SHRI RAMSWAROOP MEMORIAL UNIVERSITY TOPIC : CONTRIBUTION OF CINEMA IN HINDI LANGUAGE SUBMITTED TO : SUBMITTED BY : Dr. RAGVENDRA SINGH PRAFULLA KUMAR ROLL NO :. 202411301110111 BATCH : 23-24 {24}
शीर्षक स्लाइड हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में हिन्दी सिनेमा का योगदान
परिचय हिन्दी सिनेमा, जिसे हम बॉलीवुड के नाम से जानते हैं, भारत की सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। यह माध्यम न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में भी एक सेतु का कार्य करता है। फिल्मों ने जनमानस में हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हिन्दी सिनेमा का प्रारंभ 1913 में दादासाहेब फाल्के की 'राजा हरिश्चंद्र' से हिन्दी सिनेमा की शुरुआत हुई। 1931 में पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' ने हिन्दी भाषा को फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनाया। इसके बाद से हिन्दी सिनेमा ने लगातार हिन्दी भाषा को सशक्त किया और जनमानस तक पहुँचाया।
जन-जन तक पहुँच सिनेमा की पहुँच केवल महानगरों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि यह गाँवों और दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँचा। हिन्दी फिल्मों ने जन-जन को हिन्दी भाषा से जोड़ा और इसे संवाद व अभिव्यक्ति की मुख्य भाषा बना दिया।
सामाजिक विषयों का चित्रण हिन्दी फिल्मों ने सामाजिक विषयों जैसे गरीबी, अशिक्षा, लैंगिक भेदभाव, भ्रष्टाचार आदि पर कहानियाँ प्रस्तुत कीं। इससे हिन्दी भाषा न केवल मनोरंजन की भाषा बनी, बल्कि समाज सुधार का भी माध्यम बनी।
लोकप्रिय संवाद और गीत फिल्मों के संवाद और गीत इतने लोकप्रिय हुए कि वे आम बोलचाल का हिस्सा बन गए। 'कितने आदमी थे' या 'जो डर गया, समझो मर गया' जैसे संवाद हिन्दी भाषा को जनमानस में और गहराई से स्थापित करते हैं।
शिक्षा और मनोरंजन का साधन हिन्दी सिनेमा ने शिक्षा और मनोरंजन दोनों का संयोजन कर हिन्दी भाषा को जनप्रिय बनाया। बच्चों को हिन्दी भाषा के प्रति रूचि विकसित करने में फिल्मों के गीत, कविताएँ और संवाद मददगार सिद्ध हुए।
वैश्विक स्तर पर हिन्दी आज हिन्दी फिल्में केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी देखी जाती हैं। एनआरआई समुदाय और विदेशी दर्शक हिन्दी फिल्मों के माध्यम से हिन्दी भाषा से परिचित हो रहे हैं, जिससे इसका वैश्विक प्रचार हो रहा है।
नए माध्यमों में सिनेमा डिजिटल युग में OTT प्लेटफॉर्म्स जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम पर हिन्दी फिल्मों और वेबसीरीज़ की लोकप्रियता बढ़ी है। इससे युवाओं के बीच हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है।
निष्कर्ष हिन्दी सिनेमा ने हिन्दी भाषा को केवल संवादों तक सीमित नहीं रखा बल्कि इसे विचारों, भावनाओं और संस्कृति का वाहक बना दिया। भविष्य में भी हिन्दी सिनेमा नयी तकनीकों के साथ भाषा के प्रचार में योगदान देता रहेगा।