प/रचय
मSने "चाय वाली शाम " का? संdह मP चाय nेम, nेम, भावनाओं और भावपूणJ िवचारों को ?? िकया
है। मेरी किवता हर शh मP भावपूणJ nेम से उके री गई है। Wार जीवन को उव सा बनाता है। िजंदगी
मP दुआएं ब`त ज]री हS, लेिकन मुझे लगता है, Wार उससे भी ?ादा महपूणJ है। nेम िसफJ किवता नही
इक संगीत है, nेम एक लय है, nेम ही नृ है। nेम वो िचर>थायी संबंध हS िजसके िलए िकसी अनु?ान की
आव?कता नहीं है। मेरी किवता के मा/म से, आप nेम के जादू और चम?ार का अनुभव कर पाएंगे।
जब हम Wार मP होते हS तो हम एक दुिनया की क?ना और सरल होते हS।
िन?ाथJ nेम मP डू बे इLान को फ़/र?े भी अपना आशीवाJद देते हS, आपका हाथ पकड़ आपसे किवता
िलखवाते हS। "चाय वाली शाम" मP मSने चाय से Wार को उके रा है, और चाय nेम मP डू ब कई किवताओं की
रचना की गई है।
nेिमयों के िलए ब`त सी कीमती चीजP उपहार मP दी जाती है और मेरे िलए भी यही चाय ही बेशकीमती
तोहफा है जो मैने किवता संdह "चाय वाली शाम" के मा/म से चाय के nित भावना को ?? िकया है। यह
पाठकों मP भी चाय nेम भर जाएगा, मुझे िव?ास है।
जब हम किवता िलखने या चाय बनाने की nिbया मP होते हS, तो हम इसके अ0? को नहीं इसकी सुगंध
महसूस करते हS। चाय अिधक आनंद देती है िफर जब वो एक शानदार उपहार हो .... तो जब आप पढ़Pगे
"चाय" वाली शाम" रोमांस की भावना और एक कप चाय के साथ, आप महसूस करPगे चाय nेम की
ऊ?ा। मुझे आशा है िक आपको यह संdह पसंद आएगा।
डॉ नी] जैन
4 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
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1. चाय वाली शाम
2. चाय बना के रखना….
3. चाय पे चलने की ये फरमाइश
4. चाय तो िपलाओगे ना……
5. चाय के
झूठे
कप पे,……
6. कभी चाय फीकी
7. चाय संग पीने की
8. तु?ारे िलए चाय बनाये…
9. कभी मेरे संग चाय की चु0?यों लेते.....
10. चाय पे चले .
11. चाय और मेरा इ?
12. सुबह की चाय से शाम के जाम तक
13. तेरी गली के कौने की,वो चाय की दुकान
14. तेरी चाय का कप बांटा आधा आधा
15. वो तेरी वाली चाय
16. इक घूंट चाय चुरा लूँ
17. तू चाय बनाए मेरे िलए
18. चलो ना चाय पीने……
19. चाय हमे पीला दो ना
21. चाय के बहाने
23. महबूब चाय
24. िफ?ी चाय
5 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
1. चाय वाली शाम....
सुबह हो या आधी रात की चाय
मS अपने कप को,
उस कप से चीयसJ करती aँ,
िजसे तुम चाय पीने के बाद छोड़ गए...
तु?ारे उस कप को मैने,
Wार की िनशानी के ]प मP संजो के रखा है,
और यह मुझे हमेशा याद िदलाता है िक
एक बार हमने, एक शाम साथ िबताई थी,
वो चाय वाली शाम....
जब भी मS उस Wाले को छू ती aँ तो
मुझे तु?ारे हाथ की गमाJहट महसूस होती है..
जब भी मुझे तु?ारी ब`त याद आती है
और मS उस Wाले को Wार से चूम लेती aँ ,
तु?ारे अहसास को खुद मP घोल लेती aं,
?
ोंिक
मुझे पता है िक
हम िफर कभी नहीं िमल सकते.. कभी नहीं..
िफर भी ओ मेरे चाय के साथी
तुम याद आओगे, हर चाय के साथ……
6 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
2. चाय बना के रखना….
इक फू ल गुलाब का, मंगा के रखना,
हम जो आए,
तो िदल का आंगन महका के रखना...
िजस का सु]र उr भर ना उतरे,
धुन बांसुरी की, हवाओं मP बजा के रखना..
