Netaji Subhash Chandra Bose

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तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा !

उक्त उदघोष से भारतीयों के दिलों में आज़ादी की अलख जगाने वाले नेता जी सुभा�...


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Netaji Subhash Chandra Bose
 
 
Subhas Chandra Bose ki Jivani
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा !
उक्त उदघोष से भारतीयों के दिलों में आज़ादी की अलख जगाने वाले नेता जी सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतंत्रता
सेनानियों में से एक थे। इन्होंने ना केवल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष किया अपितु भारतीयों को विचारों की गुलामी
से बाहर निकालने का भी पूरा प्रयास किया। जिसके कारण सुभाष चन्द्र बोस आज भी भारतीयों के दिल में जिंदा हैं।

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म

देश की आज़ादी के मतवाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी साल 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ
था। इनके पिता जानकीनाथ बोस जाने माने वकील थे। जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा रायबहादुर खिताब से नवाजा गया था
लेकिन भारतीयों पर ज़ुल्म के विरोध में इनके पिता ने यह सम्मान लौटा दिया था। सुभाष चन्द्र बोस की माता का नाम
प्रभावती था।

सुभाष जानकीनाथ और प्रभावती की नौवीं संतान थे। सुभाष चन्द्र बोस बचपन से ही मेधावी थे। जिसके चलते इन्होंने मात्र
15 वर्ष की आयु में ही विवेकानंद साहित्य का अध्ययन कर लिया था। सुभाष चन्द्र बोस ने कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से
प्राइमरी शिक्षा ग्रहण कर वर्ष 1909 में रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में प्रवेश लिया।

जहां से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्र विषय में बी ए
ऑनर्स किया लेकिन वहां एक अंग्रेजी शिक्षक ने जब भारतीयों को लेकर कुछ अपमानजनक बयान दे दिया था तब सुभाष
चन्द्र बोस को शिक्षक का विरोध करने के कारण कॉलेज से निकाल दिया गया था।

सुभाष चन्द्र बोस और उनकी उच्च शिक्षा
प्रेसीडेंसी कॉलेज से निष्कासित होने के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने 49 वीं बंगाल रेजीमेंट के लिए परीक्षा दी थी लेकिन आंखें
खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया। जिसके बाद उन्होंने निराश होकर स्कॉटिश चर्च
कॉलेज में प्रवेश लिया। इसके बाद उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली और फोर्ट विलियम सेनालय
में प्रवेश पाया।

उसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने बी ए ऑनर्स की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। हालांकि उनके पिता जी चाहते थे कि
उनका बेटा आईएएस बने लेकिन सुभाष चन्द्र बोस के पास इस परीक्षा को पास करने के लिए अधिक समय नहीं था
क्योंकि अपनी आयु के अनुसार वह इस परीक्षा को केवल एक बार ही दे सकते थे।

ऐसे में उन्होंने लक्ष्य का निर्धारण करने के बाद 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड जाने की ठान ली। जहां उन्होंने किट्स
विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास परीक्षा का अध्ययन करने हेतु प्रवेश ले लिया। जहां उन्होंने
अपनी आईएएस की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

सुभाष चन्द्र बोस की लगन और मेहनत के दम पर उन्होंने साल 1920 में आईएएस की परीक्षा पास करते हुए चौथा स्थान
प्राप्त किया लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी ना करने के चलते सुभाष चन्द्र बोस ने साल 1921 में अपने पद से इस्तीफा
दे दिया।

सुभाष चन्द्र बोस और स्वंतत्रता आंदोलन

सुभाष चन्द्र बोस के ऊपर कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास के कार्यों का विशेष प्रभाव पड़ा था।
जिसके बाद वह रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सलाह पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मिले। जिन्होंने उन्हें कोलकाता जाकर दास
बाबू के साथ कार्य करने को कहा।

उसी दौरान महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया था। जिसका नेतृत्व करते हुए बंगाल में दास
बाबू के साथ मिलकर सुभाष चन्द्र बोस ने इस आंदोलन में भाग लिया। इसके बाद दास बाबू ने बंगाल के अंदर स्वराज
पार्टी का गठन किया और नगरपालिका के चुनाव जीतने के बाद वह महापौर बन गए और उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को
महापालिका का प्रमुख कार्यकारी घोषित कर दिया। जिसके बाद सुभाष ने महापालिका का पूरा नक्शा ही बदल दिया।

