सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय” और “नदी के द्वीप” कविता.pdf

538 views 5 slides Mar 31, 2025
Slide 1
Slide 1 of 5
Slide 1
1
Slide 2
2
Slide 3
3
Slide 4
4
Slide 5
5

About This Presentation


































कविता संग्रह- भगन्दूत (1933), चिंता (1942), इत्यालम (1946), हरि घास पर क्षण भर (1949), बावरा अहेरी (1954), इन्द्रधनु रौंदे हु�...


Slide Content

कविता संग्रह- भगन्दूत (1933), च िंता (1942), इत्यालम (1946), हरि घास पि क्षण भि (1949), बाविा अहेिी (1954), इन्रधनु
िौंदे हुए ये (1957), अिी ओ क�णा प्रभुमाया (1959), आँगन के पि द्वाि (1961), पूवाा (1965), सुनहले शैवाल (1965), चकतनी
नावों में चकतनी बाि (1967), क्योंकी मैं उसे जानता ह िं (1969), सागि-मुरा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता ह िं (1973), महावृक्ष के
नी े (1977), नदी की चकनािे पि छाया (1982), सदानीिा-1 (1986), सदानीिा-2 (1986), ऐसा कोई घि आपने देखा है (1986),
सवचिदानंद हीरानंद िात्स्यायन “अज्ञेय” और “नदी के द्वीप ” कविता

मा�थल (1995), सजाना के क्षण ( यन), ठौर वठकाने (ह्तविवित, जेरॉक्स करके प्रसाररत), किावास के चदन (अिंग्रेजी से
अनुवाद: उदय शिंकि श्रीवास्तव), कचवश्री (सिं. चशयािाम शिण गुप्त), आज के लोकचप्रय कचव (सिं. चवद्या चनवास चमश्र), काव्य-स्तबक
(चवद्या चनवास चमश्र औि िमेश िंर शाह द्वािा सिंपाचदत), सन्नाटे का छिंद ( अशोक वाजपेयी द्वािा सिंपाचदत ), अज्ञेय: सिंकचपपत कचवताएिं
(सिंपादक नामवि चसिंह)
उपन्यास:- शेखि: एक जीवनी I (1941), शेखि: एक जीवनी II (1944), शेखि: एक जीवनी III (अप्रकाचशत) , नदी के द्वीप
(1952), अपने-अपने अजनबी (1961), बािहखम्भा (सह-लेखक, 1987), छाया मेखल (अपूणा, 2000), बीनू भगत (अपूणा, 2000)

कहावनयााँ संकिन : चवपथगा (1937), पिम्पिा (1944), कोठिी की बात (1945), शिणाथी (1948), जयडोल (1951),
अमिवपलिी तथा अन्य कहाचनयाँ (1954), कच़ियाँ तथा अन्य कहाचनयाँ (1957), सटीक फूल तथा अन्य कहाचनयाँ (1960), ये तेिे
प्रचत�प (1961), चजज्ञासा तथा अन्य कहाचनयाँ (1965), मेिी चप्रय कहाचनयाँ ( यन, 2004), छोिा हुआ िास्ता (सिंपूणा कहानी-1,
1975), लौटती पगडिंचडयाँ (सम्पूणा कहाचनयाँ-2, 1975), सम्पूणा कहाचनयाँ (2005), आदम की डायिी (सिंपादक: नन्द चकशोि आ ाया,
2002)

िेि:- उत्ति चप्रयदशी
यात्रा िृत्ांत:- क्या यायावि िहेगा याद (1953), चकिनों की खोज में ( यन, 1955), एक बूँद साहस उछली (1960)
आिोिना: चिशिंकु

