Karl marks ka vaigyanik samajwad

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About This Presentation

karl marx, scientific socialism


Slide Content

कार्ल मार्क्स का वैज्ञानिकसमाजवाद
https://image.slidesharecdn.com/marxiantheoryofeconomicdevelopment-18
0714074140/95/marxian-theory-of-economic-development-2-638.jpg?cb=153
1554836
द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान
कुमारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश
यहसामग्रीविशेषरूपसेशिक्षणऔरसीखनेकोबढ़ानेकेशैक्षणिकउद्देश्योंकेलिएहै।आर्थिक/वाणिज्यिकअथवा
किसीअन्यउद्देश्यकेलिएइसकाउपयोगपूर्णत:प्रतिबंधहै।सामग्रीकेउपयोगकर्ताइसेकिसीऔरकेसाथवितरित,
प्रसारितयासाझानहींकरेंगेऔरइसकाउपयोगव्यक्तिगतज्ञानकीउन्नतिकेलिएहीकरेंगे।इसई-कंटेंटमेंजो
जानकारी की गई है वह प्रामाणिक है और मेरे ज्ञान केअनुसार सर्वोत्तम है।

उद्देश्य-
●समाजवादी दर्शन की जानकारी
●वैज्ञानिक समाजवाद का ज्ञान
●मार्क्सवादी सिद्धांतों की व्यवहार में क्रियान्वितिका विश्लेषण
●शीत युद्ध उत्तर विश्व में मार्क्सवादी सिद्धांतोंकी प्रासंगिकता का विश्लेषण
●समसामयिक सामाजिक राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भमें वैचारिक सृजन की क्षमता का विकास
कार्लमार्क्स19वींशताब्दीकेजर्मनदार्शनिकलेखक,सामाजिकसिद्धांतकारऔरअर्थशास्त्री
हैं।समाजवादीचिंतनपरंपरामेंउनकीप्रसिद्धिपूंजीवादएवंसाम्यवादकेसंबंधमेंव्यक्तकिए
गएविचारोंकेकारणहै।अपनेमित्रएंजिल्सकेसाथमिलकर1848में‘कम्युनिस्टमेनिफेस्टो’
औरबादमें‘दासकैपिटल’कीरचनाउनकेद्वाराकीगईजिसकाप्रथमभाग1867मेंबर्लिनमें
प्रकाशितहुआ।दूसराऔरतीसराभागमरणोपरांत1885एवं1894मेंप्रकाशितहुआ।यद्यपि
समाजवादीचिंतनकीपरंपरापुरानीहै,किंतुमार्क्सऐसेविचारकहैंजिन्होंनेसमाजवादको
वैज्ञानिकआधारप्रदानकियाऔरसमाजवादकोएकक्रमबद्धदर्शनकेरूपमेंप्रस्तुतकरनेके
साथ-साथउसकीस्थापनाहेतुएकठोसकार्यक्रमभीसुझाया।उनकासमाजवादएक
स्वप्नलोकीयविचारधारामात्रनरहकरएकआंदोलन,कार्यक्रमतथासामाजिकऔरआर्थिक
व्यवस्थाकाएकसिद्धांतहै।समाजवादीचिंतनकीइनविशेषताओंकेकारणहीमार्क्सको
वैज्ञानिकसमाजवादकाजनककहाजाताहै।यद्यपिवर्तमानमेंवैश्विकजगतमेंसमाजवाद
केध्वजवाहकराष्ट्रसोवियतसंघकेपतनएवंविचारधाराकीलड़ाईमेंपूंजीवादकीविजयने
मार्क्सवादीचिंतनकीप्रासंगिकतापरप्रश्नचिन्हलगायाहै,किंतुफिरभीयहएकतथ्यहैकि
बीसवींशताब्दीमेंमार्क्सवादीसमाजवादकरोड़ोंव्यक्तियोंकाधर्मबनाऔरप्रायःसभीदेशयह
विश्वासकरनेलगेकिकल्याणकारीराज्यकीस्थापनाकेलिएमार्क्सवादउत्तममार्गहै।नेहरू
नेमार्क्सवादकेविषयमेंलिखाथाकि‘’मार्क्सवादइतिहास,राज्यशास्त्र,अर्थशास्त्र,मानव
जीवनऔरआकांक्षाओंकीपूर्तिकीएकविधिहै।यहसिद्धांतऔरकार्यक्रमकेलिएपथ
प्रदर्शकहै,यहएकदर्शनहैजोमानवसेसंबंधितक्रियाओंकीव्याख्याकरताहैतथाभूत,
वर्तमान और भविष्य को एक तर्कशील प्रणाली द्वारा प्रस्तुतकरने का प्रयास है। ‘’
प्रेरणा एवं प्रभाव-

मार्क्सकेचिंतनपरशास्त्रीयराजनीतिकअर्थशास्त्रियोंजैसेएडमस्मिथऔरडेविडरिकार्डोका
प्रभावहै।कार्लमार्क्सकेविचारोंकासाम्यवादीसमाजोंजैसे-सोवियतसंघ,चीनऔरक्यूबा
परव्यापकप्रभावपड़ा।औरउनकेचिंतननेव्लादीमीरलेनिनऔरजोसेफस्टालिनजैसे
साम्यवादीनेताओंकेलिएसैद्धांतिकआधारशिलाकाकार्यकिया।उनकायहविचारकि
पूंजीवादमेंअपनेविनाशकेबीजनिहितहैऔरपूंजीवादीसमाजमेंपूंजीपतियोंकालाभ
श्रमिकोंकेश्रमकेशोषणपरआधारितहै,समाजवादीदुनियाकाएकअकाट्यसत्यबनगया।
‘’दुनियाकेमजदूरोंएकहोजाओक्योंकितुम्हारेपासखोनेकेलिएबंधनोंकेअलावाऔरकुछ
नहींहै’’,मार्क्सकायहनारानिसंदेहदुनियाभरकेमजदूरोंकोसंगठितकरनेकाअचूकमंत्र
बना।समसामयिकदौरमेंमार्क्सवादकोउसकेविशुद्धरूपमेंअपनानेवालेपक्षपोषकोंकी
संख्याबहुतकमहैऔरवास्तवमेंजबसे1898मेंयूजनवनएवंबोआर्कजैसेअर्थशास्त्रियोंने
मार्क्सवादीविचारोकाअंग्रेजीमेंअनुवादकियाऔरयहप्रतिपादितकियाकिमार्क्सपूंजीवादी
बाजारऔरउसकेव्यक्तिनिष्ठमूल्योंकोअपनेविश्लेषणमेंसम्मिलितकरनेमेंविफलरहे,
तबसेमार्क्सवादीविचारोंकाअर्थशास्त्रकेक्षेत्रमेंप्रभावकमहोगयाहै,किंतुमार्क्सवादीचिंतन
मेंअभीबहुतसेऐसेविचारहैंजिनसेआधुनिकअर्थशास्त्रीबहुतकुछसीखसकतेहैं।राजनीतिक
क्षेत्रमेंलेनिनवाद,मार्क्सवादीलेनिनवाद,टाटास्कीवाद,माओवाद,उदारतावादीमार्क्सवादके
रूपमेंमार्क्सवादीप्रवृत्तियांअबभीप्रबलहै।अन्यविचारोंकेसाथमार्क्सवादकाविश्लेषण
करतीहुईसंरचनावादीमार्क्सवादीविचारधारा,ऐतिहासिकमार्क्सवाद,प्रघटनावादीमार्क्सवाद,
विश्लेषणवादीमार्क्सवादऔरहीगलवादीमार्क्सवादकेरूपमेंमार्क्सवादकीजीवंतताअनुभव
की जा सकती है।
जीवन वृत्त-
5मई1818कोप्रशाकेट्रायरमेंजन्मेमार्क्सएकसफलयहूदीवकीलकेपुत्रथे,जिन्होंने
मार्क्सकेजन्मसेपूर्वहीलूथरवादकोअपनालियाथा।बोनऔरबर्लिनमेकानूनकीपढ़ाई
करनेकेमार्क्सहीगलकेदर्शनसेपरिचितहुएएवंयुवाहीगलवादीकेरूपमेंविद्यमान
राजनीतिकधार्मिकसंस्थाओंकाविरोधकिया।उन्होंनेडॉक्टरेटकीउपाधिजेना
विश्वविद्यालयसे1841मेंप्राप्तकी।उनकेक्रांतिकारीविचारोंनेप्राध्यापकपदकोप्राप्त
करनेकेमार्गमेंबाधाउपस्थितकी,अतःउन्होंनेपत्रकारकेरूपमेंअपनेकैरियरकोचुनाऔर
बाद में एक उदारवादी समाचार पत्र ‘Rheinische zeitung’’के संपादक बने।

प्रशाकोछोड़नेकेबादमार्क्सनेफ्रांसमेंअपनेजीवनकेकुछवर्षव्यतीतकिएजहांउनका
परिचयअपनेआजीवनमित्रफ्रेडरिकएंजेलसेहुआ।फ्रांससेनिष्कासनकेबादभीकुछसमय
तकबेल्जियममेंरहनेकेबादवेलंदनगएजहांउन्होंनेअपनेजीवनकाशेषभागव्यतीत
किया। 1883 में वही ब्रोंकाइटिस एवं पलोरिसी से उनकीमृत्यु हुई।
मार्क्सवादी सिद्धांत-
मार्क्सकेसमाजवादीविचारउनकेप्रमुखग्रंथों‘कम्युनिस्टमेनिफेस्टो’और‘दासकैपिटल’में
मिलतेहैंजिनपरजर्मनउग्रदार्शनिकों,ब्रिटिशअर्थशास्त्रियोंएवंफ्रांसीसीक्रांतिकेसमाजवादी
विचारोंकाप्रभावदिखाईदेताहै।मार्क्सवादीविचारधाराएकअविभाज्यइकाईहैजिसके
सैद्धांतिकऔरव्यावहारिकदोपक्षहैं।मार्क्सवादीसमाजवादकेनिर्माणकारीसिद्धांतोंको
निम्नांकितशीर्षकोंमेंरखाजासकताहै।प्रत्येकशीर्षकअगलेकेलिएआधारप्रस्तुतकरता
है। -
●द्वंद्वात्मक भौतिकवाद [Dialectical Materialism]
●इतिहास की आर्थिक व्याख्या [ economic explanationof history]
●अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत [ theory of Surplus Value]
●वर्गसंघर्षकासिद्धांतऔरपूंजीवाद[Theoryofclassstruggleand
capitalism]
●सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद [ Dictatorship of Proletariat]
●साम्यवादी समाज [ communist society]
1.द्वंद्वात्मक भौतिकवाद
मार्क्सकेसंपूर्णदर्शनकाआधारद्वंद्वात्मकभौतिकवादहै।साम्यवादकेस्वरूपका
विश्लेषणकरनेकेउद्देश्यसेमार्क्सनेइससिद्धांतकाप्रतिपादनकिया।द्वंद्वात्मक
भौतिकवाददोशब्दोंकासम्मिश्रणहै-द्वन्द्ववादऔरभौतिकवाद।द्वन्द्ववादअंग्रेजीशब्द
‘डायलेक्टिसिज़्म’जोयूनानीभाषाकेडायलॉगशब्दसेबनाहै,काहिंदीअनुवादहै।इसकाअर्थ
होताहै-वादविवादकरना।वादविवादमेंएकदूसरेकाविरोधहोताहै।यहविकासकीप्रक्रिया
कोइंगितकरताहै।‘भौतिकवाद’शब्दसृष्टिकामूलहै।मार्क्सनेद्वंदकीप्रक्रियाकोहीगल

