Baba hospital and school of nursing Course. : ANM Year : Second year Subject. : midwifery Unit. : 24 Tutorial titile : infertility presented by: mrs Agnes mahima david Assistsnt professor baba hospital and school of nursing . . .
Learninf objective महिला बाँझपन क्या है? बांझपन (प्रजनन क्षमता में कमी) के कारण ? बांझपन (प्रजनन क्षमता में कमी) के लक्षण ? बांझपन (प्रजनन क्षमता में कमी) से बचाव ? बांझपन (प्रजनन क्षमता में कमी) की जांच ? बांझपन (प्रजनन क्षमता में कमी) का इलाज ?
प्रस्तावना किसी महिला के गर्भधारण करने में असक्षमता को, महिला बांझपन यानी फीमेल इनफर्टिलिटी कहा जाता है। यदि एक साल तक यौन संबंध के प्रयास के बाद भी किसी महिला के गर्भधारण होने में समस्या आ रही है, तो इसका मतलब है कि उस महिला में बांझपन ( Infertility Means in Hindi) की समस्या हो सकती है। गर्भधारण ना होने का कारण पुरुष बाँझपन भी हो सकता है।कुछ महिलाओं को शादी के बाद गर्भधारण होने में समस्या होती है और कुछ महिलों को एक बच्चे होने के बाद दूसरी बार गर्भधारण होने में मुश्किलें आती है।
परिभाषा महिला बाँझपन का अर्थ है कि महिलाओं में होने वाली बांझपन ( Infertility in Hindi) की समस्या। विश्व भर में इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे लोगों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। इनफर्टिलिटी की समस्या महिला और पुरुष दोनों को सामान रूप से प्रभावित करती है।
महिला बांझपन के कारण ओव्यूलेशन डिसऑर्डर : लगभग 15% महिलाएं ओवुलेशन विकारों के कारण बांझपन के साथ संघर्ष कर रही हैं। ओवुलेशन डिसऑर्डर में अंडे ओवरी से बहार नहीं निकल पाते हैं जिससे दम्पत्तिओं के लिए गर्भधारण करना असंभव हो जाता है एंडोक्राइन डिसऑर्डर : एंडोक्राइन डिसऑर्डर में शरीर की ग्रंथियां ( glands) सामान्य से ज़्यादा या कम हॉर्मोन का उत्पादन करने लगती है, और हॉर्मोन के असंतुलन के कारण से बांझपन की समस्या हो सकती है।
ट्यूबल ब्लॉकेज : यह महिला बांझपन के संभावित कारणों में से एक है। फैलोपियन ट्यूब गर्भधारण होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि यहाँ अंडे और शुक्राणु का निषेचन होता हैं। बंद यानि ब्लॉक फैलोपियन ट्यूब के कारण निषेचन की प्रक्रिया में बाधा आ जाती है। एंडोमेट्रियोसिस : एंडोमेट्रियोसिस के साथ लगभग एक तिहाई महिलाएं बांझपन की समस्या के साथ संघर्ष कर रही हैं। इस समस्या में एंडोमेट्रियल टिशू गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगते है, जिससे श्रोणि ( pelvic) अंगों को नुकसान होता है और एक महिला के गर्भधारण होने में बाधा उत्त्पन्न करते हैं।
उम्र : कम उम्र यानि 20 वर्ष की उम्र में महिलाओं की फर्टिलिटी अधिक होती है और 35 के बाद उनकी फर्टिलिटी कम होने लगती है। ऐसा इलसिए क्योंकि उम्र के बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों ही कम हो जाती हैं। तनाव : तनाव हमारे वजन व हॉर्मोन को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है, इसलिए तनाव के कारण भी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है। हार्मोनल असंतुलन : हॉर्मोनल असंतुलन के कारण थायराइड या पीसीओएस जैसी समस्या हो सकती है।
