घृतां, तकण, दधध इत््लटदकां ............... अस्स्त ।
4. .................. तु ब्िधणकम् ।
3. तनम्नललखित शब्दों का वाक्य प्रयोग कीजजए
भविष््स्न्त, आहलरः, कि्स्न्त, भिेत्
4. 'अस्मद' (मैं) - सवथनाम शब्द की कािक िचना सभी ववभजक्तयों में ललखिए
5. 'पा' (वपब्) िातु लट्लकाि, सभी पु�ष व वचन में काल िचना कीजजए ।

37
13. शोभनम् उपवनम्

इदम् उपिनम् । मनोहरम् इदम उपिनम्।
इ्ां मस्ल््कल्तल । इमे शोभने ्ते । इमलः हररतल:
्तलः । इमलतन हररतलतन पत्रलणण । इमलतन मनोहरलणण
पुष्पलणण । अ्ां सरोिरः । तत्र तलतन मनोहरलणण
कम्लतन । अ्ां म्ूरः । इमौ भ्रमरौ । इमलः
ततवर्त्ल्कलः। इमे कपोतलः ।
अ्म् अशोकिृक्षः । अ्ां िििृक्षः । इमौ
तनमबिृक्षौ । इमे आम्रिृक्षलः। इमे हररतलः िृक्षलः ।
इमलतन मधुरलणण फ्लतन । िृक्षलः अस्मलकां लमत्रलणण ।
ते प्रलणिल्ुदल्कलः । अत्र भ्रमणां सुखदल्कम्
आरोग््दल्कां च ।
वृिार्ां िोपर्ं फलदायकम् ।
यर्ा महाभािते ललखितम्
'वृिार्ां कतथनं पापं
वृिार्ां िोपर्ं ढहतम्'
शब्दार्ाथिः

उपिनम् - बगीचल
मस्ल््कल्तल - चमे् की बे्
भ्रमरौ - दो भांिरे
ततवर्त्ल्कल: - तततल््लां
प्रलणिल्ुः - आकसीजन
सुखदल्कम् - सुख देने िल्े हैं
रोपणम् - उगलनल
कतणनम् - कलिनल
टहतम् - उपकलर

38
अभ्यासिः
1. तनम्न ललखित प्रश्नों के सही उत्ति का क्रमािि कोष्ट्ठक में ललखिए
1. इदम् शब्द स्त्रील्ङ्ग प्रिमल विभस्कत एकिचन कल �प है ।
क. अ्म् ग. इ्म्
ख. अहम् घ. इदम्

2. अस्मलकां लमत्रलणण के ?
क. कृषकलः ख. िृक्षलः
ग. रक्षकलः घ. मक्षक्षकल

2. तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति धचत्रों की सहायता से दीजजये ।


क. अ्ां कः ? अ्ां .....................





ख. इमौ कौ ? इमौ .....................





ग. इमे के ? इमे .....................




घ. इमलः कलः ? इमलः .....................


3. उधचत पद से रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए ।
क. .......... आम्रिृक्षः । (अ्ां, इदां, इ्ां)
ख. ................. हररतल: ्तलः । (इदां, इमलः, इमलतन)
ग. ....................... सरोिरः । (इ्ां, इदां, अ्ां)
घ. ................ भ्रमरौ । (इदां, इमौ, इमलः)

39
4. अिोललखित सािखर्यों के रिक्त स्र्ानों की पूततथ उपयुक्त पदों द्वािा कीजजए
क. एकवचन द्वववचन बहुवचन ललङ्ग
इदम् इमे ............ नपुांसकल्ङ्ग
अ्म् ............ ............ पुस्ल््ङ्ग
ि. एकवचन द्वववचन बहुवचन ललङ्ग
तत् .......... तलतन नपुांसकल्ङ्ग
............ तौ ते पुस्ल््ङ्ग
सल ते .......... स्त्रील्ङ्ग
ग. अस्मद् शब्द प्रर्मा ववभजक्त ।
एकिचन दवििचन बहुिचन
अहम् आिलम् ............
............ ............ ि्म्
घ. युष्ट्मद् शब्द प्रर्मा ववभजक्त ।
एकिचन दवििचन बहुिचन
त्िम् ............ ्ू्म्
त्िम ्ुिलम् ............
ङ. वृि शब्द प्रर्मा ववभजक्त ।
एकिचन दवििचन बहुिचन
.......... िृक्षौ िृक्षलः
िृक्षः िृक्षौ .......
िृक्षः ........ िृक्षलः
च. लता शब्द प्रर्मा ववभजक्त ।
एकिचन दवििचन बहुिचन
्तल ्ते ..........
्तल ........... ्तल:
्तलः ........... ्ते

40
14. पजडितजवाहिलालनेह�:


जिलहर्ल्नेह�: महोद्ः स्ितन्त्रभलरतिषणस्् प्रिमः प्रधलनमन्त्री
आसीत् । सः स्ितांत्रतलसांग्रलमे स्िेच्छ्लगतः । तदल महलत्मलगलांधी
अटहांसकलन्दो्नस्् नेतृत्िां करोततस्म ।
अस्् जनकः श्री मोती्ल्नेह�ः मलतलस्ि�परलनी, कम्लधमणपत्नी,
इस्न्दरल च एकसुतल, विज््क्ष्मीपस्ण्डत भधगनी आसीत्। 'आांग््देशे'
'कै स्मब्रज' इतत विश्िविद्ल््े लशक्षल समलप्् स: स्िदेशे समलगतः ।
तदल प्रभृतत सः स्िजीिनस्् ्ोकलपणणम् अकरोत् ।
जिलहर्ल्: कृपल्ुः, सहृद्ः, िलग्मी, विधधज्ञः च आसीत्।
महलत्मलगलांधी ्टद रलष्रवपतल कथ््ते तटहण नेह�: रलष्रतनमलणतल ।
नेह�ः ्ेखकः अवप आसीत् । तेन ल्णखतलतन बहूतन पुस्तकलतन
सस्न्त । नेह�सलटहत््ां ्ोकवप्र्मस्स्त । अद्लवप सिे तलतन पुस्तकलतन पठस्न्त । ज्ञलनसमृदधल: च भिस्न्त।
सः बहुिलरां कलरलगलरां अवप अगच्छत् । 1942 णिष्िलब्दे प्रस्तलि: पलररत:- 'भलरतां त््ज' अ्ां प्रस्तलिः देशे सिणत्र
प्रसररतः । अस्स्मन् आन्दो्ने नेह�:पररिलरस्् सकक्र्: सह्ोगः आसीत् । बल्लनलां चलचलनेह� अततवप्र्ः।
शब्दार्ाथिः
आसीत् - िल
स्िेच्छ्ल - अपनी
इच्छल से आगतः - आ ग्े
नेतृत्िम् - सांचल्न
सुतल - पुत्री
भधगनी - बहन
समलप्् - समलप्त करके
प्रभृतत - ्ेकर
्ोकलपणणम् - देश के ल््े
अवपणत िलग्मी - भलषणक्ल में तनपुण
कृपल्ुः - द्ल्ु
सहृद्ः - स्िच्छ हृद् िल्ल
विधधज्ञः - विधधशलस्त्र के ज्ञलतल
कलरलगलरः - जे्

41
अवप - भी
णिष्िलब्दे - ईस्िी सन् में
भलरतां त््ज - भलरत छोड़ो
प्रसररतः - फै ् ग्ल
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में ललखिए
1. जिलहर्ल्स्् वपतुः ककां नलम ?
2. कम्ल कस्् धमणपत्नी आसीत् ?
3. स्िलधीनभलरते प्रिमः प्रधलनमन्त्री कः आसीत् ?
4. स्ि�परलनी कस्् मलतल आसीत् ?
5. कस्् सुतल इस्न्दरल आसीत् ?
6. भलरतां त््ज प्रस्तलिः कदल पलररत: ?
2. संस्कृत में अनुवाद कीजजए
1. बल्क पुस्तक पढ़तल है ।
2. िह आतल है।
3. तुम कहलूँ जलते हो ।
4. श्री गु� को प्रणलम ।
5. हम दोनों विद्ल्् जलते हैं ।
3. संधि ववच्छेद कीजजए
1. अद्लवप
2. समलगतः
3. ्ोकलपणणम्
4. तनम्नललखित शब्दों की सभी ववभजक्तयों में कािक िचना ललखिए
1. पुस्तक
2. विद्ल््

42
15. वषाथगीतम् (बालगीतम्)



एटह एटह रे िषलणज्धर ।
ग्रलमतडलगे नैि बत ज् म् ।
सीदतत णखन्नां तिे गोकु्म् ॥

ग्रलमनद ्म् ख्ु ज्ह नल ।
््लकुल्तल दृश््न्ते मीनलः ।
गृहकूपेषु च न नटह नटह नीरम् ।

हृद्मतो मे जलतमधीरम्
दुःखांदैन््ां सत्िरमपह ।।1।। एटह एटह रे

तृवषतल गलिस्तृवषतल ्ततकल ।
तृवषतलस्ते चलतकल िरलकलः ।
आकलशे त्िां सांचर सांचर ।।2।। एटह एटह रे
तप्तां पररतोऽस्मलकां सदनम् ।
शुष्कप्रल्ां सदैि िदनम् ।

