Garbh Geeta by Bipin Bhardwaj 2021
गर्भ गीता बहुत ही अनोखा ग्रंथ है। इसमें संपूर्भ ज्ञान समाहहत है। श्री कृष्र् र्गवान जी का
वचन है कक जो प्रार्ी इस गर्भ गीता का सद्धावना से ववचार मनन करता है, वह किर गर्भवास
में नहीं आता है। उसे जीवन-मरर् के चक्र से छुटकारा ममल जाता है। सर्ी को गर्भ गीता का
अनुशीलन अवश्य करना चाहहए। साथ ही यह मान्यता र्ी है कक जो गर्भवती महहला गर्भ गीता
का श्रवर् करती है, उसका गर्भस्थ मशशु अच्छे संस्कार ग्रहर् करता है। जन्म लेने के बाद वह
आदशभ जीवन व्यतीत करता है। हहंदी में गर्भ गीता का पाठ करें-
अजुभनोवाच - हे कृष्र् र्गवान् यह प्रार्ी जो गर्भ-वास में आता है। वह ककस दोष के कारर्
आता है? हे प्रर्ु जी! जब यह जन्मता है,'तब इसको जरा आहद रोग लगते हैं। किर मृत्य होती
है। हे स्वामी! वह कौन-सा कमभ है जजसके करने से प्रार्ी जन्म मरर् से रहहत हो जाता है?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! यह मनुष्य जो है सो अन्धा व मूखभ है जो संसार के साथ प्रीतत
करता है। यह पदाथभ मैंने पाया है और वह मैं पाऊँ गा, ऐसी चचन्ता इस प्रार्ी के मन से उतरती
नहीं। आठ पहर माया को ही मांगता है। इन बातों को करके बार-बार जन्मता और मरता है। वह
गर्भ ववषे दुुःख पाता रहता है।
अजुभनोवाच - हे श्री कृष्र् र्गवान् यह मन मद मस्त हाथी की र्ाँतत है, तृष्र्ा इसकी शजतत है।
यह मन तो पाँच इजन्ियों के वश में है। काम, क्रोध, लोर्, मोह और अहंकार इन पाँचों में अहंकार
बहुत बली है। सो कौन यल है जजससे मन वश में हो जाए?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! यह मन तनश्चय ही हाथी की र्ाँतत है। तृष्र्ा इसकी शजतत है। मन
पाँच इजन्ियों के वश में है। अहंकार इनमें श्रेष्ठ है।हे अजुभन! जैसे हाथी अंकुश (कुण्डा) के वश में
होता है। वैसे ही मन�पी हाथी को वश में करने के मलए ज्ञान�पी अंकुश है। अहंकार करने से यह
जीव नरक में पड़ता है।
अजुभनोवाच - हे र्गवान् जो एक तुम्हारे नाम के मलये वन खंडों में किरते हैं। एक वैरागी हुए हैं।
एक धमभ करते हैं। इनको कै से जानें! जो वैष्र्व हैं, वे कौन हैं?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! एक वे हैं जो मेरे ही नाम के मलए वनों में किरते हैं। वे संन्यासी
कहलाते हैं। एक वे हैं जो मसर पर जटा बाँधते हैं और अंग पर र्स्म लगाते हैं। उनमें मैं नहीं हूँ
तयोंकक इनमें अहंकार है इनको मेरा दशभन दुलभर् है।
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अजुभनोवाच - हे र्गवान् वह कौन-सा पाप है जजससे स्री की मृत्यु हो जाती है? वह कौन सा-पाप
है कक जजससे पुर मर जाता है? और नपुंसक कौन पाप से होता है?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! जो ककसी से कजभ लेता है और देता नहीं, इस पाप से उसकी औरत
मरती है और जो ककसी की अमानत 'रखी हुई वस्तु पचा लेता है उसके पुर मर जाते हैं। जो
ककसी का कायभ ककसी के गोचर आये पड़े और वह जबानी कहे कक मैं तेरा कायभ सबसे पहले कर
ट्रंगा.पर समय आने पर उसका कायभ न करे। इस पाप से नपुंसक होता है। ये बड़े पाप हैं।
अजुभनोवाच - हे र्गवान् कौन पाप से मनुष्य सदैव रोगी रहता है? ककस पाप से गधे का जन्म
पाता है? स्री का जन्म तथा टट्टू का जन्म तयों कर पाता है और बबल्ली का जन्म ककस पाप से
