origin of state theory: divine theory, social contract theory, power theory and many other theories of evolution of state in hindi
deepakdubey0761
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Oct 27, 2024
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Theory of evolution of State:
Divine theory of state, Social Contract theory and many more.
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Added: Oct 27, 2024
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Slide Content
राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत बी.ए. प्रथम वर्ष राजनीतिक विज्ञान
राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत राजनीतिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण विषय है। राज्य के अस्तित्व और शक्ति के स्रोत को समझने के लिए विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। इन सिद्धांतों में से कुछ प्रमुख हैं: दैवीय सिद्धांत: शक्ति सिद्धांत: सामाजिक संविदा सिद्धांत: पारिवारिक सिद्धांत: विकासवादी सिद्धांत: इन सिद्धांतों में से कोई भी सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति का पूर्ण स्पष्टीकरण नहीं देता है। राज्य की उत्पत्ति एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न कारकों का योगदान होता है। हालांकि, ये सिद्धांत राज्य के अस्तित्व और शक्ति के स्रोत को समझने में मदद करते हैं।
दैवीय सिद्धांत दैवीय सिद्धांत एक ऐतिहासिक राजनीतिक सिद्धांत है, जिसके अनुसार राजा या शासक को ईश्वर द्वारा चुना जाता है और उसे शासन करने का दैवीय अधिकार प्राप्त होता है। इस सिद्धांत के अनुसार, राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है और उसके आदेशों का पालन करना जनता का धार्मिक कर्तव्य होता है।
दैवीय सिद्धांत मुख्य विचार: ईश्वरीय अधिकार: राजा को शासन करने का अधिकार ईश्वर द्वारा दिया जाता है, न कि जनता द्वारा। दैवीय प्रतिनिधि: राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है, इसलिए उसके आदेशों का पालन करना आवश्यक है। असीमित शक्ति: राजा की शक्ति असीमित होती है और उसे किसी भी तरह की चुनौती नहीं दी जा सकती। धार्मिक आधार: इस सिद्धांत का आधार धर्म होता है और राजा को धार्मिक नेता भी माना जाता है।
दैवीय सिद्धांत ऐतिहासिक महत्व: मध्यकालीन यूरोप: इस सिद्धांत का व्यापक रूप से उपयोग मध्यकालीन यूरोप में किया जाता था, जहां राजाओं ने अपनी शक्ति को ईश्वर द्वारा प्रदत्त अधिकार के रूप में प्रदर्शित किया। भारत: भारत में भी कुछ राजाओं ने इस सिद्धांत का प्रयोग किया, विशेषकर मौर्य और गुप्त काल के दौरान।
दैवीय सिद्धांत आलोचना: अलौकिकता: इस सिद्धांत की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि यह राजा की शक्ति को अलौकिक आधार पर आधारित करता है, जो तर्कसंगत नहीं है। जनता की उपेक्षा: यह सिद्धांत जनता के अधिकारों की उपेक्षा करता है और राजा को असीमित शक्ति प्रदान करता है। अन्याय का खतरा: इस सिद्धांत के तहत, एक अयोग्य या क्रूर शासक भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर सकता है, जिससे जनता को नुकसान हो सकता है। हालांकि, दैवीय सिद्धांत का ऐतिहासिक महत्व है, लेकिन आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों में इसका कोई स्थान नहीं है। आजकल, जनता की संप्रभुता को सर्वोपरि माना जाता है और शासक जनता द्वारा चुने जाते हैं।
शक्ति सिद्धांत ( Force Theory) शक्ति सिद्धांत के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति शक्ति के प्रयोग से होती है। एक शक्तिशाली व्यक्ति या समूह, बल प्रयोग करके दूसरों पर अपना वर्चस्व स्थापित करता है और इस तरह राज्य का निर्माण होता है।