रवि ते जो ननु दहतत ्ोचनम् ।
शर रमणख्ां धमणस्क्न्नम् ।
प्रखरां सक्ां िलतलिरणम् ।

दुधणरमधुनल ्ोक जीिनम्।
जनसांतलपां सुदूरमपहर ॥3॥ एटह एटह रे

अर्थ
1. हे िषलण करने िल्े बलद् ! आओ आओ गलांि के तल्लब में पलनी नह ां है। ति पर गल्ों कल झुण्ड प््लस
के कलरण ््लकु् हो रहल है। गलांि की ्ह नद भी पलनी रटहत होकर सूख गई है। इसकी मछल््लूँ
पलनी के बबनल तड़प रह हैं । (््लकु् हो रह है) घरों के कुओां में पलनी नह ां है । मेरल धचर्त् अब अधीर
हो उठल है। हमलरे दुःख और दैन्् को शीघ् दूर करो । हे ! बलद् तुम जलओ ।

43
2. ्े शुक-सलररकल्ें (तोतल-मैनल्ें) प््लसी है । गल्ें प््लसी है । ्तल्ें प््लसी है । बेचलरे चलतक प््लसे
हैं। हे बलद् तुम आकलश में छल जलओ, बलद् तुम आओ।
3. हमलरल घर चलरों ओर से गरम हो ग्ल है। (तप ग्ल है) हमलरल मुख सूख रहल है। सू्ण की ककरणे आखों
को ज्ल रह है । सलरल शर र पसीने से भीग ग्ल है । समपूणण िलतलिरण प्रखर हो ग्ल है। (सांतप्त
हो ग्ल है) जनजीिन अब कष्िम् हो ग्ल है । हे बलद् जनो के सांतलप को अब दूर करो । बलद्!
तुम आओ, आओ।
शब्दार्ाथिः
एटह - हे
ज्धर - बलद्
तडलगे - तल्लब में
नैि - नह ां
सीदतत - कमजोर हो ग्ल है
कूपेषु - कुओां में
अधीरम् - बबनल धै्ण के
सत्िरम् - शीघ्
अपहर - दूर करो
तृवषतल - प््लसी
गलिः - गल्ें
िरलकलः - बेचलरे
सांचर - छल जलओ
पररतः - चलरों ओर
सदनम् - मह्, भिन
िदनम् - मुख
तेजः - गमी, प्रकलश
ननु - अिश्् ह
दहतत - ज्ल रहल है
्ोचनम् - आूँख को
स्क्न्नम् - पसीनल
प्रखरम् - गमी से सांतप्त
दुधणरम् - कष्िम्

44
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में दीजजए।
1. ज्ां विनल जीिजन्तिः ककम् अनुभिस्न्त ?
2. केषु कूपेषु ज्ां नलस्स्त ?
3. तडलगे ककां नलस्स्त ?
4. ककां जन्तिः तृवषतलः सस्न्त ?
5. जनलनलां सन्तलपां कः दूर करोतत ?
2. िाली स्र्ानों को भरिये ।
1. ज्धरः .............. ददलतत।
2. .................. ज्ां सीदतत ।
3. ज्ह नेन मीनः .................... भितत ।
4. िषलणकल्े ................ आकलशे सांचरस्न्त ।
5. िषलणकल्े सरोिरे ................. तरस्न्त ।
3. प्रत्येक िडि में से एक-एक शब्द लेकि पांच वाक्य बनाइये।
मेघल पिनः िधणते
शीत्ः इतस्ततः सस्न्त
दुग्धपलनेन कृष्णल धलिस्न्त
बल्कलः मधुरां िहतत
दुग्धां बुदधधां भितत
4. कोष्ट्टकों में ढदये गये ढहन्दी शब्दों के स्र्ान पि संस्कृत के उधचत शब्द ललिकि वाक्य पूर्थ कीजजए–
1. (िे सब) ज्े क्रीडस्न्त ..........
2. एषल (गल्) अस्स्त ............
3. (उपिन में) म्ूरः नृत््तत
4. (आकलश में) मेघलः नृत््स्न्त ...
5. (सभी) प्रसन्नलः सस्न्त.................

45
16. दीपावललिः

अस्मलकां देशस्् नलम भलरतिषणः ।
एतस्स्मन् देशे बहिः धमलणि्स्मब नः
तनिसस्न्त । अतः अत्र अनेके उत्सिलः
आ्ोज््न्ते । एतेषु उत्सिेषु द पलिल्ः अवप
विलशष्िः महोत्सिः । अस्् नलममलत्रेण अवप
जनलनलां मनलस आनन्दस्् सञ्चलर: भितत ।
्दल श्रीरलमः रलिणां स्जत्िल चतुदणशिषणस््
िनिलसलनन्तरम् अ्ोध््लम् आगच्छत् तदल
सिेऽवप जनलः सोत्सलहेन नगर सुसस्ज्जतलम्
अकुिणन् । ते च द पलनलां पांस्कतलभः श्री रलमस््
स्िलगतल् परमलनन्दप्रदशणनम् अकुिणन् । जनल:
एनम् उत्सिां कलततणक मलसस्् अमलिस््ल्लां ततिौ मन््न्ते । एिम् अ्म् उत्सिः प्रततिषं समपूणणभलरतिषे
सोत्सलहां समल्ोज््ते ।
इदलनीां भलरती्लः द पलिल््लः पूिणमेि स्िगृहलणण स्िच्छलतन सुधलधौतलतन च कलर्स्न्त।
गृहेषु जीणलणनलां िस्तूनलां स्िलने निलतन िस्तूतन आनी्न्ते । धचत्रैः मूततणलभः च गृहलणण सुसस्ज्जतलतन
कक्र्न्ते । लमष्िलन्नविक्रे तलर: निनिैः लमष्िलन्नैः पण््ल््लतन सुसस्ज्जतलतन कुिणस्न्त । विपणणषु जनलनलां महती
गतलगततः भितत, महत् को्लह्ां च भितत ।
द पलिल््लां जनलः नूतनलतन िसनलतन
धलर्स्न्त । ते पण््िीधिकलसु गत्िल बहुविधलतन
िस्तूतन क्रीणस्न्त। ते लमष्िलन्नलतन क्रीत्िल इष्िलमत्रेषु
वितरस्न्त । ते नलनलविधलतन विस्फोिकलतन
विस्फोि्स्न्त । जनलः ्क्ष्मी पूजत्त्िल
लमष्िलन्नलतन खलदस्न्त । अ्ां उत्सिः भलरती्ैः
बहुउत्सलहेन आ्ोज््ते। केचन् जनलः द पलिल््लः
रलत्रौ द्ूतक्रीडलां कुिणस्न्त, मद्पलनम् अवप कुिणस्न्त
तिल अनगण्ां ््िहरस्न्त एतत् तु न ्ुकतम् । एष:
महोत्सिः आनन्दोत्सिः च । कुस्त्सतकमलणणण
पररत््ज्् सिवः श्रदध्ल आनन्देन च आ्ोजनी्ः।

46
शब्दार्ाथिः
एतस्स्मन् - इसमें
आ्ोज््न्ते - मनलते हैं
उत्सिेषु - त््ौहलरों में
विलशष्िः - विशेष
सञ्चलरः - प्रिेश, पहांच
स्जत्िल - जीतकर
चतुदणशिषणस्् - चौदह िषण कल
िनिलसलन्तरम् - जांग् में िलस के बलद
आगच्छत् - आ्े
सुसस्ज्जतलम् - सजलने कल कलम
अकुिणन् - कक्े
अमलिस््ल्लः - (कृष्ण पक्ष की पांरहिीां ततधि) अमलिस््ल में
सुधलधौतलतन - सफलई, ल्पलई, पोतलई
जीणलणनलम् - पुरलने (जीणो कल)
आनी्न्ते – ्लते हैं
निनिैः - नए-नए
पण््ल््लतन - दुकलनों (बलजलरों) को
विपणणषु – दुकलनों में
महती - बड़ी
गतल-गततः - आनल-जलनल
को्लह्म् - शोरगु्
िसनलतन - कपड़ों को
पण््िीधिकलसु - बलजलर की गल््ों में
क्रीत्िल - खर दकर
विस्फोिकलतन - फिलकों को
द्ूतक्रीडलम् - जुआ
मद्पलनम् - शरलब पीनल
अनगण्म् - ््िण
्ुकतम् - उधचत
कुस्त्सतलतन - खरलब
आ्ोजनी्ः - मनल्ल जलनल चलटह्े

47
अभ्यासिः
1. तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में दीजजए
1. अस्् देशस्् नलम ककम् ?
2. द पलिल्ः कस्मलत् कलरणलत् मन््ते ?
3. द पलिल्ः कस््लां ततिौ टदिसे भितत ?
4. जनल: गृहेषु ककां-ककां कल्ं कुिणस्न्त ?
5. जनलः कलततणक मलसस्् अमलिस््ल्लां ततिौ कस्् पूजनां कुिणस्न्त?
2. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए
1. हररः लमष्िलन्नां .......... ।
2. जनल: नूतनलतन िसनलतन .............. ।
3. बहुधल जनलः विस्फोिकलतन .................।
4. केचन जनलः ............. कुिणस्न्त ।
5. रलमः रलिणां स्जत्िल अ्ोध््लां ................ ।
3. तनम्न शब्दों से िातु औि प्रत्यय पृर्क कीजजए
स्जत्िल
गत्िल
कीत्िल
पूजत्त्िल
नीत्िल ।
4. तनम्नललखित शब्दों का उपयोग कि वाक्य बनाइए
अत्र
को्लह्म्
विपणणषु
केचन्
तदल ।

