Class 10 Jaishankar Prasad ki आत्मकथ्य.pdf

anujahanda3 13 views 14 slides Sep 07, 2025
Slide 1
Slide 1 of 14
Slide 1
1
Slide 2
2
Slide 3
3
Slide 4
4
Slide 5
5
Slide 6
6
Slide 7
7
Slide 8
8
Slide 9
9
Slide 10
10
Slide 11
11
Slide 12
12
Slide 13
13
Slide 14
14

About This Presentation

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता आत्मकथा की पीपीटी


Slide Content

आत्मकथ्य–

1. जयशंकर प्रसाद का जीवन पररचय –बहुमुखी प्रतिभाके धनी
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म वाराणसी में सन 1889 में हुआ। ये काशी के
प्रतसद्ध क्वींस कॉलेज में पढ़ने गए। परन्िु तवकट पररतथितियों के कारण
इन्हें आठवीं कक्षा में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इन्होंने घर पर ही संथकृि,
तहंदी, फ़ारसी इत्यातद का अध्ययन तकया। इन्हें छायावाद का प्रवितक माना
जािा है। जीवन की तवषम पररतथितियों में भी इन्होंनें सातहत्य की रचना
की। इन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, तनबंध एवं कतविा आतद सभी की
रचना की। इनकी कामायनी छायावाद की सवतश्रेष्ठ रचना मानी जािी है।
इसके तलए इन्हें मंगलप्रसाद पुरथकार तदया गया।
देश के गौरव का गान ििा देशवातसयों को राष्ट्रीय गररमा का ज्ञान
कराना इनके काव्य की सबसे बड़ी तवशेषिा रही है। इनके काव्य में
राष्ट्रीय थवातभमान का भाव भरा हुआ िा। इनकी रचनाओं में श्रृंगार एवं
क�णा रस का सुन्दर प्रयोग तमलिा है। इनकी मृत्यु सन 1937 में हुई।

2. आत्मकथा कववता का सार: जयशंकर प्रसाद जी के तमत्रों नेउनसे आत्मकिा
तलखने का तनवेदन तकया, जबतक जयशंकर जी अपनी आत्मकिा नहीं तलखना चाहिे
िे। इसीतलए उनके तमत्रों के तनवेदन का मान रखिे हुए, प्रसाद जी ने इस काव्य की रचना
की। इस काव्य में उन्होंने जीवन के प्रति अपने अनुभव का वणतन तकया है
उनके अनुसार यह संसार नश्वर है, क्योंतक प्रत्येक जीवन एक नएक तदन मुरझाई हुई
पत्ती-सा टूट कर तगर जािा है। उन्होंने इस काव्य में जीवन केयिाित एवं अभाव को
तदखाया है तक तकस प्रकार हर आदमी कहीं न कहीं तकसी चोट के कारण दुखी है। तिर
चाहे वो चोट प्रेतमका का न तमलना हो या तिर तमत्रों के द्वारा धोखा खाना हो।
उनके अनुसार उन्होंने कोई ऐसा कायत नहीं तकया है, तजससे लोग उनकी आत्मकिा
सुनकर वाह-वाही करेंगे। उन्हें िो लगिा है तक अगर उन्होंने अपने जीवन का सत्य
सबको बिाया, िो लोग उनका उपहास उड़ाएंगे और उनके तमत्र खुद को दोषी समझेंगे।
कतव के अनुसार उनका जीवन सरलिा एवं दुबतलिा से भरा हुआ है और उन्होंने जीवन में
कोई महान कायत नहीं तकया। उनके अनुसार उनकी जीवन-�पी गगरी खाली ही रह गई
है।
इस प्रकार हम कह सकिे हैं तक प्रथिुि पंतियों में जहां एकओर कतव की सादगी का
पिा चलिा है, वहीीँ दूसरी ओर उनकी महानिा भी प्रकट होिी है।

मधुप गुन-गुना कर कह जािा कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर तगर रहीं पतत्तयाीँ देखो तकिनी आज घनी।
इस गंभीर अनंि-नीतलमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करिे ही रहिे हैं अपना व्यंग्य-मतलन उपहास
िब भी कहिे हो कह-डालूीँ दुबतलिा अपनी बीिी।
िुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीिी।