होता है?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! जो र्ी मनुष्य कन्यादान करते हैं, और इस दान में मूल्य लेते हैं, वे
दोषी हैं, वे मनुष्य सदा रोगी रहते हैं। जो ववषय ववकार के वास्ते महदरा पान करते हैं वे टटू का
जन्म पाते हैं। | और जो झूठी गवाही र्रते हैं वे औरत का जन्म पाते हैं। जो औरतें रसोई बना
के पहले आप र्ोजन कर लेती हैं और पीछे परमेश्वर को अर्धयभदान करती हैं तो वे बबल्ली का
जन्म पाती हैं और जो मनुष्य अपनी झूठी वस्तु दान करते हैं वे औरत का जन्म पाते हैं। वह
गुलाम औरतें होती हैं।
अजुभनोवाच - हे र्गवान! कई मनुष्यों को आपने सुवर्भ हदया है सो उन्होंने कौन-सा पुण्य ककया
है और कई मनुष्यों को आपने हाथी, घोड़ा, रथ हदये हैं, उन्होंने कौन-सा पुण्य ककया है?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! जजन्होंने स्वर्भ दान ककया है उनको घोड़े वाहन ममलते हैं। जो
परमेश्वर के तनममत्त कन्यादान करते हैं सो पु�ष का जन्म पाते हैं।
अजुभनोवाच - हे र्गवान् जजन पु�षों के अन्दर ववचचर देह है उन्होंने कौन-सा पुण्य कायभ ककया
है? ककसी-ककसी के घर सम्पवत्त है, कोई ववद्यावान है, उन्होंने कौन-सा पुण्य कायभ ककया है?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! जजन्होंने अन्नदान ककया है उनका सुन्दर स्व�प है। जजन्होंने ववद्या
दान ककया है वे ववद्यावान होते हैं।जजन्होंने सन्तों की सेवा की है वे पुरवान होते हैं।
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अजुभनोवाच - हे र्गवान् ! ककसी को धन से प्रीतत है, कोई जस्रयों से प्रीतत करते हैं, इसका तया
कारर् है समझाकर कहहये।
श्री र्गवानोवाच - हे अजुभन! धन और स्री सब नाश �प हैं। मेरी र्जतत का नाश नहीं है।
अजुभनोवाच - हे र्गवान् ! यह राजपाट ककस धमभ के करने से ममलता है? ववद्या कौन सा धमभ
करने से ममलती है?
श्री र्गवानोवाच - हे अजुभन! जो प्रार्ी काशी में तनष्काम र्जतत से तप करते हुए देह त्यागते हैं,
वे राजा होते हैं और जो गु� की सेवा करते हैं, वे ववद्यावान होते हैं।
अजुभनोवाच - हे र्गवान ककसी को धन अचानक बबना ककसी पररश्रम से ममलता है सो उन्होंने
कौन-सा पुण्य कायभ ककया है?
श्री र्गवानोवाच - हे अजुभन! जजन्होंने गुप्तदान ककया है, उनको धन अचानक ममलता है। जजसने
परमेश्वर का कायभ और पराया कायभ संवारा है वे मनुष्य रोग से रहहत होते हैं।
अजुभनोवाच - हे र्गवान् कौन पाप से अमली होते हैं और कौन पाप से गूंगे होते हैं और कौन
पाप से कुष्ठी होते हैं?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजभन! जो आदमी नीच कुल की स्री से गमन करते हैं वो अमली होते हैं।
जो गु� से ववद्या पढ़कर मुकर जाते हैं सो गूंगे होते हैं। जजन्होंने गौ घात ककया है वे कुष्ठी होते
हैं।
अजुभनोवाच - हे र्गवान् ! जजस ककसी पु�ष की देह में रतत का ववकार होता है वह ककस पाप से
होता है और दररि होते हैं। ककसी को खण्ड वायु होती है। और कोई अन्धे होते हैं तो कोई पंगु
होते हैं, सो कौन से पाप से रहहत होते हैं और कई जस्रयाँ बाल ववधवा होती हैं तो यह ककसी पाप
से होती हैं।
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श्रीर्गवानोवाच - हेअजुभन! जो सदाक्रोधवान रहते हैं, उन्हें रतत ववकार होता है।जोमलीन रहते हैं,
वे सदा दररिी होते हैं।जो कुकमी ब्राह्मर् को दान देते हैं, उनको खण्ड वायु होती है। जो पराई