48
17. छत्तीसगढिाज्यस्य िालमथकस्र्लातन


छर्त्ीसगढरलज््े अनेकलतन धललमणकस्िलनलतन सस्न्त। अलभ्ेखैः ज्ञल्ते ्त् रल्पुरां धललमणकमहत्त्िस्् स्ि्म्
आसीत्। रल्पुरनगरे अनेके देिल््लः विद्न्ते। ्िल दूधलधलर -शीत्लमलतल-महलमल्ल-बूढेश्िर महलदेि मस्न्दरलणण
प्रलचीनलतन सस्न्त । रलस्जमग्रलमे कु्ेश्िरमहलदेिरलजीि्ोचन्ोः दिौ देिल््ौ अतत प्रलसदधौ स्तः । धगरौधपुर ग्रलमे
सन्तगु�घलसीदलसस्् लसदधस्ि्ां दशणनी्मस्स्त।
बब्लसपुरस्ज्लन्तगणतां रतनपुरे महलमल्लमस्न्दरां दशणनी्ां धललमणकस्ि्म् अस्स्त। खल््लर ग्रलमे पिणतोपरर
खल््लर देिल््ः अिस्स्ितः । अस्स्मन् ग्रलमे महलभलरतस्् अनेकलतन ककमिदन्तीतन प्रचल्तलतन सस्न्त। कथ््ते
्त् अस्् पिणतोपरर भीमस्् पदधचह्नलतन अङ्ककतलतन सस्न्त । लसरपुरग्रलमेऽवप ्क्ष्मणकलमगन्धिेश्िरलणलां
देिल््ल: ितणन्ते। डोंगरगढे पिणतोपरर स्स्ितो मलतुः बम्ेश्ि्लणः देिल््ः न केि्ां छर्त्ीसगढिललसनलम् अवपतु
सक्भलरतिषणस्् श्रदधल्ूनलां आकषणणस्् केन्रम् अस्स्त । अत्र प्रततिषण मे्लपक: आ्ोज््ते । लशिर नलरल्णे
अनेकलतन प्रलचीनलतन दशणनी्स्ि्लतन प्रततस्ष्ठतलतन सस्न्त । कथ््ते ्त् अस्स्मन् स्िलने भगिलन् रलम: शब्लणः
उस्च्छष्िलतन बदररकलणण अभक्ष्त् । अस्् स्ि्स्् समीपे खरोदग्रलमे भगितोः शङ्कर्क्ष्मण्ोः अतत
प्रलचीनदेिल््ौ विद्ते ।
धमतर स्ज्ल्लां कततप्े प्रलचीनल: देिल््लः अवप सस्न्त । ्ेषु सिलणधधक: ्ोकवप्र्: बब्लईमलतलदेिल््ः
ितणते । इ्ां मलतल अस्् क्षेत्रस्् रक्षलां करोतत इतत मन््ते । दन्तेिलड़ल स्ज्ल्लां दन्तेश्िर देिल््ः अततप्रलसदध:।
किधलणस्ज्ल्लां भोरमदेि स्िलने भगितः लशिस्् देिल््ः दशणनी्ः मनोहरश्च । जलांजगीरे नकिलमांटदरां
विष्णुमस्न्दरञ्च अतत प्रलचीने स्तः । ्टद ि्ां बब्लसपुरनगरां गच्छलमः तत्र तल्लग्रलमे देिरलनीजेठलनीदेिल््ौ
प्रलसदधौ स्तः । दलमलखेडलग्रलमे कबीरपन्िी्लनलां प्रमुखतीिणस्ि्ां तेषलां प्रलचीनकिल कथ््न्ते । अस्स्मन् क्षेत्रे एकल
जनश्रुततः प्रचल्तल ्त्र भगिलन् रलमसीतल्क्ष्मणलश्च िनिलसकल्े अिसन् । रल्गढस्ज्ल्लां नेतनगरलन्तगणतां
जैनतीिलणनलां चतुमुणखीप्रततमल प्रलप््ते । छर्त्ीसगढरलज््स्् एतलतन धललमणकस्ि्लतन ्ोकश्रदधलां विभूष्न्तीतत ।
शब्दार्ाथिः
ज्ञल्ते - ज्ञलत होतल है ।
देिल््: - मस्न्दर
दशणनी्म् - देखने ्ोग््
स्ि्म् - स्िलन
ककमिदन्तीतन - जनश्रुतत्लूँ
बदररकलणण - बेर
उस्च्छष्ठः - जूठे
अिशेषल: - खण्डहर
कन्दरलणण - गुफलएूँ

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अभ्यासिः
1. तनम्नाङ्ककत प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में दीजजए -
क. महलमल्ल मस्न्दरे कस््लः प्रततमल स्िलवपतल ?
ख. रलस्जमग्रलम: कस्् हेतोः प्रलसदधः ?
ग. धगरौधपुर ग्रलमे कस्् लसदधस्ि्ां ितणते ?
घ. भीष्मस्् पदधचह्नलतन कुत्र अङ्ककतलतन सस्न्त ?
ङ. कस्स्मन् स्िलने प्रततिषण मे्लपक: आ्ोज््ते ?
च. दन्तेश्िर -देिल््ः कुत्र अिस्स्ितमस्स्त ?
छ. कबीरपन्िी्लनलां तीिणस्ि्ां कुत्र अस्स्त ?
2. तनम्नललखित शब्दों की सजन्ि-ववच्छेद कीजजए -
बूढ़ेश्िरः, देिल््ः, पिणतोपरर, मनोहरः, गन्धिेश्िरः ।
3. तनम्नललखित शब्दों का समास ववग्रह कीजजए -
रलजीि्ोचनम्, महलमल्ल, महलदेिः, पधचह्नलतन
4. िालमथक शब्द में 'िमथ' मूलशब्द है । 'िमथ' में 'इक' प्रत्यय के योग से िालमथक शब्द बना है । इसी
प्रकाि तनम्नललखित शब्दों में 'इक' प्रत्यय लगाकि नये शब्द बनाइए –
समलज + इक = ...............
इततहलस + इक = ...............
पररिलर + इक = ...............
रलजनीतत + इक = ...............
सांस्कृतत + इक = ...............
नगर + इक = ...............
5. तनम्नललखित प्रदत्त शब्दों से रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए
मनोहरलणण, उस्च्छष्ठलतन, बस्तरः, मे्लपकः, दन्तेश्िर , भीमस््, दलमलखेड़ल
क. अस्् पिणतोपरर .................... पदधचह्नलतन सस्न्त ।
ख. अत्र प्रततिषं ......................... आ्ोज््ते ।।
ग. भगिलन् रलमः शब्लणः ..................... बदररकलणण अभक्ष्त्।
घ. सिण धललमणक-स्ि्लतन अतीि ............... सस्न्त ।
ङ. बस्तर स्ज्ल्लां ...................... देिल््: अततप्रलसदधमस्स्त ।
च. कबीरपन्िी्लनलां प्रमुख तीिणस्ि्ां ...................... ग्रलमे अिस्स्ितम् ।

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18. नीततनवनीतम्


1. क्षणे तुष्िलः क्षणे �ष्िलः �ष्िलः तुष्िलः क्षणे-क्षणे ।
अ््िस्स्ितधचर्त्लनलां प्रसलदोऽवप भ्ङ्करः ।1।।

2. समपूणणकुमभो न करोतत शब्दम? घिो घोषमुपैतत नूनम् ।
विदिलन् कु् नो न करोतत गिं जल्पस्न्त मूढलस्तु गुणैविणह नलः ॥2॥

3. ्ेषलां न विद्ल न तपो न दलनां,
ज्ञलनां न शी्ां न गुणो न धमणः ।
ते मत््ण्ोके भुवि भलरभूतलः,
मनुष््�पेण मृगलश्चरस्न्त ।।3।।

4. उद्मेन टह लसध््स्न्त, कल्लणणण न मनोरिैः ।
न टह सुप्तस्् लसांहस््, प्रविशस्न्त मुखे मृगलः ॥4॥

5. शै्े-शै्े न मलणणक्, मौस्कतकां न गजे-गजे ।
सलधिो न टह सिणत्र, चन्दनां न िने-िने ॥5॥

6. ्स्् नलस्स्त स्ि्ां प्रज्ञल, शलस्त्रां तस्् करोतत ककम् ।
्ोचनलभ््लां विह नस््, दपणणः ककां कररष््तत ॥6॥

7. नरस््लभरणां �पां, �पस््लभरणां गुणः ।
गुणस््लभरणां ज्ञलनां, ज्ञलनस््लभरणां क्षमल ॥7॥

शब्दार्ाथिः
तुष्िलः - सांतुष्ि होते हैं
क्षणे - क्षण में
घोषम् - आिलज
अ््िस्स्ित धचर्त्लनलां - अ््िस्स्ित धचर्त् कल
प्रसलद: - प्रसन्नतल
कुमभ: - घड़ल
उपैतत - प्रलप्त होतल है

