चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पधरगौरार्धशरीरकाय।
र्म्मिल्लकायै च जटार्राय नमः शशवयै च नमः
शशवाय।।१।।
जिनका आर्ा शरीर चम्पा के फू लोों िैसा है और शेष आर्ा
शरीर कर्ूधर के िैसे गोरे शोंकर िी का है | िो आर्े शारीर
र्र िटा र्ारण जकये हुए हैं और जिनके आर्े शरीर र्र
सुन्दर के शर्ाश सुशोजित हो रहे हैं, ऐसे र्ार्धती और िगर्ान
शोंकर को प्रनाम है|
जिन र्ार्धती के शरीर र्र कस्तूरी और कु मकु म का लेर् लगा
हुआ है और िगर्ान शोंकर के शरीर र्र जचता की िस्म लगी
हुई है| र्ार्धती कामदेर् को जिलाने र्ाली है और महादेर् उसे
नष्ट करने र्ाले हैं| ऐसे र्ार्धती और शोंकर िगर्ान को मेरा
नमस्कार है |
चलत्क्वणत्कङ्कणनपर्ुरायै र्ादाब्जराजत्फशणनपर्ुराय।
हेमाङ्गदायै भुजगाङ्गादाय नमः शशवायै च नमः शशवाय
।।३।।
िो {र्ार्धती} र्ैरोों में चमकती हुई र्ायल को र्ारण जकये हुए
है, िो {िगर्ान् जशर्} र्ैरोों में सर्धराि की र्ायल र्हने हैं, िो
{र्ार्धती} सोने के बािूबोंद र्हने हुए हैं और िो {जशर्} िुिा
में सर्ध र्ारण जकये हैं उन जशर् को नमस्कार है और जशर्ा
{जशर्ा अर्ाधत र्ार्धती} को नमस्कार है|
जिन {र्ार्धती} के बड़े नेत्र खिले हुए नीले कमल के समान हैं,
जिन {जशर्} के नेत्र खिले हुए कमल के समान बड़े हैं, जिन
{र्ार्धती} के दो {सम} नेत्र हैं और जिनके तीन {जर्षम} नेत्र हैं,
उन जशर्ा को नमस्कार है और उन जशर् को नमस्कार है|
मन्दारमालाकशलतालकायै कर्ालमालाशङ्कतकन्धराय।
शदव्ाांबरायै च शदगांबराय नमः शशवायै च नमः शशवाय
।।५।।
जिन {र्ार्धती} के के श {बाल} मन्दार के फू लोों से सुसखित
हैं, िो {जशर्} मुोंडोों की माला र्हने हुए हैं, जिन {र्ार्धती} र्स्त्र
जदव्य हैं और िो {जशर्} जदगोंबर {आकाश को र्स्त्र के रूर्
में र्ारण करने र्ाले अर्ाधत जनर्धस्त्र} हैं न जशर्ा और जशर् को
नमस्कार है|
जिन {र्ार्धती} के के श िल से िरे हुए काले बादलोों के समान
हैं, जिन {जशर्} की िटा में जबिली की चमक िैसी लाजलमा
है, जिन {र्ार्धती} का कोई ईश्वर नहीों है {जनरीश्वर अर्ाधत र्रम
स्वतोंत्र} और िो {जशर्} समस्त सोंसार के ईश्वर हैं उन जशर्ा
को नमस्कार है और उन जशर् को नमस्कार है|
जिन {र्ार्धती} का नृत्य सृजष्ट का जनमाधण करता है, जिन
{जशर्} का नृत्य सृजष्ट-प्रर्ोंच के सोंहार का प्रतीक है, जिन
{र्ार्धती} िो {र्ार्धती} सोंसार की माता हैं और िो सोंसार के
एकमेर् {एकमात्र} जर्ता हैं उन जशर्ा को नमस्कार है और
उन जशर् को नमस्कार है|
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकु ण्डलायै स्फु र�हार्न्नगभपषणाय ।
शशवाम्मितायै च शशवाम्मिताय नमः शशवायै च नमः
शशवाय ।।८।।
िो {र्ार्धती} चमकते हुए रत्न िजड़त कुों डल र्हने हैं, िो
फु फकार करते हुए नाग को आिूषण के रूर् में र्ारण जकये
हैं, िो {र्ार्धती} जशर् से समखित हैं और िो {जशर्} जशर्ा से
समखित हैं उन जशर्ा और जशर् को नमस्कार हैं|
यह आठ श्लोकोों का स्तोत्र अिीष्ट फल की प्राखि कराने
र्ाला है| िो िी इसका िखिर्ूर्धक र्ाठ करता है र्ह सोंसार
में सम्माजनत होता है और लम्बी आयु तक िीता है| र्ह
अनोंत काल तक सौिाग्य और समस्त जसखियोों को प्राि
करता है|