आधुनिक जीवनशैली : अधिक वजन या कम वजन का होना अस्वस्थ जीवनशैली का परिणाम है, जो एक महिला के मासिक चक्र को प्रभावित करता है और बांझपन का कारण बन सकता है। अन्य विकार : अन्य कई विकार भी हैं, जो एक महिला की फर्टिलिटी को प्रभावित कर सकते हैं जैसे यूटेराइन फाइब्रॉएड, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज, गर्भाशय का असामान्य आकार, पोलिप्स और संक्रमण यानि इन्फेक्शन। शराब या ड्रग का सेवन करना : अधिक मात्रा में शराब या ड्रग के सेवन करने से फर्टिलिटी कम हो सकती हैक्यूंकि इससे महिला के अंडों पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है।
पुरुषों में बांझपन के कारण 90 प्रतिशत से अधिक पुरुषों में बांझपन का कारण स्पर्म की खराब क्वालिटी और कम संख्या है। इसके अलावा किसी शारीरिक बीमारी, हार्मोंस में असंतुलन और अनुवांशिक विकार के कारण भी पुरुषों में इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है। सबसे पहले पुरुषों में इनफर्टिलिटी का संबंध प्यूबर्टी की उम्र के दौरान जननांगों के विकास और बनावट पर निर्भर करता है। पुरुषों में कम से कम एक टेस्टिकल ठीक तरह से कार्य करना चाहिए और शरीर टेस्टोस्टेरोन और अन्य हार्मोन बना पाने में समर्थ हो ताकि स्पर्म के उत्पादन को ट्रिगर और बनाए रखा जा सके।
वीर्य में पर्याप्त मात्रा में शुक्राणुओं का बनना जरूरी है। अगर वीर्य में स्पर्म काउंट कम होता है तो इससे महिला को गर्भधारण करने में कठिनाई आती है। वीर्य में स्पर्म काउंट का कम बनना पुरुषों में इनफर्टिलिटी का कारण है। स्पर्म क्रियाशील और एक जगह से दूसरी जगह पर जाने में समर्थ होने चाहिए। अगर स्पर्म का कार्य या मूवमेंट असामान्य होगी तो स्पर्म पार्टनर के अंडे तक पहुंच पाने में असमर्थ रहते हैं। स्पर्म के अक्रियाशील होने के कारण भी पुरुषों में बांझपन हो सकता है।
पुरुषों में वेरिकोसेल के कारण भी इनफर्टिलिटी हो सकती है। इसमें नसों में सूजन होने के कारण टेस्टिकल सूख जाते हैं। वेरिकोसेल के कारण इनफर्टिलिटी होने के स्पष्ट कारण का अब तक पता नहीं चल पाया है। वेरिकोसेल से स्पर्म की क्वालिटी पर भी खराब असर पड़ता है। कुछ इंफेक्शन स्पर्म के उत्पादन या स्पर्म की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इसकी वजह से घाव बन सकता है जोकि स्पर्म के रास्ते को बंद कर देता है। गोनोरिआ, एचआईवी या कोई यौन संक्रमित संक्रमण के कारण ऐसा हो सकता है। कुछ संक्रमण की वजह से तो टेस्टिकुली हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
एंटी-स्पर्म एंटी-बॉडीज़ को इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं माना जाता है। ये एंटी-बॉडीज़ गलती से स्पर्म को शरीर के लिए हानिकारक समझ लेती हैं और फिर उसे नष्ट करने का प्रयास करने लगती हैं। इस वजह से भी पुरुषों में बांझपन हो सकता है। कैंसर या घातक ट्यूमर भी पुरुषों के प्रजनन अंगों को सीधा नुकसान पहुंचा सकता है। प्रजनन से संबंधित हार्मोंस स्रावित करने वाली ग्रंथियों पर ट्यूमर या कैंसर का असर पड़ता है जिससे पुरुषों में इनफर्टिलिटी पैदा हो सकती है। कुछ मामलों में ट्यूमर का इलाज करने के लिए की गई सर्जरी, रेडिएशन या कीमोथेरेपी भी पुरुषों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है।
