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Added: Apr 15, 2022
Slides: 10 pages
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हिंदी परियोजना कार्य
मीराबाई का व्यक्तित्व और कृतित्व
मीराबाई का जन्म संवत् 1573(1516ई.) विक्रमी में मेड़ता में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। (कई किताबो में कुड़की बताया जाता है जो बिलकुल सही है ) ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का जन्म राठौर राजपूत परिवार में हुआ व् उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ।
साहित्यिक परिचय गोपियों की भाँति मीरा माधुर्य भाव से कृष्ण की उपासना करती थीं। वे कृष्ण को ही अपना पति कहती थीं और लोक-लाज खोकर कृष्ण के प्रेम में लीन रहती थीं। बचपन से ही अपना अधिक समय संत-महात्माओं के सत्संग में व्यतीत करती थीं। मन्दिर में जाकर अपने आराध्य की प्रतिमा के समक्ष मीराबाई आनन्द-विह्वल होकर नृत्य करती थीं।
हिंदी की महान कवयित्री मीरा बाई कृष्ण की अन्यय भक्त थी, वर्ष 1503 के आस पास इनका जन्म जोधपुर के पास ही ग्राम में माना जाता हैं. बालपन से ही मीरा को कृष्ण जी से अन्यय प्रेम करती थी. वह अपने पास भगवान की मूर्ति रखा करती थी. अपने राजसी जीवन और राजभवन की सुख सम्रद्धि का त्याग कर इन्होने कृष्ण को अपना पति चुनकर उनकी भक्ति में गीत गाती रही, है.
अपना सम्पूर्ण जीवन उन्ही के चरणों में समर्पित कर दिया. मीरा बाई के भक्ति की यह यात्रा कठिनाइयों से मुक्त नहीं रही, जीवन के प्रत्येक भाग को कृष्ण की भक्ति में रंग दिया. बड़ी होने पर मीरा का विवाह भोज राज के साथ सम्पन्न हुआ था. मगर विवाह के कुछ साल बाद ही भोज राज का देहांत हो गया था. वैवाहिक जीवन के समाप्त होने के बाद ही उसने वैराग्य जीवन को चुना तथा कृष्ण की भक्ति की राह चुन ली.
. उनकी साधना की यह राह आसान नहीं थी, उनकी राह के कंटक उनके परिवार वाले ही बने. एक राज परिवार की बहू का साधु संतों के साथ रहना घूमना फिरना स्वीकार्य नहीं था. कहते हैं मीरा को मनाने के कई प्रयास भी हुए मगर वह नहीं मानी, जहर देकर मारने की बात बात वह अपने पदों में करती हैं मगर वह कृष्ण के प्रेम में इतनी दीवानी हो चुकी होती हैं कि उन्हें कृष्ण का भेजा अमृत प्याला समझ कर पी लेती हैं l
जीवन भर कृष्ण भक्ति में गाते लिखते रही, 1574 में मीराबाई का देहांत हुआ था, इस तरह वह आजीवन कृष्ण को अपना पिय मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गई. आज हम मीरा के पदों एवं भजनों को गाते हैं. इनकी गिनती हिंदी साहित्य के महान भक्तिकालीन कवयित्री के रूप में की जाती रहेगी. समाज के कई व्यक्तियों ने उन पर कई आरोप भी लगाये लेकिन उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को मन में ही पति मानकर अपना पूरा जीवन बिता दिया।