Bharat me sthaniya svashasan ka vikas (2)

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About This Presentation

prachin ,madhyakaleen evam british bharat me sthaniya svashasan ki sansthaon ka svaroop


Slide Content

भारत में स्थानीयस्वशासन का विकास
द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान
कुमारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश.
यहसामग्रीविशेषरूपसेशिक्षणऔरसीखनेकोबढ़ानेकेशैक्षणिकउद्देश्योंकेलिएहै।आर्थिक/वाणिज्यिकअथवा
किसीअन्यउद्देश्यकेलिएइसकाउपयोगपूर्णत:प्रतिबंधहै।सामग्रीकेउपयोगकर्ताइसेकिसीऔरकेसाथवितरित,
प्रसारितयासाझानहींकरेंगेऔरइसकाउपयोगव्यक्तिगतज्ञानकीउन्नतिकेलिएहीकरेंगे।इसई-कंटेंटमेंजो
जानकारी की गई है वह प्रामाणिक है और मेरे ज्ञान केअनुसार सर्वोत्तम है।
उद्देश्य-
●स्थानीय स्वशासन की धारणा की जानकारी
●प्राचीनमध्यकालीन औरआधुनिकभारतमेंस्थानीयस्वशासनकीसंस्थाओंकेस्वरूप की
जानकारी
●स्थानीय संस्थाओं में सुधार हेतु किये गए कानूनी प्रयासोंकी जानकारी
●ब्रिटिश भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के विकासके उद्देश्य की जानकारी
●स्वतंत्र भारत में स्थानीय संस्थाओं को सशक्त बनानेहेतु किए गए प्रयासों की जानकारी
●भारत में स्थानीय स्वशासन के संबंध में विकसित दृष्टिकोणों की जानकारी
भारतमेंस्थानीयस्वशासनकाप्रारंभिकरूपग्रामप्रशासनकेरूपमेंविद्यमान रहाहै।प्राचीनभारतके
गांवकीमुख्यविशेषताउनकी संगठित एकतारहीहैजिसकीस्थापनामेंपंचायतसंस्थाओंकी
महत्वपूर्णभूमिकारहीहै।ग्रामवासीपूरीइमानदारी ,कार्यकुशलताएवंन्यायभावनाकेसाथपंचायत
संस्थाओंकासंचालनकरतेथेऔरराज्यद्वारापंचायतों कोग्रामसेसंबंधित कार्योंकीपूरीशक्तिएवं
स्वतंत्रताप्रदानकीजातीथी।प्रोफेसरअलतेकरनेप्राचीनभारतमेंग्रामपंचायतों कीविशेषताओंका
उल्लेखकरतेहुएलिखाहैकि‘’आधुनिककालमेंभारतयायूरोप,अमेरिकामेंग्रामपंचायतों कोजितने
अधिकारप्राप्तहैंउनसेकहींअधिक इनप्राचीनकालीनग्रामसंस्थाओंकोप्राप्त थे।....ग्रामवासियों के
अभ्युदयऔरउनकी सर्वांगीण भौतिक नैतिकऔरधार्मिकउन्नति केसाधनमेंइनकाभागप्रशंसनीय
और महत्वपूर्ण था। ‘’
प्राचीनकालकीस्थानीयसंस्थाओंमें‘ग्रामणी’कामुख्यस्थानथाजोग्रामीणजनताका
अभिभावक मानाजाताथा।राज्यकेलिएकरएकत्रित करनाऔरउसकापूर्णअभिल ेखरखनाइसका
मुख्यकार्यथा।प्राचीनभारतमेंविभिन्न कालखंडोंमेंग्रामीणसंस्थाओंकेविकासकानिम्नांकितरूपों
में विश्लेषण किया जा सकता है-

●मौर्य काल में स्थानीय स्वशासन-
इसयुगकेप्रशासनकापरिचय कौटिल्य के‘अर्थशास्त्र’सेमिलताहै।अर्थशास्त्रमेंग्रामीणसमाजो
संगठनऔरउनकेकार्योंकाविस्तृतविवरणप्राप्तहोताहै।मौर्यकालमेंग्रामशासनकीसबसेनिचली
इकाईथीजिसकाशासकग्रामिक कहलाताथा।अर्थशास्त्रमें‘ग्रामिक ‘और‘गोप‘केकार्योंकास्पष्ट
वर्णनकियागयाहैऔरयहबतायागयाहैकियहसंस्थाएंस्वास्थ्य एवंसफाईआदिकार्योंपरविशेष
ध्यानदेतीथी।5तथा10ग्रामोंकाशासक‘गोप’कहलाताथा।गोपकेऊपर‘स्थानिक ’नामक
पदाधिकारी होताथाजोजनपदकेचतुर्थभागपरशासनकरताथा।ग्रामीणप्रशासनकेकार्मिकोंमेंएक
अध्यक्ष,एकसंखायक,स्थानिक औरअश्वशिक्षक आदिकार्मिकहोतेथे।मौर्यकालीनग्रामप्रशासन
केरूपमेंडॉसत्यकेतुविद्यालंकारनेलिखाहैकि‘’विशालसाम्राज्य मेंएककेंद्रीयसरकारकीस्थापना
होतेहुएभीगांवशासनकोअपनेविषयोंमेंपूर्णस्वतंत्रताप्राप्तकीथी।नियमानुसारकार्यकिएजातेथे
औरनियमतोड़नेवालोंकोदंडकीव्यवस्था कीगईथी।‘सभा’गांवकेकार्योंकाकेंद्रथी।यह
सामाजिक औरधार्मिकविषयोंपरविचारकरतीथी।गांवकेनिवासियों केमनोरंजनकेलिएसभा
द्वाराअनेकआयोजनकिएजातेथे।इनआत्म-प्रशासकगणराज्यों मेंजनतास्वतंत्रता पूर्वकरहती
थी। ‘’
●गुप्त काल में ग्राम प्रशासन-
गुप्तकालमेंप्रशासनिकव्यवस्था अत्यंतउच्चकोटिकीथी।प्रशासनिक सुविधाकीदृष्टिसेसाम्राज्य
अनेकप्रांतोंमेंविभक्त था।नगरकाअधिकारी ‘नगरपति’कहलाताथाऔरनगरकीव्यवस्था के
लिएएकनगरपरिषदहोतीथीजोवर्तमाननगरपालिका केसामानथी।नगरअनेकग्रामोंमेंविभक्त
थेऔरप्रत्येकग्रामकाअधिकारी ‘ग्रामिक ’कहलाताथाजिसकी सहायताकेलिएग्रामसभाहोतीथी।
गांव के मामलों का प्रबंध ग्रामिक बड़े बुजुर्गों कीसहायता से करता था।
‘ वीथी’ कहे जाने वाले कस्बों के प्रशासन में प्रमुखस्थानीय लोगों का भी योगदान रहता था।
●राजपूत कालीन स्थानीय स्वशासन -
राजपूतकालमेंभीगांवप्रशासनकीसबसेछोटीइकाईथीऔरगांवकाप्रबंधग्रामसभाओंकेद्वारा
कियाजाताथा।शासनकीसुविधाकेलिएअनेकसमितियों कानिर्माणकियाजाताथाजिन्हेंविभिन्न
प्रकारकेकार्यसेजातेथे।नगरीयप्रशासनप्रबंधकेलिएएक‘पहनाधिकारी ’नामकअधिकारी होता
था, जिसके कार्य मुख्यतः वे ही थे जो आजकल मुख्य नगरअधिकारी के द्वारा संपन्न किए जाते हैं।
●सल्तनत कालीन प्रशासन-

