hindi project work class 11- apu ke saath dhai saal

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अपू के साथ ढाई साल - सत्यजीत राय

अपू – सुबीर बैनर्जी हरिहर रॉय – कनु बैनर्जी सर्बजया – करुना बैनर्जी दुर्गा – उमा दास गुप्ता इंदिर ठाकरुन – चुनीबाला देवी छोटी दुर्गा – रूनकी रॉय प्रसन्ना – तुलसी चक्रबोर्ती पथेर पांचाली के किरदार :-

अपू – सुबीर बैनर्जी अपू इस फ़िल्म के सबसे महतवपूर्ण किरदर थे . सुबीर बैनर्जी बंगाल के रहने वाले थे . जब उन्होंने इस फ़िल्म में काम किया तब उनकी उमर भी कम थी , और ये उनकी पेहली फ़िल्म थी

हरिहर रॉय – कनु बैनर्जी हरिहर रॉय निस्चिन्दिपुर में रहते थे और वे पुजारी के व्यवसाय से पैसे कमाते थे . हरिहर रॉय कवि बनने का सपना देखते थे . उन्होंने फ़िल्म में सर्बजया के पति का किरदार निभाया है .

सर्बजया – करुना बैनर्जी फ़िल्म में सर्बजया हरिहर रॉय की पत्नी हैं . सर्बजया को बच्चों , वृद्ध व जानवरों से प्यार है . सर्बजया इंदिर , अपू और दुर्गा के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करतीं थीं . वे दिल की साफ़ व्यक्ति थीं .

दुर्गा – उमा दास गुपता उमा दास गुपता ने जब इस फ़िल्म में काम किय था तब वे सिर्फ १८ वर्ष की थीं . वे भी बंगाल की रहने वाली थीं . वे फ़िल्म में अपू को माँ की तरह रखती हैं

इंदिर ठाकरुन – चुनीबाला देवी चुनीबाला देवी इस फ़िल्म के सबसे वृद्ध व्यक्ति थे . वे हरिहर रॉय के बड़े चचेरे भाई थे . वे भी हरिहर के साथ निस्चिन्दिपुर में रहते थे . सर्बजया उनकी देखभाल करतीं थीं .

छोटी दुर्गा – रूनकी रॉय रूनकी ने इस फ़िल्म की सबसे कम उम्र वाली दुर्गा का किरदार निभाया है . दुर्गा अपना ज्यादा समय अपू , इंदिर , और सर्बजया के साथ ही बिताया करतीं थीं . दुर्गा हरिहर और सर्बजया की बेटी है.

प्रसन्ना – तुलसी चक्रबोर्ती तुलसी चक्रबोर्ती ने इस फ़िल्म में प्रसन्ना का किरदार निभाया है जो निस्चिन्दपुर के एक विद्यालय में शिक्षिका हैं . वे अपू और दुर्गा को भी पढ़ातीं हैं.

पथेर पांचाली फ़िल्म का पोस्टर

सत्यजीत राय ने इस फ़िल्म को १९५२ में बनाना शुरू किया और इस फ़िल्म को बनाने में उन्हें कुछ डेढ़ साल लगे और १९५५ में पथेर पांचाली सिनेमा घरों में प्रदर्शित की गयी . उन्हें इस फ़िल्म को पूरा करने के लिए ढाई साल लगने के पीछे बहुत से कारण हैं . पथेर पांचाली फ़िल्म के उपर पुस्तक भी बनी है और ये फ़िल्म सत्यजित राय द्वारा बनायी गयी फिल्मों में से कुछ फिल्मों के बाद ही आती है . पथेर पांचाली की शुरुआत

