Gulm

pratendrapalsingh 1,406 views 29 slides Dec 29, 2019
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About This Presentation

Glum is disease of ayurvedic patter disease in which the tye of gulm and how to treatment of this disease and how to dignosis of this and which type of dis is treatable non treatable.
and help of bams student and teacher and knowlegde of phenomina of pptx of glum...............


Slide Content

गुरू नानक आयुर्वेदिक मेडीकल कॉलेज गोपलपुर लुधियाना

DIRECTED BY :- PRESENTED BY :- DR.AVNEET KAUR VIVEK SHANKAR H.O.D(Med.) B.A.M.S.(FAINAL YEAR) गुल्म PRESENTATION ON :-

व्याधि परिचय:- ‘गुल्म’ का अर्थ है , संघात । प्रतान रहित लताओ के लिए गुल्म शब्द का प्रयोग हुआ है संहिताओं में स्पष्ट कहा गया है कि जिस प्रकार एक मूल से अनेक शाखायें निकलती है उसी प्रकार एक मूल कारण वायु के द्वारा अनेक प्रकार के गुल्म की उत्पत्ति होती है । साथ ही इसकी संघातमय लताओं तथा वृक्षों कि तरह होती है। आचार्यों ने गुल्म को चयापचयवान तथा “संचारी यदि वा S चल:” कहा है । आ. सुश्रुत गुल्म को अपाकी मानते है परंतु आ. चरक पित्तज एवं रक्तज गुल्म को मंदपाकी मानते है । रक्तज गुल्म केवल स्त्रियों में होता है एवं इसकी चिकित्सा 10 मास बीत जाने पर करने का विधान है ।

निरुक्त/व्युत्पत्ति कुपितानिलमूलत्वाद गूढमूलोदयादपि। गुल्मवद्धा विशालत्वाद इत्याभिधीयते ॥ (सु.उ.42/5) गुड़- रक्षणे ‘वेष्टने’ धातु से गुल्म शब्द बनता है । इसका अर्थ है संघात । अर्थात् विगुणित वायु होने से अथवा गुढ मूलकंदादि के सदृश इसकी उत्पत्ति होने से या गुल्म के समान अथवा गांठ जैसी प्रतीत होने के कारण इस रोग को गुल्म है ।

गुल्म के स्थान :- “गुल्मस्थ पञ्चविधं स्थानं पार्श्वहन्नाभिबस्तय:। (मा.नि. 28/1 ) “बस्तौ च नाभ्यां हृदि पार्श्वयोवा स्थानानि गुल्मस्थ भवन्ति पञ्च। (च.चि.5/8 ) आचार्यों ने पांच गुल्म के स्थान माने है। 1.हृदय प्रदेश, 2.नाभि प्रदेश, 3,4.दोनो पार्श्व 5. बस्ति

गुल्म के निदान “ विट्श्लेष्मपित्तातिपरिस्त्रवाद्धा तैरेव वृद्धै: परिपीड़नाद्वा। वैगैरूदीर्णेर्विततैरधो वा बाह्यभिघातैरतिपीडनैर्वा॥ रूक्षान्नपानैरतिसेवितैर्वा शोकेन मिथ्याप्रतिकर्मणा वा। विचेष्टतैर्वा विषमातिमात्रे: कोष्ठे प्रकोपं समुपैति वायु:॥ आचर्य चरक के अनुसार 1.पुरीष कफ तथा पित्त का अधिक निकल जाना। 2. वेगधारण , शोक 3.बाह्य अभिघात । 4. रूक्षान्नपान का अधिक सेवन 5.पंचकर्म का ठीक से न होना 6. कठिन रास्तों पर चलना । 7.शारिरीक कुचेष्टओं से 8. अधिक दबाब पड़ना एवं किसी रोग के कारण दुर्बलता । (च.चि.5/4-5)

सम्प्राप्ति “कफ च पित्तं च स दुष्टवायुरुद्धूयमार्गान् विनिबद्धयताभ्याम्॥ हृन्नाभिपार्श्वोदर्बस्तिशूलं करोत्येधो याति न बद्धमार्गात्॥ पक्वाशये पित्तकफाशये वा स्थित: स्वत: स्वतंत्र: परसंश्रयो वा। स्पर्शोपलभ्य: परिपिण्डितत्वाद गुल्मो यथादोषमुपैति नाम॥ निदान सेवन वात प्रकोप कफ-पित्त दुष्टि कफ-पित्त द्वारा वायु का मार्गावरोध

कुपित वायु का उर्ध्व गमन- पार्श्व , हृदय , नाभि , उदर , बस्ति में शूल उत्पत्ति परिपिण्डत वायु का गुल्मवत् होना- गुल्म रोग