शरीर में कई ट्यूब्स होती है जो स्पर्म को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम करती हैं। कई कारणों जैसे कि सर्जरी से लगी चोट, संक्रमण की वजह से ये ट्यूब्स बंद हो सकती हैं जिस वजह से टेस्टिकल सूख जाते हैं। संभोग के लिए इरेक्शन ना हो पाने की स्थिति भी इनफर्टिलिटी का कारण बन सकती है। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, प्री-मैच्योर इजैकुलेशन, संभोग के दौरान दर्द होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ग्लूटन के प्रति संवेदनशील होने के कारण भी पुरुषों की प्रजनन क्षमता कम हो सकती है। अपने आहार में ग्लूटन की मात्रा को कम कर इस समस्या से बचा जा सकता है।
टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, लंबे समय तक एनाबोलिक स्टेरॉएड का इस्तेमाल, कैंसर की दवाएं, एंटी-फंगल दवाएं, अल्सर की कुछ दवाओं के कारण भी पुरुषों में फर्टिलिटी पॉवर घट सकती है।
महिलाओं में बांझपन के लक्षण महिला का गर्भधारण करने में असक्षम होना है। अगर किसी महिला की पीरियड साइकिल बहुत लम्बी यानि 35 दिन या इससे अधिक की है या फिर बहुत छोटी यानि 21 दिन से पहले की है, तो यह भी महिला बाँझपन का एक लक्षण हो सकता है। अनियमित पीरियड्स या पीरियड्स का ना आना। पीरियड्स के ना आने का मतलब होता है कि महिला के गर्भाशय ( uterus) में ओवुलेशन नहीं हो रहा है यानि महिला के अंडाशय ( ovary) से अंडे बहार निकलने में असक्षम हो जाते है। चेहरे पर अनचाहे बालों का आना या सिर के बालों का झड़ना।
पुरुषों में बांझपन के लक्षण पुरुषों में इनफर्टिलिटी का प्रमुख लक्षण उनकी महिला साथी का लंबे समय तक गर्भधारण ना कर पाना है। स्खलन होने में दिक्कत आना या स्खलन के दौरान फ्लूइड का कम मात्रा में निकलना, यौन इच्छा में कमी आना या इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या रहना पुरुषों में इनफर्टिलिटी के लक्षण हो सकते हैं। टेस्टिकल के आसपस वाले हिस्से में गांठ, दर्द या सूजन होना। बार-बार सांस से संबंधित संक्रमण होना। असामान्य रूप से छाती का बढ़ना (गाइनेकोमास्टिया) चेहरे और शरीर पर बालों का कम होना या क्रोमोसोमल या हार्मोनल असामान्य होना। सामान्य से कम स्पर्म काउंट होना (वीर्य के प्रति मिलीलीटर 15 मिलियन से कम शुक्राणु या प्रति शुक्राणु की संख्या 39 मिलियन से कम होनी
महिलाओं में बांझपन से बचाव बांझपन की समस्या से बचाव के लिएमहिलाओं को रोज़ाना संतुलित आहार लेना चाहिए। रोज़ व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने से मोटापा कम होता है, और फर्टिलिटी भी अच्छी होती है। धूम्रपान, शराब, तैलीय भोजन और कैफीन युक्त चीज़ो का सेवन ना करें।तनाव से दूर रहें। तनाव को दूर करने के लिए रोज़ योग व ध्यान कर सकते है।
पुरुषों में इनफर्टिलिटी से बचाव पुरुषों में होने वाली कई प्रकार की इनफर्टिलिटी को रोका नहीं जा सकता है। हालांकि, फिर भी कुछ चीज़ों से दूर रहकर पुरुष बांझपन की समस्या से बच सकते हैं। जैसे कि : धूम्रपान ना करें। शराब का सेवन कम या बिलकुल बंद कर दें। गैरकानूनी ड्रग्स का इस्तेमाल ना करें। वजन संतुलित रखें। नसबंदी ना करवाएं। टेस्टिकल्स पर लंबे समय तक हीट पैदा करने वाली चीज़ों से बचें। तनाव से दूर रहें। कीटनाशक, भारी धातु और अन्य विषाक्त चीज़ों से दूर रहें।
