प्राणायाम परिचय, प्रकार, महत्व, प्राणायाम कैसे काम करता है?
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Added: Jul 16, 2018
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प्राणायाम कपालभाती क्रिया
प्राणायाम
Yogdarshan SAMADHI PADA SENTENCE 34 PRACHCHHARDANA VIDHARANA ABHYAM VA PRANASYA ||34|| प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य ॥३४॥ pracchardana-vidhāraṇa-ābhyāṁ vā prāṇasya ||34|| The goal can be attained through breathing exercises involving holding your breath before exhaling. ||34|| pracchardana = exhale; discharge; eject vidhāraṇa = hold in; hold back ābhya = both, and vā = or (The state of yoga can also be reached by...) prāṇasya = breath or prana ; vital energy प्राण को नासिका के द्वारा बाहर फेंकने और फेंककर बाहर रोके रहना इन दो प्रकारों से चित्त की एकाग्रता होती है |
SAMADHI PADA SENTENCE 34 Vyasbhasya कौष्ठयस्य … संपादयेत् ||३४|| उदरस्थवायु को नासिका के पुटों द्वारा विशिष्ट प्रयत्न के द्वारा बाहर निकालना प्रच्छर्दन है| रोकना विधारण है| इन दोनों के द्वारा या किसी एक के द्वारा मन की स्थिति का सम्पादन करें |
चित्तवृतियों के निरोध हेतु अष्टांग योग का मार्ग यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि॥२९ ॥ २९ साधन पाद . The Yoga Sutras of Patanjali - The Threads of Union Translation by BonGiovanni 2.29 The eight limbs of Union are self-restraint in actions, fixed observance, posture, regulation of energy , mind-control in sense engagements, concentration, meditation, and realization.
SADHANA PADA SENTENCE 49 TASMIN SATI SHVASA PRASHVASYOR GATI VICHCHHEDAH PRANAYAMAH ||49|| तस्मिन् सति श्वासप्रश्वास्योर्गतिविच्छेदः प्राणायामः ॥४९॥ tasmin sati śvāsa-praśvāsyor-gati-vicchedaḥ prāṇāyāmaḥ ||49|| Once that ( tasmin ) ( Āsana or Posture) has been (perfected) (sati), Prāṇāyāma ( prāṇāyāmaḥ ), (which) is the suspension( vicchedaḥ ) of the flow ( gati ) of inhalation ( śvāsa ) and exhalation -- praśvāsa -- ( praśvāsayoḥ ), (should be developed) ||49 || tasmin = after this; after asana sati = being accomplished śvāsa = inhaling praśvāsyoḥ = (from praśvāsa ) exhaling gati = movement vicchedaḥ = (nom from viccheda ) interruption; braking; ceasing; mastering prāṇa = life force; life energy yāma = bind; regulate āyāma = release; liberate prāṇāyāmaḥ = (nom. from prāṇāyāma ) harmony with life energy; yoga breathing exercises आसन की सिद्धि हो जाने पर श्वास- प्रश्वास की गति को रोक देना प्राणायाम कहलाता है |
SADHANA PADA vyasbhasya of SENTENCE 49 सत्यासनजये वाह्यस्य वायोराचमनं श्वासः कौष्ठ्यस्य वायोर्निःसारणं प्रश्वासस्तयोर्गतिविच्छेद उभयाभावः प्राणायामः॥४९ ॥ Having conquered ( jaye ) the genuine ( satya ) Āsana or Posture ( āsana ), suspension ( vicchedaḥ ) of the flow or movement ( gati ) of those two ( tayoḥ ) (or) absence ( abhāvaḥ ) of them both ( ubhaya ), (that is, of) inhalation ( śvāsaḥ )[absorption ( ācamanam ) of external ( vāhyasya ) air -- vāyu -- ( vāyoḥ )] (and) exhalation ( praśvāsaḥ ) [expulsion ( niḥsāraṇam ) of internal ( kauṣṭhyasya ) 1 air -- vāyu -- ( vāyoḥ )] (is) Prāṇāyāma ( prāṇāyāmaḥ )||49 || आसन के सिद्ध होने पर वाह्य वायु को भीतर लेना श्वास है | कोष्ठगत वायु को बहार निकालना प्रश्वास है | उन दोनों द्वारा गति का विच्छेद अर्थात दोनों प्रकार के वायु को रोकना प्राणायाम कहलाता है | ५ ०. बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिः देशकालसंख्याभिः परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्मः । बाह्यवृति , आभ्यंतरवृति और स्तम्भवृति प्राणायाम देश, काल और संख्या के द्वारा जाना हुआ लम्बा और हल्का हो जाता है|
