गुण (एक विस्तृत आयुर्वेदिक विवेचन) प्रस्तुतकर्ता : वर्षा सिंह
B.A.M.S प्रथम वर्ष
मार्गदर्शक : डॉ० प्रोफ़ेसर रुद्र प्रताप तिवारी सर
परिचय : द्रव्य, गुण और कर्म का आधारआयुर्वेद दर्शन के अनुसार सृष्टि के सभी पदार्थ तीन भागों में विभाजित हैं:
द्रव्य: जिसमे गुण और कर्म आश्रित रहते हैं।
गुण: द्रव्य में आश्रित, स्वयं निष्क्रिय, परंतु कर्म का कारण।
कर्म: द्रव्य का कार्य, जो गुण के कारण संभव होता है।
"द्रव्य के बिना गुण/कर्म का, गुण-कर्म के बिना द्रव्य का कोई अस्तित्व
नहीं"
चिकित्सा का आधार गुणों का ज्ञान है, जो औषधि और आहार चयन में
अनिवार्य है।
द्रव्य, गुण, कर्म
गुण की व्युत्पत्ति एवं परिभाषा
‘गुण’ = ‘गुण आमंत्रणे’ धातु + 'अच्’ प्रत्यय (आमंत्रण/बंधन)व्युत्पत्ति: परिभाषा: चरक संहिता:
समवायी तु निश्चेष्ट कारणं गुणः॥ (च.सू. 1/51)समवायी तु निश्चेष्ट कारणं गुणः॥ (च.सू. 1/51)
गुण द्रव्य के साथ समवाय संबंध में, स्वयं निष्क्रिय,
कर्म का कारण है।
गुण की व्युत्पत्ति एवं परिभाषापरिभाषा:
सुश्रुत संहिता:
द्रव्याश्रयिणोऽकर्मवन्तो गुणाः।द्रव्याश्रयिणोऽकर्मवन्तो गुणाः।
वैशेषिक दर्शन:
द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागाव्यापक कारणानपेक्षद्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागाव्यापक कारणानपेक्ष
इति गुणलक्षणम्॥ (वै.द. 1/1/16)इति गुणलक्षणम्॥ (वै.द. 1/1/16)
द्रव्य में आश्रित, अन्य गुणों से रहित, संयोग या विभाग
में कारण न बनने वाले गुण ही गुण कहलाते हैं।
गुण द्रव्य में आश्रित, स्वयं कर्मरहित होते हैं।
आयुर्वेद में गुण का स्थान और द्रव्य-गुण-कर्म संबंध
गुण का स्थान: गुण द्रव्य और कर्म के बीच सेतु का कार्य करता है।
उदाहरण:
सोंठ में "उष्णता" होने से पाचन शक्ति बढ़ती है और
वात/कफ दोषों का शमन होता है।द्रव्य
गुण (Qualities) कर्म (Function)
सोंठ उष्ण (Hot),
तीक्ष्ण (Sharp),
लघु (Light)
दीपक
(Digestive),
पाचन
(Metabolic)
गुणों का वर्गीकरण ( चरकाचार्यानुसार 41 गुण ) वर्ग
गुणों की संख्या आध्यात्मिक गुण
सार्थ/इन्द्रियार्थ गुण
गुर्वादि/शारीरिक गुण परादि/सामान्य गुण 6 5 20 10
मुख्य गुण
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध
गुरु, लघु, शीत, उष्ण आदि परत्व, अपरत्व, युक्ति, संख्या, संयोग,
विभाग, पृथक्त्व, परिमाण, संस्कार,
अभ्यास
सार्था गुर्वादयो बुद्धिः प्रयत्नान्ताः परादयः ।सार्था गुर्वादयो बुद्धिः प्रयत्नान्ताः परादयः ।
गुणाः प्रोक्ताः ...(च.सू. 1/49)गुणाः प्रोक्ताः ...(च.सू. 1/49)
श्लोक :
आध्यात्मिक गुण (Adhyatmika Gunas)
विवेक, निर्णय अर्थ/प्रभाव व्याख्या
संतुष्टि, प्रसन्नता
वेदना, रोग की पहचान
संतुलित इच्छा आवश्यक
मानसिक संतुलन के नियंत्रण
गुण
बुद्धि (Intellect)
सुख (Happiness)
दुःख (Suffering)
इच्छा (Desire)
द्वेष (Aversion)
प्रयत्न (Effort) स्वास्थ्य और जीवन प्रयास
इच्छाद्वेषः सुखं दुःखं प्रयत्नं बुद्धिः स्मृतिरतिःंकारो लिङ्गानिइच्छाद्वेषः सुखं दुःखं प्रयत्नं बुद्धिः स्मृतिरतिःंकारो लिङ्गानि
