Medicinal Plants ki Kheti

DrIPSharma 1,962 views 78 slides Dec 30, 2021
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औषधीय पादप हमारे देश की स्वास्थ्य परिचर्या परम्पराओं का मुख्य संसाधन आधार हैं।
व्यापार में 90% से अधिक प्रजातियां �...


Slide Content

औषधीय पादपों की खेती डॉ. ईश्वर प्रकाश शर्मा (वैज्ञानिक) पतंजलि अनुसंधान संस्थान, हरिद्वार, उत्तराखंड

औषधीय पादप औषधीय पादप हमारे देश की स्वास्थ्य परिचर्या परम्पराओं का मुख्य संसाधन आधार हैं । व्यापार में 90% से अधिक प्रजातियां आज भी वनों से प्राप्त होती हैं। औषधीय पादपों और जड़ी-बूटीयों का भारतीय निर्यात अधिकांशतः कच्ची जड़ी-बूटियों और अकों के रूप में होता है जो इस समय की जड़ी-बूटियों/आयुष उत्पादों के निर्यात का लगभग 60-70% है । आयुष के 95% से अधिक उत्पाद पादप आधारित होने के कारण इसकी कच्ची सामग्री के स्रोत को वनों से परिवर्तित कर कृषि आधारित करने की जरूरत है ताकि यह लम्बे समय तक चलता रहे । बाजार में आने वाली दवाइयां भारी धातुओं तथा अन्य विषैली अशुद्धियों से युक्त होती हैं जिनकी पूर्ति औषधीय पादपों से हो सकती है। यह केवल कृषि मार्ग के माध्यम से ही संभव है। भारत का विश्व हर्बल व्यापार में लगभग 17 % भाग है । 120 बिलियन अमरीकी डालर के हर्बल बाजार को देखते हुये इसे बदलने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड का उद्देश्य भारत सरकार द्वारा नवंबर 2000 में एनएमपीबी की स्थापना की गई। कार्य- औषधीय पौधों की पहचान, सूचीबद्ध करना तथा उनकी गणना करना । औषधीय पौधों के बाहय स्थलीय एवं अंत-स्थलीय कृषि एवं संरक्षण को प्रोत्साहित करना । कृषि एवं गुणवत्ता नियंत्रण के लिए संलेखों का विकास। औषधीय पौधों, समर्थन नीतियों और व्यापार, निर्यात, संरक्षण और खेती के विकास से संबंधित सभी कार्यक्रमों का समन्वयन करना। विभिन्न आयुर्वेदिक चिकित्सा, अनुसंधान और विकास, लागत प्रभावी खेती, उचित कटाई के बारे में विवरण उपलब्ध कराना। अनुसंधान गतिविधियों, शोध पत्र, आदेश, स्वीकृत परियोजनाओं पर संसदीय प्रश्नों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

कृषि

औषधीय पादपों की सहायक कृषि दसवीं पंचवर्षीय योजना में अनुदान सहायता से कृषि समर्थन का कार्यक्रम कार्यान्वित किया गया है। वन कच्चा माल उपलब्धता सस्ती दर

औषधीय पादपों की सहायक कृषि दसवीं पंचवर्षीय योजना में अनुदान सहायता से कृषि समर्थन का कार्यक्रम कार्यान्वित किया गया है। वन वनों की हानि

औषधीय खेती ( Medicinal Farming ) से होने वाले लाभ औषधीय खेती में लागत अन्य फसलों की तुलना में कम आती है । औषधीय खेती में प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान का खतरा कम होता है । जंगली जानवर इन फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है । जड़ी-बूटियों की खेती किसानों की आय का बड़ा स्रोत बन सकती है । औषधीय खेती को प्रोत्साहित करने से दवाओं की उपलब्धता के मामले में देश भी आत्मनिर्भर होगा। औषधीय पादपों की सहायक कृषि