इसकालमेंप्रशासनकास्वरूप मूलतासैनिकथाऔरसुल्ताननिरंकुशढंगसेशासनकरतेथे।नगरीय
औरग्रामीणशासनकीवहस्थितिनहींथीजोप्राचीनभारतमेंदेखनेकोमिलतीथी।नगरप्रशासन
केंद्रीकृत नौकरशाही द्वारा संचालित था, हालांकि गांवअपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्र थे।
●मुगलकालीन स्थानीय स्वशासन-
मुगलशासनकालमेंभीग्रामसबसेमहत्वपूर्णनिकायथे।प्रांतअनेकजिलोंमेंविभक्त थे।जिलेके
नीचे‘परगना’कार्यरतथेऔरपरगनाकोगांवोंमेंबांटागयाथा।गांवकाप्रबंधपंचायतीकरतीथीजो
गांवमेंसफाई,सुरक्षा,शिक्षा,सिंचाईतथाविवादोंकाफैसलाआदिकार्यकरतीथी।ग्रामीणप्रशासनमे
तीनमुख्यअधिकारी होतेथे-मुकद्द्म ,पटवारी औरचौधरी। मुकदमगांवकीदेखभालकरताथा,
पटवारी लगानवसूलकरताथातथाचौधरी गांवकेमुकदमोंकानिपटाराकरताथा।गांवकीसुरक्षाका
कार्यचौकीदार केद्वाराकियाजाताथा।किंतुमुगलकालमेंस्थानीयसंस्थायेस्वतंत्रऔरलोकतांत्रिक
नहीं थी।
मुगलोंनेप्रारंभमेंस्थानीयप्रशासनकीसंस्थाओंकीव्यवस्था मेंकोईहस्तक्षेप नहीं
किया,बल्किइनकाउपयोगअपनेशासनकोमजबूतकरनेकेलिएकिया।शासनमजबूतहोनेकेबाद
उन्होंन ेजागीरदारीप्रथाप्रारंभकीजिसमेंजागीरदारराजस्व एकत्रकरताथा।इसव्यवस्था सेप्राचीन
भारतकेस्थानीयप्रशासनकीव्यवस्था कमजोरहुईऔरपंचायतीराजव्यवस्था काविनाशप्रारंभहो
गया।बादमेंब्रिटिश शासकोंद्वाराभारतकीप्राचीनस्थानीयशासनकीपद्धति कोनष्टकरअपनी
स्थानीय शासन पद्धति लागू की गई।
●ब्रिटिश शासन काल में स्थानीय स्वशासन-
आधुनिकभारतमेंस्थानीयस्वशासनकाविकासअंग्रेजोकेद्वाराकियागया।व्यवस्थित और
समयबद्धनिर्वाचन परआधारितस्थानीयस्वशासनयूरोपऔरअमेरिकामेंविकसित हुआजिसे
ब्रिटिश सरकारनेभारतमेंभीलागूकिया।आधुनिकअर्थमें‘’स्थानीयस्वशासनकाअर्थएकऐसे
प्रतिनिधि संगठनसेहैजोएकनिर्वाचक मंडलकेप्रतिउत्तरदाईहो,प्रशासनतथाकरारोपणकीविस्तृत
शक्तियों काउपभोगकरताहोऔरउत्तरदायित्व कीशिक्षादेनेवालीपाठशालातथाकिसीदेशकेशासन
कानिर्माण करनेवालेअंगोंकीश्रृंखलाकीमहत्वपूर्णकड़ीकेरूपमेंकार्यकरताहो।’’इसरूपमें
स्थानीयस्वशासनकासूत्रपातअंग्रेजोकेद्वाराकियागया।प्राचीनग्रामीणप्रशासनवंशानुगत
विशेषाधिकार केआधारपरगठित होतेथे,राजस्व वसूलकरनाऔरजीवनतथासंपत्तिकीरक्षाकरना
उनकेमुख्यकार्यथे,राजनीतिकशिक्षा कासाधनवेनहींथेऔरनहीप्रशासनिकव्यवस्था का
महत्वपूर्ण अंग थे । ‘’
आधुनिकभारतमेंस्थानीयशासनकाप्रारंभ1687सेमानाजासकताहै
जब‘चेन्नई’नगरकेलिएएकनगरनिगमकीस्थापनाकीगई।आधुनिकभारतमेंस्थानीयस्वशासन
के विकास को निम्नांकित कालों में विभाजित किया जासकता है-

1.1687 से 18 81 तक का काल -
1687मेंचेन्नईमेंनगरनिगमकीस्थापनाकीगईजिसकागठनब्रिटेनमेंप्रचलित संस्थाओंके
प्रतिमान केआधारपरकियागयाऔरउसेकुछकरलगानेकाअधिकारदियागयाजिसेवेएकनगर
भवन,एककारागारऔरस्कूलभवनतथाअन्यसजावटकीवस्तुऔरनिवासियों कीप्रतिष्ठा ,शोभा
,सुरक्षा,प्रतिरक्षा केअनुरूपभवनोंकानिर्माण करनेतथानगरनिगमकेअधिकारियों औरस्कूल
अध्यापकों केवेतनकेलिएखर्चकरसकतेथे।नगरनिगमकीस्थापनाकेपीछे‘ईस्टइंडियाकंपनी’
काविश्वासकियाथाकियदिलोगोंकोस्वयंअपनेऊपरकरलगानेदियाजाएतोवहसार्वजनिक
कल्याणकेलिएपांचसीलिंगस्वेच्छासेदेदेंगे,यदिहमअपनेनिरंकुशशक्तिकेद्वाराकरवसूलकरें
तोवेएकपैसेभीनहींदेनाचाहेंगे।’’किंतुलोगोंद्वारानगरनिगमकेकरारोपणकाविरोधकरनेके
बाद1726मेंनगरनिगमकेस्थानपरएकनगराध्यक्ष केन्यायालयकीस्थापनाकीगई।इसीकालमें
1793के‘चार्टरएक्ट’द्वाराचेन्नई,मुंबईतथाकोलकाताकेतीनमहानगरों मेंनगरप्रशासनकी
स्थापनाकीगई।1842मेंबंगालअधिनियम पारित हुआ,जिसकेअनुसारबंगालकीजनपदीय नगरों
मेंभीनगरप्रशासनकाविस्तारकियागया।इसअधिनियम मेंप्रावधानकियागयाकियदिकिसी
नगरकेदोतिहाईमकानमालिकप्रार्थनाकरेंतोसफाईकेलिएएकनगरसमिति कीस्थापनाकरदी
जाए।किंतुयहअधिनियमप्रभावीनहींहोसकाक्योंकि जबइसकेअनुसारजिलाधीशनेकरलगाना
चाहातोलोगोंनेउसपरअनाधिकारप्रवेशकेलिएमुकदमाचलादिया।1850मेंसंपूर्णदेशकेलिए
एकअधिनियम पारितकियागयाऔरइसमेंपहलेकेकानूनोंकेविपरीत अप्रत्यक्ष करारोपणका
प्रावधानकियागया।1863में‘राजकीय सैनिकस्वास्थ्य आयोग’नेभारतीयनगरोंकीअस्वच्छता को
दूरकरनेकेलिएनगरप्रशासनकाविस्तारकिया।1870मेंस्थानीयशासनकीदिशामें‘लॉर्डमेयो
द्वारा प्रस्ताव’ लाया गया जिसमें निम्नांकित प्रावधानकिए गए-
●शक्तिकाविकेंद्रीकरणकियाजाएऔरकेंद्रसेकुछशक्तियां एवंकार्यलेकरप्रांतोंकोप्रदान
किए जाएं।
●भारतीयों को प्रशासन से संबद्ध किया जाए।
●इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नगर प्रशासन का क्षेत्रसबसे उपयुक्त है।
इस युग में स्थानीय स्वशासन की मुख्य विशेषताएं निम्नवत थीं -
1.भारतमेंस्थानीयप्रशासनब्रिटिशस्वार्थोंकोसिद्ध करनेकेलिएस्थापितकियागयाथा,नकिदेश
मेंस्वशासीसंस्थाओंकाविकासकरनेकेउद्देश्यसे।वस्तुतःलगानवसूलीकेकार्यकोसरलबनानेके
लिएभारतीयों कोप्रशासनसेसंबद्ध करनेकाप्रयासकियागया।ब्रिटिश सरकारकामूलउद्देश्य
राजस्व के स्थानीय स्रोतों का दोहन करना और विकेंद्रीकरणके द्वारा प्रशासन में मितव्ययिता लाना था।
2.स्थानीयशासनकीसंस्थाओंपरअंग्रेजोंकाआधिपत्य था,अतःअधिकांशभारतीयजनताइन
संस्थाओं के क्रियाकलापों में भाग लेने का अवसर प्राप्तनहीं कर सकी।