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कु् नः - अच्छल कु्
मत््ण्ोके - सांसलर में
भलरभूतलः - भलर स्ि�प
उद्मेन - प्र्त्न से
मनोरिैः - मनोरिों दिलरल
प्रविशस्न्त - प्रिेश करते हैं
शै्े-शै्े - पिणत-पिणत में
सिणत्र - सभी जगह
िने-िने - जांग्-जांग् में
्स्् - स्जसकल
्ोचनलभ््लम् - आांखों से
नरस््लभरणम् - मनुष्् कल आभूषण
अभ्यास:
1. तनम्नांककत प्रश्नों का संस्कृत भाषा में उत्ति दीजजए
क. के षलां नरलणलां धचर्त्लतन अ््िस्स्ितलतन ?
ख. के जनल: भुवि भलरभूतलः सस्न्त ?
ग. विद्ल विह नः जनः कीदृशः भितत ?
घ. कस्् दपणणः ककां कररष््तत ?
ङ. नरस््लभरणम् ककम् ?
2. पहले औि चौर्े श्लोकों का अर्थ ललखिए

3. पद पूततथ कीजजए
क. ्ेषलां न विद्ल न तपो ................. ।
ख. न टह सुप्तस्् लसांहस्् ...................... ।
ग. ………………… ज्ञलनस््लभरणां क्षमल ।

4. तनम्नांककत शब्दों के अर्थ ललखिए
क. मृगलश्चरस्न्त ख. लसध््स्न्त
ग. मौस्कतकम् घ. ककां कररष््तत

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19. सूक्तयिः (िडि-अ)

1. अतत सिणत्र िजण्ेत् ।
अिण- अधधकतल सब जगह छोड़ने ्ोग्् है ।
2. अल्पविद्ल महलगिः ।
अिण- कम विद्ल िल्े महलन गिण करने ्गते हैं ।
3. ्िल बीजां तिल तनष्पवर्त्ः ।
अिण- स्जस प्रकलर कल बीज होगल उसी प्रकलर फ् उत्पन्न होगल ।
4. सिणः सिं न जलनलतत ।
अिण- सभी सब कुछ नह ां जलनते ।
5. धमणस्् मू्म् अिणः ।
अिण- धमण कल मू् धन है ।
6. मौनां सिलणिण सलधनम् ।
अिण- मौन सबकल सलधन है ।
7. श्रदधलिलन् ्भते ज्ञलनम् ।
अिण- श्रदधलिलन् को ज्ञलन प्रलप्त होतलहै ।
8. ्ोभ: पलपस्् कलरणम् ।
अिण- ्ोभ पलप कल कलरण है।
9. विनलशकल्े विपर तबुदधधः ।
अिण- विनलश के सम् बुदधध विपर त हो जलती है।
10. टहतां मनोहलरर च दु्णभां िचः ।
अिण- टहतकर और मनोहलर िचन दु्णभ है।
शब्दार्ाथिः
अतत - अधधकतल
िजण्ेत् - छोड़नल चलटहए (छोड़ने ्ोग््)
अल्पविद्ल - िोड़ल ज्ञलन
महलगिणः - महलन गिण, घमांड
तनष्पततः - फ्
मौनम् - चुपचलप
धमणस्् - धमण कल
्ोभः - ्ल्च

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विपर त बुदधध - उल्ि बुदधध
मनोहलरर - सुन्दर
िच: - िचन
अभ्यासिः
1. रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए
क. धमणस्् ............... अिणः ।
ख. मौनां ................ सलधनम् ।
ग. ्ोभः .................. कलरणम् ।
घ. टहतां ...................... च दु्णभां िचः ।
2. संस्कृत सूजक्तयों का ढहन्दी में अर्थ ललखिए
क. ्िल बीजां तिल तनष्पवर्त्ः ।
ख. सिणः सिं न जलनलतत ।
ग. श्रदधलिलन् ्भते ज्ञलनम् ।
घ. अल्प विद्ो महलगिः ।
ङ. अतत सिणत्र िजण्ेत् ।
3. संस्कृत में अनुवाद कीजजए
क. रलम फ् खलतल है ।
ख. सीतल पत्र ल्खती है ।
ग. श्रदधलिलन को ज्ञलन प्रलप्त होतलहै ।
घ. विद्लिलन नम्र होतल है ।
ङ. ्ोभ पलप कल कलरण है ।
4. 'ज्ञा' िातु का लट्लकाि पिस्मैपद में �प चलाइए

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जयतु छत्तीसगढप्रदेशिः
गीतम् (िडि-ब)
ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेशः
ज्तु ज्-ज् भलरतम् ।

अस्् उर्त्रे नमणदल, दक्षक्षणे इन्रलिती ।
रलजीि्ोचनरलस्जमे, दन्तेिलडल्लां दन्तेश्िर ॥
स्ि्मल्हलरम् अतत प्रलसदधां, ज्तु ज्-ज् भलरतम्।
ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेशः, ज्तु ज्-ज् भलरतम् ।।

सतीस्ि् महलमल्ल्लां प्रलसदधां देिेश्िर ।
डोंगरगढस्ि्ां प्रलसदधां, देिीमलतल बमब्ेश्िर ।।
देिभोगः अतत प्रलसदधः, ह रकरत्नलनलां खलनम् ।
ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेश: ज्तु ज्-ज् भलरतम् ।।

उद्ोगलनलां तीिणस्ि् ्ां, लभ्लई कोरबल भूतम् ।
बै्लडी्ल ्ौहखलनां, मम प्रदेशे सुविख््लतम् ।।
धन््ल जननी जन्मभूलमः, धन््ां भलरतिषणम् ।
ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेश: ज्तु ज्-ज् भलरतम् ।।

छर्त्ीसगढ-अञ्च्े प्रलसदधल, ्ोकसांस्कृततः सरगुस्जकल ।
करमल पांडिलनी प्रलसदधां, अतत प्रलसदधां शुकनृत््म् ।।
पांिी, ददरर्ल चलवप प्रलसदधां, ज्तु ज्-ज् भलरतम् ।
ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेश: ज्तु ज्-ज् भलरतम् ।।

मम प्रदेशे महलनद , सोन, जुटह्लश्च प्रिहस्न्त ।
पेण्रल अांच्े परमलनन्दां सररतल अरपल तनस्सरतत ॥
धन््: छर्त्ीसगढप्रदेशः, धन््ां भलरतिषणम् ।
ज्तु छर्त्ीसगढप्रदेशः, ज्तु ज्-ज् भलरतम् ॥
शब्दार्ाथिः
ज्तु - ज् हो
अस्् - इसकल
मम - मेरल

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दन्तेिलडल्लम् - दन्तेिलड़ल में
सतीस्ि् - सती स्िलन
रत्नलनलम् - रत्नों कल
सुविख््लतम् - सुप्रलसदध
छर्त्ीसगढ़ अांच्े - छर्त्ीसगढ़ क्षेत्र में
शुकनृत््म् - सुआ नृत््
प्रिहस्न्त - बहती हैं
सररतल - नद
तनस्सरतत - तनक्ती है
अभ्यास:
1. तनम्नांककत प्रश्नों के उत्ति संस्कृत भाषा में ललखिए
क. छर्त्ीसगढस्् उर्त्र टदलश कल नद अस्स्त?
ख. मलतल बमब्ेश्िर कुत्र प्रलसदधल ?
ग. रत्नलनलां खलनां कुत्र अस्स्त ?
घ. ्ौहखलनां कुत्र स्स्ितम् अस्स्त ?
ङ. छर्त्ीसगढ-अांच्े ककां नृत््म् प्रलसदधम अस्स्त ?
च. पेण्रल अांच्े कल नद तनस्सरतत ?
2. तनम्नांककत वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजजए
क. मेरल प्रदेश छर्त्ीसगढ़ है ।
ख. इसके दक्षक्षण में इन्रलिती है ।
ग. छर्त्ीसगढ़ में सुआ नृत्् प्रलसदध है ।
घ. अरपल नद पेण्रल अांच् से तनक्ती है।
ङ. भलरत मलतल की ज् हो ।
3. 'अस्मद्' सवथनाम शब्द की कािक िचना ललखिए
4. तनम्नांककत शब्दों का एक-एक संस्कृत वाक्य बनाइए
प्रलसदधम्, मल्हलरम्, सुविख््लतम्, तनस्सरतत, जन्मभूलमः
5. तनम्नांककत रिक्त स्र्ानों की पूततथ कीजजए
क. ज्तु छर्त्ीसगढ़-प्रदेश: ज्तु ज्-ज् ................... ।
ख. ................... रलस्जमे, दन्तेिलडल्लां दन्तेश्िर ।
ग. बै्लडी्ल ................... मम प्रदेशे सुविख््लतम् ।
घ. मम प्रदेशे ................... सोन जुटह्लश्च प्रिहस्न्त ।
ङ. पेण्रल ................... सररतल अरपल तनस्सरतत ।