कोरोना संक्रमण के दौर में औषधीय खेती से हुआ किसानों को लाभ कोरोना महामारी के दौर में लोगों ने अपनी इम्यूनिटी स्ट्रांग करने को आयुर्वेदिक दवाइयों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया गया । इसके चलते बाजार में मांग बढऩे से औषधीय फसलें कर रहे किसानों के मुनाफे में इजाफ हुआ । यूपी के सहारनपुर में करीब 95 हेक्टेयर क्षेत्रफल में औषधीय फसलों तुलसी, सतावर, घृत कुमारी (एलोविरा), रूसा (कारडस मेरिनक मिल्क थिसिल), राखी बेल (पेसी फ्लोरा), अल्फा-अल्फा (लुरसन) आदि की खेती की जा रही है। कोरोना काल में औषधीय खेती करने वाले किसानों ने अच्छा खासा मुनाफा कमाया है। औषधीय पादपों की सहायक कृषि

औषधीय पौधों की पहचान जीवन काल मिट्टी क्रय-विक्रय बीज सरकारी अनुदान वैज्ञानिक विधि औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

औषधीय पौधों की पहचान औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

जीवन काल औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

मिट्टी चिकनी मिट्टी रेत भरी मिट्टी सिल्की मिट्टी पीट मिट्टी चटकीली मिट्टी दोमट मिट्टी औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

क्रय-विक्रय "ई-चरक"- यह एप्प जड़ी बूटी, सुगंधित, कच्चे माल और उसकी जानकारी, औषधीय पौधों के क्षेत्र में शामिल विभिन्न हितधारकों के बीच जानकारी का आदान प्रदान करने का एक मंच है। ई-चरक संयुक्त रूप से प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी-डैक), राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ( NMPB), आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा विकसित किया गया है। औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

खरीदारों और औषधीय पौध क्षेत्र के विक्रेताओं में आपसी संपर्क बनाने के लिए एक वर्चुअल बाजार के रुप में कार्य । वर्चुअल शोकेस के रुप में औषधीय पौध क्षेत्र के उत्पाद और संबंधित सेवाओं को प्रदर्शित करने के लिए । प्रौद्योगिकी जानकारी, बाजार की जानकारी और औषधीय पौध क्षेत्र के अन्य संसाधनों के ज्ञान भंडार के रूप में। ई-चरक का उपयोग औषधीय पादपों की कृषि जानकारी क्रय-विक्रय

उत्पादों/ सेवाओं के लिए बेहतर बाजार सही ग्राहक पहचान में समय और ऊर्जा की बचत माल की सही कीमत जानना लाभ में उचित हिस्सेदारी क्या और कितना उत्पादन करने के लिए- बेहतर निर्णय लेना ई-चरक निम्नलिखित तरीके से अपने उपयोगकर्ताओं की मदद करता है औषधीय पादपों की कृषि जानकारी क्रय-विक्रय

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी क्रय-विक्रय

बीज औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी बीज

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी बीज

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी बीज

पौधशालाएं संस्थान विश्वविद्यालय शोध संस्थान औषधीय पादपों की कृषि जानकारी बीज

सरकारी अनुदान औषधीय खेती को लेकर सरकार का प्लान और इससे किसानों को लाभ देश आत्मनिर्भर बनाने और किसान की आय दुगुनी करने के उद्देश्य से सरकार देश में औषधीय पौधों की खेती पर जोर दे रही है। इसके लिए कई अभियान की शुरुआत की गई है। इसके तहत आमजन एवं किसानों को औषधीय पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस कड़ी में बीते दिनों आयुष मंत्रालय ने देशभर में 45 से अधिक स्थानों पर आयुष आपके द्वार अभियान शुरू किया गया। आयुष राज्यमंत्री डॉ. मुंजापारा महेंद्र भाई ने आयुष भवन में कर्मचारियों को औषधीय पौधे वितरित कर इस अभियान की शुरुआत की गई। इस अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए डॉ. मुंजापारा ने लोगों से औषधीय पौधों को अपनाने और अपने परिवार के एक अंग के रूप में उनकी देखभाल करने की अपील की। पिछले डेढ़ वर्षों में न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में औषधीय पौधों की मांग में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी देखने में आई है। यही कारण है कि । अमेरिका में अश्वगंधा तीसरा सबसे ज्यादा बिकने वाला उत्पाद बन गया है औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

