इंद्रिय प्रदोषज विकार [Autosaved]

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About This Presentation

Ayurveda UG topic fourth-year CCIM syllabus


Slide Content

इंद्रिय प्रदोषज विकार Dr. Falguni joshi (p.g. scholar) Guided by – dr. ravi sharma (hod) Pg. dept. of kaya chikitsa m.m.m. govt. Ayurved college, udaipur

इंद्रिय – “इन्द्र: प्राणस्तस्य लिङ्गमिन्द्रियम्”

इंद्रियो की उत्पत्ति - पुरुष प्रकृति महत (बुद्धि) अहंकार

To be cont. सत्व रज तम एकादश इंद्रियो की उत्पत्ति पंच तन्मात्रा पंच महाभूत की उत्पत्ति कर्मेन्द्रिया ज्ञानेन्द्रिया उभयात्मक

कर्मेन्द्रिया ज्ञानेन्द्रिया हस्त चक्षु पाद स्पर्शन वाक् कर्ण गुदा रसन लिङ्ग घ्राण

इंद्रिय पंचपंचक ( five pentads of senses) पंचइंद्रिय पंचइंद्रियद्रव्य पंचइंद्रिय अधिष्ठान पंचइंद्रिय पंचइंद्रिय अर्थ बुद्धि 1. श्रोत्र ख(आकाश) कर्ण( दो कान ) शब्द श्रोत्रबुद्धि 2. स्पर्शन वायु त्वचा स्पर्श स्पर्शन 3. चक्षु ज्योति(अग्नि) अक्षि (दो नेत्र ) रूप चक्षु 4. रसन अंबु (जल ) जिव्ह्रा रस रसन 5. घ्राण भू (पृथ्वी ) नासा गंध घ्राण

इंद्रियाणि समाश्रित्य प्रकुप्यंति यदामला: | (च.सू.28) वातादि दोषों द्वारा इंद्रियाधिष्ठानों मे जाकर इंद्रियो को दूषित करना |

उपघातोपतापभ्यां योजयंतीन्द्रियाणि ते || (च.सू.28) यह वातादि दोष इंद्रियो मे – उपताप (विकृति) उपघात (नाश)

इसके अतिरिक्त – इंद्रियाप्रवृत्ति इंद्रियायथाप्रवृत्ति

चिकित्सा त्रिदोष शामक निदान परिवर्जन सद्वृत्त पालन देश, काल, आत्मा के विपरीत गुणों का सेवन

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