16 सितंबर 2016 : विश्व ओजोन दिवस Presentation by: MUKESH KUMAR Divisional Logging Manager Uttarakhand Forest Development Corporation Tons_Purola , Distt . : Uttarkashi ( Uttarakhand ) INDIA PIN:249128
WORLD OZONE DAY 2016,Mainly dealt with: ओज़ोन की उपस्थिति की खोज ओजोन और ओजोन परत : एक परिचय ओजोन परत का क्षरण विएना संधि / मॉन्ट्रयल प्रोटोकॉल , 1987 16 सितंबर : विश्व ओजोन दिवस The Ozone Day 2016 theme ओजोन परत का क्षरण : खतरा ओजोन परत का क्षरण : कारण ओजोन परत संरक्षण हेतु प्रयास ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास सारांश ओजोन दिवस के नारे (Ozone day slogans)
ओज़ोन की उपस्थिति की खोज पहली बार 1839 ई0 में सी एफ स्कोनबिअन के द्वारा की गई जब वह वैद्युत स्फुलिंग का निरीक्षण कर रहे थे । 1850 ई0 के बाद ही इसे एक प्राकृतिक वायुमंडलीय संरचना माना गया । ओज़ोन का यह नाम ग्रीक ( यूनानी ) शब्द ओज़ेन ( ozein ) के आधार पर पड़ा जिसका अर्थ होता है " गंध " । 1913 ई0 में , विभिन्न अध्ययनों के बाद , एक निर्णायक सबूत मिला कि यह परत मुख्यतः समतापमंडल में स्थित है ।
ओजोन और ओजोन परत : एक परिचय ऑक्सीजन के तीन अणुओ से के जुड़ने से ओजोन (O3) का एक अणु बनता है । इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध आती है । भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊचाई पर वायुमंडल ऑक्सीजन , ओजोन , हीलियम , ओजोन , और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं । जिनमें ओजोन परत धरती के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है । यह ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से धरती पर मानव जीवन की रक्षा करती है । सूरज से आने वाली ये पराबैगनी किरणें मानव शरीर की कोशिकाओं की सहन शक्ति के बाहर होती है । अगर पृथ्वी के चारों और ओजोन परत का यह सुरक्षा कवच नहीं होता तो शायद अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी जीवनहीन होती ।
ओज़ोन परत (Ozone layer) ओज़ोन कण अथवा ओज़ोन परत समताप मंडल में 15-35 किमी की ऊँजाई पर स्थित है । पिछले पचास वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति के उत्कृष्ट संतुलन को वायुमंडल में हानिकारक रसायनिक पदार्थों को छोड़कर अस्त-व्यस्त कर दिया है जो धीरे-धीरे इस जीवरक्षक परत को नष्ट कर रहा है । 1920 के दशक में , एक ऑक्सफोर्ड वैज्ञानिक , जी एम बी डॉब्सन , ने सम्पूर्ण ओज़ोन की निगरानी ( मानीटर करने ) के लिए यंत्र बनाया ।
ओजोन परत ओजोन परत के बिना हम जिंदा नहीं रह सकते क्योंकि पराबैंगनी किरणों के कारण कैंसर , फसलों को नुकसान और समुद्री जीवों को खतरा पैदा हो सकता है और ओजोन परत इन किरणों से हमारी रक्षा करती है । ओजोन परत तकरीबन 97 से 99 प्रतिशत तक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती है ।
ओज़ोन परत (Ozone layer) समताप मंडल में ओज़ोन की उपस्थिति विषुवत-रेखा के निकट अधिक सघन और सान्द्र है । ज्यों-ज्यों हम ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं , धीरे-धीरे इसकी सान्द्रता कम होती जाती है । ध्रुवों पर मौसम के अनुसार यह बदलता रहता है । ओज़ोन परत की क्षीणता दक्षिणी ध्रुव जो अंटार्कटिका पर है , पर स्पष्ट दिखाई देती है , जहाँ एक विशाल ओज़ोन छिद्र है । उत्तरी ध्रुव में ओज़ोन परत बहुत अधिक नष्ट नहीं हुई है । विश्व मौसम-विज्ञान संस्था (WMO) ने ओज़ोन क्षीणता की समस्या को पहचानने और संचार में अहम भूमिका निभायी है । चूँकि वायुमंडल की कोई अंतर्राष्ट्रीय सीमा नहीं है , यह महसूस किया गया कि इसके उपाय के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर विचार होना चाहिए ।