व्याख्या -इस छंद में कतव कहिा है तक िलों पर गुंजार करने वाला भ्रमर
गुनगुनाकर न जाने अपने मन की कौन-सी वेदना की अतभव्यति कर
जािा है। यह पिा नहीं चलिा है, तक वह उस समय क्या कहिा है। घनी
पतत्तयाीँ मुरझाकर जमीन पर तगर रही हैं। आज बहुि अतधक घनी हो रही हैं।
िात्पयत है तक यह तवश्व सारहीन है, अिः व्यति कीवेदना का कहीं भी अंि
नहीं है। आगे कतव कहिा है, तक इस गंभीर और आर-पार रतहि (अनंि)
नीले आकाश के नीचे अनतगनि जीवन के इतिहास बनिे-तबगड़िे रहिे हैं।
और यह एक तवतचत्र बाि है, तक वे सब अपने आप में अपनी तथिति पर
व्यंग्य करिे हैं। अिाति् जीवन की अनेक रेखाएीँ अपने अतथित्व पर थवयं
हीँसिी रहिी हैं। इस पर भी (जबतक व्यति का अतथित्व ही भ्रमपूणत है) िुम
कहिे हो तक मैं अपनी दुबतलिा को कह डालूीँ। मैं अपने ऊपर बीिने वाली
व्यिा को सना दूीँ। मेरी जीवन �पी गागर िो खाली है, अिः िुम शायद मेरी
किा सुनकर कुछ पाओगे, इसमें मुझे संदेह है।

तकंिु कहीं ऐसा न हो तक िुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह तवडंबना! अरी सरलिे िेरी हीँसी उड़ाऊीँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को तदखलाऊीँ मैं।
उज्जज्जवल गािा कैसे गाऊीँ, मधुर चाीँदनी रािों की।
अरे तखल-तखला कर हीँसिे होने वाली उन बािों की।

व्याख्या-कतव कहिा है, तक हे तप्रय ! कहीं ऐसा नहो तक िुम्ही मेरी
गागर को खाली करने वाले हो। िुम मेरी जीवन �पी गागर से रस लेकर
अपनी गागर भरने वाले हो। अिः जब िुम मुझे खाली करके थवयं को
भरिे हो िो िुम मुझे कैसे भरोगे ? कतव कहिा है तकयह जीवन एक
छलावा है।सबसे बड़ा आश्चयतजनक छल िो यह है तक मैं अपनी सरलिा
की हीँसी उड़ाऊीँ। मैं दूसरों की प्रवंचनाओं और भूलों को दूसरों को
तदखलाऊीँ। अपने जीवन में आने वाली प्रवंचना को याद करके मैं उन
मधुर चाीँदनी रािों की उज्जज्जवलिा गािा को कैसेगाऊीँ, जो जीवन में
कभी आई िीं। मैं उन रािों की बािों को कैसे बिाऊीँ, तजनमें हम
तखलतखलाकर हीँसिे िे अिाति् दुःख के समय सुख को याद करना
अपने ऊपर हीँसने के समान है।

वमला कहााँ वह सुख वजसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आवलंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
वजसके अ�ण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरावगवन उषा लेती थी वनज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृवत पाथेय बनी है थके पवथक की पंथा की?
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथाकी?

व्याख्या -कतव अपनी आत्मकिा सुनािे हुए कहिा है-तजन सुखों के सपने देख-
देखकर मैं जाग जािा िा, वे मुझे कभी तमल नहीं पाए। मैं तजस भी तप्रय का आतलंगन
करने के तलए बाहें आगे बढ़ािा, वह तप्रय मुसकुरा कर भाग जािा रहा। मेरी कामनाएीँ
कभी सिल नहीं हो पाईं। मेरी प्रेतमका के लाल-लाल गाल इिने मिवाले और संदर िे
तक प्रेममयी उषा भी अपनी सुगंतधि मधुर लातलमा उसी से उधार तलया करिी िी।
आशय यह है तक मेरी प्रेतमका के लाल कपोल ऊषाकालीन लातलमा से भी मनोरम िे।
आज उसी प्रेममयी प्रेतमका की यादें ही मुझ ितकि यात्रीके तलए संबलबना हुई हैं।
उन्हीं के सहारे मेरा जीवन चल रहा है। िो हे तमत्र ! क्या िुम मेरी उन यादा को उधेड़-
उधेड़ कर उनके भीिर झाीँकना चाहिे हो? क्या मेरी आत्मकिापढ़कर मेरे भूले हुए
ददत को तिर से जगाना चाहिे हो ? मेरी िटी हुई तजंदगी का िार-िार करके देखना
चाहिे हो!