उन्होंने कोलकाता के रास्तों के अंग्रेजी नाम बदलकर उन्हें भारतीय नाम दे दिए। देखते ही देखते सुभाष चन्द्र बोस एक युवा
नेता के तौर पर पहचाने जाने लगे। साल 1927 में सुभाष चन्द्र बोस ने साइमन कमीशन का विरोध किया।

इतना ही नहीं साल 1931 में जब सुभाष चन्द्र बोस एक मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तब ब्रिटिश हुकूमत ने सुभाष चन्द्र बोस
पर लाठियां बरसाई और उन्हें कारागार में बंदी बना लिया। उस दौरान गांधी जी ने अंग्रेजों से समझौता करके सभी कैदियों
को रिहा करवा लिया था लेकिन महात्मा गांधी द्वारा भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी को ना टलवाने पर सुभाष
चन्द्र बोस महात्मा गांधी से काफी खफा हो गए थे।

हालांकि सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस से अध्यक्ष भी चुने गए थे लेकिन वैचारिक मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे
दिया था क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाष चाहते थे कि भारत का स्वतंत्रता संग्राम तेजी से आगे बढ़ाया जाए
लेकिन गांधी जी उनकी बात से सहमत नहीं थे।

इतना ही नहीं जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सुभाष चन्द्र बोस को 1580 और महात्मा गांधी द्वारा चुने गए उम्मीदवार
पट्टाभि सीतारमैया को के केवल 1377 वोट मिले तो गांधी जी ने इसे अपनी हार बता दिया था। अपने सम्पूर्ण जीवनकाल
में सुभाष चन्द्र बोस करीब 11 बार जेल गए थे।

साल 1925 में जब देशबंधु चितरंजन दास की मौत हो गई उस दौरान सुभाष चन्द्र बोस कारागार में थे। फिर उन्हें जेल में
ही तपेदिक बीमारी ने घेर लिया। फिर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इलाज के लिए यूरोप भेज दिया। ऐसे में साल 1933 से
1936 तक वह यूरोप में ही रहे। जहां उनकी मुलाकात इटली के नेता मुसोलिनी से हुई।

जिन्होंने उनको भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मदद करने की बात कही। कांग्रेस से निष्कासन के बाद जब सुभाष ने 1939
में फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से एक पार्टी बनाई जोकि स्वतंत्रता आंदोलन को तीव्र करने के लिए प्रकाश में आई थी। लेकिन
ब्रिटिश सरकार द्वारा फॉरवर्ड ब्लॉक के नेताओं को कैद कर लिया गया था।

ऐसे में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब सुभाष ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू किया तो अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें उनके घर
पर ही नजरबंद कर दिया था। लेकिन साल 1941 में वह अपने घर से पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का वेश धारण करके
निकल गए। जिसके बाद उन्होंने कोलकाता से पेशावर, अफगानिस्तान, काबुल इत्यादि देशों में फॉरवर्ड ब्लॉक के नेताओं
और अन्य लोगों से मुलाकात की।

धीरे धीरे वह अलग अलग नाम और पहचान बदलकर इटली, रूस, मास्को और बर्लिन इत्यादि गए। बर्लिन पहुंचने के बाद

सुभाष चन्द्र बोस ने जर्मनी के नेताओं से मुलाकात की। इसी दौरान उनकी मुलाकात जर्मनी के शीर्ष नेता एडोल्फ हिटलर
से हुई।

हालांकि कुछ समय बाद सुभाष चन्द्र बोस को ज्ञात हो गया कि उन्हें जर्मनी और हिटलर से कोई विशेष सहायता नहीं
मिलनी है। जिसके बाद उन्होंने इंडोनेशिया की ओर रुख किया। देखते ही देखते सुभाष चन्द्र बोस ने पूर्वी एशिया में भारत
की आज़ादी की अलख जलानी शुरू कर दी।

