Indian Numeral and Number System

ijtsrd 91 views 16 slides Aug 05, 2022
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About This Presentation

In practical terms, mathematics has played an important role in all the civilizations of the world. It would not be an exaggeration to say that civilization and mathematics are two sides of the same coin. No behavior in the universe is possible without mathematics and numbers are the breath of mathe...


Slide Content

International Journal of Trend in Scientific Research and Development (IJTSRD)
Volume 6 Issue 4, May-June 2022 Available Online: www.ijtsrd.com e-ISSN: 2456 – 6470

@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50364 | Volume – 6 | Issue – 4 | May-June 2022 Page 1690
भारतीय अ? एवं स?ा <णाली
िदनेश मोहन जोशी
1, िगरीशभ1 िब
2
1मानिवक1 एवं समाज िवान िवभाग, भारतीय <ौ?ोिगक1 सं?ान, मुpई
2-स?ा?ौितषशा: ? मT िव?ावा,र-धशोध?ा ?, राि
?L
यसं?ृतिव?िव?ालय, ितcपित

सारांश
?ावहा,रक `ि? से िव? क1 सभी स_ताओं मT ग-णत का महwपूणK ?ान रहा
है । स_ता और ग-णत एक ही -सnे के दो पहलू हW एसा कहना अितशयोिw
नहीं होगी । X?ा$ मT कोई भी ?वहार ग-णत के िबना सtव नहीं है और
अ?, ग-णत के ?ास हW । अ?ों के िबना हम ग-णत क1 क?ना भी नहीं कर
सकते । इस शोध प? मT हम अ?ों एवं स?ाओं के इितहास एवं लेखन प?ित
पर िव?ार से चचाK करTगे ।


कूटशN: ग-णत, अथKशा?, दशमलव, शNा?, कटपयािद, Xा?ी, नानाघाट












How to cite this paper: Dinesh Mohan
Joshi | Girish Bhatt B "Indian Numeral
and Number
System" Published
in International
Journal of Trend in
Scientific Research
and Development
(ijtsrd), ISSN: 2456-
6470, Volume-6 |
Issue-4, June 2022, pp.1690-1705, URL:
www.ijtsrd.com/papers/ijtsrd50364.pdf

Copyright © 2022 by author(s) and
International Journal of Trend in
Scientific Research and Development
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distributed under the
terms of the Creative Commons
Attribution License (CC BY 4.0)
(http://creativecommons.org/licenses/by/4.0)
<?ावना
महावीराचायK (850 A. D) ने ग-णत क1 ?ापकता को बताते hये अपने ?? ग-णतसारस?ह मT िवशेष dप से ग-णत के मह?
को बताया है-

लौिकके वैिदके वािप तथा सामाियकेऽिप यः ।
?ापार?? सव
K?
सं?
ानमुपयु
ते ॥
कामत?
ेऽथ
Kशा?े च गा?वU नाटकेऽिप वा ।
सूपशा?े तथा वै?े वा?
ुिव
?ािदव?
ुषु

छ?ोऽल?ारका?
ेषु
तकU ?ाकरणािदषु ।
कलागुणेषु
सवUषु <?
ुतं
ग-णतं परम् ॥
सूयाKिद?हचारेषु ?हणे ?
हसंयुतौ

ि?<?े च?वृqौ च सव
K?
ा?0कृतं िह तत् ॥
?
ीपसागरशैलानां
स?ा?ासप,र-?पः ।
भवन??रोितलZकक?ा-धवा-सनाम् ॥
नारकाणां च सवUषां ?ेणीब?े?कोgराः ।
<क1णKक<माणा?ा बु??े ग-णतेन ते ॥
<ा-णनां त? सं?
ानमायुर
?
गुणादयः



IJTSRD50364

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या?ा?ाः संिहता?ा? सवU ते ग-णता?याः ॥
बh-भिवK<लापैः
िकं
?
ैलो
?े सचराचरे ।
य-gं-च??
ुं
त?वM ग-
णतेन
िवना न िह ॥
तीथKकृ?ः कृताथ
U_
ः पूे_ो जगदी?रैः ।
तेषां
-श?<-श?े_ः <-स?ा?ुcपवKतः ॥
जलधे,रव र{ािन पाषाणािदव कानम् ।

शु
wेमु
Kw
ाफलानीव स?ाानमहोदधेः ॥
िक-
दु
?ृ? त?ारं व?
ेऽहं
मितशिwतः ।
अ?ं ??मन?ाथM ग-णतं सारसं?हम् ॥
संाtो-भरथो पूणK प,रकमZcवेिदके ।
कलासवणKसंd
ढलुठ
~ाठीनसंकुले ॥
<क1णKकमहा?ाहे ?
ैरा
-शकतरि?-ण ।
िम?क?वहारो??
ूि
wर{
ांशुिप
रे ॥
?े?िव?ीणKपाताले खाता?-सकताकुले ।
करण??सp??
ायावेलािवरा
-जते ॥
गुणकैगुK
णसंपूण
X?दथKमणयोऽमलाः ।
गृ??े करणोपायैः सारस?हवा,रधौ ॥
1
ता~यK यह है िक लौिकक एवं वैिदक अनु?ानों, ?ापार, कामत?, अथKशा?, गा?वK, नाटक, सूपशा?, -चिक?ाशा?, वा?ु,
छ? अल?ार, का?, ?ाकरण, दशKन सूयK इ?ािद ?हों क1 गितयों, ि?<? (िदक्, देश, काल), ?हण, ?ीप, सागर, पवKत इ?ािद
का ?ास इ?ािद िवषयों मT सवK? ग-णत क1 अव*कता है, अथाKत् सjूणK X?ा$ ग-णता-?त है, कोई भी ?वहार ग-णत के
अभाव मT सtव नहीं है ।
``ग-णत'' शN का सव
K<
थम <योग
सवK<थम 'ग-णत' शN का <योग वेदा?ोितष (1200 B. C) मT िकया गया है, इसमT ग-णत को वेदा?ों मT सवK?े? बताया
गया है । यथा-
यथा -शखा
मयूराणां
नागानां मणयो यथा ।
तथा
वेदा
?शा?
ेषु
ोितषं
मूध
Kिन .?तम् ॥
2
जैसे मोरों मT -शखा और नागों मT म-ण का ?ान सबसे ऊपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शा?ों मे ग-णत का ?ान सबसे ऊपर
है ।
ग-णत का महw
ग-णत के महw को भा?रचायK ने अपने ?? -स?ा?-शरोम-ण मT बhत ही सु?र ढंग से <?ुत िकया है-
यः -स?ा?मन?
युि
wिवततं नो
वेि
q -भqौ यथा
राजा -च?मयोऽथवा
सुघिटतः
का?? क#ीरवः ।
गजKgुरव-जKता
नृपचमूर
;ू-जKताऽ?ािदकैः