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएाँ आज कह ाँ?
क्या यह अच्छा नहीं वि औरों की सुनतामैं मौन रह ाँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

व्याख्या-जय शंकर प्रसाद जी कहिे हैं-मेरा जीवनबहुि सामान्य-सा है।
मैं िुच्छ-सा मनुष्ट्य ह ीँ। मैं अपने साधारण जीवन कीबड़ी-बड़ी यशगािाएीँ
कैसे तलखू। इससे िो अच्छा यही है तक मैं औरों की किाएीँ सुनिा रह ीँ।अपने
बारे में मौन रह ीँ।
कतव तमत्रों को संबोतधि करिे हुए कहिा है-भलािुम मेरी भोली-
भाली, सीधी-सादी आत्मकिा को सुनकर क्या करोगे? उसमें िुम्हारे काम
की कोई बाि नहीं है। और अभी मैंने ऐसी कोई महानिा भी अतजति नहीं की
है तजसके बारे में अपने अनुभव तलखू। एक बाि और है, मेरे जीवन के सारे
दुख-ददत और अभाव अब शांि हैं। इसतलए मेरे मन में कुछभी तलखने की
उमंग नहीं है।

1. कवव आत्मकथा वलखने से क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर-प्रसाद जी के तमत्रों ने उनसे आत्मकिा तलखने का आग्रह तकया िा, पर प्रसाद जी इससे सहमि न िे।
वे अपनी आत्मकिा तलखने से बचना चाहिे िे। इसक कारण िे-
(क) कतव के मि में उनकी जीवन-किा में ऐसा कुछ तवशेष नहीं है तजससे दूसरोंको कुछ तमल सके।
(ख) काव अपने जीवन की भूलों और दूसरों द्वारा की गई प्रवंचनाओं को सावतजतनक नहीं करना चाहिा।
(ग) उनकी आत्मकिा दूसरों को सुख प्रदान नहीं कर पाएगी।
(घ) अभी आत्मकिा कहने का उतचि समय नहीं आया है।
2. आत्मकथा सुनाने के संदभभ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवव ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर-आत्मकथ्य अभ्यास प्रश्न उत्तर के इस सवाल में कतव को ऐसा लगिा है तक अभी अपनी आत्मकिा
कहने का उपयुि समय नहीं आया है। तकसी भी बाि को कहने का उतचि समयहोनाचातहए। अभी उसकी
किा मन के कोने में शांि पड़ी है। उसकी व्यिा दबी हुई है। किा सुनािे समययह उग्र हो सकिी है। वह अभी
अपने बारे में कुछ कहने की मनःतथिति में नहीं है। कतव को अभी ऐसी कोई महान उपलतधध भी नहीं है
तजसके बारे में वह सबको बिाए। आत्मकिा कहने का समय प्रायः जीवन का उत्तराद्धत माना जािा है। अभी
कतव उस आयु को पहुीँचा भी नहीं िा। अभी उसे जीवन में कािी कुछ अनुभवहोनेशेष िे। िभी आत्मकिा
कहना अतधक उपयुि होिा है।
3. स्मृवत को ‘पाथेय बनाने से कवव का क्या आशय है ?
उत्तर-थमृति को पािेय बनाने से कतव का यह आशय है तक जीवन में जो िोड़ेबहुि मधुर क्षण आए िे अिाति्
जब उसका तमलन तप्रय के साि हुआ िा, उन क्षणों की थमृति ही जीवन का सहारा है। उसी थमृति के सहारे वह
जी रहा है। अब, जबतक वह चलिे-चलिे िक गया है िब उसके मागत में यही सहारा रह गया है तक वह पुरानी
थमृतियों को संजोए रहे।

