HANUMAN CHAALISA - A composition on Anjaneya swami by Tulsidas.docx

SrinivasadasanMadhav 746 views 22 slides Jan 28, 2025
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About This Presentation

HANUMAN CHAALISA - 40 verses of Anjaneya Swami


Slide Content

दो
हा
श्री
गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरन
ऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बु
द्धि हीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार ।
बल
बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
चौ
पाई
जय
हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय
कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
रा
म दूत अतुलित बल धामा ।
अं
जनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

हाबीर बिक्रम बज रंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कं
चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥
हा
थ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
सं
कर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥
वि
द्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्र
भु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥
Sreeram jaya ram jaya jaya ram seeyaa ram jaya jaya ram
Raam Laxmana Janaki Jai Bholo Hanuman ki.
सू
क्श्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भी
म रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥ लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री
रघुबीर हरषि उर लाये ॥

घुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तु
म मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

हस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥

सन
कादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम
कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तु
म उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
Sreeram jaya ram jaya jaya ram, seeyaa ram jaya jaya ram
Raam Laxmana Janaki Jai Bholo Hanuman ki.
तु
म्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥
जु
ग सहस्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्र
भु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दु
र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
Jai Hanuman..
रा
म दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब
सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
आपन
तेज संहारो आपै ।
ती
नों लोक हाँक तें काँपै ॥
भू
त पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥
Sreeram jaya ram jaya jaya ram…… Seeyaa ram jaya jaya ram
Raam Laxmana Janaki Jai Bholo Hanuman ki.
ना
सै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
सं
कट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर
राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥
और म
नोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥
चा
रों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
सा
धु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
Jai Hanuman.. Jai Hanuman

अष्ट
सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
रा
म रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
Sreeram jaya ram jaya jaya ram…… Seeyaa ram jaya jaya ram
Raam Laxmana Janaki Jai Bholo Hanuman ki.
तु
म्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अं
त काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
और
देवता चित्त न धरई । हनुमत सेई सर्ब सुख करई ॥
सं
कट कटै मिटै सब पीरा ॥ जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
जै
जै जै हनुमान गोसाईं ।
(2 times) कृ
पा करहु गुरु देव की नाईं ॥
जो
सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो
यह पढ़ै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तु
लसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥
(2 times)
Raam Laxmana Janaki Jai Bholo Hanuman ki. (4 times)
दो
हा
पवनतनय
संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
रा
म लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
Sreeram jaya ram jaya jaya ram…… Seeyaa ram jaya jaya ram
आर
ती
मं
गल मूरती मारुत नंदन

कल अमंगल मूल निकंदन
पवनतनय
संतन हितकारी
हृ
दय बिराजत अवध बिहारी
मा
तु पिता गुरू गणपति सारद
शि
व समेट शंभू शुक नारद
चरन
कमल बिन्धौ सब काहु

दे
हु रामपद नेहु निबाहु
जै
जै जै हनुमान गोसाईं
कृ
पा करहु गुरु देव की नाईं
बं
धन राम लखन वैदेही

ह तुलसी के परम सनेही
सि
यावर रामचंद्रजी की जय ॥
(दो
हा
)
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार (चौपाई)
जय
हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय
कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
रा
म दूत अतुलित बल धामा
अं
जनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

हाबीर बिक्रम बजरंगी
कु
मति निवार सुमति के संगी॥३॥
कं
चन बरन बिराज सुबेसा
का
नन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हा
थ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँ
धे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शं
कर सुवन केसरी नंदन
ते
ज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

वि
द्यावान गुनी अति चातुर
रा
म काज करिबे को आतुर॥७॥

प्र
भु चरित्र सुनिबे को रसिया
रा
म लखन सीता मनबसिया॥८॥

सू
क्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
वि
कट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भी
म रूप धरि असुर सँहारे
रा
मचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