आज़ाद हिन्द फौज का गठन
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया। जिसे स्वाधीन भारत की
अंतरिम सरकार के नाम से भी कुल नौ देशों द्वारा मान्यता मिली। इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने इसमें भारतीय युद्धबंदियों
को भर्ती करना शुरू किया और महिलाओं को भी सेना में स्थान दिया गया। इस दौरान सेना का नेतृत्व करते हुए सुभाष
चन्द्र बोस ने दिल्ली चलो का नारा दिया।

देखते ही देखते आज़ाद हिन्द फौज की सेना ने अंग्रेजों के विरूद्ध इंफाल और कोहिमा युद्ध की पेशकश की लेकिन कुछ
समय बाद अंग्रेजी सेना नेताजी की सेना पर भारी पड़ने लगी। जिसके बाद साल 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने
रेडियो के माध्यम से महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहते हुए आज़ाद हिन्द फौज के गठन का उद्देश्य स्पष्ट किया।

सुभाष चन्द्र बोस का अनूठा भाषण
भारत की आज़ादी के लिए सदैव तत्पर रहने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 29 जनवरी 1939 को त्रिपुरी अधिवेशन के
दौरान एक भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि स्वराज्य के लिए ब्रिटिश सरकार को अल्टीमेटम देने का वक्त आ
गया है, यदि अगर समय पर हमारी राष्ट्रीय मांगों को पूरा नहीं किया जाता है तो हमें अपनी शक्ति का पूर्ण प्रदर्शन करना
होगा।

हमें अपने वैचारिक मतभेद भुलाकर राष्ट्र के संघर्ष के लिए एकजुट हो जाना चाहिए। कांग्रेस में जो इस वक्त अंदरुनी
कलह चल रही है, महात्मा गांधी जी जोकि हमारे मार्गदर्शक है वहीं कांग्रेस को इस उलझन से बाहर निकालें।

साथ ही उन्होंने कहा कि सत्ता के लालच में जो नीतियां हमारी व्यवस्था में घुस आई हैं उन्हें हमें दूर करना होगा। तभी
भारत में ब्रिटिश हुकूमत को समाप्त किया जा सकेगा। अपने भाषण के दौरान उन्होंने ऑल इंडिया स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस
का पूर्ण उपयोग करने की बात कही थी।
सुभाष चन्द्र बोस की प्रेम कहानी

साल 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद होने के कारण सुभाष चन्द्र बोस को तपेदिक बीमारी ने घेर
लिया था। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इलाज के लिए यूरोप भेज दिया था। जहां उन्होंने ऑस्ट्रिया की राजधानी
विएना में इलाज करवाया।

इस दौरान सुभाष चन्द्र बोस ने ठान लिया था कि वह यूरोप में रह रहे भारतीय छात्रों को भारत की आज़ादी के लिए
एकजुट करेंगे। तभी उन्हें द इंडियन स्ट्रगल किताब लिखने का मौका मिला। जिसके लिए उन्हें एक सहयोगी की जरूरत थी
जिसे इंगलिश टाइपिंग आती हो। ऐसे में उन्होंने उम्मीदवारों को चयन के लिए बुलाया। जिसमें एक थी 23 वर्षीय एमिली
शेंकल।

सुभाष चन्द्र बोस ने एमिली शेंकल की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें अपना सहयोगी बना लिया। उस वक्त तो खुद
सुभाष चन्द्र बोस को भी यह नहीं मालूम था कि एमिली शेंकल उनकी जिंदगी में प्रेम लेकर आएंगी क्योंकि उस वक्त तो
उनके सीने में आज़ादी की अलख जगी हुई थी।

इनकी प्रेम कहानी का जिक्र करते हुए एक किताब में लिखा हुआ है कि एमिली शेंकल ने सुभाष चन्द्र बोस के ऊपर अपनी
खूबसूरती का जादू बिखेर दिया था। जिसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने हिम्मत करके एमिली शेंकल से अपने प्यार का
इजहार किया था। जिसपर एमिली शेंकल ने भी हामी भर दी थी।

हालांकि एमिली शेंकल के परिवार वाले पहले इस रिश्ते से नाखुश थे क्योंकि उन्हें तो अपनी बेटी का किसी भारतीय के
यहां काम करना भी नहीं पसंद था लेकिन जब वह सुभाष चन्द्र बोस से मिले तो सब उनके व्यक्तित्व के कायल हो गए।