3.स्थानीयसंस्थाओंमेंनिर्वाचन कीप्रणाली कोतत्कालीन मध्यप्रद ेशकेअतिरिक्त अन्यत्रकहींभी
लागूनहींकियागयाथा।अर्थात अंग्रेजीशासनकालमेंभीअबतकसभीस्थानीयसंस्थाओंका
निर्वाचन नहीं होता था।
2. 1882-1919 का काल -
लॉर्डमेयोकेबादलॉर्डरिपनभारतकेगवर्नरजनरलनियुक्तहुए।अपनीउदारप्रवृत्तिऔरभारतीय
जनमतकोसंतुष्टकरनेकेउद्देश्यसे1882मेंउन्होंन ेस्थानीयशासनकोस्वशासीबनानेकाप्रयास
किया।उनकेअनुसारस्थानीयशासनप्रधानतःजनताकीराजनीतिक वसार्वजनिकशिक्षाकाएक
साधनथा।‘लॉर्डरिपनद्वारालाएगएप्रस्ताव’मेंनिम्नांकितसिद्धांतों काप्रतिपादनकियागयाथा।
यह प्रस्ताव इतने महत्वपूर्ण थे कि इन्हें ‘’ भारत मेंस्थानीय स्वशासन का मैग्नाकार्टा’’ कहा जाता है।
●स्थानीय संस्थाओं में ज्यादातर सदस्य और अध्यक्ष गैरसरकारी होने चाहिए।
●स्थानीय संस्थाओं पर राज्य का नियंत्रण अप्रत्यक्ष होना चाहिए, प्रत्यक्ष नहीं।
●इनसंस्थाओंकेपासअपनेकार्योंकोकरनेकेलिएसमुचितवित्तीयसाधनहोनेचाहिए,इसलिए
स्थानीयस्तरपरएकत्रित राजस्व केकुछसाधनइनसंस्थाओंकोउपलब्ध करादिएजाने
चाहिए। साथ ही प्रांतीय बजट से भी उन्हें समुचित अनुदानमिलने चाहिए।
●स्थानीय शासन के कर्मचारी स्थानीय संस्थाओं के प्रशासनिकनियंत्रण के अंतर्गत कार्य करें।
●1882केइसप्रस्तावकीव्याख्याप्रांतीयसरकारेंमौजूदास्थानीयपरिस्थितियों केअनुसार
स्वयं करें।
इसप्रस्तावकेअनुरूपविभिन्न राज्योंमेंनएअधिनियम पारितकिएगए,किन्तुनौकरशाही
कीपकड़इतनीमजबूतथीकिवहलॉर्डरिपनकेइरादोंकोविफलकरनेमेंसफलरही।प्रांतोंको
स्थानीयपरिस्थितियों केअनुसारइनप्रस्तावों कीव्याख्या करनेकाअधिकार था,जिसका
प्रयोग करते हुए उन्होंन े इस अधिनियम के प्रावधानों को नगण्य बना दिया ।
1909मेंस्थानीयस्वशासनकीदिशामेंएकऔरप्रयासकियागया।इसवर्ष
‘राजकीय विकेंद्रीकरण आयोग’ की रिपोर्ट प्रकाशित हुई,जिसके प्रमुख सुझाव इस प्रकार थे-
1.गांवकोस्थानीयशासनकीबुनियादी इकाईमानतेहुएप्रत्येकगांवमेंपंचायतऔर
नगरीय क्षेत्र में नगर पालिकाओ ं का निर्माण किया जाए।
2 . स्थानीय संस्थाओं में निर्वाचित सदस्यों का बहुमतहोना चाहिए।
3.नगरपालिका केसदस्य अध्यक्षकाचुनावकरें,किंतुजिलाधीशस्थानीयजिलापरिषदका
अध्यक्ष होना चाहिए।
4.नगरपालिकाओ ंकोकरनिर्धारित करनेकाअधिकारदियाजानाचाहिए ताकिवेउसे
कोष मे संचित करकेअपना बजट बना सके।