सत्यजीत राय समाचार पत्र में काम करते थे और इस व्यवसाय से उन्हें जब पैसे मिलते तब वे फ़िल्म आगे बढ़ाते थे . कुछ समय कलाकारों को इकठ्ठा करने में भी लग जाया करता था . उनके पास फ़िल्म बनाने के उपकरण भी कम थे . जब तक वे अपने व्यसाय द्वारा पैसे जमा करने गए तो उनके वापस आने तक कुछ लोगों की मृत्यु भी हो गयी थी . और वन के जानवरों ने वन के फूल भी खा लिए जिस कारण से उन्हें अगले साल तक रुकना पड़ा . ढाई साल लगने के कुछ कारण

‘‘सत्यजित राय की विश्वप्रसिद्ध फिल्म, पथेर पांचाली, लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। यह उपन्यास बंगाल के निश्चिन्दिपुर गाँव में रहने वाले अपू और उसकी बड़ी बहन दुर्गा की कहानी है। अपू और दुर्गा गरीबी की कड़वी सच्चाई से अनजान अपने बचपन की अल्हड़ शैतानियों में मस्त अपना जीवन बिताते हैं। इस उम्मीद से कि शायद अधिक आमदनी हो पाए उनके पिता काशी चले जाते हैं। पथेर पांचाली फ़िल्म के कुछ अंश

पीछे परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि अपू को समय उसे पहले ही अपने परिवार की देख-भाल का बोझ उठाना पड़ता है। लड़कपन से जवानी तक का यह उपन्यास पथेर पांचाली सबसे पहले एक पत्रिका में धारावाहिक रूप में, और 1929 में पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। 1944 में पुस्तक के नये संस्करण के लिए सत्यजित राय को इसकी तस्वीरें बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई और तभी उन्होंने तय कर लिया कि वह इस पर फिल्म अवश्य बनाएंगे। पथेर पांचाली पर बनी सत्यजित राय की फिल्म को देश-विदेश में अनेक सम्मान मिले। 

आधुनिक बंगला साहित्य के जाने-माने लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय का जन्म 12 सितम्बर 1894 में बंगाल के 24 परगना क्षेत्र में हुआ। उन्होंने अपने जीवन में कई उपन्यास लिखे जिनमें पथेर पांचाली और उसी कड़ी की अगली कृति अपराजितो सबसे लोकप्रिय हैं। उनके उपन्यास इच्छामति के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1951 में ‘रबीन्द्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया पथेर पांचाली के साहित्यकार

राय ने निश्चय कर रखा था कि उनकी पहली फ़िल्म बांग्ला साहित्य की प्रसिद्ध  बिल्डुंग्सरोमान   पथेर पांचाली  पर आधारित होगी, जिसे  बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय  ने १९२८ में लिखा था। इस अर्ध-आत्मकथात्मक उपन्यास में एक बंगाली गांव के लड़के अपु के बड़े होने की कहानी है। राय ने लंदन से भारत लौटते हुए समुद्रयात्रा के दौरान इस फ़िल्म की रूपरेखा तैयार की। भारत पहुँचने पर राय ने एक कर्मीदल एकत्रित किया जिसमें कैमरामैन  सुब्रत मित्र  और कला निर्देशक  बंसी चन्द्रगुप्ता  के अलावा किसी को फ़िल्मों का अनुभव नहीं था। अभिनेता भी लगभग सभी गैरपेशेवर थे। फ़िल्म का छायांकन  १९५२  में शुरु हुआ। राय ने अपनी जमापूंजी इस फ़िल्म में लगा दी, इस आशा में कि पहले कुछ शॉट लेने पर कहीं से पैसा मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अपु के वर्ष (१९५०–५८ )

पथेर पांचाली  का छायांकन तीन वर्ष के लम्बे समय में हुआ — जब भी राय या निर्माण प्रबंधक  अनिल चौधरी  कहीं से पैसों का जुगाड़ कर पाते थे, तभी छायांकन हो पाता था। राय ने ऐसे स्रोतों से धन लेने से मना कर दिया जो कथानक में परिवर्तन कराना चाहते थे या फ़िल्म निर्माता का निरीक्षण करना चाहते थे।  १९५५  में  पश्चिम बंगाल  सरकार ने फ़िल्म के लिए कुछ ऋण दिया जिससे आखिरकार फ़िल्म पूरी हुई। सरकार ने भी फ़िल्म में कुछ बदलाव कराने चाहे (वे चाहते थे कि अपु और उसका परिवार एक “विकास परियोजना” में शामिल हों और फ़िल्म सुखान्त हो) लेकिन सत्यजित राय ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया ।