सरकारी अनुदान औषधीय खेती को लेकर सरकार का प्लान और इससे किसानों को लाभ अभियान के तहत ये औषधीय पौधे किए जाएंगे वितरित इस अभियान की शुरूआत से जुड़ी गतिविधियों में 21 राज्य भाग ले रहे हैं और इस दौरान दो लाख से अधिक पौधे वितरित किए जाएंगे। इस अभियान का उद्देश्य एक वर्ष में देशभर के 75 लाख घरों में औषधीय पौधे वितरित करना है। इन औषधीय पौधों में तेजपत्ता, स्टीविया, अशोक, जटामांसी, गिलोय/गुडुची, अश्वगंधा, कुमारी, शतावरी, लेमनग्रास, गुग्गुलु, तुलसी, सर्पगंधा, कालमेघ, ब्राह्मी और आंवला शामिल हैं। औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

सरकारी अनुदान औषधीय खेती को लेकर सरकार का प्लान और इससे किसानों को लाभ अमृत महोत्सव के तहत किसानों को बांटे गए औषधीय पौधे आजादी का अमृत महोत्सव के मौके पर पुणे में औषधीय पौधे किसानों को बांटे गए। जो लोग पहले से जड़ी-बूटियों की खेती कर रहे हैं, उन्हें सम्मानित किया गया। इस अवसर पर 75 किसानों को कुल मिलाकर 7500 औषधीय पौधे वितरित किए गए। इसके अलावा 75 हजार पौधे वितरित करने का लक्ष्य भी तय किया गया है।  औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

वैज्ञानिक विधि औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

स्टेविया की खेती स्टीविया एक लोकप्रिय और लाभदायक औषधीय पौधा है। यह पौधा अपनी पत्तियों की मिठास के कारण जाना जाता है। इतना मीठा होने के बाद भी इसमें शर्करा  की मात्रा नही होती है। यह एक शून्य कैलोरी उत्पाद है। यह मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिका में अधिक पाया जाता है। यह मधुमेह वाले रोगियों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। यह रोगी के शरीर में इंसुलिन बनाने में मदद करता है । इसकी अच्छी पैदावार के लिए दोमट जमीन जो 6 ph से 7 ph के अंदर होनी चाहिए एवं उचित जल निकास वाली होना चाहिए। यह फसल सूखा सहन नही कर सकती इसलिए इसकी सिंचाई 10 दिनों के अंतराल में करना चाहिए। साल भर में इसकी 3 से 4 कटाई होती है उस कटाई में 60 से 90 क्विंटल तक सूखे पत्ते प्राप्त किये जा सकते है। अन्तर्राष्ट्रीय भाव - 300 से 400 रूपये प्रति किलो ग्राम भारत में उचित बाजार नही होने पर हम इसका अनुमानित भाव - 80 रूपये किलो मान ले तो 60 क्विंटल उत्पादन होने पर 4 से 5 लाख़ रूपये तक की आय प्रति एकड़ हो जाती है । औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