56
व्याकिर्म्
संज्ञा शब्दों के �प
शब्द �प 'बालक' अकािान्त पुज्लग ववभजक्त एकवचन
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल बल्कः बल्कौ बल्कलः
दविती्ल बल्कम् बल्कौ बल्कलन्
तृती्ल बल्के न बल्कलभ््लम् बल्कै ः
चतुिी बल्कल् बल्कलभ््लम् बल्के भ््ः
पञ्चमी बल्कलत् बल्कलभ््लम् बल्के भ््ः
षष्ठी बल्कस्् बल्क्ोः बल्कलनलम्
सप्तमी बल्के बल्क्ोः बल्केषु
समबोधन हे बल्क ! हे बल्कौ! हे बल्कलः!
(इसी प्रकलर नर, देि, िृक्ष, रलम आटद अकलरलन्त पुस्ल््ङ्ग शब्द 'बल्क' की भलांतत च्ेंगे)

'पुस्तक' शब्द अकािान्त नपुंसकललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल पुस्तकम् पुस्तके पुस्तकलतन
दविती्ल पुस्तकम् पुस्तके पुस्तकलतन
तृती्ल पुस्तकेन पुस्तकलभ््लम् पुस्तकैः
चतुिी पुस्तकल् पुस्तकलभ््लम् पुस्तकेभ््ः
पञ्चमी पुस्तकलत् पुस्तकलभ््लम् पुस्तकेभ््ः
षष्ठी पुस्तकस्् पुस्तक्ोः पुस्तकलनलम्
सप्तमी पुस्तके पुस्तक्ोः पुस्तकेषु
समबोधन हे पुस्तक ! हे पुस्तके ! हे पुस्तकलतन
(‘पुस्तक' शब्द के �प तृती्ल विभस्कत से 'बल्क' शब्द की भलांतत च्ेंगे) (इसी तरह पुष्प, िन, ज्,
फ्, न्न, सुख, गृह, िस्त्र, भोजन, श्न, शरण, नगर, स्िलन आटद के �प च्ेंगे।)

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'बाललका' शब्द आकािान्त स्त्रीललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल बलल्कल बलल्के बलल्कलः
दविती्ल बलल्कलम् बलल्के बलल्कलः
तृती्ल बलल्क्ल बलल्कलभ््लम् बलल्कललभः
चतुिी बलल्कल्ै बलल्कलभ््लम् बलल्कलभ््ः
पञ्चमी बलल्कल्लः बलल्कलभ््लम् बलल्कलभ््ः
षष्ठी बलल्कल्लः बलल्क्ोः बलल्कलनलम्
सप्तमी बलल्कल्लम् बलल्क्ोः बलल्कलसु
समबोधन हे बलल्के ! हे बलल्के ! हे बलल्कलः !

(इसी प्रकलर - शल्ल, मल्ल, रमल, कन््ल, बल्ल, सुधल, जनतल, तृष्णल, पर क्षल, ्तल, ्लत्रल, िषलण, विद्ल, सेिल,
कक्षल, सभल आटद के �प बलल्कल स्त्रील्ङ्ग के समलन च्ेंगे ।)
'मुतन' शब्द इकािान्त पुज्लङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल मुतनः मुनी मुन्ः
दविती्ल मुतनम् मुनी मुनीन्
तृती्ल मुतननल मुतनभ््लम् मुतनलभः
चतुिी मुन्े मुतनभ््लम् मुतनभ््ः
पञ्चमी मुनेः मुतनभ््लम् मुतनभ््ः
षष्ठी मुनेः मुन्ोः मुनीनलम्
सप्तमी मुनौ मुन्ोः मुतनषु
समबोधन हे मुने ! हे मुनी ! हे मुन्ः !
'भानु' शब्द उकािान्त पुज्लङ्ग ववभजक्त
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल भलनुः भलनू भलनिः
दविती्ल भलनुम् भलनू भलनून्
तृती्ल भलनुनल भलनुभ््लम् भलनुलभः
चतुिी भलनिे भलनुभ््लम् भलनुभ््ः
पञ्चमी भलनोः भलनुभ््लम् भलनुभ््ः

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षष्ठी भलनो: भलन्िोः भलनूनलम्
सप्तमी भलनौ भलन्िोः भलनुषु
सांबोधन हे भलनो ! हे भलनू ! हे भलनिः !
(इसी प्रकलर - गु� , लशशु, सलधु, विष्णु, प्रभु आटद उकलरलन्त पुस्ल््ङ्ग के �प ‘भलनु' की तरह च्ेंगे)
'िेनु' शब्द उकािान्त स्त्रीललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल धेनुः धेनू धेनिः
दविती्ल धेनुम् धेनू धेनूः
तृती्ल धेन्िल धेनुभ््लम् धेनुलभः
चतुिी धेन्िे, धेन्िै धेनुभ््लम् धेनुभ््ः
पञ्चमी धेनोः, धेन्िलः धेनुभ््लम् धेनुभ््ः
षष्ठी धेनोः, धेन्िलः धेन्िोः धेनूनलम्
सप्तमी धेनौ, धेन्िलम् धेन्िोः धेनुषु
समबोधन हे धेनो ! हे धेनू ! हे धेनिः !
(इसी प्रकलर-तनु,चञ्चु, रञ्जु आटद उकलरलन्त स्त्रील्ङ्ग के �प 'धेनु' के समलन च्ेंगे)
'नदी' शब्द ईकािान्त स्त्रीललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल नद नद्ौ नद्ः
दविती्ल नद म् नद्ौ नद ः
तृती्ल नद्ल नद भ््लम् नद लभः
चतुिी नद्ै नद भ््लम् नद भ््ः
पञ्चमी नद्ल: नद भ््लम् नद भ््ः
षष्ठी नद्लः नद्ोः नद नलम्
सप्तमी नद्लम् नद्ोः नद षु
समबोधन हे नटद ! हे नद्ौ ! हे नद्ः !

'ईकलरलन्त' सभी शब्द प्रल्ः स्त्रील्ङ्ग होते हैं। इनके �प (्क्ष्मी, श्री, स्त्री, ह्र , घी, भी आटद को छोड़कर)
'नद ' के समलन च्ते हैं। '्क्ष्मी' शब्द कतलणकलरक एकिचन में '्क्ष्मीः ' बनतल है, शेष �प 'नद ' के
समलन ह होते हैं। नद के समलन िलणी, भलरती, भलगीरिी, भधगनी, सरस्िती जलनकी, पृथ्िी आटद शब्दों
के �प च्ेंगे ।

59
सवथनाम शब्द �प
सवथनाम- 'अस्मद्' (मैं) शब्द
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल अहम् आिलम् ि्म्
दविती्ल मलम्, मल आिलम्, नौ अस्मलन्, नः
तृती्ल म्ल आिलभ््लम् अस्मललभः
चतुिी मह््म, मे आिलभ््लम्, नौ अस्मभ््म्, नः
पञ्चमी मत् आिलभ््लम् अस्मत्
षष्ठी मम, मे आि्ोः, नौ अस्मलकम्, नः
सप्तमी मत् आि्ोः अस्मलसु

सवथनाम 'युष्ट्मद्' (तुम) शब्द
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल त्िम् ्ुिलम् ्ू्म्
दविती्ल त्िलम्, त्िल ्ुिलम्, िलम् ्ुष्मलन्, िः
तृती्ल त्ि्ल ्ुिलभ््लम् ्ुष्मललभः
चतुिी तुभ््म्, ते ्ुिलभ््लम्, िलम् ्ुष्मभ््म्, िः
पञ्चमी त्ित् ्ुिलभ््लम् ्ुष्मत्
षष्ठी ति, ते ्ुि्ोः, िलम् ्ुष्मलकम्, िः
सप्तमी त्ित् ्ुि्ोः ्ुष्मलसु
सवथनाम ‘तद' (वह) पुज्लङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल सः तौ ते
दविती्ल तम् तौ तलन्
तृती्ल तेन तलभ््लम् तैः
चतुिी तस्मै तलभ््लम् तेभ््ः
पञ्चमी तस्मलत् तलभ््लम् तेभ््ः
षष्ठी तस्् त्ोः तेषलम्
सप्तमी तस्स्मन् त्ोः तेषु

60
सवथनाम शब्द 'तद्' (वह) स्त्रीललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल सल ते तलः
दविती्ल तलम् ते तलः
तृती्ल त्ल तलभ््लम् तललभः
चतुिी तस््ै तलभ््लम् तलभ््ः
पञ्चमी तस््लः तलभ््लम् तलभ््ः
षष्ठी तस््लः त्ोः तलसलम्
सप्तमी तस््लम् त्ोः तलसु
सवथनाम शब्द 'तद्' (वह) नपुंसकललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल तत् ते तलतन
दविती्ल तत् ते तलतन
तृती्ल विभस्कत से ‘तद' (िह) नपुांसकल्ङ्ग के �प ‘तद' (िह) पुस्ल््ङ्ग के समलन ह च्ल्े जलते हैं।
सवथनाम शब्द 'ककम्' (कौन) पुज्लङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल कः कौ के
दविती्ल कम् कौ कलन्
तृती्ल के न कलभ््लम् कै ः
चतुिी कस्मै कलभ््लम् के भ््ः
पञ्चमी कस्मलत् कलभ््लम् के भ््ः
षष्ठी कस्् क्ोः के षलम्
सप्तमी कस्स्मन् क्ोः केषु
सवथनाम शब्द 'ककम्' (कौन) स्त्रीललङ्ग
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल कल के कलः
दविती्ल कलम् के कलः
तृती्ल क्ल कलभ््लम् कललभः
चतुिी कस््ै कलभ््लम् कलभ््ः
पञ्चमी कस््लः कलभ््लम् कलभ््ः

