हीरक भस्म, मुक्ता भस्म, स्वणथ भस्म, अभ्रक भस्म, लोहा
भस्म, यस्त भस्म, लस( मकरध्वज, कहरवा, वपष्टी,जाफरान,
अम्बर, मुश्क, जायफल, जाववरी, वींशलोचन, अश्वगींधा,
लशलाजीत, छोटी इलायची, हरड, बहेडा, आाँवला, गोख�, कोंच
बीज, मूसली, शतावरी, सालब लमश्री, मुलहठी, अकरकरा, सेमल
की जड, ववधारा आदद अनेकों ऐसे रस-रसायन हैं जजनके प्रभाव
अलग-अलग होते हैं तथा इनके सेवन से ददमागी नाड ि़यों और
ग्रजन्थयों की शजक्त बढती है,वीयथ पुष्ट होता है। ददमाग, जजगर,
गुदाथ, मसाना, अण्ि़कोष आदद अींगों की कमजोरी दूर हो जाती
है। थकावट, ि़र, वहम, घबराहट, क्रोध, चक्कर, बैचेनी,
गचडगचडापन, काम में मन न लगना, टाींगों, बाींहों व कमर में ददथ,
थोडा सा काम करने से साींस फूलना, भूख कम लगना, कब्ज,
पेट गैस, रक्त की कमी, शीघ्रपतन,स्वप्नदोष, प्रमेह, पेशाब का
बार बार आना, नपुींसकता, कमजोरी आदद सभी लशकायतें दूर हो
जाती हैं इसमें ऐसी जडी-बूदटयाीं व भस्में भी हैं जजनसे खाया-
वपया शीघ्र ही पच जाता है शरीर को भी लगने लगता है, नया
खून बनता है, जजससे चेहरे पर नई रौनक व चमक आ जाती है
ददल में उत्साह और शरीर में स्फूनतथ पैदा होती है खोई हुई मदायना
व शारीररक ताकत वापि लौट आती है शरीर उमींगों व जवानी