ला
य सजीवन लखन जियाए
श्री
रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

घुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तु
म मम प्रिय भरत
-हि
सम भाई॥
१२॥

हस बदन तुम्हरो जस गावै
अस
कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥
सन
कादिक ब्रह्मादि मुनीसा
ना
रद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम
कुबेर दिगपाल जहाँ ते

वि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
तु
म उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
रा
म मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
तु
म्हरो मंत्र बिभीषण माना
लं
केश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जु
ग सहस्त्र जोजन पर भानू
लि
ल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्र
भु मुद्रिका मेलि मुख माही
जल
धि लाँघि गए अचरज नाही॥
१९॥
दु
र्गम काज जगत के जेते
सु
गम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
रा
म दुआरे तुम रखवारे
हो
त ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब
सुख लहैं तुम्हारी सरना
तु
म रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन
तेज सम्हारो आपै
ती
नों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भू
त पिशाच निकट नहि आवै

हावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

ना
सै रोग हरे सब पीरा
जपत
निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

सं
कट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्
यान जो लावै॥२६॥

सब पर
राम तपस्वी राजा
ति
नके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और म
नोरथ जो कोई लावै
सो
ई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चा
रों जुग परताप तुम्हारा
है
परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

सा
धु संत के तुम रखवारे

सुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट
सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर
दीन जानकी माता॥३१॥

रा
म रसायन तुम्हरे पासा

दा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तु
म्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम
के दुख बिसरावै॥३३॥

अं
तकाल रघुवरपुर जाई

हाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और
देवता चित्त ना धरई

नुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

सं
कट कटै मिटै सब पीरा
जो
सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै
जै जै हनुमान गुसाईँ
कृ
पा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो
सत बार पाठ कर कोई
छू
टहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो
यह पढ़े हनुमान चालीसा
हो
य सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तु
लसीदास सदा हरि चेरा
की
जै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

(दो
हा
) पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
श्री
हनुमत् स्तवन
प्रनव
उँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन
|
जा
सु हृदय आगार बसहिं राम सरचाप धर
||१||


तुलित बलधामं हेम शैलाभ देहम्
|

नुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्
||२||

कलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
|

घुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
||३||
गो
ष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्
|
रा
मायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम्
||४||
अञ्ज
नानन्दनं वीरं जानकी शोकनाशनम्
|क
पीश मक्षहन्तारं वन्दे
लङ्
का भयङ्करम्
||५||

हाव्याकरणाम्भोधिमन्थमानसमन्दरम्
| क
वयन्तं रामकीर्त्या

नुमन्तमुपास्महे
||६||
उल्लङ्घ्य
सिन्धो
: स
लिलं सलीलं य
: शो
कवह्निं जनकात्मजाया
:
|

दाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम्
||७||

नोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्
|
वा
तात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये
||८||
आञ्ज
नेय मतिपाटलाननं काञ्चनाद्रि कमनीय विग्रहम्
|
पा
रिजात तरुमूल वासिनं भावयामि पवमान नन्दनम्
||९||
यत्र-यत्र र
घुनाथ कीर्तनं तत्र
-तत्र
कृतमस्त काञ्जलिम्
|
बा
ष्पवारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्ष सान्तकम्
||१०

श्री
लक्ष्मीनृसिंह द्वादश नाम स्तोत्रम्
अस्य
श्री नृसिंह द्वादश नाम स्तोत्र महामन्त्रस्य
-
वे
दव्यासो भगवान् ऋषिः

