Bipolar disorder t

DharmendraVerma45 690 views 20 slides Jun 15, 2020
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About This Presentation

Mental health nursing notes for GNM students


Slide Content

बाइपोलरडिसआर्डर ( मैनिकडिप्रेशन ) Bipolar disorder (Manic depression) D. VERMA

मैनिक डिप्रेशन या बाइपोलर डिसआर्डर क्या है ? परिभाषा यह एक प्रकार की मानसिक बीमारी है , जिसमे मन लगातार कई हफ़्तो तक या महिनों तक या तो बहुत उदास या फ़िर अत्यधिक खुश रहता है | उदासी में नकारात्मक तथा मैनिया में मन में ऊँचे ऊँचे विचार आते हैं |

INCIDENT RATE यह बीमारी लगभग 100 में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी ना कभी होती है | इस बीमारी की शुरुआत अक्सर 14 साल से 19 साल केबीच होती है | इस बीमारी से पुरुष तथा महिलाएँ दोनों ही समान रूप से प्रभावित होते हैं | यह बीमारी 40 साल के बाद बहुत कम ही शुरुहोती है |

बीमारी के रूप TYPE OF BIPOLAR DISORDER बाईपोलर एक :  - इस प्रकार की बीमारी में कम से कम एक बार मरीज में अत्यधिक तेजी , अत्यधिकऊर्जा , अत्यधिक ऊत्तेजना तथा ऊँची ऊँची बाते करने का दौर आता है | इस तरह की तेजी लगभग 3-6 महीने तक रहती है | यदि इलाज ना किया जाये तो भी मरीज़ अपनेआप ठीक हो सकता है | इस प्रकार की बीमारी का दूसरा रूप कभी भी मन में उदासी के रूप मे आ सकता है | उदासी लगातार दो हफ़्ते से अधिक रहने पर इसेडिप्रेशन कहते हैं | 

CONT.. बाईपोलर दो :  - इस प्रकार की बीमारी में मरीज को बार बार उदासी ( डिप्रेशन ) का प्रभाव आता है | कभी कभार हल्की तेजी भी आ सकती है | रैपिडसाइलिक ; - इस प्रकार की बीमारी में मरीज को एक साल में कम से कम चार बार उदासी ( डिप्रेशन ) या मैनिया ( तेजी ) का असर आता है |

बीमारी के मुख्य कारण : इस बीमारी का मुख्य कारण सही रूप से बता पाना कठिन है | वैज्ञानिक समझते है कि कई बार शारीरिक रोग भी मन में उदासी तथा तेजीकर हो सकते हैं | कई बार अत्यधिक मानसिक तनाव इस बीमारी की शुरुआत कर सकता है |

बीमारी के लक्षण - एक रूप उदासी ( डिप्रेशन ):-   एक रूप उदासी ( डिप्रेशन ):-   इसमें मरीज के मन में अत्यधिक उदासी , कार्य में अरुचि , चिड़चिड़ापन , घबराहट , आत्मग्लानि , भविष्य के बारे में निराशा , शरीर में ऊर्जा की कमी , अ

पने आप से नफ़रत , नींद की कमी , मन में रोने की इच्छा , आत्म विश्वास की कमी लगातार बनी रहती है | मन में आत्महत्या के विचार आते रहते हैं |

मरीज की कार्य करने की क्षमता अत्यधिक कम हो जाती   है |   कभी कभी मरीज का बाहर निकलने का मन नहीं करता है | किसी से बातें करने का मन नहीं करता | इस प्रकार की उदासी जब दो हफ़्तो से अधिक रहे तब इसे बीमारी समझकर परामर्श लेना चाहिये |

दूसरा रूप ‘ मैनिया ’ या मन में तेजी के लक्षण :- दूसरा रूप ‘ मैनिया ’ या मन में तेजी के लक्षण :-   इस प्रकार के रूप में मरीज के लक्षण कई बार इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि मरीज का वास्तविकता से सम्बन्ध टूट जाता है | मरीज को बिना किसी कारण कानों में आवाजें आने लगती है | मरीज अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है | मरीज मन में अत्यधिक तेजी के कारण इधर उधर भागता रहता है , नींद तथा भूख कम हो जाती है |

