मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र
मलेरिया प्लास्मोडियम वंश के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है। इस वंश की पाच प्रजातिय...
मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र
मलेरिया प्लास्मोडियम वंश के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है। इस वंश की पाच प्रजातियां मानव को संक्रमित करती हैं - प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम वाईवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल, प्लास्मोडियम मलेरिये तथा प्लास्मोडियम नौलेसी। इनमें से सबसे पराक्रमी और घातक पी. फैल्सीपैरम माना जाता है, मलेरिया के 80 प्रतिशत रोगी इसी प्रजाति के संक्रमण की देन है। मलेरिया से मरने वाले 90 प्रतिशत रोगियों का कारण पी. फैल्सीपैरम संक्रमण ही माना गया है।
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Added: Oct 25, 2013
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मले�रया परजीवी का जीवन चक
मले�रया प्लास्मोिडयम वंश के प्रोटोज़ोआ परजीिवयों से फैलता है। इस वंश क� पा च प्रजाितयां म
संक्रिमत करती - प्लास्मोिडयम फैल्सीप , प्लास्मोिडयम वाईवै, प्लास्मोिडयम ओव,
प्लास्मोिडयम मले�रय े तथा प्लास्मोिडयम नौलेसी। इनमें से सबसे पराक्रमी और . फैल्सीपैरम
माना जाता है, मले�रया के 80 प्रितशत रोगी इसी प्रजाित के संक्रम ण क� देन है। मले�रया से मरने90
प्रितशत रोयो का कारण पी. फैल्सीपैर सं क्रमण ही माना गया है
मच्छ
मादा एनोिफलीज़ मच्छर मले�रया परजीवी क� प्राथि
पोषक होती है, िजसे मले�रया का सं क्रमण फैला में
महारत हािसल है। एनोिफलीज़ वंश के मच्छर सवर्
व्या� हैं। लेिकन िसफर् मादा एनोिफलीज़ मच्छर
र�पान करती है, अतः यही परजीवी क� वाहक बनती है
न िक नर। मादा एनोिफलीज़ मच्छरों क� सेना रात होत
ही िशकार क� तलाश में उड़ान भरती है और हमारे घर
तथा शयन-क� में पह�ँच कर मंडराते ह�ए हमारे शरीर के
कई िहस्सों पर अवतरण करती है और अपने मुँह पर लग
सेंससर् से पता करती है िक कहाँ से र� लेना आसान रहेगा। उिचत स्थान का चुनाव होते ही एक कुशल
िचिकत्सा कम� क� तरहअपना लम्बा चूषण यंत्र त्वचा में घुसा देती है और पलक झपकते ही खून चू
चम्प हो जाती है।
यह ठहरे ह�ए पानी मे अंडे देती है क्योंिक अंडों और उनसे िनकलने वाले लावार् दोनों को पानी क� अ
आवश्यकता होती है। इसके अित�र� लवार को �सन के िलए पानी क� सतह पर बार-बार आना पड़ता है।
अंडे, लावार, प्यूपा और िफर वयस्क होने में मच्छर ल10- 14 िदन का समय लेते हैं। वयस्क मच्
पराग और शकर्रा वाले भोज-पदाथ� पर पलते हैं लेिकन मादा मच्छर को अंडे देने के िलए र� क� ज�र
होती है।
प्लास्मोिडयम का जीवन
मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती है। वयस्क मच्छर संक्
मनुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को ग्रहण कर लेते हैं। र� में मौजूद परजीवी के जनन
(gametocytes) मच्छर क मध्य आहार निलक (Mid Gut) में नर और मादा के �प में िवकिसत होते ह
और िफर िमलकर अंडाणु (Zygote) बनाते हैं जो मच्छर कआहार निलका क� िभि�यों में पलने लगते है
प�रपक्व होने पर ये फूटते ह, और इसमें से िनकलने वाले बीजाणु(Sporozoites) उस मच्छर क� ला-