5.स्थानीयनिकायों परबाह्यनियंत्रण परामर्श,सुझावऔरलेखापरीक्षण तकसीमित होना
चाहिए।
6.नगरपालिकाओ ंकीऋणलेनेकीशक्तिपरसरकारीनियंत्रण बनेरहनाचाहिए औरनगर
पालिका को संपत्ति पट्टे पर देने या बेचने के लिए सरकारकी पूर्व अनुमति लेनी चाहिए।
7 . प्राथमिक शिक्षा का उत्तरदायित्व नगरपालिका परहोना चाहिए।
3 . 1920 - 1937 का काल-
इसयुगमेंभारतमेंराष्ट्रीय आंदोलनतेजीसेविस्तारप्राप्तकररहाथाऔरदूसरीतरफअंतरराष्ट्रीय
जगतमेंदुनियाकोप्रथममहायुद्धकासामनाकरनापड़रहाथा।राष्ट्रीय आंदोलनकीबढ़तीशक्ति
केकारणऔरमहायुद्धमेंभारतीयों कासहयोगप्राप्तकरनेकेउद्देश्यसेब्रिटिश सरकारनेऐतिहासिक
घोषणाकीकिवहभारतवासियों कोशासनकिएजानेकाअधिकार देनेऔरस्वशासनकीसंस्थाओं
काविकासकरनेकेलिएप्रतिबद्ध है।इसउद्देश्यकेनिमित्त1919में‘भारतीयशासनअधिनियम ’
पारितकियागयाऔरप्रांतोंमेंद्वैधशासनप्रणाली लागूकीगईताकिउत्तरदाईशासनस्थापितकिया
जा सके। इस युग में स्थानीय स्वशासन की दिशा में निम्नांकितविकास हुए।
●लोकसेवाकेअधिकारी कोअध्यक्षबनानेकीपरंपरासभीनगरपालिकाओ ंमेंसमाप्त
हो गई और अनेक जिला परिषदों में भी इस प्रथा का अंतहो गया।
●मताधिकार को पहले से अधिक लोकतांत्रिक रूप दिया गया।
●स्थानीय निकायों को बजट बनाने के संबंध में अनेक प्रतिबंधों से मुक्त किया गया।
●कार्यकारी निर्देश संबंधित कार्य जनता के निर्वाचितप्रतिनिधियों के हाथ मे चला गया।
इसप्रकारस्थानीयस्वशासनलोकतंत्रकीदिशामेंअग्रसरहुआ,किंतुलोकतंत्रकेविकासकेसाथ-साथ
स्थानीयप्रशासनमेकार्यकुशलताकाह्रासहोनेलगा,भ्रष्टाचारमेवृद्धिहुई,पक्षपातऔरभाई
भतीजावादहावीहुए,स्थानीयप्रशासनिक कर्मचारीराजनेताओंकेप्रभावमेंआगएऔरनियुक्तियोंके
संबंध में घूसखोरी और बेईमानी बढ़ने लगी ।
4. 1937 से 1949 तक का काल-
1935मेंभारतीयशासनअधिनियम लागूकियागयाजिसकेद्वाराप्रांतोंमेंद्वैधशासनके
स्थानपरस्वायत्तशासनस्थापितकियागया।प्रांतीयस्वायत्तता केसाथस्थानीयस्वशासनकारूपभी
बदला।पहलेस्थानीयस्वशासनकोसुशासनकीदिशामेंएकप्रयोगमात्रसमझाजाताथाऔरअबवह
संपूर्णदेशकेप्रशासनकाएकअंगबनगया।इसयुगमेंप्रांतोंनेस्थानीयनिकायों कीमामलोंकीजांच
प्रारंभकीताकिउनकासमुचितप्रबंधनकियाजासके।इसक्रममेंमध्यप्रद ेशने1935मेंजांचसमिति
नियुक्तकी,संयुक्तप्रांतने1938मेंऔरमुंबईने1939मे।यद्यपिप्रांतोंमेंजांचसमितियों की

सिफारिशों कोलागूनहींकियागया।किंतुयहदेखागयाकिस्थानीयशासनकीलोकतांत्रिक कार्य
प्रक्रियासभीजगहविद्यमान थी,नामित करनेकीप्रणाली काअंतकियागयाऔरपरामर्शदात्रीकार्यों
को कार्यकारी कार्यों से पृथक किया गया।
स्वतंत्र भारत में स्थानीय स्वशासन-
1947मेंदेशकीआजादी केसाथस्थानीयशासनकेइतिहासमेंएकनयायुगआरंभहुआ।केंद्रीय
,प्रांतीय,स्थानीयसभीस्तरोंपरस्वशासनकीस्थापनाहुई।पहली बार1948मेंकेंद्रीयस्वास्थ्य मंत्रीकी
अध्यक्षता मेंप्रांतोंकेस्थानीयस्वशासनमंत्रियों काएकसम्मेलनहुआ,जिसकाउद्घाटनकरतेहुए
पंडित जवाहरलालनेहरूनेस्वतंत्रभारतमेंस्थानीयशासनकीभूमिकाकीव्याख्या करतेहुएकहाथा
कि’’स्थानीयस्वशासनलोकतंत्रकीकिसीभीव्याख्या कासच्चाआधारहैऔरहोनाचाहिए। हमारा
कुछऐसास्वभावबनगयाहैकिहमउच्चस्तरपरहीलोकतंत्रकीबातसोचतेहैं,निम्नस्तरपरनहीं।
किंतु यदि नीचे से नीव का निर्माण न किया गया तो संभवहै कि लोकतंत्र सफल न हो सके’। ’
इसयुगमेंस्थानीयस्वशासनकेविकासकोप्रोफ़ेसरश्रीराममाहेश्वरीनेदोआधारों परव्याख्यायित
किया है-
1. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का सैद्धांतिक आधार
2. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के प्रयास
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का सैद्धांतिक आधार-
इसयुगमेंस्थानीयस्वशासनकीव्याख्या लोकतांत्रिकविकेंद्रीकरणकेसिद्धांतकेआधारपरकीगई,
जिसकातात्पर्यहैकीसत्ताकाविकेंद्रीकरणकियाजानाचाहिए,जिससेअधिकाधिक जनताकोसत्तामें
भागीदारी काअवसरप्राप्तहोसके।इसे‘ग्रासरूट्स डेमोक्रेसी’केनामसेभीजानाजाताहै।इसकाअर्थ
यहहैकिऐसीराजनीतिकव्यवस्थाजिसमेंलोकतंत्रस्थानीयस्तरतकपहुंचसके,औरकेवलराष्ट्रीय
औरप्रांतीयस्तरतकहीसीमित नरहे।एकजीवनदर्शनकेरूपमेंलोकतंत्रकेविचारमेंविकेंद्रीकरणका
विचारनिहित है।केवलराजसत्ता मेंलोगभागीदारहीनबने,बल्किसरकारकेदिनप्रतिदिन के
कामकाज में लोगों को सहभागी बनाना भी उसका उद्देश्यहै।
लोकतांत्रिकविकेंद्रीकरण केतीनरूप है-राजनीतिक ,आर्थिकऔरप्रशासनिक ।राजनीतिक
विकेंद्रीकरणकातात्पर्यहैस्थानीयसंस्थाओंकोस्वायत्तता दीजाएऔरउसमेंजनताकीसहभागिता हो
तथाकेंद्रीयऔरप्रांतीयनियंत्रण कमसेकमहो।आर्थिकविकेंद्रीकरणइनसंस्थाओंकोअपनेदायित्व
कोपूराकरनेकेलिएआर्थिकसंसाधनों केप्रबंधकाअधिकारप्रदानकरताहैऔरइनकी आर्थिक
आत्मनिर्भ रताकीसिफारिश करताहै।प्रशासनिकविकेंद्रीकरणबिनाकेंद्रऔरप्रांतकेहस्तक्षेप केइन
संस्थाओं को अपने कार्यों का निर्देशन, पर्यवेक्षणऔर आयोजन करने का अधिकार देने का पक्षधर है।