61
षष्ठी कस््लः क्ोः कलसलम्
सप्तमी कस््लम् क्ोः कलसु
सवथनाम् शब्द 'ककम्' (कौन) नपुंसकललङ्ग
प्रिमल ककम् के कलतन
दविती्ल ककम् के कलतन
तृती्ल विभस्कत से ककम् (कौन) नपुांसकल्ङ्ग के �प ककम् (कौन) पुस्ल््ङ्ग के समलन च्ते हैं।
ववशेषर्
संख्यावाचक शब्दों के �प 'एक' शब्द
'एक' शब्द के �प के ि् एकिचन में ह च्ते हैं। तीनों ल्ङ्गों के �प तनमनल्णखत हैं।
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल एकः एकल एकम्
दविती्ल एकम् एकलम् एकम्
तृती्ल एके न एक्ल एके न
चतुिी एकस्मै एकस््ै एकस्मै
पञ्चमी एकस्मलत् एकस््लः एकस्मलत्
षष्ठी एकस्् एकस््लः एकस््
सप्तमी एकस्स्मन् एकस््लम् एकस्स्मन्
संख्यावाचक शब्दों के �प 'द्वव' शब्द
'दवि' दो शब्द के �प केि् दवििचन में ह च्ते हैं। स्त्रील्ङ्ग तिल नपुांसकल्ङ्ग के �प समलन
होते हैं।
प्रिमल दिौ दिे
दविती्ल दिौ दिे
तृती्ल दिलभ््लम् दिलभ््लम्
चतुिी दिलभ््लम् दिलभ््लम्
पञ्चमी दिलभ््लम् दिलभ््लम्
षष्ठी दि्ोः दि्ोः
सप्तमी दि्ोः दि्ोः

62
'त्रत्र' तीन के �प केवल बहुवचन में चलते हैं ।
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल त्र्ः ततस्त्र: त्रीणण
दविती्ल त्रीन् ततस्त्रः त्रीणण
तृती्ल बत्रलभः ततसृलभः बत्रलभः
चतुिी बत्रभ््ः ततसृभ््ः बत्रभ््ः
पञ्चमी बत्रभ््ः ततसृभ््ः बत्रभ््ः
षष्ठी त्र्लणलम् ततसृणलम् त्र्लणलम्
सप्तमी बत्रषु ततसृषु बत्रषु
'चतुि्' च शब्द
ववभजक्त एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिमल चत्िलरः चतम्रः चत्िलरर
दविती्ल चतुर: चतस्रः चत्िलरर
तृती्ल चतुलभणः चतसृलभः चतुलभणः
चतुिी चतुथ््णः चतसृभ््ः चतुथ््णः
पञ्चमी चतुथ््णः चतसृभ््ः चतुथ््णः
षष्ठी चतुणलणम् चतसृणलम् चतुणलणम्
सप्तमी चतुषुण चतसृषु चतु्ुण
'पञ्चन्' पााँच शब्द
‘पञ्चन्' तिल इसके आगे के सांख््लिलची शब्द तीनों ल्ङ्गों में समलन होते हैं।
ववभजक्त ललङ्ग
प्रिमल पञ्च
दविती्ल पञ्च
तृती्ल पञ्चलभः
चतुिी पञ्चभ््ः
पञ्चमी पञ्चभ््ः
षष्ठी पञ्चलनलम्
सप्तमी पञ्चसु

63
उपसगथ
सांस्कृत भलषल में उपसगों कल बहुत महत्ि है। ्े प्रल्ः शब्दों ि धलतुओां के पूिण जोड़े जलते हैं। इनके
जुड़ने से धलतु कल अिण प्रल्: पररिततणत हो जलतल है ।
परिभाषा
गतत सांज्ञक शब्द उपसगण कह्लते हैं। इनके धलतु के पूिण ्गने से एक न्ल शब्द बन जलतल है और
प्रल्ः शब्द कल अिण बद् जलतल है ।
उदाहिर् तनम्नललखित है :
प्र, परल, अप, सम्, अनु, अि्, तनस्, तनर्, दुस्, दुर्, वि, आांङ्, तन, अधध, अवप, अतत, सु, उत्, अलभ, प्रतत, परर,
उप ्े प्रलटद कह्लते हैं।
्िल - प्र - प्रमलण, प्रभलि, प्रलिणनल । परल - परलगत, परलभि, परलज् ।
कािक का सामान्य परिचय
क्रमांक ववभजक्त कािक धचह्न
1. प्रिमल कतलण ने
2. दविती्ल कमण को
3. तृती्ल करण से (के दिलरल)
4. चतुिी समप्रदलन के ल््े
5. पञ्चमी अपलदलन से (अ्ग होने के अिण में)
6. षष्ठी समबन्ध कल, के, की, रल, रे, र
7. सप्तमी अधधकरण में, पै, पर
8. समबोधन समबोधन हे ! ओ ! अरे ! रे !

सांस्कृत में िलक् रचनल करते सम् कतलण और कक्र्ल आिश््क �प से ध््लन देने ्ोग्् है ।
1. प्रर्मा ववभजक्त (कताथकािक)
प्रिमल विभस्कत कल प्र्ोग कतलणकलरक अिलणत सांज्ञल शब्दों के ल््े कक्ल जलतल है । जैसे- रलमः, बल्कः,
अश्िः, पुस्तकम् आटद ।
2. द्ववतीया ववभजक्त (कमथ कािक)
कमणकलरक के ्ोग में दविती्ल विभस्कत कल प्र्ोग कक्ल जलतल है। कतलण, कक्र्ल के दिलरल स्जसे सिलणधधक
�प से प्रलप्त करनल चलहतल है उसे कमण कलरक कहते हैं ।
3. तृतीया ववभजक्त (किर् कािक)
कक्र्ल की सफ्तल में जो सबसे अधधक सहल्क हो उसे करण कहते हैं। करण में तृती्ल विभस्कत कल
प्र्ोग होतल है।
जैसे - सः कन्दुकेन क्रीडतत ।
सीमल क्मेन ल्खतत ।

64
4. चतुर्थ ववभजक्त (सम्प्रदान कािक)
स्जसके ल््े कोई कलम कक्ल जलतल है। उसे समप्रदलन कहते हैं । समप्रदलन में चतुिी विभस्कत कल
प्र्ोग होतल
जैसे - धतनकः सेिकल् धनां ्च्छतत।
अध््लपक: छलत्रल् पुस्तकां ्च्छतत।
5. पञ्चमी ववभजक्त (अपादान कािक)
स्जससे कोई िस्तु अ्ग हो उसे अपलदलन कहते हैं। अपलदलन में पञ्चमी विभस्कत कल प्र्ोग होतल है।
जैसे - िृक्षलत् पत्रलणण पतस्न्त ।
छलत्र: विद्ल््लत् आगच्छतत ।
6. षष्ट्ठी ववभजक्त (सम्बन्ि कािक)
समबन्ध बतलने के ल््े षष्ठी विभस्कत कल प्र्ोग कक्ल जलतल है ।
जैसे - मम वपतल अध््लपकः अस्स्त ।
ग्रलमस्् जनल: नगरां गच्छस्न्त ।
7. सप्तमी ववभजक्त (अधिकिर् कािक)
कक्र्ल कल आधलर अधधकरण कह्लतल है । अधधकरण में सप्तमी विभस्कत होती है।
जैसे - मकरल: ज्े तरस्न्त ।
सः उद्लने भ्रमतत ।
8. सम्बोिन कािक
समबोधन कलरक को प्रिमल विभस्कत में सस्ममल्त कक्ल जलतल है । समबोधन कलरक के धचन्ह हैं -
भो ! अरे ! रे ! आटद
जैसे - भो ! रलम मलम् उध्दर ।
कक्रया
कक्र्ल कल अिण है - करनल ्ल होनल । जैसे मैं पढ़तल हूूँ । ्हलां पढ़ने कल कलम कक्ल जल रहल है । ्ल
हो रहल है। अत: ‘पढ़नल' कक्र्ल से ‘पढ़तल हूां' �प बनल्ल ग्ल है।
िातु
कक्र्ल के मू्�प को 'धलतु' कहते हैं। जैसे - ‘पठललम' कक्र्ल कल मू्�प ‘पठ' है। ‘पठ' धलतु से ‘पठललम'
कक्र्ल बनी है। कक्र्ल में प्रत््् जुड़े रहते हैं, धलतु में नह ां । सांस्कृत में धलतुएूँ बहुत हैं जैसे - गम् (गच्छ) =
जलनल
भू (भि्) = होनल
ल्ख् = (ल्खनल), हांस् (हूँसनल), कृ (करनल), अस् (होनल),