केदर्शनसेग्रहणकियाथा,किंतुइससिद्धांतकीव्याख्याअपनेभौतिकतावादीविचारोंके
आधार पर की। मार्क्स ने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के निम्नांकितनियम बताए-
●सृष्टि का मूल पदार्थ है, विश्वात्मा नहीं-
मार्क्सकेपूर्वहीगलनेसृष्टिकाआधारदेवीमनयाविवेककोमानाथाजिसे
विश्वात्माकानामदियाथा।उसकेअनुसार‘’जोविवेकसंगतहै,वहीवास्तविकहैऔर
जोवास्तविकहै,वहीविवेकसंगतहै।‘’इसकेविपरीतमार्क्सकामतहैकिभौतिक
जगतजिसकाअनुभवहमारीइंद्रियांकरतीहैं,वहीवास्तविकताहै।सृष्टिऔरमानव
समाजकानिर्माणइन्हींभौतिकवस्तुओंसेहोताहै,अतःउसेसमझनेकेलिएआत्माया
विवेकसदृशमृगमरीचिकाकेपीछेनहींदौड़नाचाहिए।इसप्रकारमार्क्सकादर्शन
हेगलकेनितांतविपरीतहै।मार्क्सकेशब्दोंमें,’’मैंनेहीगलकेदर्शनकोसिर[आत्मा
या मस्तिष्क] के बल पर खड़ा पाया, मैंने उसे पैरों केबल [ पृथ्वी पर] खड़ा कर दिया। ‘’
●प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ परस्पर संबद्ध ,गतिशीलतथा परिवर्तनशील है-
मार्क्सकीदृष्टिमेंविश्वस्वतंत्रवस्तुओंकाआकस्मिकपुंजनहींहै,बल्किएकसमग्र
हैतथाउसमेंनिहितविभिन्नवस्तुएंआपसमेंजुड़ीहुईहै।किसीवस्तुयाघटनाको
उसकेवातावरणसेअलगकरकेनहींसमझाजासकता।जैसे-पूंजीवादकोसमझनेके
लिएउसकेजन्मकेसमयकीराजनीतिक,सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक,नैतिक
परिस्थितियों का ज्ञान आवश्यक है।
पदार्थकीएकविशेषताउसकागतिशीलएवंपरिवर्तनशीलहोनाहै।परिवर्तनकी
प्रक्रियामेंकुछवस्तुओंकानिर्माणहोताहै,तोकुछवस्तुएंनष्टहोतीहै।एंजिल्सके
शब्दोंमें,’’समस्तप्रकृतिकीछोटीवस्तुसेलेकरबड़ीवस्तुतक-बालूकणसेलेकरसूर्य
पिंडतक-सभीएकनिरंतरस्थितिमें,एकनिरंतरप्रवाहमेंअनवरतगतितथा
परिवर्तन की स्थिति में है। ‘’
●प्रकृति में अंतर्विरोध एवं अंतर्द्वंद के आधार पर पदार्थोंका विकास होताहै-
मार्क्सकीमतानुसारद्वंदकेनियमकेअनुसारप्रत्येकपदार्थमेंएकआंतरिकविरोध
होताहैजोऊपरीतौरपरदिखाईनहींदेता।जैसे-लकड़ीमेंदोपरस्परविरोधीगुण

कड़ापनएवंनरमीपाएजातेहैंजिनकेकारणहीवहउपयोगमेंलाएजानेयोग्यबनती
है।परस्परविरोधीगुणोंकीउपस्थितिकेकारणहीनएपदार्थयानईव्यवस्थाका
जन्महोताहैजोपहलेकेबिल्कुलविपरीतविशेषताओंसेयुक्तहोतीहै।इनदोनों
अवस्थाओंकोमार्क्सने‘वाद’और‘प्रतिवाद’कानामदियाहै।कालांतरमेंइसप्रतिवाद
मेंभीअंतर्विरोधउत्पन्नहोताहैऔरएकनईव्यवस्थाउत्पन्नहोतीहैजिसे‘संवाद’[
synthesis]कहतेहैं।परिवर्तनकीइसप्रक्रियाकोमार्क्सनेगेहूंकेदानेकेउदाहरण
सेस्पष्टकियाहै।उनकेअनुसारयदिहमगेहूंकेदानेकेद्वंदकापतालगाएंतोदिखाई
पड़ताहैकिउसकाविकासहोरहाहै।गेहूंकाबीज‘वाद’हैतोपौधाउसका‘प्रतिवाद’है
औरपौधेकानष्टहोकरनएदानेकोजन्मदेनासंश्लेषणया‘संवाद’है।विकासकायही
सिद्धांत द्वंदवादी भौतिकवाद कहलाता है।
●परिवर्तन मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों होता है-
मार्क्सकेविचारअनुसारद्वंदकाएकनियमयहहैकिविकासक्रममेंपदार्थकीमात्रा
मेंअंतरआनेकेसाथ-साथउसकेगुणमेंभीअंतरआजाताहै।किसीवस्तुमेंअधिक
मात्रामेंपरिवर्तनहोनेपरहीगुणोंकास्पष्टअंतरभीदिखाईदेताहै।यदिहमपानीको
100डिग्रीसेंटीग्रेडतकगर्मकरतेहैंतोउसकीभापबनजाएगी।पानीऔरभापदोनोंके
गुणों में अंतर है ,अतः यह गुणात्मक परिवर्तन है।
●द्वंद्ववाद के आधार पर पूंजीवाद का अंत एवं समाजवादकी स्थापना होगी-
द्वंदकेनियमकोसामाजिकक्षेत्रमेंलागूकरतेहुएमार्क्सनेयहप्रतिपादितकियाकि
पूंजीवादकेशोषणकारीस्वरूपकेस्थानपरसाम्यवादीसमाजकीस्थापनाहोगी।
उनकाविश्वासथाकिपूंजीवादअपनेभीतरअपनेपतनकेबीचस्वयंइसतरहबोताहै
किइसका‘प्रतिवाद’होजाताहै।अर्थातपूंजीपतिवर्गऔरउसकेशत्रुश्रमिकवर्गमें
संघर्षहोजाताहैऔरसंवादक्रियाकेफलस्वरुपएकनएवर्गविहीन,राज्यविहीन
समाजकीस्थापनाहोतीहै।मार्क्सकीमान्यताहैकिइतिहासकेप्रत्येकयुगमेंदोया
अधिक व्यक्तियों एवं वर्गों के मध्य आंतरिक विरोध रहाहै।
इतिहासकीघटनाओंकोदेखनेपरयहप्रतीतहोताहैइसविरोधमेंआर्थिकशक्तियां
हीद्वंदकाकामकरतीथी।अबयहआंतरिकविरोधपूंजीवादऔरश्रमिकवर्गमेंहोरहा
है।पूंजीवादकाअंतअवश्यहोगाऔरफिरसमाजवादकीस्थापनाहोगी।मार्क्स
द्वंद्वात्मकभौतिकवादकेतीसरेनियमअर्थातसंवादयासंश्लेषणकोक्रांतिकेरूपमें
लागूकरनाचाहतेहैंऔरयहमानतेहैंकिमात्रात्मकधीमीगतिसेपरिवर्तनकीअपेक्षा

गुणात्मकऔरतीव्रगतिसेपरिवर्तनवांछितहैश्रमिकवर्गधीरे-धीरेअपनीउन्नतिनहीं
करसकताउसेसहसापरिवर्तनलानेकेलिएहिंसकक्रांतिकासहारालेनाहोगाऔरइस
प्रकार क्रांति सर्वथा उचित और न्यायसंगत है।
निष्कर्षस्वरूपकहाजासकताहैकिमार्क्सकेअनुसारद्वन्द्ववादी
भौतिकवादकावाद,प्रतिवादऔरसंश्लेषणआर्थिकवर्गहै,विचारनहींऔरजिसलक्ष्य
कीओरमार्क्सनेद्वंद्वात्मकभौतिकवादकीतरफकदमबढ़ाएजानेकीबातकहीवह
एकऐसेसमाजकीस्थापनाहैजिसमेंनकोईवर्गभेदहोगाऔरनकोईशोषण।यह
अंतिमसंश्लेषणहोगाजिसमेंसेप्रतिवादकाजन्मनहींहोगा।वर्गविहीनसमाजकी
स्थापनाकेसाथअंतर्विरोधकीद्वंद्वात्मकप्रक्रियारुकजातीहै,ऐसीमार्क्सकी
मान्यता है।
आलोचना-वेपरकेअनुसारद्वंदवादकीधारणाअत्यंतगूढ़एवंअस्पष्टहै।आलोचकों
ने निम्नांकित आधारों पर मार्क्स के द्वंद वादी सिद्धांतकी आलोचना की है-
1.मार्क्सकेविचारोंसेयहप्रतीतहोताहैकिपदार्थचेतनायुक्तहोतेहैंऔरअपने
विरोधीतत्वकोजन्मदेकरअपनाविकासकरतेहैं,किंतुवास्तविकतायहहैकिपदार्थ
मेंपरिवर्तनबाहरीशक्तियोंकेद्वाराकिएजातेहैं।साथहीयहभीनहींमानाजासकता
कि पदार्थ का विकास विरोधी तत्वों में संघर्ष के द्वाराहोता है।
2.मार्क्सनेहीगलकेद्वन्द्ववादमेंपरिवर्तनकरवैचारिकशक्तियोंकेस्थानपर
भौतिकशक्तियोंकोमहत्वदियाहै,किंतुयहनहींस्पष्टकरसकेकिकैसेआर्थिक
शक्तियांवैचारिकशक्तियोंसेअधिकसहीहै।मानवसभ्यताकेसर्वकालिकविकासको
ध्यानमेंरखनेपरयहस्पष्टहोताहैकिमनुष्यकाउद्देश्यसदैवकेवलभौतिक
समृद्धिहीनहींरहा।यद्यपियहसहीहैकिआधुनिकयुगमेंविकासकीगतिबहुत
कुछअंशोंमेंभौतिकताकीओरहै,किंतुइसबातकीसंभावनासेइनकारनहींकियाजा
सकताकिविश्वकेविकासकीदिशाएकबारपुनःआदर्शवादयाअध्यात्मवादकीओर
उन्मुख होगी।
3.मार्क्सकेविचारानुसारसाम्यवादीसमाजकीस्थापनाकेलिएहिंसकक्रांतिआवश्यक
है,किंतुक्रांतिकोअनिवार्यमाननायुक्तिसंगतनहींहै।मनुष्यएकचेतनशीलप्राणी
है,वहअपनीआत्माऔरउसकेविकासकेरहस्यसेपरिचितहै,अतःवहसमाजमें
परिवर्तन अहिंसात्मक ढंग से ला सकता है ।

4.संघर्षमानवजीवनकीउपलब्धियोंमेंएकमहत्वपूर्णभूमिकाअदाकरताहै,किंतु
उसेएकविश्वव्यापीकानूनमाननायाऐतिहासिकविकासमेंउसेचालकशक्तिकादर्जा
देनाअनुअनुपयुक्तएवंअनावश्यकहै।हंटनेइससंबंधमेंउचितहीलिखाहैकि
‘’यद्यपिद्वन्द्ववादहमेंमानवविकासकेइतिहासमेंमूल्यवानक्रांतियोंकेदर्शन
कराताहै,लेकिनमार्क्सकायहदावास्वीकारनहींकियाजासकताकिसत्यका
अनुसंधान करने की यही एकमात्र पद्धति है। ‘’
इनआलोचनाओंकेबावजूदइसबातसेइंकारनहींकियाजासकताकिमार्क्सने
द्वन्द्ववादीभौतिकवादकेरूपमेंएकविशुद्धवैज्ञानिकपद्धतिप्रदानकीऔरउसीके
आधार पर समाज वाद को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया।
2.इतिहास की आर्थिकव्याख्या
मार्क्सवादीसमाजवादकीश्रृंखलामेंदूसरासिद्धांतइतिहासकीआर्थिकव्याख्याहैजोवस्तुतः
द्वंद्वात्मकभौतिकवादकाहीनिष्कर्षहै।इतिहासपरिवर्तनकासाक्षीहैऔरयहपरिवर्तन
कभीधीमीगतिसेहुआहैतोकभीशीघ्रतासे।दार्शनिकोंकेसामनेयहप्रश्नसदैवसेविद्यमान
रहाहैकिसामाजिकपरिवर्तनक्योंहोतेहैंतथाइनकारहस्यक्याहै।बहुतसमयतकइसका
उत्तरयहरहाहैऔरज्यादातरआजभीहैकिप्राकृतिकजगतवमानवसमाजदोनोंमेंही
परिवर्तनईश्वरीयइच्छाकेपरिणामस्वरुपहोतेहैं।इससंबंधमेंएकविचारयहभीरहाहैकि
सभीप्रकारकेपरिवर्तनविभिन्नमहापुरुषों,सुधारकोऔरराजनीतिज्ञोंआदिकेविचारोंऔर
उ+नकेप्रयत्नोंकेपरिणामस्वरूपहोतेहैं।मार्क्सनेइसप्रकारकेपरिवर्तनकेविषयमें
प्रचलितसभीमतोंकोअवैज्ञानिकमानतेहुएअस्वीकारकियाऔरमानवीयसमाजकेविकास
कीव्याख्याद्वंद्ववादीभौतिकवादकेआधारपरकी,जिसेइतिहासकीआर्थिकव्याख्या
अथवा ऐतिहासिक भौतिकवाद कहा जाता है।
इतिहास के निर्माण में भौतिक या आर्थिक परिस्थितियोंकी महत्वपूर्ण भूमिका-
मार्क्सवादीचिंतनकासारकेंद्रीयतत्वहै।मार्क्सकीमान्यताकिमानवइतिहासकेनिर्माण
मेंभौतिकपरिस्थितियोंकीमहत्वपूर्णभूमिकाहोतीहै।इतिहासकानिर्माणकिसीदेवीइच्छा
केअनुसारनहींहोता,बल्किआर्थिकपरिस्थितियोंकेअनुसारहोताहैऔरइसपरिवर्तनकेकुछ
निश्चितवस्तुगतनियमहै।जैसीभौतिकपरिस्थितियांहोतीहैउसीकेअनुरूपसमाजका

