सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रसिद्ध कविता "भिक्षुक" पर आधारित PPT
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Added: Sep 27, 2015
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भिक्षुक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
कवि परिचय सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिन्दी की छायावादी काल के प्रमुख कवि हैं । इन्हें बंगला , अंग्रेजी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान था । निराला बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे । इन्होंने कविताओं के अतिरिक्त कहानियाँ , आलोचनाएँ , निबंध आदि भी लिखे हैं । सन 1916 में इन्होंने " जूही जी कली " की रचना की । इन्होंने अपनी कविताओं में प्रकृति - वर्णन के अतिरिक्त शोषण के विरुद् ध विद्रोह , शोषितों एवं दीनहीन जन के प्रति सहानुभूति तथा पाखंड के प्रति व्यंग्य की अभिव्यक्ति की है । निराला की भाषा सहज , भावानुकूल है जिसमें संस्कृत के शब्दों का प्रयोग मिलता है । प्रमुख रचनाएँ - परिमल , गीतिका , अनामिका , तुलसीदास , कुकुरमुत्ता , अणिमा , अपरा , बेला , नए पत्ते , राम की शक्ति पूजा आदि ।
कविता का केन्द्रीय भाव भिक्षुक’ कविता निराला जी की प्रगतिवादी रचना है जिसमें कवि भिक्षुक की दयनीय और करुण दशा को देखकर दुखी और आहत है। उनका मन घोर पश्चाताप और वेदना से फटने लगता है। उस भिक्षुक के साथ उसके दो बच्चे भी हैं जो दया दृष्टि पाने के लिए आतुर हैं। भूख से बेहाल और बेचैन होकर वे अपने आत्मसम्मान का परित्याग कर फेंकी हुई जूठी पत्तल उठाकर चाटने को मज़बूर हैं। उनके भाग्य में जूठी पत्तलें भी नहीं हैं। कुत्ते भी उनसे उन जूठी पत्तलों को छीनने के लिए तत्पर हैं। कवि के हृदय में भिक्षुक के प्रति सहानुभूति है। कवि ’भिक्षुक’ कविता के माध्यम से समाज के प्रबुद्ध और पढ़े-लिखे व्यक्तियों को प्रेरित करते हैं कि उन्हें आगे बढ़कर समाज के इन साधनहीन वर्गों की दशा सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। कवि अपने प्रगतिवादी विचारों के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि समाज में आर्थिक समानता होनी चाहिए।
कविता से संबंधित कुछ तस्वीरें...
कठिन शब्दार्थ दो टूक कलेजे के करता – हृदय को बहुत दुख पहुँचाता हुआ पछताता – पश्चाताप करता हुआ लकुटिया – लाठी टेक – सहारे, टिकाकर दाता भाग्य विधाता – देने वाला, भाग्य का निर्माण करने वाला ईश्वर अड़े हुए – तत्पर अमृत – अमर करने वाला पेय पदार्थ झपट लेना – छीन लेना
प्रश्नोत्तरी - 1 वह आता – दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। / पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी-भर दाने को – भूख मिटाने को / मुँह फटी-पुरानी झोली को फैलाता – दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। / साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए, बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते, / और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए। भूख से सूख ओंठ जब जाते / दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते ? घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। प्रश्न: ( i ) यहाँ किसके आने की बात की जा रही है ? उसका कवि पर क्या प्रभाव पड़ता है ? (ii) कवि ने उसकी गरीबी का वर्णन किस प्रकार किया है ? (iii) भिखारी के साथ कौन है ? वे क्या कर रहे हैं ? (iv) “दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते” का भाव स्पष्ट कीजिए।
संभावित उत्तर कवि ने प्रस्तुत कविता में भिखारी का मार्मिक यथार्थपरक चित्रण किया है। कवि सड़क पर एक भिखारी को आते हुए देख रहे हैं। उस भिखारी की दयनीय दशा को देखकर कवि आहत हो जाते हैं। उनका मन दुख और वेदना से फटने लगता है। (ii) कवि ने उसकी गरीबी का वर्णन करते हुए कहा है कि भोजन के अभाव और मानसिक चिन्ता से वह अत्यंत कमज़ोर हो गया है। वह इतना कमज़ोर हो गया है कि लाठी के सहारे के बिना उसका चलना भी नामुमकीन है। उसका पेट और पीठ भोजन न मिलने के कारण एक-दूसरे से मिला हुआ-सा प्रतीत होता है। मुट्ठी-भर अन्न पाने के लिए वह दर-दर जाकर अपनी फटी हुई झोली का मुँह फैलाता है। अपने स्वाभिमान को त्यागकर दुखी मन से मार्ग पर चलता जाता है।