1 ग-णतसारस?हः, संा?ायः, ?ोक 9-23
2 आचKोितष 35, याजुषोितष, 4

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उ?ानं ?
ुतचूतवृ
?मथवा पाथोिवहीनं सरः ।
योिष
ोिषतनूतनि
<यतमा य?? भा?ु?कैः
ोितः शा?िमदं
तथैव िवबुधाः
-स?ा?हीनम् जगुः ॥
3
-स?ा? ग-णत को जो ोितषी नहीं जानता वह -भिq पर बनाये गये -च?, का? से बनाये गये गजKनाहीन -
संह
तथा पि?रिहत
हाथी, अ? व िबना घोडों एवं सेना के राजा, िबना आम के वृ?ों के नीरस उ?ान, जल िवहीन तालाब, यौवना ?ी के परदेश गया
hआ पित का िवयोग -जस <कार शोभा नहीं पाते उसी <कार यह जगत भी ोितष शा? के -स?ा? (ग-णत) से िवहीन होने पर
<का-शत नहीं होता अथाKत् शोभा नहीं पाता । (ोितष) ?ह ग-णत -स?ा? से रिहत ोितषी क1 भी एसी ही .?ित कही गई
है ।
ग-णत क1 अवधारणा
ग-णत शN से अ-भ<ाय ''गणना के िवान'' से है । गणेशदैव ने लीलावती (1150 A. D) पर अपने भा? बुि?िवला-सनी
(1540 A. D) मT म?लाचरण क1 ?ा?ा के अ?गKत ग-णत को इस <कार प,रभािषत िकया है-
गु'ते स?ायते
तद्
ग-णतम् । तितपादक?
ेन
त?ंं शा?मु?ते ।
बौ? सािह? मT ग-णत को तीन भागों मT िवभw िकया गया है जो ?मशः मु?ा, गणना एवं स?ा नाम से <-स? हW । इनक1
चचाK धीगिनकाय, िवनयपिटक, िद?ावदान एवं िम-ल?पा*ो मT क1 गई है । स?ा शN का <योग ग-णत के अथK मT भ?बाh ने
भी <योग िकया है ।
दशमलव प?ित (Decimal place value system)
ग-णत ?वहार के -लये स?ाओं का ान परमाव*क है, स?ाओं के अभाव मT हम ग-णत क1 क?ना ही नहीं कर सकते हW ।
स?ा ग-णत का पयाKय है । पाटीग-णत (arithmetic) िवशेष dप से अ?ों पर ही आधा,रत है । भारत का ग-णत के ?े? मT
दशमलव एवं शू का अिव?ार एक बhत बडी उपल.P है । वतKमान समय मT सबसे <-स? अ? प?ित दशमलव प?ित है ।
इस प?ित क1 िवशेषता 1 से लेकर 9 अ? एवं 0 का <योग करते hये पूणाK?ों का ?ान िनधाKरण (place value) करना है ।
दशमलव प?ित िनdपण से पूवK ग-णत मT अ?ों को <द-शKत करना बhत किठन होता था पर?ु भारतीय मनीिषयों के िववेक से
ग-णत को एक नई िदशा िमली । सवK<थम स?ाओं को शNों मT -लखा जाता था । इसका सबसे <ाचीन उदाहरण ऋ"ेद से है-
?ी-ण शता ?ीसह?ा'ि?ं ि?
ंश
? देवा न चासपयKन् । औ?न्
घृतैरसृणन्
बिहKर?ा -------
4
इससे हमT 3339 स?ा <ा0 होती है । दशमलव प?ित के सं?ृत सािह? मT पयाK0 <माण उपलP हW । अ-धकतर ग-णत
एवं इितहासकार इस बात से सहमत हW दशमलव प?ित एवं शू (zero) क1 जभूिम भारत हW एवं समय के साथ इनका <चार
िव? के अ भागों मT hआ । जाजK साटKन (George Sarton) के शNों मT
Our numerals and the use of zero were invented by the Hindus and transmitted to us by
the Arabs (hence the name Arabic numerals which we often give them.)
5
पर?ु कितपय िव?ानों के िवचार जाजK साटKन के िवचारों से -भ? हW । इनमT George R. Kaye एवं Neugebauer <मुख हW
। Neugebauer ने अपनी पु?क The Exact Sciences in Antiquity मT -लखा है िक ''बैिबलान (Babylon)

3 -स?ा?-शरोम-ण, म?मा-धकार, ?ोक 7b-8
4 ऋ"ेद, 3.9.9
5 Sarton, G. The Appreciation of Ancient and Medieval Science during the Renaissance (1450-1600),
Philadelphia Univ., p. 151. 1955.