महिला बांझपन के इलाज महिला बाँझपन के लिए असिस्टेड रिप्रोडक्टिव की तकनीकें मौजूद हैं, जिनके प्रयोग से गर्भधारण किया जा सकता है।महिला बाँझपन का इलाज बाँझपन की गंभीरता और समयावधि पर निर्भर करता है। सबसे पहले महिला की बाँझपन की समस्या के कारण का निदान किया जाता है उसके बाद पहले उस समस्या पर नियंत्रण यानि ठीक करने का प्रयास किया जाता है जैसे इम्यूनोलॉजिकल समस्याएं, एंडोक्रिनोलॉजिकल डिसऑर्डर या हार्मोनल असंतुलन को नियंत्रण किया जाता है। जिसके लिए डॉक्टर कुछ दवाइयों की सलाह दे सकते है या फिर ट्रीटमेंट से पहले आनुवंशिक/ क्रोमोसोमल असामान्यता को दवाइयों द्वारा ठीक किया जाता है और फिर आई वी एफ की प्रक्रिया द्वारा गर्भधारण हो सकता है।
IVF - इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन, असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी ( ART) की एक तकनीक है। आई वी एफ की प्रक्रिया में महिला के अंडाशय से अंडे को निकालकर, उसे पुरुष के शुक्राणु के साथ लैब में फर्टिलाइज़्ड किया जाता है। फर्टिलाइज़्ड होने के बाद तैयार हुए भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
डोनर एग के साथ आई वी एफ - इसकी सलाह उन मामलों में दी जाती है जहाँ महिला के स्वस्थ अंडों की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। इस प्रक्रिया में एक महिला डोनर के अंडाशय (ओवरी) से अंडे प्राप्त किए जाते हैं। अंडे प्राप्त करने से पहले पूरी तरह से महिला डोनर की जांच की जाती है। और फिर महिला के पति के शुक्राणु के साथ अंडे को निषेचित (फर्टिलाइज़्ड) किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण को गर्भाशय (यूटेरस) में ट्रांसफर किया जाता है।
IUI - अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान यानि इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन उपचार एक सरल प्रक्रिया है, जिसमें शुक्राणु को लैब में साफ़ करने के बाद ओव्यूलेशन के समय महिला साथी के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। जिससे शुक्राणु के अंडे के साथ फर्टिलाइज़्ड होने की संभावना बढ़ जाती है। लेप्रोस्कोपी -इस प्रक्रिया में एक लेप्रोस्कोप (सर्जिकल उपकरण) का उपयोग किया जाता है, जिसमें कैमरा और लाइट होती है। लैप्रोस्कोपी का उपयोग एंडोमेट्रियोसिस के इलाज और गर्भाशय में सिस्ट को हटाने के लिए किया जाता है।
अगर कोई महिला लंबे समय से गर्भधारण नहीं कर पा रही है तो उसे डॉक्टर के निर्देश पर निम्न जांच करवानी चाहिए: ओव्यूलेशन टेस्ट: इसमें किट से घर पर ही ओव्यूलेशन परीक्षण कर सकती हैं। हार्मोनल टेस्ट: ल्युटनाइलिंग हार्मोन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन की जांच से भी बांझपन का पता लग सकता है। ल्युटनाइज़िंग हॉर्मोन का स्तर ओव्यूलेशन से पहले बढ़ता है जबकि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओव्यूलेशन के बाद उत्पादित हार्मोन होता है। इन दोनों हार्मोंस के टेस्ट से ये पता चलता है कि ओव्यूलेशन हो रहा है या नहीं। इसके अलावा प्रोलैक्टिन हार्मोन के स्तर की भी जांच की जाती है।