शक्ति सिद्धांत ( Force Theory) मुख्य विचार: बल का प्रयोग: राज्य की स्थापना बल प्रयोग के माध्यम से होती है। शक्तिशाली व्यक्ति या समूह: एक शक्तिशाली व्यक्ति या समूह दूसरों पर अपना वर्चस्व स्थापित करता है। सैन्य शक्ति: सैन्य शक्ति राज्य की स्थापना और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। डर और दमन: शक्तिशाली व्यक्ति या समूह डर और दमन के माध्यम से लोगों को नियंत्रित करता है।
ऐतिहासिक उदाहरण: मध्यकालीन यूरोप: कई यूरोपीय राज्यों की स्थापना शक्तिशाली योद्धाओं और सामंतों द्वारा की गई थी, जो बल प्रयोग करके अपने साम्राज्य का विस्तार करते थे। प्राचीन भारत: कुछ प्राचीन भारतीय राज्यों की स्थापना भी शक्ति के प्रयोग से हुई थी, जैसे कि मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा की गई थी। शक्ति सिद्धांत ( Force Theory)
आलोचना: अनैतिक आधार: इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य की स्थापना बल प्रयोग पर आधारित होती है, जो नैतिक रूप से सही नहीं है। अस्थायी प्रकृति: बल पर आधारित राज्य अस्थायी होते हैं और समय के साथ कमजोर हो सकते हैं। जनता की उपेक्षा: इस सिद्धांत में जनता की इच्छा और सहमति की कोई भूमिका नहीं होती है। हालांकि, शक्ति सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति का एक महत्वपूर्ण पहलू है, लेकिन यह अकेले राज्य के अस्तित्व और विकास को समझाने में पर्याप्त नहीं है। राज्य की स्थापना और विकास में कई अन्य कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक। शक्ति सिद्धांत ( Force Theory)
सामाजिक संविदा सिद्धांत ( Social Contract Theory) सामाजिक संविदा सिद्धांत के अनुसार, राज्य का निर्माण लोगों के बीच एक स्वैच्छिक समझौते या संविदा के परिणामस्वरूप होता है। लोग अपनी कुछ स्वतंत्रताओं का त्याग करके एक शासक या सरकार को सत्ता सौंपते हैं, ताकि वे सुरक्षा, कानून और व्यवस्था का लाभ उठा सकें।
सामाजिक संविदा सिद्धांत ( Social Contract Theory) मुख्य विचार: स्वैच्छिक समझौता: राज्य का निर्माण लोगों के बीच एक स्वैच्छिक समझौते के परिणामस्वरूप होता है। स्वतंत्रता का त्याग: लोग अपनी कुछ स्वतंत्रताओं का त्याग करके राज्य की स्थापना करते हैं। शासक की जिम्मेदारी: शासक या सरकार का दायित्व है कि वह जनता की सुरक्षा और कल्याण का ध्यान रखे। जनता की संप्रभुता: जनता सर्वोपरि होती है और शासक जनता के प्रति उत्तरदायी होता है।
सामाजिक संविदा सिद्धांत ( Social Contract Theory) प्रमुख दार्शनिक: थॉमस हॉब्स: हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानव जीवन अस्तित्व के लिए संघर्षपूर्ण होता है। लोग एक शक्तिशाली शासक को सत्ता सौंपते हैं, ताकि वह शांति और व्यवस्था स्थापित कर सके। जॉन लॉक: लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में लोग स्वतंत्र और समान होते हैं। वे एक सरकार का निर्माण करते हैं, ताकि उनके प्राकृतिक अधिकारों (जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति) की रक्षा हो सके। जीन-जैक रूसो: रूसो के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में लोग स्वतंत्र और बराबर होते हैं। वे एक सामाजिक संविदा के माध्यम से एक लोकतांत्रिक सरकार का निर्माण करते हैं, जिसमें जनता की संप्रभुता सर्वोपरि होती है।
सामाजिक संविदा सिद्धांत ( Social Contract Theory) आधुनिक राजनीति में महत्व: लोकतंत्र का आधार: सामाजिक संविदा सिद्धांत लोकतंत्र के आधार पर आधारित है। जनता की संप्रभुता: यह सिद्धांत जनता की संप्रभुता को सर्वोपरि मानता है। शासक की जवाबदेही: शासक जनता के प्रति जवाबदेह होता है और जनता को शासक को बदलने का अधिकार होता है। सामाजिक संविदा सिद्धांत आधुनिक राजनीतिक विचारधारा का एक महत्वपूर्ण आधार है और यह लोकतांत्रिक समाजों में शासन के सिद्धांतों को प्रभावित करता है।