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(1600 B. C) मT स?ा ?ान (place value) मT 60 आधार (sexagesimal) माना जाता था और यही आधार बाद मT
?ीक और िह?
ुओं
ने माना । अ? मT इ%ीं के सहयोग से स?ा ?ान प?ित का उदय hआ'' । Neugebauer के शNों मT -
Thus the "sexagesimal" order eventually became the main numerical system and with it the
place value writing derived from the use of bigger and smaller signs. The decimal
substratum, however, always remained visible for all numbers up to 60. Similarly, other
systems of units were never completely extinguished. Only the purely mathematical texts,
which we find well represented about 1500 years after the beginning of writing, have fully
utilized the great advantage of a consistent sexagesimal place value notation. Again 1000
years later, this method became the essential tool in the development of a mathematical
astronomy, whence it spread to the Greeks and then to the Hindus, who contributed the
final step, namely, the use of the place value notation also for the smaller decimal units. It is
this system that we use today.
6
दशमलव प?ित को समझने के -लये उदाहरण?dप स?ा 42 को लेते हW । इसमT 4, 4 X 10 दशाKता है । अरब के लोग
भारत मT ?ापार के -लये आते थे अतः वह भी इसी अ? प?ित का अनुसरण करने लगे इसी-लये इस प?ित को िह?ु-अरबी अ?
प?ित के नाम से भी जाना जाता है । इस प?ित ने ग-णत के ?े? मT बhत बडी ?ा.? पैदा कर दी, फल?dप धन, ऋण,
गुणन, भाग इ?ािद सरल हो गये । िह?ु-अरबी अ? प?ित मT 10
5, 10
4, 10
3, 10
2, 10, 1 एसे -लखा जाता है । दशमलव
प?ित के अनुसार 434 को (4 X 10
2 ) + (3 X 10) + (4 X 1) एसे -लखा जा सकता है । यही प?ित
आज पूरे
िव? मT
?ीकृत है । नीचे सा,रणी 1 मT कुछ मह?पूणK वैिदक ??ों से दशमलव प?ित के अनुसार स?ाओं को उ?
ृत
िकया गया है ।
<?ेक स?ा ?मशः दश गु-णत होती जा रही है, इसी को भा?राचायK ि?तीय ने ''दशगुणोqर संा'' कहा है ।
स?ा यजुवUदसंिहता
7
तैि
qरीयसंिहता
8 मै?ायणी संिहता
9 प
िवंश
Xा?ण
10
0
10
1
10
2
10
3
10
4
10
5
10
6
10
7
10
8
10
9
10
10
10
11
10
12
एक
दश
शत
सह?
अयुत
िनयुत
<युत
अबुKद
बुKद
समु?
म?
अ?
पराधK
एक
दश
शत
सह?
अयुत
िनयुत
<युत
अबुKद
बुKद
समु?
म?
अ?
पराधK
एक
दश
शत
सह?
अयुत
िनयुत
<युत
अबुKद
बुKद
समु?
म?
अ?
पराधK
एक
दश
शत
सह?
अयुत
िनयुत
<युत
अबुKद
बुKद
समु?
म?
अ?
पराधK
Table 1: िविवध वैिदक ??ों मT दशमलव प?ित

6
Neugebauer. O. The exact Science in Antiquity, p. 19-20, 1952.
7
xvii, 2.
8
iv, 40. 11.4.
9
Ii, 8. 14.

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सा,रणी मT अबुKद 10
7 है पर?ु बाद के सं?ृत सािह? मT अबुKद को 10
8 माना गया है ।
मोहनजोदडो (3000 B. C) क1 खुदाई से वहां दशमलव प?ित (decimal system) के कई <माण िमले हW । जैन ?? जो
िक 500-100 B. C के समय के बीच सूयK<ि0, ?ीप<ि0, ?ानायसू?, उqारा?नसू?, भगवतीसू? एवं
अनुयोग
?ारसू? मT
बडी स?ाओं को दशमलव प?ित मT बताया गया है । बौ? ?? ल-लतिव?र मT ग-णत अजुKन और बो-धसw के बीच hये
संवाद मT स?ाओं को िनh-ल-खत <कार से <?ुत िकया गया है-
अथाजुKनो गणको महामा?ो बो-धसw
मेवमाह
- जानीषे ?ं कुमार कोिटशतोqरा नाम गणना िव-धम् ?
आह – जाना{हम् ।
आह - कथं पुनः कोिटशतोqरा गणना गितरनु<वे??ा ?
बो-धसw आह - शतमयुतानां
िनयुतं
नामो?ते
। शतं िनयुतानां
क?ारं नामो?ते । शतं क?ाराणां िववरं नामो?ते । शतं
िववराणां अ?ो_ं नामो?ते । शतम?ो_ाणां िववाहण नामो?ते । शतं िववाहानां उ??ं नामो?ते । शतमु??ानां बhलं
नामो?ते । शतं बhलानां नागबलं नामो?ते । शतं नागबलानां ितिटलtं नामो?ते । शतं ितिटलtानां ?व?ान<ि0ः
नामो?ते । शतं ?व?ान<0ीनां
हेतुिहलं
नामो?ते
। शतं हेतुिहलानां
करiनाKमो?ते । शतं करiणां हे-?-?यं
नामो?ते । शतं हे-?-?याणां समा0लtं नामो?ते । शतं समा0लtानां गणनागितनाKमो?ते । शतं गणनागतीनां
िनरव?ं नामो?ते । शतं िनरव?ानां मु?ाबलं नामो?ते । शतं मु?ाबलानां सवKबलं नामो?ते । शतं सवKबलानां
िवसंागितनाKमो?ते । शतं िवसंागतीनां सवKसंा नामो?ते । शतं सवKसंानां
िवभूत
?मा नामो?ते । शतं
िवभूत
?मानां
त??णं नामो?ते ।।
10
इसमT त??ण (10
53) तक मान बताये गये हW । का?ायन के पाली ?ाकरण मT 10
140 (अस?ेय) बताई गई हW ।
अनुयोग?ारसू? (100 B. C) मT समय क1 ईकाई ''शीषK<हे-लका'' का मान 8400000
28 बताया गया है ।
भारतीय दशKन ??ों मT भी दशमलव एवं ?ाना? से सp.?त उ?रण <ा0 होते हW । पात-ल योगसू?, ?ासभा? मT कहा गया
है-
यथैका रेखा शत?ाने शतं दश?ाने दश एका च एक ?ाने दश एका च एक?ाने यथा चैक?ेिप ?ी माता चो?ते
दुिहता

?सा चेित ।
11
इसी <कार श?राचायK जी ने X?सू?भा? मT कहा है-
यथा एकोऽिप सन् देवदqः लोके ?dपं सp.?dपं च अपे?
अनेकश
N<?य-भा?वित - मनु?ः, X?णः, ?ोि?यः,
वदाः, बालः , युवा, ?िवरः, िपता, पु?ः, पौ?ः, `ाता, जामाता इित । यथा च एकािप सती रेखा (अ?ः) ?ान?
ेन

िनिवशमाना एक-दश-शत-सह?ािद शN<?
यभेदं अनुभवित, तथा
सp.?नोरेव ......
इससे यह <मा-णत होता है िक श?राचायK जी के समय मT दशमलव एवं ?ाना? प?ित का िवकास हो चुका था ।
िव?ुपुराण मT भी इसका <स? है-
?ानात् ?ानं
दशगुणमेक
?
ाद्
गु'ते ि?ज ।
ततोऽ?ादशमे भागे पराधKम-भधीयते ॥
12
हे ि?ज! एक ?ान से
दूसरा
?ान दशगु-णत है, इस-लये 18वां ?ान 10
17 होता है ।

10 ल-लतिव?र, 168-69.
11 III. 13.
12 िव?ुपुराण, 6.3.4.