4. ‘उज्जज्जवल गाथा कैसे गाऊाँ, मधुर चााँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवव क्या कहना चाहता है ?
उत्तर-आत्मकथ्य अभ्यास प्रश्न उत्तर –कवव इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहताहै वक उसका अतीत
अत्यंत मोहक रहा है। तब वह अपनी प्रेयसी के साथ मधुर चााँदनी में बैठकर खूब बातें करता था तथा
वखलवखलाकर हाँसता था। अब उस गाथा को सुना पाना उसके वलए संभव नहीं है। कववके वे क्षण न जाने कहााँ
चले गए ?
5. ‘आत्मकथ्य’ कववता की काव्यभाषा की ववशेषताएाँ उदाहरण सवहत वलखें।
उत्तर-‘आत्मकथ्य’ कववता की काव्यभाषा की कुछ ववशेषताएाँ इस प्रकार हैं-
(क) इस कववता की भाषा खड़ी बोली है। इसमें तत्सम शब्दों का भरपूर प्रयोग है। उदाहरणाथभ-मधुप, मवलन,
उपहास, दुबभलता, उज्जज्जवल, स्मृवत आवद।
(ख) इस कववता पर छायावादी काव्यशैली का स्पष्ट प्रभाव लवक्षत होता है ‘उज्जजवल गाथा कैसे गाऊाँ मधुर
चााँदनी रातों की'(ग) इस कववता की काव्यभाषा में प्रतीकात्मकता का समावेश है-‘मधुप गुनगुनाकर’
(घ) लाक्षवणकता ने कववता को वववशष्टता प्रदान की है-‘मुरझाकर वगर रही
(ङ) इस कववता की काव्यभाषा में अलंकारों का समावेश है। उदाहरणाथभ �पक-यह गागर रीवत (जीवन �पी
गागर), मधुप (मन �पी भौंरा) अनुप्रास-पवथक की पंथा।
6. कवव ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कववता में वकस �प में अवभव्यक्त वकया है ?
उत्तर-कवव ने अपने जीवन में सुख का स्वप्न देखा था। कवव ने कल्पना की थी, वकवह वप्रय के साथ बैठकर
हाँसने के कुछ क्षण पा सकेगा। उसकी वप्रय के अ�ण कपोलों पर लावलमा दौड़ जाएगी। वह भी मधुर चााँदनी
रातों का आनंद उठा सकेगा। वप्रय उसके आवलंगन में आएगा और वह सुखानुभूवत कर सकेगा।
7. ‘आत्मकथ्य’ कववता का संदेश क्या है ?
उत्तर-‘आत्मकथ्य’ शीषभक कववता जयशंकर प्रसाद द्वारा रवचत है। इस कववता कासंदेश यह है, वक जीवन में
दुख बहुत अवधक हैं। इस जीवन में सुख के क्षण बहुत कम आते हैं। हमेंउनको पकड़कररखने का प्रयास करना
चावहए। सुख के क्षणों की स्मृवत जीवन का सहारा होती है। जीवन में व्यवक्तस्वयं तो भूला करता ही है, इसके
साथ-साथ उसके अपने लोगभी उसको धोखा देते हैं, पर इन प्रवभचनाओं को कहने काकोई लाभ नहीं हैं।

8. ‘आत्मकथ्य’ कववता में जो जीवन मूल्य उभर कर आते हैं, उनका उल्लेख करें।
उत्तर-आत्मकथ्य अभ्यास प्रश्न उत्तर के इस प्रश्न में कवव का ‘आत्मकथ्य’ में वनमनांवकत जीवन-मूल्य
उभरकर आते हैं-
(क) जीवन में सुख-दुख दोनों आते हैं अतः दोनों को सहने के वलए तैयार रहना चावहए।
(ख) दूसरों की प्रवंचनाओं का उल्लेख करना व्यथभ है।
(ग) अपने मन की व्यथा को मन में ही वछपाकर रखना चावहए। इसे दूसरों के सामने कहने का कोई
लाभ नहीं है।
(घ) अपने बारे में बढ़-चढ़कर बोलने की प्रवृवत्त ठीक नहीं है।
(ङ) हमें दूसरों की हाँसी नहीं उड़ानी चावहए।
9. इस कववता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यवक्तत्व की जो झलक वमलती है, उसे अपने शब्दों में
वलखें।
उत्तर-इस कववता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यवक्तत्व की यह झलक वमलती है-प्रसाद जी के जीवन
में वेदना-पीड़ा थी। वे सुख की कल्पना ही करते रह गए। इस कववता में उनकी वनराशा और
पलायनवादी प्रवृवत्त झलकती है। प्रसाद जी अपने बारे में कुछ कहने मेंवझझकते हैं।jacboard
10. ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से कवव क्या कहना चाहता है ?
उत्तर-कवव ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह कहना चाहता है वक उसने पूराजीवन सरलता और
भोलेपन में वजया है। उसके जीवन में छल-कपट, चतुराई और धूतभता नहीं है। अतः उसके जीवन में
संतुवष्ट तो है, लेवकन वकसी को कुछ सीख देने की शवक्त नहीं है।
Tags