प्राणायाम के प्रकार हठयोग प्रदीपिका के अनुसार: सहित प्राणायाम सुर्यभेदी प्राणायाम उज्जायी प्राणायाम शीतली प्राणायाम भस्त्रिका प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम मूर्छा प्राणायाम केवली प्राणायाम
प्राणायाम का महत्व संसार में बांधनेवाला , बुद्धि को दुष्कर्म में लगाने वाला, अशुभ कर्म प्राणायाम के अभ्यास से दुर्बल होता है और प्रतिक्षण क्षीण होता है | प्राणायाम से बढ़कर तप नहीं, प्राणायाम से मलों की शुद्धि होती है और ज्ञान की दीप्ति होती है | मन को धारणा आदि में लगाने की योग्यता हो जाती है अर्थात योगाभ्यासी जहाँ कही भी मन को रोकना चाहे,वहाँ रोकने में समर्थ हो जाता है - साधनपाद व्यासभास्य ५२-५३
“ प्राणायाम ” पुस्तक -स्वामी कुवलयानंद , कैवल्यधाम के कुछ अंश आसन: कुशासन के ऊपर हरिणाजिन या मोटे ऊनी वस्त्र तथा उसके ऊपर प्रतिदिन धोये हुए मोटे खादी के वस्त्र से एक अत्यंत सुखावह आसन बन जाता है | खड़े-खड़े या चलते-चलते प्राणायाम: “ गच्छता तिष्ठता कार्यम् | उज्जायाख्यं तु कुम्भकम् |” उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास खड़े-खड़े या चलते-चलते भी किया जा सकता है | – ह. प्र. २/५२
प्राणायाम का विज्ञान ( हठप्रदीपिका में वर्णित) चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत् | योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायु निरोधयेत || ह. प्र. अ. २ श्लोक २ वायु के चलायमान होने पर चित्त भी चञ्चल होता है और वायु के निश्चल हो जाने पर चित्त भी स्थिर हो जाता है, तब योगी स्थिरता को प्राप्त होता है| अतः प्राणायाम का अभ्यास करें | अशुद्ध नाड़ी से कार्य सिद्धि नहीं हो पाती है अतः प्राणायाम करें | ह. प्र. अ. २ श्लोक ४ श्लोक ७-८-९: अनुलोम विलोम की सही तकनीक: तब तक रोके जब तक श्वास छोड़ने की संवेदना न हो | श्वास कभी वेग से न छोड़े | श्लोक १०-११ : तीन मास से कुछ अधिक समय में नाड़ी समूह निर्मल हो जाते है | प्रातः, मध्याहन , सायं तथा अर्धरात्रि इस प्रकार दिन में चार बार प्राणायाम करें | कुम्भकों की संख्या धीरे-धीरे ८० तक ले जाए |
प्राणायाम का विज्ञान ( हठप्रदीपिका में वर्णित) श्लोक १६: उचित रीति से किया गया प्राणायाम सभी रोगों का नाश करता है | अनुचित रीति से किया गया प्राणायाम सभी रोगों की उत्पति करता है | श्लोक १९: प्राणायाम से शरीर पतला और कान्तिमान होता है श्लोक २०: जठराग्नि प्रदीप्त होती है | आरोग्य लाभ होता है | श्लोक २१: स्थूलता और कफ जिसे अधिक हो उन्हें प्राणायाम से पहले ६ शोधन क्रियाएँ करनी चाहिये | श्लोक ४५: पूरक के अन्त में जालन्धर बन्ध कुम्भक के अन्त तथा रेचक के आरम्भ में उड्डियान बन्ध करना चाहिये | श्लोक ५१: मुख को बंद कर दोनों नथुने से वायु को कुछ आवाज के साथ धीरे-धीरे इस प्रकार लेना चाहिए, जिससे कंठ से ले कर हृदय प्रदेश तक इसके स्पर्श का अनुभव हो | श्लोक ५२: उज्जायी धातु-सम्बन्धी दोषों को नष्ट करने वाला है | इसका अभ्यास उठते बैठते सदा सर्वदा करना चाहिये |
घेरण्ड संहिता – प्राणायाम प्रकरण श्लोक १: प्राणायाम का साधन करने मात्र से मनुष्य देवता के समान हो जाता है | श्लोक २: प्रथम स्थान और काल का चुनाव तथा मिताहार और नाड़ी शुद्धि करें | इसके पश्चात प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए श्लोक ३-७: दूर देश में, अरण्य(वन) में और राजधानी में बैठकर योगाभ्यास नहीं करना चाहिए, अन्यथा सिद्धि में हानि हो सकती है, क्योंकि दूर देश में किसी का विश्वास नहीं होता , अरण्य(वन ) रक्षक रहित होता है, और राजधानी में अधिक जनसमूह रहने के कारण प्रकाश एवं कोलाहल रहता है | इसीलिए ये तीनों स्थान इसके लिए वर्जित है | सुन्दर धर्मशील देश में, जहाँ खाद्य पदार्थ सुलभ हों और देश उपद्रव रहित भी हो, वहाँ कुटी बनाकर उसके चारों और प्राचीर ( चहारदीवारी ) बना लें | वहाँ कुआँ या जलाशय हो | उस कुटी कि भूमि न बहुत ऊँची हो, न बहुत नीची, गोबर से लिपी हुई कीट आदि से रहित और एकांत स्थान में हो | वहाँ प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए |