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भारत मे लगभग 595 A. D से लेकर 972 A. D तक एसे -शलालेख िमले हW जो उस समय मT दशमलव प?ित क1 <-सि?
होने का <माण देते हW । <ाचीन प?ित एवं नवीन प?ित दोनों मT बडी स?ाओं को बायT रखा जाता था पर?ु नवीन प?ित मT
अ?ों क1 .?ित (place value) को इि?त िकया जाता है । -शलालेखों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है िक आठवीं
शताNी मT दशमलव प?ित बhत <-स? हो चुक1 थी । इितहासकारों का मानना है िक ?ीक मT अ?र स?ेत -च?ों का अिव?ार
700 B. C मT हो चुका था पर?ु ईसा क1 <थम शताNी मT यह पूणK dप से िवक-सत हो चुक1 थी । कहने का अ-भ<ाय यह है
िक अ?र स?ेत -च?ों को जनसामा तक पhंचने तक लगभग 900 वषK लग गये । इसी <कार अरब मT भी अ?र स?ेत -च?ों
को <-सि? िमलने मT लगभग 600 वषK लग गये । इ%ीं त?ों के आधार पर हम कह सकते हW िक ?ाना? प?ित का भी 100
B. C के लगभग अिव?ार hआ होगा और आठवीं शताNी तक जनसामा तक पhंच गई ।
शNा? प?ित (
भूतस
?ा) (Word numerals)
शNा? प?ित और इसका दशमलव मT <योग ग-णत मT बhत बडा योगदान है । ऋ"ेद का उदाहरण हम इससे पूवK दे चुके हW ।
इस प?ित के अ?गKत स?ाओं को -लखने के -लये भारतीय ग-णतों एवं खगोलिवदों ने एसी प?ित का िनमाKण िकया -जससे
बडी बडी स?ाओं को सुलभता से -लखा जा सके । ?ोकब? होने के कारण -चरकाल तक ?रण रखने के स?भK मT यह प?ित
बhत ही <-स? hई । यह प?ित सवाK-धक <ाचीन एवं <-स? मानी जाती है । इस प?ित को भूतस?ा के नाम से जाना जाता है
। भूतस?ा ''भूतानां स?ा'' अथाKत् <कृित सp?ी अ? जैसे पृ?ी, सूयK, च?, ?ह, न??, समु?, पवKत, अि?, आकाश, ने?,
शरीरा?, -शव, इ?, मनु, राम, ऋतु, प?, ित-थ, िदशा इ?ािद एवं इनके पयाKयवाची । नीचे दी गई सा,रणी 2 मT अ?ों को
उनके सtािवत भूतस?ा सp.?त शNों के सामने दशाKया गया है ।

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अि?पुराण मT सवK<थम ?ाना?ों के साथ शNा?ों का <योग िकया गया है । भ1ो~ल ने बृह?ंिहता क1 ?ा?ा मT पौ-लश
-स?ा? (400 A. D) क1 चचाK करते hये इसमT ख = 0, ख = 0, अ? = 8, मुिनः = 7, रामः = 3, अ-? = 2, ने? = 2,
अ? = 8, शर = 5, राि?पाः = 1 िदया गया है । ''अ?ानां वामतो गितः '' इस िनयम से 158237800 <ा0 hआ । सूयK-स?ा?
(300 A. D), प-स?ा.?का (505 A. D), महाभा?रीय (522 A. D), X??ुट-स?ा?ः (628 A. D), ि?शितका
(750 A. D) एवं ग-णतसारस?हः (850 A. D) इ?ािद -स?ा? ??ों मT ?हों के भगणमान, सौरमास, चा?मास,
अ-धकमास, ?यमास इ?ािद क1 स?ायों को बताने के -लये शNा? प?ित का <योग सवK? िकया गया है । बखशाली
पा$ु-लिप (Bakhshālī manuscripts) (300 A. D) मT शNा? प?ित को इस <कार िदया गया है षिa
ंश
? (26),
ि?पा? (53), एकोनि?
ंशत्
(29) .... इ?ािद स?ा बताई गई हW इसके िवपरीत 54 के -लये चतुः (4), प (5) -लखा गया
है । -जनभ?ग-ण (575 A. D) ने ''बृहlे?समास'' मT स?ाओं को बायT से दायT -लखने का ?म बताया है पर?ु <ायः यह
देखा गया है िक शNा? दायT से बायT <योग िकये जाते हW । सभी -स?ा? ??ों मT दांये से बायT -लखने क1 ही <था पाई जाती है

