in ayurveda what is ahar and its benefitsAhar (1).pptx

SangeetaSwavat 0 views 98 slides Oct 15, 2025
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Slide Content

Dr. Chhaju Ram Yadav * * HEAD OF DEPARTMENT D EPARTMENT OF KRIYA SHARIR NATIONAL INSTITUTE OF AYURVEDA, DEEMED TO BE UNIVERSITY, ( De-novo) JAIPUR, RAJASTHAN (INDIA) [“NAAC & NABH” - ACCREDITED] आहार की श्रेष्ठता व उपयोगिता (अन्नं वृत्तिकराणां श्रेष्ठम् |)

देह दोष + आग्नि मात्रा काल क्रिया भूमि गुणान्तर

IMPEDIMENTS * Failure in Concept – Understanding Application * Food – Selection - Collection - Storage - Preparation - Serving Misconcepts / Wrong Concepts / Improper Concepts? Rituals?????

GOAL ACTION OBJECTIVES

आहार महत्व अन्नं वृत्तिकराणां श्रेष्ठम् | आहार संभवं ...............| आरोग्यं भोजनाधीनं || कालभोजनंआरोग्यकराणां ||

न च आहार समं किश्चित भैष्ज्यमुपलभ्यते | शक्यतेऽप्यन्नमात्रेण नरः कर्तुम् निरामयः || आहार शुद्धौ सत्वशुद्धि | सत्वशुद्धौ ध्रुवौ स्मृति ||

प्राणाः प्राणभृतामन्नमन्नं लोकोऽभिधावति| वर्णः प्रसादः सौस्वर्यं जीवितं प्रतिभा सुखम् || तुष्टिः पुष्टिर्बलं मेधा सर्वमन्ने प्रतिष्ठितम्| लौकिकं कर्म यद्वृत्तौ स्वर्गतौ यच्च वैदिकम् || कर्मापवर्गे यच्चोक्तं तच्चाप्यन्ने प्रतिष्ठितम् | (च.सू. 27/349-351)

आहारः प्रीणनः सद्यो बलकृद्देहधारकः || आयुस्तेजःसमुत्साहस्मृत्योजोग्निविवर्धनः| (सु.चि. 24/68) षड्त्रिंशतं सहस्राणि रात्रीणां हितभोजनः| जीवत्यनातुरो जन्तुर्जितात्मा सम्मतः सताम् || (च.सु. 2 7 / 348 ) आहार का लाभ -

तद्यथा- लोहितशालयः शूकधान्यानां पथ्यतमत्वे श्रेष्ठतमा भवन्ति, मुद्गाः शमीधान्यानाम्, आन्तरिक्षमुदकानां, सैन्धवं लवणानां, जीवन्तीशाकं शाकानाम्, ऐणेयं मृगमांसानां, लावः पक्षिणां, गोधा बिलेशयानां, रोहितो मत्स्यानां, गव्यं सर्पिः सर्पिषां, गोक्षीरं क्षीराणां, तिलतैलं स्थावरजातानां स्नेहानां, वराहवसा आनूपमृगवसानां, चुलुकीवसा मत्स्यवसानां, पाकहंसवसा जलचरविहङ्गवसानां, कुक्कुटवसा विष्किरशकुनिवसानां, अजमेदः शाखादमेदसां, शृङ्गवेरं कन्दानां, मृद्वीका फलानां, शर्करेक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैव हिततमानामाहारविकाराणां प्राधान्यतो द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति || (च.सू. 25/38) हितकर आहार - क्या खाए?

अहिततमानप्युपदेक्ष्यामः- यवकाः शूकधान्यानामपथ्यतमत्वेन प्रकृष्टतमा [ १ ] भवन्ति, माषाः शमीधान्यानां, वर्षानादेयमुदकानाम्, ऊषरं लवणानां, सर्षपशाकं शाकानां, गोमांसं मृगमांसानां, काणकपोतः पक्षिणां, भेको बिलेशयानां, चिलिचिमो मत्स्यानाम्, आविकं सर्पिः सर्पिषाम्, अविक्षीरं क्षीराणां, कुसुम्भस्नेहः स्थावरस्नेहानां, महिषवसा आनूपमृगवसानां, कुम्भीरवसा मत्स्यवसानां, काकमद्गुवसा जलचरविहङ्गवसानां, चटकवसा विष्किरशुकनिवसानां, हस्तिमेदः शाखादमेदसां, निकुचं फलानाम्, आलुकं कन्दानां, फाणितमिक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैवाहिततमानामाहारविकाराणां प्रकृष्टतमानि द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति; हिताहितावयवो व्याख्यात आहारविकाराणाम् || (च.सू. 25/39) अहितकर आहार -