ग ्रंिथयों में पह�ँच जाते हैं। जब मच् एक स्वस्थ मनुष्य को काटता है तो त्वचा में लार क-साथ
बीजाणु भी भेज देता है।
मले�रया परजीवी का मानव में िवकास दो चरणों में होता: यकृत में प्रथम , और लाल र� कोिशकाओं
में दूसरा चरण। जब एक संक्रिमत मच्छर मानव को काटता है तो बीज(Sporozoites) मानव र� में प्रव
कर यकृत में पह�ँचते हैं और शरीर में प्रवेश पान30 िमनट के भीतर ही ये यकृत क� कोिशकाओं को
संक्रिमत कर द ेते हैं। िफर ये यकृत में अलैंिगक जनन करने लगते हैं। य6 से 15 िदन चलता है। इस
जनन से हजारों अंशाणु(Merozoites) बनते हैं जो अपनी मेहमान कोिशकाओं को तोड़ कर र-प्रवा में
प्रवेश कर जाते हैं तथा लाल र� कोिशकाओं को संक्रिमत करना शु� कर देत
मच्छर में स्पोरोगो
वयस्क मच्छर संक्रिनुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को भी ग्रहण कर लेता ह
अितसू�म, एक कािशक�य और संसाधनहीन मले�रया परजीवी का जीवन चक्र बह�त जिटल होता है और द
वाहकों मादा एनोिफलीज़ मच्छर और मनुष्य पर आिश्रत रहता है। परजीवी अपनी सुर�ा और िवका
िलए वाहकों के5000 से ज्यादा जीन्स तथा िविश� प्रोटीन्स समेत अनेक संसाधनों का भर पूर
करता है।
मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती ह, जहाँ इसके जीवन चक्
क� लैंिगक अवस्, िजस े स्पोरोगोनी कहते ह, सम्पन्न होती है। इस अवस्था में मच्छर के शरीर में
बीजाणु िवकिसत होते हैं जो मनुष्य के शरीर में पह�ँच कर मले�रया का कारक बनते ह
जब मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर मले�रया से संक्रिमत मनुष्य का र�पान करत, तब र� के साथ मले�रया के
नर और मादा जननाणु (gametocytes) भी उसक� आहार-निलका में प्रवेश कर जाते हैं। यहाँ नर और म
जननाणु जुड़ कर जाइगोट बनाते है, जो िवकिसत होकर सिक्रय ऊकाइने(Ookinete) बनता है। यह
ऊकाइनेट मध्य आहा-निलका क� िभि� में प्रवेश करता, जहाँ यह िवकिसत और िवभािजत होता है और
ऊिसस्ट(oocysts) बनता है। इसमें हजारों बीजाण(sporozoites) रहते हैं।8-15 िदन क� स्पोरोगोिनक
अवस्था के अन्त में ऊिसस्ट टूट जाता है और असंख्य बीजाणु-निलका में आ जाते हैं। ये बीजाण
चल कर मच्छर क� लार ग्रंिथ (salivary glands) में एकित्रत हो जाते हैं। अब यह मच्छर मनुष
मले�रया फैलाने के िलए पूरी तरह तैयार है। जैसे ही यह मच्छर र�पान के िलए मनुष्य को काटता , लार
ग्रंिथयों में एकित्रत बीजाणु भी मनुष्य के शरीर म ें छोड़ िदये जाते हैं। यह देखा गया है िक परजीवी
दोनों एक दूसरे क� मदद करते हैं और मले�रया फैलाने में सिक्रय भागीदारी िनभाते
मनुष्य में शाइज़ोगोन (Schizogony in the Human)
मले�रया परजीवी के जीवन चक्र का अगला भाग मनुष्य के शरीर में सम्पन्न होता है। जैसे ही ब
(Sporozoites) मनुष्य के शरीर में पह�ँचते , ये यकृत क� कोिशकाओं में िछप कर अपने िवकास को आगे
बढ़ाते हैं। यकृत में अपना चक्र पूरा करने के बाद परजीवी अपनी अगली जीवन लीला लालर� कोिशकाओं
पू रा करते हैं। जीवन चक्र के इसी भाग में मनुष्य को मले�रया के अनेक ल�ण और जिटलताओं का स
करना पड़ता है।
िप्रइरेथ्रोसाइिटक अव– यकृत में शाइज़ोगोनी (Pre-erythrocytic Phase -
Schizogony in the Liver)