आर्टीमीशिया की खेती आर्टीमीशिया एक बहुत गुणकारी औषधीय पौधा है। इसका उपयोग मलेरिया की दवाई इंजेक्शन और टेबलेट्स बनाने में होता है। इसकी बढ़ती मांग को देखकर भारत में सीमैप ( cimap ) ने वर्ष 2005 से इसकी खेती करवाना और ट्रेनिंग देने की शुरूआत की है । इसकी खेती करने के लिए नम्बर दिसम्बर में नर्सरी तैयार करना पड़ती है। और फ़रवरी के माह में इसको खेत में लगाना पड़ता है । इस फसल को बहुत काम खाद् पानी की जरूरत पढ़ती है। इससे को वर्ष में 3 बार  उपज प्राप्त कर सकते है। प्रति बीघे में ढाई से साढे तीन क्विंटल पत्तियां निकलती है। पत्तियों को भाव - 30 से 35 रूपये किलो फ़ायदा - 9000 से 10000 प्रति बीघा लागत - 15 से 20 हजार प्रति एकड़ औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

लेमन ग्रास की खेती गर्म जलवायु वाले देश सिंगापुर, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, चाइना, ताइवान, भारत, श्रीलंका में उगाया जाने वाला हर्बल पौधा है। इसकी पत्तियों का उपयोग लेमन ट्री बनाने में होता है। इससे निकलने वाले तेल का उपयोग कई तरीके के सौदर्य प्रसाधन एवं खाद्य में निम्बू की खुशबू (फ्लेवर) लाने के  लिए होता है। अप्रैल मई माह में इसकी नर्सरी तैयार की जाती है। प्रति हेक्टेयर 10 किलो बीज काफी होता है । जुलाई अगस्त में पौधे खेत में लगाने के लायक हो जाते है। 45 से 60 सेमी की दूरी  पर प्रति एकड़ में लगभग 2000 पौधे लगाए जाते है। इस फसल को बहुत ही कम सिंचाई की जरूरत होती है। पहली कटाई 120 दिनों के बाद तथा दूसरी और तीसरी कटाई 50 से 70 दिनों के अंतराल में होती है। प्रति एकड़ में लगभग 100 किलो ग्राम तेल का उत्पादन होता है । तेल की कीमत – 700-900 रूपये/किलो औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

शतावर की खेती इस औषधि का उपयोग शक्ति बढ़ाने, दूध बढ़ाने ,दर्द निवारण एवं पथरी संबंधित रोगों के इलाज़ के लिए किया जाता है । 10 से 50 डिग्री सेल्सियस उत्तम माना जाता है । इसके लिए खेत को जुलाई अगस्त माह में 2-3 बार अच्छी जुताई कर लेना चाहिए। तिम जुताई (अगस्त) के समय 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद् प्रति एकड़ मिला लेना चाहिए । बुआई के लिए प्रति एकड़ 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है । बीज का मूल्य – 1000 किलो ग्राम गीली जड़ों का उत्पादन प्रति एकड़ 300 से 350 क्विंटल सूखीजड़ों  की कीमत 250 से 300 प्रति किलो औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

तुलसी की खेती तुलसी का पौधा जितना पूजनीय है उससे कई ज्यादा उसमे औषधीय गुण होते है। तुलसी के पत्ते तेल और बीज को बेचा जाता है । तुलसी कम पानी और कम लागत में ज्यादा फ़ायदा देने वाली औषधीय फसल है। औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

एलोवेरा की खेती इसका एलोवेरा को विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है, हिन्दी में ग्वारपाठा, घृतकुमारी, घीकुंवार, संस्कृत में कुमारी, अंग्रेजी में एलोय कहा जाता है । उपयोग - पेट के कीड़ों, पेट दर्द, वात विकार, चर्म रोग, जलने पर, नेत्र रोग, चेहरे की चमक बढ़ाने वाली त्वचा क्रीम, शेम्पू एवं सौन्दर्य प्रसाधन तथा सामान्य शक्तिवर्धक टॉनिक। औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ सुगंधबाला Pavonia odorata Willd . ऊचाई - 1 मी शाकीय पौधा जड़ 42.5-50 सेमी लम्बी, 6 मिमी मोटी, चिकनी, भूरे रंग की सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इसकी सुगंध कस्तूरी की तरह होती है उपयोग कड़वा , छोटा, लघु, रूखा और ठंडे तासीर का होता है। यह पित्त और कफ कम करनेवाला, पाचक शक्ति व खाने की रुचि बढ़ाने वाला, जलन व बार-बार प्यास लगने की इच्छा कम करने वाला तथा घाव को जल्दी सूखाने में मदद करनेवाला होता है । इसके अलावा सुगंधबाला उल्टी, दिल की बीमारी, बुखार, कुष्ठ, अल्सर, नाक-कान से खून बहना, खुजली तथा जलन से राहत दिलाने में मदद करता है । धार्मिक अनुष्ठानों में, धूप-अगरबत्ती तथा हवन सामग्री बनाने में । 4000 से 9000 फीट तक की ऊंचाई आसानी से उगाया जा सकता है