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस और एमिली शेंकल का रिश्ता समय के साथ बलवान हो गया। धीरे धीरे दोनों का प्रेम परवान
चढ़ने लगा था। ऐसे में साल 1937 में सुभाष चन्द्र बोस और एमिली शेंकल ने आपस में शादी कर ली। हालांकि लोगों को
इनकी शादी के बारे में काफी बाद में मालूम चला।

शायद इसके पीछे सुभाष चन्द्र बोस का राजनैतिक जीवन होगा जिसको वह प्रभावित नहीं होने देना चाहते थे क्योंकि
एमिली शेंकल एक विदेशी महिला।था। परन्तु इन दोनों ने भारतीय रीत से विवाह किया था। विवाह के बाद इनकी एक बेटी
हुई जिसका नाम अनीता बोस है।

सुभाष चन्द्र बोस की बेटी का नाम इटली के क्रन्तिकारी नेता गैरीबाल्डी की पत्नी अनीता गैरीबाल्डी के नाम पर रखा गया
था। आगे चलकर अनीता बोस जर्मनी की मशहूर अर्थशास्त्री के रूप में जानी गई।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सुभाष चन्द्र बोस और उनकी पत्नी एमिली शेंकल ने मात्र 12 साल (1934-1945)
ही साथ एक दूसरे के नाम किए और सिर्फ 3 साल ही वह एक दूसरे के साथ रह पाए लेकिन सुभाष चन्द्र बोस की मौत के
बाद एमिली शेंकल ने सुभाष चन्द्र बोस के प्रेम पत्रों और यादों के सहारे ही अपना सम्पूर्ण जीवन बीता दिया। सुभाष चन्द्र
बोस के एमिली शेंकल को लिखे एक प्रेम पत्र के बोल कुछ इस प्रकार से थे कि…..
मैं तुम्हारे अंदर की औरत को प्यार करता हूं, तुम्हारी आत्मा से प्यार करता हूं, तुम पहली औरत हो
जिससे मैंने प्यार किया। तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी, मेरी सोच और मेरे सपनों में रहोगी। अगर हम इस