65
पल (वपब्) = पीनल
नी (न््) = ्े जलनल आटद
लकाि
सांस्कृत में 'कल्' सूधचत करने के ल््े ‘्कलर कल प्र्ोग कक्ल जलतल है। ितणमलन कल् के ल्ए
‘्ट््कलर' भूतकल् के ल््े ‘्ङ््कलर' और भविष््कल् के ल््े ‘्ुट््कलर' कल प्र्ोग कक्ल जलतल है। आज्ञलिण
में ‘्ोट्' और विध््िण में ‘विधध ल्ङ् ्कलर प्र्ुकत होतल है।
1. वतथमान काल (लट्लकाि) - गम् (गच्छ) - जाना
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिम ्ल सः गच्छतत । तौ गच्छतः । ते गच्छस्न्त ।
अन्् पु�ष (िह जलतल है) (िे दोनों जलते हैं) (िे सब जलते है)
मध््म पु�ष त्िां गच्छलस । ्ुिलां गच्छिः । ्ू्ां गच्छि ।
(तुम जलते हो) (तुम दोनों जलते हो) (तुम सब जलते हो)
उर्त्म पु�ष अहां गच्छललम। आिलां गच्छलिः। ि्ां गच्छलमः ।
(मैं जलतल हूां) (हम दोनों जलते हैं) (हम ्ोग जलते हैं)

2. भूतकाल (लङ्लकाि) - गम् (गच््) - जाना
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिम पु�ष सः अगच्छत् । तौ अगच्छतलम् । ते अगच्छन् ।
(िह ग्ल।) (िे दोनो ग्े ) (िे सब ग्े)
मध््म पु�ष त्िम् अगच्छः । ्ुिलम् अगच्छतम् । ्ू्म् अगच्छत ।
(तुम ग्े) (तुम दोनों ग्े) (तुम ्ोग ग्े)
उर्त्म पु�ष अहम् अगच्छम् । आिलम् अगच्छलि । ि्म् अगच्छलम ।
(मैं ग्ल) (हम दोनों ग्े) (िे सब ग्े)

3. भववष्ट्य काल (लुट्लकाि) - गम् (गच्छ) - जाना
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
प्रिम पु�ष स: गलमष््तत । तौ गलमष््तः । ते गलमष््स्न्त ।
(िह जल्ेगल) (िे दोनों जल्ेगे) (िे सब जल्ेगे)
मध्् पु�ष त्िां गलमष््लस । ्ुिलां गलमष््िः । ्ू्ां गलमष््ि ।
(तुम जलओगे) (तुम दोनों जलओगे) (तुम सब जलओगे)
उर्त्म पु�ष अहां गलमष््ललम । आिलां गलमष््लिः । ि्ां गलमष््लमः ।
(मैं जलऊां गल) (हम दोनों जल्ेंगे) (हम ्ोग जल्ेंगे)

66
िातु �प
'लट्' लकाि (वतथमानकाल) पठ् (प़िना) िातु - पिस्मैपद
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. पठतत पठतः पठस्न्त
म.पु. पठलस पठिः पठि
उ.पु. पठललम पठलिः पठलमः

लङ्लकाि (भूतकाल) पु�ष एकवचन
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. अपठत् अपठतलम् अपठन्
म.पु. अपठः अपठतम् अपठत
उ.पु. अपठम् अपठलि अपठलम

'लृट्’ लकाि (भववष्ट्यकाल)
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. पटठष््तत पटठष््तः पटठष््स्न्त
म.प. पटठष््लस पटठष््ि: पटठष््ि
उ.पु. पटठष््ललम पटठष््लिः पटठष््लमः

'गम्' (गच्छ) - जाना - ‘लट् लकाि - वतथमान काल
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. गच्छतत गच्छतः गच्छस्न्त
म.पु. गच्छलस गच्छिः गच्छि
उ.पु. गच्छललम गच्छलिः गच्छलमः

'लङ्लकाि - भूतकाल
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. अगच्छत् अगच्छतलम् अगच्छन्
म.पु. अगच्छः अगच्छतम् अगच्छत
उ.पु. अगच्छम् अगच्छलि अगच्छलम

67
'लुट्लकाि' - भववष्ट्यकाल पु�ष
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. गलमष््तत गलमष््त: गलमष््स्न्त
म.पु. गलमष््लस गलमष््ि: गलमष््ि
उ.पु. गलमष््ललम गलमष््लि: गलमष््लमः

'दृश्' (पश्य) - देिना िातु - ‘लट् लकाि - वतथमानकाल
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. पश््तत पश््तः पश््स्न्त
म.पु. पश््लस पश््िः पश््ि
उ.पु. पश््ललम पश््लिः पश््लमः

'लङ्लकाि - भूतकाल पु�ष
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. अपश््त् अपश््तलम् अपश््न्
म.पु. अपश््ः अपश््तम् अपश््त
उ.पु. अपश््म् अपश््लि अपश््लम

'लुट् लकाि-भववष्ट्यकाल
पु�ष एकवचन द्ववतीया बहुवचन
अ.पु. रक्ष््तत रक्ष््तः रक्ष््स्न्त
म.पु. रक्ष््लस रक्ष््ि: रक्ष््ि
उ.पु. रक्ष््ललम रक्ष््लि: रक्ष््लमः

इसी प्रकलर - िद (बो्नल, च्् (च्नल), खे्् (खे्नल), पल-वपब् (पीनल), भू-भि (होनल), पत् (धगरनल),
नीन्् (्े जलनल), स्िल-ततष्ठ (ठहरनल), ल्ख् (ल्खनल), लम्् (लम्नल), पृच्छ (पूछनल) तिल इच्् (इच्छल करनल,
चलहनल) आटद परस्मैपद धलतु �प च्ेंगे। कक्र्ल के मू् �प 'धलतु' में प्रत््् जोड़कर धलतु-�प बनल्े जलते हैं।
पु�ष, तिल िचन के अनुसलर उनके लभन्न �प हो जलते हैं। प्रत््् िे शब्दलांश हैं जो धलतु के अन्त में जोड़े जलते
हैं । इनके जुड़नेसे धलतु�प में पररितणन होजलतल है और उसकल अिण बद् जलतल है। प्रत्््ों के अनुसलर कतलण-
कक्र्ल प्र्ोग विधध के उदलहरण से ्ह बलत स्पष्ि हो जलती है। एक उदलहरण कतलण-कक्र्ल प्र्ोग विधध (प्रत्््ों
के अनुसलर)

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वचन
सांस्कृत में तीन िचन होते हैं
1. एकवचन 2. द्वववचन 3. बहुवचन
1. एकवचन
एकिचन कल बोध करलतल है । जैसे बल्कः (एकिचन), मलनिः (एक मनुष््), िृक्षः (एक िृक्ष)
2. द्वववचन
दवििचन कल बोध करलतल है। जैसे - बल्कौ (दो बल्क), मलनिौ (दो मनुष््), िृक्षौ (दो िृक्ष) आटद।
3. बहुवचन
दो से अधधक कल बोध करलतल है । जैसे - बल्कलः (बहुत से बल्क), मलनिलः (बहुत से मनुष््), िृक्षलः
(बहुत से िृक्ष)
नोि - 'दवििचन' पहचलन करनेके ल््े िलक् में 'दो' ्ल ‘दोनों' शब्द कल प्र्ोग अतनिल्ण �प से होगल।
जैसे - 1. दो बल्क पढ़ते हैं। (दिौ बल्कौ पठतः)
2. तुम दोनों कहलां जलते हो ? (्ुिलां कुत्र गलमष््िः)

69
ललङ्ग
संस्कृत में तीन ललङ्ग होते हैं।
1. पुज्लङ्ग 2. स्त्रीललङ्ग 3. नपुसंकललङ्ग
1. पु�ष जलतत को बतलने िल्े शब्द पुज्लङ्ग होते हैं। जैसे - नरः, बल्कः, गजः, िृक्षः आटद ।
2. स्त्री जलतत कल बोध करलनेिल्े शब्द स्त्रीललङ्ग होते हैं । जैसे - शल्ल, मल्ल, नद , बलल्कल, रमल आटद।
3. जो शब्द स्त्री जलतत और पु�ष जलतत दोनों कल बोध नह ां करलते हैं िे नपुंसकललङ्ग होते हैं । जैसे-
फ्म्, िनम्, पुष्पम्, पत्रम् आटद..।
पु�ष
संस्कृत में पु�ष तीन होते है ।
1. प्रिम पु�ष 2. मध््म पु�ष 3. उर्त्म पु�ष
1. प्रर्म पु�ष
स्जसके सांबांध में कुछ कहल जल्े िह प्रिम पु�ष होतल है । प्रिम पु�ष को अन्् पु�ष भी कहते हैं ।
जैसे - सः (िह), तौ (िे दोनों), ते (िे सब) तिल
बल्कः (एक बल्क), बल्कौ (दो बल्क), बल्कलः (बहुत से बल्क)
2. मध्यम पु�ष
स्जससे बलत की जल्े अिलणत सुनने िल्ल मध््म पु�ष होतल है । जैसे - त्िम् (तुम), ्ुिलम् (तुम
दोनों), ्ु्म् (तुम सब)
3. उत्तम पु�ष
जो बलत करतल हो अिलणत् कहने ्ल बो्ने िल्ल उर्त्म पु�ष होतल है । जैसे - अहम् (मैं) आिलम् (हम
दोनों), ि्म् (हम सब) बलतचीत कल समबन्ध तीन ््स्कत से होतल है - 1. कहने िल्ल 2. सुनने िल्ल
3, स्जसके समबन्ध में कुछ कहल जल्े । इस प्रकलर कहने िल्ल उर्त्म पु�ष, सुनने िल्ल मध््म पु�ष,
और स्जसके समबन्ध में कुछ कहल जल्े िह अन्् पु�ष ्ल प्रिम पु�ष कह्लतल है।
नोट - सांस्कृत में अनुिलद करते सम् ्ह बलत विशेष �प से ध््लन में रखनल चलटह्े कक िलक् कल
कतलण स्जस पु�ष ि िचन में होगल कक्र्ल भी उसी पु�ष ि िचन में होगी । जैसे –
1. स: पठतत । (िह पढ़तल है।)
2. तौ पठतः । (िे दोनों पढ़ते हैं ।)
3. ते पठस्न्त । (िे सब पढ़ते हैं ।)
4. त्िां पठलस । (तुम पढ़ते हो ।)
5. ्ुिलां पठिः । (तुम दोनों पढ़ते हो ।)
6. ्ू्ां पठि। (तुम सब पढ़ते हो ।)