वन अजवायन Trachyspermum roxburghianum H.Wolff मार्च अप्रैल माह म पौधों को कतार से कतार में बोया जाता है । पौध की दूरी 30×30 सेमी. रखी जाती है । पांच माह में पत्तियां एवं फूल आने पर ऊपर के 15 सेमी. के मुलायम त नों को काट लि या जाता है। पत्तियों को छाया में सुखाकर तुरंत वायुरोधी वायुरोधी डिब्बों में बंद किया जाता है। उपयोग खाद्य पदार्थ, ओषधि, सौदंय साधन एवं सुगंध। 4000 से 10000 फीट तक की ऊंचाई वाले शेत्रो में पाया जाता है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

कपूर कचरी Hedychium spicatum Sm. पुराने कंदों को माच-अप्रैल में खेत में 60×60 सेमी. की दूरी पर रोपित करते हैं। लगभग एक माह बाद कल्ले निकल जाते हैं। फसल 2-3 वर्ष के बाद कंदों को खोदकर छाया में सुखाकर संगृहीत करते हैं। उपयोग दवा , सुगंध उद्योग तथा सोंदर्य प्रसाधनों में। 5000 से 7000 फीट तक नम छायादार जंगलो में प्राकृतिक रूप से । उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

बच Acorus calamus L . बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है । बीज के लिए राइजोम का उपयोग किया जाता है। इसके दो तीन टुकड़ों को 30×30 सेमी. के अंतराल में लगाया जाता है । दो वर्ष के बाद इसकी जड़ों को खोद लिया जाता है। साफ कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर सुखाया जाता है। उपयोग पेट के रोग, जीवाणुरोधी, गले सम्बंधित और लीवर रोग आदि। 6000 फीट तक नम भूमि में नदी नाले के किनारे एक गीली भूमि में पाया जाता है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

सफेद मूसली Chlorophytum borivilianum Santapau & R. R. Fern. बिजाई राइजोम तथा अंगुली के आकार के जड़ों से की जाती है । मानसून के प्रारंभ में जून-जुलाई में ऊंची क्यारियों में 30×30 सेमी. की दूरी पर लगाना चाहिए। माह नवम्बर – दिसम्बर में जब कंद सफेद से भूरे हो जाएँ तो कुदाल की सहायता से खोद लेना चाहिए। कंदों को बहते पानी में धोकर धूप में सुखाकर नमी रहित भण्डारण करते हैं। उपयोग दवा (टॉनिक), बलवर्धक। 3500 फीट तक रेतीली दोमट जीवाश्म मृदा तथा गर्म तथा नमीयुक्त जलवायु उपयुक्त है । उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

सतावर Asparagus racemosus Willd . खेती बीज व कांड द्वारा की जाती है । जून-जुलाई में नर्सरी डालकर बीज बोना चाहिए। अगस्त में पौधं तैयार हो जाती है । खेत में 60×60 सेमी. पर रोपित कर देते हैं। रोपण के 16-18 माह बाद जब पौधं पीला होने लगे तब इनकी जड़ों की खुदाई कर धोने के पश्चात चीरा लगाकर ऊपरी छिलका उतार लेना चाहिए तथा 2 दिन धूप में सुखाकर भंडारित करना चाहिए। उपयोग बलवर्धक, लकवा , मूत्र सम्बन्धी रोगों में, गठिया में। पवतीय इलाके, मध्यम पहाड़ियां एवं तराई के ऊंचे इलाके इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