घेरण्ड संहिता – प्राणायाम प्रकरण श्लोक ८-१५ का अंश: बसन्त (चैत्र-वैशाख) और शरद् ऋतु (आश्विन-कार्तिक) में अभ्यास शुरू करना उचित है | श्लोक १६-२२ का अंश : जो साधक योगारम्भ करने के काल में मिताहार नहीं करता, उसके शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते है | यौगिक आहार लेना चाहिए | आधा पेट भरना और आधा खाली रखना चाहिए | पेट के आधे भाग को अन्न से, तीसरे भाग को जल से भरना और चौथे भाग को वायु- संचालनार्थ खाली रखना चाहिए | श्लोक २३-२६ का अंश : (१) कड़वा, अम्ल, लवण और तिक्त ये चार रस वाली वस्तुओं का त्याग (२) प्याज, लहसुन, हींग आदि का त्याग (३) घूमना-फिरना तथा अग्नि सेवन न करें एवं ब्रह्मचर्य का पालन करें श्लोक ३२: कुश का मोटा आसन, मृग चर्म या सिंह चर्म अथवा कम्बल में से किसी प्रकार के आसन पर पूर्व या उत्तर की और मुख करके नाड़ी शुद्धि होने पर प्राणायाम का साधन करना चाहिए |
प्राणायाम विधि: सहित प्राणायाम:
भ्रामरी प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम करते समय भ्रमर अर्थात भंवरे जैसी गुंजन होती है, इसी कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं। भ्रामरी प्राणायाम से जहां मन शांत होता है वहीं इसके नियमित अभ्यास से और भी बहुत से लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं । विधि- सुखासन , सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर सर्वप्रथम दोनों होथों की अंगुलियों में से अनामिका अंगुली से नाक के दोनों छिद्रों को हल्का सा दबाकर रखें। तर्जनी को पाल पर, मध्यमा को आंखों पर, सबसे छोटी अंगुली को होठ पर और अंगुठे से दोनों कानों के छिद्रों का बंद कर दें। फिर श्वास को धीमी गति से गहरा खींचकर अंदर कुछ देर रोककर रखें और फिर उसे धीरे-धीरे आवाज करते हुए नाक के दोनों छिद्रों से निकालें। श्वास छोड़ते वक्त अनामिका अंगुली से नाक के छिद्रों को हल्का सा दबाएं जिससे कंपन उत्पन्न होगा। जोर से पूरक करते समय भंवरी जैसी आवाज और फिर रेचक करते समय भी भंवरी जैसी आवाज उत्पन्न होना चाहिए। पूरक का अर्थ श्वास अंदर लेना और रेचक का अर्थ श्वास बाहर छोड़ना होता है। सावधानी- भ्रामरी प्राणायाम को लेटकर नहीं किया जाता। नाक या कानों में किसी प्रकार का संक्रमण होने कि स्थिति में यह अभ्यास ना करें। इसके लाभ- इसे करने से मन शांत होकर तनाव दूर होता है। इस ध्वनि के कारण मन इस ध्वनि के साथ बंध सा जाता है, जिससे मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है। यह मस्तिष्क के अन्य रोगों में भी लाभदायक है। इसके अलावा यदि किसी योग शिक्षक से इसकी प्रक्रिया ठीक से सीखकर करते हैं तो इससे हृदय और फेफड़े सशक्त बनते हैं। उच्च-रक्तचाप सामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट भी इसके नियमित अभ्यास से दूर होती है। योगाचार्यों अनुसार पर्किन्सन , लकवा, इत्यादि स्नायुओं से संबंधी सभी रोगों में भी लाभ पाया जा सकता है।
मूर्छा प्राणायाम: सिद्धासन में बैठ जाएं और गहरी श्वास लें फिर श्वास को रोककर जालन्धर बंध लगाएं। फिर दोनों हाथों की तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से दोनों आंखों की पलकों को बंद कर दें। दोनों कनिष्का अंगुली से नीचे के होठ को ऊपर करके मुंह को बंद कर लें। इसके बाद इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक श्वास अंदर रोकना सम्भव हों। फिर धीरे-धीरे जालधर बंध खोलते हुए अंगुलियों को हटाकर धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ दें। इस क्रिया को 3 से 5 बार करें।
केवली प्राणायाम: स्वच्छ तथा उपयुक्त वातावरण में सिद्धासन में बैठ जाए। अब दोनों नाक के छिद्र से वायु को धीरे-धीरे अंदर खींचकर फेफड़े समेत पेट में पूर्ण रूप से भर लें। इसके बाद क्षमता अनुसार श्वास को रोककर रखें। फिर दोनों नासिका छिद्रों से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें अर्थात वायु को बाहर निकालें। इस क्रिया को अपनी क्षमता अनुसार कितनी भी बार कर सकते हैं | दूसरी विधि- रेचक और पूरक किए बिना ही सामान्य स्थिति में श्वास लेते हुए जिस अवस्था में हो, उसी अवस्था में श्वास को रोक दें। फिर चाहे श्वास अंदर जा रही हो या बाहर निकल रही हो। कुछ देर तक श्वासों को रोककर रखना ही केवली प्राणायाम है ।