स्री को नंगी देखते हैं, गु� की पत्नी को कुदजष्ट से देखते हैं, सो अन्धे होते हैं। जजसने गु� और
ब्राह्मर् को लात मारी है, वो लंगड़ा व पंगु होता है। जो औरत अपने पतत को छोड़कर पराये
पु�षों से संग करती है, सो वह बाल ववधवा होती है।
अजुभनोवाच - हे र्गवन् ! तुम पर ब्रह्म हो, तुमको नमस्कार है। पहले मैं आपको सम्बन्धी जानता
था परन्तु अब मैं ईश्वर �प जानता हूँ हे परब्रह्म: गु� दीक्षा कैसी होती है, सो कृपा कर मुझको
कहो।
श्री र्गवानोवाच - हे अजुभन! तुम धन्य हो, तुम्हारे माता-वपता र्ी धन्य हैं। जजनके तुम जैसा पुर
है। हे अजुभन! सारे संसार के गु� जगन्नाथ है। ववद्या का गु� काशी, चारों वगों का गु� संन्यासी
है। संन्यासी उसको कहते हैं, जजसने सबका त्याग करके मेरे ववषय में मन लगाया है सो ब्राह्मर्
जगत् गु� है। हे अजुभन! यह बात र्धयान देकर सुनने की है। गु� कैसा करें, जजसने सब इंहियाँ
जीती हों,जजसको सब संसार ईश्वर मय नजर आता हो और सब जगत से उदास हो। ऐसा गु�
करे जो परमेश्वर को जानने वाला हो और उस गु� की पूजा सब तरह से करे। हे अजुभन! जो गु�
का र्तत होता है और जो प्रार्ी गु� के सम्मुख होकर र्जन करते हैं, उनका र्जन करना सिल
है। जो गु� से ववमुख हैं उनको सप्त ग्रास मारे का पाप है। गु� से ववमुख प्रार्ी दशभन करने
योग्य नहीं होते। जो गृहस्थी संसार में गु� के बबना है वो चांडाल के समान है, जजस तरह महदरा
के र्ंडार में जो गंगाजल है वह अपववर है। इसी तरह गु� से ववमुख व्यजतत का र्जन सदा
अपववर होता है। उसके हाथ का र्ोजन देवता र्ी नहीं लेते। उसके सब कमभ तनष्िल हैं। कूकर,
सूकर, गदर्भ, काक ये सबकी सब योतनयाँ बड़ी खोटी योतनयाँ हैं। इन सबसे वह मनुष्य खोटा है,
जो गु� नहीं करता।गु� बबना गतत नहीं होती। वह अवश्य नरक को जायेगा। गु� दीक्षा बबना
प्रार्ी के सब कमभ तनष्िल होते हैं। हे अजुभन! जैसे चारों वर्ों को मेरी र्जतत करना योग्य है, वैसे
गु� धार के गु� की र्जतत करना योग्य है। जैसे गंगा नहदयों में उत्तम है, सब व्रतों में एकादशी
का व्रत श्रेष्ठ है। वैसे ही हे अजुभन! शुर् कमों में गु� सेवा उत्तम है, गु� दीक्षा बबना प्रार्ी पशु
योतन पाता है। जो धमभ र्ी करता है सो पशु योतन में िल र्ोगता है। वह चौरासी योतनयों में
भ्रमर् करता रहता है।
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अजुभनोवाच - हे श्री कृष्र् जी र्गवान् गु� दीक्षा तया होती है?
श्रीर्गवानोवाच - हे अजुभन! धन्य जन्म है उसका जजसने यह प्रश्न ककया है। तू धन्य है। गु�
दीक्षा के दो अक्षर हैं! हरर ऊँ । इन अक्षरों को गु� कहता है। यह चारों वर्ों को अपनाना श्रेष्ठ
है। हे अजुभन! जो गु� की सेवा करता है, उस पर मेरी प्रसन्नता है। वह चौरासी लाख योतनयों से
छूट जायेगा। जन्म मरर् से रहहत हो नरक नहीं र्ोगता। जो प्रार्ी गु� की सेवा नहीं करता वह
साढ़े तीन करोड़ वषभ तक 'नरक र्ोगता है। जो गु� की सेवा करता है, उसको कई अश्वमेघ यज्ञ
के पुण्य का िल ममलता है। गु� की सेवा मेरी सेवा है। हे अजुभन! हमारे तुम्हारे संवाद को जो
प्रार्ी पढ़ेंगे और सुनेंगे वो गर्भ के दुुःख से बचेंगे उनकी चौरासी योतनयाँ कट जायेगी।
इसी कारर् इस पाठ का नाम गर्भ गीता ज्ञान है। श्री कृष्र् र्गवान् जी के मुख से अजुभन ने
श्रवर् ककया है। गु� दीक्षा लेना उत्तम कमभ है। उसका िल यह है कक नरक की चौरासी लाख
योतनयों से जीव बचा रहता है, र्गवान् बहुत प्रसन्न होते हैं।