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के प्रयास-
1950मेंभारतीयसंविधान केलागूहोनेकेबादस्थानीयस्वशासनकोएकनईदिशामिली। संविधान
द्वारास्थानीयस्वशासनकोराज्यसूचीकेअंतर्गतरखागयाहैऔरराज्यकेनीतिनिदेशकसिद्धांतों
मेंकहागयाहैकि‘’राज्यकायहकर्तव्यहोगाकिवहग्रामपंचायतों काइसढंगसेसंगठनकरेंकिवे
स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें।’’
स्वतंत्रभारतमेंस्थानीयस्वशासनकेगठनएवंविकासकोनिम्नांकित शीर्षकोंकेअंतर्गतव्यक्त
किया जा सकता है-
●ग्रामीण पक्ष को ज्यादा महत्व-
संविधान मेंस्थानीयस्वशासनकेग्रामीणपक्षकीओरज्यादाध्यानदियागयाहै,जोबहुत
स्वाभाविक हैक्योंकिग्रामीणक्षेत्रोंकीसंख्याज्यादाहै।1957मेंसामुदायिकविकासकार्यक्रमके
मूल्यांकनहेतुबलवंतरायमेहताकीअध्यक्षता मेंजोअध्ययन दलनियुक्तकियागयाथा,उसने
त्रिस्तरीय पंचायतीव्यवस्था कासुझावदियाथा,जिसकेपरिणामस्वरूप बहुतसारेराज्योंमेंग्रामीण
स्थानीयशासनकीत्रिस्तरीयव्यवस्था कागठनहोचुकाहै।यहतीनस्तरहै-जिलास्तरपरजिला
परिषद , खंड स्तर पर पंचायत समितिऔर ग्राम ग्राम पंचायत।
●नगरीय प्रशासन के विकास की धीमी गति-
ग्रामस्वशासनकीतुलनामेंनगरीयप्रशासनकेविकासकीगतिधीमीरहीहै।तृतीयपंचवर्षीय योजना
मेंनगरीय शासनकेमहत्व कोस्वीकारकियागयाऔरयहकहागयाकि‘’जिनसमस्याओ ंकाहमें
सामनाकरनाहै,वहआकारऔरविशालताकीदृष्टिसेबहुतहीविकरालहै।उनकाहलकेवलराज्य
सरकारहीनहींढूंढसकती,बल्किनगरप्रशासनतथासामान्य जनताभीउनकेसमाधानमेंयोगदे
सकतीहै।शर्तयहहैकिप्रत्येकनगरीयक्षेत्रमेंअधिक सेअधिक सामुदायिकप्रयत्नकिएजाएंऔर
अधिकाधिक नागरिक उसमेंहाथबटायें।कुछऐसीन्यूनतमदिशाएंहैंजिनमेंतृतीययोजनाकेअंतर्गत
कार्यकियाजानाचाहिएजिससेकमसेकमभविष्य केलिएउचित मार्गदर्शनकियाजासके।यह
दिशाएं इस प्रकार है-
●उचित नीतियों के माध्यम से नगरीय भूमि के मूल्य का नियंत्रण।
●भूमि के प्रयोग का आयोजन और महा योजनाओं का निर्माण।
●नगरीय आवश्यकताओ ंकेअनुसारनिवाससंबंधीएवंअन्य सुविधाओंकेलिएन्यूनतम
संतोषजनक मानक निर्धारित करना ।
●नगरीय प्रशासन को सशक्त बनाना ताकि वह विकास संबंधीअन्य दायित्वों को पूरा कर सकें।
स्थानीयस्वशासनकीसंस्थाओंकीकार्यप्रणाली कीजांचकरनेऔरउनकी सफलताकेलिएसुझावदेने
केउद्देश्यसेराज्यसरकारों तथाकेंद्रसरकारकेद्वाराअनेकसमितियोंनियुक्तकीगई।केंद्रसरकार

नेनगरीयस्थानीयशासनकेसंबंधमेंप्रतिवेदनप्रस्तुतकरनेकेलिएनिम्नांकित समितियों की
स्थापना की-
1. स्थानीय वित्त जांच समिति-1951
2. नगर प्रशासन के कर्मचारियों के प्रशिक्षण के संबंधमें समिति- 1963
3 . नगरीय स्थानीय निकायों के वित्तीय साधनों की वृद्धिके संबंध में मंत्रियों की समिति- 1963
4. ग्रामीण में नगरीय संबंधों के विषय में समिति- 1966
5. नगर प्रशासन समितियों की सेवा की शर्तों से संबंधित समिति ।
●नगरीय एवं ग्रामीण स्वशासन का पृथक्करण-
स्वतंत्रभारतमेंस्थानीयस्वशासनकेविकासकीदिशामेंएकमहत्वपूर्णपरिवर्तनयहहुआहैकि
ग्रामीणस्थानीयशासनकोनगरीय शासनसेपृथककरदियागयाहै।ग्रामीणस्थानीयस्वशासनकी
समस्याओ ंकोदूरकरनेकेलिएकेंद्रतथाराज्योंमेंसामुदायिकविकासवपंचायतीराजविभागस्थापित
किएगएहैं,फलतःराज्योंकेस्थानीयस्वशासनविभागकाकार्यकेवलनगरीयस्थानीयशासनकी
देखभालकरनाहै।स्थानीयशासनराज्योंकेक्षेत्रअधिकार केअंतर्गतहै,इसलिएस्वाभाविकरूपसे
राज्योंकेस्थानीयशासनमेनामों,संगठनतथाकार्यप्रणाली मेंअंतरदेखनेकोमिलताहै,फिरभीसब
मिलाकर इस इस क्षेत्र में एकरूपता देखने को मिलती है।
पंचायती राज से संबंधित दृष्टिकोण -
स्वतंत्रभारतमेंप्रारंभमेंपंचायतीराजव्यवस्था काशुभारंभबड़ीधूमधामसेकियागया।राजस्थान
औरआंध्रप्रदेशनेसर्वप्रथमअक्टूबर1959कोपंचायतव्यवस्था कोअपनाया।1960मेंअसम,
मद्रास,मैसूरमे,1962मेंमहाराष्ट्र मेंऔर1964मेंपश्चिम बंगालऔरउसकेबादअन्यराज्योंमेंभी
पंचायतीव्यवस्था कीस्थापनाकीगई।भारतमेंपंचायतीराजकोनिम्नांकितदृष्टिकोणोंकेसाथ
संबंध किया गया-
1. यह सामुदायिक विकास के उद्देश्यों की पूर्ति का साधनहै।
2.यहराज्यसरकारकाऐसाअंगहैजोसामुदायिकविकासकार्यक्रमकेसाथराज्यद्वारासौंपीगई
अन्य योजनाओं को संपन्न करने का साधन है।
3 . यह ग्राम स्तर पर लोकतंत्र का विस्तार और उसका साकाररूप है।
4.जयप्रकाश नारायणजैसेसर्वोदय वादियोंकीदृष्टिमेंयहअन्यायपूर्णसामाजिकव्यवस्था कास्थान
ग्रहण करने वाली एक नई सामाजिक व्यवस्था की ढाल है ।
1970केदशकमेइनविभिन्नदृष्टिकोण ओंकेमध्यसंघर्षप्रारंभहुआऔरपंचायतीराज
कामहत्व घटनेलगा।राजनीतिज्ञों कीगुटबाजी,नौकरशाही औरराजनेताओंनेनियंत्रण कीप्रतिस्पर्धा,
वित्तीयस्रोतोंकेअभावऔरजनताकीउदासीनताकेकारणपंचायतीराजअपंगहोगया।1971में
सत्ताकेकेंद्रीकरणकीप्रवृत्तितेजीसेबढ़ी,राज्यसरकारों कोकेंद्रीयसरकारकाआश्रित बनायाजाने

