Madhumakkhi Palan

DrIPSharma 3,626 views 23 slides Dec 30, 2021
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आज कल मधुमक्खी पालन ने कम लगत वाला कुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण भूमिहीन बेरोजगार किसानो के लिए आमदनी �...


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मधुमक्खी पालन की जानकारी डॉ. ईश्वर प्रकाश शर्मा (वैज्ञानिक) पतंजलि अनुसंधान संस्थान , हरिद्वार, उत्तराखंड

मधुमक्खी पालन कृषि क्रियाएं लघु व्यवसाय बड़े व्यवसाय कृषि और बगवानी कृषि योग्य भूमि कृषि का विकास अन्य व्यसाय मधुमक्खी पालन मानव जाती को लाभान्वित कर रहा है कम खर्चीला घरेलु उद्योग है। जिसमे आय, रोजगार व वातावरण शुद्ध रखने की क्षमता है। कृषि व बागवानी उत्पादन बढ़ाने की क्षमता भी रखता है।

मधुमक्खी पालन मोन समुदाय में रहने वाली कीटों वर्ग; अनुकूल कृत्रिम ग्रह (हाईव); शहद एवं मोम अन्य पदार्थ, जैसे गोंद (प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष) फसलो की उपज में लगभग एक चैथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी हो जाती है

मधुमक्खी पालन आज कल मधुमक्खी पालन ने कम लगत वाला कुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण भूमिहीन बेरोजगार किसानो के लिए आमदनी का एक साधन बन गया है मधुमक्खी पालन से जुड़े कार्य जैसे बढईगिरी, लोहारगीरी एवं शहद विपणन में भी रोजगार का अवसर मिलता है । लाभ: रोजगार और आय के साधन हेतु यह सरल और सस्ता उद्योग है कृषि , उद्यानिकी एवं वानिकी फसलों में गुणवत्ता व उपज बढाने हेतु पर्यावरण सुरक्षा एवं पारिस्थितिकी विकास हेतु

मधुमक्खी परिवार एक परिवार में एक रानी कई हजार कमेरी तथा 100-200 नर होते है।

मधुमक्खी परिवार रानी :  यह पूर्ण विकसित मादा होती है एवं परिवार की जननी होती है। रानी मधुमक्खी का कार्य अंडे देना है अछे पोषण वातावरण में एक इटैलियन जाती की रानी एक दिन में १५००-१८०० अंडे देती है। तथा देशी मक्खी करीब ७००-१००० अंडे देती है। इसकी उम्र औसतन २-३ वर्ष होती है। कमेरी/श्रमिक :  यह अपूर्ण मादा होती है और मौनगृह के सभी कार्य जैसे अण्डों बच्चों का पालन पोषण करना, फलों तथा पानी के स्त्रोतों का पता लगाना, पराग एवं रस एकत्र करना, परिवार तथा छतो की देखभाल, शत्रुओं से रक्षा करना इत्यादि इसकी उम्र लगभग २-३ महीने होती है। नर मधुमक्खी / निखट्टू :  यह रानी से छोटी एवं कमेरी से बड़ी होती है। रानी मधुमक्खी के साथ सम्भोग के सिवा यह कोई कार्य नही करती सम्भोग के तुरंत बाद इनकी मृत्यु हो जाती है और इनकी औसत आयु करीब ६० दिन की होती है।

मधुमक्खियों की किस्मे छोटी मधुमक्खी ( एपिस फ्लोरिया )

मधुमक्खियों की किस्मे भैंरो या पहाड़ी मधुमक्खी ( एपिस डोरसाटा )

मधुमक्खियों की किस्मे देशी मधुमक्खी ( एपिस सिराना इंडिका )

मधुमक्खियों की किस्मे इटैलियन या यूरोपियन मधुमक्खी ( एपिस मेलिफेरा )

मधुमक्खियों की किस्मे देशी मधुमक्खी ( एपिस सिराना इंडिका ) प्रतिवर्ष औसतन 5-10 किलोग्राम इटैलियन या यूरोपियन मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा ) प्रतिवर्ष औसतन 50 किलोग्राम

मधुमक्खियों की किस्मे देशी मधुमक्खी ( एपिस सिराना इंडिका ) प्रतिवर्ष औसतन 5-10 किलोग्राम इटैलियन या यूरोपियन मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा ) प्रतिवर्ष औसतन 50 किलोग्राम

मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव एवं प्रबंधन मधुमक्खी परिवारों की सामान्य गतिविधियाँ 10-38 सेंटीग्रेट की बीच में होती है उचित प्रबंध द्वारा प्रतिकूल परिस्तिथियों में इनका बचाव आवश्यक हैं उतम रखरखाव से परिवार शक्तिशाली एवं क्रियाशील बनाये रखे जा सकते है मधुमक्खी परिवार को विभिन्न प्रकार के रोगों एवं शत्रुओं का प्रकोप समय समय पर होता रहता है। जिनका निदान उचित प्रबंधन द्वारा किया जा सकता है इन स्तिथियों को ध्यान में रखते हुए निम्न प्रकार वार्षिक प्रबंधन करना चाहिये। शरदऋतु में मधुवाटिका का प्रबंधन बसंत ऋतु में मौन प्रबंधन ग्रीष्म ऋतु में मौन प्रबंधन वर्षा ऋतु में मौन प्रबंधन

मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव एवं प्रबंधन शरदऋतु में मधुवाटिका का प्रबंधन टाट की बोरी का दो तह बनाकर आंतरिक ढक्कन के नीचे बिछा देना चाहिए गेहूं के भूंसे या धान के पुवाल से अच्छी तरह मौन गृह को ढक देना चाहिए घास फूस या पुवाल का छापर टाट बना कर बक्सों को ढक देना चाहिए इस समय मौन गृहों को सूखे और धुप वाले स्थान में रखना चाहिए बाहरी संसाधन कम होने पर 50-50 के अनुपात में चीनी और पानी का घोल बनाकर उबालकर ठंडा होने के पश्चात मौन गृहों के अंदर रख देना चाहिये मौन गृहों की मरम्मत अक्टूबर नवम्बर तक अवश्य करा लेना चाहिए ज्यादा ठंढ होने पर मौन गृहों को नही खोलना चाहिए

मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव एवं प्रबंधन 2 . बसंत ऋतु में मौन प्रबंधन बसंत ऋतु सबसे अच्छी मानी जाती है मौन गृहों को खाली कर अच्छी तरह से सफाई कर लेना चाहिए मौन गृहों पर बहार से सफेद पेंट लगा देना चाहिए

मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव एवं प्रबंधन 3. ग्रीष्म ऋतु में मौन प्रबंधन मौन गृहों को किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए, लेकिन सुबह की सूर्य की रौशनी मौन गृहों पर पड़नी आवश्यक है जिससे मधुमक्खियाँ सुबह से ही सक्रीय होकर अपना कार्य करना प्रारम्भ कर सके पानी को उचित व्यवस्था मधुवातिका के आस पास होना चाहिये लू से बचने के लिए छ्प्पर का प्रयोग करना चाहिये बाहरी संसाधन कम होने पर 50-50 के अनुपात में चीनी और पानी का घोल बनाकर उबालकर ठंडा होने के पश्चात मौन गृहों के अंदर रख देना चाहिये

मधुमक्खी परिवार का उचित रखरखाव एवं प्रबंधन 4. वर्षा ऋतु में मौन प्रबंधन वर्षा ऋतु में तेज वर्षा, हवा और शत्रुओं जैसे चींटियाँ, मोमी पतंगा, पक्षियों का प्रकोप होता है मोमी पतंगों के प्रकोप को रोकने के लिए छतो को हटा दे फ्लोर बोड को साफ करे तथा गंधक पाउडर छिडके चींटीयों की रोकथाम के लिए स्टैंड को पानी भरा बर्तन में रखे मोमी पतंगों से प्रभावित छत्ते, पुराने काले छत्ते एवं फफूंद लगे छत्तों को निकल कर अलग कर देना चाहिए।

मधुमक्खी परिवारों का विभाजन एवं जोड़ना

मधुमक्खियों के भोजन स्त्रोत जनवरी :  सरसों, तोरियाँ, कुसुम, चना, मटर, राजमा, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस इत्यादि। फरवरी :  सरसों, तोरियाँ, कुसुम, चना ,मटर, राजमा, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस, प्याज, धनिया, शीशम इत्यादि। मार्च :  कुसुम, सूर्यमुखी, अलसी, बरसीम, अरहर, मेथी, मटर, भिन्डी, धनियाँ, आंवला, निम्बू, जंगली जलेबी, शीशम, यूकेलिप्टस, नीम इत्यादि। अप्रैल :  सूरजमुखी, बरसीम, अरण्डी, रामतिल, भिन्डी, मिर्च, सेम, तरबूज, खरबूज, करेला, लोकी, जामुन, नीम, अमलतास इत्यादि। मई :  तिल, मक्का, सूरजमुखी, बरसीम,  तरबूज, खरबूज, खीरा, करेला, लोकी, इमली, कद्दू, करंज, अर्जुन, अमलतास इत्यादि। जून :  तिल, मक्का, सूरजमुखी, बरसीम,  तरबूज, खरबूज, खीरा, करेला, लोकी, इमली, कद्दू, बबुल, अर्जुन, अमलतास इत्यादि। जुलाई :  ज्वार, मक्का, बाजरा, करेला,खीरा , लोकी, भिन्डी, पपीता इत्यादि। अगस्त:  ज्वार, मक्का, सियाबिन, मुंग, धान, टमाटर, बबुल, आंवला, कचनार, खीरा , भिन्डी, पपीता इत्यादि। सितम्बर:  बाजारा, सनई, अरहर, सोयाबीन, मुंग, धान, रामतिल, टमाटर, बरबटी, भिन्डी, कचनार, बेर इत्यादि। अक्टूबर:  सनई, अरहर, धान, अरण्डी, रामतिल, यूकेलिप्टस, कचनार, बेर, बबूल इत्यादि। नवम्बर :  सरसों, तोरियां, मटर, अमरुद, शह्जन, बेर, यूकेलिप्टस, बोटलब्रश इत्यादि। दिसम्बर;  सरसों, तोरियाँ, राइ, चना, मटर, यूकेलिप्टस, अमरुद इत्यादि।
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