ओजोन परत का क्षरण : विगत कुछ दशको में शोधकर्ताओं द्वारा ओजोन परत पर किये गए अध्ययनों में यह पाया गया है की वायुमंडल में ओजोन की मात्रा धीरे धीरे कम होती जा रही है । ओजोन परत के क्षय की जानकारी सर्वप्रथम 1960 में हुयी । वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि अंटार्कटिका महादीप के ऊपर ओजोन परत में एक छेद हो गया हैऔर वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह पता लग पाया की वायुमंडल में प्रतिवर्ष के हिसाब से 0.5 % ओजोन की मात्रा कम हो रही है । एक अध्ययन में पाया गया की अंटार्कटिका के ऊपर वायमंडल में कूल 20 से 30 प्रतिशत ओजोन कम हो गयी है । न सिर्फ अंटार्कटिका बल्कि ऑस्ट्रेलिया , न्यूजीलैंड आदि देशों के ऊपर भी वायुमंडल में ओजोन परत में होने वाले छिद्रों को पाया गया है । बढ़ते समय के साथ-साथ अब उत्तरी ध्रुव पर भी बसंत ऋतु में इस प्रकार के छिद्र दिखाई देने लगे हैं ।
विएना संधि / मॉन्ट्रयल प्रोटोकॉल , 1987 (UNEP) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण योजना ने विएना संधि की शुरूआत की जिसमें 30 से अधिक राष्ट्र शामिल हुए । यह पदार्थों पर एक ऐतिहासिक विज्ञप्ति थी , जो ओज़ोन परत को नष्ट करते हैं तथा इसे 1987 ई0 में मॉन्ट्रियल में स्वीकार कर लिया गया । इसमें उन पदार्थों की सूची बनाई गई जिनके कारण ओज़ोन परत नष्ट हो रही है । वर्ष 2000 तक क्लोरोफ्लोरो कार्बन के उपयोग में 50% तक की कमी का आह्वान किया गया ।
मॉन्ट्रयल प्रोटोकॉल ओज़ोन परत की आशा के अनुरूप प्राप्ति पदार्थों के मॉन्ट्रयल प्रोटोकॉल के बिना असंभव है जो ओज़ोन परत को नष्ट करता है (1987) जिसने ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले सभी पदार्थों के उपयोग में कमी के लिए आवाज उठाया । विकासशील राष्ट्रों के लिए इसकी अंतिम तिथि 1996 थी , जबकि भारत को 2010 ई0 तक इस बड़े विनाशकारी रसायन को पूर्णतः समाप्त कर देना है ।
16 सितंबर : विश्व ओजोन दिवस विश्व ओज़ोन दिवस (World Ozone Day) या ‘ ओज़ोन परत संरक्षण दिवस ’ 16 सितम्बर को पूरे विश्व में मनाया जाता है । 23 जनवरी , 1995 को संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित …
The Ozone Day 2016 theme “Ozone Layer Protection: The Mission Goes On”
ओजोन परत का क्षरण : खतरा ओजोन परत के बिना हम जिंदा नहीं रह सकते क्योंकि पराबैंगनी किरणों के कारण कैंसर , फसलों को नुकसान और समुद्री जीवों को खतरा पैदा हो सकता है । एक खतरा इसके कारण ध्रुवों के पिघलने का है । अंटार्कटिका में ओजोन में एक बड़ा छेद हो गया है । अंटार्कटिका क्षेत्र में बड़े हिमखंड यदि पिघलते हैं तो तटीय क्षेत्रों में बाढ ़ सहित कई खतरे पैदा हो सकते हैं । इसके अलावा गर्मी भी बढ़ेगी जो नुकसानदायी होगी ।
ओजोन परत का क्षरण : कारण ओजोन परत की क्षरण के लिए क्लोरीन और ब्रोमीन के अणु जिम्मेदार हैं । जब इन अणुओं से युक्त गैसे पर्यावरण में छोड़ी जाती हैं तो ये कालांतर में ओजोन परत के क्षरण का कारण बनती हैं । ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाली सबसे आम हैलोजन गैस क्लोरोफ्लोरो कार्बन है जिसे सीएफसी के नाम से भी जाना जाता है । इसके अलावा मिथाइल क्लोरोफॉर्म , कार्बन टेट्राक्लोरिडे आदि रसायन पदार्थ भी ओजोन को नष्ट करने में सक्षम हैं । इन रसायन पत्रथो को " ओजोन क्षरण पदार्थ " कहा गया है । इनका उपयोग हम मुख्यत : अपनी दैनिक सुख सुविधाओ में करते हैं जैसे एयर कंडीशनर , रेफ्रिजरेटर , फोम , रंग , प्लास्टिक इत्यादि .
