श्रीराधासुधा�न�ध
१२४
[ुत के ८७ ोक (ोक संा –
५६,५९,६०,६१,६३,६४,६७,६८,६९,७०,७१,७२,७३,७४,७५,७६,७७,७८,७९,८०,८२,८५,
८७,८९,९३,९४,९५,९६,९७,९८,१००,१०१,१०२,१०८,११०,११४,११६,११७,११८,१२०,
१२१,१२३,१२५,१२८,१२९,१३१,१३४,१३५,१३८,१३९,१४१,१४२,१५१,१५६,१६४,
१६७,१६९,१७८,१७९,१८०,१८१,१८२,१८८,२०४,२०५,२०६,२२२,२२३,२२५,२२९,
२३०,२३३,२३७,२३९,२४०,२४२,२४३,२४४,२४५,२४६,२५८,२५९,२६४,२६५,२६६,
२६८, २६९) 'शालिवीिडत छ' म ह ।]
'धरा छ' के ेक पाद म मशः मगण रगण भगण नगण और तीन यगण होते
ह तथा ७-७ वण पर यित का िनयम है ।
[ुत के १६ ोक (ोक संा –
९१,१२४,१२६,१२७,१३०,१४३,१४७,१६२,१७२,१७३,१७५,२११,२१३,२१६,
२३५,२४१) 'धरा छ' म ह ।]
'मािलनी छ' के ेक चरण म मशः दो नगण एक मगण एवं दो यगण होते ह तथा
८ एवं ७ वण पर िवराम होता है ।
[ुत के ३ ोक (ोक संा – १५५,१५९,१६० ) 'मािलनी छ' म ह ।]
धरा –
ऽ ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । । । । । ।ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
ैयानां येण िमुिनयितयुता धरा कीिततेयम्
मािलनी वृम् –
। ।।। । ।ऽऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
ननमयययुतेयं मािलनी भोिगलोकैः