षष्टिकाञ्छालिमुद्गांश्च सैन्धवामलके यवान् | आन्तरीक्षं पयः सर्पिर्जाङ्गलं मधु चाभ्यसेत् || तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत स्वास्थ्यं येनानुवर्तते | अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत् || (च.सू. 5/12-13) नित्य सेवनीय द्रव्य

प्रकृति परक आहार सब्जियां चुकंदर, शकरकंद, गोभी, लौकी, भिण्डी, करेला, टमाटर, प्याज, तुरई, जमीकंद, सहिजन फली | दालें हरी मूंग, लाल मसूर दाल, अरहर | अनाज चावल, गेंहू | फल सभी मीठे फल, केला, नाशपती, संतरा, अमरूद, पपीता, आम, खजूर, नारियल, अंगूर, अनार, बिल्व, सेव, काजू, अखरोट, बादाम, खूबानी, आलु बुखारा, मौसमी| मसाले सौंफ, हींग, अजवाइन, इलायची, तुलसी, काली मिर्च, पुदिना, लाल मिर्च, धनिया, मेथी | अन्य गरम दूध, सूप, घी, छाछ, ताजा ब्रेड, मीठे-खट्टे स्वाद वाले खाद्य पदार्थ नहीं खाने योग्य कच्चा अनाज, बाजरा, जौ, मक्का, काली मसूर दाल, सोयाबीन, पापकार्न, सूखे फल, राजमा, छोला, पत्तीवाली सब्जियां | वात को संतुलित रखने वाले आहार

सब्जियां मीठे एवं कड़वे स्वाद वाली सब्जियां, मूली, पालक, पतागोभी, खीरा, हरे मटर, आँवला, कद्दू, गाजर, शकरकंद, लौकी, तुरई, परवल | दालें मूंग, सेम, चना, सोयाबीन, अरहर, मसूर, राजमा अनाज गेंहू, जौ, चावल फल मीठे व पके फल, केला, नाशपती, अमरूद, तरबूज, पपीता, सेव, नारियल, खरबूज, अनार, शहतूत, गन्ना, अन्नानास, आलु बुखारा मसाले धनिया, दालचीनी, इलायची, सौंफ, हल्दी, जीरा अन्य ठण्डा या गुनगुना दूध, सलाद, ठण्डे और मीठे खाद्य पदार्थ नहीं खाने योग्य मक्का, बाजरा, काली मसूर, कोल्ड ड्रिंक्स, तले- भूने मसालेदार वस्तुएं. प्रिजर्वेटेड खाद्य पित्त को संतुलित रखने वाले आहार

सब्जियां तीखे- कसैले स्वाद वाली सब्जियां, मूली, मेथी, पालक, गोभी, पत्तागोभी, खीरा, बैंगन, करेला, आंवला, तुरई, सहिजन की फली दालें हरी मूंग दाल, राजमा, चना, मसूर, अरहर, मटर की दाल अनाज मक्का, गेंहू, जौ, बाजरा फल नाशपती, संतरा, सिंघाड़ा, नारियल, अंगूर, खीरा, तरबूज, खरबूज, मौसमी, अनार, खजूर, शहतूत, आलु बुखारा मसाले समान्यता प्रयोग में आने वाले सभी मसालें अन्य गर्म कम युक्त घृत, कम मसालेदार आहार, शहद, बकरी का दूध | नहीं खाने योग्य मीठे फल, गूदेदार सब्जियां, जायफल, जावित्री, सभी प्रकार के दूध, पनीर, दही, क्रीम वाली छाछ, मिल्क शेक, सभी मिठाइयां कफ को संतुलित रखने वाले आहार