पुरुषों में बांझपन का इलाज पुरुषों में बांझपन को दूर करने के लिए कई इलाज पद्धतियां मौजूद हैं। बांझपन के मामलों में महिला पार्टनर की भी जांच की जानी जरूरी है। पुरुषों में इनफर्टिलिटी का इलाज करने के निम्न तरीके हैं : सर्जरी : वेरिकोसेले को सर्जरी से ठीक किया जा सकता है। स्खलन में शुक्राणु मौजूद ना होने पर स्पर्म रिट्रीवल तकनीकों के ज़रिए टेस्टिकल्स या एपिडिडाइमिस के ज़रिए सीधे शुक्राणु डाले जाते हैं। संक्रमण का इलाज : एंटी-बायोटिक इलाज से प्रजनन प्रणाली में हुए संक्रमण को ठीक किया जा सकत है लेकिन ये हर मामले में फर्टिलिटी पॉवर को दोबारा ला पाने में असमर्थ है। संभोग समस्याओं का इलाज : दवाओं और काउंसलिंग से फर्टिलिटी से संबंधित बीमारियां जैसे कि इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को ठीक किया जा सकता है।
संभोग समस्याओं का इलाज : दवाओं और काउंसलिंग से फर्टिलिटी से संबंधित बीमारियां जैसे कि इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को ठीक किया जा सकता है। हार्मोन ट्रीटमेंट और दवाएं : शरीर में किसी हार्मोन के कम या ज्यादा या उसके कार्य करने के तरीके में समस्या होने पर डॉक्टर आपको हार्मोन रिप्लेसमेंट या दवाएं लेने की सलाह दे सकते हैं। सहायक प्रजनन तकनीक : इसे एआरटी भी कहा जाता है। इसमें सामान्य वीर्यस्खलन, सर्जिकल निष्कर्षण या डोनर से शुक्राणु प्राप्त किए जाते हैं। इसके बाद स्पर्म को महिला यौन मार्ग में डाल दिया जाता है।
बांझपन (प्रजनन क्षमता में कमी) की जांच हिस्टेरोसल पिंगोग्राफी : ये एक एक्स-रे परीक्षण है। इससे गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और उनके आस-पास का हिस्सा देखा जा सकता है। एक्स-रे रिपोर्ट में गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब को लगी कोई चोट या असामान्यता को देखा जा सकता है। इसमें अंडे की फैलोपियन ट्यूब से गर्भाशय तक जाने की रूकावट भी देख सकते हैं। ओवेरियन रिज़र्व टेस्ट : ओव्यूलेशन के लिए उपलब्ध अंडे की गुणवत्ता और मात्रा को जांचने में मदद करता है। जिन महिलाओं में अंडे कम होने का जोखिम होता है, जैसे कि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, उनके लिए रक्त और इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
थायरॉयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच: इसके अलावा प्रजनन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले ओव्यूलेटरी हॉर्मोन के स्तर के साथ-साथ थायरॉयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच भी की जाती है। इमेजिंग टेस्ट : इसमें पेल्विक अल्ट्रासाउंड होता है जोकि गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में हुए किसी रोग की जांच करने के लिए किया जा सकता है।
पुरुषों में बांझपन की जांच पुरुषों में बांझपन की जांचइनफर्टिलिटी से ग्रस्त पुरुषों में इसके एक से ज्यादा कारण हो सकते हैं इसलिए महिला और पुरुष दोनों को ही फर्टिलिटी जांच करवानी चाहिए। बांझपन का पता लगाने के लिए कई टेस्ट होते हैं जिनमें निम्न टेस्ट शामिल हैं : सामान्य शारीरिक परीक्षण या कोई पुरानी बीमारी: इस टेस्ट के अंतर्गत डॉक्टर आपके जननांगों की जांच करते हैं और प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक जैसे कि किसी अनुवांशिक स्थिति, पुराने रोग, बीमारियों, चोट या सर्जरी के बारे में पूछते हैं। डॉक्टर आपसे प्यूबर्टी उम्र के दौरान आपकी यौन आदतों और यौन विकास के बारे में भी पूछ सकतें हैं।