सर्पगंधा Rauvolfia serpentina (L.) Benth . Ex Kurz बुआई बीज , जड़ व तने की कलम लगाकर की जा सकती है । यह 18 माह की अवधि की फसल है । अगस्त में पौधं तैयार हो जाती है । नर्सरी में 3×1.5 मीटर की क्यारियां बनाकर अप्रैल-मई में 8-10 सेमी. की दूरी पर लाइनो में बोना चाहिए। रेत एवं खाद के मिश्रण से ढक देने से 15-20 दिन में अंकुरण हो जाता है । जुलाई में पौधारोपण 30×30 सेमी. की दूरी पर कर देना चाहिए। जड़ों को खोद कर छल साहित खोद के सुखाकर भंडारित कर लेते हैं। उपयोग उच्च रक्तचाप, अनिद्रा रोग, उन्माद, इत्यादि। निचली पहाड़ियां एवं तराई के ऊंचे इलाके इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

पिप्पली Piper longum L. खेती बीज अथवा कटिंग लगाकर की जा सकती है । कटिंग को मार्च-अप्रैल में थैली म लगाया जाता है । मई तक जड़ तथा पत्तियां आ जाती है । खेत में 60×60 सेमी. की दूरी पर गड्डे बनाकर रोपित किया जाता है । एक गड्डे में दो पोंधे लगाना चाहिए। फल काले हो जाय तो उन्हें तोड़कर 4-5 दिन धूप में सुखाना चाहिए। फल वर्ष में 3-4 बार तोड़े जाते हैं। उपयोग मसाले में, खांसी आदि रोगों में उपयोगी है। गर्म एवं आद्र जलवायु, तराई भाग फसल के लिए उत्तम है। पवतीय इलाकों में 3000 फीट तक उगाई जा सकती है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

अश्वगंधा Withania somnifera (L.) Dunal बिजाई साधे बीज अथवा पौधं तैयार करके की जा सकती है । बिजाई जुलाई माह में की जाती है । नसरी हेतु 5 किलो बीज एक हेक्टेयर के लिए उपयुक्त है । लगभग 6 सप्ताह के बाद पौधं को खेत में 60×60 सेमी. की दूरी पर रोपित करना चाहिए। 150 से 170 दिन में फसल कटने योग्य हो जाती है । उपयोग जड़ टॉनिक के रूप में, गठिया वात, खांसी में उपयोगी। बलुई एवं बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल भराव न हो एवं सूखे एवं कम वषा वाले गर्म भाग उपयुक्त हैं। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

गिलोय Tinospora cordifolia ( Willd .) Hook.f . & Thomson मैदानी गर्म तथा निचले पर्वर्तीय इलाकों में बेल के रूप में सहारा लेकर चढ़ती है । जून-जुलाई माह में इसकी कलम लगाकर सिचाई करते रहना चाहिए। फरवरी-माच में जब पत्तियां झड़ने लगे तो बेल को नीचे से एक फुट छोड़कर काट लेते हैं। उपयोग डायिबटीज , रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने तथा ज्वर आदि में लाभदायक । तने को छोटे टुकड़ों में काटकर छाया में सुखाकर बाजार में बेचा जाता है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