ऋतु परक आहार 1) शिशिर ऋतुचर्या समय - माघ, फाल्गुन (फरवरी-मार्च) संभावित रोग - अधिक भूख लगना, होठ, त्वचा तथा बिवाई फटने लगती है। सर्दी व रूखापन, लकवा, बुखार, खांसी, दमा आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है। पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करें) 1.विविध प्रकार के पाक एवं लड्डू, अदरक, लहसून की चटनी, जमीकन्द, पौषक आहार आदि का सेवन करें। 2. दूध का सेवन विशेष रूप से करें। 3.तैल मालिश, धूप का सेवन, गर्म पानी का उपयोग करें। 4. ऊनी व गहरे रंग के कपड़े, जूते मौजे आदि से शरीर को ढककर रखें। अपथ्य आहार-विहार (क्या सेवन न करें) 1. बरसात व ठण्डी हवा से बचें 2. हल्का रूखा एवं वायु वर्धक आहार न लें।

2) वसन्त ऋतुचर्या समय - चैत्र, वैशाख (अप्रैल, मई ) संभावित रोग - दमा, खांसी, बदन दर्द, बुखार, अरूचि, जी मिचलाना, बेचैनी, भारीपन, भूख न लगना, अफरा, पेट में गुड़गुड़ाहट, कब्ज, पेट में दर्द, पेट में कीडे आदि विकार होते है। पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करें) 1. शहद के साथ हरड़, प्रातः कालीन हवा का सेवन, सूर्योदय के पहले उठकर योगासन करना व मालिश करना | 2 . पुराना जौ, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि धानों का आहार श्रेष्ठ है। मूंग, मसूर, अरहर व चने की दालें तथा मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई, परवल, सरसों, मेथी, पालक, धनिया, अदरक आदि । 3.वमन, जलनेति, नस्य और कुँजल आदि। 4. परिश्रम, व्यायाम, उबटन और आँखों में अंजन। 5. शरीर पर चन्दन, अगर आदि का लेप। अपथ्य आहार-विहार (क्या सेवन न करें) 1. नया अन्न, ठंडे व चिकनाई युक्त, भारी खट्टे व मीठे आहार द्रव्य, दही, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नया गुड़, भैंस का दूध और सिंघाड़े का सेवन। 2. दिन में सोना, एक साथ लम्बे समय तक बैठना।

3) ग्रीष्म ऋतुचर्या समय - ज्येष्ठ, आषाढ़ (जून, जुलाई) संभावित रोग - रूखापन, दौर्बल्य, लू लगना, खसरा, हैजा, चेचक , दस्त, बुखार, नकसीर, जलन, प्यास, पीलिया, यकृत विकार होने की संभावना रहती है। पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करें) 1. हल्के, मीठे, चिनकाई वाले पदार्थ, ठण्डे पदार्थ, चावल, जौ, मूंग, मसूर, दूध शर्बत, दही की लस्सी, फलों का रस, सत्तू, छाछ आदि। संतरा, अनार, नींबू, खरबूजा, तरबूज, शहतूत, गन्ना, नारियल पानी, जलजीरा, प्याज, कच्चा आम (कैरी) आदि का प्रयोग। 2. सूर्योदय से पहले उठना तथा उष: पान हितकर है। सुबह टहलना, दो बार स्नान, ठण्डी जगह पर रहना, धूप में निकलने से पहले पानी पीना | 3 . सिर को ढककर जाना, बार-बार पानी पीते रहना, सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग तथा दिन में सोना अच्छा है। अपथ्य आहार-विहार (क्या सेवन न करें) 1.धूप, परिश्रम, व्यायाम, सहवास, प्यास रोकना, रेशमी कपड़े, कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधन, प्रदूषित जल का सेवन। 2. गरम, तीखे, नमकीन, तले हुए पदार्थ, तेज मसाले, मैदा, बेसन से बने, पचनें में भारी पदार्थ की ज्यादा मात्रा और शराब का सेवन।