परमात्मनः॥ (च.सू. 1/71)परमात्मनः॥ (च.सू. 1/71)
श्लोक :
आनंद, मानसिक स्वास्थ्य
पीड़ा, चित्त की विकृति
प्राप्ति की आकांक्षा
विरोध, गलत भावना
सक्रियता, लक्ष्य साधना
अच्छाई-बुराई, निर्णय और तर्कशक्ति
सार्थ/इन्द्रियार्थ गुण (Sensory Qualities)
आकाश (Ether)
महाभूत (Element) इन्द्रिय (Sense Organ)
त्वचा (Skin)
आँख (Eye)
जिह्वा (Tongue)
नाक (Nose)
गुण (Quality)
शब्द (Sound)
स्पर्श (Touch)
रूप (Form)
रस (Taste)
गन्ध (Smell)
अर्थाः शब्दादयो ज्ञेया गोचरा विषया गुणाः (च. शा. 1/31)अर्थाः शब्दादयो ज्ञेया गोचरा विषया गुणाः (च. शा. 1/31)
श्लोक :
वायु (Air)
अग्नि (Fire)
जल (Water)
पृथ्वी (Earth)
श्रोत्र (Ear)
परादि गुण (General/Clinical Qualities)
परापरत्वे युक्तिश्च संख्या संयोग एव च।परापरत्वे युक्तिश्च संख्या संयोग एव च।
विभागश्च पृथकत्वं च परिमाणमथापि च।। .. (च.सू. 26/11)विभागश्च पृथकत्वं च परिमाणमथापि च।। .. (च.सू. 26/11)
श्लोक :परत्व
गुण अपरत्व
युक्ति
संख्या
संयोग
विभाग
पृथकत्वपरिमाण
संस्कार अभ्यास
श्रेष्ठता अर्थ
गौणता
योजना गणना
मिलाना अलग करना भिन्नता
माप-तौल
गुण बदलना
निरंतर सेवन
रोग/औषधि का मुख्य चयन
चिकित्सा में महत्व
सहायक रोग/औषधि का चयन
रोगी/रोग/औषधि की योजना बनाना
औषधि की संख्या निर्धारण
औषधि निर्माण, मिश्रण
मिश्रण से पृथक करना
गुणों की भिन्नता
मात्रा का निर्धारण
द्रव्य का स्वाभाविक गुण परिवर्तन
औषधि/आहार का नियमित प्रयोग
चिकित्सा में गुणों का महत्व
सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धि कारणम्।सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धि कारणम्।
ह्रासहेतुर्विशेषश्च प्रवृत्तिरुभयस्य तु॥ (च.सू. 1/44)ह्रासहेतुर्विशेषश्च प्रवृत्तिरुभयस्य तु॥ (च.सू. 1/44)
श्लोक :
सामान्य-विशेष सिद्धांत:समान गुणों का उपयोग वृद्धि हेतु, विपरीत गुणों का उपयोग ह्रास (शमन) हेतु
किया जाता है।
उदाहरण:
वायु दोष जिसमें गुण होते हैं: रुक्ष (Dry), लघु (Light), शीत
(Cold) आदि।
इनके समाधान के लिए विपरीत गुणों वाली औषधि जैसे स्निग्ध
(Oily), गुरु (Heavy), उष्ण (Hot) का चयन किया जाता है।
गुण वर्गीकरण सार-संचित्र
वर्ग (Category)आध्यात्मिक (Adhyatmika) मुख्य गुण (Main Qualities)
सार्थ (Sensory)
गुर्वादि (Physical) परादि (General)
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध
10 जोड़े जैसे गुरु/लघु, शीत/उष्ण आदि
परत्व, अपरत्व, युक्ति, संख्या,
संयोग, विभाग, पृथक्त्व,
परिमाण, संस्कार, अभ्यास
निष्कर्ष:
गुण का महत्व और चिकित्सीय उपयोग
• गुण, आयुर्वेद का मौलिक सिद्धांत है जो द्रव्य और कर्म के बीच की कड़ी
है।
• गुणों का सही ज्ञान सफल चिकित्सा की नींव रखता है।
मानसिक, शारीरिक, और चिकित्सकीय क्षेत्र में गुणों का गहन और
व्यावहारिक ज्ञान आवश्यक है।
• गुणों के आधार पर औषधि चयन और उपचार की योजना बनाई जाती
है, जिससे रोगों का समुचित समाधान संभव होता है।