आयKभ1कृत अ?रा? िनdपण िव-ध
वगा
K?
रा-ण वगUऽवगUऽवगा
K?
रा-ण कात् ?ौ यः ।
खि?नवके ?रा नव वगUऽवगU नवा?वगU वा ॥
13
वगाK?र (क से म, -लखने चािहये) वगK?ान मT एवं अवगK (य से ह) अवगK ?ान मT । (वगाK?रों के मान ?मशः 1, 2, 3 ....
25 तक हW) क से लेकर (<थम अवगाK?र का मान) य = ञ+म (5+25) है । नौ जोडों मT शू (18 बार) -लखT (?ानिनdपण
के -लये -लखT) सभी 9 ?रों को -लखT । (<?ेक जोडे मT वगK और अवगK के ?ान पर एक ?रा?र -लखT) वगK (अवगK) ?ान मT
अव*कता पडने पर 9 से ादा जोडे भी बना सकते हW ।
आयKभट (499 A. D) ने एक एसी प?ित का अिव?ार िकया -जसमT ?र एवं ?नों क1 सहायता से स?ाओं को -लखा
जाता था । इस प?ित मT क से म तक 25 ?नों को वगK कहा जाता हW एवं ?मानुसार इनका मान 1 से 25 तक है । य से ह
तक वण\ को अवगK कहा जाता है । इन अवग\ का मान ?मशः 30 से 100 तक माना गया है । यह -स?ा? दशमलव ?ाना?
(decimal place value) को पु? करता है । आयKभट ने ?ाना? िनcप के -लये ?रों का <योग िकया । ?ोक मT िदया
गया िववरण नीचे दी गई सा,रणी मT ?? है । एक उदाहरण के मा?म से इस ?ोक के भाव को सा,रणी क1 सहायता से
समझने का <यास करTगे ।
उदाहरण के -लये हमने आभKटीय से ही एक शN ''?ुघृ'' -लया है । ?ोक मT ख् + यु + घृ तीन अ?र हW । सवK<थम हमT यह
देखना है िक ?न वगK वाला है या अवगK वाला । त~?ात् यह देखना है िक ?नों के साथ कौनसा ?र सp.?त है । जो
वगK हो एवं जो सp.?त ?र हो उसके अनुसार सा,रणी मT ?ािपत करTगे तो ''शN'' का मान आ जायेगा । हमारे उदाहरण मT
''ख'' वगK वाला हW एवं इससे ''उ'' ?र सp.?त है । हमने ''ख'' को सा,रणी मT 'उ' के नीचे वगK?ान मT रख िदया, इसी <कार
'य' को भी िकया । सjूणK <ि?या करने पार 4320000 <ा0 hआ । सा,रणी 3 मT ?? है ।
इसमT V से अ-भ<ाय वगKस?ा से है एवं A से भाव अवगK स?ा से है । इस <ि?या को
दूसरे
<कार से भी दशाKया जा सकता है
। इस <ि?या के अ?गKत हम अवगाK?रों के मान 3 से 10 तक मानते हW । िफर अ से और तक सभी 9 ?रों के मान वगाKवगK
?नों के -लये ?ािपत करते हW । इस िवषय को सा,रणी 3 मT ?? िकया गया है ।
उदाहरण - ?ुघृ = खु + यु + घृ िदया गया है । ि?तीय <कार के अनुसार ''ख्'' वगाK? है और इसका मान 2 है, इसके साथ
''यु'' है जोिक अवगाK? है एवं ''उ'' ?र इसके साथ है, इसका मान 10
5 है, इसी <कार ''घ'' का मान 4 है एवं यह वगाK? है,
''ऋ'' ?र इसके साथ है और इसका मान 10
6 है । इस <कार करने पर

13 आयKभटीयम्, गीितकापादः , ?ोकः 2.

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4 X 10
4 + 3 X 10
5 + 4 X 10
6= 4320000
<ा0 hआ । य?िप यह प?ित अ-धक जिटल है पर?ु बडी बडी स?ाओं को -लखने मT स?म है । अ-धक जिटलता के कारण
िकसी ओर सै?ा.?क ?? मT इसका उ?ेख नहीं िमलता । िनh-ल-खत सा,रणी 4 मT आयKभट ?ारा <दq ?रों के वगK एवं अवगK
?ानों के मानों को िदया गया है ।

आयKभट क1 दशमलव प?ित (स?ा?ान िनवKचन)
एकं च दश च शतं च सह?
मयुतिनयुते
तथा <
युतम्

को<बुKदं च वृ?ं ?ाना?ानं
दशगुणं
?ात् ।।
14
आयKभटीयभा? मT भा?र <थम ने बhत ही ?? ढंग से दशमलव प?ित का िनcपण िकया है । त?था-
एकं च दश च शतं च सह?म् । एतेषां एकदशशतसह?ाणां <थमि?तीयतृतीय-चतुथाKिन ?ानािन । तु पादपूरणे । अयुिनयुते
अयुतं च िनयुतं च अयुतिनयते । अयुत? पमं ?ानम् । दशसह?ा-ण अयुतम् । िनयुत? ष?ं ?ानम् । िनयुतं ल?ः । तथा
तेनैव <कारेण <युत? स0मं ?ानम् । दशल?ाः <युतम् । कोिटः , को<ाः अ?मं ?ानम् । ल?ाः शतं, कोिटः । अबुKदम्,
अबुKद? नवमं ?ानम् । दशको<ोबुKदम् । वृ?म्, वृ?? दशमं ?ानम् । कोिटशतं वृ?म् ।
?ाना?ानं दशगुणं ?ात् । ?ाना?ानमत् दशगुणं ?प,रक.?त?ानात् उqरं ?ानं दशगुणं भवतीित यावत् ।
िकमथKिमदमु?ते । ननु च एतािन ?ानािन अन?रापे?या दशगुणाेव । य?े_ोऽ?ानप,र?हाथM वचनं तथा सित
?ाना-भधानमनथKकम् । कुतः ? ?ानात् ?ानं दशगुणं ?ािद?
नेनैवा
--भिहता, अ-भिहत?ानप,र?ह? -स??ात्
। नैषः दोषः ।
?ाना?ानं दशगुणं ?ािद?ेत??णम् । एकादीिन ?ाना? ल?ण?ोदाjतािन । नैतद.? । न िह सू?काराः सं?
ेपिवव
?वो
ल?णमुदाहरणं Xूयुः । नैवं िवायतेव। यदा ल?णमुदाहरणं च िनरथKकं तिहK एकािदवृ?ा?ायाः स?ायाः संा िनd;?े ।
?ाना?ानं दशगुणिमित एकािदसङ?ायाः ?ानिनdपण-मा?मेव उपिद*ते, उपयोगाभावा? स?ासंा ।
अ?ैत??म् - केषां ?ानानां शिwः, यदेकं dपं दश शतं सह?ं च भवित । स?ां चैत?ां ?ानशwौ ?यका
िवशेषे???भाजनाः ?ुः । ??ं च िवव?ातोऽ?ं बh च ?ात् । एवं च सित लोक?वहाराथाभाव<स?ः । नैषः दोषः ।
?ाने ?.?तािन dपा-ण दशादीिन कृतािन ।
िकं
तिहK तैः । तािन <ितपा??े लेखागमायेन । अथवा ल?थK ?ानािन <?{?
इ?ुwम?ा-भः । ास? ?ानानाम् -


14 आभKटीयम्, ग-णतपादः, ?ोक 2.