चाय के तक?ुफ़ मP, हम थोड़ी ना ना कहPगे,
तुम ना को भी हां समझ, चाय बना के रखना,
तुम जानते हो, आिशक़ी जो चाय से मेरी,
अपने हाथों की लज़त, उसमP घोल के रखना...
ब`त व? हो गया, अब जाने भी दो,
जो कहे,हम जा ही ना पाए,
तुम समा ऐसा बांध के रखना
नशे नशे सा मन, डू बा ही रहना चाहे तुझ मP,
तुम, मेरी दीवानगी की नज़रP , उतारते रहना,
होंगे
कई , जो खास काम तेरे,
पर सब खास को भी इक िदन तक मP रखना..
कहीं तु?ीं का ना चुरा के ले जाऊं
तुमसेअपनी सोहबत मP, हम को संभाल के रखना..
7 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
3. चाय पे चलने की ये फरमाइश ……….
जो तुम मेरे नहीं, तो िदल को तेरी ?ािहश ?ूं है
खींची
चली आती तेरी ओर, तुझमP ऐसी किशश ?ूं है
होने को सब कोई है िजंदगी मP
पर तेरे िबना इतनी खिलश ?ूं है..
तेरे िसवा कु छ न सुझे मुझे
िफर िदल पे ये पहरे, ये बंिदश ?ूं है
हज़ारों बा/रशों से भी कहां िमटती
रोई आंखों मP, इतनी तिपश ?ूं है...
]ठे लगते चांद िसतारP , सब अब मुझसे
या रब इ? मP इतनी आजमाइश ?ूं है...
तेरा मेरा तो कोई /र?ा ही नहीं,
िफर चाय पे चलने की ये फरमाइश ?ूं है
8 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
4. चाय तो ?पलाओगे ना……
ता?ुक़ चाहे िबगड़ ही जाए
िफर भी िमलोगे
तो बतलाओग ना .
चाहे अपना नहीं
अजनबी ही समझ के
चाय तो िपलाओगे ना .. .
कभी जो िमल जाए राहों म
P
िमलने की खुशी तो जतलाओग ना
‘आप कौन' ये तो ना पूछोगे
तुम मुझ को पहचान पाओगे ना ..
9 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
5. चाय के
झूठे
कप पे,……
nेम जब अद् भुत हो लेता
शटJ के बटन टाँक के भी खुश हो लेता.
इसपर वो धागा अपने तोड़ने की अदा
उ` , महक उसकी सांसों की सांसों मP भर लेता....
संग संग चलती राहों पे ,
पाव के कांटे िनकाल के, टीस मP भी
पुलिकत हो लेता......
nेम जब अद् भुत हो लेता..
िज?ों के घुलने िमलने से परे
इक दूसरे की नज़रों मP तक
अनंत आीय हो लेता...
nेम जब अद् भुत हो लेता...
?ा `आ जो हाथों मP हाथ नहीं
]ह का गठबंधन ]ह से हो लेता..
nेम जब अद् भुत हो लेता..
होटों पे होठ की ये िफ?P देखने वाले ?ा जाने,
महबूब के चाय के
झूठे
कप पे,
जो होठ रख के अंतमJन तक िसहर लेता..
ये nेम जब अद् भुत हो लेता
दूर कहीं मै दूर कहीं तुम
िफर भी nीत को डोर मP बंध
जIों सा नाता हो लेता
ये nेम जब अद् भुत हो लेता...
10 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
6. कभी चाय फीकी
जब भी ?ालों मP तुम आते हों
?ा बताऊं िक तुम
?ा गजब के जाते हो…..
कभी चाय फीकी तो ,
कभी मीठा डबल कर जाते हो
कभी दाल मP चीनी तो ,
कभी सीरे मP नमक डाल जाते हो...
कु छ जल जाती तो कु छ क?ी सी रोिटयां
तो कभी बैठ सोचूं करना था काम ?ा
होश पे मेरे तुम ही तुम छाए रहते हो....
िकताबों के पDों बस यूं ही पलटू
पढ़ने मP भी मन कै से लगाऊं
हर पDे पे तुम नज़र आते हो...
उ?ी सीधी सी बातP `ई मेरी
समझ ना रा?ों की ोरी
जाना कहां था, कहीं ओर ले जाते हो..