जन्म में साथ नहीं रहे तो मैं अगला जन्म लेकर तुम्हारे साथ रहूंगा।
मेरी प्रिय बाघिन एमिली शेंकल !
Subhas Chandra Bose ki Jivani – एक दृष्टि में
नामसुभाष चन्द्र बोसजन्म वर्ष23 जनवरी 1897जन्म स्थानकटक ओडिशापिता का नामजानकीनाथ बोसपिता का
व्यवसायवकीलमाता का नामप्रभावतीभाई बहन7 भाई और 6 बहन (सुभाष 9वें स्थान पर)वैवाहिक स्थितिविवाहित
(1937)पत्नी का नामएमिलीबच्चेपुत्री (अनीता बोस)धर्महिन्दूजातिबंगाली कायस्थप्राइमरी शिक्षाप्रोटेस्टेण्ट स्कूल,
कटकइंटरमीडिएटरेवेनशा कॉलेजियेट कॉलेजस्नातकबीए ऑनर्स (दर्शनशास्र)कॉलेजप्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता
विश्वविद्यालयरुचिपढ़ाई लिखाई (18 वर्ष की उम्र में विवेकानंद साहित्य का अध्ययन)पसंदीदा व्यक्तित्वस्वामी विवेकानंद
और उनके विचारजीवन की उपलब्धताआईएएस परीक्षा में चौथा स्थानलोकप्रियताभारतीय स्वतंत्रता सेनानीराजनैतिक
गुरुचितरंजन दासमहात्मा गांधी से नाराजगी का कारणभगत सिंह, राजगुरु सुखदेव आदि की फांसी ना रुकवानाजेल11
बारविदेश भ्रमणपेशावर, अफगानिस्तान, काबुल, इटली, रूस, मास्को, बर्लिन, इंडोनेशियासंस्थापकआज़ाद हिन्द
फौजउदघोषदिल्ली चलो, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगास्थापना का श्रेयआज़ाद हिन्द रेडियो, फ्री इंडिया सेंटर,
फॉरवर्ड ब्लॉक संगठनराजनैतिक पार्टीकांग्रेस (1938)नेताजी की उपाधिजर्मनी शासक एडलोफ हिटलरसम्मानभारत रत्न
(मरणोपरांत)मृत्यु स्थानजापान (मृत्यु का कारण अज्ञात)मृत्यु वर्ष18 अगस्त 1945
Subhas Chandra Bose Biography – महत्वपूर्ण साल
1987कटक में जन्म1990रेवेनशा कॉलेजियेट कॉलेज से इंटरमीडिट उत्तीर्ण किया1919इंगलैंड की यात्रा1920आईएएस
की परीक्षा पास की1921आईएएस पद से इस्तीफा1921-194111 बार जेल गए1927साइमन कमीशन का
विरोध1928कांग्रेस से अलगाव1931ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में प्रदर्शन करने पर कारावास में डाले गए1925तपेदिक
बीमारी से ग्रस्त1933-36यूरोप में चला इलाज1933त्रिपुरी अधिवेशन में भाषण1937एमिली से विवाह1938भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता1939फॉरवर्ड ब्लॉक संगठन की स्थापना, कांग्रेस से इस्तीफा1941वेश
बदलकर विदेश भ्रमण किया1942एडोल्फ हिटलर से मुलाकात1943आज़ाद हिन्द फौज का गठन, आज़ाद हिन्द रेडियो,
फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना1944तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा नारा दिया1944रेडियो के माध्यम से भारतीयों
को एकजुट किया1945रूस में नजरबंद1945नेताजी की मृत्यु1992भारत रत्न से सम्मानित किया गया
सुभाष चन्द्र बोस के विचार
1. मनुष्य के जीवन में यदि संघर्ष और भय ना हो तो जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।
2. व्यक्ति को स्वयं की ताकत पर भरोसा करना चाहिए। दूसरों की ताकत आपके लिए हानिकारक साबित हो सकती है।
3. इस दुनिया का सबसे बड़ा अपराध अत्याचार सहना और गलत से समझौता करना है।
4. जीवन में संघर्ष के बाद ही मैं मनुष्य बन पाया हूं। इससे पहले मुझमें आत्मविश्वास की भी कमी हुआ करती थी।
5. जीवन में यदि आपको कभी किसी के आगे झुकना भी पड़े तो भी वीरों की भांति ही नतमस्तक होना।
6. मेरा जन्म एक निश्चित लक्ष्य की पूर्ति के लिए हुआ है। ऐसे में मुझे नैतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है।
7. मनुष्य को आज़ादी मिलती नहीं है बल्कि इससे छीनने के लिए प्रयास करना पड़ता है।

8. व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता की कीमत अपना खून बहाकर चुकानी चाहिए क्योंकि जो आज़ादी हमें अपने बलिदान से
मिली है, उसकी रक्षा करने के लिए हमारे अंदर ताकत होनी चाहिए।
9. जीवन में सफलता सदा ही असफलता के स्तंभ पर स्थापित होती है।
10. समाज में व्याप्त समस्याएं गरीबी, अशिक्षा, बीमारी इत्यादि का निदान समाजवाद के तरीके से ही संभव है।