पारिवारिक सिद्धांत ( Family Theory) पारिवारिक सिद्धांत के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति परिवार के विस्तार से होती है। परिवार धीरे-धीरे बढ़कर एक जनजाति में बदल जाता है और फिर कई जनजातियाँ मिलकर एक राज्य का निर्माण करती हैं।
पारिवारिक सिद्धांत ( Family Theory) मुख्य विचार: परिवार की भूमिका: परिवार राज्य की उत्पत्ति का मूल आधार है। जनजाति का निर्माण: कई परिवार मिलकर एक जनजाति का निर्माण करते हैं। राज्य का निर्माण: कई जनजातियाँ मिलकर एक राज्य का निर्माण करती हैं। रक्त संबंध: राज्य के सदस्यों के बीच रक्त संबंध होता है।
पारिवारिक सिद्धांत ( Family Theory) ऐतिहासिक उदाहरण: प्राचीन समाज: प्राचीन समाजों में, परिवार और कबीले महत्वपूर्ण सामाजिक इकाइयाँ थे। भारतीय समाज: भारतीय समाज में भी परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कई राजवंशों की स्थापना परिवार के सदस्यों द्वारा की गई है।
पारिवारिक सिद्धांत ( Family Theory) आलोचना: सीमित व्याख्या: यह सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति का एक सीमित व्याख्या प्रदान करता है। आधुनिक राज्यों की उपेक्षा: यह सिद्धांत आधुनिक राज्यों की जटिल संरचना और विविधता को समझाने में असमर्थ है। रक्त संबंध का महत्व कम: आधुनिक राज्यों में रक्त संबंध की तुलना में नागरिकता और कानूनी अधिकार अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि, पारिवारिक सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति के बारे में एक सरल और प्राचीन समझ प्रदान करता है, लेकिन यह आधुनिक राज्यों की जटिलता को समझाने में पूरी तरह सक्षम नहीं है।
विकासवादी सिद्धांत ( Evolutionary Theory) विकासवादी सिद्धांत के अनुसार, राज्य का निर्माण एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया है। यह सिद्धांत मानता है कि मानव समाज एक सरल आदिम अवस्था से विकसित होकर एक जटिल राज्य की अवस्था में पहुंचता है।
विकासवादी सिद्धांत ( Evolutionary Theory) मुख्य विचार: धीमी और क्रमिक विकास: राज्य का निर्माण एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया है। आदिम समाज से जटिल राज्य: मानव समाज आदिम समाज से विकसित होकर जटिल राज्य की अवस्था में पहुंचता है। सामाजिक विकास: सामाजिक संबंधों, आर्थिक गतिविधियों, और राजनीतिक संगठन का विकास होता है। संस्थागत विकास: धीरे-धीरे विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का विकास होता है, जैसे कि परिवार, कबीले, और राज्य।
विकासवादी सिद्धांत ( Evolutionary Theory) ऐतिहासिक उदाहरण: प्राचीन समाज: प्राचीन समाजों का विकास एक धीमी प्रक्रिया थी, जिसमें आदिम समूहों से जटिल राज्यों का निर्माण हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप: भारतीय उपमहाद्वीप में भी, सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मौर्य और गुप्त साम्राज्यों तक, एक धीमी और क्रमिक विकास हुआ।
विकासवादी सिद्धांत ( Evolutionary Theory) आलोचना: अस्पष्टता: यह सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति की सटीक तारीख और घटनाक्रम का स्पष्टीकरण नहीं देता है। अपर्याप्त व्याख्या: यह सिद्धांत राज्य की जटिलता और विविधता को पूरी तरह से समझाने में असमर्थ है। सामान्यीकरण: यह सिद्धांत सभी समाजों के विकास को एक समान पैटर्न में ढालने का प्रयास करता है, जो वास्तविकता से भिन्न हो सकता है। विकासवादी सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति का एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है, लेकिन यह अकेले राज्य के अस्तित्व और विकास को पूरी तरह से समझाने में सक्षम नहीं है। अन्य सिद्धांतों के साथ संयुक्त रूप से इस सिद्धांत का अध्ययन करने से राज्य की उत्पत्ति और विकास की एक अधिक संपूर्ण समझ प्राप्त हो सकती है।