सामाजिकऔरराजनीतिकसंगठन,कानून,धर्म,नैतिकता,मूल्यवमान्यताएंहोतीहै।जब
इनपरिस्थितियोंमेंपरिवर्तनहोजाताहैतोसंपूर्णसामाजिकजीवनमेंपरिवर्तनहोजाताहै।
इसे‘आधारऔरसंरचनाकासिद्धांत’भीकहाजाताहै।भौतिकपरिस्थितियांआधारकाकार्य
करतीहैंऔरउसीआधारपरसामाजिक,राजनीतिक,नैतिकसंरचनाकानिर्माणहोताहै।
भौतिकयाआर्थिकपरिस्थितियोंमेंमार्क्सनेउत्पादनकीविधि,उत्पादनकेसाधन,समाजकी
उत्पादक शक्ति और उत्पादन संबंधों को सम्मिलित कियाहै।
इनविचारोंकेआधारपरमार्क्सनेअबतककेसामाजिकविकासकोपरिभाषितकरतेहुए
उत्पादनशक्तिऔरउत्पादनसंबंधोंकीदृष्टिसेसामाजिकविकासकेनिम्नांकितयुगोंकी
बात कही है-
●आदिम साम्यवादी युग-
मानवइतिहासकीप्रारंभिकअवस्थाकोमार्क्सनेआदिमसाम्यवादीयुगकानामदिया
हैक्योंकिउससमयमनुष्यकीआर्थिकगतिविधियांसीमितथी।जीवनसरलतथा
मनुष्यकेपासकिसीप्रकारकीव्यक्तिगतसंपत्तिनहींथी।प्रकृतिकीप्रत्येकवस्तुपर
सबकासमानरूपसेअधिकारथाऔरप्रत्येकव्यक्तिअपनीआवश्यकतानुसारप्रकृति
सेग्रहणकरताथातथाअपनीक्षमताकेअनुसारकार्यकरताथा।परस्परकिसीप्रकार
काअंतर्विरोधनहींथाऔरनहीकोईशोषकथा,नशोषित।समाजमेंसबकास्थान
समानथा,इसलिएयहअवस्थासाम्यवादीअवस्थाथी।चूँकिप्रकृतिसेकंदमूलफल
इकट्ठाकरनेएवंशिकारकरनेकेलिएमनुष्यकोएकस्थानसेदूसरेस्थानपरघूमना
पड़ता था, इसलिए संगठित समाज का कोई स्वरूप अस्तित्वमें नहीं आया था।
●दास युग-
सामाजिकविकासकीदूसरीअवस्थाकोमार्क्सनेदासयुगकीसंज्ञादीहै।आदिम
साम्यवादीयुगसेदासयुगमेंमनुष्यकाप्रवेशआर्थिकगतिविधियोंमेंपरिवर्तनके
कारणहुआ।आखेटकेस्थानपरकृषिआजीविकाकासाधनबनीऔरकृषिद्वाराहोने
वालीउपजकासंचयकियाजानेलगाजिससेकृषिभूमिकेस्वामित्वकीप्रथाकासृजन
हुआ।अबजिससमाजकेलोगदूसरोंसेयुद्धकरकेविजईहोतेथेवेपराजितलोगोंको
मारनेकीअपेक्षाउन्हेंपकड़करदासबनालेतेथेऔरउन्हेंकृषिकार्योंमेंलगातेथे।इस
युगमेंसमाजमें2वर्गदिखाईदिए-मालिकऔरदास।मालिकवर्गदासोंकेश्रमका
उपभोक्ताबनगयाऔरसमाजकानियमनमालिकवर्गकेवहलोगकरनेलगेजो

सर्वाधिकशक्तिशालीयासबसेज्यादाभू-संपत्तिकेस्वामीथे।यहसमाजदासमूलक
समाजथाजिसकेअंतर्गतदास-वर्गशोषितथाऔरअपनीमुक्तिकेलिएप्रयत्नशील
था।
●सामंतवादी युग-
मार्क्सकेविचारानुसारदासयुगमेंदोवर्गोंकेमध्यसंघर्षनेएकनईसामाजिक
सामंतवादीव्यवस्थाकोजन्मदिया।जबकृषिअर्थव्यवस्थाविकसितहोकरउत्पादनकाप्रधान
साधनबनगईतोसमाजकेनेताअर्थातराजासंपूर्णभूमिकेस्वामीबनगए।वेकृषिभूमिको
सामंतोंकोसंविदाकेआधारपरदेनेलगे।यहसामंतउपसामंतोंकोऔरउपसामंतछोटे
किसानोंकोइसीप्रकारभूमिकाबटवाराकरनेलगे।इसयुगमेंछोटेकिसानशोषणकाशिकार
हुए जिन्हें मार्क्स ने अर्ध दास कहा है।
●पूंजीवादी युग-
मानवसभ्यताकेविकासक्रममेंसामंतवादीयुगकेबादपूंजीवादीयुगकाआगमनहुआ,जो
औद्योगिकअर्थव्यवस्थाकेविकासकापरिणामथा।सामंतीयुगकेअर्धदासोंनेअब
दस्तकारीकेद्वाराकृषिकेऔजारऔरअन्यदैनिकउपयोगकीवस्तुएंबनानीशुरूकरदी।
बड़ी-बड़ीमशीनोंऔरकल-कारखानोंकेविकाससेवस्तुओंकाउत्पादनइतनीअधिकमात्रामें
होनेलगाकिउनकेव्यापारऔरविनिमयकीआवश्यकताअनुभवहुई।परिणामतःसमाजका
स्वरूपकृषिअर्थव्यवस्थातकसीमितनरहकरउद्योगतथाव्यापारमूलकसमाजमेंबदल
गया।इसयुगमेंभीव्यापारिकवस्तुओंकेउत्पादनकाकार्यश्रमिकवर्गहीकरताथा,किंतु
उत्पादनकेसाधनोंपरउसकास्वामित्वनहींथा।शारीरिकश्रमकामहत्वकमहोनेलगाऔर
उसकास्थानमशीनोंनेलेलिया।मशीनोंकेकारणश्रमिकोंकीमांगकमहोगईऔरउन्हेंकम
मजदूरीपरहीअपनीआजीविकाढूंढनेकोविवशहोनापड़ा।उद्योगोंकेमालिकपूंजीपतिउनसे
अधिकसमयतकश्रमलेनेलगेकिंतुमजदूरीकमहीदेतेथे।उन्हेंभारीबेरोजगारीकाभी
सामनाकरनापड़ा।इसप्रकारपूंजीवादीव्यवस्थाकेअंतर्गतशोषकपूंजीपतितथाशोषित
मजदूर वर्गों का उदय उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन काही परिणाम था।
●सभ्यता के विकास का अगला और अंतिम चरण साम्यवादी समाजहोगा-
मार्क्सकेविचारानुसारउत्पादनशक्तियोंमेंपरिवर्तनकाक्रमजारीरहेगाऔरद्वंदकेनियम
केअनुसारपूंजीवादीसमाजभीपरिवर्तितहोगा।उसमेंयहपरिवर्तनशोषितमजदूर-वर्गमेंवर्ग
चेतनाआनेकेसाथहोगा।मजदूरसंगठितहोंगेऔरवेपूंजीपतियोंकेविरुद्धसशस्त्रसंघर्ष

करेंगेजिसमेंविजयउन्हेंहीमिलेगी।मार्क्सनेआह्वानकियाकि‘’दुनियाकेमजदूरोंएकहो
जाओक्योंकितुम्हारेपासखोनेकेलिएबंधनोंकेअलावाऔरकुछनहींहै।‘’पूंजीवादीव्यवस्था
मेंवर्गसंघर्षकेपरिणामस्वरूपएकवर्गविहीनसमाजकीस्थापनाहोगी,ऐसीमार्क्सने
कल्पनाकी।किंतुइससेपहलेएकसंक्रांतिकालहोगाजिसमेंसर्वहारावर्गकाअधिनायकवाद
स्थापितहोगा।उत्पादनकेसभीसाधनोंकासमाजीकरणहोगा।तत्पश्चातवर्गविहीन,राज्य
विहीनसमाजकीस्थापनाहोगी।ऐसासमाजसाम्यवादीसमाजहोगाजिसमेंप्रत्येकव्यक्ति
अपनीयोग्यताकेअनुसारकार्यकरेगाऔरआवश्यकताकेअनुसारलाभप्राप्तकरेगा।इस
संबंधमेंमार्क्सकाविचारयहहैकिसाम्यवादीसमाजपरआकरद्वंदकानियमरुकजाएगा।
यहअंतिमसंश्लेषण[Synthesis]होगा।इसमेंसेपुनःप्रतिवाद[Antithesis]काजन्म
नहीं होगा ।
आलोचना-
यद्यपिमार्क्सनेतार्किकढंगसेयहप्रस्तुतकरनेकाप्रयासकियाकिआर्थिकशक्तियांही
समाजकेस्वरूपकोनिर्धारितकरतीहैं,किंतुआलोचकोंनेमार्क्सकीइतिहासकीआर्थिक
व्याख्या की निम्नांकित आधारों पर आलोचना की है-
●मार्क्सकेइसकथनमेंअतिशयोक्तिहैकिसामाजिक,राजनीतिकपरिवर्तनकेवल
आर्थिककारकोंकेकारणहीहोतेहैंऔरसमस्तमानवीयप्रयत्नोंकीव्याख्याकेवलइसी
एकतत्वकेआधारपरकीजासकतीहै.वास्तविकतायहहैकिधर्म,अर्थ,नीति,दर्शन,
मानवीयभावनाएं,व्यक्तिगतप्रतिस्पर्धाआदिसभीतत्वसमानरूपसेमहत्वपूर्णहै
तथासामाजिकपरिवर्तनकोप्रभावितकरतेहैं।बट्रेंडरसैलनेइससंबंधमेंलिखाहैकि
‘’हमारेराजनीतिकजीवनकीबड़ी-बड़ीघटनाएंभौतिकअवस्थाऔरमानवीयमनोभावों
केघातप्रतिघातद्वारानिर्धारितहोतीहैं।राजप्रासादमेंहोनेवालेषड्यंत्र,प्रपंच,
व्यक्तिगतराग-द्वेषतथाधार्मिकविरोधनेअतीतमेंइतिहासकेक्रममेंबड़े-बड़े
परिवर्तन किए हैं। ‘’
●मार्क्सनेअपनेसमाजवादीसिद्धांतकेविवेचनमेंमानवतत्वकीपूर्णउपेक्षाकीहै,
जबकिमनुष्यसामाजिकपरिवर्तनमेंकेंद्रीयभूमिकाअदाकरताहै।पॉपरकेशब्दोंमें,‘’
मार्क्सइतिहासकेमंचपरमानवअभिनेताओंकोचाहेवेकितनेहीबड़ेक्योंनहो,
कठपुतलीमात्रसमझताथाजोआर्थिकडोरियोंसेनिर्विरोधरूपसेखींचतीहैं।वेऐसी

