गुणवत्तापूर्ण यात्रा - पीएचसी से एनएमसी तक - डॉ जे एल मीना.pdf

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About This Presentation

" डॉ जे एल मीना पीएचसी से एनएमसी तक गुणवत्तापूर्ण यात्रा" यह पुस्तक देश के सभी स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए तो फाएद...


Slide Content

डॉक्टर कथा सीरिज
डॉ. जे. एल. मीना
पी.एच.सी. से एन.एम.सी. तक
संपादक
आशुतोष कुमार सिंह
स्वस्थ भारत मीडिया
द्वारा प्रस्तुत

© आशुतोष कुमार सिंह
ISBN : 978-81-966475-5-1
प्रथम संस्करण: 2025
मूल्य :
`299
प्रकाशक : शाम्भवी प्रकाशन बी-43/3, आ
सरा 2, मंडोला विहार, आवास विकास परिषद,
लोनी, गाजिाबाद, उत्तर प्रदेश, पिन-201102
ईमेल : [email protected]
कला संपादन : मणिशंकर कुमार
मुद्रक : शगुन प्रि‍ंटिंग प्रेस, नई दिल्ली
Dr. J. L. Meena P.H.C. se N.M.C. tak
Editor : Ashutosh Kumar Singh

समर्पण
देश-दुनिया में 'क्वालिटी हेल्थकेयर'
की दिशा में काम कर रहे सभी
हितधारकों एवं साथियों को समर्पित

7डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
भूमिका 9
पुरोकथन 15
खंड - 1
ŠŠमाँ की प्रेरणा और पी.एच.सी. पर पहली पोस्टिंग 17
खंड - 2
ŠŠजिला क्वालिटी हेल्थ एशरेंस ऑफिसर के रूप में बहाली और
उसके बाद का संघर्ष 39
खंड - 3
ŠŠभारत में क्वालिटी हेल्थ केयर की स्थिति और डॉ. मीना का दिल्ली जाना 47
ादों के झरोखे से : मार्गदर्शकों की नजर में...
ŠŠगुजरात में क्वालिटी हेल्थ के ध्वजवाहक 63
ŠŠबदलाव के वाहक 65
ŠŠविनम्रता के प्रतीक 66
ŠŠनि:स्वार्थ भावी शिष68
ŠŠनयसंगत स्वास्थ सेवा के अगुवा 69
ŠŠकुशल प्रबंधक 71
ŠŠरोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के अनुपालक 73
ादों के झरोखे से : सहकर्मिों और सहपा िों की नजर में...
ŠŠएन.एम.सी में उल्लेखनीय काकाल 77
ŠŠस्वास्थ सेवा क्षेत्र में एक प्रेरणा 79
ŠŠसरकारी प्रणाली में "गुणवत्ता स्वास्थ सेवा" के नायक 81
विषय सूची

8डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
ŠŠद मैन ऑफ क्वालिटी 83
ŠŠजिन्होंने स्वास्थ गुणवत्ता के महत्त्व को समझाया 85
ŠŠकठोर प्रशासक 86
ŠŠअसाधारण नेतृत्व क्षमता के धनी 87
ŠŠजमीन से जुड़ा हुआ वतित्व 88
ŠŠरोगी-केंद्रित देखभाल के चैंपियन 89
ŠŠसमाधान-केंद्रित दृष्टिकोण 90
ŠŠएक सच्चे प्रेरक और मार्गदर्शक 92
ŠŠहमारे बैचमेट जीतू 93
ŠŠएक नवजात शिशु की जान बचाई 95
ŠŠएक साधारण बच्चे की प्रेरक कहानी 96
ादों के झरोखे से : परिवारीजनों की नजर में...
ŠŠजीतू पर हमें गर्व है 99
ŠŠजब मैं 250 किमी मोटरसाइकिल से गया... 100
ŠŠप्रेरणापुंज जीजाजी 102
ŠŠमेरे हमसफर 103
ŠŠमेरे पिता एक आदर्श वति 104
परिशिष्ट - 1
ŠŠमहत्त्वपूर्ण शब्दावलियां एवं जरूरी त105
परिशिष्ट - 2
ŠŠफोटो गैलरी 113
परिशिष्ट - 3
ŠŠDr. J. L. Meena’s Profile 129
परिशिष्ट - 4
ŠŠसंदर्भ (References) 140

9डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
स्वास्थ र्वभौमिक विषय है। पंथ-निरपेक्ष विषय है। मानवीय विषय है।
जनसरोकारी विषय है। किसी भी राष्ट्र-राज की उन्नति में वहां के स्वस्थ नागरिकों
की अहम् भूमिका है। राष्ट्र-राज की उत्पादकता का सीधा संबंध नागरिकों के स्वास्थ
से
है। ऐसे में भारत का
स्वास्थ इकोसिस्टम दुनिया के तमाम विकासशील देशों की
तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर है। इसके और बेहतर होने की आवशकता है। ऐसे में यह
जरूरी हो जाता है कि यह समझा जाए कि भारत के स्वास्थ इकोसिस्टम में गुणवत्ता
(क्वालिटी) बढ़ाने को लेकर किस तरह के काम हुए हैं। 21वीं सदी का भारत कैसे अपने

हां ‘क्
वालिटी हेल्थ केयर’ को प्रोत्साहित कर रहा है।
इसी समझ को विकसित करने की कोशिश में तीन-चार वर्ष पहले मेरी मुलाकात
भारत के पहले डिस्ट्रिक्ट हेल्थ क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर डॉ. जीतू लाल मीना
(डॉ. जे.एल. मीना) से हुई। उनसे देश के स्वास्थ की स्थिति एवं स्वास्थ व
में
गुण
वत्ता की जरूरत जैसे विषयों पर गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती थी। इसी बीच एक
दिन चर्चा में यह बात निकली कि कों न भारत में क्वालिटी हेल्थ केयर की स्थिति को
लेकर एक पुस्तक लिखी जाए। यह बात डॉ. मीना को भी अच्छी लगी। उन्होंने मुझसे
कहा कि देखो आशुतोष, यह काम तो आप ही को करना पड़ेगा। मैं तो बस बता दूंगा,
जो आप पूछोगे। मन ही मन मैं भी सोच में पड़ गया कि इतने महत्त्वपूर्ण विषय पर काम
करना है, क मैं नय कर सकूंगा ? क मैं उतना समय दे सकूंगा, जितना इस पुस्तक
के लिए चाहिए? मैंने संकल्पपूर्वक डॉ. मीना के सुझाव को मान लिया।
सबसे पहले हमें यह तय करना था कि इस पुस्तक का फ्रेमवर्क क होगा? इसमें
सामग्री का चयन कैसे किया जाए? कुछ दिनों के मंथन के बाद मैंने डॉ. मीना को एक
संपादकीय नोट बनाकर प्रेषित किया और कहा कि आपके जो भी मित्र-साथी-सहयोगी हैं,
जो आपके वतित्व पर दो शब्द लिख सकते हैं, उनसे उनकी टिप्पणी लिखवा लीजिए।
डॉ. मीना ने अपने साथियों से वह संपादकीय नोट साझा किया और एक महीने के अंदर 26
संस्मरण हमें प्राप्त हुए, जिन्हें हमने इस पुस्तक के ‘यादों के झरोखे से’ में शामिल किया है।
भूमिका

10डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
अब बात थी कि भारत के क्वालिटी हेल्थ केयर से संबंधित कंटेंट को कैसे प्रस्तुत
किया जाए? मैंने शांभवी प्रकाशन के मुख काकारी अधिकारी एवं मेरे पत्रकार साथी
संजीव कुमार से इस विषय पर विमर्श किया तो उन्होंने सुझाव दिया कि आप डॉ. मीना
का एक लंबा साक्षात्कार कीजिए। उस साक्षात्कार के माधम से भारत के स्वास्थ
इकोसिस्टम में क्वालिटी को लेकर हुए कामों को उजागर करने की कोशिश कीजिए।
मु झे उनका सुझाव अच्छा लगा, कोंकि इसके पूर्व भी इस तरह का एक प्रयोग मैं हिन्दी


हित जगत के नामचीन कथाकार डॉ. मधुकर गंगाधार के जीवन-वृत को लिखने
के लिए कर चुका था। उस समय धारावाहिक रूप में उनका साक्षात्कार दिल्ली-पटना
से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र ‘बिहारी खबर’ में प्रकाशित हुआ था, जिसका
संपादित अंश एक पुस्तक के रूप में ‘डॉ. मधुकर गंगाधर से मिलिए’ शीर्षक से मु कुल
प्रकाशन ने प्रकाशित किया था।
संजीव जी के सुझाव पर यह तय हुआ कि डॉ. मीना से एक लंबी बातचीत की
जाएगी। मैंने संजीव जी से कहा कि आपको भी आना होगा। संजीव जी और मैं, दोनों
डॉ. मीना से समय लेकर मिले। बातचीत शुरू हुई। जब बातचीत एक घंटे तक लगातार
हो चुकी थी, तब हमने ब्रेक लिया। 10 मिनट के चाय ब्रेक के बाद फिर से चर्चा शुरू हुई
और अगले एक घंटे तक पुनः चर्चा होती रही। फिर ब्रेक लिया गया और अंत में तीसरे
घंटे में जाकर बातचीत लगभग पूरी हुई। तीन घंटे की इस लंबी बातचीत से गुजरते हुए,
इस साक्षात्कार से निकलने वाले कंटेंट को लेकर हमारी जो पूर्व की अवधारणा थी, वह
पूरी तरह बदल चुकी थी।
यह साक्षात्कार सिर्फ भारत के क्वालिटी हेल्थ केयर तक सीमित नहीं रह गया
था। यह वक हो चुका था। इसमें एक कथा का प्रवेश हो चुका था, जिसमें दर्द था,
पीड़ा थी, बेचैनी थी, जुनून था, संकल्प था, आशा थी, संभावना थी और सबसे बड़ी

ात एक ईमा
नदार संघर्ष का जानदार प्लॉट था।
जिन डॉ. मीना को मैंने एक अधिकारी के रूप में देखा था, वे एक भाई के रूप
में दिखे, एक आज्ञाकारी बेटे के रूप में दिखे, एक मेहनती छात्र के रूप में दिखे,
संकल्पधारी युवा के रूप में दिखे, एक डॉक्टर की वास्तविक प्रतिमूर्ति के रूप में दिखे,
मानवीय गुणों से परिपूर्ण वतित्व के रूप में दिखे, एक एक्टिविस्ट के रूप में दिखे।
डॉ. मीना को लेकर मेरी अवधारणा बदलने के कारण इस पुस्तक का स्वरूप भी बदल
गय
ा। हम
ने अपने प्रकाशक दोस्त संजीव जी से कहा कि यह तो एक डॉक्टर की प्रेरक
कहानी है और इस तरह के कंटेंट स्वास्थ की दुनिया में बहुत कम ही प्रकाशित हुए
होंगे। फिर हमने तय किया कि हम इस पुस्तक को ‘डॉक्टर कथा’ सीरीज के प्रथम पुष्प
के
रू
प में प्रकाशित करेंगे, ताकि आगे भी इस तरह की कहानियों से हम पाठकों को

11डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
रू-ब-रू करा सकें।
अब बात आई कि इस पुस्तक का शीर्षक क रखा जाए? शीर्षक को लेकर बहुत
ही कन्फ था, कोंकि यह पुस्तक जिस स्वरूप में आप पाठकों के बीच जा रही है,
उस स्वरूप में विविधता होने के कारण इसके एक नाम पर सहमति बनाना मुश्किल
था। कई दिनों के मंथन के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इस पुस्तक का नाम
‘पी.एच.सी. से एन.एम.सी. तक’ रखा जाए। चूंकि डॉ. जे.एल. मीना इस कहानी के
मुख नायक हैं और इनकी जीवन-यात्रा के माधम से ही हमने 21वीं सदी में भारत के
स्वास्थ इकोसिस्टम में क्वालिटी की स्थिति को समझने की कोशिश की है, इसलिए
इस पुस्तक का शीर्षक “डॉ. जे.एल. मीना: पी.एच.सी. से एन.एम.सी. तक” पर अंतिम
मु हर लगी।
शीर्षक के बाद पुस्तक के कवर पेज को लेकर भी बहुत दिनों तक विचार-विमर्श
होता
रहा। हमारे
डिजाइनर मित्र मणिशंकर जी ने कई डिजाइन दिखाए। उनमें से इस
पुस्तक पर प्रकाशित आवरण चित्र सबको पसंद आया। आवरण चित्र के बैकग्राउंड में
दिख रही सड़क एवं उसके आसपास का प्राकृतिक वातावरण इस बात की उद्घोषणा
कर रहा है कि डॉ. मीना की जिंदगी भी इसी तरह प्राकृतिक रही है। उसमें मिलावट
नहीं है। उन्होंने जो किया है और जो जिया है, वह डंके की चोट पर किया है। उनकी
आधकता ने जो सही समझा है, उसे पूर्ण करने के लिए उन्होंने जी-तोड़ मेहनत
की है। आवरण चित्र में डॉ. मीना की तस्वीर रखी जाए या नहीं, इस विषय पर भी
स्वस्थ भारत मीडिया से जुड़े संपादकीय कौशल वाले मित्रों से रायशुमारी की गई। सब
इस बात से सहमत थे कि इस पुस्तक के सूत्रधार डॉ. मीना हैं, अतः उनकी तस्वीर
आवरण पृष्ठ पर देना नयसंगत होगा।
उपरोक्त तमाम बातों के बीच एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक का एक
महत्त्वपूर्ण नायक इसका कंटेंट है। डॉ. मीना के बहाने हमने पिछले तीन-चार दशकों में
भारत में हुए सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक बदलावों को भी समझने का प्रयास किया है।
भारत में तब के समय में शिक्षा की स्थिति की बात हो, एक हिन्दी मीडियम के छात्र द्वारा
मेडिकल में प्रवेश पाने के बाद किए गए संघर्ष की बात हो, तब की स्वास्थ स्थिति की
बात हो, सामाजिक संबंधों की बात हो, गांव के संस्कारों की बात हो, माँ-बाप-संतान के
बीच के संबंधों की बात हो, जनसरोकारी योजनाओं की बात हो या आज के परिप्रेक् में
शिक्षा-शिक्षक-शिक्षार्थी के संबंधों की बात हो, सभी विषयों पर डॉ. मीना ने अपने अनुभव
साझा किये हैं। साथ ही उन्होंने समओं को न गिनाकर समाधान की बात की है।
इस पुस्तक में प्रकाशित उनके साक्षात्कार में आपको जीवन को प्रेरित करने
वाले तमाम प्रसंग पढ़ने को मिलेंगे। किस तरह उन्होंने फिलिप्स कंपनी के एशिया हेड

12डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
के खिलाफ एक एफआईआर करा दी, जिसकी गूंज गुजरात के तत्कालीन मुखमंत्री
नरेन्द्र मोदी जी तक जा पहुंची। एक साथ क्वालिटी हेल्थ एशरेंस के लिए गुजरात
में 2200 परमानेंट पोस्ट क्रिएट करवाना, गुजरात के पी.एच.सी. लेबल के स्वास्थ
केन्द्रों, मेडिकल कॉलेजों को भारत में पहली बार एन.ए.बी.एच. एक्रिडिएशन दिलवाने
से लेकर एन.एम.सी. से संबद्ध मेडिकल कॉलेजों को इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन दिलाने
तक
के ऐसे तमाम
प्रसंग हैं, जिन्हें पढ़कर आपको लगेगा कि एक वति इतना काम
कैसे कर सकता है। लेकिन यह भी सच है कि यदि आपका इंटेंट एवं कंटेंट सात्विक हो
तो तमाम बाधाओं को पार करते हुए आप अपनी मंजिल प्राप्त कर ही लेते हैं। यह बात
मैं अपने वतिगत अनु भव के आधार पर कह रहा हूं। मैंने भी अभाव के प्रभाव को बहुत
नजदीक से देखा है। मैंने अपनी दोनों स्वस्थ भारत यात्रा में अनु भव किया कि बेशक मेरे
पास संसाधन नहीं थे, लेकिन मेरा इंटेंट एवं कंटेंट जनोपयोगी था। यही कारण है कि
देश
के 32 राज
ों में दो बार तीन-तीन महीने की अनवरत स्वस्थ भारत यात्रा करने के
दौरान मु झे वैसी सम का सामना नहीं करना पड़ा, जैसा मैंने खु द सोचा था। भारत
का प्रतक राज भारतीयता की डोर से जुड़ा हुआ है। मैं अपने साथियों के साथ जिस
भी राज में गया, वहां के स्थानीय लोगों ने स्वास्थ जागरूकता के मेरे काम में
न सिर्फ हाथ बढ़ाया, बल्कि बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। अपनी यात्रा के दौरान भारत
के स्वास्थ इकोसिस्टम को मैं और करीब से जान पाया। साथ ही इस बात का भी
आभास हुआ कि भारत को क्वालिटी हेल्थकेयर की कितनी जरूरत है। 50 हजार
किमी की अपनी स्वस्थ भारत यात्रा के दौरान बेशक हमारा मु ख विषय जनऔषधि,
पोषण और आयुष्मान एवं स्वस्थ बालिका, स्वस्थ समाज था, लेकिन वास्तव में इस
यात्रा ने मु झे भारत की भारतीयता का साक्षात् दर्शन कराया। ठीक ऐसा ही भारतीय
दर्शन मु झे डॉ. मीना के साक्षात्कार के दौरान भी अनु भूत हुआ।
यह जो पुस्तक आपके हाथ में है, यह वसाक दृष्टि से नहीं तैयार की गई है,
बल्कि यह पूरी तरह से एक सामाजिक दृष्टि से तैयार हुई है। हमारा मु ख उद्देश यह है
कि इस पुस्तक के माधम से हम भारत के स्वास्थ इकोसिस्टम में काम कर रहे अपने


थियों को क्वालिटी हेल्थकेयर के महत्त्व से अवगत करा पाएं। उन तक यह संदेश दे
पाएं कि यदि भारत के नागरिक स्वस्थ होंगे, तो विकसित भारत का सपना और जल्द
पूर्ण होगा। देश के प्रधानमंत्री सभी भारतीयों की ओर से भारत को विकसित बनाने की
दिशा में संकल्पित होने का आह्वान कर रहे हैं। ऐसे में हमारा भी कर्तव है कि हम जो
कर सकते हैं, वह काम शत-प्रतिशत उत्पादकता के साथ करें। यही खु द के लिए एवं
राष्ट्र के लिए हमारा नय होगा। डॉ. मीना की जीवन कथा के माधम से हम यह बता
पाएं कि अगर वति ठान ले तो वह क‿न से क‿न लक् को प्राप्त कर सकता है।

13डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
विगत 12 वर्षों पनी स्वास्थ पत्रकारिता एवं 20 वर्षों के सामाजिक
पत्रकारीय जीवन के आधार पर इस पुस्तक के पाठकों की दृष्टि से मेरा जो विचार बन
रहा
है,
वह कहता है कि यह पुस्तक देश के सभी स्वास्थ पेशेवरों के लिए तो फायदेमंद
है ही, उनके लिए भी फायदेमंद है जो स्वास्थ की पढ़ाई कर रहे हैं, चाहे वे किसी भी
पैथी के कों न हो। साथ ही यह पुस्तक देश की नई पीढ़ी को भी एक नई दिशा देने में
समर्थ है। भारत के स्वास्थ इकोसिस्टम से जुड़े विषयों पर शोध कर रहे शोधार्थियों
के लिए भी यह एक उपयोगी पुस्तक है। यह पुस्तक उन तमाम पुस्तक प्रेमियों के लिए
भी उपयोगी है, जो हटकर कुछ पढ़ना चाहते हैं।
अपने सभी पाठकों से मेरा आग्रह भी रहेगा कि आप इस पुस्तक को जब पढ़ें तो
अपनी प्रतिक्रिया भी हमें दें, ताकि डॉक्टर सीरीज के अंतर्गत अन पुस्तकों को आपकी
प्रतिक्रिया के आधार पर और बेहतर किया जा सके। साथ ही इसके अगले संस्करण
को भी समृद्ध किया जा सके। एक आग्रह और है, यदि आप अपने दोस्तों को उनके
जन्मदिन पर या किसी अन शुभ मौके पर कुछ गिफ्ट करना चाहते हैं तो इस पुस्तक
को कर सकते हैं। इस पुस्तक को पढ़कर यदि देश का एक भी नागरिक डॉ. मीना की
तरह अपने का के प्रति जुनूनी हो जाए तो इस पुस्तक के प्रकाशन की सार्थकता सिद्ध
हो जाएगी।
इस पुस्तक में कुछ परिशिष्ट जोड़े गए हैं जिनमें डॉ. मीना की जीवनयात्रा से जुड़ी
हुई
कु
छ तस्वीरों, पुरस्कारों एवं उनके द्वारा किए गए विविध का की एक सूची दी गई
है। इससे गुजरते हुए पाठक उनके का की गहराई को आसानी से समझ पाएंगे। संभव
है,
बहुत सी बातें इस साक्
षात्कार से निकल कर बाहर नहीं आ पाई होंगी, लेकिन इन
परिशिष्टों को देखकर-पढ़कर पाठकों को यह अंदाजा हो जाएगा कि आखिर डॉ. मीना
की जीवन यात्रा को समझना कितना जरूरी है।
आज आपके हाथ में यह पुस्तक है तो इसके पीछे बहुत से साथियों का सहयोग
एवं योगदान रहा है, जिसमें स्वस्थ भारत मीडिया से जुड़े पत्रकार साथी अजय वर्मा
जी, जिन्होंने तीन घंटे के पूरे साक्षात्कार के ऑडियो को न सिर्फ ट्रांसक्राइव किया,
बल्कि मेरे द्वारा संपादित कंटेंट का प्रूफ भी देखा। साथ ही इस पुस्तक की पहली
पा‿का स्वस्थ भारत मीडिया की मालकिन एवं मेरी पत्नी प्रियंका को भी बहुत-बहुत
आभार प्रकट करता हूं कोंकि जैसे-जैसे मैं लिखता गया, सबसे पहले प्रियंका को
कंटेंट दिखाता था, उसे जहां टोन या प्रस्तुति में आपत्ति होती थी, उसे पुनः री-राइट
करता था। इस पुस्तक के सूत्रधार डॉ. जे.एल. मीना जी का विशेष रूप से आभार प्रकट
करता हूं कि उन्होंने इस जटिल विषय पर काम करने का मुझे मौका दिया, साथ ही
मेरी संपादकीय दृष्टि के अनु रूप कंटेंट प्रदान करने में वे कभी हिचके नहीं। इस पुस्तक

14डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
की दृष्टि से ुझे जिस तरह का कंटेंट चाहिए था, उसमें उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया।
वे लगातार कहते रहे, ‘इस पुस्तक में कंटेंट महत्त्वपूर्ण है, मैं तो निमित्त मात्र हूं।’ मु झे
लगता है कि डॉ. मीना की इसी सहजता, सरलता, आधकता, कर्मठता एवं जन

रोकार
िता का कमाल है कि वे आज राजस्थान के एक छोटे से गांव से निकल कर
अपनी सार्थक, सकारात्मक, रचनात्मक एवं सहयोगात्मक पहचान बनाने में सफल
रहे हैं।
अंत
में, अ
पने पाठकों को यह पुस्तक समर्पित करते हुए यह कहना चाहता हूं कि
भारत
को
स्वस्थ बनाने एवं बनाए रखने के इस अभियान में आप भी अपनी सहभागिता
सुनिश्चित कीजिए, ताकि इस अमृतकाल में विश्व पटल पर भारत विश्वगुरु के अपने
मौलिक स्वरूप को एक बार पुनः प्राप्त कर सके।
आशुतोष कुमार सिंह
सी-51, श्रीचंद पार्क, मटियाला,
नई दिल्ली-110059
दिनांक- 21.12.2024

15डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
यह हिन्दी में अपने तरह की पहली पुस्तक है। इस पुस्तक का महत्त्व लंबे समय
तक बना रहेगा। स्वस्थ जीवन हर मनुष की आकांक्षा है। स्वास्थ की सम को
शरीर बताने लगता है। स्वस्थ वति शरीर को आदेश देता है। अस्वस्थ वति शरीर से
आदेश प्राप्त करता है। यह हम जानते हैं। इसे रोज अनु भव भी करते हैं। ऐसी पुस्तक की
आवशकता इस समय इसलिए बढ़ गई है कि कोरोना की महामारी ने स्वास्थ संबंधी
अनेक बीमारियां पैदा कर दी हैं। महामारी तो नहीं है, लेकिन उसके कीचड़ और उससे
उत्पन्न रोग के प्रकोप बने हुए हैं। इसके लक्षण रोज स्वास्थ संबंधी दुखद सूचनाओं
से प्रकट हो रहे हैं।
ऐसे समय में यह पुस्तक स्वस्थ जीवन के सूत्र से लोगों की मदद कर सकेगी।
भारत सरकार अपने स्तर पर स्वास्थ के लिए रोज नए दरवाजे और नई खिड़कियां
खोलने का उद्यम कर रही है। बहुत पहले चिकित्सा जगत में विभिन्न पैथियों की
परस्पर दूरी बनी हुई थी, वह इस समय दूर हो रही है। इससे स्वास्थ की देखभाल
में

ड़ा सुधार हुआ है। उसी दिशा में यह पुस्तक भी है। इसकी पहल आशुतोष कुमार
सिंह ने की है। वे लंबे समय से स्वस्थ जीवन के लिए जागरूकता के विविध आयोजनों
के य बन गए हैं। इससे उनकी एक पहचान कायम हुई है। ऐसे स्वास्थ पत्रकार
आशुतोष कुमार सिंह के संपादन में निकली यह पुस्तक ‘डॉ. जे.एल. मीना : पी.एच.
सी. से एन.एम.सी. तक’ भारत के स्वास्थ देखभाल के क्षेत्र में ‘गुणवत्ता’ के महत्त्व को
रेखांकित करती है।
इस पुस्तक में तीन बातें हैं। एक, यह पुस्तक एक चिकित्सक की जीवन-संघर्ष
गाथा को रेखांकित करती है। दूसरा, स्वास्थ के क्षेत्र में नई पहल से यह पुस्तक
परिचित कराती है। स्वस्थ जीवन के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में विभिन्न पद्धतियों में
परस्पर पूरकता और सहयोग की भावना आवशक है। तभी अपने देश में गुणवत्तापूर्ण
स्वास्थ की देखभाल संभव है। इस पुस्तक में इस तरह के प्रयासों और का को एक
सूत्र में पिरोया गया है। तीसरा, आमतौर पर स्वास्थ संबंधी पुस्तकें अंग्रेजी में होती
पुरोकथन

16डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
हैं। वे चिकित्सकों े लिए उपयोगी होती हैं। सामान जन उससे भाषा की क‿नाई के
कारण दूर ही बना रहता है। इस कमी को यह पुस्तक पूरी करती है, कोंकि यह हिन्दी
में प्रकाशित हो रही है। इस अर्थ में यह अपने तरह की पहली पुस्तक है। इसके केंद्र में
एक चिकित्सक है।
इस पुस्तक के संपादक आशुतोष कुमार सिंह के स्वास्थ विषयक का को मैं
विगत एक दशक से जदा समय से देख रहा हूं। वे अक्सर कुछ हटकर करते हैं। उनके
तमाम का का धय एक ही होता है- भारत एवं दुनिया के लोगों को स्वास्थ के प्रति

चेत,
जागरुक एवं समझदार बनाया जाए। इसके लिए उन्होंने दो बार भारत की यात्रा
भी की है। विगत 10 वर्षों से ‘स्वस्थ भारत डाट इन’ वेबपोर्टल का भी संपादन कर रहे
हैं। आम लोगों को स्वास्थ के प्रति जागरूक करने की अगली कड़ी में मैं इस पुस्तक
को देखता हूं।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए पाठक को भारत के स्वास्थ पारिस्थितिकी तंत्र को
समझने में सहूलियत मिलेगी। यह पुस्तक स्वास्थ के क्षेत्र में काम कर रहे प्रतक
कामकाजी लोग, छात्र, शोधार्थी, नीति-नियंता के साथ-साथ आम लोगों के लिए भी
प्रेरणादायी है। इस पुस्तक में स्वास्थ विषयक चर्चा तो है ही, साथ ही सामाजिक
विषयों को भी स्वास्थ की दृष्टि से समझने की कोशिश की गई है।
इस पुस्तक के प्रेरणा-पुरुष डॉ. जे.एल. मीना का गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ-सेवा की
दुनिया में सराहनीय का रहा है। यह पुस्तक उनके जीवन-संघर्ष को रेखांकित करने
में सफल रही है।
अनंत शुभकामनाएं!
रामबहादुर रा
समूह संपादक, हिन्दुस्थान समाचार
अध, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र

17डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
कोविड-19 के हित पूरी
दुनिया में स्वास्थ संबंधित विषयों
पर जागरूकता बढ़ी है। देश-दुनिया के
लोग अपनी सेहत के प्रति सचेत भी
हुए हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि सही
समय पर सही जानकारी आम लोगों
तक पहुंचे। इस परिप्रेक् को ध में
रखकर डॉक्टर कथा सीरीज के तहत
सबसे पहले एक ऐसे डॉक्टर से रू-ब-रू
कराने जा रहे हैं, जिन्होंने भारत के
स्वास्थ इकोसिस्टम में गुणवत्ता के
महत्त्व को जोरदार तरीके से रेखांकित
किया है। इस सीरिज के हमारे पहले
मेहमान है- डॉ. जीतू लाल मीना। डॉ.
मीना से उनके जीवन, करियर एवं उनके
द्वारा भारत के स्वास्थ इकोसिस्टम में
क्वालिटी हेल्थ की स्थिति पर जाने-
माने स्वास्थ पत्रकार एवं स्वास्थ
चिंतक आशुत ोष कुमार सिंह ने विस्तार
से बातचीत की है। प्रस्तुत है बातचीत
का संपादित अंश:-
माँ की
प्रेरणा और
पी.एच.सी. पर पहली पोस्टिंग
खण्ड - 1

18डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- मीना जी नमस्कार! सबसे पहला सवाल ही है कि आप अपनी
जीवन ात्रा के प्रारंभिक काल के बारे में बताएं। मसलन आपका जन्म कहां हुआ,
कब हुआ?
डॉ. मीना- थैंक यू वेरी मच सर। मेरा जन्म राजस्थान के एक छोटे से गांव पुरामोहचा
में
एक
दिसंबर को हुआ था। एक मधमवर्गीय परिवार में मैं जन्मा। पापा रेलवे में नौकरी
करते थे। हम छह भाई-बहन थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुई।
वहां पर फर्स्ट से फिफ्थ तक का प्राइमरी स्कूल था। गांव में ही पां चवी क्लास तक हम
लोग पढ़े-लिखे। फिर सिक्स क्लास में खण्डीप स्थित सेकेंडरी स्कूल जाते थे। जो करीब-
करीब हमारे गांव से आठ किलोमीटर दूर था। उस समय आने-जाने का कोई साधन नहीं
हुआ करता था, और न ही हमारी आर्थिकी ऐसी थी कि हम अपने लिए अलग से किसी
गाड़ी की व कर पाएं। अतः हम पैदल ही स्कूल जाते थे। सुबह की क्लास पकड़ने के
लिए हमें सुबह-सुबह ही तैयार हो जाना पड़ता था, जल्दी जागते थे और फिर तैयार होकर
जल्दी ही स्कूल के लिए निकल पड़ते थे। इस स्कूल में हम आठवीं तक पढ़े। आठवीं के
बाद यह तय हुआ कि हमें साइंस लेना है, मैथ पढ़ना है या जीव-विज्ञान पढ़ना है। तब हम
लोगों ने आगे की पढ़ाई के लिए गंगापुर सिटी का चयन किया। सीनियर सेकेंडरी स्कूल,
गंगापुर सिटी था, में 12वीं तक की पढ़ाई होती थी। उसी समय 11वीं एवं 12वीं दोनों
बोर्ड हो चुका था। राजस्थान बोर्ड से 12वीं करने के बाद हमने मेडिकल की तैयारी की
और जवाहर लाल नेहरू (जे.एल.एन.) मेडिकल कॉलेज से हमने अपना एम.बी.बी.एस.
कंप्लीट किया।
आशुतोष- मीना जी, आपने जन्म से लेकर और एम.बी.बी.एस. की डिग्री तक
की पूरी बात अभी बताई है। लेकिन अभी हम आपके बचपन में ही आपको लौटाना
चाहते हैं। हम जानना चाहते हैं कि आपके प्रारंभिक जीवन के सम का ग्रामीण
जीवन कैसा था? उस सम गांव का सामाजिक-आर्थिक माहौल कैसा था?
डॉ. मीना- उस समय का गांव का माहौल देखें तो मेरा गांव कोई जदा डेवलप नहीं
था, बहुत छोटा गांव था। वहां पर मुश्किल से करीब 100 घर हुआ करते थे, जिनमें सभी
धर्म-जाति के लोग रहते थे। गांव में न तो सड़क थी और न ही विकास के मानक को पूरा
करने वाले कोई अन साधन। लेकिन गनीमत की बात यह थी कि एक प्राइमरी स्कूल था।
पां चवीं तक वहीं पढ़ने जाते थे। पां चवीं के बाद खण्डीप पढ़ने जाने वाला रास्ता भी कच्चा
ही था। बरसात के मौसम में रास्ते में पानी भर जाता था। हममें जो लंबा लड़का होता था,
वह छोटे कद के लड़कों को पानी से पार कराता था। कभी-कभी पानी में हम गिर जाते थे।
बड़े संघर्ष के वो दिन थे। गांव में प्राइमरी स्कूल होने के कारण हमारा गांव उस समय के
बाकी गांवों की अपेक्षा शिक्षा के मामले में थोड़ा आगे था। हमारे गांव में थोड़ी जागरूकता

19डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
थी। हमारे राइमरी स्कूल में जो टीचर्स थे, वो काफी स्ट्रिक्ट थे, जिन्होंने वाकई एक
स्ट्रिक्टनेस दिखाई थी और जिसकी बदौलत ही गांव में शिक्षा का एक बेहतर माहौल बन
पाया था। शिक्षकों में एक बाबू लाल जी थे, वे बहुत स्ट्रिक्ट थे।
आशुतोष-

स सम कितने शिक्षक हुआ करते थे, पांचवीं तक की सभी क्लास
के लिए?
डॉ. मीना- सिर्फ दो ही टीचर थे। वही दो लोग संभाल लेते थे। उसमें एक बहुत
स्ट्रिक्ट थे, दूसरे सॉफ्ट। उनका आपस में अच्छा कॉम्बिनेशन था। एक अगर जोर से डांट
भी दें, तो दूसरे छात्रों को संभाल लेते थे। टाइम की बहुत पाबंदी थी। अगर आप टाइम पर
स्कूल में नहीं पहुंचे तो बहुत बड़ी प्रॉब्लम्स हो जाती थीं।
आशुतोष- मतलब वहां पर जो प्राथमिक शिक्षा आपको मिली और आज के दौर
में जो प्राथमिक शिक्षा मिल रही है, उसमें फर्क है। आज के सम में नर्सरी से लेकर
एल.के.जी., सबके लिए अलग-अलग टीचर अलग-अलग क्लासेस। इसके बावजूद
क्वालिटी स्टूडेंट नहीं निकल पा रहे हैं। उस सम के क्वालिटी स्टूडेंट की बात की
जाए तो आप खुद एक क्वालिटी स्टूडेंट के उदाहरण हैं। तब की शिक्षा और अब की
शिक्षा में कहां अंतर पा रहे हैं?
डॉ. मीना- उस समय के एजुकेशन को अगर मैं रियल में देखूं तो मुझे लगता है कि
तब के शिक्षकों में गजब का डेडिकेशन था। दूसरा, स्कूल के मामलों में अभिभावकों का
अनावशक इंटरफेयरेंस नहीं था। तब के टीचर्स स्ट्रिक्ट थे, अगर वे दो-चार झापड़ मार
दिए, तब भी ऐसा नहीं था कि पेरेंट्स इसकी कंप्लेन लेकर टीचर के पास चले जाएं।
दूसरी कक्षा पास करने के लिए हमें 40 तक पहाड़े और 100 तक गिनती सीखनी पड़ती
थी। जब हम तीसरी में आते थे, तब तक हमें किताबें पढ़नी ठीक से आ जाती थी। हमारे
टीचर खेलकूद, बागवानी आदि सब कुछ कराते थे। हमारे प्रैक्टिकल ज्ञान को बढ़ाने का
काम प्राथमिक स्तर पर ही हो जाता था। हमारे दोनों गुरु अब के 10 शिक्षकों के बराबर
अकेले थे।
आशुतोष-
उन दोनों गुरुओं
से जुड़ी हुई कोई बात आपको ाद हो, ा कभी
उन्होंने आपको सजा दी हो ा कभी गलती हो गई हो आपसे!
डॉ.
मीना- उस
दिन की बात मुझे आज भी याद है। मेरे गुरु जी गांव में ही रहते थे।
तब
के समय में गुरु
जनों का सम्मान बहुत होता था। उनके रहने, खाने-पीने का ध गांव
के लोग रखते थे। हमारे गुरु जी भी कभी-कभी छोटी-मोटी जरूरत के सामान हम छात्रों
से मंगा लिया करते थे। एक दिन मेरे गुरु जी ने मुझे घर से दूध लाने को कहा। लेकिन जब
मैं घर से स्कूल आ रहा था, तब तक माँ ने दूध में दही जमाने के लिए जोरन डाल दिया
था। मैं बिना दूध के गया तो गुरु जी की डां ट के साथ-साथ मार भी खानी पड़ी। गुरु जी को

20डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
लगा कि मैं लापरवाही में दूध लाना भूल गया। बाद में माँ ने गुरु जी को बताया कि इसमें
जीतू की कोई गलती नहीं है, मैंने ही दूध में दही डाल दिया था। तब से मैंने कसम खा ली
थी कि आगे से ऐसी कोई गलती नहीं करूंगा, जिसके कारण गुरु जी की मार खानी पड़े।
और उसके बाद जिंदगी में कभी भी मैंने मार नहीं खाई।
आशुतोष- और आपके दोस्त साथी तो खूब मार खाते होंगे? 
डॉ. मीना- अरे! वो तो पीलू की लोद हुआ करती थी। गांव में बहुत होती है। यह
एक फ्लेक्सिबल डंडा हुआ करता था, किसी-किसी पर तो चार-चार डंडा टूट जाता था।
रिजल्ट में फेल हुए साथियों के पैरेंट्स तो उन्हें स्कूल से ही पीटते हुए घर ले जाते थे।
आशुतोष-
मैं आपको पुनः व
र्तमान में ले आना चाहता हूं कि आज अगर शिक्षक
बच्चों को डांट दे ते हैं तो पैरेंट्स से शिकात करते हैं और पैरेंट्स सीधे आते शिक्षक
से कहने कि आपने डांटा क्यों? इस स्थिति को आप किस नजरिए से दे खते हैं? ऐसे
में क्वालिटी सिटीजन की परिकल्पना को कैसे साकार किा जा सकेगा?
डॉ. मीना- बच्चे और पैरेंट्स का रिलेशन बिल्कुल अलग होता है। जहां तक मैं
समझता हूं कि पैरेंट्स-बच्चों के रिलेशन की धमक स्कूल में नहीं सुनाई देनी चाहिए, ऐसा
होने पर बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो जाती है। स्कूल के गुरु जी और एक स्टूडेंट के बीच का
जो रिलेशन होता है, वह टोटली डिफरेंट होता है। आज भी मुझे याद है कि जब मैं अपने
प्राइमरी स्कूल के गुरु जी से मिलने उनके घर पर जाता हूं तो उनके स्नेह, पर और
दुलार से भाव-विभोर हो जाता हूं। भले ही उन्होंने हमें पढ़ाई के लिए जितना भी डां टा-पीटा
हो, लेकिन हमारे प्रति उनके मन में एक अपनापन का भाव है। यह अपनापन तभी आता
है, जब शिक्षार्थी अपने गुरु के सामने खुद को समर्पित कर देता है। तभी शिक्षक अपने
शिक्षार्थी को ओन करता है, यानी अपना समझकर उसके भले-बुरे का ख रखता है।
ऐसे में अगर शिक्षा-शिक्षक-शिक्षार्थी के संबंधों में अभिभावकों की अनावशक दखल बढ़
जाए तो शिक्षक के मन में शिक्षार्थी के प्रति कभी अपनापन का भाव नहीं जागृत होगा।
आशुतोष- वर्तमान में देखा जाए तो स्टूडेंट्स और टीचर्स की रिलेशनशिप में
काफी बिखराव आ गा है। स्टूडेंट को भी लगता है कि मेरे माता-पिता पढ़ाने के
बदले शिक्षक को पैसा दे रहे हैं और उसके बदले में वे अपनी सेवा दे रहे हैं। शिक्षक-
शिक्षार्थी को जोड़ने वाला जो भाव था, वह ही गाब होता जा रहा है। इस स्थिति को
आप किस नजरिए से दे खते हैं?
डॉ.
मीना- आ
ज भी मुझे याद है, मैं अभी रिसेंटली अपने गांव गया हुआ था। हमारे
जो टीचर थे, उनका बच्चा दुकान चलाता है। बच्चे को तो मैंने कभी देखा भी नहीं। लेकिन
जैसे ही मैं उस दुकान पर गया और दुकानदार ने मेरे परिचय को जैसे ही जाना कि मैं डॉ.
जीतू लाल मीना हूं, उसने कहा-आपकी तो मेरे पापा बहुत तारीफ करते हैं। कहने का

21डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मतलब यह है कि अपने गुरु जी के साथ मेरा रिलेशन जो पांचवीं कक्षा में था, वह आज भी
जीवंत है। वे आज भी जब मिलते हैं, मुझे अपने पुत्र की तरह पर देते हैं।
आशुतोष- आप आज के अभिभावकों को कुछ कहना चाहेंगे?
डॉ. मीना- मैं तो यही कहूंगा कि आप स्कूल के मामले में मिनिमम इंटरफेयरेंस
कीजिए। मैं तो अवॉइड ही करना चाहूंगा। अगर पैरेंट्स इन्वॉल्वमेंट कम से कम रहे तो एक
टीचर अपना बेस्ट दे सकता है, इसमें कोई डाउट नहीं है।
आशुतोष- फिर हम आपको बचपन में लिए चलते हैं। अभी आप स्कूल की चर्चा
कर रहे
थे, इ
समें आपके पैरेंट्स का क रोल है? और आपके पिता जी क करते
थे, क्योंकि बैकग्राउंड भी समझना बहुत जरूरी है।
डॉ. मीना- बिल्कुल सही, हमारी माता जी तो गृहणी थीं जो पूरा घर संभालती थी।
पिता जी रेलवे इंजीनियरिंग में सर्विस करते थे। वे कोटा से सैटरडे या संडे को घर आया
करते थे। वह भी 10-15 दिन में, कभी-कभी तो महीने में एक बार ही आ पाते थे। लेकिन
जब भी पापा घर पर आते थे, तो कभी भी पूछ लेते थे कि हम भाइयों की पढ़ाई-लिखाई
कैसी चल रही है। हमलोग सबसे जदा पापा से डरते थे, कोंकि गलती से भी कुछ
गलत हो गया मतलब झापड़ पड़ना पक्का था और इस मामले में मम्मी भी पापा का ही
साथ देती थीं। एक दिन मुझे भी मार पड़ी और मैंने यह संकल्प लिया कि आगे से पापा
के हाथों नहीं पिटना है, भले मम्मी के हाथों हम कितना भी पिटें। हमने फिर पढ़ाई के
मामले में कभी पापा की मार नहीं खाई। बाकी छोटी-मोटी चीजों में मम्मी की ठीक है,
डांट खाते रहते थे।
आशुतोष-
आप बता रहे थे
कि आज की तारीख़ में चार भाई और एक बहन हैं
तो क आप सबसे बड़े हैं?
डॉ.
मीना- एक
्चुअल में हमसे बड़े हैं बड़े भैया, आई.एफ.एस. थे, जो चीफ कंजरवेटर
फॉरेस्ट, गुजरात से रिटायर्ड हुए। उनसे छोटे भाई तहसीलदार से रिटायर्ड हुए हैं। उनसे
छोटी बहन है और उनसे छोटा मैं हूं। मेरे से छोटा भाई प्रोफेसर है।
आशुतोष- ानी आप सबसे छोटे हैं?
डॉ.
मीना-
नहीं, मेरे से छोटा भाई है जो प्रोफेसर है। मेरे से एक बड़े भाई तो बचपन
में ही चले गए थे। एक मुझसे बड़े भाई थे, वे फाइनल इंजीनियरिंग में थे, तब उनका देहांत
हो गया था, तब मैं छठी कक्षा में था। आज की तारीख में एक बहन, चार भाई हैं।
आशुतोष- आपके जो भाई इस दुनिा में नहीं रहे, क उन्हें कोई बीमारी हुई थी?
डॉ. मीना- जी नहीं, इसमें जो एक मेरे से जस्ट बड़े थे, वे पानी में गिर गए थे,
हमलोगों ने उनको बचाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन बचा नहीं पाए थे। वे तीन या
चार साल के ही थे...

22डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- तो एक्सीडेंटल मामला था...
डॉ. मीना- हां, एक्सीडेंटल ही था। दूसरे जो बड़े भैया थे, वे फाइनल इंजीनियरिंग
की परीक्षा देकर घर पर आए हुए थे, लेकिन सडन उस टाइम बुखार आया। गांव में उस
टाइम डॉक्टर्स तो थे नहीं, झोलाछाप के भरोसे उनका उपचार शुरू हुआ। उन्हें एक
इंजेक्शन दिया गया। सलाइन चढ़ाया गया। उसी दौरान अचानक से कोई दवा रिएक्ट कर
गई और उनके दां त एकदम से बंद हो गए। यह देखकर माँ सहित घर में चीख-पुकार मच
गई। माँ ने अपनी अंगुली डालकर उनके दां त को छुड़ाना चाहा लेकिन माँ की अंगुली कट
गई, जिस कारण माँ भी बीमार पड़ गई। सबसे बड़ी भाभी उस समय प्रेगनेंट थीं, भैया का
हाल देखकर वे भी बेहोश हो गर्इं। घर में न तो पापा थे और न ही और कोई बड़ा। उस समय
मैं ही घर में एकमात्र पुरूष था, जो भाग-दौड़ कर सकता था। बड़े भैया, बड़ी भाभी और माँ,
तीनों को हॉस्पिटलाइज कराया गया। पापा कोटा में थे, हमारे जो बड़े भैया थे वो ट्रेनिं ग में
थे, उनसे छोटे भैया, वो भी अपनी ड्यूटी पर थे। सहारे की बात यह थी कि गांव के लोग
हमारे साथ खड़े थे। उन्होंने बड़ी मदद की। हमारे यहां श्री महावीर जी का जो हॉस्पिटल
है, हम वहां गए। हमारे गांव से इसकी दूरी करीब आठ किलोमीटर थी। श्री महावीर जी एक
प्राइमरी हेल्थ सेंटर है। प्राइमरी हेल्थ सेंटर में एक तरफ भैया एडमिट हुए, दूसरी तरफ
मम्मी एडमिट थी तो तीसरी तरफ भाभी जी एडमिट हुर्इं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि
उस समय मेरी क हालत हो रही होगी। मैं छठी कक्षा में पढ़ने वाला बालक था। मैं कभी
भाभी को देख रहा था तो कभी भैया को और फिर कभी-कभी मम्मी जी को। गांव से जो
लोग पहुंचे थे, वे आपस में बात कर रहे थे कि भैया तो बच नहीं पाएंगे। कुछ ही समय में
वहां के डॉक्टरों ने भी कहा कि भैया का वहां पर कुछ नहीं हो सकता, आप करौली लेकर
जाएं। करौली थोड़ा बड़ा अस्पताल था, उस समय डिस्ट्रिक्ट नहीं था, तहसील ही था,
लेकिन वहां की व सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल जैसी थी, इसलिए वहां पर कोशिश
की, लेकिन भैया की हालत नहीं सुधरी। उन्हें जयपुर ले जाने के लिए कहा गया और इस
बीच में उनकी डेथ हो गई। हमें इस बात का मलाल है कि यदि करौली में अच्छी स्वास्थ
सुविधा होती तो शायद हम अपने भैया को बचा पाते। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
आशुतोष- आप बता रहे थे कि जिस करौली में आपके भैा का उपचार नहीं हो
सका, उसी करौली को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैा कराने के लिए आपने एन.एम.
सी. में रहते हुए मेडिकल कॉलेज सैंक्शन किा?
डॉ. मीना- स्वास्थ सुविधाओं के अभाव में भैया की हुई मौत को मैं कभी भूल नहीं
पाया। दिल के एक कोने में वह टीस आज भी जीवंत है। उस समय की स्थिति को याद
करते हुए बहुत बुरा लगता है। लेकिन जब मैं नेशनल मेडिकल कमीशन में आया और
अपने हाथों से करौली मेडिकल कॉलेज का सैंक्शन ऑर्डर दे रहा था, उस समय मेरी

23डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
आंखें नम हो गई थीं। पुरानी सारी यादें ताजा हो गर्इं। मन में एक प्रकार की संतुष्टि थी
कि जिस अभाव के कारण मेरे भाई का उपचार नहीं हो पाया, अब शायद ऐसा अभाव
वहां के किसी और को नहीं देखना पड़ेगा। वह दिन मेरे लिए बहुत ही खुशी का दिन था।
जिस क्वालिटी हेल्थकेयर की जरूरत करौली जैसी जगहों को है, वैसी हेल्थकेयर अब
मिलना शुरू हो चुकी है। मैंने राजस्थान के कम से कम 15 मेडिकल कॉलेजों को सैंक्शन
ऑर्डर दिया था। आप समझ सकते हो, जिस मिट्टी से मैं आता हूं, वहां की समओं का
समाधान करने का मुझे अवसर मिला, यह मेरे लिए कितना सुकून देने वाली बात थी। मेरा
बचपन से सपना था कि मैं अपनी मिट्टी के लिए, अपनी भारत भूमि के लिए गुणवत्तायुक्त
स्वास्थ सुविधा के क्षेत्र में का करूं और आज वह काम करने का मौका मिल रहा है।
आशुतोष- बातचीत को थोड़ा और पीछे लेकर चलते हैं। बीच में आपके भैा
वाली चर्चा आ गई। आपकी शिक्षा-दीक्षा में आपकी माता जी की क भूमिका रही?
डॉ. मीना- जैसा कि हम सब जानते हैं कि माँ तो माँ होती है। मेरी मम्मी भी हम सभी
भाई-बहनों की परवरिश पर समान रूप से ध देती थीं। भैया की मौत के बाद घर में
सब लोग टूट चुके थे। तभी हमने यह फैसला लिया था कि घर में एक डॉक्टर का होना
बहुत जरूरी है। छठी कक्षा में ही मैंने डॉक्टर बनने का संकल्प ले लिया था। इस संकल्प में
परिवार के सभी लोगों की सहमति थी। हम भाइयों की पढ़ाई में मम्मी बहुत सहयोग करती
थीं। जब हम खण्डीप पढ़ने जाते थे, तब सुबह-सुबह नहला-धुला कर, समय से खाना
बनाकर हमें तैयार करवाने में मम्मी हमेशा आगे रहीं। सुबह 5 बजे से ही उनकी दिनच
शुरू
हो
जाती थी। हमारी मम्मी ने कभी भी हमें ठंडा खाना नहीं दिया, हमेशा गर्मा-गरम
परोसती थीं। सर्दी हो या गर्मी, बिना नहाए वो हमें स्कूल नहीं भेजती थीं। साफ-सफाई
के साथ-साथ मम्मी का ध इस बात पर रहता था कि हमने अपना होमवर्क पूरा किया
कि नहीं। बिना होमवर्क किए खेलने नहीं जाने देती थीं मम्मी। उनके कारण ही जीवन में
पंकिटी अर्थात् जो काम करो समय पर करो, समय से करो का आदर्श स्थापित
हुआ। मम्मी की प्रेरणा से हम स्कूल में भी खूब मेहनत करते थे और अच्छे से अच्छे अंक
लाने की हरसंभव कोशिश करते थे। मेहनत का फल मीठा होता है, यह तो हम सबने सुना
ही है, सो मैं भी फर्स्ट आता था। उन दिनों फर्स्ट आने वालों को गांव-घर में बड़ा सम्मान
मिलता था, आज भी मिलता है। इस तरह देखें तो आज जो कुछ भी हूं, माँ की प्रेरणा व
आशीर्वाद से हूं।
आशुतोष-

सा कहा जाता है कि बड़े बेटे और छोटे बेटे की ओर माँ का झुकाव
जदा होता है। आपको ऐसा कभी लगा क कि आपकी माँ आपसे कम पर करती
हैं और बड़े-छोटे भाइों से जदा?
डॉ. मीना- एक्चुअल में ऐसी स्थिति नहीं आई, कोंकि जो बड़े भैया थे, वो सर्विस में

24डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
लग गए थे। म्मी ने सबको एक जैसा ही पर दिया। जहां स्ट्रिक्टनेस की जरूरत थी, वो
सब पर स्ट्रिक्ट रहीं। जहां पर उन्होंने छूट दिया वो सबको एक जैसा दिया तो ऐसा कभी
फील नहीं हुआ। हां , नेचुरल है कि जो छोटा बच्चा होता है, वो माँ की तरफ जदा रहता
है, इसमें कोई डाउट नहीं है। हम छोटे भाइयों में झगड़े भी बहुत होते थे। घर में कोई भी
खाने-पीने की चीज आए, उस पर छोटे भाई की दावेदारी तो होती ही है और यह नेचुरल
भी है। छोटे में भी जो बड़ा होता है, नेचुरल है, उसे यही कहा जाता है कि आप तो बड़े
समझदार
हो। हा
लांकि ऐसी स्थिति में समझदार कोई नहीं होता। खाने की ललक सबमें
होती है। कभी-कभी गड़बड़ हम भी करते थे। हम छोटे को देते तो बराबर थे, लेकिन मैं
अपनी चीज जल्दी खा जाता था, वह धीरे-धीरे खाता था, ऐसे में उसकी भी चुराने का
मौका मिल जाता था। ऐसे में स्वाभाविक था, डां ट पड़ती है। मुझे भी पड़ती थी।
आशुतोष- माँ, जैसा कि कहा जाता है कि पा शाला होती है, पहली पा शाला
होती है, उस लिहाज से माँ को आप किस रूप में ाद करते हैं?
डॉ. मीना- उस समय हम ढीबरी यानी मिट्टी के तेल से जलने वाले दीए से पढ़ा
करते थे। रात्रि में माँ के बगल में बैठकर हम पढ़ते थे। हमें लगता था कि माँ सो गई लेकिन
माँ तब तक नहीं सोती थी, जब तक हमारी पढ़ाई चलती थी। माँ को इस बात का डर
रहता था कि कहीं हम पढ़ते-पढ़ते सो न जाएं, ढीबरी जलती हुई न छूट जाए। इन सब
बातों को वे खूब ऑब्जर्व करती थीं। आज की तरह की सुविधाएं उस समय नहीं थीं। आज
तो 24X7 बिजली है। माँ हमारी रूटीन का पूरा ख रखती थीं। सुबह जगाने से लेकर
समय
से सो
ने तक उनकी नज़र हमेशा हम भाइयों पर बनी रहती थी। दरअसल, हमारी
माँ अनुशासन की पाठशाला थीं। आज जीवन में जो भी अनुशासन सीख पाया हूं, उसका
पूरा श्रेय मेरी माँ को जाता है।
आशुतोष- अब वर्तमान में हम आते हैं, इसी सवाल पर। आजकल की जो माँ
हैं, कामकाजी भी हो गई हैं, आा के भरोसे बच्चों को छोड़ दे ती हैं ा घर में ना एक
कांसेप्ट आा है, केरटेकर का, उसे रख लेते हैं। एक क्वालिटी सिटीजन बनाने के
लिए बच्चों को एक माँ का जितना अटेंशन मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाता। इसको
आप किस तरीके से दे खते हैं?
डॉ.
मीना- मेरा मा
नना है कि बच्चे का जो प्राथमिक विकास है, वो 100% माँ के
ऊपर बहुत डिपेंड करता है, कोंकि बचपना ऐसा होता है जिसमें आप खेल भी रहे हो,
कूद भी रहे हो, मस्ती भी कर रहे हो, बदमाशी भी कर रहे हो, सब कुछ होता है। इन सबमें
संतुलन बनाने का काम माँ करती है। माँ का पर भी होता है, डांट भी मिलती है और
पिटाई भी करती है, लेकिन यह सब उसके वात्सल भाव के तहत ही होता है। माँ अपने
बच्चे की पूरी तरह ऑनरशिप लेती है। यही कारण है कि माँ की गोद में पले-बढ़े बच्चे की

25डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
ग्रोथ अलग लेवल पर होती है। घर में माँ जो संस्कार देती है, वह बच्चा एडॉप्ट करता
है। मसलन यदि माँ धार्मिक प्रवृति की है, पूजा-पाठ करती है तो बच्चे पर भी इसका
सकारात्मक असर पड़ता है।
आज की बात की जाए तो जदातर लोग सर्विस से रिलेटेड हो गए हैं। माताएं भी
कामकाजी हो गई हैं, जिस कारण वे बच्चों पर ध नहीं दे पा रही हैं। लेकिन जो माँ
बच्चों को नौकरानियों के भरोसे या बेबी सेंटर के भरोसे छोड़ती हैं, उनका विकास और
उनको मिलने वाले संस्कार में बहुत अंतर आ जाता है। आगे चलकर ऐसे बच्चों में माँ-
बाप के प्रति लगाव कम हो जाता है। जब बच्चों की हमें सबसे जदा जरूरत होती है, वे
अपनी दुनिया में मगन हो चुके होते हैं। ऐसा इसलिए भी, कोंकि उन्होंने माँ-बाप के पर
को ठीक से बचपन में महसूस ही नहीं किया। एक माँ जब अपने बच्चे को दूध पिलाने के
लिए छाती से लगाती है तो वह पर उस बच्चे के लिए जीवन भर न भूलने वाला होता
है। स्नेह का रसायन उसके मन-मस्तिष्क में घुल जाता है, जो माँ-बाप एवं बच्चों को पर
की एक मजबूत डोर से बांध कर रखता है। नहीं तो आजकल जैसे हो रहा है, बचपन में
बेबी सेंटर के भरोसे, फिर डे केयर, उसके बाद बोर्डिंग स्कूल, उसके बाद करियर बनाने
की
हो
ड़ और अंत में बच्चा माँ-बाप से विरक्त होकर अपनी दुनिया में मशगूल हो जाता है।
बच्चा मनोवैज्ञानिक रूप से माँ-बाप से जुड़ ही नहीं पाता।
आशुतोष- े जो साइकोलॉजिकल हर्डल और बर्डन है, इसको किस नजरिए
से देख रहे हैं?
डॉ.
मीना- देखो, इसमें बहुत सारी बातें हैं। मैं
ने मेडिकल में भी पढ़ा है। पहले की माँ
ब्रेस्टफीडिंग बहुत आराम से कराती थीं। ब्रेस्टफीडिंग सिर्फ एक फीडिंग तक सीमित नहीं
है। जब बच्चा फीड ले रहा होता है, तब वह हमेशा माँ की आंखों में देखता है। मेडिकल
साइंस के हिसाब से बच्चे का दिमाग तो ऑलरेडी डेवलप्ड हो चुका होता है। वह सिर्फ
बोल ही नहीं पाता है, लेकिन वह फीलिंग नहीं समझता, ऐसा नहीं है। वो ए टू जेड चीज
समझ रहा होता है। अब आप उसको कितना टाइम दे रहे हो, नेचुरली उस टाइम के ऊपर
आपका जो इमोशन है तो वे सारी चीजें वो ऑब्जर्व करता है। बच्चे के बड़े होने पर जब हम
यह बोलते हैं कि बच्चे ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया, हमें तो बोर कर दिया, इस स्थिति
के लिए मैं यह समझता हूं कि आप खुद जिम्मेदार होते हैं। आपने जैसी परवरिश की है,
उसका प्रतिफल आपको मिलता है। आपने जितना समय दिया है, उतना ही आपको
रिटर्न मिलेगा न! यदि आप अपने बच्चे पर अपना समय इंवेस्ट नहीं करेंगे तो बड़ा होकर
वह आप पर कैसे करेगा?
आशुतोष- इमोशंस धीरे-धीरे खत्म होने लगे हैं, ऐसा है क?
डॉ. मीना- मुझे लग रहा है कि एक-दूसरे के प्रति आपका अटैचमेंट है, वह कमतर

26डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
हुआ है। आने वाले वर्षों में वृद्धाश्रमों की संख बढ़ने वाली है, बढ़ भी रही है। इसके पीछे
का
एक कारण माँ-बा
प और संतानों के बीच बढ़ रही दूरी भी है। इसके पीछे का कारण
भी वही है, जिसकी चर्चा हमने की है। पहले संयुक्त परिवार का चलन था, जिसका बड़ा
लाभ होता था। पति-पत्नी में झगड़ा हो भी जाए तो घर वाले संभाल लेते थे। परिवार में
अलग-अलग विहेवियर के लोग एक साथ रहते थे। इससे मानवीय वहार को समझने
में
सहू
लियत होती थी। ऐसे में इंसान सब तरह के लोगों की साइकोलॉजी को आसानी से
समझ पाता है, जिससे सामाजिक व वतिगक जीवन जीना आसान हो जाता है। लेकिन
आज तो परिवार का कांसेप्ट ही खत्म होता जा रहा है। बच्चा अलग पड़ा है, माँ अलग
है, पापा अलग है। समझने वाली बात यह है कि अगर आज अपने बच्चों को समय नहीं दे
पा रहे किसी भी कारण से, मान के चलना होगा कि हमारे अंतिम समय में अगर वो समय
नहीं देंगे तो हम रोएं नहीं।
आशुतोष- आप एक सोशल डॉक्टर हैं, क्लिनिकल डॉक्टर तो हैं ही, ह पूरा
जो सिनेरिो है सोसाइटी का, इसका समाधान कुछ आपके मन में कभी आा?
डॉ. मीना- अगर आज की दृष्टि में हम देखें तो दो चीजें बहुत इंपॉर्टेंट हैं। मैंने यह
देखा है, फील भी किया है। बच्चे का जब तक विवाह नहीं होता, तब तक बहुत अच्छा
एनवायरमेंट रहता है घर का, इसमें कोई डाउट नहीं। लेकिन जैसे ही मैरिज होती
है तो यह हकीकत है कि कितना भी अच्छा परिवार हो, कहीं न कहीं उनके आपसी
संबंधों पर ‘एक्सपेक्टेशन’ हावी हो जाता है। वैचारिक मतभेद सामने आने लगते हैं
कोंकि जो बच्चा होता है, उसका झुकाव पत्नी, माँ-बाप और परिवार सबकी ओर
होता है। सास-बहू की अपेक्षाओं की चक्की में बेटे को कई बार पिसना पड़ता है। ऐसे
में सास-ससुर को भी यह मानना पड़ेगा कि जो बहू आई है, वह बेटी की तरह है। ठीक
वैसे ही बहू को भी मानना पड़ेगा कि उसके पति का परिवार अब उसका परिवार है,
जिसे अपनाना चाहिए। अगर दोनों एक समान और एक जैसा एनवायरमेंट दें तो मैं
समझता हूं कि परिवार का माहौल ठीक हो सकता है। दूसरी बात यह है कि पुरुष-
महिला दोनों कामकाजी हो चुके हैं। ऐसे में बुजुर्ग माता-पिता का ख रख पाना अब
आसान नहीं रह गया है। शहर की जिस आपा-धापी में आज की नई पीढ़ी रह रही है,
जिस दबाव में जी रही है, जिस अवसाद में उनका जीवन कट रहा है, वैसे में परिवार
के बुजुर्ग, शहरों में उनके साथ कंफर्टेबल महसूस नहीं कर पाते हैं। वैसे भी जो गांव
में
रह गए हैं, खु
ले वातावरण में रहे हैं, उन्हें तो शहर रास आता भी नहीं है। ऐसे में
यदि गांवों में ही बुजुर्गों की देखभाल के लिए कोई सार्वजनिक उपक्रम की व हो
सके, जहां पर उनके रहने, खाने-पीने एवं उनके स्वास्थ का समुचित ख रखा
जाए तो एक बेहतर विकल्प निकल सकता है। गांव के वातावरण में रहकर भी बुजुर्ग

27डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
स्वस्थ जीवन जी पाएंगे।
आशुतोष-
एक
सवाल ह भी कि अगर दोनों सर्विस करते हैं तो उनकी
आमदनी भी ीक- ाक है। वे चाहें तो अपने पैरेंट्स को व्यवस्थित जीवन जीने के
लिए व्यवस्था बना सकते हैं। माँ-पिताजी को दिन में संभालने के लिए किसी सहाक
को रख सकते हैं?
डॉ. मीना- एक माहौल चाहे तो बनाया जा सकता है। वृद्धाश्रम भेजना एकदम
अंतिम विकल्प होना चाहिए। फैक्ट रियलिटी, प्रैक्टिकल रियलिटी की मैं बात करूं,
आजकल गांव में जो पैरेंट्स रह रहे हैं, उनमें से जदातर के बच्चे शहरों में काम कर रहे
हैं। अपनी फैमिली यानी पत्नी को भी साथ ही रख रहे हैं, जो स्वाभाविक भी है। ऐसे में
यदि बच्चे अपने पैरेंट्स को अपने साथ रखें तो भी जो कंफर्टनेस वे गांव में फील करेंगे, वो
आप यहां शहर में दे ही नहीं सकते। मैं भी अपने पिताजी को जब शहर लेकर आता था,
वे यहां रहना पसंद नहीं करते थे, जबकि हमारी पत्नी उनकी खूब सेवा करती थीं। हमारे
गांव में एक सार्वजनिक किचेन जैसे कॉन्सेप्ट पर कुछ लोग सोच रहे हैं। अंतिम समय में
हमारे बुजुर्ग मां -बाप को सिर्फ इतना ही चाहिए होता है कि उन्हें समय पर भोजन मिल
जाए एवं पूजा-पाठ करने के लिए धार्मिक माहौल। अगर ऐसा कुछ सरकार गांव के स्तर
पर कर पाए तो बहुत से बुजुर्गों का अंतिम समय सुखमय हो सकता है।
आशुतोष- फिर से मैं आपको बचपन की ादों की ओर ले चलना चाहता हूं।
जैसा कि आपने बताा था, आपके पिताजी रेलवे में काम करते थे। उस सम
परिवार में कमाने वाले शाद वही थे। ऐसे में आप सब की पढ़ाई-लिखाई, घर का
खर्च, ानी आपके पिताजी घर की आर्थिकी को कैसे संभालते थे?
डॉ. मीना- सच में, यह एक बड़ा चैलेंज था। हमारे लिए राहत की बात यह थी कि
हमारे घर पर खेती होती थी। माँ खेती-किसानी का काम मैनेज कर लेती थीं। पापा कोटा
में रहते थे, पापा के साथ ही भैया भी रहते थे। भैया बताते हैं कि उस समय एक-एक पैसा
बचाना पड़ता था, पापा-मम्मी बहुत सोच-समझ कर खर्च करते थे। भैया ने बताया था
कि कई बार तो ऐसा हुआ कि पापा के पास महीने के अंतिम दिनों में पैसा नहीं होता था।
कई बार तो सब्जी लाने के लिए भी पैसे नहीं बचते थे। यह सच भी है, उस समय नौकरी
में पैसा बहुत कम मिलता था और पूरे परिवार की अपेक्षाओं पर खरा उतरना आसान
नहीं था।
आशुतोष- जैसा कि आपने बताा था कि छ ी कक्षा में ही आपने डॉक्टर बनने
का सपना दे ख लिा था। एम.बी.बी.एस. की तैारी करना भी आसान काम नहीं था।
डॉक्टर बनने की पढ़ाई से लेकर डॉक्टर की डिग्री मिलने तक का आपका अनुभव
व संघर्ष कैसा रहा?

28डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
डॉ. मीना- मैंने पर भी बताया है कि सिक्स क्लास में मेरे भैया वाली जो घटना
घटी, 1982 का साल रहा होगा। नेचुरल है हम परिवार के सभी सदों को एक डॉक्टर
की कमी खली थी। हमें भी लगा था कि मेहनत करके डॉक्टर तो बनना ही है। वैसे शुरू
से ही मैं पढ़ाई-लिखाई में टॉप कर रहा था, बस यह निरंतरता बनाए रखनी थी। आठवीं
कक्षा तक हम खण्डीप स्कूल में पढ़े, फिर नाइंथ क्लास में हम लोगों ने पहले ही सोच
लिया था कि बायोलॉजी लेना है, मेडिकल में जाना है, तो फिर गंगापुर सिटी स्कूल में आ
गए थे। वहां आए तो माहौल थोड़ा अलग था। हम ग्रामीण माहौल से आए थे, इस स्कूल में
शहर के बच्चे थे। उनके साथ एडजस्ट होने में थोड़ी दिक्कत तो हुई थी। हम तो पैदल ही
आते-जाते थे। ट्यूशन जाने के लिए साइकिल की सवारी कर लेते थे। मैंने खूब मेहनत से
पढ़ाई की और 12वीं में 1st क्लास पास हुआ। तभी घर पर मेरे विवाह की चर्चा शुरू हो
चुकी थी। मेरे बड़े भैया के गुजर जाने के बाद घर वालों को यह लगा कि अगर वे मेरी शादी
पहले कर देंगे तो मेरे साथ मेरी पत्नी का भाग भी जुड़ जाएगा और मेरे साथ कोई ऐसी
दुर्घटना नहीं होगी, जैसी भैया के साथ हो गई थी। ऐसे ही माँ ने एक दिन गांव बुलाया और
मेरी एंगेजमेंट करा दी। पापा ने भी इतनी जल्दी विवाह होने पर कुछ नहीं बोला। वे भी माँ
के भाग वाले लॉजिक से संभवतः सहमत थे। उनका सोचना एक तरह से सही ही साबित
हुआ। विवाह के बाद मैंने मेडिकल की परीक्षा दी और राजस्थान में अच्छी रैंक आई और
इस तरह मेडिकल में मेरा सेलेक्शन हो गया।
आशुतोष- हाल ही में एक रिपोर्ट देख रहा था, जिसमें राजस्थान में बाल विवाह
की प्रथा को लेकर बात की गई है। क आज भी वहां े काम है?
डॉ. मीना- नहीं, अभी तो बहुत कम हो गया है। पहले जरूर थी। बाल विवाह
गलत है। मुखतः सामाजिक सुरक्षा ही उनका कंसर्न रहा होगा। कोई भी मां-बाप
अपने बच्चों की शादी इतनी जल्दी नहीं करना चाहता। वैसे क्रिमि‍नल माइंडसेट
के लोग हर काल-खंड में रहे हैं, जिनके कारण समाज में असुरक्षा का भाव रहा है।
लेकिन मेरे गांव में उन दिनों बहुत ही धार्मिक माहौल था। हमारे गांव में न तो कोई
नॉनवेज खाता था और न ही शराब पीता था। इसके पीछे हमारे यहां के एक संत
महाराज थे। उन्होंने गांव वालों को मांसाहार व शराब के कारण पड़ने वाले बुरे प्रभावों
के बारे में जागरूक किया। उनकी बात मानकर पूरा गांव शाकाहारी हो गया एवं शराब
गांव में पीना एवं लाना पूरी तरह से वर्जित हो गया। आज भी एक घटना मुझे याद
है। गलती से बाहर गांव का एक आदमी दारू पीकर आ गया था। गांव में बदमाशी
कर रहा था, फिर गांव वालों ने उसे इतना पीटा कि‍ पूछिए मत! फिर गांववालों ने
मिलकर उसको जो वहां की थाई होती है पंचायत की, वहां पर जाकर एक नीम के
पेड़ से लटका दिया। वह तब तक लटका रहा, जब तक नशा उतरा नहीं। इस सख्ती

29डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
के कारण गांव में क्राइम बहुत ही कम था, विशेषतः अपने गांव के क्राइम की बात करूं
तो उस
टाइम
बिल्कुल ही न के बराबर था।
आशुतोष- आपके गांव में किसी को पीने का मन करता होगा, तो वह दूसरे
गांव में जाकर पी तो सकता ही था?
डॉ. मीना- जी नहीं, गांव का कोई भी आदमी दूसरी जगह पर जाकर भी नहीं पी
सकता था। यदि गांव वालों को इसकी भनक लगती तो वे उसे जात वार यानी अपनी
जाति से अलग-थलग कर देते थे।
आशुतोष- अभी वर्तमान में क स्थिति है?
डॉ. मीना- वर्तमान में बहुत कुछ बदल गया है। आज की स्थिति टोटली डिफरेंट है।
आशुतोष- फिर से आपको वापस आपके मेडिकल की पढ़ाई वाले विष पर
लिए चलता हूं...आपकी बात पूरी नहीं हुई थी...आप अपने संघर्ष के बारे में बता
रहे थे…
डॉ. मीना- जी, मैं बता रहा था कि मेडिकल में मेरा अच्छा रैंक आया था। मेरे मन में
यह बात थी कि रैंक बहुत अच्छा आया है तो मुझे जयपुर का एस.एम.एस. कॉलेज मिल
जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। फिर मैं अजमेर पहुंचा। मैं हिन्दी मीडियम का छात्र
रहा। 12वीं तक 1st क्लास आता रहा। लेकिन मेडिकल की पढ़ाई में अचानक सब कुछ
अंग्रेजी में पढ़ना, समझना और लिखना पड़ा। यहां पर सभी सब्जेक्ट अंग्रेजी में पढ़ने थे।
टीचर
भी अंग्
रेजी में ही पढ़ाते थे। वहां के जो कुछ वीआईपी बच्चे थे, नेचुरल है कुछ लोग
इंग्लिश मीडियम से थे। उस समय वे फटाफट जवाब दे देते थे। हमें यह फील होने लगा
कि यहां तो बड़ी मुश्किल होगी।
आशुतोष- तो अंग्रेजी फोबिा के आप शिकार हो गए। इससे कैसे बाहर निकले?
डॉ. मीना- फिर क था। धीरे-धीरे रटते गए। पास तो होना ही था। मैंने सोचा ऐसे
तो काम चलेगा नहीं। सभी प्रश्नों एवं उनके उत्तरों को रट लो। फिर समय के साथ-साथ

मझ भी
विकसित हो गई। लेकिन इस बात का मलाल जरूर रहा कि हिन्दी में जितना
बेहतर तरीके से हम लिख सकते थे, उतना अच्छा अंग्रेजी में नहीं लिख पाए। अपनी
भाषा में इंसान अपने स्व विवेक से बहुत कुछ लिख पाता है, अपनी बात को ठीक से
प्रस्तुत कर पाता है। वहीं एम.बी.बी.एस. के बाद जब फील्ड में निकले, वहां भाषा को
लेकर कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं था। वहां पर प्रैक्टिकल वर्क करना था। आम लोगों से
बातचीत करनी थी। उनके दुःखों का निवारण करना था। वहां पर मेरा परफॉर्मेंस बहुत
अच्छा रहा। आज जब हम लोग अपने पूरे बैच का एनालिसिस करते हैं तो देखते हैं
कि उस समय क्लास में अंग्रेजी में पढ़े-लिखे जितने भी टॉपर थे, हाजिर जवाब थे, वे
आज फील्ड में उतने सफल नहीं हैं। हिन्दी मीडियम वाले बच्चों ने हार्ड वर्क किया था।

30डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
अकादमिक रूप से बेशक वे रट-रटाकर पास हुए, लेकिन प्रैक्टिल में वे जदा सफल
रहे,

ोंकि उन्होंने देश की तासीर को, देश के लोगों की नब्ज को नजदीक से देखा
था। समओं से रू-ब-रू होकर वहां पहुंचे थे। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि मैं लोगों
की समओं को जदा बेहतर तरीके से समझ पा रहा था और उसी के अनुरूप
डाय

्नोस भी कर रहा था। शहर और गांव दोनों जगह के अनु भव के कारण इस नए
का-वातावरण में बैलेंस बनाने में सहूलियत हुई। वैसे भी फील्ड में कोई आपकी डिग्री
नहीं पूछता है। वहां पर आपका वहार और नॉलेज काम आता है। आपका वहार
ठीक रहता है तो आपसे कनिटी के लोग कनेक्ट करते हैं, मरीज सटिस्फाई होता है।
आपकी बातचीत से उसे बहुत राहत मिलती है। यह मनोविज्ञान है। जब किसी मरीज
से
कोई डॉक
्टर ठीक से बात करता है, तो उसे ठीक होने की आशा बढ़ती है। उसका
विश्वास जगता है कि अब वह ठीक हो जाएगा। मरीज की सकारात्मक सोच भी उसकी
बीमारी को ठीक करने में मदद करती है।
आशुतोष-
एम.बी.बी.ए
स. करने के बाद आप सरकारी अस्पताल ज्वाइन किए
थे ा निजी?
डॉ. मीना- एम.बी.बी.एस. से निकला तो मेरा इरादा गवर्नमेंट में आने का नहीं था।
मकराना में एक लगन शाह मेमोरियल हॉस्पिटल है, जो एक निजी अस्पताल है, ज्वाइन
किया था। वहां पर मैं दिन-रात काम करता था, कोंकि मेडिकल में तो सिर्फ री की
पढ़ाई हुई थी, प्रैक्टिकल नॉलेज तो यहीं मिलना था। जब आप फील्ड में उतरते हैं, तब
रियलिटी पता लगती है, रियल प्रैक्टिकल होता है। इंजेक्शन लगाने का तरीका भी हमें
नर्स से सीखना पड़ता था। आईवी स्लाइन सीखनी है तो नर्स से सीखनी पड़ती है। लेकिन
जब मैं प्रैक्टिकल करने उतरा तो मैंने अपने डॉक्टर वाले एटिट्यूड को पहले ही दूर कर
दिया था, कोंकि अगर आप डॉक्टर का एटीट्यूड रखेंगे तो आपको नर्स कभी भी नहीं
सिखाएगी। नर्स नहीं सिखाएगी तो आप कम से कम आईवी स्लाइन में तो एक्सपर्ट नहीं
हो पाएंगे। मुझे सभी तरह से अपने आपको जानकार बनाना था, इसलिए मैं सीखता गया
और आज भी सीखता हूं।
मुझे आज भी याद है, जब मैं पीडियाट्रिक्स की ओपीडी में बैठा हुआ था तो एक
माँ बच्चे को लेकर आई रिसेप्शन पर। वह पूछ रही थी कि बच्चे वाले डॉक्टर कहां है?
उसे मेरे चैंबर में भेज दिया गया। वह मेरे चैंबर में अंदर आने से पहले ही वापस लौट गई
और रिसेप्शन पर जाकर बोली कि अंदर बैठा डॉक्टर तो खुद ही बच्चा है, वह मेरे बच्चे
को