70
7. अहां पठललम । (मै पढ़तल हूूँ ।)
8. आिलां पठलिः । (हम दोनों पढ़ते हैं)
9. ि्ां पठलमः । (हम ्ोग पढ़ते हैं ।)
नोट - श, ष्, स्, र्, ओ िणण सस्न्ध-विच्छेद करते सम् विसगण बन जलते हैं । जैसे –
1. सुन्दरश्चन्र - सुन्दरः + चन्रः
2. धनुष्िङ्कलरः - धनु: + िांकलर:
3. नमस्ते - नम: + ते
4. दुरलत्मल - दु: + आत्मल
5. मनोरमलः - मनः + रमलः
6. सोsहम्- सः + अहम्
अव्यय
स्जनकल �प पररिततणत नह ां होतल अ््् कह्लते हैं । अििल तीनों ल्ङ्गों, सभी विभस्कत्ों और सभी
िचनों में जो समलन रहतल है िह अ््् है ।
सदृशं त्रत्रषु ललङ्गेषु सवाथसु च ववभजक्तषु ।
वचनेषु च सवेषु यन्न व्येतत तदव्ययम् ॥
कुछ अ््् इस प्रकलर हैं ्िल -
1. अधुनल = अब
2. अद् = आज
3. ह््ः = क् (बीतल हुआ)
4. श्िः = क् (आनेिल्ल)
5. अधः = नीचे
6. पश्चलत् = बलद में
7. उपरर = ऊपर
8. ततः = कफर
9. ्तः = क्ोंकक
10. कुतः = कहलां से
11. सिणतः = सभी ओर से
12. पुरतः = आगे, सलमने

71
13. पुरः = आगे, सलमने
14. ्दल = जब
15. कदल = कब
16. तदल = तब
17. किम् = कै से
18. अतः = इसल््े
19. अवप = भी
20. कुत्र = कहलां




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72
ब्रेल एक परिचय

क्या आप जानते है यह क्या ललखा है
यह ललखा है -मैं वकील बनना चाहती हूं।
देवनागिरी, िुरूमुखी इत्यागद गिगियोों की तरह ही ब्रेि भी एक गिगि है। ब्रेि गिगि का उियोि दृगिहीन व्यक्तियोों द्वारा
िढ़ने एवों गिखने के गिये गकया जाता है । ब्रेि गिगि का अगवष्कार िुई ब्रेि द्वारा सन् 1829 में गकया िया था। ब्रेि गिगि
उभरे हुए छ: गिन्दुओों िर आधाररत होती है, इन छ: गिन्दुओों से गमिकर एक सेि िनता है, प्रत्येक सेि में एक वर्ण
(अक्षर) गिखा जाता है। ब्रेि गिखने के गिये स्टाइिस एवों गवशेष प्रकार की स्लेट का उियोि गकया जाता है गजसमें छ:-
छ: गिन्दुओों के कई सेि िने होते हैं इसे ब्रेि स्लेट कहा जाता है। ब्रेि स्टेि में मोटे कािज़ की शीट िर स्टाइिस के द्वारा
गिखा जाता है। ब्रेिस्लेट की सहायता से ब्रेि गिगि में गिखते समय सीधे हाथ से उिटे हाथ की तरफगिखा जाता है गजससे
की उभार दू सरी तरफ आते हैं। इन्ही उभारोों को हाथ की उोंिगियोों की सहायता से छू कर िढ़ा जाता है। ब्रेि के छ:
गिन्दुओों का क्रम इस प्रकार होता है।

73
क्या आप जानते हैं
इकबाल आपसे क्या कह िहा है?

इकबाल आपसे कह िहा है
मैं किा में प्रर्म आया!
सांके ततक भाषािः सामान्य परिचय
सलांकेततक भलषल कल उप्ोग श्रिण बलधधत ््स्कत दिलरल सांप्रेषण हेतु कक्ल जलतल है। िलक् के अभलि
में श्रिण बलधधत सलांके ततक भलषल कल उप्ोग करते हैं। आमतौर पर ्ोगों की धलरणल है कक सलांके ततक भलषल में
््लकरण कल अभलि होतल है परन्तु ्ह सह नह ां है, सलांके ततक भलषल में भी ््लकरण है। ््लकरण की दृस्ष्ि
से अमेररकन सलांके ततक भलषल सबसे ज््लदल उन्नत है। अमेररकन सलांके ततक भलषल कफां गर स्पेल्ांग पर तनभणर है
तिल िहलां लसांग् हैण्डेड कफगर स्पेल्ांग कल प्र्ोग कक्ल जलतल है। इांडड्न सलांके ततक भलषल में डब् हैंडेड कफां गर
स्पेल्ांग कल प्र्ोग कक्ल जलतल है। आइ्े अब हम डब् हैंडेड कफां गर स्पेल्ांग जलने-

74
यढद आपके परिवाि में कोई शािीरिक
�प से ववकलांग बच्चा है तो -
 जब आपको पतल च्े कक आपकल बच्चल सलमलन्् से कुछ अ्ग है
तिल उसकी शलर ररक गततविधध्लां भी सलमलन्् से लभन्न हैं तब बच्चे
की समस््ल से सांबांधधत सभी प्रकलर की जलनकलर ककसी विशेषज्ञ से ्ें
जैसे – ककस प्रकलर के ््ल्लम से बच्चल च्नल-कफरनल तिल अन््
गततविधध्लूँ जल्द सीख सकतल है।
 स्जतनी कम उम्र में विक्लांगतल कल पतल ्ग जलए उतनी ह जल्द
््ल्लम की सहल्तल से बच्चे को शलर ररक कौश् सीखने में मदद की
जल सकती है।
 इस बलत कल अिश्् ध््लन रखें कक िह बच्चल जो स्ितांत्र �प से च् कफर नह ां सकतल उसे भी
सभी सलमलस्जक कक्र्लक्लपों में भलगीदलर बनलए। अगर आपके घर कोई मेहमलन आते हैं तो अपने
विक्लांग बच्चे कल भी उनसे पररच् करलएां । शलटद्ों, पलिी्ों ि अन्् स्िलनों के भ्रमण के ल्ए
उसे भी ्ेकर जलएां। तिल विलभन्न प्रकलर की जलनकलर दें।
 जो भी कल्ण विशेषज्ञ घर पर करने को दे उसे तन्लमत �प से करें।
 ऐसे बच्चे अगर च्नल नह ां भी सीख पलए तो तनरलश न हों उनके च्ने-कफरने के ल्ए कई उपकरण बलजलर
में उप्ब्ध हैं। विशेषज्ञों की स्लह से उन उपकरणों को उप्ोग में ्लएां, जैसे-्ह ् चे्र (पटह्लदलर कुसी),
बैसलखी, छड़ी, िॉकर इत््लटद।
 जो बच्चे च्ने में असमिण हैं उनके विष् में ्ह ध््लन रखनल आिश््क है कक िे एक ह स्िलन पर एक
ह स्स्ितत में न बैठे रहें, इससे उनके जोड़ों में अकड़न ्ल बेड सोसण (Bed Sores) बन सकते हैं।
 शलर ररक �प से विक्लांग बच्चों के अलभभलिकों को चलटहए कक िे उन्हें एक ह जगह न बैठे रहने दें।
 उन्हें भी गततशी् बनलने कल प्र्लस करें।
 जो बच्चे ठीक प्रकलर से बैठ नह ां पलते उनके ल्ए विशेष प्रकलर की कुसी बनलई जलती है। स्जससे ्े बच्चे
 इधर-उधर ्ुढ़के नह ां इसके ल्ए एक बेल्ि भी ्गल्ल जलतल है। सलमने की तरफ एक रे ्गलई जलती है
स्जसपर िे अन्् कक्र्लक्लप जैसे पढ़नल-ल्खनल, खलनल आटद कर सकते हैं। कुछ कुलसण्ों में शौच के ल्ए
भी सुविधल द जलती है।
 मलतल-वपतल ऐसे बच्चों के सलि धै्णपूिणक ््िहलर करें तिल उन्हें सभी कक्र्लक्लपों में समलन �प से
भलगीदलर के अिसर प्रदलन करें।



्ह ् चे्र िॉकर बैसलखी