जब मनुष्य को संक्रिमत मच्छर काटता है तो मनुष्य क� त्वचा में दजर्नों या सैंकड़ों बीजाणु प्रवेश
कुछ बीजाणुओं को तो शरीर क� भ�ी कोिशकाएं (Macrophages) खा जाती हैं। कुछ बीजाणु लिसका
वािहकाओं में तो कुछ र-वािहकाओं में पह�ँचने में सफल हो जाते हैं। जो बीजाणु लिसका वािहकाओं
पह�ँचते है, पास के लिसकापवर् में जाकर एक्सोइरेथ्रोसाइिटक अ(Exoerythrocytic stages) में
चिक्रत होने लगते हैं। जो बीजाणु-वािहकाओं में पह�ँचते ह, वे मनुष्य क� सुर�ा सेना से बचते ह�ए कुछ ही
घंटों में सीधे यकृत में पह�ँच जाते हैं। बीजाणु थ्रोम्बो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी(TRAP) प�रवार
और ऐिक्ट-सायोिसन मोटर क� मदद से प�रवहन करते हैं। यकृत में पह�ँच कर ये यकृत क� कोिशकाओं क
पेरेसाइटोफोरस वेक्युओल में िवभािजत और िवकास करते हैं। यहाँ हर बीजाणु बढ़ कर शाइज़ोन्ट बनत,
िजसमें10000-30000 अ ंशाणु (Merozoites) होते हैं। यकृत में परजीवी के िवकास में सकर्मस्पोरो
नामक प्रोटीन बह�त मदद करता , जो परजीवी स्वयं बनाता है। िप्रइरेथ्रोसाइिटक अ5-16 िदन चलती
है, फैिल्सपैरम में औसत5-6 िदन, वाइवेक्स मे8 िदन, ओवेल में8 िदन, मले�रये में13 िदन और नौलेसी
में8-9 चलती है। यह परजीवी क� शांत अवस्था ह, इसमें पोषक मनुष्य को मले�रया का कोई ल�ण य
िवकृित नहीं होती ह, क्योंिक बीजाणु यकृत क� थोड़ी कोिशकाओं पर ही आक्रमण करते हैं। यह अवस
ही चक्र पूरा करती , जबिक अगली इरेथ्रोसाइिटक अवस्था -बार पुनरचिक्रत होती है।
यकृत कोिशका में पनपने वाले अंशाणु पोषक कोिशका द्वारा ही बनाई मीरोज़ोम नामक एक कुिटया में
िवयु� (Isolated) रहते है, और यकृत में िस्थत भ�ी कुफर कोिशकाओं के प्रकोप से सुरि�त रहते
अ ंततः अ ंशाणु यकृत कोिशका से िनकल कर र�-प्रवाह में िवलय हो जाते हैं और घातक तथा स
महत्वपूणर् इरेथ्रोसाइिटक अवस्था क� शु�वात करते
वाइवेक्स और ओवेल मले�रया में कुछ बीजाणु यकृत में महीनों और वष� तक सुषु� पड़े रहते हैं। इन्हों
(Hypnozoites) कहते है, और ये अव्य� अविध(जो कुछ स�ाह से कुछ महीने हो सकती है) के बाद
िवकिसत होकर शाइज़ोन्ट बनते हैं। ये सु�ाणु ही संक्रमण के कई महीने बाद ह�ए आवत� मले�रया का क
बनते हैं।
इरेथ्रोसाइिटक शाइगोन– लालर� कोिशकाओं में होने वाली मुख्य और केन्द
अवस्थ
(Erythrocytic Schizogony - Centre Stage in Red Cells)
मले�रया परजीवी के अलैंिगक जीवन चक्र क� मुख्य और केन्द्रीय अवस्था लालर� कोिशकाओ
होती है। लालर� कोिशकाओं में परजीवी के िवकास का च एक िनि�त अविध में बा-बार पुनरचिक्र
होता है और चक्र के अंत में सैंकड़ों नन्हे अंशाणु उत्पन्न होते हैं जो नई लालकोिशकाओं पर आ
हैं।
यकृत से िनकल कर अंशाणुओं को लालर� कोिशक ाओं को पहचान कर उनसे िचपकने और िफर उनमें
प्रवेश करने में एक िमनट से भी कम समय लगता है। इससे परजीवी क� सतह पर लगा एंटीजन पो
(मनुष्) के सुर�ाकिमर्यों क� नजर से बच िनकलने में सफल हो जाता है। अंशाणुओं के लालर� कािशका
प्रवेश हेतु दोनों क� सतह पर लगे लाइगेन्ड्स के पारस्प�रक आणिवक संवाद भी मदद करता है। वाइ
डफ� बाइिन्डं -लाइक प्रोटीन और रेिटकुलोसाइट होमोलोजी प्रोटीन क� मदद से िसफर् डफ� ब्ल
पोज़ीिटव लाल कोिशकाओं पर ही आक्रमण करते है