ऐतिहासिकशक्तियोंकेहाथमेंखिलौनामात्रहैंजिनकेऊपरउनकाकोईनियंत्रणनहींहै
। इतिहास का मंच एक सामाजिक प्रणाली में जिससे हम सबबंधे हुए हैं, बना हुआ है। ‘’
●इतिहासकीआर्थिकव्याख्यादेतेसमयमार्क्सनेधर्मकोअत्यंतनिम्नस्थानप्रदान
कियाहै।उसनेधर्मकोएकझूठीसांत्वनातथाअफीमकानशामानाहै,लेकिनवहभूल
जाताहैकिमनुष्यमेंउच्चतमआध्यात्मिकमूल्योंकेविकासकेलिएधर्महीएकमात्र
आधार है। मानव समाज को अनुशासित रखने में धर्म की ऐतिहासिकभूमिका रही है।
●आलोचकोंकीदृष्टिमेंमार्क्सद्वाराकीगईइतिहासकीआर्थिकव्याख्यातार्किकदृष्टि
सेभीउचितनहींहै।उसनेद्वन्द्ववादीप्रक्रियाकेतीनचरणोंकेरूपमेंजिन
व्यवस्थाओंकीकल्पनाकी,उनसेलगताहैकिप्रत्येकव्यवस्थाकाअपनाअलगआरंभ
औरअंतहैऔरप्रत्येकनईव्यवस्थापूर्वकीव्यवस्थाकाप्रतिवादयासंवादहोनेके
कारणउसकीविरोधीयाउससेश्रेष्ठतरहै।किंतुयहधारणाभ्रामकहै।इतिहासएक
क्रमबद्धश्रृंखलाहैजिसकेआरंभऔरअंतकासहीनिर्णयकरनाकठिनहै।कभी-कभी
नया युग पूर्व के युग की अपेक्षा अधिक बुरा या विनाशकारीभी सिद्ध हुआ है।
●वेपरकीमान्यताहैकिवर्ग-संघर्षकेआधारपरइतिहासकाकालविभाजनकरनाभी
त्रुटिपूर्णहै।मार्क्सनेइसप्रश्नकाउत्तरनहींदियाकिपूंजीवादकाविकासकेवल
पश्चिमी यूरोप में ही क्यों हुआ?
●मार्क्सकायहकथनकिऐतिहासिकविकासकेपूंजीवादीयुगमेंपूंजीपतिऔरश्रमिक
वर्गकेमध्यकटुताबढ़तीजाएगी,पूंजीपतिअधिकधनीऔरश्रमिकअत्यधिकनिर्धन
होतेजाएंगे,तथ्योंकीकसौटीपरखरानहींउतरता।अमेरिकाजैसेपूंजीवादीदेशमें
श्रमिकवर्गकीदशामेंअत्यधिकसुधारहुआहैऔरवहनिर्धनहोनेकेबजायअत्यधिक
धन अर्जित करने लगा है।
●मार्क्सकेइसविचारमेंपूर्वाग्रहलगताहैकिइतिहासकीधाराराज्यविहीनसमाजपर
जाकररुकजाएगी।आलोचकोंकाप्रश्नहैकिक्यासाम्यवादीव्यवस्थामेंपदार्थका
अंतर्निहितगुणगतिशीलताबदलजाएगा?यदिगतिशीलतास्वाभाविकहैतोयहभी
आवश्यकहैकिवाद,प्रतिवादऔरसंवादकीप्रक्रियाकेद्वारासमाजवादीव्यवस्थामें
भी परिवर्तन होगा। मार्क्स इस विषय में मौन है।
उपर्युक्तआलोचनाओंकेबावजूदयहस्वीकारकरनाहोगाकिमार्क्सनेसामाजिक
संस्थाओंकेआर्थिककारकोपरबलदेकरराजनीतिविज्ञानकीमहानसेवाकीहै।

इतिहासकीआर्थिकव्याख्याकेद्वारामार्क्सनेयहस्पष्टकरदियाकिटेक्नोलॉजी,
आवागमनकेसाधन,कच्चीसामग्रीएवंसंपत्तिकेवितरण,सामाजिकवर्गोंकेनिर्माण,
प्राचीनऔरवर्तमानराजनीति,विधिऔरनैतिकतातथासामाजिकआदर्शोंकेनिर्माणमें
आर्थिकशक्तियोंनेव्यापकप्रभावडालाहै।वर्तमानवैश्वीकरणकेदौरमेंभीआसानीसे
देखाजासकताहैकिकैसेआर्थिकशक्तियांजीवनकेप्रत्येकक्षेत्रकोप्रभावितकररही
हैं।बाजारअर्थव्यवस्थाकेअनुरूपस्वयंकोविकसितकरनाहीमनुष्यकाएकमात्र
लक्ष्य बन गया है। ऐसे में मार्क्स की प्रासंगिकताबनी हुई है।
3.वर्ग संघर्ष एवं पूंजीवादका सिद्धांत
वर्ग-संघर्षकासिद्धांतमार्क्सवादीसमाजवादकीआत्माहै।वास्तविकतातोयहहैकि
वर्गसंघर्षद्वारापूंजीवादकेअंतऔरसाम्यवादकीस्थापनाकेलक्ष्यकोध्यानमें
रखकरहीमार्क्सनेअन्यसिद्धांतोंकाप्रतिपादनकिया।मार्क्सकीवर्गसंघर्षकीधारणा
को निम्नांकित शीर्षकों में व्यक्त किया जा सकता है-
●इतिहास दो वर्गों का संघर्ष है-
इतिहासकीआर्थिकव्याख्याप्रस्तुतकरमार्क्सनेयहसिद्धकरनेकाप्रयासकियाहै
किअबतककामानवसभ्यताकाइतिहासवर्ग-संघर्षकाइतिहासहै।इतिहासकेप्रत्येकयुग
में2वर्गवजूदमेंरहेहैं-एकसाधनसंपन्नवर्गऔरदूसरासाधनविहीनवर्ग।एकवर्ग
श्रमजीवी रहा है तो दूसरा उसका लाभ उठाता रहा है।
मार्क्सकेशब्दोंमें,’’अबतककेसमाजकाइतिहासवर्गसंघर्षकाइतिहासहै।स्वतंत्रव्यक्ति
वदास,कुलीनवजनसाधारण,जागीरदारवरूपत,प्रतिष्ठानोंकेमालिकवकारीगर-एकशब्द
मेंशोषकऔरशोषितसदाएकदूसरेकेविरोधमेंखड़ेहोकरकभीखुलेतथाकभीछिपेरूपमें
संघर्षकरतेरहेहैं,जिसकेपरिणामस्वरूपहरबारयातोव्यापकरूपसेसमाजकाक्रांतिकारी
पुनर्निर्माण होता रहा है अथवा प्रतियोगी वर्गों कासामान्य विनाश होता रहा है। ‘’
सभ्यताकेप्रत्येकयुगमेंचाहेवहदासयुगरहाहो,सामंतीयुगयापूंजीवादीयुगसबमेंकिसी
नकिसीआर्थिकवर्गकीप्रधानताथी।शोषितवर्गअपनेस्वामीकेसाथसंघर्षकरताथाऔर
जब उसे सफलता मिल जाती थी तो वह दूसरे वर्ग का शोषणकरता था। यह क्रम चलता रहता है।

●वर्तमान युग दो वर्गों में स्पष्ट विभाजित है-
मार्क्सजिसयुगकादार्शनिकथाअर्थात18-19वीशताब्दीवहदोवर्गोंमेंस्पष्टरूपसे
विभाजितथीजिनमेंआपसमेंसंघर्षचलरहाथा।यहवर्गथे-पूंजीपतिवर्गऔरश्रमिकवर्ग।
पूंजीपतिवर्गवहथाजिसकाउत्पादनकेसाधनोंअर्थातभूमि,कारखानों,कच्चीसामग्रीतथा
पूंजीपरस्वामित्वहैऔरश्रमिकवर्गवहहैजोअपनाश्रमबेचकरजीवननिर्वाहकरताहै।
पूंजीपति वर्ग श्रमिक वर्ग का शोषण करता है जिसके कारणवर्ग संघर्ष होता है।
●दोनों वर्ग परस्पर निर्भर हैं-
मार्क्सकामतहैकियद्यपिदोनोंवर्गोंमेंसंघर्षचलतारहताहैकिंतुदोनोंवर्गएकदूसरेपर
इतनेज्यादानिर्भरहोतेहैंकिएककेबिनादूसरानहींरहसकता।यदिमजदूरवर्गकार्यनकरें
तोपूंजीपतियोंकेबड़े-बड़ेकारखानेबेकारहोजाएंगे,जमीदारकोकिसाननमिलेतोउनकेखेतों
मेंउपजनहींहोगीऔरइसीप्रकारयदिमजदूरोंकोकामनमिलेतोवेबेरोजगारहोजाएंगे।
दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है, किंतु फिर भी दोनोंके हितों में विरोध है।
●दोनों वर्गों के हित परस्पर विरोधी हैं-
यदिदोनोंवर्गएकदूसरेपरनिर्भरहैंकिंतुमार्क्सयहमानतेहैंकिएकवर्गकोलाभतभी
मिलताहैजबवहदूसरेकोहानिपहुंचाए।पूंजीपतिवर्गमजदूरोंकोकमसेकमवेतनदेकर
अधिकसेअधिककामलेनाचाहताहै।इसकेविपरीतश्रमिकवर्गयहचाहताहैकिउसेकमसे
कमकामकरनापड़ेऔरअधिकसेअधिकमजदूरीमिले।हितोंमेंइसविरोधकेकारणवर्ग
संघर्षप्रारंभहोताहै।शोषकोंकेप्रतिविद्रोहकीभावनाइतनीअधिकहोजातीहैकिश्रमिक
अपनेमालिकोंकोनष्टकरनेकेलिएसंगठितहोजातेहैंऔरइसप्रकारदोनोंवर्गोंमेंकभीन
समाप्त होने वाला संघर्ष स्थाई रूप ले लेता है।
●वर्ग संघर्ष में शोषित वर्ग को अधिक हानि होती है-
वर्गसंघर्षकीधारणामेंमार्क्सनेयहभीप्रतिपादितकियाकिजबदोनोंवर्गोंमेंसंघर्षप्रारंभ
होता है तो इसका सबसे अधिक नुकसान श्रमजीवी वर्ग कोउठाना पड़ता है।
श्रमिकवर्गप्रतिदिनपरिश्रमकरकेजीवननिर्वाहकरताहै।उसेकामदेनेवालाभीजल्दीनहीं
मिलताहै।श्रमकासंग्रहनहींकियाजासकता।वहतात्कालिकरूपसेनष्टहोजानेवालाहोता
है,अतःबेरोजगारीकीस्थितिमेंश्रमिकभूखोंमरनेलगतेहैं,जबकिपूंजीपतिवर्गकोऐसी
किसीपरिस्थितिकासामनानहींकरनापड़ता।एंजिल्सनेलिखाहै,’’श्रमजीवीवर्गसमाजका
वहवर्गहैजिसेअपनेजीविकोपार्जनकेलिएपूर्णरूपसेअपनेश्रमकेविक्रयपरनिर्भरहोना

पड़ताहै,नकिपूंजीकेद्वाराप्राप्तलाभपर।उसकासुख-दुख,जीवन-मरणऔरउसका
संपूर्णअस्तित्वउसकेश्रमकीमांगपरनिर्भरहोताहै।श्रमिकभूखेपेटअथवाबिनामजदूरीके
नरहनेकेकारणमजबूरीमेंपूंजीपतियोंकेआगेझुकजाताहै।इसप्रकारवपूंजीपतियोंके
हाथोंमेंशोषणएवंदमनकेलिएअपनेआपकोसौंपदेताहै।श्रमिकोंकीइसस्थितिकालाभ
उठाकरपूंजीपतिउसकाशोषणकरतेहैं।शोषितवर्गकोजबभीइसकाज्ञानहोताहै,तोउसकी
आत्मा विद्रोह करने के लिए तड़प उठती है’’।
●मालिक वर्ग समाज व राजनीतिक व्यवस्था को नियंत्रित करतेहैं-
मार्क्सकीमान्यताहैकिसमाजमेंसंपत्तिवानवर्गकेद्वाराअपनीसंपत्तिकेबलपरनकेवल
संपत्तिविहीनवर्गपरनियंत्रणरखाजाताहै,बल्किवेसामाजिक,वैधानिकतथाराजनीतिक
संस्थाओंकोभीइसप्रकारप्रभावितकरतेहैंजिससेउनकेशोषणकाउद्देश्यपूराहोतारहे।
लास्कीनेइससंबंधमेंलिखाहैकि‘’वेसामाजिकहितऔरअपनीसुरक्षाकोएकरूपसमझते
हैं।अपनेऊपरआक्रमणकरनेवालोंकोवेराजद्रोहकेअपराधकादंडदेंगे।शिक्षा,न्याय,
धार्मिकउपदेशआदिसबकोउन्हींकेहितोंकीपूर्तिकेलिएढालाजाताहै।यहभली-भांति
समझलेनाचाहिएकिसामाजिकलाभमेंसंपत्तिविहीनवर्गकोवंचितरखनेकावेजानबूझकर
कोईप्रयत्ननहींकरते,यहतोभौतिकपर्यावरणकेप्रतिकेवलस्वाभाविकप्रतिक्रियाहै।किंतु
संपत्तिकेअधिकारोंसेवंचितवर्गभीस्वाभाविकरूपसेउनमेंभागलेनाचाहताहै,अतःप्रत्येक
समाज में उसके नियंत्रण के लिए वर्गों के मध्य संघर्षउत्पन्न हो जाता है। ‘’
4.पूंजीवाद का स्वरूप एवं वर्ग- संघर्षद्वारा उसका अंत
वर्गसंघर्षकेसिद्धांतकाप्रतिपादनतत्कालीनपूंजीवादीव्यवस्थाकेस्वरूपकाविश्लेषण
करनेकेलिएकियाएवंऔद्योगिकसमाजमेंपूंजीपतिऔरसर्वहारादोसंघर्षरतवर्गोंके
अस्तित्वकोदर्शाकरशोषितसर्वहारावर्गद्वाराशोषकवर्गकेविरुद्धक्रांतिकाकार्यक्रम
प्रस्तुतकिया।मार्क्सकातर्कथाकिऔद्योगिकयुगसेपूर्वकीसामंतीव्यवस्थामेंभू-संपत्ति
कामालिकअभिजात्यवर्गतथाबुर्जुआवर्गकेमध्यकासंघर्षबुर्जुआवर्गकीविषयमेंसमाप्त
हुआथाजोएकप्रकारकीलोकतांत्रिकक्रांतिथी।इसकेपरिणामस्वरूपजिससमाजकी
स्थापनाहुईवहपूंजीवादीसमाजहैजिसकीविशेषताएंमशीनोंसेसंचालितउद्योग,कारखाना