पथेर पांचाली  १९५५ में प्रदर्शित हुई और बहुत लोकप्रिय रही। भारत और अन्य देशों में भी यह लम्बे समय तक सिनेमा में लगी रही। भारत के आलोचकों ने इसे बहुत सराहा।  द टाइम्स ऑफ़ इंडिया  ने लिखा — “इसकी किसी और भारतीय सिनेमा से तुलना करना निरर्थक है। [...]  पथेर पांचाली  तो शुद्ध सिनेमा है ।” अमरीका  में लिंडसी एंडरसन ने फ़िल्म के बारे में बहुत अच्छी समीक्षा लिखी । [  लेकिन सभी आलोचक फ़िल्म के बारे में इतने उत्साहित नहीं थे।  फ़्राँस्वा त्रुफ़ो  ने कहा — “गंवारों को हाथ से खाना खाते हुए दिखाने वाली फ़िल्म मुझे नहीं देखनी ।”   न्यू यॉर्क टाइम्स  के प्रभावशाली आलोचक बॉज़्ली क्राउथर ने भी  पथेर पांचाली  के बारे में बहुत बुरी समीक्षा लिखी। इसके बावजूद यह फ़िल्म अमरीका में बहुत समय तक चली।

राय की अगली फ़िल्म  अपराजितो  की सफलता के बाद इनका अन्तरराष्ट्रीय कैरियर पूरे जोर-शोर से शुरु हो गया। इस फ़िल्म में एक नवयुवक (अपु) और उसकी माँ की आकांक्षाओं के बीच अक्सर होने वाले खिंचाव को दिखाया गया है।  मृणाल सेन  और  ऋत्विक घटक  सहित कई आलोचक इसे पहली फ़िल्म से बेहतर मानते हैं।  अपराजितो  को  वेनिस फ़िल्मोत्सव  में स्वर्ण सिंह से पुरस्कृत किया गया। अपु त्रयी पूरी करने से पहले राय ने दो और फ़िल्में बनाईं — हास्यप्रद  पारश पत्थर  और  ज़मींदारों  के पतन पर आधारित  जलसाघर ।  जलसाघर  को इनकी सबसे महत्त्वपूर्ण कृतियों में गिना जाता है।

अपराजितो  बनाते हुए राय ने त्रयी बनाने का विचार नहीं किया था, लेकिन  वेनिस  में उठे एक प्रश्न के बाद उन्हें यह विचार अच्छा लगा ।  इस शृंखला की अन्तिम कड़ी  अपुर संसार   १९५९  में बनी। राय ने इस फ़िल्म में दो नए अभिनेताओं,  सौमित्र चटर्जी  और  शर्मिला टैगोर , को मौका दिया। इस फ़िल्म में अपु कोलकाता के एक साधारण मकान में गरीबी में रहता है और अपर्णा के साथ विवाह कर लेता है, जिसके बाद इन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पिछली दो फ़िल्मों की तरह ही कुछ आलोचक इसे त्रयी की सबसे बढ़िया फ़िल्म मानते हैं (राबिन वुड और  अपर्णा सेन )।  जब एक बंगाली आलोचक ने अपुर संसार की कठोर आलोचना की तो राय ने इसके प्रत्युत्तर में एक लम्बा लेख लिखा।

धन्यवाद

नाम :- आकाश दीक्षित अनुक्रमांक :- ३९ नाम :- अमन त्रिपाठी अनुक्रमांक :- २ नाम :- हेमंत सिंह अनुक्रमांक :- १३ हिंदी शरद कालीन गृह कार्य निर्मित द्वारा
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