नुष्टुप् छन्दः
- लक्ष्
मी नृसिंहो देवता
, श्री
नृसिंह प्रीत्यर्थे जपे
वि
नियोगः
ஸ் வபக்த பக்ஷ-பா
தேன
தத்வி பக்ஷ விதாரணம்
நரசிம்மம் அத்புதம் வந்
தே
- பரமானந்த விக்ரஹம் ||
प्रथ
मं तु महाज्वालो
- द्वि
तीयं तूग्रकेसरी। तृतीयं वज्रदंष्ट्रश्च
- च
तुर्थं तु
वि
शारदः ॥१॥
पञ्च
मं नारसिंहशच
- ष
ष्ठः कश्यप मर्दनः। सप्तमो यातुहंता च
- अष्ट
मो
दे
व वल्लभः॥२॥
nava प्र
ह्लाद वरदो
- द
शमोनंत हंतकः। एकादशो महारुद्रः द्वादशो
दा
रुणस्तथा॥३॥
द्वा
द शैतानि
naamaani नृ
सिंहस्य महात्मनः।
मन्त्र
राज इति
vikhyaatham स
र्वपाप विनाशनम् ॥४॥
क्ष
यापस्मार
-कु
ष्ठादि
- ता
पज्वर निवारणम्। राजद्वारे महाघोरे
सं
ग्रामे च जलांतरे ॥५॥
गि
रि
-gahvaara aaranye व्या
घ्र
-चो
रा
- म
यादिषु।

णे च मरणे चैव शमदं परमं शुभम्॥६॥

तमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधि बन्धनात्। आवर्तयन् सहस्रं तु

भते वाञ्छितं फलम् ॥७॥
Narasimha Dwadasa Nama Stothram - [Twelve Names of Narasimha]

Translated by P. R. Ramachander
Refer YT Video: https://www.youtube.com/watch?v=MQ0GrNBor6k (Sankara Narayanan)
Prathamam thu Mahaa jwalo, dwitheeyam thu ugra kesari,
Thritheeyam Vajra damshtrascha, Chathurthothu Visaradha. 1
Firstly great flame, secondly the angry lion,Thirdly one with diamond like teeth,
Fourthly the great expert.
Panchamam Naarasimhascha, Sashta Kasyapa mardhana,
Sapthamo yaathu hanthaa cha, ashtamo Deva vallabho. 2
Fifthly the Man-lion, Sixthly the killer of Kasyapa's son, Seventhly Killer of Asuras and eighthly the
Lord of devas.
Nava Prahaladha Varadho, dasamo Anantha hasthaka,
Ekaadaso Mahaa Rudro, Dwadaso Tharunasthadha. 3
Ninthly The one who blessed Prahlada, tenthly the one with endless hands,
Eleventh the great God who is angry and twelfth the one helps at right time.
Dwadasani namani Nrusimhasya Mahathmana,
Manthra raja ithi jnatham, Sarva papa vinasanam, 4
These twelve names of the great God Narasimha,
Is called the king of chants and destroys all sins.
Kshaya apasmara kushtadhi, thapa jwara nivaranam,
Raja dware, Mahaa Gorey sangraa me cha Jalandhare 5
This cures Tuberculosis, epilepsy, leprosy and Typhoid,
And is helpful in gate of the king, I horrible wars and inside water
Giri gahara aaranye Vyagra chora maya dish,
Ranecha marane chaiva samatham paramam Shubham.
It helps in mountains and forests populate by tigers and robbers,

