अहिफेन-विष की चिकित्सा : 1. शोधन - रीठे के जल या सरसों या राई मिले गरम जल से वमन कराना तथा आमाशय नलिका से आमाशय का प्रक्षालन । 2. प्रतिविषों का प्रयोग - रीठा, हींग, बखरोट, अरहर, आंवला, एरण्ड, कार्पासबीज, कलमीशाक, नाडीशाक, केले का पानी, द्रोणपुष्पी, जिगिनी, भूत, तम्बाकू, तूतिया, तेजपात, धामन, नीम, पातालगरुड़ी, और मकोय ये द्रव्य अहिफेन- विषनाशक हैं। अतः इनके जल का पान रोगी को बराबर कराना चाहिए । 3 .उत्तेजक और हृद्य योग हृदय को उत्तेजित करने के लिए कॉफी का गरम क्वाथ पिलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मकरध्वज, कस्तूरी, जुन्दवेदस्तर, जद्वार, जहर-मोहरा बादि हृद्य औषधे मधु के साथ देनी चाहिए । 4. रोगी को सोने भी न दे जब तक विष न उतर जाय । अहिफेनशोधन - अफीम को पानी में घोल, कपड़े से छानकर आग पर गाड़ा कर ले। तदनन्तर अदरख के स्वरस की इक्कीस भावना देने से वह शुद्ध हो जाता है ।