िहलाने के Zवषय म?सोचा था, तो संसूचकों (detectors) ने संकेत िदया िक उसक? अनुपूरक ेरक D?? म?गोलीबारी ?ई, यuZप मg?? क? ेरक
ांत?ा (cortex), जो ½यं मांसप?`शयों क? ि?या को Zनयe?त करता है, गोलीबारी नहीं कर रहा था।...‘तो,’ एs?स ने Zवजयो?]सत होकर कहा,
‘अनुपूरक ेरक D?? क? गोलीबारी इरादे से हो जाती है। मन, मg?? पर काय?कर रहा है। Zवचार, मg?? से को`शकाओं से गोलीबारी करवाने का
कारण बनता है।’
“गZत का ि?याZवFान एs?स के _लए यह मा`णत करता है िक हम?इ?ाशo? क? ½त?ता है, िक एक Zवशुr याe?क ि?या से बाहर का
कुछ हमारे काय? म?सeg_लत है। ‘आपके पास काय?करने का Zनण करने क? मान]सक Dमता है,’ उBोंने कहा। ‘यिद आप इसे एक ारhfक ?र पर
एक अँगुली िहलाकर कर सकते ह?तो इसका अ`भाय है िक आप मानवीय काय ाही एवं पार?Xरक ि?या के और अ]धक जिटल ?र पर भी इसे कर
सकते ह?।’” (ईकाशकय िटDणी)
12 म!ी 6:33।
13 गु? : आ/ाc&क `शDक। गु? गीता (17वाँ ?ोक) “अ[ेरे को हटाने वाले” के ?प म?गु? का वण ठीक ही करता है (गु अथा ् “अ[ेरा,” और
?, “जो हटाता है”)। यuZप आज गु? शV का योग साधारणत: एक `शDक अथवा `शDक क? ओर संकेत करने के _लए होता है, तथाZप एक स?ा
गु? वह है जो ई?र-ाC है। आ&साDाथार क? ाdC म?उसने सव??ापक परमा&ा के साथ अपनी एक?पता का बोध कर _लया है। इस कार का एक
Zव`श? Fान-सd], गु? साDाथार अथवा म ? क? अपनी आ/ाc&क या?ा पर साधक का माग श करने के यो? है।
½ामी औीयु?े?रजी ने कैव? दश म् म?_लखा, “गु? क? संगZत म?रहने का अथ?, केवल उनक? भौZतक उपh?Zत म?रहना नहीं है (?ोंिक यह
कभी-कभी असfव होता है), अZपतु मु?त: उB?सदैव अपने ?दय म?रखना और सैrाe”क ?प से उनके साथ एक होना तथा ½यं का उनसे अ”स?dक?
करना है।”
14 सं7ृत शV आकाश, aजसका अनुवाद “ईथर” और “अ”XरD” दोनों के ?प म?िकया जाता है, Zवशेष ?प से उस ?)ना&क त? का संकेत
करता है जोिक भौZतक जगत् म?सू?तम है, वह “आवरण aजस पर शरीर तथा सdूण?कृZत का ZतZबe D?Zपत होता है।”
“ईथर से ?ाC अ”XरD, ½ग?(अथवा सू? जगत्) और धरती के बीच क? सीमा रेखा है,” परमहंसजी ने कहा है। “ई?र xारा रची गयी सभी
सू? शo?याँ, काश अथवा Zवचार ?पों क? बनी ह?, तथा मा? एक Zवशेष ?)न के पीछे _छपी ह?जो ईथर के ?प म?कट होता है। यिद इस
आकाशीय ?)न को हटा िदया जाये तो आप इस भौZतक जगत् के पीछे, सू? जगत् को देख?े। पर”ु हमारी ?Z?, औवण, ग[, ½ाद, और ?श?के
इc?यज> अनुभव, इस सी\मत जगत् तक ही सी\मत ह?।...