ओजोन परत का क्षरण : कारण इलेक्ट्रॉनिक उद्योंगो में मुख्यत : इन पदार्थो का उपयोग किया जाता है । एयर कंडीशनर में प्रयुक्त गैस फ्रियान-11, फ्रियान-12 भी ओजोन के लिए हानिकारक है क्योंकि इन गैसों का एक अणु ओजोन के लाखों अणुओं को नष्ट करने में सक्षम है । धरती पर पेड़ों की बढ़ती अंधाधुंध कटाई भी इसका एक कारण है । पेड़ों की कटाई से पर्यायवरण में ऑक्सीजन की मात्रा काम होती है जिसकी वजह से ओजोन गैस के अणुओं का बनना कम हो जाता है ।
ओजोन परत संरक्षण हेतु प्रयास : सभी लोगों को उन पदार्थों और उनके नुकसान को लेकर जागरूक रहना चाहिए जो इस परत को नुकसान पहुंचाते हैं । कई आसान तरीके हैं जिन्हें अपनाकर ओजोन परत को बचाया जा सकता है जैसे पर्यावरण मित्र उत्पादों का इस्तेमाल करना , एयरोसोल और अन्य सीएफसी से युक्त चीजों के उपयोग से बचना , पौधारोपण को बढ़ावा देना । यदि फ्रीजर और एसी काम नहीं कर रहा तो उसे ठीक करवाना आदि । इस तरह की कई छोटी छोटी बाते हैं जिनका ध्यान रखकर ओजोन परत को बचाने में योगदान दिया जा सकता है । • कम से कम ऊंचाई वाले विमान उड़ानों( ऑक्सीजन की कमी और जल वाष्प जमाव ) • रॉकेट उड़ान (जल वाष्प जमाव ) कम से कम ।
ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास : ओजोन परत के बढ़ते क्षय को ध्यान में रखते हुए कुछ देशों द्वारा पिछले तीन दशकों में महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं । ओजोन परत के संरक्षण हेतु विभिन्न देशों द्वारा विश्व स्तर पर किये गए कुछ महत्वपूर्ण प्रयास इस प्रकार हैं :- ओजोन-क्षय विषयों से निबटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौते हेतु अंतर-सरकारी बातचीत 1981 में प्रारंभ हुई । मार्च , 1985 में ओजोन परत के बचाव के लिए वियना में एक विश्वस्तरीय सम्मेलन हुआ , जिसमें ओजोन संरक्षण से संबंधित अनुसंधान पर अंतर-सरकारी सहयोग , ओजोन परत के सुव्यवस्थित तरीके से निरीक्षण , सीएफसी उत्पादन की निगरानी और सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर गंभीरता से वार्ता की गयी । सम्मेलन के अनुसार मानव स्वास्थ्य और ओजोन परत में परिवर्तन करने वाली मानवीय गतिविधियों के विरूद्ध वातावरण बनाने जैसे आम उपायों को अपनाने पर देशों ने प्रतिबद्धता व्यक्त की ।
ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास : 1987 में सयुक्त राष्ट्र संघ ने में ओजोन परत में हुए छेदों से उत्पन्न चिंता के निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियाल शहर में 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे “ मांट्रियाल प्रोटोकाल ” कहा जाता है । इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थ जैसे क्लोरो फ्लोरो कार्बन ( सी.एफ.सी .) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए । भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए । 1990 में मांट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने 2000 तक सी.ऍफ़.सी . और टेट्रा क्लोराइड जैसी गैसों के प्रयोग पर भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की । भारत में ओजोन क्षरण पदार्थ सम्बंधित कार्य का संचालन मुख्यत पर्यायवरण एवं वन मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है । साथ ही साथ " स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन ", इंदौर का भी इसमें सहयोग है । हर वर्ष 16 सितमबर को ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि इस दिन ओजोन परत से जुड़े तथ्यों के बारे में जागरूकता बनाई जा सके ।
ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास : सितम्बर 2006 के रूप में सबसे बड़ा अंटार्कटिक ओज़ोन होल दर्ज . क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स का सर्वाधिक उपयोग विकसित राष्ट्र करते हैं . मॉन्ट्रियल में इस संधि को हस्ताक्षर के लिए 16 सितंबर , 1987 को खोला गया था . इस संधि पर ४६ राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किये . और यह 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हुई , जिसके बाद इसकी पहली बैठक मई , 1989 में हेलसिंकी , में हुई . तब से , इसमें सात संशोधन हुए हैं : 1990 में ( लंदन ), 1991 ( नैरोबी ), 1992 ( कोपेनहेगन ), 1993 ( बैंकाक ), 1995 ( वियना ), 1997 ( मॉन्ट्रियल ), और 1999 ( बीजिंग ) में .
ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास : ऐसा माना जाता है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय समझौते का पूरी तरह से पालन हो तो , 2050 तक ओज़ोन परत ठीक होने की उम्मीद है . इसे 196 राष्ट्रों द्वारा मान्यता दी गई है . मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स ( सी.एफ.सी .) का उत्पादन व उपयोग पूरी तरह बन्द कर इनके विकल्प के रूप में सुरक्षात्मक प्रोद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहन दिया जायेगा .
ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास : मॉन्ट्रियल कन्वेंशन में इस बात पर सहमति बनी कि वर्ष 2000 तक ओजोन के लिये खतरनाक गैसों के प्रयोग एवं रिसाव में 90 फीसदी की कटौती की जाएगी । अनेक विकासशील देशों ने इसका विरोध किया । और कहा कि यह प्रतिबन्ध सबसे पहले उन पर लागू होने चाहिए जिन्होंने अभी तक पर्यावरण का सीएफसी यानी क्लोरोफ्लोरो कार्बन से सर्वाधिक प्रदूषित किया है । उनके अनुसार विकासशील देशों का सीएफसी का उपयोग वैसे ही बहुत कम है , ऐसी हालत में उनके यहाँ 90 फीसदी का अर्थ है सीएफसी पूरी तरह निषिद्ध हो जाना ।
सारांश : वर्तमान समय में अनेक प्रकार के केमिकल के बढ़ते प्रयोग , वृक्षों का अंधाधुंध कटना , इन सब के कारण ओजोन परत का क्षय बढ़ता ही जा रहा है । ऐसे में हमारा ये दायित्व है की हम वृक्षों को लगाये ताकि ऑक्सीजन अधिक से अधिक मात्र में वायमण्डल में बनी रही और इससे ओजोन अणुओं का निर्माण हो । साथ ही साथ उद्योग मालिकों और प्रबंधन को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वो ऐसे पदार्थों और प्रक्रियाओं का उपयोग न करें , जो ओजोन परत पर बुरा असर डालते हैं । दोस्तों , हमारे पास एक ही तो पृथ्वी है , अत : हमको इस पृथ्वी पर जीव जन्तुओं के अस्तित्व हेतु प्रकृती के साथ खिलवाड़ बंद करना होगा , नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मानव भी विलुप्त हो जाएगा ।
हम ओजोन दिवस इन बड़ी-बड़ी बातों में न भी जावें तो इतना जरूर समझ गये हैं कि ओजोन परत ओजोन गैस से बनी हुई है तथा ओजोन गैस ऑक्सीजन से बनती है . ऑक्सीजन का उत्पादन पेड़-पोधों से होता है . हम क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स का उपयोग रोक पायें या नहीं ; पेड़-पोधे जरूर लगा सकते है , उनकी सुरक्षा कर सकते हैं . इसलिए अधिक से अधिक पोधे लगावें तथा उनकी सुरक्षा करें .
ओजोन दिवस के नारे (Ozone day slogans) : ओजोन परत में हर होल , हमारी आत्मा में होल समान . ओजोन के बिना पृथ्वी , छत के बिना घर सामान . ओजोन को ओजोन ही रहने दो , ओजोन को NO जोन मत बनने दो . छाता बारिश से हम को बचाता , ओजोन सूर्य से पृथ्वी को बचाता . एक तो हमको चुनना होगा , ओजोन या नो-जोन . पृथ्वी हमारी माता है तो , ओजोन हमारी दादी-माँ है . प्रदूषण हटाओ , ओजोन बचाओ . ओजोन बचाओ , जीवन बचाओ . ओजोन बचाओ , रेड-जोन भगाओ . ओजोन परत अनमोल रतन , रक्षा का हम करें जतन . ओजोन परत को दाग से बचाओ , अगली पीढ़ी को आग से बचाओ .