बातP िकसी की भी, सुनाई ना आए
ले?र सबके, सर से िनकल जाए
हां को ना, ना को हां कर जाते हो
?ा बताऊं िक तुम
?ा गजब के जाते हो.
11 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
7. चाय संग पीने की ……
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे
कब, कहां, कै से, ?ूं िमले थे
िजb ए पहली मुलाकात करे...
तेरी बातP, तेरी हंसी, या शरारती आखP
सोचते है कहां से शु\वात करे..
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे
जाने िकतने िकए थे वादP,
िकतने तोड़े, िकतने िनभाने
कभी तेरे बहाने, तो मेरे उलहाने
कु छ तुम याद करो, कु छ हम याद करे..
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे..
कभी िमलने िमलाने की बड़ी सी िज,
वो चाय संग पीने की टूटी सी उ?ीद,
िदल करता िफर वो
महकते बहकते िफर जEबात करे
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे
कु छ बातP आधी अधूरी तेरी
कभी तेरी मनुहार, कभी मनमज़N
िफर से तुम जवाब न देना ,
हम िफर भी सवालात करे
चल आ बैठ, िफर से पुरानी बात करे..
12 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
8. तु?हारे िलए चाय बनाये…….
आओ हम तु?हारे िलए चाय बनाये!.
कभी चीनी बनकर
घुल
जाए
तुम
मE
कभी प?ी बनकर रंग ?बखराये
तुम
पे
कभी इलायची क' महक भर जाए
तुम
मE
कभी कप बन होटI से लग जाए
आओ हम तु?हारे िलए चाय बनाये!.
13 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
9. कभी मेरे
संग
चाय क' चु?इकयI लेते.....
हर जगह नजर आते हो
तुम
?क यूं
घुलते
जाते हो
मुझ
मE
कभी मेर# क?वता क' ?र??यां भरते
हुए
……
कभी मेरे गीतI क' प??यां बनते
हुए
अब हर जगह नजर आते हो
तुम
....
कभी मेरे
संग
चाय क' चु?इकयI लेते
हुए
कभी मेरे कं धे पे सर रख सो जाते
हुए
…..
कभी कहते हो इक
मुसीबत
मुझे
, तो
कभी मेर# उलझनI मE मसवरा बन जाते
हुए
……
अब हर जगह नजर आते हो
तुम
....
कभी मेर# उदासी मE ?वाब भर जाते
हुए
कभी ?बना बात मुइकु राने का सबब बन जाते
हुए
तु?हारे इन अहसास मE िनखर# िनखर# सी रहती
?क मेरे आइने के हर अ?स मE नजर आते
हुए
अब हर जगह नजर आते हो
तुम
...
14 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
10. "चाय पे चले",……
जब भी देखूं चाय,
तेर# यूं आवाज आती है
"चाय पे चले", कह के
?दल के तार छेड़ जाती है
11. चाय क' महक….
अब तो सारे इक़ फ'के लगते
चाय क' महक के आगे...
वो जनाब
बातI - बातI मE
चाय इतनी बार बोल गए है ...
12. चाय और मेरा इ?
मS, चाय और मेरा इ?
तीनों ही महके बहके से है..
15 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
13.
सुबह
क' चाय से शाम के जाम तक
कभी तु?हार# मां से लाड ?यार के सारे हक लेती
हुई
कभी तेरे मन के हर कोने मE बसी
हुई
...
अब मG तु?हे , हर जगह
िमलूंगी
……
कभी तु?हारे बगीचे के फू लI मE महकती
हुई
कभी तेरे दर क' रंगोली के रंगI
संवरती
हुई
..
अब मG तु?हे , हर जगह
िमलूंगी
..
सुबह
सुबह
जब अ?साई
आंख
E खोलोगे
सामने नजर हम ह# आयEगे
तो कभी शामI मE
संग
संग
बैठ
, क?वताएं िलखते
हुए
,
तेर# सार# उदिसयI मE रंग मE ह# भ?ं गी ...
अब मG तु?हे , हर जगह
िमलूंगी
तेरे हर सफ़र क' पास वाली सीट पर
तो
कभी सुबह
क' चाय से शाम के जाम तक
इक कमी बन
खलूंगी
..
अब मG तु?हे, हर जगह
िमलूंगी
…….