“आकाश एक और आयाम है : ½ग?के ‘xार’। िद? न??, जो भीतर म?, भृकुिट के बीच के Zब)? म?Zवuमान है, के xारा आप इन xारों म?वेश
कर सकते ह?। आपक? चेतना को िद? न?? म?सू? ]सतारे के भीतर से जाना होगा तािक आप उ?तर D??, सू? जगत् को देख सक?।”
आध?Zनक भौZतक? ने उ]ीसवीं सदी के वैFाZनकों xारा अनुमाZनत “ईथर” को ऐसे मा/म के ?प म?अ½ीकार कर िदया है, aजसके xारा काश,
बाz अ”XरD के खालीपन के मा/म से संचाXरत होता है। “तथाZप,” कै]चंग द लाईट : द इनcाइझ िह??} ऑफ़ लाईट ऐझ माइझ (>ूयॉक? : ब?म
बु?, 1993) म?ोफेसर आथ ज़ैजॉंक _लखते ह?, “यuZप असं? योग ईथर को अ½ीकार करते ह?, तथाZप समान सं?ा म?योग, काश क? तरंग
जैसे ½?प को ]सr करते तीत होते ह?। यिद हम दोनों को गfीरता से लेते ह?और कुछ अथ? म?, काश को एक तरंग के ?प म?मानते ह?, तो वह ?ा है
जो तर?\गत हो रहा है? पानी क? लहरों, !Zन तरंगों, िहलते तारों के मामलों म?, कुछ हमेशा तर?\गत होता है। !Zन के ?प को हवा वहन करती है। वह
?ा है जो काश के D`णक ?प को धारण करता है? जो भी हो, एक बात तो Zनa?त हो चुक? है, िक वह जो कुछ भी हो पर”ु भौZतक पदाथ?नहीं है!”
इस सम?ा ने कुछ वैFाZनकों को Zव?? कर िदया है िक जो “तर?\गत” हो रहा है वह ½यं आकाश ही है — और “आकाश” क? पXरभाषा को
ही बढ़ाना होगा। \म`शयो काकू, हाइपर?ेस पु?क (>ूयॉक? : ऑ?फ़ोड?य?Zनव?सटी ेस, 1994) म?“हाइपर?ेस (अ]धआकाश) के ]सrा” से उ$]
एक वैFाZनक ?ाe”” के Zवषय म?_लखते ह?, “जो कहती है िक सामा>त: मा> देश और काल के चार आयामों से परे भी आयाम Zवuमान ह?। संसार भर
के भौZतकZवदों, aजनम?कई नोबेल पुर7ार Zवजेता भी ह?, के बीच एक बढ़ती मा>ता है िक Zव? उ? आयाम के आकाश म?, वा?व म?, अg?) रख
सकता है।...काश को, वा?व म?, पाँचव?आयाम म??)नों के ?प म??? िकया जा सकता है।...उ?तर आयामी अ”XरD, एक Xर?, Zनd?य
पृ?भ?\म, aजस पर ाथ\मक कण (quark) अपनी बाहरी भ?\मकाय?Zनभाते ह?, होने क? अपेDा, वा?व म?कृZत के नाटक म?मु? अ`भनेता बन जाता
है।”
संवेदी चेतना, संसार को चार भौZतक आयामों म?Zवuमान मानती है। योग ZवFान, ईथर से ?ाC अ”XरD का, इन चार, एवं अg?) के उ?
आयामों के बीच अवरोध के ?प म?, वण करता है। परमहंस योगान)जी ने ?? िकया िक : सू?तम भौZतक ?)न (आकाश, ईथर) से परे, महाकाश
(superether) है, जो “एक सू? अ`भ?o? है और इस_लये भौZतक ?)ना&क त?ों म?वग?कृत नहीं है, जो केवल पाँच ह?— पृ;ी, जल, अ\?,
वायु, आकाश। योग के कुछ ?( इस त? को मन या ‘अपदाथ?’ पदाथ?या ?ूल ?)न के Zवपरीत कहकर पXरभाZषत करते ह?।”
?ा “मन” जो एक “उ?तर आयाम” है, को भौZतक स'ता क? वैFाZनक ढंग से Zनरी`Dत कृZत को ?? करने क? आव?कता है?
अ]धकांश भौZतकZवद इस ? को अपने D?? क? सीमा म?नहीं मानते; Zनa?त ?प से उनके बीच अभी तक कोई Zनणा क सहमZत नहीं ?ई है। तथाZप,