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ppsumaria 13 views 7 slides Sep 22, 2025
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it will make the student to know about our vedic knowldge


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VEDIC SCIENTISTS collected by : Perfect Public School

MAHARSHI KANAAD He was believed to have born in the year 600 BC or 800 BC in Gujarat, India. His father was a philosopher Ulka . His birth name was Kashyap . As a child, he always accompanied his father and observed many things. But despite of all those things around him, his interest was always on the smallest things. He was able to look beyond the general concepts which were underlying in the universe. When he was able to conceptualize the idea of the smallest particle, he noted down his ideas and was able to explain it to people. Many people also with great reverence call him Acharya Kanad . The theory of “ Anu ”, the atom was postulated even before Dalton’s theory. But, may people do not consider it, as it is not highly empirical. He was able to bring a theory on the creation and existence of the universe. He was able to parallelly bring mystical realities of “ Atma ”, along with “atom”, which is bound by energy. Every “ Atma ” wants moksha, which is the ulterior goal of every soul born in this world. He described the universe with six categories, which are Dravya , which is defined as a substance. Guna , which is defined as the quality. Karman, which is defined as a motion. Samanya , which is defined as Generic Species. Visesa , which is defined as a unique Trait, and Samavaya is defined as inherence

महर्षि भारद्वाज महर्षि भारद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहित, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं। पर आज यंत्र सर्वस्व तथा शिक्षा ही उपलब्ध हैं। वायुपुराण के अनुसार उन्होंने एक पुस्तक आयुर्वेद संहिता लिखी थी, जिसके आठ भाग करके अपने शिष्यों को सिखाया था। चरक संहिता के अनुसार उन्होंने आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था।

महर्षि बौधायन बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्या‍मितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं। दरअसल, 2800 वर्ष (800 ईसापूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया।

महर्षि भास्कराचार्य प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था और उन्होंने अपने दूसरे ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि' में इसका उल्लेख भी किया है। गुरुत्वाकर्षण के नियम के संबंध में उन्होंने लिखा है, 'पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ स्वशक्ति से अपनी ओर खींच लेती है। इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है।' इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी में गुत्वाकर्षण की शक्ति है। भास्कराचार्य द्वारा ग्रंथ ‘लीलावती’ में गणित और खगोल विज्ञान संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। सन् 1163 ई. में उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढंक लेता है तो सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती है तो चन्द्रग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जबकि लोगों को गुरुत्वाकर्षण, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक जानकारी थी।

महर्षि पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चर्चा में थे। पतंजलि के लिखे हुए 3 प्रमुख ग्रंथ मिलते हैं- योगसूत्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रंथ। पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता है। पतंजलि ने योगशास्त्र को पहली दफे व्यवस्था दी और उसे चिकित्सा और मनोविज्ञान से जोड़ा। आज दुनियाभर में योग से लोग लाभ पा रहे हैं। पतंजलि एक महान चिकित्सक थे। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे- अभ्रक, विंदास, धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। पतंजलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग (195-142 ईपू) के शासनकाल में थे। राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (एम्स) ने 5 वर्षों के अपने शोध का निष्कर्ष निकाला कि योगसाधना से कर्करोग से मुक्ति पाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि योगसाधना से कर्करोग प्रतिबंधित होता है।

महर्षि चरक अथर्ववेद में आयुर्वेद के कई सूत्र मिल जाएंगे। धन्वंतरि, रचक, च्यवन और सुश्रुत ने विश्व को पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर आधारित एक चिकित्साशास्त्र दिया। आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। ऋषि चरक ने 300-200 ईसापूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चरक संहिता' लिखा था। उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है। आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय में गंभीर शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया। चरक एवं सुश्रुत ने अथर्ववेद से ज्ञान प्राप्त करके 3 खंडों में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे। उन्होंने दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया, साथ ही उन्होंने अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवनशैली का वर्णन किया जिसमें कि कोई रोग और शोक न हो। आठवीं शताब्दी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा। चरक के ग्रंथ की ख्याति विश्वव्यापी थी।
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