पद्धतितथाइनसाधनोंकेमालिकोंऔरश्रमिकोंकेमध्यभेद,नगरोंमेंजनसंख्याकीवृद्धि,
अत्यधिकमात्रामेंउत्पादन,अंतरराष्ट्रीयव्यापारमेंवृद्धि,सरकारोंकीआंतरिकनीतियोंमें
‘यदभाव्यम’कासिद्धांततथाबाह्यमामलोंमेंसाम्राज्यवादीप्रवृत्तिआदिहै।अतिरिक्त
उत्पादनकेसाधनोंकामालिकवर्गशोषणकरकेअतिरिक्तमूल्यअर्जितकरताहैऔरउसेऐसे
मशीनीउपकरणोंकेक्रयमेंलगाताहैजिससेमानवश्रमकीआवश्यकताकमहोतीजाएऔर
उत्पादन की मात्रा तथा गुणवत्ता दोनों में वृद्धि हो।
इसकेकारणउद्योगोंकेमालिकतोएकओरअधिकधनीबनतेजातेहैंतोदूसरीओरश्रमिक
वर्गऔरअधिकगरीबहोताजाताहै।मशीनोंकेविकाससेमानवश्रमकामहत्वकमहोता
जाताहैजिससेश्रमिकोंमेंबेरोजगारीबढ़तीहैऔरउन्हेंआजीविकाकेलिएकमवेतनपरभी
मालिकों के पास अपना श्रम बेचना पड़ता है।
पूंजीवादीव्यवस्थाकीविशेषताएंजोमजदूरोंमेंवर्गचेतनाजगाकरस्वयंउसकाअंतकरदेती
है-
पूंजीवादीव्यवस्थामेंनिहितअंतर्द्वंदकोउजागरकरतेहुएमार्क्सनेयहप्रतिपादितकियाहै
किपूंजीवादकेअंतर्गतस्वयंउसकेविनाशकेबीजनिहितहैं।मार्क्सकेशब्दोंमें,‘’मजदूरोंमें
वर्गचेतनाजगाकरपूंजीवादअपनीकब्रस्वयंखोदताहै।‘’पूंजीवादकीनिम्नांकितविशेषताएं
या पूंजीवाद जनित परिस्थितियां उसके विनाश को आमंत्रितकरती हैं-
●पूंजीवादकेअंतर्गतवस्तुकेअधिकसेअधिकउत्पादनतथाउद्योगोंकीएकाधिकारकी
प्रवृत्तिबनीरहतीहैजिसकेकारणसंपत्तिकाकेंद्रीकरणथोड़ेसेलोगोंकेहाथोंमेंहोता
चलाजाताहै।कालांतरमेंइनउद्योगपतियोंकेमध्यप्रतियोगिताशुरूहोतीहै,जिसमें
छोटे-छोटेपूंजीपतिनष्टहोजातेहैंऔरसर्वहारावर्गमेंपरिवर्तितहोजातेहैं।इसप्रकार
पूंजीपति वर्ग की संख्या कम होती जाती है और सर्वहारावर्ग विशाल होता जाता है।
●औद्योगिकव्यवस्थानगरीकरणकोप्रोत्साहितकरतीहै।नगरोंमेंउद्योगोंका
केंद्रीकरणहोताहैजहांउद्योगोंमेंलगेभारीसंख्यामेंश्रमिकोंकोएकसाथएकत्रितहोने

काअवसरमिलताहै।क्योंकिसभीकेकष्टएकसमानहोतेहैंइसलिएइनलोगोंमेंवर्ग
चेतना जागृत होती है और वे संगठित होकर अपना रोष व्यक्तकरने को तत्पर होते हैं।
●पूंजीवादीव्यवस्थामेंमशीनोंसेउत्पादनहोनेकेकारणउत्पादनबहुतबड़ीमात्रामेंहोता
है,अतःउत्पादितमालकेलिएव्यापारऔरविनिमयहेतुविशालबाजारोंकी
आवश्यकताहोतीहै।सामानकोएकस्थानसेदूसरेस्थानपरलेजानेकेलिएयातायात
केसाधनोंकाविकासकरनापड़ताहैजिसकालाभश्रमिकवर्गकोहीमिलताहैक्योंकिवे
लोगअन्यस्थानोंकेश्रमिकोंसेसंपर्कस्थापितकरनेमेंसफलहोजातेहैंऔरइसप्रकार
उन्हें संगठन का अवसर मिलता है।
●पूंजीवादीव्यवस्थामेंराज्यकीसत्तापरपूंजीपतियोंकाप्रभावपड़नेसेराज्यउन्हींके
हितोंकेलिएशासनकासंचालनकरताहै।बड़ेउद्योगपतियोंकोउद्योगचलानेके
लिएविदेशोंसेकच्चेमालकीजरूरतपड़तीहै,उत्पादितमालकोबेचनेकेलिएविदेशों
मेंबाजारढूंढनापड़ताहै।पूंजीनिवेशकेलिएउन्हेंनए-नएक्षेत्रोंकीआवश्यकतापड़ती
है।ऐसातभीसंभवहोपाताहैजबराज्यकासाहचर्यउन्हेंप्राप्तहो,अतःपूंजीवाद
उपनिवेशवादऔरसाम्राज्यवादकीप्रवृत्तिकोबढ़ाताहै।उपनिवेशमेंउद्योगोंकी
स्थापनाकरनेकेबादपूंजीपतिवहांभीशोषणजारीरखतेहैंऔरसर्वहारावर्गकीवर्ग
चेतना राष्ट्रों की सीमा लांघ कर अंतरराष्ट्रीय होजाती है।
●पूंजीवादीव्यवस्थामेंआर्थिकसंकटआतेरहतेहैं।आवश्यकतासेअधिकउत्पादनहो
जानेकेकारणउत्पादितसामानोंकीबिक्रीनहींहोतीहै,तोकारखानेबंदकरनेकी
स्थितिआजातीहैयाउत्पादितमालबर्बादहोनेलगताहै।ऐसीस्थितिमेंश्रमिकोंको
बेकारहोनापड़ताहै।श्रमिकोंकोउनव्यर्थपड़ेसामानोंकाउपभोक्ताबननेकेलिए
बाध्यकियाजाताहै,किंतुसामानोंकामूल्यइतनाअधिकहोताहैकिउनकीक्रयशक्ति
क्षीण हो जाती है इससे आर्थिक संकट और अधिक बढ़ता है।
●पूंजीवादीव्यवस्थाश्रमिकोंकोसदैवअज्ञानतातथाकष्टमेंफंसेरहनेकीस्थितिमें
रखनाचाहतीहैंताकिवेआत्मनिर्भरनबनपाए।इसकेकारणश्रमिकोंकारोषऔर
अधिक बढ़ता है.।
पूंजीवादकीविशेषताओंकेआधारपरमार्क्सकानिष्कर्षहैकि‘’पूंजीपतिवर्गजोसबसेबड़ी
चीजपैदाकरताहै-वहहैमजदूरोंकावर्ग।इसवर्गकोजन्मदेकरपूंजीवादअपनीकब्रस्वयं
खो देता है। पूंजीवाद का अंत और मजदूरों की जीत दोनोंही समान रूप से अनिवार्य है। ‘’

आलोचना-वर्ग-संघर्षएवंपूंजीवादकेविषयमेंमार्क्सकेविचारोंकीआलोचनानिम्नांकित
आधारों पर की जाती है-
1.मार्क्सनेऔद्योगिकतथापूंजीवादीव्यवस्थाकेअंतर्गतकेवलबुर्जुआतथासर्वहारावर्ग
केनिर्मितहोनेकीधारणादीहै।उसकीयहधारणातर्कसंगतनहींहैक्योंकिसमाजमें
मध्यमवर्गऐसावर्गहैजोसंतुलनकारीभूमिकानिभाताहै,किन्तुमार्क्सकेचिंतनमें
इस तथ्य को नजरअंदाज किया गया है।
2.सैद्धांतिकदृष्टिसेऔद्योगिकव्यवस्थाकेअंतर्गतबुर्जुआतथासर्वहाराकावर्गीकरण
संभवनहींहै।बड़ी-बड़ीमिलोऔरकंपनियोंमेंकामकरनेवालेउत्तमवेतनभोगी
इंजीनियर,मैनेजर,निदेशकआदिकोसर्वहारावर्गकेअंतर्गतनहींमानाजासकता।
उद्योगोंमेंकामकरनेवालेकार्मिकउद्योगोंमेंसाझीदारतकहोतेहैं,उन्हेंकिसवर्गमें
रखा जाए, मार्क्स इस विषय में मौन है।
3.मार्क्सवादीअवधारणाकेअनुसारपूंजीवादीव्यवस्थाकेअंतर्गतश्रमिकवर्गकीदशा
दिनोंदिनखराबहोतीजातीहै,जबकिविकसितपूंजीवादीदेशोंमेंमजदूरोंकीदिनोंदिन
अच्छीहोतीस्थितियहदर्शातीहैकिवर्ग-संघर्षअवश्यंभावीनहींहै।श्रमिकोंकेमध्य
परस्परअनेकप्रकारकेहितोंकोलेकरटक्करहोसकतीहै,जैसे-कुशलऔरअकुशल
श्रमिकोंकेमध्यभेद,पुरुषतथामहिलाश्रमिकोंकेमध्यभेदविभिन्नजातियोंऔर
विभिन्नदेशोंकेश्रमिकोंकेमध्यभेदआदि।इसदृष्टिसेमार्क्सकावर्ग-संघर्षका
सिद्धांत एक सैद्धांतिक सत्य नहीं है।
4.उद्योगोंकेनियमनऔरसंचालनहेतुसंघर्षनहींअपितुसहयोगअधिकआवश्यकहोता
है । श्रमिक तथा पूंजीपति वर्ग दोनों ही इसे समझते हैंऔर इसमें दोनों का हित है।
5.अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
मार्क्सवादीसिद्धांतोंकीशृंखलामेंअतिरिक्तमूल्यकासिद्धांतयहदर्शानेकेलिएप्रस्तुत
कियागयाहैकिपूंजीवादीव्यवस्थामेंपूंजीपतिश्रमिकोंकाशोषणकिसप्रकारकरतेहैं।इसका

