जनम
और
पिरवार
महादेवी का जनम २६ माचा, १९०७ को पातः ८
बजे फराखाबाद उतर पदेश, भारत मे ह
ुआ। उनके पिरवार
मे लगभग २०० वषो या सात पीिियो के बाद पहली
बार पुती का जनम ह
ुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके
िवहारी जी हष ा से झूम उठे और इनहे घर की देवी —
महादेवी मानते ह
ुए पुती का नाम महादेवी रखा। उनके
िपता शी गोिवंद पसाद वमा ा भागलपुर के एक कॉलेज मे
पाधयापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था।
हेमरानी देवी बडी धम ा परायण, कमिा नष, भावुक एवं
शाकाहारी मिहला थीं। िववाह के समय अपने साथ
िसंहासनासीन भगवान की मिू त ा भी लायी थीं वे
पितिदन कई घंटे पूजा-पाठ
तथा रामायण, गीता एवं िवनय पितका का पारायण
करती थीं और संगीत मे भी उनकी अतयिधक रिच थी।
इसके िबलकु ल िवपरीत उनके िपता गोिवनद पसाद वमा ा
सनु दर, िवदान, संगीत पेमी, नािितक, िशकार करने एवं
घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमखु वयिि थे।
महादेवी वमा ा के मानस बंधुओं मे सिु मतानंदन
पंत एवं िनराला का नाम िलया जा सकता है, जो उनसे
जीवन पयना त राखी बँधवाते रहे। िनराला जी से उनकी
अतयिधक िनकटता थी, उनकी पुष कलाइयो मे महादेवी
जी लगभग चालीस वषो तक राखी बाँधती रहीं ।
िशका
महादेवी जी की िशका इंदौर मे िमशन िकू ल से पारमभ ह
ुई
साथ ही संिकृत, अंगेजी, संगीत तथा िचतकला की िशका
अधयापको दारा घर पर ही दी जाती रही। बीच मे िववाह जैसी
बाधा पड जाने के कारण कु छ िदन िशका िथिगत रही।
िववाहोपरानत महादेवी जी ने १९१९ मे कािथवेट
कॉलेज इलाहाबाद मे पवेश िलया और कॉलेज के छातावास मे
रहने लगीं। १९२१ मे महादेवी जी ने आठवीं कका मे पानत भर
मे पथम िथान पाप िकया। यहीं पर उनहोने अपने कावय
जीवन की शुरआत की। वे सात वष ा की अविथा से ही किवता
िलखने लगी थीं और १९२५ तक जब उनहोने मिै िक की परीका
उतीण ा की, वे एक सफल कवियती के रप मे पिसद हो चुकी
थीं। िविभनन पत-पितकाओं मे आपकी किवताओं का पकाशन
होने लगा था। कालेज मे सभु दा कु मारी चौहान के साथ उनकी
घिनष िमतता हो गई। सभु दा कु मारी चौहान महादेवी जी का
हाथ पकड कर सिखयो के बीच मे ले जाती और कहतीं
―
सनु ो
“
, ये किवता भी िलखती है । १९३२ मे जब
”
उनहोने इलाहाबाद िवशिवदालय से संिकृत मे एम.ए. पास िकया
तब तक उनके दो किवता संगह नीहार तथा रििम पकािशत हो
चुके थे ।
वैवािह
क
जीवन
सन
्१९१६ मे उनके बाबा शी बाँके िवहारी ने इनका
िववाह बरेली के पास नबाव गंज किबे के िनवासी शी िवरप
नारायण वमा ा से कर िदया, जो उस समय दसवीं कका के
िवदाथी थे। शी वमा ा इणटर करके लखनऊ मेििकल कॉलेज मे
बोिििग हाउस मे रहने लगे। महादेवी जी उस समय कािथवेट
कॉलेज इलाहाबाद के छातावास मे थीं। शीमती महादेवी वमा ा
को िववािहत जीवन से िवरिि थी। कारण कु छ भी रहा हो पर
शी िवरप नारायण वमा ा से कोई वैमनिय नहीं था। सामानय
सी-पुरष के रप मे उनके समबंध मधुर ही रहे। दोनो मे कभी-