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० ० ० ० ० ० ० ० ० ०
इसी स?भK मT लीलावती मT भा?राचायK ने भी कहा है-
एकदशशतसह?
ायुतल
?<
युतकोटयः
?मशः ।
अबुKदमKं खवKिनखवKमहाप?श?व??ात् ॥
जल-ध?ा?ं म?ं पराधKिमित
दशगुणो
qराः संाः ।
स?ायाः ?ानानां ?वहाराथM कृताः पूवXः ॥
एक, दश, शत, सह?, अयुत, ल?, <युत, कोिट, अबुKद, अK, खवK, िनखवK, महाप?, श?ु, जल-ध, अ?, म?, पराधK इस
<कार पूवाKचाय\ ने स?ा के ?वहार के -लये पूवK पूवK क1 अपे?ा उqरोqर दशगुणी संा कही है, जैसे - एक से दशगुणा दश,
दश से दशगुणा शत, शत से दशगुणा सह? इ?ािद ।
सा,रणी 5 मT आयKभट एवं भा?र II के स?ान?ानिनवKचन िदये गये हW । कोिट 10
8 तक दोनों क1 स?ायT समान हW पर?ु
10
9 मT आयKभट ने वृ? एवं भा?र II ने अK कहा गया है । आयKभट के स?ा?ानिनवKचन 10
8 तक ही है जबिक भा?र II
के पराधK 10
17 तक हW । ?ीधर (750 A. D) का स?ािनवKचन दो ?ानों महाप? और जल-ध को छोडकर भा?र II के
स?ािनवKचन के समान ही है । महाप? और जल-ध के ?ान पर ?ीधर ने ?मशः महासरोज एवं स,रतापित शN का <योग
िकया है । नारायण प.$त (1356 A. D) ने ?ीधर के अK, महासरोज एवं स,रतापित के ?ान पर ?मशः सरोज, महाK
एवं पारावार शNों का <योग िकया है ।

कटपयािद प?ित
कटपयािद से अ-भ<ाय क, ट, प, य इ?ािद वण\ से सp.?त है -जनको अ?ों के ?ान पर -लखा जाता है । इस प?ित के
अनुसार
?र अकेला रहने पर शू माना जाता है पर?ु ?न के साथ रहने पर उसका कोई मान नहीं रहता । क से लेकर ह
तक के ?नों का मान सा,रणी 6 मT बताया गया है-

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इस प?ित का सवK<थम <योग वरc-च (400 A. D) ने च?वा?ों क1 रचना करने के स?भK मT िकया था । उनका <थम
च?वा? ''गीनKः ?ेयः'' है । इसको अगर हम कटपयािद प?ित से देखT तो 12
o03' बनेगा ।
नीचे िदया गया ?ोक श?रवमKन (1830 A. D) क1 स?{माला से उ?ृत है जो कटपयािद प?ित क1 <ि?या को बताता है-
नञावच? शूािन स?ा कटपयादयः ।
िम?े तूपा?ह0स?ा न च -च?ो हलः ?रः ॥
15
अथाKत् न, ञ एवं सभी ?रों को शू मानो । शेष क, ट, प, य इ?ािद ?नों को स?ा मानो । ?मशः इनको 1, 2, 3
इ?ािद अ?ो से अि?त करT । ?रों का ?नों के साथ होने पार ?रों का कोई मान नहीं होता । संयुwा?रों मT से उसी ?न
को लेना है -जसके साथ ?र हो । उदाहरण - ''हे िव?ो िनिहतं कृ?ं'' वा? लेने पर हम देखTगे िक हे = 8, िव = 4, ?ो =
5, िन = 0, िह = 8, तं = 6, कृ?म् = 01 <ा0 hआ, स?ा 1680548 hई । इसी <कार हम िकसी भी शN को स?ा मT
प,रवितKत कर सकते हW ।
दशमलव प?ित के मह? को बताते hये जाने माने ग-णत ले>ेस (Laplace) (1749-1827 A. D) ने कहा है
The idea of expressing all quantities by nine figures (or digits) whereby is imparted to
them both an absolute value and one by position is so simple that this very simplicity
is the reason for our not being sufficiently aware how much admiration it deserves.
शू क1 प,रक?ना एवं <माण
''भारत ने िव? को शू िदया है'' यह वा? सुनने मT बhत ही िव-च? लग रहा है लेिकन यह स? है । शू पर अगर एक नजर
डालT तो कुछ िवशेष नहीं िदखता है पर?ु अगर इसके अ?र से कुछ देखT तो सब कुछ िदखाई पडता है । यही इसका रह? है ।
शू का अिव?ार िकसने िकया ? यह <? <ायः सभी क1 म.?? मT दौडता रहता है पर?ु इसका उqर इतना आसान नहीं है,
इसका कारण इसक1 जिटलता है । उqर िमल भी सकता है पर?ु स?ोषजनक उqर पाना थोडा किठन है । शू ग-णत के ?े?
मT ?यं मT एक बhत बडा अनुस?ान है । इितहास के प?ों को कुरेदने से शू क1 प,रक?ना के -भ? -भ? ?ोत हमT िमलते हW ।
भारतीय प,रपे? मT शू का <योग दो िव-भ? प,र.?ितयों मT होता है । एक तो शू ''अभाव'' को ?ोितत करने के -लये और
दूसरा
अ? के dप मT । zero जो हम बोलते हW वह अरबी के sifr शN से उ~? hआ है इसको cipher भी कहा जाता है ।
शू के स?भK मT G. B. Halsted ने कहा है-
The importance of the creation of the zero can never be exaggerated. This giving to
airy nothing, not merely a local habitation and a name, a picture, a symbol, but
helpful power, is the characteristic of the Hindu race whence it sprang. It is like
coining the Nirvāṇa into Dynamics. No single mathematical creation has been more
potent for the general on-go of intelligence and power.
16
शू ग-णत का इतना सहज िवषय नहीं है । एसा नहीं है िक िकसी एक ?िw ने अनुस?ान िकया और अ लोगों ने इसको
<योग मT लाना <ारt कर िदया । िप?ल के छ?ः सू? (300 B. C) मT शू शN का <योग िकया गया है। त?था-



15 स?{माला, पा?<करणम्, ?ोक 3.
16 G. B. Halsted, On the foundation and technique of Arithmetic, Chicago, 1912, p. 20.