संभावित उत्तर भिक्षुक के साथ उसके दो बच्चे भी हैं। वे भी बेहाल हैं और भूख मिटाने के लिए अपने बाएँ हाथ से पेट मल रहे हैं तथा दाएँ हाथ को भीख माँगने के लिए लोगों के सामने फैला रहे हैं। वे दोनों बच्चे यह सोचकर ऐसा कर रहे हैं कि उनकी दयनीय दशा को देखकर किसी के मन में दया या सहानुभूति का भाव जग जाए और तरस खाकर उन्हें कुछ खाने को दे दें। (iv) “दाता-भाग्य-विधाता” का तात्पर्य है देने वाला, भाग्य का निर्माण करने वाला, ईश्वर। माना जाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण परमपिता ईश्वर ने किया है और वे मनुष्य के सुख-दुख में उसका ख्याल रखते हैं किन्तु कवि कहते हैं कि वे भिक्षुक अपने भाग्य निर्माता से भूख, अपमान और समाज की उपेक्षा के अतिरिक्त क्या पाते हैं। कवि का इशारा समाज के उन साधन-सम्पन्न वर्गों से है जो अपने स्वार्थ और लालच में डूबे हुए हैं लेकिन उन्हें इन गरीब, लाचार और साधनहीन व्यक्तियों से कोई मतलब नहीं।
प्रश्नोत्तरी - 2 चाट रहे झूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए। ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम, तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा। प्रश्न: ( i ) जूठी पत्तल चाटने के लिए कौन और क्यों मज़बूर हो जा ते हैं ? (ii) कुत्तों के झपटने का उल्लेख कवि ने क्यों किया है ? स्पष्ट कीजिए। (iii) अभिमन्यु कौन था ? कवि ने अभिमन्यु की तुलना भिक्षुक से क्यों की है ? (iv) भिक्षुक कविता के माध्यम से कवि ने हमारे हृदय को किस प्रकार आंदोलित किया है ? समझाकर लिखिए।
संभावित उत्तर भिखारी और उसके दोनों बच्चों को जब भूख विकल कर देती है, होंठ भूख से सूख जाते हैं, खाना मिल नहीं पाता है, तब वे जूठी पत्तलों को उठाकर चाटने के लिए मज़बूर हो जाते हैं। (ii) कवि ने कुत्तों के झपटने का उल्लेख कर मनुष्य की दयनीय दशा का हृदय-विदारक चित्रण किया है। भिखारी भूख से व्याकुल होकर सड़क पर फेंकी गई जूठी पत्तलों से अपना और अपने बच्चों का पेट भरने की कोशिश करता है और कुत्ते उनसे झूठी पत्तल झपटने के लिए तत्पर हैं। कवि ने जूठी पत्तल चाटने की बात कहकर सामाजिक विषमता पर करारा प्रहार किया है।
संभावित उत्तर (iii) अभिमन्यु महाभारतकालीन अर्जुन का पुत्र था। अर्जुन की अनुपस्थिति में अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदने के लिए गया था। वह सोलह वर्ष का बालक था। सात योद्धाओं द्वारा वह मारा गया। कवि उन भिखारियों की तुलना अभिमन्यु से करते हुए कहते हैं कि उनके हृदय में उनके लिए प्रेम, दया और सहानुभूति रूपी अमृत है। वह भिक्षुक को अपनी कविता के माध्यम से समाज में न्याय दिलाएँगे। कहने का तात्पर्य है कि कवि समाज के पढ़े-लिखे, समझदार और प्रबुद्ध लोगों को प्रेरित करेंगे कि वे आगे बढ़े और इन गरीब, लाचार और बेबस लोगों को उनका अधिकार दिलाने में सहयोग करें। ये साधन-सम्पन्नहीन लोग समाज की संवेदना प्राप्त कर अभिमन्यु की भाँति संघर्षशील बनें।
संभावित उत्तर भिक्षुक कविता के माध्यम से कवि ने एक भिखारी और उसके दो बच्चों की करुण दशा का चित्रण किया है। उनकी स्थिति देखकर कवि आहत हैं। भिखारी जब जूठी पत्तलों को चाटता है और उन पत्तलों को झपटने के लिए कुत्ते भी अड़े हुए हैं तब कवि का हृदय दया और सहानुभूति से भर जाता है। कवि अपनी संवेदना प्रकट करते हुए हमें आंदोलित करते हैं कि हमें आगे बढ़कर इन बेसहारा साधनहीन गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए। कवि अपने प्रगतिवादी विचारों के आधार पर यह कहना चाहते हैं कि आर्थिक विषमता के कारण ही समाज में दो वर्ग बन गए हैं एक, जिसके पास सुख-सुविधा के सभी साधन मौजूद हैं और दूसरे, वे जो अभाव, अज्ञान और संताप की ज़िन्दगी जीने के लिए मज़बूर हैं।