सम्प्राप्ति घटक उपर्युक्त निदानो के सेवनसे कुपित वायु कफ एवं पित्त को उभार करअपने स्थान से निकालकर एवं कफ पित्त के द्वारा अपने मार्गों के बंद हो जाने से स्वयं अध: प्रदेश में नहीं जाती है । अत: वह वायु हृदय , नाभि,पार्श्व , उदर एवं बस्ति में शूल उत्तपन्न करती है । यह वायु पक्वाशय ,पित्ताशय एवं आमाशय में स्वतंत्र या परतंत्र रूप में पिण्ड रूप में होजाने के कारण स्पर्श द्वारा जानी जा सकती है । दोष – त्रिदोष दुष्य- निराश्रय स्त्रोतस- अन्नवह व महास्त्रोतस अधिष्ठान – पार्श्व हृदय नाभि बस्ति स्त्रोतोदुष्टि- संग, विमार्गगमन स्वभाव- चिरकारी साध्यासाध्यता- साध्य

पूर्वरूप उदगारबाहुल्यपुरीषबंध तृप्त्य्क्षमत्वांत्रविकूजनानि। आटोपमाध्मानमपंक्तिशक्तिमासन्नगुल्मस्थ वदन्ति चिन्ह्म्॥ 1.डकारों का अधिक आना । 2. कोष्ठबद्धता 3. भोजन में अरुचि 4. शक्ति का ह्रास 5. आतों मे गुड़गुड़ 6. पेट मे पीड़ा एवं क्षोभ 7. पेट का फूलना 8. पाचन शक्ति का ह्रास

सामान्य लक्षण अरुचि: कृच्छ्विण्मूत्र वातताअंत्रविकुंजनम्।आनाहश्चोर्ध्ववातत्वं सर्वगुल्मेषु लक्षयेते॥ भोजन मे अरुचि मल, मूत्र तथा अपानवायु के निकालने मे कठिनता आंतो मे गुड़गुड़ाहट आनाह

भेद इह खलु पञ्च गुल्म: भवंति तद्यथा वातगुल्म: , पित्तगुल्म: , श्लेष्मगुल्म: , निचयगुल्म: शोणितगुल्म इति॥ चरक/सुश्रुत आ. वाग्भट्ट अ.ह./ अ.स. वातिक अंर्त गुल्म वातज पैत्तिक बाह्य गुल्म पित्तज कफज कफज सन्निपातज सन्निपातज रक्तज वात-पित्तज पित्त-कफज कफ-वातज रक्तज

वातज के निदान 1.रुक्षान्नअति सेवन 2.वेगधारण 3. शोक 4.उपवास वातज गुल्म के लक्षण 1.हृदय व कुक्षि मे शूल 2. मुख व गले मे शोष 3.अन्नपाक देर से होता है 4.शीतपूर्वक ज्वर

पित्तजकेनिदान 1.क्रोध 2.अतिमद्यपान 3.रक्तदुष्टि 4.आमरस 5. कटु आहार सेवन लक्षण 1.ज्वर 2.पिपासा 3. स्वेदाधिक्य 4.उदर प्रदेश मे दाह 5.शरीर का वर्ण लाल होना।

कफज के निदान 1.शीत, 2. गुरु आहार का अतिसेवन 3.दिवास्वप्न 4.अति भोजन लक्षण 1.कास 2. अरुचि 3.शरीर गौरव 4. गुल्म के स्थान पर जकडाहट

सन्निपातज केनिदान वातज पित्तज कफज के निदानों का एक एक साथ सेवन करने पर सन्निपातिक गुल्म की उत्पत्ति होती है इसे निचय गुल्म कहते है। लक्षण दाह शीघ्रपाकी दारूण मनशरीर वअग्निबल का नाश

रक्तज गुल्म के निदान यह गुल्म केवल स्त्री मे पाया जाता है 1. ऋतुकाल मे अनियमित भोजन 2.,भय, 3.वेगधारण 4.वमन, 5.योनि व्यापद होने से लक्षण 1.कभी कभी शूल होने । 2.धीरे धीरे बढ़ना वृद्धि की गति अनिश्चित होती है। 3.कभी कभी स्पन्दन होता है ।

साध्यासाध्यता गुल्म मे दौर्बल्य अरुचि ह्रल्लास कास हो तो वह असाध्य है यदि गुल्म मे क्रमश: वृद्धि को प्राप्त हो उसे असाध्य मानना चाहिए । जो सिराओं से जुड गया हो उसे असाध्य है