4) वर्षा ऋतुचर्या समय - श्रावण, भाद्रपद (अगस्त, सितम्बर ) संभावित रोग - भूख कम लगना, जोड़ों के दर्द, गठिया, सूजन, खुजली, फोड़े फुन्सी, दाद, पेट में कीड़े, नेत्राभिष्यब्द (आंख आना), मलेरिया, टाइफाइड, दस्त और अन्य रोग होने की संभावना रहती है। पथ्य आहार -विहार (क्या सेवन करें) 1. अम्ल, लवण, स्नेहयुक्त भोजन, पुराने धान्य (चावल, जौ, गेहूँ) तथा मांस रस, घी व दूध का प्रयोग, छाछ में बनाई गई बाजरा या मक्का की राबड़ी, कद्दू, बैंगन, परवल, करेला, लौकी, तुरई, अदरक, जीरा, मैथी, लहसून का सेवन। 2. संशोधित जल का प्रयोग करना चाहिये, कुआँ, तालाब और नदी के जल का प्रयोग बिना शुद्ध किये नहीं करना चाहिये। पानी को उबालकर उपयोग में लेना श्रेष्ठ है। 3.भीगने से बचें, भीगने पर शीघ्र सूखे कपड़े पहनें, नंगे पैर, गीली मिट्टी या कीचड़ में नहीं जाना चाहिये। सीलन युक्त स्थान पर नहीं रहना चाहिए तथा बाहर से लौटने पर पैंरो को अच्छी तरह धोकर पौंछ लेना चाहिये। 4. तैल की मालिश तथा मच्छरदानी का प्रयोग । अपथ्य आहार-विहार ( क्या सेवन न करें) 1. चावल, आलू, अरबी, भिंडी तथा पचने में भारी आहार द्रव्यों का प्रयोग, बासी भोजन, दही, माँस, मछली, अधिक तरल पदार्थ, शराब आदि तथा तालाब एवं नदी के जल का सेवन। 2. दिन में सोना, रात में जागना, खुले में सोना, अधिक व्यायाम, धूप सेवन, अधिक परिश्रम, अधिक सहवास, अज्ञात नदी, जलाशय आदि में स्नान तथा तैरना।

5) शरद ऋतुचर्या समय - अश्विन, कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर ) संभावित रोग - ज्वर, रक्तविकार, दाह, छर्दि , सिरदर्द, चक्कर आना, खट्टी डकारें, जलन, रक्त - पित्त विकार, प्यास, कब्ज, अफरा, जुकाम, अरूचि आदि विकारों की संभावना होती है। इस ऋतु विशेष रूप पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को अधिक कष्ट होता है। पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करे ) 1. हल्का भोजन 2. मधुर शीतल, तिक्त (कड़वा नीम, करेला ) आदि। 3. करेला, परवल, तुरई, मैथी, लौकी, पालक, मूली, सिंघाड़ा, अंगूर, टमाटर का रस, सूखें मेवे नारियल करना चाहिए। 4. इलायची, मुनक्का, खजूर, घी का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहिए। 5. त्रिफला चूर्ण, अमलतास का छिलके वाली दालें, मसालें रहित सब्जी गुनगुने पानी के साथ नींबू के रस का सेवन रात्रि में हरड़ का प्रयोग विशेष लाभदायक है। 6. तेल मालिश, व्यायाम तथा प्रातः भ्रमण, शीतल जल से स्नान करना चाहिए। हल्के वस्त्र धारण करें। रात्रि में चन्द्रमा की किरणों का सेवन करें, चन्दन तथा मुलतानी मिट्टी का लेप लाभदायक है। अपथ्य आहार-विहार ( क्या सेवन न करें ) 1. मैदे से बनी हुए वस्तुएँ, गरम, तीखा, भारी, मसालेदार तथा तेल में तले हुए खाद्य पदार्थ। 2 . दही व मछली, अमरूद को खाली पेट न खाए, कन्द शाक, वनस्पति घी, मूंगफली, भुट्टे, कच्ची ककड़ी, दही आदि। 3.दिन में न सोएँ, मुहँ ढक कर न सोएँ तथा धूप से बचें।

