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Language: none
Added: May 02, 2024
Slides: 12 pages
Slide Content
Kabir Das
ke dohe
Presented by Dr. Mulla Adam Ali
www.drmullaadamali.com
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में
बुराई खोजने गया, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं
मिला और जब मैंने खुद के अंदर झांका तो
मुझसे खुद से ज्यादा बुरा कोई इंसान नहीं मिला।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि धैर्य रखें धीरे-
धीरे सब काम पूरे हो जाते हैं, क्योंकि अगर कोई
माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे
तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।
Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि चिंता एक ऐसी डायन है
जो व्यक्ति का कलेजा काट कर खा जाती है। इसका इलाज
वैद्य नहीं कर सकता। वह कितनी दवा लगाएगा। अर्थात
चिंता जैसी खतरनाक बीमारी का कोई इलाज नहीं है।
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।।
Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दस जी कहते हैं कि परमात्मा तुम
मुझे इतना दो कि जिसमें मेरा गुजरा चल जाए,
मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले
मेहमानों को भी भोजन करा सकूं।
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।।
Kabir Ke Dohe
अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि शिक्षक और
भगवान अगर साथ में खड़े हैं तो सबसे पहलो गुरु के
चरण छूने चाहिए, क्योंकि ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता
भी गुरु ही दिखाते हैं।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए,
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए
Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं व्यक्ति को हमेशा ऐसी
बोली बोलनी चाहिए जो सामने वाले को अच्छा लगे
और खुद को भी आनंद की अनुभूति हो।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
Kabir Ke Dohe
अर्थ- जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद आते-जाते
राही को छाया नहीं दे सकता है और उसके फल तो इतने ऊपर लगते हैं
कि आसानी से तोड़े भी नहीं जा सकते हैं। उसी प्रकार आप कितने भी
बड़े आदमी क्यों न बन जाए लेकिन आपके अंदर विनम्रता नहीं है और
किसी की मदद नहीं करते हैं तो आपका बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं है।
जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय |
मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय ||
Kabir Ke Dohe
अर्थ : जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो।
मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर-अमर हो जाता
है। शरीर रहते-रहते जिसके समस्त अहंकार समाप्त हो गए,
वे वासना - विजयी ही जीवनमुक्त होते हैं।
मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत |
मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत ||
Kabir Ke Dohe
अर्थ : भूलवश मैंने जाना था कि मेरा मन भर
गया, परन्तु वह तो मरकर प्रेत हुआ। मरने के
बाद भी उठकर मेरे पीछे लग पड़ा, ऐसा यह मेरा
मन बालक की तरह है।
मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ |
जो घर जारो आपना, चलो हमारे साथ ||
Kabir Ke Dohe
अर्थ : संसार - शरीर में जो मैं - मेरापन की
अहंता - ममता हो रही है - ज्ञान की आग बत्ती
हाथ में लेकर इस घर को जला डालो। अपना
अहंकार - घर को जला डालता है।