लगा।ऐसेवातावरणमेंपंचायतीराजकाविकाससंभवनहींथा।नईप्रौद्योगिकी कासमर्थनपाकरकेंद्र
सरकारनेविशिष्ट कार्यक्रमोंकोपूराकरनेकेलिएस्वतंत्रप्रशासनिक संगठनों काविकासशुरूकिया
और इस प्रक्रिया में पंचायती संस्थाओं की उपेक्षा होनेलगी ।
अशोक मेहता समिति-
उपर्युक्तपरिस्थितियों मेंजनतादलकीकेंद्रीयसरकारने1977मेंअशोकमेहताकीअध्यक्षता में
पंचायतीसंस्थाओंकेविषयमेंसुझावदेनेकेलिएएकसमितिनियुक्तकी।समिति नेअगस्त 1978में
अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें 132 सिफारिशें की गई। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है-
●त्रिस्तरीय पद्धति केस्थानपरद्विस्तरीय पंचायतव्यवस्था कानिर्माणकियाजाए-जिला
परिषद तथा मंडल पंचायत।
●जिलेकोविकेंद्रीकरणकीधुरीमानतेहुएजिलापरिषदकोसमस्तविकासकार्योंकाकेंद्रबिंदु
बनायाजाए।जिलेकेआर्थिकनियोजनकाकार्यजिलापरिषदद्वाराकियाजाएऔरवही
विकास कार्यों में सामंजस्य स्थापित करें तथा नीचे केस्तर पर मार्गदर्शन करें।
●पंचायती संस्थाएं समिति प्रणाली के आधार पर अपने कार्योंको संपन्न करें।
●जिलाधीश सहित जिला स्तर के सभी अधिकारी जिला परिषदके अधीन रखे जाएं।
●न्यायपंचायतों कोविकासपंचायतों केसाथमिलायानजाए।न्यायपंचायतकीअध्यक्षता
योग्य न्यायाधीश करें और निर्वाचित न्याय पंचायत कोउनके साथ संबंध किया जाए।
●पंचायतीराजसंस्थाओंकोआवश्यक करलगानेकाअधिकारदियाजाएताकिवेअपनेवित्तीय
साधनों कोबढ़ाकरराज्यसेप्राप्तहोनेवालीआर्थिकसहायतापरनिर्भरताकमकरसकें।
पंचायतें व्यवसाय कर, मनोरंजन कर ,भवन एवं भूमि करलगा सकती है।
●राजनीतिक दललोकतंत्रकीप्रक्रियाकेअभिन्न अंगहै,अतःपंचायतीराजसंस्थाओंकेचुनाव
राजनीतिक दलोंकेआधारपरहोनेचाहिए। अनुसूचितजातियों औरजनजातियों केलिएचुनाव
क्षेत्र सुरक्षित होने चाहिए और महिलाओ ं के लिए भीस्थान होने चाहिए ।
●राज्य सरकारों कोदलगतराजनीतिक कारणों केआधारपरपंचायतीराजसंस्थाओंको
पदच्युत नहीं करना चाहिए।
●गांवकेसामाजिक औरआर्थिकदृष्टिसेपिछड़ेवर्गकेहितोंकीरक्षाकेलिएकुछविशेषमंचोंके
गठनकीव्यवस्था कीजानीचाहिए औरपिछड़ेवर्गोंकेकल्याणकेलिएस्वीकृतधनराशि का
नियमित सामाजिक अंकेक्षणएकजिलास्तरीय अभिकरण एवंविधायकों कीएकसमितिद्वारा
होनाचाहिए।प्रत्येकजिलापरिषद मेंएकसामाजिकन्यायसमिति कागठनकियाजाना
चाहिए ताकि पंचायती संस्थाएं इन वर्गों के हितों मेंरुचि लेते हुए कार्य संपन्न कर सकें।
●ग्रामीणक्षेत्रोंमेंभीशहरीसुविधाओंकीव्यवस्था कीजानीचाहिए। जैसे-सड़कें,पेयजल,
चिकित्सा , रोजगार तथा शिक्षा।

●विकाससंबंधीकार्योंकोजिलापरिषदकोहस्तांतरित करदेनाचाहिए तथाविकासप्रशासनसे
संलग्न समस्त कर्मचारी वर्ग को जिला परिषद के अधीन रखनाचाहिए।
●पंचायतीराजकेलिएजनसमर्थ नप्राप्तकरनेहेतुस्वैच्छिक इकाइयों कागठनकियाजाना
चाहिए।
इसप्रकारअशोकमेहतासमिति नेपंचायतीराजसंस्थाओंकेप्रभावीकार्यकरणकीदिशामें
महत्वपूर्णसुझावदिए,किंतुजनतासरकारकेपतनकेबादइसदिशामेंकोईकार्यवाहीनहींहो
सकी। आलोचकों नेअशोकमेहतासमिति कीसिफारिशों कीआलोचनायहकहकरकिइसमें
गांवकोपंचायतीराजकीबुनियादी इकाईनहींमानागयाहै।प्रोफ़ेसरमाहेश्वरीकेअनुसार,‘’
राजनीतिक संस्थाएंखालीस्थानमेंकार्यनहींकरतीहैऔरगांवकीजोएकजीवंतऔर
बुनियादी इकाईहै,कीअवहेलनाकरअशोकमेहतासमिति नेबिल्कुलऐसेहीसमाधानका
सुझावदेनेकाजोखिम उठायाहै।हमेंगांवकेपूर्णसजीवव्यक्तित्व कोपूरीतरहसमझकर
इसके आधार पर विकेंद्रीकृत रचना का निर्माण करना होगा।’’
जी . के . वी .राव समिति -
1980केदशकमेंकेंद्रऔरराज्यसरकारों कीपंचायतीराजकीभूमिकाकेसंबंधमेंरुचिबढ़ीऔर
उन्हेंमजबूतबनानेकेप्रयासआरंभहुए।योजनाआयोगनेभीआठवींपंचवर्षीय योजनाकेअंतर्गत
इसबातपरबलदियाकिग्रामीणविकासकार्यक्रमोंमेंअपारवृद्धिहुईहै।पंचायतीराजसंस्थाओंको
मजबूतबनानेकीदिशामेंकदमउठातेहुएकेंद्रसरकारनेदोसमितियों कागठन1985एवं1986में
किया। 1985 में गठित जी . के. वी . राव समिति निम्नांकित सुझाव दिए-
●ग्रामीणविकासकेलिएयोजनाएंतैयारकरने,निर्णयलेनेऔरउन्हेलागूकरनेकाकार्य
पंचायतों को सौंपा जाए क्योंकि वह जनता के अधिक निकटहै।
●जिलास्तरपरविशेषरूपसेविकेंद्रीकरणकियाजानाचाहिए तथाबैंको,शहरीस्थानीय
स्वायत्तसंस्थाओंकेप्रतिनिधि ,विधानसभाओंकेसदस्य औरसांसदभीइसमेंसम्मिलित होने
चाहिए। महिलाओ ंऔरकमजोरवर्गोंकापर्याप्तप्रतिनिधित्व होनाचाहिए औरउनकाकार्यकाल
8वर्षकाहोनाचाहिए।जिलास्तरपरसभीकार्यालयस्पष्टरूपसेजिलापरिषदकेअधीनहोने
चाहिए।
●जिला परिषद को विभिन्न समितियों के माध्यम से कार्यकरना चाहिए।
●राज्यसरकारोंद्वारापंचायतों कोदीजानेवालीधनराशि कोनिर्धारित करनेकाकामवित्त
आयोगकोदियाजानाचाहिएजिसकागठनप्रत्येक5वर्षबादहोनाचाहिए।जिलास्तरपर
पर्याप्त मात्रामेंधनउपलब्ध होतारहे,इसकेलिएमुख्यमंत्री कीअध्यक्षता मेंराज्यविकास
परिषद का गठन किया जाना चाहिए।