6) हेमन्त ऋतुचर्या समय - मार्गशीर्ष, पौष (दिसम्बर-जनवरी) संभावित रोग - वातज रोग, वात श्लैष्मिक रोग, लकवा, दमा, पाँवों में बिवाई फटना, जुखाम आदि। पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करें) 1. शरीर संशोधन हेतु वमन व कुञ्जल आदि करें। 2. स्त्रिग्ध, मधुर, गुरु, लवण युक्त भोजन करें। 3. घी, तैल तथा उष्ण मोगर, गोंद, मेथी के लड्डू, च्यवनप्राश, नए चावल, माँस आदि का सेवन। 4. तैल मालिश, उबटन, गुनगुने पानी से नहाना, ऊनी कपड़ों का प्रयोग, सिर, कान, नाक, पैर के तलुओं पर तैल मालिश , गर्म और गहरे रंग के वस्त्र धारण करें, आग तपना और धूप सेकना। 5. हाथ पैर धोने के लिए गुनगुने जल का प्रयोग करें , जूते, मौजे, दस्ताने, टोपी, मफलर, स्कार्फ का प्रयोग। अपथ्य आहार-विहार (क्या सेवन न करें) 1. ठण्डे, वायु बढ़ाने वाली वस्तुओं का सेवन, नपातुला भोजन, बहुत पतला भोजन न करें 2. दिन में सोना, अधिक हवादार स्थान में रहना तथा ठण्डी हवा , खुले पाँव नहीं रहना चाहिये तथा हल्के सफेद रंग के वस्त्र न पहने।

ऋतु -हरीतकी

दीर्घमायुः स्मृतिं मेधामारोग्यं तरुणं वयः | प्रभावर्णस्वरौदार्यं देहेन्द्रियबलं परम् || वाक्सिद्धिं प्रणतिं कान्तिं लभते ना रसायनात् | लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम् || (च.चि. 1/1/7-8)

बिल्वं तु दुर्जरं पक्वं दोषलं पूतिमारुतम् | स्निग्धोष्णतीक्ष्णं तद्बालं दीपनं कफवातजित्|| ( च.सू. 27/138)

बालं दोषहरं, वृद्धं त्रिदोषं, मारुतापहम्| स्निग्धसिद्धं, विशुष्कं तु मूलकं कफवातजित् || (च.सू. 27/168)

कितना खाना खाए | मात्राशी स्यात्| आहारमात्रा पुनरग्निबलापेक्षिणी || (च.सू.5/3)

न च नापेक्षते द्रव्यं; द्रव्यापेक्षया च त्रिभागसौहित्यमर्धसौहित्यं वा गुरूणामुपदिश्यते, लघूनामपि च नातिसौहित्यमग्नेर्युक्त्यर्थम् | ( च.सू. 5/7 )

मात्रावद्ध्यशनमशितमनुपहत्य प्रकृतिं बलवर्णसुखायुषा योजयत्युपयोक्तारमवश्यमिति || (च.सू. 5/8)

तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत स्वास्थ्यं येनानुवर्तते| अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत् || (च.सू. 5/13)

पूर्वं मधुरमश्नीयान्मध्येऽम्ललवणौ रसौ || पश्चाच्छेषान् रसान् वैद्यो भोजनेष्ववचारयेत् | (सु.सू. 46/460)

कब खाए? भोजनकाल - सायं प्रातर्मनुष्याणामशनं श्रुतिबोधितम् | नान्तरा भोजनं कुर्यादग्निहोत्रसमो विधिः || (भा.पू. 5/106) याममध्ये न भोक्तव्यं यामयुग्मं न लङ्घयेत् | याममध्ये रसोत्पत्तिर्यांमयुग्माद् बलक्षयः || (भा.पू. 5/107) क्षुत्सम्भवति पक्वेषु रसदोषमलेषु च | काले वा यदि वाऽकाले सोऽन्नकाल उदाहृतः || (भा.पू. 5/108) जीर्ण आहार लक्षण – उद्गारशुद्धिरुत्साहो वेगोत्सर्गो यथोचितः | लघुता क्षुत्पिपासा च जीर्णाहारस्य लक्षणम् || (भा.पू. 5/109)

PLACE FOR AAHARA PAKA MAHANASAM Managed by faithful persons Adequate size, neat and clean No complicated designs and curves Food well cooked processed and stored Hygienic atmosphere Aahara vidhi visesha aayathana Aahara vidhi – selection processing and utilisation of food. Visesam – hita ahita bhava of food. Ayathana – reason Reason for hita and ahita bhava of food based on selection, processing and utilization.

