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जहाँ खामोश िफजा थी, साया भी न था,
हमसा कोई िकसी जुम म आया भी न था,
न जाने ?यों िछनी गई हमसे हंसी,
हमने तो िकसी का िदल दुखाया भी न था।
न वो सपना देखो जो टूट जाये,
न वो हाथ थामो जो छूट जाये,
मत आने दो िकसी को करीब इतना,
िक उसके दूर जाने से इंसान खुद से ?ठ जाये।
वो करीब ही न आये तो इज़हार ?या करते,
खुद बने िनशाना तो िशकार ?या करते,
मर गए पर खुली रखी आँख,
इससे यादा िकसी का इंतजार ?या करते।
िदल मेरा जो अगर रोया न होता,
हमने भी आँखों को िभगोया न होता,
दो पल की हँसी म छुपा लेता ग़मों को,
वाब की हक़ीक़त को जो संजोया नहीं होता!
हम उमीदों की दुिनयां बसाते रहे,
वो भी पल पल हम आजमाते रहे,
जब मोहबत म मरने का व?त आया,
हम मर गए और वो मुकुराते रहे।
जो नजर से गुजर जाया करते ह,
वो िसतारे अ?सर टूट जाया करते ह,
कुछ लोग ??U को बयां नहीं होने देते,
बस चुपचाप िबखर जाया करते ह\?
िचंगारी का ख़ौफ़ न िदया करो हमे,
हम अपने िदल म दिरया बहाय बैठे है,
अरे हम तो कब का जल गये होते इस आग म,
लेिकन हमतो खुद को आंसुओ म िभगोये बैठे है
मंिजल भी उसकी थी, राता भी उसका था,
एक म ही अकेला था, बािक सारा कािफला भी उसका था,
एक साथ चलने की सोच भी उसकी थी,
और बाद म राता बदलने का फैसला भी उसी का था।
सोचा था तड़पायगे हम उह,
िकसी और का नाम लेके जलायेग उह,
िफर सोचा म\?े उह तड़पाके ??U मुझको ही होगा,
तो िफर भला िकस तरह सताए हम उहY?
काश वो समझते इस िदल की तड़प को,
तो हम यूँ ?सवा न िकया जाता,
यह ब??खी भी उनकी मंज़ूर थी हम,