सुभाष चन्द्र बोस के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
1. सुभाष चन्द्र बोस गांधी जी के अहिंसावादी विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते थे। उनका मानना था कि भारत को आज़ादी
हिंसा के रास्ते पर चलकर ही मिल सकती है।
2. साल 1943 में सुभाष चन्द्र बोस ने बर्लिन में आज़ाद हिन्द रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की थी।
3. नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के दिल और दिमाग पर जलियावाला हत्याकांड ने इस कदर प्रभाव डाला था कि वह आगे
चलकर भारत की आज़ादी के मतवाले कहलाए।
4. सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु आज तक रहस्य बनी हुई है तो वहीं लोगों का मानना है कि वर्ष 1985 तक फैजाबाद के एक
मंदिर में भगवान जी बनकर रहा करते थे। तो वहीं सुभाष चन्द्र बोस के परिवार वालों का मानना है कि उनकी मौत 1945
में नहीं हुई थी वह उस दौरान रूस में नजरबंद थे।
5. राष्ट्रपिता गांधी जी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बीच वैचारिक मतभेद इतने बढ़ गए थे कि नेताजी ने कांग्रेस के
अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद इन्होंने साल 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक
संगठन की स्थापना की।
6. कहा जाता है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत एक हवाई दुर्घटना के दौरान हुई थी। परन्तु सुभाष चन्द्र बोस के
शरीर के अवशेष ना मिलने के कारण उनकी मृत्यु के रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है।।साथ ही रंकजी मंदिर में
नेताजी की राख का दावा भी गलत साबित हुआ।
7. सुभाष चन्द्र बोस जब कॉलेज में थे उस दौरान एक अंग्रेजी शिक्षक में भारतीयों को लेकर अपमानजनक टिप्पणी कर
दी। जिसका विरोध करने पर सुभाष चन्द्र बोस को कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।
8. सुभाष चन्द्र बोस को नेताजी कहने वाला पहला व्यक्ति था जर्मनी का शासक एडोल्फ हिटलर।
9. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने महान क्रन्तिकारी भगत सिंह की फांसी को रूकवाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर
लगा दिया था।
10. साल 1992 में सुभाष चन्द्र बोस को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था लेकिन बाद में यह पुरस्कार
वापिस ले लिया गया था।
11. सुभाष चन्द्र बोस को अंग्रेज़ सरकार ने तब अनिश्चितकाल के लिए मयांम्यार भेज दिया था जब प्रशासन को यह शक
हो गया था कि बोस ज्वलंत क्रांतिकारियों के संपर्क में हैं।
12.नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर इंडिपेंडेंस लीग की
शुरुआत की थी।
13. सुभाष चन्द्र बोस स्वामी विवेकानंद को अपना प्रेरक मानते थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के काफी सारी किताबों का
अध्ययन भी किया है।
14. सुभाष चन्द्र बोस को जब तपेदिक की बीमारी हो गई थी तो वह डलहौजी इलाज के लिए गए थे।
15. भारत में साल 1928 को जब साइमन कमीशन आया तब कोलकाता में सुभाष चन्द्र बोस ने एक राष्ट्रवादी रैली का
नेतृत्व किया। इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर लाठीचार्ज करवाया था।

सुभाष चन्द्र बोस की रहस्यमी मौत
साल 1945 में जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस रूस से मदद मांगने के लिए हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे तभी उनका
विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। कहा जाता है कि इस विमान दुर्घटना में नेताजी बुरी तरह से जल गए थे।

लेकिन उनके शरीर का एक भी अंश ना मिलने की वजह से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत अभी तक एक पहेली बनी
हुई है। नेताजी जी की मौत की गुत्थी को सुलझाने के लिए 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त हुए लेकिन 18
अगस्त 1945 को विमान हादसा ही नेताजी की मौत का कारण बताया गया।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज की सेना देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद तो नहीं करवा पाई लेकिन
आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत को यह अंदाजा हो गया था कि भारत पर शासन करना आसान नहीं है।

तो वहीं दूसरी ओर आज़ाद हिन्द फौज में करीब 30-35 हजार युद्धबंदियों ने मिलकर स्वतंत्रता संग्राम शुरू किया था। जो
भारतीय इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी फौज थी। जिसने देश की आज़ादी का बिगुल बजाया।

आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हमारे बीच नहीं है लेकिन देश की आज़ादी के लिए उनका बलिदान और योगदान भारतीयों
के दिलों में सदैव ही स्मरणीय रहेगा। साथ ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा गठित आज़ाद हिन्द फौज के 75 साल पूरे
होने पर साल 2018 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले पर 15 अगस्त के अलावा तिरंगा फहराया था। इतना
ही नहीं जापान में हर साल 18 अगस्त को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का शहीदी दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

जबकि भारत में सुभाष चन्द्र बोस के परिवार वालों ने अभी तक सुभाष चन्द्र बोस की मौत को आकस्मिक निधन नहीं
माना है, वह इसे हत्या ही मानते आए हैं। ऐसे में साल 2014 में सुभाष चन्द्र बोस की मौत से जुड़े दस्तावेजों को
सार्वजनिक करने को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसके लिए विशेष बेंच का गठन भी किया गया है। हम
भारतीयों के दिलों में आज भी सुभाष चन्द्र बोस जिंदा है और वह सदैव अमर रहेंगे।