And in war and death it helps to get out safely and later attain salvation.
Satham aavarthayeth yasthu muchyathe Vyadhi bhandanath,
Aavarthayantha sahasram thu labhathe Vanchitham phalam. 7
Repeating hundred times would help you get out of diseases and imprisonment,
And repeating it one thousand times would help you get what you want.
Lakshmi Narasimha Pancharathnam
त्वत्प्र
भुजीव प्रिय मिच्छसि चेन्नरहरिपूजां कुरु सततं
प्र
तिबिम्बालङ्कृति धृतिकुशलो बिम्बालङ्कृति मातनुते ।
चे
तो भृङ्ग भ्रमसि वृथा भव मरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मी नरसिंह अनघ पद सरसिज मकरन्दम् ॥ १ ॥
If you wish to earn the affection of your master then always worship Lord Narasimha. One
who is keen on seeing an adorned image (in a mirror), (always) decorates the object (first).
O mind-bee! you wander in vain in the worthless desert of mundane existence. Entertain
yourself incessantly with the honey from the pure lotus-feet of Lakshmi Narasimha.
शु
क्तौ
रजत प्र
तिभा जाता कटकाद्यर्थसमर्था चे
-
-द्दुः
ख मयी ते संसृति रेषा निर्वृति दाने निपुणा स्यात् ।
चे
तो भृङ्ग भ्रमसि वृथा भव मरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मी नरसिंह अनघ पद सरसिज मकरन्दम् ॥ २ ॥
If the silver that appears in the shell could be made into articles like bracelet etc., then this
sorrowful worldly life of yours could also confer eternal-bliss. O mind-bee! you wander in vain
in the worthless desert of life-circle. Entertain again and again with the honey from the pure
lotus-feet of (lord) Lakshmi-Narasimha.


कृति साम्याच्छाल्मलि कुसुमे स्थलनलिनत्वभ्रम मकरोः

न्धर साविह किमु विद्येते विफलं भ्राम्यसि भृश विरसेऽस्मिन् ।
चे
तोभृङ्ग भ्रमसि वृथा भव मरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मी नरसिंह अनघ पद सरसिज मकरन्दम् ॥ ३ ॥
You have mistaken the silk-cotton flower for a lotus grown on earth due to similarity in form.
Are fragrance and sweetness present in it? You hover around this in vain, which is devoid of
sweetness. O mind-bee! you wander in vain in the worthless desert of mundane existence.
Resort again and again to the honey from the pure lotus-feet of (lord) Lakshmi Narasimha.
स्रक्चन्
द नवनिता

दीन्विषयान्सुखदान्मत्वा तत्र विहरसे

न्ध फली सदृशा ननु तेऽमी भोगा नन्त रदुःख कृतः स्युः ।
चे
तो भृङ्ग भ्रमसि वृथा भव मरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मी नरसिंह अनघ पद सरसिज मकरन्दम् ॥ ४ ॥
Thinking that objects of enjoyment such as a garland of flowers, sandal and women as
giving (permanent) happiness you amuse yourself in them. They are like the Ketaki flowers,
causing grief after enjoyment. O mind-bee! you wander in vain in the worthless desert of
mundane existence. Resort again and again to the honey of the pure lotus-feet of (lord)
Lakshmi Narasimha.
तव
हितमेकं
वच
नं वक्ष्ये शृणु सुख कामो यदि सततं
स्व
प्ने दृष्टं सकलं हिमृषा जाग्रति च स्मर तद्वदिति ।
चे
तो भृङ्ग भ्रम सिवृथा भव मरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मी नरसिंह अनघ पद सरसिज मकरन्दम् ॥ ५ ॥
I shell tell you something beneficial. Listen! If you are desirous of eternal happiness. All
things seen in a dream are untrue; you bear in mind that all things seen in the wakeful state

are also alike. O mind-bee! you wander in vain in the fruitless desert of mundane existence.
Entertain again and again with the honey of the pure lotus-feet of (lord) Lakshmi Narasimha.
जयपञ्च
कम्
(वा
ल्मीकिरामायणे सुन्दरकाण्डान्तर्गतम्
)
जयत्य
तिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः ।
रा
जा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः ॥१॥
दा
सोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः।

नुमान् शत्रु सैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः ॥२॥

रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्।
शि
लाभिस्तु प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः ॥३॥

र्दयित्वा पुरीं लङ्कां अभिवाद्य च मैथिलीम्।

मृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम् ॥४॥
तस्य स
न्नाद शब्देन तेऽभवन् भयशङ्किताः

