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Ek phool ki chah Class 9 cbse
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Jan 13, 2016
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About This Presentation
hindi ki kavita par ppt
Size:
2.15 MB
Language:
none
Added:
Jan 13, 2016
Slides:
21 pages
Slide Content
Slide 1
महामारीकेरप
Slide 2
एक की
चाह
िसयारामशरणगुप
Slide 4
उदवेिलत कर अशु
–
रािशयाँ
,
हदय
–
िचताएँ धधकाकर
,
महा महामारी पचंड हो
फैल रही थी इधर
-उधर।
कीण
–
कंठ मृतवतसाओ का
करण रदन दुदारत िनतांत
,
भरे हए था िनज कृश रव मे
हाहाकार अपार अशांत।
–
किव महामारी की भयंकरता का िचतण करता हआ कहता है िक
चारो ओर एक भयंकर महामारी फैल गई थी। उसके कारण पीिडत
लोगो की आँखो मे आँसुओ की झिड़याँ उमड़ आई थी। उनके हदय
िचताओ की भाँित धधक उठे थे। सब लोग दुख के मारे बेचैन थे। अपने
बचो को मॄत देखकर माताओ के कंठ से अतयंत दुबरल सवर मे करण
रदन िनकल रहा था। वातावरण बहत हदय िवदारक था। सब ओर
अतयिधक वाकुल कर देने वाला हाहाकार मचा हआ था। माताएँ दुबरल
सवर मे रदन मचा रही थी।
Slide 5
बहत रोकता था सुिखया को
,
‘ ’
न जा खेलने को बाहर
,
नही खेलना रकता उसका
नही ठहरती वह पल भर ।
मेरा हदय काँप उठता था
,
बाहर गई िनहार उसे
;
यही मनाता था िक बचा लूँ
िकसी भाँित इस बार उसे।
–
सुिखया का िपता कहता है मै अपनी बेटी सुिखया को बाहर जाकर
खेलने से मना करता था। मै बार
- – ‘
बार कहता था बेटी
,
बाहर खेलने
’
मत जा। परंतु वह बहत चंचल और हठीली थी। उसका खेलना नही
रकता था। वह पल भर के िलए भी घर मे नही रकती थी। मै उसकी
इस चंचलता को देखकर भयभीत हो उठता था। मेरा िदल काँप उठता
था। मै मन मे हमेशा यही कामना करता था िक िकसी तरह अपनी बेटी
सुिखया को महामारी की चपेट मे आने से बचा लूँ।
Slide 6
भीतरजोडरथािछपाए
,
हाय!
वहीबाहरआया।
एकिदवससुिखयाके तनुको
–
ताप तपउसनेपाया।
जवरमेिवहवलहोबोलीवह
,
कयाजानूँिकसदरसेदर
,
मुझकोदेवीके पसादका
एकफूलहीदोलाकर।
सुिखयाकािपताकहताहै
-
अफ़सोस
!
मेरे मनमेयही
डरथािककहीमेरीिबिटयासुिखयाकोयहमहामारी
नलगजाए।मईइसीसेडररहाथा।वहडरआिखकार
सचहोगया।एकिदनमैनेदेखािकसुिखयाकाशरीर
बीमीरीके कारणजलरहाहै।वहबुखारसेपीिड़त
होकरऔरनजानेिकसअनजानेभयसेभयभीत
–
होकरमुझसेकहनेलगी िपताजी
!
मुझेमाँभगवती
के मंिदरके पसादकाएकफूललाकरदो।
Slide 7
कमश:
कंठकीणहोआया
,
िशिथलहएअवयवसारे
,
बैठाथानव
-
नवउपायकी
िचतामेमैमनमारे।
जानसकानपभातसजगसे
हईअलसकबदोपहरी
,
–
सवणर घनोमेकबरिवडूबा
,
कबआईसंधयागहरी।
सुिखया का िपता महामारी से गसत सुिखया की
बीमारी बढ़ने का वणरन करता हआ कहता िक
धीरे-
धीरे महामारी का पभाव बढ़ने लगा।
सुिखया का गला घुटने लगा। आवाज़ मंद होने
लगी। शरीर के सारे अंग ढीले पड़ने लगे। मै
िचता मे डूबा हआ िनराश मन से उसे ठीक
करने के नए
-
नए उपाय सोचने लगा। इस िचता
मे मै इतना डूब गया िक मुझे पता ही नही चल
सका िक कब पात
:
काल की हलचल समाप हई
और आलसय भरी दोपहरी आ गई। कब सूरज
सुनहरे बादलो मे डूब गया और कब गहरी
साँझ हो गई।
Slide 8
सभी ओर िदखलाई दी बस
,
अंधकार की ही छाया
,
–
छोटी सी बची को गसने
िकतना बड़ा ितिमर आया
!