ध्यान रहे ि आक्रामक और घातक फैलिसपैरम में चार तरह के डफ� बाइिन-लाइक प्रोटी(DBL-
EBP) जीन्स होते ह, जबिक वाइवेक्स में एक ही डफ� बाइिन्-लाइक प्रोटी(DBL-EBP) जीन होता है।
इसिलए फैलिसपैरम कई तरह के लाल र� कोिशक ाओं पर आक्रमण कर सकता है
अंशाणु के िसरे पर बने िविश� उपांग िजन्हें माइक्रो, रोपट्राइन्स और घने दा( Micronemes,
Rhoptries, and Dense granules) कहते है, अंशाणु को लालर� कोिशक ाओं से जुड़ने और घुसने क�
प्रिक्रया में बह�त सहायक होते हैं। अंशाणु और लाल कोिशका का प्रारंिभक सम्पकर् लाल कोिश
को एक लहर क� भांित तेजी से िवकृत करता है, इससे दोनों का िस्थर जुड़ाव स्थल बनता है। इसके ब
अंश ाणु एिक्ट-मायोिसन मोटर, थ्रोम्बोस्पो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी(TRAP) प�रवार और
ऐल्डोलेज क� मदद से लाल कोिशका क� ि-िभि� (Bilayer) म ें घुसता है और पेरासाइटोफोरस वेक्युओ
बनाता है, िजससे अंशाणु का लाल कोिशका के कोिशका द्रव(Cytoplasm) से कोई सम्पकर् नहीं रहता,
और वह िनि�ंत होकर अपना जीवन चक्र आगे बढ़ाता है। इस अवस्था में परजीवी लालकोिशका मे
अंगूठी जैस ा िदखाई देता है, इसे मुिद्रकाणु कहते है
िवकासशील परजीवी का प्रमुख भोजन हीमोग्लोिबन होता है। इसिलए इसे भोजन पुिट(Food vacuole)
में ले जाकर अपघिटत िकया जाता ह, िजससे अमाइनो एिसड्स िनकलते है जो प्रोटीन िनमार्ण में काम
हैं। हीम पोलीमरेज एंजाइम बचे ह�ए टॉिक्सक हीम से हीमोज़ोइ(Malaria pigment) बनाते हैं। परजीवी
पीएलडीएच और प्लाज़मोिडयम ऐल्डोल्ज़ एंजाइम्स क� मदद से अवायवीय ग्लाइकोलाइिसस द्वार
उत्पादन करता है। जैसे जैसे परजीवी िवकिसत और िवभािजत होता ह, लालकोिशका क� पारगम्यता और
सं रचना में बदलाव आता है। यह बदलाव चयापचय अपिश� को बाहर करन, बाहर से उपयोगी पदाथ� का
अवशोषण करने में और िवद्-रासायिनक संतुलन बनाये रखने मे सहायता करता है। साथ ही हीमोग्लोिबन
का अन्तग्रर(Ingestion), पाचन और िवषहरण (Detoxification) अितपारगम्य लालकोिशका के र-
अपघटन (Hemolysis) के रोकता है। और परासरणीय िस्थरता(Osmotic Stability) बनाये रहता है।
परजीवी का इरेथ्रोसाइिटक चक्र नौलेसी मे24 घंटे मे, फैलिसपै रम, वाइवेक्स तथा ओवेल में ह48 घंटे
में और मले�रये में ह 72 घंटे में दोहराया जाता है। हर चक्र में अंशाणु वेकुओल में िवकिसत तथा िवभ
होते हैं और मुिद्रक, ट्रोफोजोइट तथा शाइज़ोन्ट अवस्था से गुजरते 8-32 (औसत 10) नये अ ंशाणु
बनते हैं। चक्र के अंत में लालकोिशका टूट जाती है और नन्हें अंशाणु बाहर िनकल िफर से
लालकोिशका को िशकार बनाती है। इस तरह अंश ाणु बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इनक� संख्य10
13
तक
पह�ँच जाती है।
कुछ अलैंिगक परजीवी शाइज़ोगोनी चक्र में न जाकर लैंिगक अवस्था ज(Gametocytes) म ें िवभेिदत
हो जाते हैं। ये नर और मादा जननाणु लालकोि शका से बाहर र� में रहते हैं और पोषक के शरीर में कोई
या िवकृित उत्पन्न नहीं करते हैं। ये मादा ऐनोिफलीज़ मच्छर के काटने पर उसके शरीर में चले जाते
परजीवी के लैंिगक िवकास को आगे बढ़ाते हैं। इस तरह ये मले�रया के फैलने में मदद करते हैं। वाइवेक्
जननाणु बह�त जल्दी बन जाते ह, जबिक फैलिसपै रम में अलैंिगक चक्र के भी काफ� देर बाद बनते