दृशुश्च हनूमन्तं संध्यामेघमिवोन्नतम् ॥५॥
 

आञ्ज
नेयाष्टोत्तरशतनामावलिः
ओं आञ्ज
नेयाय नमः
ओं म
हवीराय नमः
ओं
हनूमते नमः
ओं
मारुतात्मजाय नमः
ओं तत्त्व
ज्ञान प्रदाय नमः
ओं
सीतादेवी मुद्राप्रदायकाय नमः
ओं अ
शोकवनिकाच्छेत्रे नमः
ओं स
र्वमाया विभञ्जनाय नमः
ओं स
र्वबन्ध विमोक्त्रे नमः
ओं र
क्षोविद्ध्वंस कारकाय नमः
               १०
ओं पर
विद्या परिहर्त्रे नमः
ओं पर
शौर्य विनाशनाय नमः
ओं परमन्त्र
निराकर्त्रे नमः
ओं पर
यंत्र प्रभेदकाय नमः
ओं स
र्वग्रह विनाशकाय नमः
ओं
भीमसेन सहायकृते नमः

ओं स
र्व दुःख हराय नमः
ओं स
र्वलोक चारिणे नमः
ओं म
नोजवाय नमः
ओं
पारिजात द्रुममूलस्थाय नमः
                 २०  
ओं स
र्वमंत्र स्वरूपवते नमः
          
ओं स
र्वतंत्र स्वरूपिणे नमः
ओं स
र्वयन्त्रात्मिकाय नमः
ओं
कपीश्वराय नमः
ओं म
हाकायाय नमः
ओं स
र्वरोग हराय नमः
ओं प्र
भवे नमः
ओं बल
सिद्धि कराय नमः
ओं स
र्वविद्या संपत्प्रदायकाय नमः
ओं
कपिसेना नायकाय नमः
                    ३०
ओं
भविष्यच्चतुराननाय नमः
ओं
कुमार ब्रह्मचारिणे नमः
ओं र
त्नकुण्डल दीप्तिमते नमः
ओं चञ्चल
द्वाल सन्नद्ध लंबमान शिखोज्ज्वलाय नमः
ओं
गन्धर्व विद्या तत्त्वज्ञाय नमः
ओं म
हाबल पराक्रमाय नमः
ओं
कारागृह विमोक्त्रे नमः
ओं
शृंखला बन्धमोचकाय नमः
ओं
सागरोत्तारकाय नमः
ओं
प्राज्ञाय नमः
                            ४०  
ओं
राम दूताय नमः
ओं प्र
तापवते नमः

ओं
वानराय नमः
ओं
केसरी सूनवे नमः
ओं
सीता शोक निवारणाय नमः
ओं अञ्ज
ना गर्भ संभूताय नमः
ओं
बालार्क सदृशाननाय नमः
ओं
विभीषण प्रियकराय नमः
ओं
दशग्रीव कुलांतकाय नमः
 
ओं लक्ष्मण
प्राणदात्रे नमः
                    ५०
ओं वज्र
कायाय नमः
ओं म
हाद्युतये नमः
ओं
चिरञ्जीविने नमः
ओं
राम भक्ताय नमः
ओं
दैत्यकार्य विघातकाय नमः
ओं अक्ष
हन्त्रे नमः
ओं
काञ्चनाभाय नमः
ओं पञ्च वक्
त्राय नमः
ओं म
हातपसे नमः
ओं
लंकिणी भञ्जनाय नमः
                   ६०
ओं
श्रीमते नमः
ओं
सिंहिकाप्राण भञ्जनाय नमः
ओं
गन्धमादन शैलस्थाय नमः
ओं
लंकापुर विदाहकाय नमः
ओं
सुग्रीव सचिवाय नमः
ओं
धीराय नमः
ओं
शूराय नमः
ओं
दैत्य कुलान्तकाय नमः
  

