आनुवांशिकता एवं जैव विकास Anuvanshikta evam Jaiv Vikas Part 1.pptx
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HEREDITY AND BIOLOGICAL EVOLUTION PART 1- आनुवांशिकता एवं जैव विकास भाग 1 - CLASS 10 - SCIENCE - UP BOARD - NCERT
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माध्यमिक शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश कक्षा – 10 विज्ञान आनुवांशिकता एवं जैव विकास भाग – 1 डॉ. रेणु त्रिपाठी (PhD, M.Ed., M.Sc.) अध्यापिका राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, विजयनगर, ग़ाज़ियाबाद 1 अध्याय – 9
2 विषय वस्तु भाग - 1 अनुवांशिकता 1.1 आनुवांशिकता 1.2 आनुवांशिक लक्षण 1.3 लक्षणों की वंशागति के नियम - मेण्डल का योगदान 1.4 मेण्डल के प्रयोग तथा परिणाम 1.5 मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को क्यों चुना ? 1.6 मेण्डल के नियमों में प्रयुक्त शब्दावली 1.7 मेण्डल के नियम 1.8 मेण्डल के आनुवांशिकता के नियमों की व्याख्या भाग - 2 जैव विकास 2.1 लक्षण आपको किस प्रकार व्यक्त करते हैं ? 2.2 गुण सूत्र 2.3 गुण सुत्र के प्रकार 2.4 मानव में लिंग निर्धारण 2.5 जाति उद्भव 2.6 उत्परिवर्तन 2.7 जैव विकास 2.8 जीवाश्म 2.9 विकास के चरण 2.10 जैव विकास के सम्बन्ध में डार्विन का सिद्धान्त 2.11 लैमार्क का उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त 2.12 मानव का उद्भव व विकास
3 आनुवांशिकता भाग – 1
4 आनुवांशिकता जनक ( माता - पिता ) जीवों से सन्तति में लक्षणों का स्थानान्तरण आनुवांशिकता कहलाता है । आनुवांशिक लक्षण पैतृक जीवों से सन्तानों को स्थानान्तरण होने वाले लक्षणों को आनुवांशिक लक्षण कहते हैं । आनुवांशिकी – विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत आनुवांशिकता के नियम व आनुवांशिकता को नियन्त्रित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है , उसे आनुवंशिकी कहते हैं । आनुवांशिकी के जनक ग्रेगर जॉन मेण्डल को कहा जाता है , इनका जन्म 1822 में ऑस्ट्रिया में हुआ था । इन्होंने मटर के पौधों पर कार्य किया ।
5 लक्षणों के वंशागति के नियम - मेण्डल का योगदान मानव में लक्षणों की वंशागति के नियम इस बात पर आधारित हैं कि माता पिता दोनों ही सामान मात्रा में आनुवांशिक पदार्थ डीएनए (DNA) को सन्तति में स्थानान्तरित करते हैं। इसका यह अर्थ है कि प्रत्येक लक्षण माता और पिता के डीएनए ( DNA) से प्रभावित हो सकते हैं।
6 मेण्डल के प्रयोग तथा परिणाम मेण्डल ने अपने प्रयोग में मटर की भिन्न भिन्न लक्षणों वाली प्रजातियों को उगाया। दो वर्ष उपरान्त उसने पौधों का तुलनात्मक लक्षणों का चुनाव तथा तुलनात्मक लक्षणों वाली प्रजातियों की शुद्धता का निश्चय स्वपरागण द्वारा किया, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई दिया। मेण्डल ने इन्हें शुद्ध पौधों का नाम दिया। इस प्रकार शुद्ध पौधे प्राप्त करके मेण्डल ने प्रयोग के लिए मटर के सात विपरीत लक्षण वाले पौधे चुने।
विपर्यासी लक्षण (Contrasting Character) ऐसे लक्षण जिनमें भौतिक रूप से आसानी भेद किया जा सके उन्हें विपर्यासी लक्षण कहते हैं। मेण्डल ने अध्ययन के लिए 7 जोड़ी विपर्यासी ( तुलनात्मक ) लक्षण चुने - क्रम स. लक्षण प्रभावी लक्षण अप्रभावी लक्षण 1. फली का रंग हरा पीला 2. फली की आकृति फूली हुई सुखड़ी हुई 3. बीज का रंग पीला हरा 4. बीज की आकृति गोल झुर्रीदार 5. पुष्प का रंग बैगनी श्वेत(सफ़ेद) 6. पुष्प की स्थिति अक्षीय अग्रस्थ 7. पौधे की लम्बाई लम्बा बोना 7
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को क्यों चुना ? मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को इसलिए चुना क्योंकि यह कम समय में उगने वाला पौधा है जिसे आसानी से उगाया जा सकता है और स्वपरागण के फलस्वरुप अनेक बीज बनाने की क्षमता होती है तथा भिन्न भिन्न लक्षणों वाली प्रजातियां सरलता से मिल जाती हैं। 8
मेण्डल के नियमों में प्रयुक्त शब्दावली संकरण – जब तुलनात्मक लक्षणों वाले पौधों को क्रॉस कराया जाता है तो उससे प्राप्त सन्तानों को संकर कहते हैं तथा इस क्रिया को संकरण कहते हैं। कारक – जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं जिन्हें कारक कहते हैं । प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म से नियन्त्रित होता है इन में एक कारक मातृक तथा दूसरा पैतृक होता है । युग्म ( जोड़ों ) के दोनों कारक विपरीत प्रभाव के होते हैं किन्तु उन में से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है , दूसरा छुपा रहता है । 9