ऊपर िवसतृत महाकाश मे
–
जलते से अंगारो से
,
–
झुलसी सी जाती थी आँखे
जगमग जगते तारो से।
सुिखया का िपता कहता है िक सुिखया की बीमारी के कारण
मेरे मन मे ऐसी घोर िनराशा छा गई िक मुझे चारो ओर अंधेरे
की ही छाया िदखाई देने लगी
–
मुझे लगा िक मेरी ननही सी बेटी को िनगलने के िलए इतना
बड़ा अँधेरा चला आ रहा है। िजस पकार खुले आकाश मे जलते
हए अंगारो के समान तारे जगमगाते रहते है
,
उसी भाँित
सुिखया की आँखे जवर के कारण जली जाती थी। वह बेहेद
बीमीर थी।
Slide 9
–
देखरहाथा जोसुिसथरहो
नहीबैठतीथीकण
-
भर
,
हाय
!
वहीचुपचापपड़ीथी
–
अटलशांित सीधारणकर।
सुननावहीचाहताथामै
–
उसेसवयंहीउकसाकर
मुझकोदेवीके पसादका
एकफूलहीदोलाकर
!
Slide 10
जैसे शैल
-
िशखर के ऊपर
मंिदर था िवसतीणर िवशाल
;
–
सवणर कलश सरिसज िवहिसत थे
पाकर समुिदत रिव
-कर-जाल।
दीप-
धूप से आमोिदत था।
मंिदर का आँगन सारा
;
गूँज रही थी भीतर
-बाहर
मुखिरत उतसव की धारा।
ऊँचे पवरत की चोटी के ऊपर एक िवसतॄत और िवशाल मंिदर
खड़ा था। उसका कलश सवणर से बना था। उस पर सूरज की
िकरणे सुशोिभत हो रही थी। िकरणो से जगमगाता हआ
कलश ऐसा िखला
-
िखला पतीत होता था जैसे िक रिशमयो
को पाकर कमल का फूल िखल उठा हो। मंिदर का सारा
आँगन दीपो की रोशनी और धूप की सुगंध से महक रहा था।
–
मंिदर के अंदर और बाहर सब ओर उतसव जैसा
उललासमय वातावरण था।
Slide 11
भक-
वृंदमृदु
-
मधुर कंठसे
–
गातेथेसभिकमुद मय
, -
‘– –
पितत तािरणीपाप हािरणी
,
माता
, – – ’ –
तेरीजय जय जय
मेरे मुखसेभीिनकला
,
िबनाबढ़ेहीमैआगेको
जानेिकसबलसेिढकला
!
मंिदरमेभकोकीटोलीबड़ीमधुरऔरकोमल
आवाज़मेआनंदऔरभिकसेभरा हआयह
जयगानगारहीथी
– ‘
हेपिततोकाउदधारकरने
वालीदेवी
!
हेपापोकोनषकरनेवालीदेवी
!
हम
तेरीजय
-
जयकारकरतेहै।
’
सुिखयाके िपताके
मुँहसेभीजयगानिनकलपड़ा।उसनेदोहराया
– ‘
हेपिततोकाउदधारकरनेवालीदेवी
,
तुमहारी
जयहो।
’
यहकहनेके साथहीनजानेउसमेकौन
-
सीशिकआगई
,
िजसनेउसेठेलकरपुजारीके
सामनेखड़ाकरिदया।वहअनायासहीपूजा
–
सथलके सामनेपहँचगया।
Slide 12
–
मेरे दीप फूल लेकर वे
अंबा को अिपत करके
िदया पुजारी ने पसाद जब
आगे को अंजिल भर के
,
भूल गया उसका लेना झट
,
–
परम लाभ सा पाकर मै।
–
सोचा बेटी को माँ के ये
–
पुणय पुषप दूँ जाकर मै।
Slide 13
िसह पौर तक भी आँगन से
नही पहँचने मै पाया
,
– “
सहसा यह सुन पड़ा िक कैसे
यह अछूत भीतर आया
?
पकड़ो
,
देखो भाग न पावे
,
बना धूतर यह है कैसा
;
–
साफ़ सवचछ पिरधान िकए है
,
भले मानुषो के जैसा
!
पापी ने मंिदर मे घुसकर
िकया अनथर बड़ा भारी
;
कलुिषत कर दी है मंिदर की
”
िचरकािलक शुिचता सारी।
सुिखया का िपता देवी के मंिदर मे फूल लेने के िलए जाता है
तो पहचान िलया जाता है। तब वह अपनी आपबीती सुनाते
–
हए कहता है मै पूजा करके मंिदर के मुखय दार तक भी न
– ‘
पहँचा था िक अचानक मुझे यह सवर सुनाई पड़ा यह
अछूत मंिदर के अंदर कैसे आया
?