ओं
सुरार्चिताय नमः
ओं म
हातेजसे नमः
                          ७०
ओं
राम चूडामणि प्रदाय नमः
ओं
काम रूपिणे नमः
ओं
पिङ्गलाक्षाय नमः
ओं व
र्धिमैनाक पूजिताय नमः
ओं
कबलीकृत मार्ताण्ड मण्डलाय नमः
ओं
विजितेन्द्रियाय नमः
ओं
राम सुग्रीव संधात्रे नमः
ओं म
हिरावण मर्दनाय नमः
ओं स्फ
टिकाभाय नमः
ओं
वागधीशाय नमः
                    ८०
ओं नव
व्याकृति पण्डिताय नमः
ओं च
तुर्बाहवे नमः
ओं
दीनबन्धवे नमः
ओं म
हात्मने नमः
ओं
भक्तवत्सलाय नमः
ओं
संजीवन नगाहर्त्रे नमः
ओं
शुचये नमः
ओं
वाग्मिने नमः
ओं
धृत व्रताय नमः
ओं
कालनेमि प्रमथनाय नमः
             ९०  
ओं
हरिर्मर्कट मर्कटाय नमः
ओं
दान्ताय नमः
ओं
शान्ताय नमः
ओं प्रस
न्नात्मने नमः

ओं
दशकण्ठ मदापहाय नमः
ओं
योगिने नमः
ओं
रामकथा लोलाय नमः
ओं
सीतान्वेषण पण्डिताय नमः
ओं वज्र
दंष्ट्राय नमः
                   
ओं वज्र न
खाय नमः
                     १००
ओं रुद्र
वीर्य समुद्भवाय नमः
        
ओं इन्द्र
जित्प्रहितामोघ ब्रह्मास्त्रविनिवर्तकाय नमः
ओं
पार्थध्वजाग्र संवासाय नमः
ओं
शर पञ्जर हेलकाय नमः
  
ओं
दश बाहवे नमः
ओं
लोकपूज्याय नमः
ओं
जाम्बवत्प्रीति वर्धनाय नमः
ओं
सीता समेत श्रीराम पाद सेवा धुरंधराय नमः १०८
 

VENKATESWARA ASHTOTTARA SATA NAMAVALI
ōṃ śrī vēṅkaṭēśāya namaḥ
ōṃ śrīnivāsāya namaḥ
ōṃ lakṣmīpatayē namaḥ
ōṃ anāmayāya namaḥ
ōṃ amṛtāśāya namaḥ
ōṃ jagad-vandyāya namaḥ
ōṃ gōvindāya namaḥ
ōṃ śāśvatāya namaḥ
ōṃ prabhavē namaḥ
ōṃ śēṣādri-nilayāya namaḥ (10)
ōṃ dēvāya namaḥ
ōṃ kēśavāya namaḥ
ōṃ madhusūdanāya namaḥ

ōṃ amṛtāya namaḥ
ōṃ mādhavāya namaḥ
ōṃ kṛṣṇāya namaḥ
ōṃ śrīharayē namaḥ
ōṃ jñāna-pañjarāya namaḥ
ōṃ śrīvatsavakṣasē namaḥ
ōṃ sarvēśāya namaḥ
ōṃ gōpālāya namaḥ
ōṃ puruṣōttamāya namaḥ
ōṃ gōpīśvarāya namaḥ
ōṃ parasmai jyōtiṣē namaḥ
ōṃ vtekuṇṭha patayē namaḥ
ōṃ avyayāya namaḥ
ōṃ sudhātanavē namaḥ
ōṃ yādavēndrāya namaḥ
ōṃ nitya yauvanarūpavatē namaḥ
ōṃ chaturvēdātmakāya namaḥ (30)
ōṃ viṣṇavē namaḥ
ōṃ achyutāya namaḥ
ōṃ padminīpriyāya namaḥ
ōṃ dharāpatayē namaḥ
ōṃ surapatayē namaḥ
ōṃ nirmalāya namaḥ
ōṃ dēvapūjitāya namaḥ
ōṃ chaturbhujāya namaḥ
ōṃ chakradharāya namaḥ
ōṃ tridhāmnē namaḥ (40)
ōṃ triguṇāśrayāya namaḥ
ōṃ nirvikalpāya namaḥ