एलिल या एलिलोमोर्फ – विपरीत लक्षणों वाले युग्मों को एलील्स कहते हैं। जैसे – पौधों की लम्बाई के लिए लम्बा – बोना , पुष्प के लिए लाल और सफ़ेद तथा बीज के लिए गोल और झुर्रीदार । समयुग्मज – यदि किसी लक्षण के दोनों जीन्स समरूप हों तो उसे समययुग्मजी कहते हैं । उदा . TT, tt . विषमयुग्मज – यदि किसी लक्षण के दोनों जीन्स अ समान हों तो उसे विषमयुग्मजी कहते हैं । जीनोटाइप – किसी जीव के लक्षण का आनुवांशिक संग़ठन जीनोटाइप कहलाता है । उदा . TT, Tt , tt . 10
फीनोटाइप – जीन किसी भी प्रकार की हो बाह्य रूप में सामान लक्षण या उसका प्रभाव दिखाई दे रहा हैं तो उसे फीनोटाईप कहते हैं । एकसंकर संकरण – जब पौधों में एक जोड़ा विपरीत लक्षण को ध्यान में रखकर संकरण कराया जाता है तो उसे एकल संकरण कहते हैं । उदा . शुद्ध लम्बा व शुद्ध बोने पौधे के मध्य संकरण । द्विसंकर संकरण – जब पौधों में दो जोड़ा विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर संकरण कराया जाता है तो उसे द्विसंकर संकरण कहते हैं । उदा . गोल व पीले बीज (RRYY) और झुर्रीदार हरे बीज ( rryy ) के मध्य संकरण । 11
मेण्डल के नियम मेण्डल ने अपने प्रयोगों के परिणामों को सिद्धान्तों के रूप में बताया। बाद में इन सिद्धान्तों को वैज्ञानिकों ने 3 नियमों के रूप में मेण्डल के नाम से स्थापित किया । इन्हें मेण्डल के आनुवांशिकता के नियम कहा गया जो निम्नांकित हैं – 1 प्रभाविता का नियम 2 पृथक्करण का नियम 3 स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम 12
मेण्डल के आनुवांशिकता के नियमों की व्याख्या प्रभाविता का नियम जीव का प्रत्येक लक्षण एक इकाई के रूप में होता है । प्रत्येक इकाई दो कारको से नियन्त्रित होती है । अगर ये कारक एक दूसरे के विपरीत प्रभाव के होते हैं किन्तु उसमे से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है और दूसरा छिपा रहता है । जब विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है , तो उनकी सन्तानों में इन लक्षणों में से एक लक्षण ही परिलक्षित होता है और दूसरा दिखाई नहीं देता – पहले को प्रभावी तथा दूसरे को अप्रभावी कहते हैं । 13
चित्र – प्रभाविता के नियम का स्पष्टीकरण 14
पृथक्करण का नियम जब F1 पीढ़ी के विषमयुग्मजी पौधों में स्वपरागण कराया जाता है , तो दूसरी पीढ़ी (F2) की सन्तानों में परस्पर विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात में पृथक्करण हो जाता है । इसे लक्षणों के पृथक्करण का नियम कहते हैं । 15
लम्बे पन का कारक T तथा बोने पन कारक t शुद्ध रूप में फिर से मिलकर 3:1 के अनुपात में लम्बे तथा बोने पौधे उत्पन्न करते हैं । इनमें 25 % शुद्ध लम्बे , 50 % संकर लम्बे तथा 25 % शुद्ध बोने पौधे होते हैं अर्थात् यह अनुपात 1 :2 :1 का होता है । 16 शुद्ध ( Tt ) संकर ( Tt ) संकर ( Tt ) ( tt )
स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम जब किन्हीं दो या दो से अधिक कारक युग्मों के लिए दो जोड़ा विपरीत प्रभावों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है , तो इन कारकों का पृथक्करण तथा चयन स्वतन्त्र रूप से होता है अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभवित नहीं करती है । 17
18 यहाँ बीज के आकार व रंग का F2 पीढ़ी में अनुपात = 9:3:3:1
19 गृह कार्य प्रश्न 1 आनुवांशिकता की खोज करने वाले वैज्ञानिक का पूरा नाम बताइये । प्रश्न 2 मेण्डल के प्रयोगों में कारक का क्या अर्थ है ? प्रश्न 3 मटर के पौधे किए लिए लम्बे तथा बौने में से कौन सा प्रभावी गुण है ? प्रश्न 4 एकसंकर तथा द्विसंकर क्रॉस से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिये। प्रश्न 5 प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों से आप क्या समझते हैं ? प्रश्न 6 आनुवांशिकता किसे कहते हैं ? मेण्डल द्वारा किये गए मटर के एक-संकरीय (संकरण) एवं उसके परिणामों का विस्तार से वर्णन कीजिये। प्रश्न 7 मेण्डल के पृथक्करण के नियम का उदहारण सहित सचित्र वर्णन कीजिये।
20 ग्रन्थसूची आनुवांशिकता एवं जैव विकास , विज्ञान, कक्षा 10, विद्या यूनिवर्सिटी प्रेस,कुमार-पाठक-राणा, P. 211-237; आनुवांशिकता एवं जैव विकास , विज्ञान, कक्षा 10, NCERT; आनुवांशिकता एवं जैव विकास , विज्ञान, कक्षा 10, विद्या क्वेश्चन बैंक, NCERT बेस्ड, 2020, P. 88-102; NCERT बुक्स एण्ड सोलूशन्स ऍप ; विकिपीडिया यूट्यूब
21 भाग – 1 समाप्त डॉ. रेणु त्रिपाठी (PhD, M.Ed., M.Sc.) अध्यापिका राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, विजयनगर, ग़ाज़ियाबाद