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ि?रधU । dपे शूम् । ि?शूे । तावदधU त?ु-णतम् ।
17
यहां शू को एक -च? के dप मT <योग िकया गया है न िक अ? के dप मT । पा-णिन (500 B. C) ने अ?ा?ायी मT अदशKनं
लोपः '' सू? मT अभाव क1 तरफ स?ेत िकया है ।
-चरकाल से ''यावत्-तावत्'' का <योग ग-णत मT एसी स?ाओं के -लये िकया गया है -जनका मान अात होता है पर?ु
बखशाली पा$ु-लिप (300 A. D) मT ''यावत्-तावत्'' के ?ान पर ''य`?ा'' शN का <योग िकया गया है और इसके -लये
शू (0) -च? का <योग िकया गया है । प-स?ा.?का (505 A. D) मT भूतस?ा प?ित मT स?ाओं को -लखने के -लये
शू का <योग िकया गया है ।
18 -जनभ? ग-ण (529-589 A. D) ने भी शू के स?भK कुछ स?ाओं को अपने ??
''बृहlे?समास'' िदया है । यथा 224400000000,
19 3200400000000
20 इ?ािद <मुख उदाहरण हW ।
X?गु0 (628 A. D) के समय से -स?ा?ोितष के ??ों मT शू सp?ी चचाK के <माण िमलते हW । X??ुट-स?ा? के
18वT अ?ाय कु1का?ाय मT ''धनणKषिaधम्'' क1 चचाK क1 गई है -जसमT शू के साथ धन, ऋण, गुणन इ?ािद के करने क1
<ि?या बताई गई है । इस <ि?या से सp.?त िनh-ल-खत छः ?ोक एवं इनका िववरण इस <कार हW-
धनयोधK
नमृणमृणयोध
KनणKयोर?रं समै?ं खम् ।
ऋणमै?ं च
धनमृणधनशू
योः शूयोः शूम् ॥
ऋण + शू → शू
धन + शू → धन
शू + शू → शू
ऊनम-धकाि?शो?ं धनं धना`णमृणाद-
धकमूनात्

??ं तद?रं ?ा`णं
धनं धनमृणं भवित ॥
शू
िवहीनमृणमृणं
धनं धनं भवित शूमाकाशम् ।
शो?ं यदा
धनमृणा
`णं धना?ा तदा ?े;म् ॥
ऋण X शू → शू
धन X शू → धन
शू X शू → शू
ऋणमृणधनयोघा
Kतो
धनमृणयोध
Kनवधो धनं भवित ।
शूणKयोः खघनयोः खशूयोवाK वधः शूम् ॥
ऋण X शू → शू
धन X शू → धन
शू X शू → शू

17 छ?ः शा?म्, 8.28-31
18 <थम अ?ाय, ?ोक 17, ि?तीय अ?ाय, ?ोक 12, चतुथK अ?ाय, ?ोक 7, 11, अ?म अ?ाय, ?ोक 5, 45.
19 Bṛhatkṣetrasamāsa of Jinabhadra Gani, edited with the commentary of Malayagiri, Bombay, i. 69.
20 Bṛhatkṣetrasamāsa of Jinabhadra Gani, edited with the commentary of Malayagiri, Bombay, i. 71.

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धनभwं
धनमृण
j
तमृणं
धनं भवित खं खभwं खम् ।
भw
मृणेन धनमृणं धनेन
j
तमृणमृणं
भवित ॥
खो?
ृतमृणं
धनं वा त?ेदं
21
खमृणधनिवभ
wं वा ।।
ऋणधनयोवKगKः ?ं खं ख? पदं कृितयKत् तत् ॥
22







इसी <कार भा?र (1150 A. D) ने भी अपने ?? बीजग-णत मT शू सp?ी ग-णत क1 चचाK क1 है । भा?र के अन? क1
क?ना ईशावा?
ोपिनषद्
के म?ल?ोक के समान ही है ।
23 भा?र ने बीजग-णत मT कहा है-
अ.?न् िवकारः खहरे न राशाविप <िव?े?िप
िनःसृतेषु

बh?िप ?ा?
यसृि
?
कालेऽन
?
ेऽ
?
ुते भूतगणेषु
य?त् ।।
24
अथाKत् िकसी स?ा को शू से भाग देने पर ल.P िव?ु भगवान क1 तरह अन? होगी । लीलावती मT भी भा?र ने उदाहरण
सिहत इस िवषय पर चचाK क1 है ।
25
अ?ों का िवकास
-लखने क1 <ि?या का <ारt भारत मT कब से hआ इस पर इितहासकारों मT मतभेद है । कितपय पा?ा? इितहासकारों का
कहना है िक 800 B. C के लगभग प-?म देशों से भारत मT अ?ो को -लखने क1 परjरा का <ारt hआ पर?ु यह तकKस?त
<तीत नहीं होता ?
ोंिक
ऋ"ेद मT ''सह?ं मे ददतो अ?कर'ः''
26 का उ?ेख है -जसका अ-भ<ाय ''मुझे 1000 एसी गायT
चािहये -जनके कान पर 8 -लखा हो'' इस कथन मT कुछ इितहासकारों को आपिq है पर इसका समाधान पा-णनी ने ''कणZ
वणKल?णात्''
27 से कर िदया है । इन त?ों के आधार पर पा?ा? इितहासकारों के तक\ का ख$न कर िदया गया है ।
<ाचीन अ?
मोहनजोदडो (3000 B. C) से <ा0 अ? -लिप मT ??ता का अभाव है । इसमT छोटी छोटी रेखायT दी गई हW जो िक छोटे अ?ों
1, 2, 3, 4 इ?ािद को ?ोितत करती हW बडी स?ाओं को -लखने के <माण वहां नहीं िमलते है पर?ु ऋ"ेद एवं यजुवUद मT बडी
स?ाओं को -लखने के <माण हमारे पास उपलP हW, यजुवUद के 10
12 क1 चचाK हम पीछे कर चुके हW । अशोक के समय मT

21 शू को छोडकर अ अ? अथवा स?ा जब शू से भाग दी जाती है तो उस अ? अथवा स?ा को त?ेद कहा जाता है ।
22 X??ु ट-स?ा?, कु1का?ाय, ?ोक 30-35.
23 Bijagaṇita of Bhāskarācārya, Ed. by Muralidhara Jha, Benaras 1927, vāsanā on Khaṣaḍavidham 3, p. 6.
24 बीजग-णत, खषिaधम्, ?ोक 20.
25 Līlāvatī of Bhāskarācārya, Ed. by H. C. Bannerjee, Calcutta 1927, Vāsanā on verses 45-46, pp. 14-15.
26 ऋ"ेद, 10-62.7
27 लघु-स?ा?कौमुदी, 6-2.12.