इसे पकड़ो। सावधान रहो।
कही यह दुष भाग न जाए। यह कैसा ठग है
!
ऊपर से साफ़
-
सुथरे कपड़े पहनकर भले आदिमयो जैसा रप बनाए हए है।
परंतु है महापापी और नीच। इस पारी ने मंिदर मे घुसकर
बहत बड़ा पाप कर िदया है।इसने इतने लंबे समय से बनाई
गई मंिदर की पिवतता को नष कर िदया है। इसके पवेश से
मंिदर अपिवत हो गया है।
Slide 14
ऐ
,
कयामेराकलुषबड़ाहै
देवीकीगिरमासेभी
;
िकसीबातमेहँमैआगे
माताकीमिहमाके भी
?
माँके भकहएतुमकैसे
,
करके यहिवचारखोटा
?
माँके सममुखहीमाँका
तुम
गौरवकरतेहोछोटा
!
सुिखया का िपता मंिदर मे पूजा का फूल लेने गए तो भको ने उनहे
अछूत कहकर पकड़ िलया । तब सुिखया के िपता उन भको से बोले
–
यह तुम कया कहते हो
!
मेरे मंिदर मे आने से देवी का मंिदर कैसे
अपिवत हो गया
?
कया मेरे पाप तुमहारे देवी की मिहमा से भी
बढ़कर है
?
कया मेरे मैल मे तुमहारी देवी के गौरव को नष करने की
शिक है
?
कया मै िकसी बात मे तुमहारे देवी से भी बढ़कर हँ
?
नही
,
यह संभव नही है। अरे दुष
!
तुम ऐसा तुचछ िवचार करके भी
अपने आप को माँ के भक कहते हो।तुमहे लजा आनी चािहए। तुम
माँ की मूित के सामने ही माँ के गौरव को नष कर रहे हो। माँ कभी
छूत-
अछूत नही मानती। वह तो सबकी माँ है।
Slide 15
कुछ न सुना भको ने
,
झट से
मुझे घेरकर पकड़ िलया
;
मार- –
मारकर मुके घूँसे
–
धम से नीचे िगरा िदया
!
मेरे हाथो से पसाद भी
िबखर गया हा
!
सबका सब
,
हाय
!
अभागी बेटी तुझ तक
कैसे पहँच सके यह अब।
सुिखया का िपता अपनी बेटी की अंितम इचछा पूरी करने के िलए
मंिदर मे पूजा का फूल लेने पहँचा तो भको ने उसे अछूत कहकर
पकड़ िलया। उसने उनसे पश पूछा िक कया उसका कलुष देवी माँ
की मिहमा से भी बढ़कर है। इसके बाद सुिखया का िपता अपनी
–
आपबीती सुनते हए कहता है देवी के उन भको ने मेरी बातो
पर धयान नही िदया। उनहोने तुरंत मुझे चारो ओर से घेरकर पकड़
– –
िलया। िफर उनहोने मुझे मुके घूँसे मार मारकर नीचे िगरा
िदया। उस मारपीट मे मेरे हाथो से देवी माँ का पसाद भी िबखर
–
गया। मै अपनी बेटी को याद करने लगा हाय
!
अभागी बेटी
!
देवी का यह पसाद तुझ तक कैसे पहँचाऊँ। तू िकतनी अभागी है।
Slide 16
नयायालय ले गए मुझे वे
,
–
सात िदवस का दंद िवधान
मुझको हआ
;
हआ था मुझसे
देवी का महान अपमान
!
मैने सवीकृत िकया दंड वह
शीश झुकाकर चुप ही रह
;
उस असीम अिभयोग दोष का
कया उतर देता
,
कया कह
?
सात रोज़ ही रहा जेल मे
या िक वहाँ सिदयाँ बीती
,
अिवशांत बरसा करके भी
आँखे तिनक नही रीती।
Slide 17
दंडभोगकरजबमैछूटा
,
पैरनउठतेथेघरको
;
पीछेठेलरहाथाकोई
–
भय जजररतनुपंजरको।
–
पहलेकी सीलेनेमुझको
नहीदौड़करआईवह
;
उलझीहईखेलमेहीहा
!
अबकीदीनिदखाईवह।
Slide 18
उसेदेखनेमरघटकोही
गयादौड़ताहआवहाँ
,
मेरे पिरिचतबंधुपथमही
फूँकचुके थेउसेजहाँ।
बुझीपड़ीथीिचतावहाँपर
छातीधधकउठीमेरी
,
हाय
! –
फूल सीकोमलबची
हईराखकीथीढेरी
!
Slide 19
अंितमबारगोदमेबेटी
,
तुझकोलेनसकामैहा
!
एकफूलमाँकापसादभी
तुझकोदेनसकामैहा
!
Slide 20
यह
पावरपॉइंटपदशरन
दारापसतुत
िकयागयाहै
I
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