चिकित्सा सिद्धांत सर्वत्र गुल्मे प्रथमं स्नेह स्वेदोपपदिते। या क्रिया क्रियते सिद्धिं सा याति न विरुचिते॥ गुल्म मे सर्व प्रथम स्नेहन स्वेदन करने के बाद जो भी चिकित्सा की जाती है वह सफल होती है किंतु शरीर के रूक्ष होने पर जो चिकित्सा की जाती है वह सफल नही होती है अत: स्नेहन स्वेदन के बाद ही गुल्म की अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।

वातिक गुल्म की चिकित्सा रूक्षव्यायामजं गुल्मं वातिकं तीव्र वेदनम्। बध्दविण्य्मूत्रमारुतं स्नैहैरादित: समुपाचरेत॥ रुक्ष आहार-बिहार से उत्पन्न वातिक गुल्म मे तीव्र वेदन होने पर स्नेहपान कराना चाहिए। वातिक गुल्म मे स्नेहन स्वेदन घृतपान वमन विरेचन तथा करे वातिक गुल्म मे निरुह एवं अनुवासन बस्ति से चिकित्सा करें।

पित्तज गुल्म की चिकित्सा पयासा वा सुखोष्णेन सविक्तेन विरेचयेत ॥ पक्वाशय पैत्तिक गुल्म मे क्षीर बस्ति देकर पित्त का निर्हरण करें अग्निबल को ध्यान मे रख कर तिक्त द्रव्यो से सिद्ध घृत द्वारा विरेचन करायें। पित्तज गुल्म मे रक्तमोक्षण करने से गुल्म का मूल छिन्न हो जाता है।

कफज गुल्म की चिकित्सा जयेत्कफकृतं गुल्मं क्षारारिष्टाग्निकर्मभि: ।। अग्निमांद्य,वेदना,उत्क्लेश, एवं अरुचि हो तो उसे वमन कराना चाहिए। वमन एवं लंघन के बाद उष्ण द्रव्यो का सेवन कराना चाहिये कफज गुल्म को क्षार, अग्निकर्म, अरिष्टपान द्वारा जीतना चाहिये ।

सन्निपातिक गुल्म की चिकित्सा व्यामिश्रदोषेव्यामिश्र एव एव क्रियाक्रम: ॥ सन्निपातिक गुल्म की चिकित्सा वातज,पित्तज, कफज गुल्म की सम्मिलित चिकित्सा करनी चाहिए। स रौधिर: स्त्रीभव एव गुल्मो मासे व्यतीते दशमे चिकित्सय:॥ रक्तज गुल्म की चिकित्सा

रक्तज गुल्म की चिकित्सा इसकी चिकित्सा पित्तज गुल्म की चिकित्सा की तरह करनी चाहिए पलाश के क्षार के पानी से सिद्ध किया हुआ। घृत पीने को देना चाहिए। पिप्पल्यादि गण की औषधियों के कल्क व क्वाथ से सिद्ध किया हुये घृत की उत्तर बस्ति दे उपरोक्त क्रियाओं से लाभ न होने पर भेदन कर्म करना चाहिए।

संशोधन चिकित्सा स्नेहन स्वेदन वमन स्नेह विरेचन निरुह अनुवासन बस्ति

संशमन चिकित्सा रस गुल्म कुठार रस , प्रवाल पञ्चामृत सर्वेश्वर रस , अग्निकुमार रस। वटी हिंग्वादि वटी , काकयना गुटिका चूर्ण वचादि चूर्ण , हिंग्वादि चूर्ण लवंगादि चूर्ण नागरादि चूर्ण

संशमन चिकित्सा घृत पिप्पल्यादि घृत वासा घृत दशमूलादि घृत एरण्ड घृत क्षार पलाशक्षार वज्रक्षार सज्जीक्षार कुष्ठक्षार आसव-अरिष्ट/क्वाथ – पंचमूल क्वाथ , वरुणादि क्वाथ कुमार्यासव , तिल क्वाथ ।

पथ्य-अपथ्य आहर विहार पथ्य गेहुं,जौ,मांस रस,पिप्पली,अजवाइन, चित्रक,हिंगु,द्राक्षा,खुजर, तिलतैल, क्षार मद्य, मछली। स्नेहन, स्वेदन , लंघन, विरेचन, बस्ति, रक्तमोक्षण,॥ अपथ्य विरुद्धान्न, शुष्क्मांस , मूली, मधुरफल, शाक, शमीधान्य, कंद, शाक, शीतल जल, मटर॥ वेगधारण, रात्रिजागरण, अतिश्रम, अतिमैथुन , वमन॥

!धन्यवाद! ‍!!जय आयुर्वेद!! !! जय धनवंतरि!!
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