मुख्यउद्देश्ययहबतानाहैकिपूंजीपतिश्रमिकवर्गकेपरिश्रमपरनिर्भररहताहै,किंतुश्रमिक
कोउसकेश्रमकेअनुसारमूल्यनहींदियाजाता।अपनीआवश्यकताकीपूर्तिकेलिएश्रमिकों
कोअतिरिक्तश्रमकरनापड़ताहै,किंतुउसकेइसअतिरिक्तश्रमकामुनाफापूंजीपतिअपनी
ही जेब में रखता है, मजदूरों को उसमें साझेदार नहींबनाता है।
अतिरिक्तमूल्यकायहसिद्धांतमूल्यकेश्रमसिद्धांतपरआधारितहै
,जिसकाप्रतिपादनविलियमपेंटी,रिकॉर्डतथाएडमस्मिथनेकियाथा।19वींशताब्दीके
प्रारंभतकअर्थशास्त्रीयहमानतेरहेकिवस्तुओंकाविनिमयमूल्यनिर्धारितहोनेमेंउनमेंलगे
श्रमकेसाथ-साथपूंजी,उपकरण,कच्चामालआदिसभीतत्वशामिलरहतेहैं।साथहीवस्तु
कीमांगऔरवस्तुओंकागुणात्मकरूपभीउनकेमूल्योंकोपरिवर्तितकरतेरहतेहैं।किंतु
इसकेबादकेकुछलेखकोंनेयहतर्कदियाकिचूँकिश्रमहीसंपूर्णसंपत्तिकाउत्पादनकरताहै,
अतःश्रमद्वाराअर्जितसमस्तउत्पादनपरमजदूरोंकाभीअधिकारहोनाचाहिए।मार्क्सने
इन लेखकों का समर्थन किया और मूल्य सिद्धांत की व्याख्याश्रमिकों के पक्ष में की ।
अर्थशास्त्रीवस्तुओंकेमूल्यतथादाममेंभेदकरतेहैं।मूल्यकाअभिप्रायवस्तुकीउपयोगिता
सेलियाजाताहै,जबकिदामवस्तुकीविनिमयदरसेसंबंधितहोताहै।मार्क्सकीधारणाहै
किवस्तुओंकेमूल्यतथादामकानिर्धारणकरनेकीकसौटीउनवस्तुओंकेउत्पादनमेंव्यय
हुएश्रमकेअनुसारहोतीहै।हालांकिकभी-कभीकिसीवस्तुकाउपयोगितामूल्यउसमेंलगे
श्रमकीकीमतसेमुक्तभीहोताहै।जैसेहवाऔरपानीबहुतउपयोगीहै,यद्यपिउनमेंकोई
श्रम नहीं लगा होता है।
इससंबंधमेंयहप्रश्नस्वाभाविकरूपसेउठताहैकिविभिन्नवस्तुओंकेउत्पादन
मेंलगीश्रमकीमात्राकानिर्धारणकैसेकियाजाए?वस्तुओंकेदामकमयाअधिकक्योंहोते
हैं?इसप्रश्नकाउत्तरमार्क्सनेयहकहकरदियाकिश्रमकीमात्राकीमापउसमेंलगेसमयके
अनुसारकीजातीहै,जिसकामापदंडसप्ताह,दिनोंयाघंटोंतकलगाएगएश्रमसेनिर्धारित
कियाजाताहै।ऐसेमेंदोबारायहप्रश्नउठताहैकिसभीश्रमिकोंकीक्षमतासमाननहींहोती।
एकश्रमिककिसीकामको2घंटेमेंपूराकरताहैतोदूसराउसीको4घंटेमें।ऐसीस्थितिमें
मूल्यकानिर्धारणकैसेकियाजाए?मार्क्सकातर्कहैकिकिसीवस्तुकेमूल्यकानिर्धारण
उसमें लगे ‘ सामाजिक दृष्टि से आवश्यक’ श्रम की मात्राके अनुसार किया जाता है।

अतिरिक्तमूल्यकेसिद्धांतकीव्याख्याविस्तारकेसाथकरतेहुएमार्क्स
नेबतायाकि19वींशताब्दीकेप्रारंभतकवैज्ञानिकआविष्कारोंकेपरिणामस्वरुपउत्पादनके
साधनोंमेंनए-नएयंत्रोंकाकाफीविस्तारहोचुकाथा।वस्तुओंकेमूल्यसृजनमेंप्रयुक्तकिए
जानेवालेयंत्रोंकास्वामित्वएकछोटीसेपूंजीपतिवर्गकेहाथमेंथा।श्रमिकइनउपकरणों
औरयंत्रोंकोक्रियाशीलबनाएरखनेकाकामकरतेथे।पूंजीपतिश्रमिकोंकीश्रमशक्तिका
क्रयकरकेउसेउपकरणोंपरलगाताथाऔरइसप्रकारपूंजीपतिवस्तुओंकेजिसविनिमय
मूल्यकासृजनकरताथा,वहमजदूरोंकोदिएगएवेतनतथाकारखानेकीदेखभालमेंवहहोने
वालीधनराशिसेकहींअधिकहोताथा।यहीवृद्धिअतिरिक्तमूल्यकहलातीहैजिसकासृजन
श्रमिकोंकेश्रमसेहोताहैपरंतुयहपूंजीपतिवर्गकीजेबमेंजाताहै।यहअतिरिक्तमूल्यन
चुकाएगएश्रमकीउपजहै।श्रमिकसेऔसतसेअधिकश्रमसमयतककामलेनेकेकारणवस्तु
कीविनिमयदरमेंजोवृद्धिहोतीथी,वहउसकाअतिरिक्तमूल्यकहलाताथा।इसअतिरिक्त
मूल्यकोपूंजीपतिकारखानेकेलिएअन्यउपकरणोंकेक्रयमेंव्ययकरताथा।इनउपकरणों
केकारणउत्पादनमेंवृद्धिहोतीथीऔरश्रमिकोंकीमांगकमहोजातीथी।इससेमालिकोंके
अतिरिक्तमूल्यमेंवृद्धिहोतीजातीथी,क्योंकिअबमांगऔरपूर्तिकेनियमकेअनुसार
श्रमिकोंकोआजीविकाकेलिएन्यूनतमवेतनपरअधिकसमयतककार्यकरनेकोविवशहोना
पड़ताथा।यहसामाजिकअन्यायकीपराकाष्ठाथी।इसप्रकारमार्क्सकानिष्कर्षहैकि
वस्तुओंकाविनिमयमूल्यनिर्धारितकरनेकाएकमात्रसाधनउसकेउत्पादनमेंलगामानव
श्रमहै।अन्यतत्वजैसे-पूंजी,उपकरण,कच्चामालआदिसबगौणहै।उत्पादनकेसाधनों
केमालिकश्रमिकोंकोउनकेश्रमकीतुलनामेंन्यायोचितवेतननदेकरअतिरिक्तमूल्यकी
सृष्टि करते हैं और उस अतिरिक्त मूल्य का विनियोजन स्वयंअपने ही लाभ के लिए करते हैं।
आलोचना-
●वर्तमानअर्थशास्त्रीमूल्यकेश्रमसिद्धांतकोअस्वीकारकरतेहैंऔरअबयहधारणा
कि‘श्रमहीमूल्यकासृजनकरताहै’,अमान्यहोचुकीहै।वस्तुतःउत्पादितवस्तुओंके
मूल्यकानिर्धारणउत्पादनक्रियामेंलगीपूजी,उपकरण,यातायात,राज्यद्वारालगाए
जानेवालेउत्पादनकर,श्रमकीकुशलता,उद्योगकेसंगठनआदिअनेकआधारपर
किया जाता है । निःसंदेह श्रम भी एक तत्व है ,किंतुवह एकमात्र तत्व नहीं है।
●उत्पादनप्रक्रियाकीजटिलतातथावैज्ञानिकविकासकेकारणमानवश्रमकीमात्राका
ज्ञानकेवलश्रमसमयकेआधारपरहीनहींकियाजासकता।मानवश्रमकारूपभी

अनेकप्रकारकाहोताहै।एकसाधारणश्रमिकसेलेकरकुशलइंजीनियरतथाव्यापार
विनिमयकेनिमित्तकुशलनीतिकानिर्माणकरनेकाज्ञानतथाअनुभवआदिसभीश्रम
केअंतर्गतआतेहैं।ऐसेमेंयहअनुमानलगानाअसंभवहैकिवस्तुकामूल्यनिर्धारित
करने में किस श्रेणी के श्रमिक द्वारा लगाए गए समय कोआधार माना जाए।
●वेपरकातर्कहैकियहअवधारणादोषपूर्णलगतीहैकिश्रम-शक्तिकेउपभोगसे
अतिरिक्तमूल्यकीउत्पत्तिहोतीहै।यदिऐसाहोतातोजिसउद्योगमेंपूजीकोश्रममें
लगायाजाताहै,वहउसउद्योगसेअधिकलाभकारीहोताजिसमेंपूंजीकोयंत्रोंकेरूपमें
लगाया जाता है। परंतु ऐसा होता नहीं है।
●आलोचकोंकेअनुसारअर्थशास्त्रकीदृष्टिसेमार्क्सकाअतिरिक्तमूल्यकासिद्धांत
गलतहै।अधिकसेअधिकइसेश्रमिकोंकेशोषणकासिद्धांतकहाजासकताहै।यह
सिद्धांतश्रमिकवर्गमेंपूंजीपतियोंकेविरुद्धक्रांतिकेलिएतैयाररहनेकीप्रेरणा
उत्पन्नकरनेकासाधनथा।मार्क्सनेइसेअत्यधिकसरलबनानेकाप्रयासकिया
,जिसकेकारणयहकोरासिद्धांतरहगयाहैजोऔद्योगिकसंगठनकीजटिलताओंकी
उपेक्षा करता है।
●बोनरकेअनुसार‘’मार्क्सकीरचनाओंकाजादूमुख्यरूपसेसंभवतःउसकी
लसलसाहाटतथाविश्वासमेंहैजिसकेद्वाराअपनीचाबीकोएकतालेसेदूसरेतालेमें
प्रयुक्तकरताहै।उसेइसबातकाकभीभीसंदेहनहींहोताकिउसकीचाबीसभीतालों
को कैसे खोल देगी। ‘’
फिरभीयहमाननापड़ेगाकिअतिरिक्तमूल्यकेसिद्धांतद्वारामार्क्सनेश्रमिकोंके
पूंजीपतियोंद्वाराशोषणकिएजानेकीधारणाकोप्रकाशमेलाया।यहसिद्धांत
क्रांति के लिए श्रमिकों की प्रेरणा का स्रोत बना।
6.सर्वहारा वर्ग की क्रांतितथा अधिनायकवाद
मार्क्सकासंपूर्णदर्शनपूंजीपतिवर्गकेविरुद्धमजदूरवर्गकीसशस्त्रक्रांतिकेउद्देश्य
सेप्रेरितहै।मार्क्सकाविश्वासथाकिपूंजीवादीव्यवस्थाकेअंतर्गतश्रमिकवर्गका
शोषणइससीमातकपहुंचचुकाहैकिउसेवैधानिकतरीकोंसेसमाप्तनहींकियाजा
सकता,क्योंकिराजसत्तापरपूंजीपतियोंकाहीप्रभावहै।स्वयंपूंजीवादनेऐसी