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Xा?ी और ?ो?ी का <चार था यह अशोक के -शलालेखों से ात होता है । नीचे हम ?ो?ी एवं Xा?ी अ?ों का सं?ेप मT िववरण
<?ुत कर रहे हW ।
?ो?ी अ?
?ो?ी को दायT से बायT -लखा जाता था । यह प?ित गा?ार एवं पाब इ?ािद ?े?ों मT अ-धक <योग होती थी । इितहासकारों
का मानना है िक इसका <योग 400 B. C से लेकर 300 A. D के बीच रहा होगा । अशोक के -शलालेखों मT ?ो?ी के 1, 2,
3, 4 तक के अ?ों का <योग hआ है जो इस <कार हW –

इस प?ित का िवकास शकों के -शलालेखों (100 B. C) मT िदखाई देता है । जो इस <कार है (image khroshti
complete) इसमT 9 के अ? के -लये कुछ नहीं िदया गया है । इितहासकार यह भी मानते हW िक ?ो?ी एक िवदेशी -लिप है
-जसका काला?र मT भारत मT <चार hआ ।
Xा?ी अ?
इस अ? प?ित का <चार सjूणK भारतवषK मT रहा है । यह
शु
? dप से भारतीय मूल क1 अ? प?ित है । सा?ों के अभाव मT
यह िन-?त तौर पर कह पाना बhत किठन है िक Xा?ी अ?ों का आधार ?ा है पर?ु इस अ? प?ित का <योग सवK<थम अशोक
(300 B. C) के -शलालेखों मT पाया गया है । Xा?ी अ?ों मT
अनुना
-सक, अनु?ार एवं उप?ानीय का बhशः <योग hआ है
अतः यह सीधा भारतीय मूल क1 होने का <माण है ?
ूंिक
यह सभी -च? सं?ृत मT पाये जाते हW ।

नानाघाट अ?
नानाघाट क1 गुफाओं से <ा0 अ? प?ित भी भारतीय मूल क1 ही है, इन गुफाओं का िनमाKण राजा वेदी?ी ने िकया था जो इस
<कार है
28-

एसा माना जाता है िक भारत मT <योग होने वाली <?ेक -लिप अथवा अ? एक
दूसरे
से -भ? है पर?ु सबका ?ोत Xा?ी -लिप
ही है । अल बैdनी (Al-Bīrūnī) के शNों मT –
As in difference parts of India, the letters have different shapes the numerical signs, too,
which is call aṅka, differ.
29

28 “On Ancient Nāgari Numeration from an inscription at Nānāghāt'', Journ. of the Bombay Branch of the
Royal Asiatic Society, 1876, vol. XII, p. 404.

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वतKमान अ? प?ित
वतKमान मT भारत मT <युw होने वाली अ? प?ित का नाम ''नागरी'' है जो िक नीचे <दq सा,रणी 7 के अनुसार है-

कितपय िव?ानों के अ? सp?ी मत
ग-णत एवं
खगोलिवद्
Pierre Simon Laplace (1749-1827 A. D) ने भारत क1 <ंशसा करते hये कहा है-
The idea of expressing all numbers by the ten digits whereby is imparted to them
both an absolute and a positional value is so simple that very simplicity is the reason
for our not being sufficiently aware how much admiration it deserves. It is India that
gave us this ingenious method.
िबभूितभूषण दqा के शNों मT
30 -
The Hindus adopted decimal system very early. The numerical language of no other
notation is so scientific and attained as high a state of perfection as that of Ancient
Indians. In symbolism they succeeded with ten digits to express any number most
elegantly and simply. It is the beauty of Hindu numerical notation which attracted
the attention of all civilized people of the world and charm them to adopt it.
Prof. J. Ginsburg के शNों मT
31 -
Hindu notation was carried to Arabia about 770 A. D by Hindu scholar Kanka who
was invited from Ujjain to the famous court of Baghdad by Abbaside Khalif Ali-
Mansur. Kanka taught Hindu Astronomy and Mathematics to Arab scholars and with
his help, they translated `Brahma-Sphuta-Siddhanta' of Brahmagupta.
अरब के इितहासकार Abul Hassan Al-Masūdi (943 A. D) कहते हW-
A Congress of Sages at the command of creator Brahma invented the nine digits and
also their astronomy and other sciences.
अल-बैdनी (Al-Birūni) एक <-स? पारसी लेखक थे जो िक भारत मT लगभग 13 वषK (1017-1030 A. D) तक रहे एवं
उ%
ोंने
''ता,रक अलिह?'' (Chronical of India) नाम क1 पु?क -लखी । उसमT अल-बैdनी कहते हW-
The numerical signs which we use are derived from the finest forms of Hindu digits. I
have composed a treatise showing how far possibly, the Hindus are ahead of us in this
subject.
िन?षK
सृ?ािद से ही ग-णत िकसी न िकसी dप मT मानव जीवन मT िव?मान रहा है ?
ूंिक
कोई भी ?वहार ग-णत के अभाव मT सtव
नहीं । इसी बात को ?ान मT रखते hये महावीराचायK ने अपने ?? ग-णतसारस?ह मT बडे सु?र शNों मT ग-णत के मह? को

29 Alberuni’s Indian, I, p. 74
30 Indian Historical Society, vol. 3, pp. 530-540.
31 New light on our numbers, Bulletin of American Mathematical Society, vol. 23, pp. 366-369.

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<?ुत िकया । हमने इस शोध प? मT अ?ों क1 उ~िq सp?ी त?ों को भारत के स?भK मT <ितपािदत करने का <यास िकया
एवं भारत मT समय समय पर िव?मान स?ाओं को -लखने वाली प?ितयों का वणKन िकया । दशमलव प?ित एवं शू के
अनुस
?ान इ?ािद िवषयों पर िवशेष चचाK क1 गई । अपने तक\ को पु? करने के -लये पा?ा? इितहासकारों एवं ग-णतों के
मतों को भी यथा?ान <?ुत िकया गया है ।
स?भ
K??

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