हेत्वाभास हेतु + आभास = हेत्वाभास जिससे हेतु का आभास होता है वह हेत्वाभास है । यह सद् हेतु नहीं है । इसे अहेतु या असद हेतु भी कहते हैं । असद् हेतु सही अनुमान लगाने में सहायक नहीं हैं । हेत्व्ाभास वह हेतू है , जो किसी कार्य का कारण तो न हो , परंत् हेतु का आभासिक हो ।
हेत्वाभास के प्रकार सव्यभिचारविरुद्धसत्परतिपक्षासिद्धबाधिता : पंच हेत्वाभासाः । यह पाँच प्रकार का होता हैं – सव्यभिचार असिद्ध विरुद्ध बाधित सत्प्रतिपक्ष
सव्यभिचारी हेत्वाभास अनुमान के सही होने के लिए हेत का हमेशा साध्य के साथ पाया जाना अनिवार्य है । इसमें कोई भी अपवाद नहीं होना चाहिए । जो हेतु साध्य के साथ नियत नहीं रहता अर्थात् कभी साध्य के साथ तो कभी साध्य के अभाव के साथ रहता है , उसे सव्यभिचारी हेत्वाभास कहते हैं । सव्यभिचार हेत्वाभास तीन प्रकार का होता है :
1.साधारण
2.असाधारण
3.अनुपसंहारी
विरुद्ध हेत्वाभास साध्यभावव्याप्तो हेतुर्विरूद्धरः । जब हेतु साध्य को सिद्ध न करें परन्तु उसके अभाव को ही सिद्ध करें , तो उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं । उदाहरण : हवा भारी है क्योंकि वह रिक्त ( खाली ) है । इस उदाहरण में साध्य ‘ भारी साबित करना ’ है और हेत रिक्त ’ है । यहाँ जो हेतु है वह हवा के भारीपन को नहीं अपितु उसके खालीपन को प्रस्थापित करता है ।
सत्यप्रतिपक्ष हेत्वाभास साध्याभावसाधकं हेत्वन्तरं यस्य स सत्प्रतिपक्ष :। जब हेतु के साध्य का अभाव सिद्ध करने वाला दुसरा हेतु भी उपस्थित हो तो उस प्रथम हेतु को सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास कहा जाता है । परन्तु जैसे दूसरे हेतु के कारण प्रथम हेतु सत्प्रतिपक्ष है , वैसे ही प्रथम हेतु के कारण दूसरा हेतु भी सत्प्रतिपक्ष ही है । उदाहरण : शब्द नित्य है , सुने जाने के कारण और शब्द अनित्य है क्योंकि वह घट के भाँति कार्य है ।
असिद्ध हेत्वाभास साध्य को सिद्ध करने के लिए ऐसे हेत् का उपयोग करना जो स्वयं सिद्ध न हो । ऐसे हेतु को असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं । यह तीन प्रकार का है – आश्रय असिद्ध जिस हेतु का आश्रय ( पक्ष ) ही असिद्ध है . उसका अस्तित्व ही नहीं , उसे आश्रय असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं । 2. स्वरूप असिद्ध जब हेतु पक्ष में नहीं पाया जाता तब उसे सवरूप असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं । सदहेतु का लक्षण है - पक्षे सत्वम् ’ पक्ष पर रहना । यहाँ हेतु पक्ष पर नहीं रहता अत : यह हेत्वाभास है । 3. व्याप्यत्व असिद्ध उपाधियुक्त हेतु को व्याप्यत्व असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं । किसी भी अनुमान के लिए हेतु और साध्य में व्याप्ति आवश्यक है । परंत् यदि हेतु साध्य से व्याप्त न हो तो उसका व्याप्यत्व असिद्ध होता है , यदि इसे समझना हो तो उपाधी का आधार लिया जाता है ।
बाधित हेत्वाभास यस्य साध्याभावः प्रमाणान्तरेण निश्चित : सः बाधितः । जिस हेतु के साध्य का अभाव प्रत्यक्षादि प्रमाणों से निश्चित सिद्ध होती हो , वह हेतु ‘ बाधित ’ कहलाता है । उदाहरण : गिलोय मधुर है , क्योंकि वह द्रव्य है , जैसे क्षीर । इस उदाहरण में क्षीर का दृष्यंत है , परंतु प्रत्यक्ष प्रमाण से गिलोय का तिक्त रस ज्ञात होता है , अत : अनुमान में वाधा आती है । इसे ही बाधित हेत्वाभास कहते हैं ।
चरक संहिता के अनुसार हेत्वाभास के भेद अहेतुनाम प्रकरणसमः संशयसमः वणर्यसमश्चेति । अहेतु तीन प्रकार के होते हैं -
1. प्रकरणसम 2. संशयसम 3. वर्ण्यसम
प्रकरणसम अहेतु यदि हेतु पक्ष के समान ही हो , तो उसे प्रकरणसम अहेत् कहते हैं । अनुमान के लिये पक्ष और हेतु का स्वतन्त्र होना आवश्यक है । उदाहरण : शरीर से भिन्न आत्मा नित्य है , क्योंकि वह शरीर से भिन्न है । इस उदाहरण में ‘ शरीर से भिन्नत्व ’ हेतु है , “ आत्मा का नित्यत्व ’ साध्य है और ‘ शरीर से भिन्न आत्मा ’ पक्ष है । यहाँ पक्ष व हेतु समान है , अत : इसे प्रकरणसम अहेतु कहते हैं ।
संशयसम हेतु जो हेतु संशय को निर्माण करता है , यदि वही संशय को दूर करने का हेतु् हो तो उसे संशयसम अहेतु कहते हैं । उदाहरण : यदि कोई कहता है कि यह वयक्ति आयुर्वेद के केवल एक भाग को कह रहा है , अत ; यह सन्देह होता है । कि यह वैद्य है भी या नहीं । इस पर दूसरा कहता है कि , जिस प्रकार यह व्यक्ति आयु्वेद के एक भाग को कह रहा है , अत : वह आयुर्वेद को जानने वाला वैद्य होगा ।
वर्ण्यसम अहेतु जो विषय स्वयं स्थापित नहीं है , उसे किसी अन्य गैर - स्थापित विषय को स्थापित करने के हेत् के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है । हेतु और साध्य के बीच व्याप्ति प्रस्थापित करने के लिए दुष्टन्त का सिद्ध होना अनिवार्य है । वण्यसम का अर्थ है ‘ जिसे स्थापित करने की आवश्यकता हैं ‘। उदाहरण : यदि कोई कहे कि अस्पर्शनीय होने से बुद्धि अनित्य है शब्द के समान।
न्यायदर्शन के अनुसार हेत्वाभास के भेद सब्यभिचारविरुद्ध प्रकरण समसाध्यसमकालातीत हेत्वाभासा :। न्यायदर्शन ने 5 हेत्वाभासों का वर्णन किया हैं -
1. सव्यभिचार 2. विरूद्ध 3. प्रकरणसम ( सत्प्रतिपक्ष ) 4. साध्यसम ( असिद्ध ) 5. कालातीत ( बाधित )।