आहार विधि विशेषायातन

1. प्रकृति Food material : easily digestable or not ? Importance of Selection of food on basis of प्रकृति Determination of मात्रा Selection of आहार *Based on body composition *Based on clinical condition

2. करण

तोय सन्निकर्ष altering quality Eg : takram Takra with no water: ‘ madhitham vata pitha haram ’ Takram : 1/4 water is added Udashvit : 1/2 water is added Agni sannikarsha altering quality Almost all processes in cooking eg : Sali  laja guru  laghu Madhu and dadhi :poisonous on agni sannikarsha

Vaasam altering quality Vasasena gunadhanam yadha apam utpaladi vasasena sugandhanukaranam Importance: Induce pitha samanatvam can be used in chardi , arochakam etc BHAJANA altering quality Kamsya patra sthitha sarpi : harmful Ayapatra tippali:benificial improve therapeutic values

BHAVANA altering quality Bhavana in quality snuhi ksheera induce chedana property to kshara sootra Bhavana of Rasa drugs to remove inherent dosha KALAPRAKARSHAM altering quality Preparation of arishta : hot ritu-15 days cold :1 month

IMPORTANCE OF KARANAM today

3. SAMYOGAM

SIGNIFICANCE To avoid samyoga viruddham Helps to select vyanjana Eg dadhi:na samudga soopam na amalakam …..

4.RASI THE AMOUNT OF FOOD TO BE EATEN 2 types Sarva graham :total quantity of food taken entirely Depends on abhyavaharana sakthi Parigraham : quantity of individual food item Check whether the amount of food taken produce any good or bad effects?

Importance in determining rasi - Mainly based on nature of food - Diabetic patient: reduce carbohydrate intake add fiber rich dishes - Normal man : normal amount with curry - If same abhyavaharana sakthi sarva graha may be same - Based on parigraha which one to take more is determined

5. DESA UTPATHY , PRACHARAM , DESA SATMYAM Bhoshkana desa hingu is best. Aushadha derived from himalaya is best Dates from gulf countries are superior Wheat from panjab is nutritious Assam tea leaves are superior Food gathered from places of cremation etc are inferior Check quality of food material based on its origin?

6 .KAALA IMPORTANCE OF TIME IN intake OF AAHARA NITYAGAM AVASTHIKAM

NITYAGA KALA Importance of nithyaga kalam effects Apraptha kala bhojanam – before usual time cause vyadhi / marana for even a healthy person Ateetha kala bhojanam – due to vata food get digested with difficulty and person does not desire food in next anna kala Kaala bhojanam - Arogya karaanam sreshtam

Avasthika kala 1. Eg jwaram:lamghanam ….. 2. Ajeernam:after attainment of hunger 3. Pancha karma therapy: Kashaya vasthi : immediately after therapy 4. food prohibited before surgery in the following patients: Mooda garbha arso asmari bhagandara mugharogeshu abhuktavata karmam kurveetha … KAALAM - Check whether the time of taking food produce any good or bad effects?

7.UPAYOKTHA Whether the particular person has any good or bad effects with the food material?

8.UPAYOGASAMSTHA UPAYOGA NIYAMAM(DIETETIC RULES) JEERNALAKSHANA AAPEKSHA

Ahara vidhi vidhanam

Ushnam asneeyat Freshly prepared food Maximum time for leaving prepared food at room temperature is only 2 hours Discard any perishable food left at room temperature longer than 2 hours

Snigdam asneeyat Easy movement Easy to digest Avoid all refined or over heat fats - Omega 6 poly unsaturated fatty acids are dangerous

Matravath asneeyat - Eat less what is adequate - Do not over eat - Cutting down calories lowers susceptibility to diseases and prolong life span up to 50% - Excessive cutting down destroys health Amatra bhojana produce - Obesity - Nutritional deficiency - Metabolic syndrome

Jeerne asneeyat - Eat only when hungry - Only When the previous meal has digested properly - Let body regulates naturally its needs - Otherwise leads to lack of hunger, obesity, Metabolic syndrome etc - Avoid junk & untimely foods

Leads to : Utsnehanam – unmarga gamanam Apratisdanam – hridayatwena koshta pravesham Eating too fast overrides the mechanism which tells our brain we are full It takes about 20 min after you starts eating for the message to stop eating So by fast eating we may over eat and become obese Na ati drutam asneeyat

Na ati vilampitham asneeyat 20- 30 minutes is the ideal time to finish our meals Eating too slow fail to send stretch full signal to brain because of simultaneous digestion so we over eat