वहन्दी सावहत्सयः एक आधुचनक परिदृष्य, आत्मनेपद, आत्मपिक, आलवाल, चलखी कागद कोिे, जोग चलखी, आद्यतन, सिंवत्सि, स्मृचत
के परिदृश्य, स्रोत औि सेतु, व्यचि औि व्यवस्था, युग-सिंचधयों पि, धाि औि चकनािे, भाितीय कला दृचि, स्मृचत िंदा, केन्र औि परिचध,
सृजन: क्यों एयि कैसे, कचव-चनकश, कचव-दृचि (प्रस्तावना), तद्भव ( अशोक वाजपेयी द्वािा यन ), लेखक का दचयतत्व (निंद चकशोि
आ ाया द्वािा सिंपाचदत), खुले में ख़िा पे़ि (निंद चकशोि आ ाया द्वािा सिंपाचदत)
प्रकाश वनबंध: सब बजी, सब ििंग औि कुछ िाग, कहाँ है द्वािका, छाया का जिंगल
डायरी: भविंती, अिंतिा, शाश्वती, शेष, कचवमन (इला डालचमया कोइिाला द्वािा सिंपाचदत)
सं्मरण: स्मृचत-लेखा, स्मृचत के गचलयों से, मैं क्यों चलखता ह ँ
संपावदत: ताि सप्तक, दूसिा सप्तक, तीसिा सप्तक, ौथा सप्तक, पुष्करिणी, नये एकािंकी, नेह� अचभनिंदन ग्रिंथ (सह-सिंपादक), �पाम्बिा
(सुचमिानन्दन पन्त अचभनन्दन ग्रन्थ), होमवती स्मािक ग्रन्थ, सजान औि सिंप्रेषण, साचहत्य का परिवेश, साचहत्य औि समाज परिवतान,
सामाचजक यथाथा औि कथा-भाषा, समकालीन कचवता में छिंद, भचवष्य औि साचहत्य, भाितीय काव्य पििंपिा (चवद्या चनवास चमश्रा औि
चलयोनाडा नाथन के साथ)
पररिय: नये साचहत्य सृिा-1 िघुवीि सहाय: धूप में सीच़ियाँ, नये साचहत्य सृिा-2 सवेश्वि दयाल सक्सैना: काठ की घिंचटयाँ, नये साचहत्य
सृिा-3 अचजत कुमाि: अिंचकत होन दो, नये साचहत्य सृिा-4 शािंचत मेहिोिा
अंग्रेजी में: जेल के चदन औि अन्य कचवताएँ (कचवता), समय की भावना (चनबिंध)
अज्ञेय पर व़िल्में: सािस्वत वन का बाविा अहेिी, चनमाािी दुगाावती चसिंह, दूिदशान, नई चदपली, सन्नाटे का छिंद, चदि. प्रमोद एविं नीचलमा
माथुि, वत्सल चनचध, नई चदपली , दीप अकेला, चनदेशक. प्रमोद माथुि, एमजीएए वीवी, वधाा, कचव भािती, भाित भवन , भोपाल

अज्ञेय को उनके काव्य सिंग्रह आिंगन के पाि द्वाि के चलए 1964 में साचहत्य अकादमी पुिस्काि औि 1978 में कितनी नावों में
कितनी बार के चलए ज्ञानपीठ पुिस्काि से सम्माचनत चकया गया था । उन्हें 1983 में कचवता के चलए भाितभािती पुिस्काि औि
गोपडन िीथ पुिस्काि से भी सम्माचनत चकया गया।
अज्ञेय को 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली चहिंदी लेखकों में से एक माना जाता है औि उन्हें चहिंदी साचहत्य में आधुचनकता के
सिंस्थापक के �प में देखा जाता है। उन्हें 1940 औि 1960 के दशक के बी के चहिंदी लेखकों में 'सबसे अचधक पचिमीकृत'
माना जाता है। उनके लेखन में बौचिकता औि व्यचिवाद के अत्यचधक उपयोग के चलए अक्सि उनकी आलो ना की जाती
थी।

चवद्वान सुशील कुमाि फुपल अज्ञेय को 'बौचिक चदग्गज' औि 'भाषा का पिंचडत' (भाषा का स्वामी) कहते हैं, औि उनकी कचवता
में प्रयुि अस्पि औि सिंचक्षप्त भाषा के चलए उनकी तुलना अिंग्रेजी कचव िॉबटा ब्राउचनिंग से किते हैं।

सवचिदानंद हीरानंद िात्स्यायन को 'अज्ञेय' नाम म ंशी प्रेमिंद से वमिा। इसका वजक्र ्ियं अज्ञेय जी ने अपने एक
साक्षात्सकार में वकया था।
































सवचिदानंद हीरानंद िात्स्यायन “अज्ञेय” और “नदी के द्वीप” कविता