ōṃ niṣkaḻaṅkāya namaḥ
ōṃ nirāntakāya namaḥ
ōṃ nirañjanāya namaḥ
ōṃ virābhāsāya namaḥ
ōṃ nityatṛptāya namaḥ
ōṃ nirguṇāya namaḥ
ōṃ nirupadravāya namaḥ
ōṃ gadādharāya namaḥ (50)
ōṃ śār-ṅgapāṇayē namaḥ
ōṃ nandakinē namaḥ
ōṃ śaṅkhadhārakāya namaḥ
ōṃ anēkamūrtayē namaḥ
ōṃ avyaktāya namaḥ
ōṃ kaṭihastāya namaḥ
ōṃ varapradāya namaḥ
ōṃ anēkātmanē namaḥ
ōṃ dīnabandhavē namaḥ
ōṃ ārtalōkābhayapradāya namaḥ (60)
ōṃ ākāśarājavaradāya namaḥ
ōṃ yōgihṛtpadmamandirāya namaḥ
ōṃ dāmōdarāya namaḥ
ōṃ jagatpālāya namaḥ
ōṃ pāpaghnāya namaḥ
ōṃ bhaktavatsalāya namaḥ
ōṃ trivikramāya namaḥ
ōṃ śiṃśumārāya namaḥ
ōṃ jaṭāmakuṭa śōbhitāya namaḥ
ōṃ śaṅkhamadyōllasa-nmañjukiṅkiṇyāḍhyakaraṇḍakāya
namaḥ (70)

ōṃ nīlamōghaśyāma tanavē namaḥ
ōṃ bilvapatrārchana priyāya namaḥ
ōṃ jagadvyāpinē namaḥ
ōṃ jagatkartrē namaḥ
ōṃ jagatsākṣiṇē namaḥ
ōṃ jagatpatayē namaḥ
ōṃ chintitārthapradāya namaḥ
ōṃ jiṣṇavē namaḥ
ōṃ dāśārhāya namaḥ
ōṃ daśarūpavatē namaḥ (80)
ōṃ dēvakī nandanāya namaḥ
ōṃ śaurayē namaḥ
ōṃ hayagrīvāya namaḥ
ōṃ janārdanāya namaḥ
ōṃ kanyāśravaṇatārējyāya namaḥ
ōṃ pītāmbaradharāya namaḥ
ōṃ anaghāya namaḥ
ōṃ vanamālinē namaḥ
ōṃ padmanābhāya namaḥ
ōṃ mṛgayāsakta mānasāya namaḥ (90)
ōṃ aśvārūḍhāya namaḥ
ōṃ khaḍgadhāriṇē namaḥ
ōṃ dhanārjana samutsukāya namaḥ
ōṃ ghanasāra lasanmadhyakastūrī tilakōjjvalāya namaḥ
ōṃ sachchitānandarūpāya namaḥ
ōṃ jaganmaṅgaḻa dāyakāya namaḥ
ōṃ yajñarūpāya namaḥ
ōṃ yajñabhōktrē namaḥ
ōṃ chinmayāya namaḥ
ōṃ paramēśvarāya namaḥ (100)

ōṃ paramārthapradāyakāya namaḥ
ōṃ śāntāya namaḥ
ōṃ śrīmatē namaḥ
ōṃ dōrdaṇḍa vikramāya namaḥ
ōṃ parātparāya namaḥ
ōṃ parasmai brahmaṇē namaḥ
ōṃ śrīvibhavē namaḥ
ōṃ jagadīśvarāya namaḥ (108)
iti śrīvēṅkaṭēśvarāṣṭōttara śatanāmāvaḻiḥ sampūrṇaḥ
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