कभी पताचार भी होता था। यदा-कदा शी वमा ा इलाहाबाद मे
उनसे िमलने भी आते थे। शी वमा ा ने महादेवी जी के कहने
पर भी दस
ूरा िववाह नहीं िकया। महादेवी जी का जीवन तो
एक संनयािसनी का जीवन था ही। उनहोने जीवन भर शेत वस
पहना, तखत पर सोई और कभी शीशा नहीं देखा। १९६६ मे
पित की मतृ यु के बाद वे िथाई रप से इलाहाबाद मे रहने
लगीं।
कायाकेत
महादेवी का कायका ेत लेखन, संपादन और अधयापन रहा। उनहोने इलाहाबाद मे पयाग
मिहला िवदापीठ के िवकास मे महतवपूण ा योगदान िकया। यह काय ा अपने समय मे
मिहला-िशका के केत मे कांितकारी कदम था। इसकी वे पधानाचाय ा एवं कु लपित भी
रहीं। १९३२ मे उनहोने मिहलाओं की पमखु पितका ‘चाँद’ का कायभा ार संभाला। १९३०
मे नीहार, १९३२ मे रििम, १९३४ मे नीरजा, तथा १९३६ मे सांधयगीत नामक उनके चार
किवता संगह पकािशत ह
ुए। १९३९ मे इन चारो कावय संगहो को उनकी कलाकृितयो के
साथ वहृ दाकार मे यामा शीषका से पकािशत िकया गया।
उनहोने गद, कावय, िशका और िचतकला सभी केतो मे नए आयाम िथािपत िकये।
इसके अितिरि उनकी 18 कावय और गद कृितयां है िजनमे मेरा पिरवार, िमिृत की
रेखाएं, पथ के साथी, शंखृ ला की किडयाँ और अतीत के चलिचत पमखु है। सन १९५५
मे महादेवी जी ने इलाहाबाद मे सािहतयकार संसद की िथापना की और पं इलाचंद
जोशी के सहयोग से सािहतयकार का संपादन संभाला। यह इस संिथा का मखु पत था।
उनहोने भारत मे मिहला किव सममेलनो की नीव रखी। इस पकार का पहला अिखल
भारतवषीय किव सममेलन १५ अपैल १९३३ को सभु दा कु मारी चौहानकी अधयकता मे
पयाग मिहला िवदापीठ मे संपनन ह
ुआ। वे िहंदी सािहतय मे रहियाद की पवितका ा भी
मानी जाती है।
[
पमुख
कृितयाँ
मखु य लेख : महादेवी का रचना संसार
महादेवी जी कवियती होने के साथ-साथ िविशष
गदकार भी थीं। उनकी कृितयाँ इस पकार है।
किवत
ाा
संगह
१. नीहार (१९३०)
२. रििम (१९३२)
३. नीरजा (१९३४)
४. सांधयगीत (१९३६)
५. दीपिशखा (१९४२)
६. सपपणा ा(अनूिदत-१९५९)
७. पथम आयाम (१९७४)
८. अििनरेखा (१९९०)
शीमती महादेवी वमा ा के अनय अनेक कावय संकलन भी पकािशत है, िजनमे
उपयुिा रचनाओं मे से चुने ह
ुए गीत संकिलत िकये गये है
,
जैसे आितमका, पिरकमा, सिनधनी (१९६५), यामा (१९३६), गीतपवा, दीपगीत, िमार
िाका, नीलांबरा और आधुिनक किव महादेवी आिद।
महादेवी वमाा का गद सािहतय
•रेखािचत: अतीत के चलिचत (१९४१) और िमिृ त की रेखाएं (१९४३)
•संिमरण: पथ के साथी (१९५६) और मेरा पिरवार (१९७२ और संिमरण (१९८३)
•चुने ह
ुए भाषणो का संकलन
: संभाषण (१९७४)
•िनबंध: शंखृ ला की किडयाँ (१९४२), िववेचनातमक गद (१९४२), सािहतयकार की आिथा तथा
अनय िनबंध (१९६२), संकिलपता (१९६९)
•लिलत िनबंध: कणदा (१९५६)
•कहािनयाँ: िगललू
•संिमरण, रेखािचत और िनबंधो का संगह: िहमालय (१९६३),
अनय िनबंध मे संकिलपता तथा िविवध संकलनो मे िमािरका, िमिृ त िचत, संभाषण, संचयन,
दिषबोध उललेखनीय है। वे अपने समय की लोकिपय पितका ‘चाँद’ तथा ‘सािहतयकार’