दोनो रूप के बीच : दोनो रूप के बीच : मरीज अक्सर उदासी ( डिप्रेशन ) के बाद सामान्य हो जाता है | इसी प्रकार तेजी ( मैनिया ) के बाद भी सामान्य हो जाता है | मरीज काफ़ी समय तक , सालों तक सामान्य रह सकता है तथा अचानक उसे उदासी या तेजी की बीमारी आ सकती है |

इलाज :- इस बीमारी के इलाज के दो मुख्य पहलू है : मरीज के मन को सामान्य रूप में रखना | इलाज के द्वारा मरीज को होने वाले मैनिक तथा उदासी को रोकना |

मरीज के मन को सामान्य रूप में रखना | मन को सामान्य रखने के लिये कई प्रभावशाली दवाएँ उपलब्ध हैं | इस प्रकार की दवा को “ मूडस्टैवलाइजिंग ” दवा कहते हैं | इसमें “ लीथियम ” नामक दवा काफ़ी प्रभावकारी तथा लाभकारी है | इस दवा का प्रयोग करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिये | जैसे मरीज को नियमित रूप से अपने रक्त की जाँच कराते रहना चाहिये | मरीज को यदि गर्मी में पसीना आये तब पानी का प्रयोग अधिक करना चाहिए |

CONT.. मरीज को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब एक बार लीथियम शुरू करते हैं तो इसे लगातार लम्बे समय तक लेना चाहिये तथा बिना डाक्टर की सलाह के अचानक इसे बन्द नहीं करना   चाहिए |  लीथियम को मानसिक डाक्टर के द्वारा ही शुरू किया जाना चाहिये | रक्त में लीथियम की जाँच के द्वारा दवा की खुराक मानसिक चिकित्सक के द्वारा निर्धारित की जाती है |

इस दवा के निम्न हानिकारक प्रभाव इस दवा के निम्न हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं अधिक प्यास लगना , वजन बढना , हाथों में हल्की कम्पन आना आदि | काफ़ी समय तक इसको लेते रहने से गुर्दे व थाइराइड नामक ग्रन्थी प्रभावित हो सकती है |

हानिकारक प्रभाव की रोक थाम इसके रोक थाम के लिये मरीज को नियमित रूप से रक्त की जाँच कराते रहना चाहिये ।    दूसरे मूडस्टैबलाइजर :- लीथियम के अतिरिक्त सोडियमवैल्प्रोएट भी “ मूडस्टैबलाइजर ”   के रूप में काफ़ी प्रभावकारी व लाभदायक है | इसके अतिरिक्त “ कारबामेजेपीन ” भी लाभदायक है | इसका प्रभाव “ लीथियम ” से कम पाया गया है | कभी कभी मरीज को एक से अधिक भी “ मूडस्टैबलाइजर ” की आवश्यकता भी पड़ सकती है | मूडस्टैबलाइजर शुरु करने से पहले अपने मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिये ।किस मरीज को कौनसा “ मूडस्टैबलाइजर ” प्रयोग करना है यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय होता है ।

CONT.. मरीज को “ मूडस्टैबलाइजर ” शुरु करने के बाद इसे कम से कम दो साल तक लेना चाहिये ।कुछ मरीजों को यह दवा 5 साल तक या और भी अधिक लम्बे समय तक लेना पड़ती है |

बीमारी के दूसरे रूप मैनिया या डिप्रेशन का इलाज :- डिप्रेशन :-   इसके इलाज के लिये ऐन्टीडिप्रेसेन्ट अक्सर मूडस्टैबलाइजर के साथ दी जानी चाहिए | आजकल सबसे अधिक सिरोटिननामक कैमिकल को प्रभावित करने वाले ऐन्टीडिप्रेसेन्ट प्रयोग किये जाते हैं | ऐन्टीडिप्रेसेन्ट , शुरु के एक से दो हफ़्तो मे प्रभावशाली नहीं होते | जब मरीज इस दवा से लाभ पाने लगे तो इस दवा को लेते रहना चाहियें ।

इसे बन्द न कर दें | यदि मरीज को बार बार डिप्रेशन की बीमारी होती है तथा मैनिया   कम होता है तो मरीज को डिप्रेशन ठीक होने के बाद भी मूडस्टैबलाइजर के साथ ऐन्टीडिप्रेसेन्ट लेते रहना चाहिये । ऐन्टीडिप्रेसेन्टडिप्रेशन ठीक होने के बाद कब बन्द करना है , इसके लिये मरीज को अपने मनोचिकित्सकया जी पी से परामर्श लेना चहिये |

THANKING YOU
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