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Language: none
Added: May 08, 2015
Slides: 34 pages
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गोवर्धन लाल त्रेहन सरस्वती बाल मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय
द्वारा :- प्रियंका मौर्या नीलम
हिन्दी अलंकार
अलंकार जिस प्रकार एक सुन्दरी विभिन्न आभूषणों द्वारा अपने शरीर को सजाती है, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता को विविध शब्द व अर्थ योजनाओं से सजाता है। वे सुसज्जित शब्द व अर्थ योजनाएँ ही काव्य में अलंकार कहलाती हैं।
तुलसीदास कबीरदास मीरा महादेवी वर्मा
राम नाम मनि द्वीप बरू जीह-देहरी द्वार। माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदोंगी तोय।। शब्दाभूषण
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। कितनी करुणा कितने संदेश। पथ में बिछ जाते बन पराग।।
शब्दालंकर शब्दालंकर शब्द द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न करते हैं। यदि जिस शब्द द्वारा चमत्कार उत्पन्न हो रहा है, उसे हटाकर अन्य समान शब्द वहाँ रख दिया जाए, तो वहाँ अलंकार नहीं रहता।
शब्दालंकर के तीन भेद। 2. यमक 1 . अनुप्रास 3. श्लेष
1. अनुप्रास * जहाँ व्यंजनों की आवृत्ति ध्वनि-सौंदर्य को बढाए, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। व्यंजनों की आवृत्ति एक विशेष क्रम से होनी चाहिए। सौंदर्य-वर्धक व्यंजन शब्दों के प्रारंभ , मध्य, या अंत में आने चाहिए।
उदाहरण 1. मोहन की मधुर मुरली मेरे मन मयूर को मस्त करती है। 2. चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में। इस काव्य में ‘ म ’ की आवृत्ति बार-बार हुई हैं। इस काव्य में ‘ च,ल ’ की आवृत्ति बार-बार हुई हैं।
2 . यमक जहाँ पर एक शब्द की बार-बार आवृत्ति होती है और उतनी ही बार उसका अर्थ अलग- अलग होता है, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण काली घटा का घमंड घटा। इस दोहें में प्रथम घटा का अर्थ हैं काले बादल और दूसरे घटा क अर्थ हैं कम होना।
श्लेष जहाँ एक ही शब्द के द्वारा एक से अधिक अर्थ का बोध हो, वहाँ श्लेष अलंकर होता है।
उदाहरण रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।। इस काव्य मे पानी के तीन अर्थ है 1.समान्य जल 2.मोती की चमक 3.मनुष्य का सम्मान
अर्थालंकार अर्थालंकार में सौंदर्य 'भाव' से संबंधित होता है, 'शब्द्' से नहीं। अर्थालंकार चमत्कार की बजाय भाव की अनुभूति में तीव्रता लाते हैं अथवा भाव संबंधी चमत्कार उत्पन्न करते हैं।
सभी जीवों में भिन्न - भिन्न प्रकार के भाव होते हैं।
अर्थालंकार के भेद। उपमा रूपक उत्प्रेक्षा मानवीकरण
उपमा जहाँ पर दो वस्तुओं की तुलना उनके रुप, रंग व गुण के अनुसार की जाए उसको उपमा अलंकार कहते हैं।
उपमा अलंकार के चार अंग है। उपमेय जिसकी उपमा दी जाए अर्थात जिसका वर्णन हो रहा है, उसे उपमेय या प्रस्तुत कहते हैं। उपमान वह प्रसिदॄ वस्तु या प्राणी जिससे उपमेय की समानता प्रकट की जाए, उपमान कहलाता है। उसे अप्रस्तुत भी कहते हैं।
साधारण धर्म उपमेय और उपमान के समान गुण या विशेषता व्यक्त करने वाले शब्द साधारण धर्म कहलाते हैं। वाचक शब्द जिन शब्दों की सहायता से उपमेय और उपमान में समानता प्रकट की जाती है उपमा अलंकार की पहचान होती है उन्हें वाचक शब्द कहते हैं। सा, सी, सम, जैसी, ज्यों, के समान-आदि शब्द कहलते हैं।
उदाहरण चाँद सा सुन्दर मुख' ' उपमेय ‘ मुख ’ उपमान ‘ चाँद ’ साधारण धर्म ‘ सुंदर ’ वाचक शब्द ‘ सा ’
जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय,वहाँ रूपक अलंकार होता है , यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े । 2. रूपक अलंकार
उदाहरण पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। मीरा ने प्रभु राम को आत्मा से अपने जीवन मे रतन रूपी धन माना है
बीती विभावरी जागरी अंबर पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी। प्रातः काल के समय आकाश की छाया पनघट में दिखाई देती हैं।
जहाँ उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है। 3. उत्प्रेक्षा अलंकार
उदाहरण कहती हुई यों उत्तरा के ,नेत्र जल से भर गए। हिम के कणों से पूर्ण मानो ,हो गए पंकज नए।। आँसू से भरे उत्तरा के नेत्र मानो ओस भरे कमल लग रहे हैं।
मानवीकरण जहाँ किसी अचेतन वस्तु को मानव की तरह गतिविधि करता दिखाया जाए ,वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। इस काव्य मे मेघों को मनुष्य की तरह सजे संवरे कहाँ गया है।
दिवसावसन का समय मेघमय आसमान से उतर रही संध्या-सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे। इस काव्य मे संध्या के समय के डूबते सूरज की तुलना आकाश से उतरती परी से की है।
शब्दार्थ गहनों गान भूषित काव्य का संसार सुंदर। साकार शब्दों रचित काया, भावार्थ सजेपद बाहर-अंदर।। अलंकार कवि चमत्कार है, चमत्कार को नमस्कार है। समापन सम आपन, काव्यगत ये अलंकार हैं।।