गीता वाहिनी ई-बुक प्रकाशक : श्री स� साई सेवा संगठन ,मध्यप्रदेश 255
आधार की लनत्यता और सत्य को र्हचान िेना ही सच्ची दैवी संर्पर्त् है,
धालमथक वृपर्त् है।
अिुथन ने यह सब उत्सुकता और ध्यानर्ूवथक सुना और हिर र्ूछा-
“माधव! आर् कहते ह� हक इन दोनों की लभन्नता का कारण इनके
अन्तरवती गुण है। कृप्या स्र्ष्ट समझाइये हक कौन से गुण आसुरी और
कोन से दैवी ह�।"
कृष्ण ने उर्त्र हदया, “अिुथन! स्र्ष्टता के लिए म� सदैव तैयार हूाँ, के वि
लनिा और लनश्चिता से सुनने वािे चाहहएाँ। इसे ध्यान से सुनोः (१)
लनभथयता, (२) शुद् भाव, (३) सृपष्ट की एकात्मकता की चेतना, (४) दान,
(५) इजन्द्रयलनग्रह, (६) त्याग, (७) अध्ययन (८) संन्यास, (९) लनष्कर्टता,
(१०) अहहंसा, (११) सच्चाई, (१२) जस्र्रलचर्त्ता, क्रोध व घृणा का अभाव,
(१३) पवरपि, (१४) आंतररक शांलत, (१५) दूसरों की लनंदा न करना, (१६)
सहानुभूलत, (१७) लनिोभ वृपर्त्, (१८) मधुरवाणी, (१९) अधालमथक कायों से
पवरपि, (२०) मन का लनयंत्रण, (२१) पवर्पर्त् के समय धैयथ, साहस और
सहनशपि रखना, (२२) दृढ़ता, (२३) स्वच्छता, (२४) लनदोषता, (२५)
पवनम्रता। यह २५ र्पवत्र गुण दैवी संर्त् है।
मनुष्य में घमंड, आडम्बर, लमथ्या अहंकार, क्रोध, कठोरता और
पववेकबुपद्-पवहीनता का होना, आसुरी संर्पर्त् है। जिनमें यह प्रवपर्त्यााँ ह�,
वह आसुरी संर्त् से भरर्ूर ह�। उनकी बाहरी हदखावट तो मनुष्यता है
िेहकन वे इस नाम की योग्यता नहीं रखते ह�। र्हिे बताए गुणवािे िोगों
में दैवी अंश है। जिनमें आसुरी िक्षण ह�, वे दानव-मानव, कहिाते ह�।