वीर्य की जांच: पुरुषों के वीर्य का सैंपल लिया जाता है। पुरुष हस्तमैथुन या डॉक्टर के क्लीनिक में एक कंटेनर में इजैकुलेशन द्वारा वीर्य का सैंपल दे सकते हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता की वजह से कुछ पुरुष सीमन कलेक्शन के अन्य तरीके को अहमियत देते हैं। कुछ मामलों में संभोग के दौरान विशेष प्रकार के कंडोम द्वारा वीर्य का सैंपल लिया जाता है। इसके बाद शुक्राणुओं की संख्या की जांच करने के लिए वीर्य को लैब भेजा जाता है और उसके आकर और मूवमेंट की असामान्यता का पता लगाया जाता है। इसके अलावा वीर्य में संक्रमण आदि की भी जांच की जाती है। अगर पुरुषों का वीर्य का स्तर सामान्य आता है तो किसी और टेस्ट से पहले डॉक्टर उनकी महिला पार्टनर का फर्टिलिटी टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं
इसके अलावा इनफर्टिलिटी का पता लगाने के लिए डॉक्टर आपको कई और टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं जिनमें निम्न जांच शामिल हैं स्क्रोटल अल्ट्रासाउंड : इस जांच से डॉक्टर को अंडकोष और सहायक संरचनाओं में अवरोधों या अन्य समस्याओं के बारे में पता चलता है। इससे टेस्टिकल्स के अंदर या सहायक संरचना में किसी दिक्कत का पता चल पाता है।
हार्मोंस की जांच : पिट्यूट्री ग्लैंड, हाइपो-थैलेमस द्वारा हार्मोंस का उत्पादइन किया जाता है और यौन विकास और शुक्राणुओं के उत्पादन में टेस्टिकल्स अहम भूमिका निभाते हैं। अन्य हार्मोनल या अंग की कार्यप्रणाली में असामान्यता होने पर भी इनफर्टिलिटी हो सकती है। टेस्टेस्टेरोन और अन्य हार्मोंस के स्तर को मापने के लिए ब्लड टेस्ट करवाया जाता है। पोस्ट ईजैक्यूलैशन यूरीनालिसिस : मूत्र में उपस्थित शुक्राणुओं से ये पता लगाया जा सकता है कि शुक्राणु इजैकुलेशन के दौरान लिंग से बाहर निकलने की बजाय मूत्राशय में वापिस जा रहे हैं।
पोस्ट ईजैक्यूलैशन यूरीनालिसिस : मूत्र में उपस्थित शुक्राणुओं से ये पता लगाया जा सकता है कि शुक्राणु इजैकुलेशन के दौरान लिंग से बाहर निकलने की बजाय मूत्राशय में वापिस जा रहे हैं। आनुवंशिक टेस्ट : किसी अनुवांशिक कारण की वजह से भी स्पर्म की संख्या कम हो सकती है। ब्लड टेस्ट द्वारा पता लगाया जा सकता है कि किस आनुवांशिक कारण की वजह से पुरुष में इनफर्टिलिटी हो रही है। कई जन्मजात या आनुवांशिक सिंड्रोम का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्ट करवाया जाता है।
टेस्टिकुलर बायोप्सी : इस जांच में सुईं की मदद से टेस्टिकल से सैंपल लिए जाते हैं। अगर टेस्टिकुलर बायोप्सी में स्पर्म का उत्पादन सामान्य रहा तो इसका मतलब है कि पुरुष में इनफर्टिलिटी कारण ब्लॉकेज या स्पर्म के स्थानांतरण से संबंधित कोई अन्य समस्या है।
परामर्श -नियमित रूप से बिना किसी गर्भधारक दवाइयों के उपयोग के बाद भी यदि एक वर्ष में गर्भधारण नहीं हो पता है तो चिकित्सक के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है ! जैसे--स्खलन होता हो -बहुत कम सेक्स इच्छा होना-यौन क्रिया के दौरान समस्याएं- अंडकोष क्षेत्र में सूजन- टेस्टीक्यूलर [वृषण क्षेत्र] में दर्द या असुविधा- प्रोस्टेट संबंधी समस्या- बड़ी सर्जरी होना -लिंग, वृषण या अंडकोष की सर्जरी