परिस्थितियांउत्पन्नकीहै,जिनकेकारणशोषितवर्गकीचेतनाइतनीबढ़चुकीहैकि
अबवहअपनेशोषकोंकेविरुद्धसंगठितहोकरक्रांतिकरकेउन्हेंनष्टकरनेकेलिए
तैयारहै।मार्क्सनेक्रांतिकाकार्यक्रमभीप्रस्तुतकियाहै।यहक्रांतिकेवलपूंजीपति
वर्गकेविरुद्धहीनहींहोगी,बल्किपूंजीवादद्वारापोषितसंपूर्णराज्यव्यवस्थातथा
सामाजिकव्यवस्थाकेविरुद्धभीहोगी।क्रांतिधीरे-धीरेतथाकईचरणोंमेंहोगी।
क्रांति का उद्देश्य समाजवाद की स्थापना होगा।
●उत्पादन के साधनों और राज्य व्यवस्था पर मजदूरों काअधिकार-
मार्क्सकेमतानुसारचूंकिवर्तमानपूंजीवादीव्यवस्थामेंबुराइयोंकेआनेकाकारण
उत्पादनतथावितरणप्रणालियांहै,अतःइसप्रणालीमेंपरिवर्तनकरनेकेलिएआवश्यकहैकि
उत्पादनकेसाधनोंकासमाजीकरणकियाजाए,ताकिपूजीकेव्यक्तिगतस्वामियोंकोही
उत्पादनकालाभनहो।उत्पादनकेउपकरणोंकानियंत्रणभीपूंजीपतियोंकेहाथमेंनरहकर
इनउपकरणोंकोचलानेवालेश्रमिकवर्गकेहाथमेंरहनाचाहिए।इसपरिवर्तनकेलिएमार्क्स
नेविकासवादीतथाक्रांतिकारीदोनोंप्रकारकेकार्यक्रमोंकोप्रस्तुतकियाहै।विकासवादी
कार्यक्रमसेमार्क्सकातात्पर्ययहथाकिविभिन्नदेशोंकेश्रमिकजोशोषितवर्गकानिर्माण
करतेहैं,संगठितहोऔरअपनीराजनीतिकशक्तिकोसुदृढ़करनिर्वाचनकेद्वाराराज्यकी
सर्वोच्चसंसदमेंअपनाबहुमतबनाएं।यदिपूंजीवादीराज्यबलप्रयोगद्वाराउन्हेंदबानेलगे
तो श्रमिक वर्ग को भी उसके विरुद्ध बल प्रयोग करना होगा।
●संक्रांति काल-
मजदूरवर्गद्वारालोकतंत्रतथावैधानिकतरीकोंसेराज्यव्यवस्थापरअधिकार
स्थापितकरनापूंजीवादसेसमाजवादकीस्थापनाकीदिशामेंपहलाकदमहोगा।इस
संक्रमणकीअवधिमेंपूंजीपतिअपनीशक्तिफिरसेप्राप्तकरनेकाप्रयासकरेंगे,अतः
सर्वहारावर्गकोअपनीअधिनायकवादीशक्तिकेद्वाराउत्पादनकेसाधनोंको
व्यक्तिगतस्वामित्वसेसमाजकेस्वामित्वमेंलानेकीव्यवस्थाकरनीपड़ेगी।भूमिके
व्यक्तिगतस्वामित्वकोसमाप्तकरना,यातायाततथासंचारकेसाधनोंकाराज्यके
हाथमेंकेंद्रीकरणकरना,बैंकोंपरराज्यकाएकाधिकारस्थापितकरना,उत्तराधिकारके
नियमोंकोसमाप्तकरना,उचितदरोंपरआयकरलगाना,कारखानोंमेंबच्चोंकेश्रमपर
पाबंदीलगाना,सबलोगोंकोकामकरनेकादायित्वनिर्धारितकरनाआदिइससंक्रमण
अवधिकीविशेषताएंहोगी।समाजवादीसमाजकेअंतर्गतउत्पादनकाकुछभाग

प्रशासनिकवउत्पादनकेसाधनोंकेविकास,प्राकृतिकप्रकोपकेविरुद्धबचाव,अपंग
श्रमिकोंकीसहायतातथासमाजकेसांस्कृतिकतथाभौतिकविकाससंबंधीकार्योंके
लिए रखा जाएगा । शेष सभी को में उनके कार्य के अनुसारवितरित किया जाएगा।
मार्क्सनेसंक्रांतिकालीनव्यवस्थाकोसमाजवादकानामदियाहैऔरइसकीस्थापना
केलिएसशस्त्रक्रांतिकोआवश्यकमानाहै।इससंबंधमेंकोंकरकाअभिमतहैकि
मार्क्सकीप्रारंभिकरचनाओंमेंउनकीक्रांतिपरपर्याप्तआस्थारहीहै।यद्यपिउनकी
बादकीरचनाएंउनकेविकासवादीपद्धतिद्वारासमाजवादकीउपलब्धिकेदृष्टिकोण
कोदर्शातीहै।उनकेशब्दोंमें।’’मार्क्सकासमाजवादइसअर्थमेंक्रांतिकारीहैकिइसके
अंतर्गतपूंजीऔरश्रमकेमध्यविरोधाभासमानागयाहै,जिसेमिटायानहींजासकता।
इसमेंनिहितस्वार्थोंकेप्रतिश्रद्धानहींहैजोइसकेआदर्शसेअसंगतिरखतेहैंऔरजब
परिस्थितियांअनुकूलहोतोवहअपनेलक्ष्यकीप्राप्तिकेनिमित्तकोईभीकदमउठाने
को तत्पर है। ‘’
●राज व्यवस्था पर सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद अधिकलोकतांत्रिक व्यवस्था-
मार्क्सकेमतानुसारपूंजीवादसेसमाजवादकीदिशामेंआगेबढ़तेहुएसंक्रांतिकालमें
सर्वहारावर्गकेद्वाराराज्यव्यवस्थापरअधिनायकवादीतरीकेसेअधिकारकियाजाएगा।
क्रांतिकेपूर्वबुर्जुआवर्गकाअधिनायकवादथा।उसकेबादसर्वहारावर्गकाअधिनायकवादबना
रहेगा।किंतुदोनोंमेंअंतरहैपूर्वकीव्यवस्थामेंअल्पसंख्यकोंकाबहुसंख्यकोंकेऊपरशोषण
तथादमनकारीशासनथा,किंतुनईव्यवस्थामेंबहुसंख्यकमजदूरवर्गकाशोषकअल्पसंख्यक
पूंजीपतियोंकेऊपरदमनकारीशासनहोगा।लोकतंत्रबहुमतकाशासनहोताहै,ऐसीस्थितिमें
बहुसंख्यकमजदूरोंद्वाराराज्यव्यवस्थापरअधिकारकियाजानाअधिकलोकतांत्रिक
व्यवस्थाकासूचकहै।इसकाउद्देश्यदूसरेवर्गकाशोषणकरनानहोकरशोषकतथाशोषित
वर्गों के अस्तित्व को मिटाना होगा ताकि समाज वर्ग विहीनबन जाए।
●योग्यता के अनुसार श्रम और श्रम के अनुसार वेतन समाजवादीव्यवस्था का मूल्य-
संक्रांतिकालमेंसर्वहारावर्गकेअधिनायकवादकाउद्देश्यऐसीउत्पादनप्रणालीकीस्थापना
करनाहोगाजिसकेअंतर्गतप्रत्येकव्यक्तिकोअपनीइच्छातथायोग्यताकेअनुसारश्रमकरने
तथाउसकाभौतिकऔरमानसिकसंतोषप्राप्तकरनेकाअवसरमिलेऔरकठोरश्रमविभाजन
कीव्यवस्थासमाप्तकीजासके।इसव्यवस्थामेंव्यक्तिकेलिएश्रमआजीविकाकासाधन
मात्रनहींहोगा,अपितुव्यक्तिश्रममेंवास्तविकआनंदकाअनुभवकरेगाऔरश्रमजीवनतथा
समाजकीएकआवश्यकताबनजाएगा।चूंकिउत्पादनप्रणालीव्यक्तिगतलाभकेउद्देश्यसे

संचालितनहोकरसामाजिकआवश्यकताकेउद्देश्यसेसंचालितहोगीऔरश्रमकामहत्व
बढ़नेसेउत्पादनकीमात्राभीबढ़जाएगी,अतःआर्थिकशोषणकाअंतहोजाएगा।उत्पादन
प्रणालीकेसमाजीकरणहोनेकेपश्चातपूंजीपतिवर्गकास्वतःअंतहोजाएगाऔरनई
सामाजिकव्यवस्थामेंपरस्परविरोधीवर्गोंकाअस्तित्वसमाप्तहोजाएगा।वर्गभेदनहींहोगा
तो वर्ग- संघर्ष भी नहीं होगा और एक वर्ग विहीन, राज्यविहीन समाज की स्थापना होगी।
7.साम्यवादी समाज
मार्क्सवादीसमाजवादकाअंतिमआदर्शएकराज्यविहीन,वर्गविहीनसमाजकीस्थापना
करनाहै,जिसेमार्क्सनेसाम्यवादीसमाजकानामदियाहै।ऐसेसमाजमेंसभीव्यक्तियोंको
समानसमझाजाएगाऔरमनुष्योंकोसाध्यसमझाजाएगा,नकिकिसीवर्गविशेषकेहितका
साधन।ऐसेसमाजमेंव्यक्तिगतसंपत्तिकाअस्तित्वनहींरहेगा,क्योंकियहशोषणकोजन्म
देतीहै।साथहीउत्पादितमालकेसंग्रहतथास्वामित्वकीप्रथाभीसमाप्तहोजाएगीक्योंकि
यहप्रथापूंजीवादीव्यवस्थाकीविशेषताथी।वस्तुओंकामहत्वउनकीसामाजिकउपयोगिता
परनिर्भरकरेगा।उल्लेखनीयहैकिमार्क्सनेसाम्यवादीसमाजमेंव्यापकऔद्योगीकरणको
महत्वदियाहैजहांउत्पादनकेयंत्रतथाउपकरणभीबढ़ाएंजाएंगेताकिमानवश्रमकीबचत
होनेसेमनुष्यकोसांस्कृतिककार्योंकेलिएअधिकसमयमिलसकेऔरमानवसभ्यताका
विकासहोसके।ऐसीसमाजमेंसभीमनुष्योंकोपर्याप्तस्वतंत्रताभीहोगी।समाजका
संचालनसहयोगकेआधारपरहोगा,नकिप्रतियोगिताकेआधारपरऔरमनुष्यअपने
विविधता युक्त व्यक्तित्व का विकास करने का अवसर प्राप्तकर सकेंगे।
मार्क्सवादीचिंतनमेंराज्यकोएकवर्गीयसंस्थामानागयाहैजिसकेमाध्यमसे
संपन्नवर्गसंपत्तिविहीनवर्गकाशोषणकरताहै।साम्यवादीसमाजमेंचूंकिवर्गभेदमौजूद
नहींहोगा,इसलिएराज्यकीकोईआवश्यकतानहींहोगीऔरवहस्वतःसमाप्तहोजाएगा।
ऐसेसमाजमेंप्रत्येकव्यक्तिअपनीयोग्यताकेअनुसारश्रमकरेगा,किंतुआवश्यकताके
अनुसार पारिश्रमिक प्राप्त करेगा।
निष्कर्षस्वरूपयहकहाजासकताहैकिमार्क्सनेसमाजवादकीएकक्रमबद्ध
योजनाप्रस्तुतकी।वेपरनेमार्क्सकामूल्यांकनकरतेहुएलिखाहैकि‘’अत्यधिकदरिद्रताके
वर्षोंमेंमार्क्सनेअपनेकोवैज्ञानिकसमाजवादकेनिर्माणकार्यमेंलगायाऔरउसकीउपलब्धि

कीमहानताकोउससेसहानुभूतिनरखनेवालेआलोचकतकअस्वीकारनहींकरसकते।यह
दर्शानेमेंकिइतिहासकारोंनेआर्थिकतत्वोंकेप्रभावोंकीउपेक्षाकीहै,मार्क्सनेऐतिहासिक
लेखोंकेनिमित्तकईसंभावनाओंकाद्वारखोला।निश्चयहीइसतथ्यसेकोईअसहमतनहींहो
सकताकिउसकीयहअवधारणाकिराजनीतिकतथाकानूनीसंस्थाएंनिवर्तमानआर्थिक
पद्धतिसेअन्योन्याश्रितसंबंधरखतीहै,19वींशताब्दीकेविचारोंकीसर्वाधिकबलवतीधारणा
है।’’मार्क्सकीमहत्ताकेवलइसतथ्यपरआधारितनहींहैकिउन्होंनेसमाजवादपरवैज्ञानिक
ढंगसेविचारकरकेउसेक्रमबद्धविचारधाराकारूपदिया,प्रत्युतइसबातपरहैकिउनके
विचारोंनेसमाजवादकोएकव्यावहारिककार्यक्रमबनानेमेंसफलताप्रदानकी।लास्कीके
शब्दोंमेंकहाजासकताहैकि‘’मार्क्सनेसमाजवादकोएकषड्यंत्रकेरूपमेंपायाऔरउसेएक
आंदोलन के रूप में छोड़ा।’’
मार्क्सवाद कीप्रासंगिकता
●मार्क्सवादीसिद्धांतोंकेआधारपरदुनियामेंपहलीसमाजवादीक्रांति1917में
सोवियतसंघमेंहुई।तत्पश्चातपूर्वीयूरोपकेविभिन्नदेशों-बलगारिया,रोमानिया,
हंगरी,चेकोस्लोवाकिया,पोलैंडआदिमेंसमाजवादीव्यवस्थाकोअपनायागया।1949
मेंचीनीक्रांतिकेमाध्यमसेएशियाईसमाजवादकीस्थापनाकीगई।द्वितीय
विश्वयुद्धकेबादविचारधारात्मकआधारपरदुनियादोगुटोंमेंविभाजितहोगई-
पूंजीवादीगुटजिसकानेतृत्वसंयुक्तराज्यअमेरिकाकररहाथाऔरसाम्यवादीगुट
जिसकानेतासोवियतसंघथा।इनदोनोंगुटोंकेमध्यशीतयुद्धकीशुरुआतहुईजो
1990केदशकतकचली,किंतु1990केदशकमेंशीतयुद्धकीसमाप्तिएवंसोवियत
संघकेविघटनकेबादमार्क्सवादकीप्रासंगिकतापरप्रश्नचिन्हलगनेलगे।यहकहा
जानेलगाकिपूंजीवादऔरसमाजवादकेसंघर्षमेंसमाजवादकीपराजयहुईहै।दुनिया
केविभिन्नदेशोंमेंउदारवादीअर्थव्यवस्थाकोअपनायागया।यहांतककिचीनजैसा
साम्यवादीदेशभीबाजारअर्थव्यवस्थाकीओरआकर्षितहुआ।1994मेंटेडग्रांटएवं
एलेनवुडद्वाराप्रकाशितपैम्फ्लेटजिसकाशीर्षकथा-‘सोशलिस्टअपील’,मे
मार्क्सवादकीप्रासंगिकताकोस्पष्टकरनेकाप्रयासकियागया।मार्क्सवादकेसमर्थकों
ने इसके पक्ष में कई तर्क दिए जिनमें से कुछ प्रमुखइस प्रकार हैं=