घृतकुमारी Aloe vera (L.) Burm.f . फसल जल भराव युक्त स्थान को छोड़कर प्रत्येक मृदा में हो सकती है । 60×60 सेमी. की दूरी पर सकर्स लगाया जाता है । 8 माह पश्चात पोंधों से तैयार पत्तियों को काट लिया जाता है। उपयोग पेट सम्बन्धी विकारों में,त्वचा के रोगो में, रोग प्रतिरोधक तथा सोंदर्य प्रसाधनों में। पवतीय इलाकों में 4000 फीट तक एवं तराई के ऊंचे खेत इस फसल के लिए उपयुक्त हैं। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन ओषधियाँ चिरायता Swertia chirayita ( Roxb ) H.Karst . फसल लगभग एक वर्षीय है। माच-अप्रैल में इसकी बिजाई सीधे अथवा नसरी लगाकर की जा सकती है । नसरी हेतु 200-300 ग्राम बीज/हेक्टेयर प्रयाप्त है। 30×30 सेमी. की दूरी पर रोपित करना चाहिए। जनवरी-फरवरी सम्पूर्ण फसल को उखाड़ कर भंडारित किया जाता है। उपयोग दीघकालीन मंद ज्वर, जीर्ण ज्वर, अन्य ज्वर तथा लीवर की बिमारियों में। 6000 - 9000 फीट तक की ऊंचाई वाले इलाकों में बहुतायत में होता है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

बड़ी ईलायची Elettaria cardamomum (L.) Maton रोपण फरवरी-मार्च में किया जाता है। वर्ष में दो बार प्रथम पुष्प आने से पूर्व तथा दूसरी बार फल तोड़ने के बाद निराई-गुड़ाई की जानी चाहिए। उपयोग मसाले , यकृत, दन्तशूल आदि विकारों में इसका प्रयोग किया जाता है। 6000 फीट तक नम स्थानों में, दोमट मिट्टी में कृषि की जाती है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

रीठा Sapindus mukorossi Gaertn . बीज द्वारा नर्सरी तैयार की जाती है। फिर वषा ऋतु में इसे बंजर भूमि में स्थानांतरित किया जाता है। रोपण के 5 वर्ष बाद फल देना शुरू करता है। फिर 60 से 70 वर्ष तक फल देता है। उपयोग फल , ऊनी कपड़ो की धुलाई, हबल हर्बल शेम्पू में प्रयुक्त ककिये जाते हैं। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

तेजपात Cinnamomum tamala   (Buc.-Ham.) T.Nees & C.H.Eberm . मार्च-अप्रैल में बीज को छोटी 3×1.5 मी. की क्यारियों में रेत एवं गोबर की खाद मिलाकर बिखेर दिया जाता है । हल्का पानी डालकर पुलाव से क्यारियों को ढक दिया जाता है। जुलाई-अगस्त में गहरे गड्डे में 10 फीट की दूरी पर लगाना लगाना चाहिए। एक बार लगने के बाद यह 100 वर्ष तक रहता है। उपयोग मसाले , दवा, सुगन्धित तेल आदि में। 6000 फीट तक की ऊंचाई में सुगन्धित पत्तियों एवं छाल वाला वृक्ष होता है । छाल से दालचीनी बनती है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

आंवला Phyllanthus emblica L . कृषि योग्य और अनुपयोगी दोनों प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है । पोधों का प्रवर्धन बीज द्वारा नसरी तैयार कर अथवा कलम लगाकर किया जाता है । तैयार पौधं को वर्षा ऋतु में स्थानांतरित किया जाता है । चार वष से फल देना आर करता है । उपयोग फल अम्लपित्त को कम करता है, कब्ज हटाता है, कफ दूर करता है तथा मूत्र शोधक है। 5000 फीट तक की ऊंचाई तक पाया जाता है। उत्तराखंड में कृषि करण की संभावना वाली मह त्वपूर्ण वन -ओषधियाँ