कभी तेर#
आंख
I ने अअकI को पीती
हुई
कभी तेर# गोद मE सर रख सोती
हुई
छाव तो ?या, तेरे
संग
धूप मE भी
चलूंगी
...
अब मG तु?हे, हर जगह
िमलूंगी
…
कभी तेरे
संग
हर साजदे मE सर
झुकाए
हुए
तो कभी तेर# आरती का, ?दया बन
जलूंगी
कभी म?नत का धागा बन,
तेरे
हाथ मE
बंधूगी
...
अब मG तु?हे , हर जगह
िमलूंगी
....
तेरे आइने के हर अ?स मE,
तेर
# हर उलझन का मइवरे मE
तो कभी तेर#
बेचैनी
का सकू न बन
तेर# हर सांस सांस मE
घुलूंगी
..
अब मG तु?हे , हर जगह
िमलूंगी
....
तुम
?दल से याद करोगे जब भी
मुझे
मै बस वह#ं पे आ
िमलूंगी
….
16 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
14. तेरी गली के कौने की, वो चाय की
दुकान
*हम भी थोड़ी सी आवारगी कर लेते,
ए काश जो मेरी गली मP तेरा घर होता...
** छुप छुप देखPगे तुझे,
गली चोबारे से,
तू घर ले ले, मेरी जान
मेरे घर के आजू बाजू मP..
तेरी गली के कौने की
वो चाय की दुकान
डेरा डाल लPगे वहीं,
तुझे पटने पटाने मP...
कोई फू ल दे देगा
कोई खत पकड़ा देगा
तेरे मुह?े के ब?े भी
करPगे म?कत, हमP िमलाने मP..
वो रात तेरी 0खड़की की
जो लाइट जलती देख
कोई जतन काम ना आएंगे
िफर हमे सुलाने मP..
वो आते जाते ितरछी नज़रों से
बस देख लेना तुम
हम जान लूटा दPगे
तेरे इक मु?ु राने पे..
सोचते है गर जो ना माने तुम, िफर भी
वो `नर कहां से लाऊं, जो काम आए
पर सा िजगर िपघलाने मP......
तू घर ले ले, मेरी जान
मेरे घर के आजू बाजू मP....
17 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
15. तेरी चाय का कप बांटा आधा आधा
जाने कै सा जादू चलाया तूने
िक मS बेसुध सी रहती aं,
तेरे आगे पीछे ही मS डोलती रहती aं…..
तुम करवट वहां बदलते
मS उठ के यहां बैठ लेती aं..
कभी िदल चाहता ?ाब बन आऊं तेरी आंखों मP
तो कभी तेरी यादों का हर ल?ा
िदल मP संवार लेती aं.....
हर सुबह यूं लगता,
तेरी चाय का कप बांटा आधा आधा
तो कभी देर से उठने पर तु?े डांट लेती aं ....
Wार ब`त आता तु?े काम मP डू बा देख
बलाए िफर तेरी हज़ार लेती aं......
जाने कै सी डोर से बंधा है यारा
िनत नए ?ाब बुनती रहती aं..
तेरे आगे पीछे ही मS डोलती रहती aं
18 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
16. वो तेरी वाली चाय
इ? मP िमठास घोल जाती
वो तेरी वाली चाय,
िफर कब िमलोगे,
बोल जाती वो तेरी वाली चाय...
यूं तो उr गुजरी हम ने
चाय के इ? मP,
तुझ से है इ?, कह िदया, तो
जल जाती, वो तेरी वाली चाय...
सारे इi हैरत मP, ये कौन है हमसे आगे,
जब तेरे हाथों की ल?त घोल लाती
वो तेरी वाली चाय...
19 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
17. इक घूंट चाय चुरालूँ
जी करता तेरे कप से, बस इक घूंट चाय चुरालूँ,
इ? की बा/रश से अबकी, मS भी इक फु आर चुरालूँ.....
भीग लूं इन बूंदों मP, थाम के तेरा हाथ
तेरे ?? से ल?ों से, इक सुहानी शाम चुरालूँ....
इक त?ीर बनाऊं, तुम, मS और चाय वाली शाम,
यादP अपनी सारी दे दू तु?े, और मS तेरे सब अंदाज चुरालूँ....
अपनी सांसों को घोल दूं, तेरी सांसों के दरिमया,
खामोिशयां सुन लूं, आजभर को तेरे अ?ाज चुरालूँ.....