Veerya avirudham asneeyath

Ishte dese ishta sarva upakaranam cha asneeyath Happiness and peace of mind Bad surrounding in eating place cause aversion to food Cannot enjoy mindful eating Other wise dwistarthaga chardi . arochakam ajeernam

Ajalpan ahassan tanmana bhunjeetha / dosa of drutha asanam - Concept of mindful eating - Be fully aware of what is happening within and around you during eating - Notice the colours , smells and textures of your food - Get rid of distractions such as reading , tv , computer etc. - Mindful eating can decrease your daily calories

Aatmanam abhisameekshya bhunjeetha - This is good, this is bad - By paying attention to what you are taking, you are likely to make good food choices

Bhojana sthanam Beautiful place devoid of people Free from troubles Adore with sweet smelling flowers

Regimen of dining Wash mouth with water often, when tongue is clean taste of food will be greater

Bhojana paatra Ghritam krishna ayas , peya rajatham Phalam sarva bhashyam vidhalam etc ARRANGEMENT OF FOOD Soopam odanam infront of the diner Saarva bhashyam and phalam right side of the dinner Dravam paneeyam on the left side

First fruits to be taken - Then peya - Then bhojyam - Next bhashyan chitran Raw foods such as fruits and vegetables are assimilated better by the body so guru dravya at end of the meal - Aids proper and easy digestion - Intake Quality food - Avoid over nutrition आदौ फलानि भुञ्जीत दाडिमादीनि बुद्धिमान् || ततः पेयांस्ततो भोज्यान् भक्ष्यांश्चित्रांस्ततः परम् | घनं पूर्वं समश्नीयात्, केचिदाहुर्विपर्ययम् || ( सु.सू. 46/461-462)

Amalaka - Can be taken before, after or in between

Based on taste Madhura Amla, lavana Katu

Bhojana Uttara Karma Clean the teeth – to prevent haletosis To mitigate kapha – dhoomapana & thambool bhojana Sit like a king till fatigue of food is relieved Walk for a distance of 100 feet Lie on bed turning left side Indulge in sensory pleasures

Avoid immediately after food

Aahara parinamakara bhavas - Fate of ahara in the body - Parinama – aahara guna is converted into sareera guna - Similar to cooking

1.USHMA Ushma pachathi - Agni sannikarsha of ahara dravya in body similar to cooking ahara out side body Ushma : agni All enzymes aiding digestion can be correlated to agni

Vayu apakarshati

Kleda Shaitilyam aapadayathi Loosening of bonds in food enabling easier digestion Soaked green gram require less fuel action for processing In the body: shithilata is brought about by Water , Bile salts

Sithilata - action of water

Sithilata action of bile salts

Sneho mardavam janayathi Agni is teekshna and it produce soshana …this soshana if continued with out any balancing mechanism “ aharam agnim pachathi ….” Sneha can be correlated to that factor which promotes easy movement and also make the food tolerate the taikshnya of agni Mucus secretion from saliva,gastric glands intestine etc

Kala - Kaala paryaptho api nivarthayathi - Time taken for the digestion of food

Sama yoga - Astahara vishesa ayathanam

विरुद्ध आहार ( Viruddha Aahar ) भोजन 18  प्रकार से विरुद्ध हो सकता है: देश विरुद्ध:  सूखे या तीखे पदार्थों का सेवन सूखे स्थान पर करना अथवा दलदली जगह में चिकनाई -युक्त भोजन का सेवन करना ।

काल विरुद्ध : ठंड में सूखी और ठंडी वस्तुएँ खाना और गर्मी के दिनों में तीखी कषय भोजन का सेवन ।

अग्नि विरुद्ध: यदि जठराग्नि मध्यम हो और व्यक्ति गरिष्ठ भोजन खाए तो इसे अग्नि विरुद्ध आहार कहा जाता है ।

मात्रा विरुद्ध: यदि घी और शहद बराबर मात्रा में लिया जाए तो ये हानिकारक होता है । सात्मय विरुद्ध: नमकीन भोजन खाने की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य को मीठा रसीले पदार्थ खाने पड़ें ।

दोष विरुद्ध:  वो औषधि , भोजन का प्रयोग करना जो व्यक्ति के दोष के को बढ़ाने वाला हो और उनकी प्रकृति के विरुद्ध हो।