सामान्य घर के बाग़ में उगने वाली ओषधियाँ तुलसी Ocimum tenuiflorum  L. खांसी, दमा, दस्त, बुखार, पेचिश, गठिया , नेत्र रोग, अपच, गैस्ट्रिक रोग आदि । श्यामा तुलसी Ocimum sanctum L. पुदीना Mentha arvensis L. एन्टीसेप्टीक, दर्द निवारक, हजम शक्ति बढ़ाने में, गठिया, उल्टी रोकने में आदि। पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीने से कफ, सर्दी-जुकाम, एवं बुखार में आराम मिलता है। बीज का सेवन करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। बीज से निकलने वाले तेल का उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है, जो कि त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में उपयोग होता है।

सामान्य घर के बाग़ में उगने वाली ओषधियाँ पत्थरचट्टा Kalanchoe pinnata (Lam.) Pers. मूत्र विकार, बवासीर, सिर दर्द, घाव को भरने में, गुप्तांग संक्रमण से बचाने में, रक्तचाप, पथरी, फोड़े, दांतो के दर्द आदि। लहसुन Allium sativum L. हदय रोग, कोलेस्ट्रॉल, सर्दी व फ्लू, पेट की बीमारी, आंखों के दर्द, कान के दर्द आदि रोगों की चिकित्सा हेतु एवं स्मृति वर्धक आदि । धनिया Coriandrum sativum L. मधुमेह, वृक्क विकार, कोलेस्ट्राल, रक्‍ताल्पता , अतिसार, एलर्जी , सिरदर्द, नक्सीर , नेत्र रोग, पेट दर्द, मुंहासे, अर्श , पाचन शक्ति

सामान्य घर के बाग़ में उगने वाली ओषधियाँ अदरक Zingiber officinale Roscoe सर्दी, जुकाम, खांसी, खून की कमी, पथरी , यकृतवृद्धि, पेट संबंधी विकार, पीलिया, आर्श,आदि। अजवाइन Trachyspermum ammi (L.) Sprague कान दर्द, दांत दर्द, पेट दर्द, गले के सूजन, पथरी, खांसी , बदहजमी, बहुमूत्र पौरूषवृद्धि इत्यादि नीम Azadirachta indica A.Juss . पायरिया, अस्थमा, ज्वर, वमन, त्वक्‌ विकार, मुख विकार, बिच्छु व सर्प काटने में, जलने पर, कान दर्द, फोड़े फुन्सी, मूत्रज विकार, भूख बढ़ाने में, केश संबंधी विकार आदि

गिलोय Tinospora cordifolia ( Willd .) Hook.f . & Thomson हल्दी Curcuma longa L. खाँसी, ब्रण, मुहासें, सोरायसिस, गठिया , डिप्रेशन, पाचन सबंधी विकार, हृदय रोग, सूजन, कैंसर, अस्थमा , मधुमेह, अल्जाइमर, आर्तव विकार आदि अंजीर Ficus carica L. मेथी Trigonella foenum-graecum L. मधुमेह, कैंसर, मोटापा, उच्चरक्तचाप , उच्चकोलेस्ट्रॉल, जीवाण , कवक एवं विषाणु जन्य विकार सामान्य घर के बाग़ में उगने वाली ओषधियाँ कब्ज, बवासीर, पाचन समस्या, मूत्र एवं गुर्दे की पथरी, बात, मधुमेह , हृदयरोग, अल्जाइमर रोग, श्वास रोग, दन्तरोग, त्वचा रोग के उपचार हेतु तथा वजन घटाने एवं रक्तचाप नियंत्रित करने में लाभकारी बुखार, नजला, हैजा, मलेरिया, मधुमेह, गठिया, अपच, पेट रोग, दुर्बलता, कँसर, एच आई वी इत्यादि

सरकारी योजनाएं

तुलसी की खेती करता है तो उसे 13180 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान सतावर की खेती करता है तो उसे 27450 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान एलोवेरा की खेती करता है तो उसे 1 8670 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान सरकारी योजनाएं

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सरकारी अनुदान औषधीय पादपों की कृषि जानकारी

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औषधीय पादपों के लिए पतंजलि का योगदान

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