मािसक की भी संपादक रहीं। िहनदी के पचार-पसार के िलए उनहोने पयाग मे ‘सािहतयकार
संसद’ और रंगवाणी नाटय संिथा की भी िथापना की।
महादेवी वमाा का बाल सािहतय
महादेवी वमा ा की बाल किवताओं के दो संकलन छपे है।
ठाकु रजी भोले है
आज खरीदेगे हम जवाला
पुरिकार व सममान
•उनहे पशासिनक, अधपा शासिनक और वयििगत सभी संिथाओँ
से पुरिकार व सममान िमले।
•१९४३ मे उनहे ‘मंगलापसाद पािरतोिषक’ एवं ‘भारत भारती’
पुरिकार से सममािनत िकया गया। िवाधीनता पािप के बाद
१९५२ मे वे उतर पदेश िवधान पिरषद की सदिया मनोनीत
की गयीं। १९५६ मे भारत सरकार ने उनकी सािहितयक सेवा
के िलये ‘पद भषू ण’ की उपािध दी। १९७९ मे सािहतय
अकादमी की सदियता गहण करने वाली वे पहली मिहला
थीं। 1988 मे उनहे मरणोपरांत भारत सरकार की पद
िवभषू ण उपािध से सममािनत िकया गया।
•सन १९६९ मे िवकम िवशिवदालय, १९७७ मे कु माऊं
िवशिवदालय, नैनीताल, १९८० मे िदलली िवशिवदालय तथा
१९८४ मे बनारस िहंद
ूिवशिवदालय
, वाराणसी ने उनहे िी.िलट
की उपािध से सममािनत िकया।
•इससे पूव ा महादेवी वमा ा को ‘नीरजा’ के िलये १९३४ मे
‘सकसेिरया पुरिकार’, १९४२ मे ‘िमिृ त की रेखाएँ’ के िलये
‘िदवेदी पदक’ पाप ह
ुए। ‘यामा’ नामक कावय संकलन के िलये
उनहे भारत का सवोचच सािहितयक सममान ‘जानपीठ
पुरिकार’ पाप ह
ुआ। वे भारत की ५० सबसे यशिवी मिहलाओं
मे भी शािमल है।
महादेवी वमा ा का योगदान
सािहतय मे महादेवी वमा ा का आिवभावा उस समय ह
ुआ जब खडी बोली का आकार
पिरषकृत हो रहा था। उनहोने िहनदी किवता को बजृ भाषा की कोमलता दी, छंदो के
नए दौर को गीतो का भंिार िदया और भारतीय दशना को वेदना की हािदाक िवीकृित
दी। इस पकार उनहोने भाषा सािहतय और दशना तीनो केतो मे ऐसा महतवपूण ा काम
िकया िजसने आनेवाली एक पूरी पीढी को पभािवत िकया। शचीरानी गुट
ूा ने भी
उनकी किवता को ससु िजजत भाषा का अनुपम उदाहरण माना है। उनहोने अपने गीतो
की रचना शैली और भाषा मे अनोखी लय और सरलता भरी है, साथ ही पतीको और
िबंबो का ऐसा संदु र और िवाभािवक पयोग िकया है जो पाठक के मन मे िचत सा
खींच देता है। छायावादी कावय की समिृ द मे उनका योगदान अतयंत महतवपूण ा है।
छायावादी कावय को जहाँ पसाद ने पकृितततव िदया, िनराला ने उसमे मिु छंद की
अवतारणा की और पंत ने उसे सकु ोमल कला पदान की वहाँ छायावाद के कलेवर मे
पाण-पितषा करने का गौरव महादेवी जी को ही पाप है। भावातमकता एवं अनुभिू त
की गहनता उनके कावय की सवािा धक पमखु िवशेषता है। हदय की सकू माितसकू म
भाव-िहलोरो का ऐसा सजीव और मतू ा अिभवयंजन ही छायावादी किवयो मे उनहे
‘महादेवी’ बनाता है। वे िहनदी बोलने वालो मे अपने भाषणो के िलए सममान के
साथ याद की जाती है। उनके भाषण जन सामानय के पित संवेदना और सचचाई के
पित दिता से पिरपूण ा होते थे। वे िदलली मे १९८६ मे आयोिजत तीसरे िवश िहंदी
सममेलन के समापन समारोह की मखु य अितिथ थीं। इस अवसर पर िदए गए उनके
भाषण मे उनके इस गुण को देखा जा सकता है।