संस्कार विरुद्ध: कई प्रकार के भोजन को अनुचित ढंग से पकाया जाए तो वह विषमई बन जाता है. दही अथवा शहद को अगर गर्म कर लिया जाए तो ये पुष्टि दायक होने की जगह घातक विषैले बन जाते हैं।

कोष्ठ विरुद्ध: जिस व्यक्ति को कोष्ठबद्धता हो, यदि उसे हल्का, थोड़ी मात्रा में और कम मल बनाने वाला भोजन दिया जाए या इसके विपरीत शिथिल गुदा वाले व्यक्ति को अधिक गरिष्ठ और ज़्यादा मल बनाने वाला भोजन देना कोष्ठ-विरुद्ध आहार है। वीर्य विरुद्ध:  जिन चीज़ों की तासीर गर्म होती है उन्हें ठंडी तासीर की चीज़ों के साथ लेना।

अवस्था विरुद्ध:  थकावट के बाद वात बढ़ने वाला भोजन लेना अवस्था विरुद्ध आहार है। क्रम विरुद्ध : यदि व्यक्ति भोजन का सेवन पेट सॉफ होने से पहले करे अथवा जब उसे भूख ना लगी हो अथवा जब अत्यधिक भूख लगने से भूख मर गई हो।

परिहार विरुद्ध:  जो चीज़ें व्यक्ति को वैद्य के अनुसार नही खानी चाहिए, उन्हें खाना-जैसे कि जिन लोगों को दूध ना पचता हो, वे दूध से निर्मित पदार्थों का सेवन करें । उपचार विरुद्ध:  किसी विशिष्ट उपचार विधि में अपथ्य (ना खाने योग्य) का सेवन करना. जैसे घी खाने के बाद ठंडी चीज़ें खाना (स्नेहन क्रिया में लिया गया घृत) ।

पाक विरुद्ध:  यदि भोजन पकाने वाली अग्नि बहुत कम ईंधन से बनाई जाए जिस से खाना अधपका रह जाए अथवा या कहीं कहीं से जल जाए। संयोग विरुद्ध: दूध के साथ अम्लीय पदार्थों का सेवन।

हृदय विरुद्ध: जो भोजन रुचिकार ना लगे उसे खाना । समपद विरुद्ध: यदि अधिक विशुद्ध भोजन को खाया जाए तो यह समपाद विरुद्ध आहार है. इस प्रकार के भोजन से पौष्टिकता विलुप्त हो जाती है. शुद्धीकरण या रेफाइनिंग ( refined or matured foods) करने की प्रक्रिया में पोशाक गुण भी निकल जाते हैं ।

विधि विरुद्ध: सार्वजनिक स्थान पर बैठकर भोजन खाना |

विरुद्धाहार के कुछ उदाहरण दूध के साथ नमक वाले पदार्थ भी नही खाने चाहिए. गेहूँ को तिल तेल में पकाना. दही, शहद अथवा मदिरा के बाद गर्म पदार्थों का सेवन. केले के साथ दही या लस्सी लेना. ताम्र चूड़ामणि ( chicken) के साथ दही का सेवन. तांबे के बर्तन में घी रखना.

मूली के साथ गुड़ खाना. मछली के साथ गुड़ लेना. तिल के साथ कांजी का सेवन. शहद को कभी भी पकाना नही चाहिए.

चाय के बाद ठंडे पानी का सेवन करना. फल और सलाद के साथ दूध का सेवन करना. मछली के साथ दूध पीना. खाने के एकदम बाद चाय पीना (इससे शरीर में आइरन की कमी आ जाती है). उड़द की दाल के साथ दही या तुअर की दाल का सेवन करना. (दही-वड़े वास्तव में विरुद्धाहार हैं). सलाद का सेवन मुख्य भोजन के बाद करना. ऐसा करने से सलाद को पचाना शरीर के लिए मुश्किल हो जाता है और गॅस तथा एसिडिटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है

पादांशिक क्रम उचितादहिताद्धीमान् क्रमशो विरमेन्नरः| हितं क्रमेण सेवेत क्रमश्चात्रोपदिश्यते || प्रक्षेपापचये ताभ्यां क्रमः पादांशिको भवेत् | एकान्तरं ततश्चोर्ध्वं द्व्यन्तरं त्र्यन्तरं तथा || च.सू.7/36-37