●निसंदेहपूंजीवादनेदुनियामेंतेजीसेआर्थिकसमृद्धिकोप्रोत्साहितकिया,किंतुअमीर
वगरीबकेमध्यकीखाईकोपूरीतरहमिटानहींसका।‘ग्लोबलविजन’कीएक
हालियारिपोर्टकेअनुसारविश्वकी10%आबादीअबभीगरीबीरेखासेनीचेजीवन
यापनकररहीहै।जबतकगरीबीवशोषणकिसीभीस्तरपररहेगा,मार्क्सवाद
प्रासंगिक रहेगा।
●पूंजीवादीव्यवस्थामेंआरहेआर्थिकसंकटयथा-1930कासंकट,2008कासंकटऔर
अबकोरोनावायरसमेंअनुमानित2020-21कासंकटऔरउसकेसाथबढ़रही
बेरोजगारी मार्क्सवादी सिद्धांतों को प्रासंगिक बनारहे हैं ।
●पूंजीवादकेनएअवतारनवउदारवादमेंआर्थिकअवसरोंकेसाथशोषणभीअपनेनए
रूपमेंसामनेआयाहै।स्त्रियोंऔरमजदूरोंकोउनकेकौशलवश्रमकेअनुसारअब
भीपारिश्रमिकनहींमिलरहाहै।संविदाआधारितकार्यनेमानवीयसंबंधोंकोभीमशीनी
कृत कर दिया है।
●आर्थिकशक्तियां-उत्पादनकेसाधनउत्पादनकेतरीकेऔरउत्पादनकेसंबंधसमाज
वराज्यकेस्वरूपकोनिर्धारितकरतेहैं,मार्क्सकायहसिद्धांतएकबड़ीसीमातक
आजभीप्रासंगिकहै।नवउदारवादीअर्थव्यवस्थामेंआर्थिकगतिविधियोंकानिजीकरण
होनेकेकारणराज्यकास्वरूपकल्याणकारीप्रशासनसेहटकरअहस्तक्षेपवादीबन
गयाहैऔरआर्थिकक्रियाओंमेंसूचनाप्रौद्योगिकीकीदखलकेकारणसमाजनेटवर्क
समाजमेंबदलताजारहाहै,जहांलोगोंकेआमने-सामनेकेसामाजिकसंपर्ककमहोते
जारहेहैंऔरव्यक्तिअलगावसेग्रसितहोरहाहै।पूंजीवादीसमाजकेसंदर्भमेंमार्क्स
ने जो अलगाव की धारणा प्रस्तुत की, वह प्रत्यक्ष रूपमें सामने है।
●सोवियतसंघकेविघटनकोमार्क्सवादकेपतनकीसंज्ञादेनाउचितनहींहै,क्योंकि
वहांतथाअन्यसमाजवादीदेशोंमेंमार्क्सवादकोउसकेमूलस्वरूपमेंलागूहीनहींकिया
गया।मार्क्सवादीविचारोंमेंसर्वहारावर्गकीक्रांतिकेबादस्थापितसमाजवादीव्यवस्था
संक्रांतिकालीनहै,जबकिइनदेशोंमेंइसेस्थाईरूपदेदियागया।मार्क्सनेराज्यका
विरोधकियाथा,जबकियहांराज्यकेहाथोंमेंहीसंपत्तिकास्वामित्ववनियंत्रणदे
दियागयाजिसमेंसाम्यवादीदलऔरनौकरशाहीहावीहोगए।दलकीतानाशाहीने
व्यक्तिगतस्वतंत्रताकोकुचलदियाजोयहांसमाजवादकेपतनकाएकबड़ाकारण
बना।वास्तविकतायहहैकिजबतकदुनियामेंशोषणचाहेकिसीरूपमें-लिंगभेद

,आर्थिकविषमतावजातिगतभेद,मौजूदरहेगातबतकमार्क्सवादप्रासंगिकबना
रहेगा।
मुख्य शब्द-
समाजवाद,पूंजीवाद,बुर्जुआ,सर्वहारा,द्वंद्वात्मकभौतिकवाद,साम्यवादीसमाज,शोषण,
वर्ग- संघर्ष, क्रांति, अधिनायकवाद
संदर्भ सूची-
1.Will kenton,Karl marx, investopedia.com
2.Karl marx,www.britannica.com
3.IsaiahBerlin,KarlMarx;HisLifeandEnvironment,1963,Oxford
University Press
4.E.J.Hobsbawm,KarlHeinrichMarx,OxfordDictionaryofNational
Biography,Oxford University Press,2004
5.Jacques Attalli,Karl Marx or The Thought of The World,2005
प्रश्न-
निबंधात्मक
1. मार्क्स वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता है, विवेचनाकीजिए।
2. वर्ग संघर्ष एवं पूंजीवाद पर मार्क्स के विचारोंका मूल्यांकन कीजिए।
3. मार्क्स द्वारा की गई इतिहास की आर्थिक व्याख्यापर प्रकाश डालिए।
4.द्वंदात्मकभौतिकवादकेसिद्धांतकीविवेचनाकीजिए।यहहीगलकेद्वंद्ववादसेकिस
प्रकार भिन्न है।
5. राज्य एक वर्गीय संस्था है, विवेचना कीजिए।
वस्तुनिष्ठ-
1. कार्ल मार्क्स किस देश का विचारक है।
[ अ ] जर्मनी [ ब ] इटली [ स ] फ्रांस [ द ] रूस
2. निम्नांकित में से कौन मार्क्स का पूर्ववर्ती समाजवादीविचारक नहीं है।
[ अ ] रॉबर्ट ओवन [ ब ] चार्ल्स फ़ोरियर [ स ] प्रूधों[ द ] लास्की

3. मार्क्स ने द्वंद वाद का सिद्धांत किस विचारक से ग्रहण किया।
[ अ ] लास्की [ ब ] प्रूधों [ स ] हीगल [ द ] एंजेल्स
4.‘’दुनियाकेमजदूरोंएकहोजाओक्योंकितुम्हारेपासखोनेकेलिएबंधनोंकेअलावाऔर
कुछ नहीं है’’, यह कथन किसका है।
[ अ ] कार्ल मार्क्स [ ब ] लेनिन [ स ] माओ त्सेतुंग [ द ] स्टालिन
5. मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवादी क्यों कहते हैं।
[ अ ] उसने समाजवाद को वैज्ञानिक प्रवृत्तियों के अनुसारस्थापित किया
[ब]समाजमेंविषमताउत्पन्नहोनेकेकारणोंकीव्याख्याकेसाथ-साथउसेसमाप्तकरनेका
क्रमिक उपाय बताया।
[ स ] समाजवाद की वैज्ञानिक देन को प्रतिपादित किया।
[ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है।
6. मार्क्स के अनुसार किसी वस्तु के विनिमय मूल्यका निर्धारण कैसे होता है ।
[ अ ] वस्तु में लगने वाली पूंजी से
[ ब ] वस्तु के उत्पादन में लगने वाले सामाजिक दृष्टिसे उपयोगी श्रम- समय से
[ स ] वस्तु को बाजार में लाने पर यातायात पर होनेवाले खर्च से
[ द ] वस्तु के उत्पादन में लगने वाले समय, श्रम, पूजी,कर, आवागमन में होने वाला व्यय
7. निम्नांकित में से किस तत्व के कारण पूंजीवाद अपनेविनाश का मार्ग स्वयं प्रशस्त करता है।
[ अ] उपनिवेशवाद को प्रोत्साहित कर
[ ब ] मजदूरों मैं वर्गीय चेतना जगाकर
[ स ] मजदूर वर्ग की संख्या में वृद्धि कर
[ द ] उपर्युक्त सभी
8. मार्क्सवादी सिद्धांतों के अनुसार समाज का अंतिमस्वरूप क्या होगा।
[अ]समाजवादीसमाज[ब]साम्यवादीसमाज[स]मजदूरोंकाअधिनायकवाद[द]
पूंजीपति विहीन समाज
9.मार्क्सकेविचारअनुसारसाम्यवादीसमाजमेंश्रमकोनिर्देशितकरनेवालासिद्धांतक्या
होगा।
[ अ ] सबका साथ, सबका विकास
[ ब ] योग्यता के अनुसार कार्य, आवश्यकता के अनुसारपारिश्रमिक
[ स ] योग्यता के अनुसार कार्य, कार्य के अनुसार पारिश्रमिक

[ द ] योग्य एवं मेहनती लोगों को कार्य, आलसी व्यक्तियों का निष्कासन
10. मार्क्स का समाजवाद निम्नांकित में से किस पर जोरदेता है।
[ अ ] भूमि और संपत्ति का सामूहिक स्वामित्व
[ ब ] पूंजी का व्यक्तिगत स्वामित्व और भूमि का सामूहिकस्वामित्व
[ स ] पूजी पर व्यक्तिगत एकाधिकार
[ द ] संपत्ति का सामूहिक वितरण
11. मार्क्सवादी चिंतन में समाजवाद कैसी व्यवस्था है।
[ अ ] समाज की स्थाई व्यवस्था है।
[ ब ] संक्रांति कालीन व्यवस्था है।
[ स ] भरोसेमंद व्यवस्था है।
[ द ] राज्य के नियंत्रण को प्रोत्साहित करने वालीव्यवस्था है।
12.मार्क्सद्वाराप्रतिपादितसाम्यवादीसमाजमेंऔद्योगिकरणएवंमशीनोंकोकिसउद्देश्य
से प्रोत्साहित किया जाएगा।
[ अ ] पूंजीवाद के पुनः विकास हेतु
[ ब ] मानवीय श्रम की बचत कर सांस्कृतिक उत्थान केकार्यों को प्रोत्साहित करने हेतु
[ स ] मशीनों का लाभ मजदूर वर्ग को पहुंचाने हेतु
[ द ] मजदूरों और पूंजी पतियों में सहयोग को प्रोत्साहितकरने हेतु
13. मार्क्स ने मानवीय सभ्यता के इतिहास को किस रूपमें परिभाषित किया।
[ अ ] वर्ग संघर्ष के इतिहास के रूप में
[ ब ] वर्ग सहयोग के इतिहास के रूप में
[ स ] स्वतंत्र आर्थिक शक्तियों के विकास के इतिहासके रूप में
[ द ] वैज्ञानिक विकास के इतिहास के रूप में
14. मार्क्स द्वारा प्रतिपादित आधार और संरचना कासिद्धांत क्या है।
[अ]आर्थिकशक्तियांसमाजऔरराज्यकेस्वरूपनिर्धारणमेंआधारशिलाकाकार्यकरती
हैं।
[ ब ] समाज और राज्य की संरचना उसकी मजबूत नीव परआधारित होती है।
[ स ] जैसा आधार होता है वैसी संरचना होती है।
[ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
15. मार्क्स की दृष्टि में इतिहास के निर्माण में किनशक्तियों की भूमिका होती है।

[ अ ] राजनीतिक शक्तियों [ ब ] आर्थिक शक्तियों [ स ] दार्शनिकों [ द ] उपर्युक्त सभी
16. मार्क्स ने राज्य को कैसी संस्था माना है।
[अ]कल्याणकारी[ब]वर्गीयशोषणकायंत्र[स]व्यक्तिगतस्वतंत्रताकोप्रोत्साहितकरने
वाली संस्था[ द ] मजदूरों के हितार्थ गठित संस्था
उत्तर-1.अ2.द3.स4.अ5.ब6.ब7.द8.ब9.ब10.अ11.ब12.ब
13. अ 14. अ 15. ब 16. ब
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