जी करता तेरे कप से, बस इक घूंट चाय चुरालूँ...
20 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
18. तू चाय बनाए मेरे िलए
िदल चाहे, जब भी सुबह पलकP खोलूं
चेहरा बस तेरा नज़र आए
मंगला दशJन जो करने जाऊं,
मंिदर की दर पे हाथ थामे तुझे ही संग संग पाए..
मुरलीधर की मूरत जब भी देखूं
राधा का हाथ थामे, मेरे संग तू सामने नज़र आए
पूरे िदन की भगा दौड़ी, जो शाम थकी सी
तू चाय बनाए मेरे िलए,
ये अहसास मुझे तरो ताज़ा कर जाए..
काश !तेरी गोद मP सर रख, रो िलए जो जी भर
गमों का बोझ शायद, कु छ ह?ा जो जाए...
लोग हज़ार तोहमतP लगाए, Wार िफर भी तुझ पे उमड़ आए,
ये इ? है मेरी जान. पर तुझे कहां समझ आए.
21 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
19. चलो ना चाय पीने ……
जो अधूर# रह#
वो बात
पूर
# करते है
चलो ना इवीटहाट[,
?फर से चाय पीने चलते है
सारे जहां क' बातE कर,
?फर घर को लौट चलते है,
ओह चाय due रह गई, कह के
इक और
मुलाक़ात
क' उ?मीद रखते है...
चलो ना इवीटहाट[,
?फर से चाय पीने चलते है..
22 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
20. चाय हमे पी ला दो ना
थका िदया इस भाग दौड़ ने
सर मेरा दबा दो न,
अपने हाथो की ल?त घोल
चाय हमे पी ला दो ना….
अपने सीने से लगा के मुझ को
सकूं थोड़ा बरसा दो ना,
उदास शामP होने लगी
अपनी हंसी का नगमा गा दो ना….
तुम िबन कै से जीयूं , मेरी जां
मेरे ?ाबों की स?ा कर दो ना…….
23 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
21. चाय के बहाने
जायका चाय का िकसे याद रखना है
तू िमल तो सही इक बार, चाय के बहाने
बस तेरे गले लग रोना है,
माना तेरी जुदाई का ददJ
मुझे ता उr सहना है,
पर िबछड़ जाने से पहले
पहली बार सा िमल लेना है...
22. महबूब चाय
तुम हो ही इतने ब`त
िक तु?P हर कोई चाहे,
तु?P अपना कहना तो
खुदगजN कहलाए
24 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
23. िफ?ी चाय
चाय पे तेरा बुलाना `आ,
गर जो मेरा चले आना `आ
इक कप से ही आधी - आधी
चाय पी लPगे ,
कु छ िफ?ी ल?े
संग संग जी लPगे...
चाय पे तेरा बुलाना `आ
गर दो कप चाय जो मंगाई तुम ने
बातों मP लगा के तुझ को,
तेरे
झूठे
कप की अदला बदली कर लPगे,
और तुम देख के भी अनदेखा
कु छ िफ?ी ल?े
संग संग जी लPगे...
25 |` चाय वाली शाम BY : डॉ. नी] जैन
डॉ . नी] जैन थाईलSड से ?ैलरी िडजाइिनंग सीखने के बाद iiS यूिनविसJटी , ( icG ) जयपुर
मP एसोिसएट nोफे सर के पद पर कायJरत हS । इNP सन् 2013 iiS यूिनविसJटी , ( icG ) जयपुर के
दूारा
पीएचडी की उपािध से स?ािनत िकया गया । डॉ . नी] जैन उ? गुणवा वाले शैि?क
और अनुसंधान कायJbमों मP सहयोग करती है । इनका जुनून छाiों को िशि?त करना और गहने
की
दुिनया
के िलए शानदार करीयर को बढ़ावा देना है । इनकी ]िच शोध आलेख और किवता
लेखन मP ब`त पहले से रही है । िविभD देश एवम् िवदेश की पिiकाओं मP इनके 40-50 शोध
आलेख भी nकािशत हS । तेरा चेहरा जब नज़र आए और इक धागा nेम का इनके का? संdह
है, अपनी किवताओं के मा/म से Wार , ?बात और भावपूणJ िवचारों को ?? िकया है , nकृ ित
और जीवन से जुड़ी असल स?ाई को बड़ी ही खूबसूरती से हमारे सामने पेश िकया है।