●जिलापरिषदकेनीचेपंचायतसमिति गठित कीजानीचाहिए औरउनकागठनजिलापरिषद
जैसा ही होना चाहिए। प्रत्येक गांव में 1 ग्राम सभाहोनी चाहिए।
●ग्रामऔरमंडलस्तरपरबच्चों,महिलाओ ंऔरप्रौढ़ोकेकल्याणकेलिएएकउपसमिति का
गठन होना चाहिए जिसकी सदस्य मुख्यतः महिलाएं होनी चाहिए।
●गांवमेंकार्यकरनेवालीसमाजसेवीसंस्थाओंकीसेवाएंपंचायतों कोविभिन्न समितियों के
माध्यम से लेनी चाहिए।
एल . एम. सिंघवी समिति-
1986मेंसरकारनेसिंघवीकीअध्यक्षता मेंएक8सदस्यीय समिति कीनियुक्तिकीगई
जिसेपंचायतीसंस्थाओंकेविकास,वर्तमानस्थितिऔरकार्योंकीसमीक्षा करनेकाकार्यसौंपा
गया। इस समिति की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार थी-
1.संविधान मेंएकनएअध्यायकासमावेशकरकेस्थानीयशासनकोसंवैधानिकरूपमें
पहचान और संरक्षण प्रदान किया जाए।
2.जनसहभागिता कोसुविधाजनक बनानेकेलिएस्थानीयशासनकोस्वायत्तशासनकी
इकाइयों के रूप में देखना चाहिए।
3.ग्रामपंचायतों कोऔरअधिकक्षमतावानबनानेकेलिएगांवकापुनर्गठनकियाजाना
चाहिए।
4.पंचायतीराजसंस्थाओंसेजुड़ेविवादों कोहलकरनेकेलिएप्रत्येकराज्यमेंएकपंचायती
राज ट्राइब्य ूनल होना चाहिए।
5.पंचायतीसंस्थाओंकोप्रभावीरूपसेकार्यकरनेमेंसक्षम बनानेकेलिएउनकोपर्याप्तवित्तीय
संसाधन अर्जित करने के उपाय करने चाहिए।
पी.के .थुंगन समिति-
1988मेंइससमिति कागठनजिलायोजनाकेलिएजिलेमेंराजनीतिक औरप्रशासनिक ढांचे
केप्रकारपरविचारकरनेकेलिएकियागयाथा।इससमिति नेभीपंचायतीराजको
संवैधानिक मान्यतादिएजानेकीसिफारिश कीथीऔरजिलापरिषदकोपंचायतीराजकाकेंद्र
बनाएजानेकासुझावदियाथा।इससमिति कीएकविशेषसिफारिशजिलाधीशकोजिला
परिषदकाअधिशासी अधिकारी बनाएजानेकेबारेमेंथी।साथहीयहभीसुझावदियागयाकि
जिलाधीशकोविकासतथाप्रशासननेसहायतादेनेकेलिएकलेक्टरकेपदकेअधिकारियो की
नियुक्ति की जानी चाहिए।
73 वा और 74 वा संविधान संशोधन अधिनियम -

विभिन्न समितियों केसुझावोंकेअनुसारपंचायतव्यवस्था कोसंवैधानिक मान्यताप्रदानकरने
केउद्देश्यसेसंविधान में73वाऔर74वांसंशोधनकियागया।73वेंसंशोधनकेमाध्यम से
ग्रामीणस्थानीयस्वशासनमेंसुधारकियागयाजबकि74वेंसंविधान संशोधनकासंबंध
नगरीयस्थानीयस्वशासनकीइकाइयों सेहै।73वेंसंविधान संशोधनअधिनियम केप्रावधान
इस प्रकार है -
●संविधान मेंएकनवाभाग‘पंचायत’शीर्षकसेजोड़ागयाजिसकेमाध्यम सेसंविधान
मेंअनुच्छेद243जोड़तेहुएपंचायतीराजसंस्थाओंसेसंबंधित आवश्यक तत्वोंका
समावेश किया गया।
●इस अधिनियम के द्वारा ग्राम सभा का प्रावधान किया गया।
●त्रिस्तरीय पंचायतव्यवस्था काप्रावधानकियागया-ग्रामस्तर,मध्यवर्तीस्तरऔर
जिला स्तर।
●प्रत्येकगांवमेंउनकी जनसंख्या केआधारपरअनुसूचितजातियों औरजनजातियों के
लिएसीटोंकेआरक्षण कीव्यवस्था कीगई।आरक्षण कीयहप्रक्रिया बारीबारीसे
पंचायत क्षेत्र की सभी सीटों में की जाती रहेगी ।
●पंचायत की सभी सीटों पर एक तिहाई स्थान महिलाओ ं के लिएआरक्षित किए जाएंगे ।
●पंचायतकेअध्यक्षऔरसभापति पदोंकेलिएभीआरक्षण कीव्यवस्था राज्यकानून
बनाकर कर सकेंगे।
●पिछड़े वर्गों के आरक्षण के लिए भी राज्य कानून बनाकरइसकी व्यवस्था कर सकेंगे।
●प्रत्येकपंचायतकाकार्यकाल5वर्षसेअधिक नहींहोगा।यदियहसंस्थाएंसमयसे
पूर्वभंगकीजातीहैतोभंगकिएजानेकीतिथिसे6महीनेकीअवधिमेंनएचुनाव
कराने आवश्यक होंगे।
●राज्यमेंचुनावमेंअयोग्य घोषितकिएगएव्यक्तिपंचायतों केचुनावमेंभागनहींले
सकेंगे।कोईव्यक्तिअयोग्यताओ ंसेग्रस्तहैयानहींइससंबंधमेंउठेकिसीविवादका
निस्तारण करनेकेलिएप्राधिकारी कीनियुक्तिऔरप्रक्रियासंबंधित राज्यविधानमंडल
अधिनियम बना कर कर सकेंगे।
●इन संस्थाओं को शक्तियां और दायित्व राज्य विधानमंडलकानून बनाकर दे सकेंगे।
●राज्यसरकारऔरपंचायतों दोनोंकोस्थानीयस्तरपरकरलगानेकाअधिकार होगा।
राज्यद्वाराएकत्रितकिएगएकरोकावितरणराज्यसरकारऔरपंचायतों केमध्य
किया जाएगा। पंचायतों द्वारा लगाए गए कर उनके कोष मेंजमा होंगे।
●प्रत्येक5वर्षपरपंचायतों कीवित्तीयस्थिति कीसमीक्षा करनेकेलिएऔरइन
संस्थाओंकोदिएजानेवालेअनुदानकेसिद्धांतों कानिर्धारण करनेकेलिएराज्यवित्त

