Gandhak / गंधक Sulphur – UpRas Varg DR. SUNIL KUMAR
नाम :- काठिन्य :- 1.5- 2.5 द्रवणांक- 119℃ क्वथनांक -444.8℃ विशिष्ट गुरुत्व- 1.9-2.1 Atomic no-16 Atomic mass- 32 .066 संस्कृत गंधक हिंदी गन्धक English Sulphur(S)
पर्याय:- गंधक, गन्धपाषाण, बलि, बलिवासा, शुल्वारि,पामारि, नवनीत, कुष्ठअरि। गंधक भेद:- रसार्णवकार रसेन्द्रचूड़ामणि वर्तमान समय में १.रक्तवर्ण:उत्तम १.रक्तवर्ण:शुकतुण्डनिभम:धातुवादार्थ १.आंवलासार गन्धक : internal use : उत्तम २.पीतवर्ण: मध्यम २.पीतवर्ण:शुकपिच्छनीभ्म:रसायनार्थ २.खटिका गन्धक: external use: मध्यम ३.श्वेतवर्ण:अधम ३.श्वेतवर्ण:खटिकाकर:लौहमरणार्थ ४.कृष्णवर्ण:दुर्लभ:जरामृत्युनाशनार्थ
गन्धक ग्राह्य स्वरूप:- “ शुकपिच्छ समच्छायो नवनीतसमप्रभः। मसृणः कठिनः स्निग्धः श्रेष्ठो गन्धक उच्यते।। “(आ. प्र.2/20 ) शुकपिच्छ के सदृश वर्ण, नवनीत के सदृश चिकना, मसृण, कठिन, स्निग्ध गन्धक श्रेष्ठ होता है।
शोधन आवश्यकता :- गन्धक में शिलाचूर्ण (बालू, कंकड, पत्थर) तथा संखिया आदि विष, ये दो प्रकार के मल होते है। अत: इसका शोधनोपरान्त ही प्रयोग करना चाहिए । गन्धक शोधन: – “ पयःस्विन्नो घटीमात्रं वारिधौतौ हि गन्धकः। गवाज्यविद्रुतौ वस्त्राद् गालितः शुद्धिमृच्छति।।”(र.र.स. 3/21-23)
एक मिट्टी या स्टील के पात्र में दूध भरकर उसके मुख को पतले सूती वस्त्र से बांध देवें। अब एक लोहे की कड़ाही में गोघृत के साथ गन्धक को पिघला लें। इस पिघले हुए गन्धक को कपडे से छानने पर दूध से भरे पात्र में गिर जाता है। फिर गन्धक को बाहर निकालकर गर्म पानी से धो लिया जाता है। यही प्रक्रिया तीन से सात बार करने पर गंधक शुद्ध हो जाता है। इस प्रकार शुद्ध किया हुआ गन्धक पाषाणादि नहीं पिघलने वाले पदार्थों से कपड़े पर छनकर मुक्त हो जाता है। घृत में तुषाकार नुकीले दान के रूप में एवं विष कपड़े से छनकर नीचे जाकर पिण्ड रूप में दूध के ऊपर तैरता रहता है। इस प्रकार शुद्ध गंधक अपथ्य सेवन से भी विकार उत्पन्न नहीं करता है । ●अन्यथा शुद्ध गंधक सेवन करने पर अपथ्य हलाहल विष के समान शरीर को नष्ट करता है।
शुद्ध गन्धक मात्रा:- 1-8 रत्ती । गन्धक के गुण :- रस में कटु, तिक्त, कषाय, गुण में सर, वीर्य में उष्ण तथा विपाक में च.) होता है। आयुर्वेद प्रकाशकों ने इसके विपाक को कटु माना है। गन्धक कटु, उष्ण, कण्डू, कुष्ठ, विसर्प, दद्रु, दीपक, पाचक, आमोन्मोचक, शोषक होता है। विकार शमनोपायः – गन्धक का सेवन करने पर उत्पन्न विचारों में गोघृत युक्त गोदुग्ध का कुछ समय तक पीने पर गन्धक जनित विकारों का शमन हो जाता है। गन्धक सेवन के समय पथ्य: – जाङ्गल पशु पक्षी का मांस एवं छाग मांस को गन्धक सेवन करते समय पथ्य के रूप में सेवन करना लाभदायक होता है।
गन्धक सेवन काल में अपथ्य- अत्यधिक लवण, अम्ल, शाक, विदाही, दिवल अन्न, स्त्री सेवन तथा अधिक सवारी का सेवन गन्धक प्रयोग करते समय नहीं करना चाहिए । गन्धक गन्धनाशन उपाय :- शुद्ध गन्धक 500 ग्राम और दूध 2 किलो को पकाकर खोवा बनाकर सुवर्चला स्वरस देकर पाक करें। इसके पश्चात् त्रिफला क्वाथ डालकर ठण्डा करने पर गन्धक गन्ध रहित हो जाता है।
गन्धक रसायन :- सर्वप्रथम शुद्ध गन्धक में गोदुग्ध की तीन भावना देकर सुखायें। इसके पश्चात् दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर गुडूची स्वरस, आमलकी, हरीतकी, विभीतकी, सोंठ, भृंगराज स्वरस और आर्द्रक स्वरस-प्रत्येक द्रव्य की आठ-आठ भावना देकर सुखायें। फिर भावित गंधक के समान शर्करा का चूर्ण मिलाकर सुरक्षित रखें। इसे ही गन्धक रसायन कहते है। गन्धक रसायन के गुण :- गन्धक रसायन का सेवन करने पर धातुक्षय, प्रमेह, मन्दाग्नि, शूल, उदर रोग, सभी प्रकार के कुष्ठ एवं क्षय रोग का नाश हो जाता है। यह अग्निवर्द्धक, बल्य, वृष्य एवं बृंहण करने वाला होता है। इस गंधक रसायन को वमन विरेचन आदि के बाद देह संशोधन करके सेवन करना चाहिए।
गन्धक रसायन मात्रा: – एक कर्ष (वर्तमान में 1 माशा ) गन्धक गन्धनाशन उपाय : शुद्ध गन्धक 500 ग्राम और दूध 2 किलो को पकाकर खोवा बनाकर सुवर्चला स्वरस देकर पाक करें। इसके पश्चात् त्रिफला क्वाथ में डालकर ठण्डा करने पर गन्धक गन्ध रहित हो जाता है।
गन्धक द्रतिः- ●एक हाथ लम्बे एवं चौडे वस्त्र पर षोडशांश सोंठ, मरिन पिप्पली मिश्रित गन्धक का चूर्ण फैलाकर लपेटकर बत्ती जैसा बनायें। अब इसे धागे से बाँधकर तीन घण्टे तक तिलतैल में इबोकर रखें। इसके बाद तैल से निकालकर मध्य में चिमटी से पकडकर एक सिर पर अग्नि लगा दें नीचे किसी पात्र को रखकर बत्ती से निकलने वाली बूंदों को एकत्र करें। इसे गन्धक द्रति कहते है। ◆इस द्रुति की तीन बंद नागवल्ली पत्र पर डालकर उसमें रस सिन्दूर एक वल्ल रखकर अंगुली से मिलाकर रससिंदूर सहित पान को खाने पर अग्निदीपन, क्षय, पाण्डु, कास, श्वास, शूल, भयंकर ग्रहणी, आमनाशक एवं शरीर में लघुता हो जाती है।
शुद्ध गन्धक के प्रमुख योग : ( 1) रससिंदूर (2) लौहपर्पटी (3) मकरध्वज (4) रसपर्पटी (5) समीरपन्नग रस