आयोगकागठनकियाजाएगा।इससंबंधमेंकानूनराज्यसरकारकेद्वाराबनाए
जाएंगे।
●पंचायतसंस्थाओंकेलेखेंऔरउनकेअंकेक्षणकेसंबंधमेंराज्यविधानमंडलविधिबना
कर प्रावधान करेंगे।
●पंचायतसंस्थाओंकेचुनावकेलिएराज्यनिर्वाचन आयोगकागठनकियाजाएगा।
राज्यनिर्वाचन आयुक्तकोउसकेपदसेउन्ही कारणोंऔरपद्धति सेहटायाजाएगा
जिस आधार पर उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को हटायाजाता है।
●इससंशोधनअधिनियम कोनागालैंड,मेघालय,मिजोरम,मणिपुरकेपहाड़ीक्षेत्रोंतथा
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग आदि क्षेत्रों में लागूहोने से मुक्त रखा गया है।
मुख्य शब्द-
स्थानीयस्वशासन,अर्थशास्त्र,पंचायतीराज,जिलापरिषद,पंचायतसमिति,ग्राम
पंचायत, संवैधानिक दर्जा
RE FERENCES AND SUGGESTED READINGS
● S.R.Maheshwari,BharatmeSthaniyashasan,LaxmiNarayanAgrawal,
Agra
●ReportofTheCommitteeonDecentralization,Bombay,Govt.OF
Maharashtra, 1961
●M.P.Sharma,Reform of Local self Governance in India,1944
●A.S.Altekar,Prachin Bharatiya Shasan Paddhati,.
●Ephinstones,History of India, London, John Murray,1905
●Government of India Act, 1919
●Government of India Act ,1935
●R. B. Jain , Panchayati Raj, IIPA,New Delhi
प्रश्न-
निबंधात्मक
1.प्राचीन भारत में स्थानीय स्वशासन के विकास पर एक निबंधलिखें.
2.ब्रिटिश शासनकालमेंभारतमेंस्थानीयस्वशासनकीसंस्थाओंकीप्रकृतिपरएकनिबंध
लिखिए।

3.स्वतंत्र भारत में स्थानीय स्वशासन के विकास के लिए क्या प्रयत्न किए गए, विवेचना कीजिए।
वस्तुनिष्ठ-
1. प्राचीन भारत में गांव की देखभाल करने वाले अधिकारी को क्या नाम दिया गया था।
[ अ ] ग्रामिक [ ब ] ग्रामणी [ स ] पंच [ द ] मुखिया
2.’ गोप’ और ‘ग्रामिक ’किस युग के स्थानीय शासन के पदाधिकारी थे।
[ अ ] गुप्त काल [ ब ] मौर्य काल [ स ] सल्तनत काल[ द ] राजपूत काल
3 . राजपूत काल मे नगरीय स्वशासन का कार्यभार संभालनेवाले पदाधिकारी को क्या कहा जाता था ।
[ अ ] विषय पति [ ब ] नगर अधिकारी [ स ] पहना अधिकारी [ द ] स्थानिक
4 .जागीरदारी प्रथा की शुरुआत किस युग 500में हुई।
[ अ ] गुप्त काल [ ब ] मौर्य काल [ स ] मुगल काल[ द ] आधुनिक काल
5 . मुगल काल में गांव के मुकदमों का निपटारा किसकेद्वारा किया जाता था।
[ अ ] पटवारी [ ब ] मुकद्दम [ स ] चौधरी [ द ] न्यायपंचायत
6. ब्रिटिश काल में नगर निगम की स्थापना सर्वप्रथम किसनगर में की गई।
[ अ ] मुंबई [ ब ] चेन्नई [ स ] कोलकाता [ द ] दिल्ली
7. स्थानीय स्वशासन के संबंध में मेयो प्रस्ताव कबलाए गए थे।
[ अ ] 1687 [ ब ] 1870 [ स ] 1782 [ द ] 1882
8 . भारतीयों को प्रशासन से संबद्ध करने का सुझाव सर्वप्रथमकब दिया गया।
[अ]रिपनप्रस्तावमें[ब]मेयोप्रस्तावमें[स]1842केबंगालअधिनियम में[द]1919के
भारतीय शासन अधिनियम में
9. ब्रिटिश काल में स्थानीय स्वशासन के विषय में कौनसा कथन असत्य है।
[ अ ] स्थानीय स्वशासन पर नौकरशाही का नियंत्रण था।
[ ब ] स्थानीय स्वशासन कुशलता पूर्वक कार्य करता था।
[ स ] सभी स्थानीय संस्थाएं निर्वाचित होती थी।
[द]स्थानीयस्वशासनकामुख्यउद्देश्यस्थानीयस्तरपरलगानवसूलीकोसुविधाजनकबनाना
था।
10.स्वतंत्रभारतमेंपंचायतसंस्थाओंकोसंवैधानिक दर्जादिएजानेकासुझावसर्वप्रथमकिससमिति
के द्वारा दिया गया था।
[ अ ] पी.के .थुंगन समिति
[ ब ] एल.एम .सिंघवी समिति
[ स ] अशोक मेहता समिति
[ द ] बलवंत राय मेहता समिति

11. दलीय आधार पर पंचायतों के निर्वाचन का सुझाव किस समिति के द्वारा दिया गया था।
[अ]बलवंतरायमेहतासमिति [ब]अशोकमेहतासमिति [स]सिंघवीसमिति [द]थुंगन
समिति
12. भारतीय संविधान के किस भाग में पंचायतों का उल्लेखहै।
[ अ ] 7 वे भाग [ ब ] 8 वे भाग [ स ] 9वे भाग [द ] 11 वे भाग
13 . संविधान का 74 वां संशोधन अधिनियम किससे संबंधित है।
[ अ ] ग्राम प्रशासन [ ब ] नगर प्रशासन [ स ] दोनों[ द ] जिला प्रशासन
14.73वेंसंविधान संशोधनअधिनियम केअनुसारभारतमेंपंचायतों काकार्यकालकितनारखागया
है।
[ अ ] 4 वर्ष [ ब ] 5 वर्ष [ स ] 7 वर्ष [ द ] 8वर्ष
उत्तर-1.अ2.ब3.स4.स5.स6.ब7.ब8.ब9.स10.ब11.ब12.ब13.
ब 14 . ब
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