देखेगा? उसे फिर वहां के स्टॉफ ने बताया कि वह डॉक्टर यानी मैं बहुत अच्छा
देखता हूं, फिर वह मेरे पास आई। उस अस्पताल में तमाम तरह के केसों को देखने-
समझने एवं ट्रीट करने का मुझे मौका मिला।

31डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- जैसा कि आपने पहले बताा कि आपको सरकारी अस्पताल
ज्वाइन करने का बिल्कुल भी मन नहीं था, फिर ऐसा क हुआ कि आप सरकारी
की ओर उन्मुख हुए?
डॉ.
मीना- एम.बी.बी.एस. के बाद मैं
ने सबसे पहले प्राइवेट ही ज्वाइन किया था,
लेकिन एक ऐसी घटना घटी, जिसने मेरे सोचने-समझने की दिशा ही बदल दी और फिर
मैं सरकारी अस्पतालों में ही अपनी सेवाएं देने के लिए संकल्पित हुआ। जब मैं लगन
शाह हॉस्पिटल में सर्विस दे रहा था, उसी टाइम मेरी माँ बीमार पड़ीं। माँ का कॉल आया।
उन्होंने जो सिमटम्स बताए, वे चिंतित करने वाले थे। मैं उन्हें लेकर जयपुर एस.एम.एस.
मेडिकल कॉलेज गया। सभी जरूरी टेस्ट नॉर्मल आए। स्वाभाविक ही था, हम सभी बहुत
खुश हुए कि माँ को कोई मेजर बीमारी डिटेक्ट नहीं हुई। फिर मैं-पापा और मम्मी जयपुर
के प्रसिद्ध पिक्चर हॉल गए और पिक्चर देखी। फिर मम्मी को छोड़कर मैं वापस आ गया।
15-20 दिनों के बाद अचानक से फिर मम्मी की तबीयत खराब हो गई। घर से फोन
आया और मैं भागते हुए वहां पहुंचा। हमने उनका उपचार एसएमएस मेडिकल कॉलेज व
अपेक्स हॉस्पिटल में कराया। डिटेल्ड इंवेस्टिगेशन के बाद डॉक्टरों ने यह कहा कि यह
या तो ट्यूबरोक्लोसिस है या कैंसर। उस समय डॉक्टर यह डिफरेंस नहीं कर पा रहे थे
कि यह नरो का मामला है, टीबी का, मेटासिस है या कैंसर। उनका ट्रीटमेंट शुरू हुआ।
स्वाभाविक है, इस स्थिति में हम मम्मी को घर पर नहीं छोड़ सकते थे। बड़े भैया जो
आईएफएस थे, उन दिनों डिपटेशन पर जोधपुर आए हुए थे। हम लोगों ने यही डिसाइड
किया कि भैया के पास मम्मी को रखेंगे और साथ में मैं रहूंगा। उस समय मेरे लिए नौकरी
उतना जरूरी नहीं था, जितना माँ का ख रखना। मम्मी के पास ही मैं जोधपुर में 5-6
महीना रहा। मैं जितना बेस्ट दे सकता था, वह दिया। मेरी माँ को सुबह 5 बजे स्नान कर
पूजा करने की आदत थी। उन्होंने बीमारी की हालत में भी अपनी पूजा नहीं छोड़ी। जब
जदा सीरियस होती थीं, तब उन्हें जोधपुर हॉस्पिटल में भर्ती करा देते थे। अस्पताल
में भी हमारी कोशिश रहती थी कि उनकी धार्मिक च ससमय चलती रहे लेकिन होनी
को कौन टाल सकता था? एक दिन ऐसा आया, जब हॉस्पिटल के अंदर माँ की तबीयत
बहुत जदा ख़राब हो गई और मुझे उनको सीपीआर देना पड़ा और अंत में जब डॉक्टर्स
की
टीम आई तो म
म्मा दुनिया से अलविदा ले चुकी थीं…मैं माँ के सिर की तरफ पड़ा था
और बड़े भैया माँ के पैरों में, माँ हम सबको छोड़कर चली गईं। लेकिन जाते-जाते उन्होंने
यह
कहा
था कि मैं प्राइवेट अस्पताल छोड़कर सरकारी अस्पताल ज्वाइन करूं और वहां
पर क्वालिटी केयर देने की दिशा में बेहतर का करूं। मम्मी के जाने के बाद इस बात का
मलाल आज भी है। काश! उस समय मम्मी की बीमारी पहले डिडेक्ट हो गई होती और
हम उनको ऐसे नहीं जाने देते। उनका साथ कुछ और समय तक हमें मिल गया होता।

32डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- ानी आप ह कह रहे हैं कि माँ के कहने के कारण ही आप सरकारी
अस्पतालों में काम करने के लिए राज़ी हुए।
डॉ. मीना- जी बिल्कुल। माँ को भी लग रहा था कि यदि स्थानीय स्तर पर क्वालिटी
केयर मिलता तो उनकी बीमारी को भी पहले ही डिटेक्ट कर लिया गया होता। इतना
ही नहीं, मेरे भैया को भी बचाया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। यही कारण
था कि माँ ने अपने अंतिम समय में हमें यह कहा कि अगर कुछ करना ही है तो सरकारी
अस्पतालों में जाओ और वहां क्वालिटी केयर के लिए काम करो।
आशुतोष- तो आपने सरकारी में सबसे पहले कहां पर ज्वाइन किा?
डॉ. मीना- मेरे पास राजस्थान एवं गुजरात, दोनों जगह पर सरकारी में काम करने
का
मौका
था, लेकिन उस समय की स्थितियों को ध में रखते हुए एवं अपने घऱ-
परिवार, दोस्तों की सलाह पर मैंने गुजरात जाने का मन बनाया। गुजरात में जब मुझे
पहली पोस्टिंग मिली, वह भी कम संघर्षमय कहानी नहीं है। मुझे एक ऐसे प्राथमिक
स्वास्थ केन्द्र पर भेज दिया गया था, जहां से चार डॉक्टर पहले सस्पेंड हो चुके थे। उन
पर गड़बड़ी करने का आरोप लग चुका था। मेरे लिए वह जगह कितनी चैलेंजिंग रही होगी,
आप अंदाजा लगा सकते हैं। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैंने ज्वाइन किया। जब मैं अपने
पी.एच.सी. सेंटर गया तो वहां इंफ्रास्ट्रक्चर चरमराया हुआ था। बारिश का मौसम था।
पी.एच.सी. पानी से लबालब भरा हुआ था। मैंने अपनी पहली ओपीडी इन्हीं हालात के
बीच शुरू की थी। जो क्वार्टर रहने को मिला था, उसकी छत भी चू रही थी और मुझे रात
भीगते हुए बितानी पड़ी। मेरे पिताजी चाह रहे थे कि किसी तरह जुगाड़ लगाकर मैं अपना
ट्रांसफर करा लूं, लेकिन मैंने पापा को कहा कि आपका काम था मुझे डॉक्टर बनाना और
अब आगे काम मेरा है। मुझे लोगों की सेवा करनी है। फिर मैं जी-जान से जुट गया। गांव
वालों की मदद से मैंने पी.एच.सी. का हुलिया ही बदल दिया। जिस पी.एच.सी. पर कोई
आना नहीं चाहता था, वह पी.एच.सी. अपने क्वालिटी केयर के लिए जाना जाने लगा।
टाइम्स ऑफ इंडिया के फ्रंट पेज पर हमारे पी.एच.सी. की खबर छपी। उसके बाद तो
हमारे काम की चर्चा चारों ओर धीरे-धीरे फैलने लगी थी। लेकिन यह भी सच है कि यह
सब मेरी माँ की प्रेरणा से ही संभव हो पा रहा था।
आशुतोष- तो जैसा कि हम भी चर्चा कर रहे थे कि पी.एच.सी. पर आप आ
गए। ह आपकी पहली पोस्टिंग थी। और इस पी.एच.सी. का जो हाल था, वह
बहुत ही बुरा था। फिर भी आप सेवा देने के लिए तैार हुए और इसे एक बहुत ही
बेहतरीन सेंटर के रूप में परिवर्तित कर दिा। इस पी.एच.सी. पर कुल मिलाकर
आपका अनुभव कैसा रहा?
डॉ. मीना- इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह टास्क मेरे लिए बहुत ही चैलेंजिंग

33डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
था। संघर्षपूर्ण था। मुझे व एवं समाज, दोनों के बीच में समन्वय स्थापित करते हुए
आगे बढ़ना था। वैसे भी जब मैं पी.एच.सी. पर पहली बार पहुंचा था तो वहां का माहौल
बहुत ही नकारात्मक था। वहां की व अव्थित थी। लेकिन मैं हमेशा एक मं त्र
को अंगीकार कर चलता था। वह था कि कोई भी काम करो, दिल से करो। बदलाव जरूर
आएगा। ओपीडी का जो समय हमने नियत किया था, मैं ठीक समय पर पहुंच जाता था।
वहां पर जो अननेसेसरी की प्रैक्टिसेस चल रही थी, जिस वजह से डॉक्टर सस्पेंड हुए
थे, मसलन एक-दो रुपये लेना, वह सब मैंने जाते ही बंद करा दिया था। फ्री ट्रीटमेंट का
मतलब यानी फ्री ट्रीटमेंट होना चाहिए। मैं इन सभी बातों को बड़े-बड़े अक्षरों में बाहर बोर्ड
पर लिखवा दिया। इससे व में पारदर्शिता आई। काम बहुत आसान हो गया। लेकिन
एक और बड़ा चैलेंज था, वह था कि वहां पर आने वाले सभी लोग तत्कालीन माननीय
मुखमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी साहब का नाम लेते थे और कहते थे कि मैं तो मोदी जी को
जाकर यह बोल दूंगा, वह बोल दूंगा। दरअसल, उस जगह पर नरेन्द्र मोदी साहब पहले
तीन-चार महीने रह चुके थे, इसलिए उनसे सबकी नजदीकी थी। लेकिन मेरा कॉन्सेप्ट
बिल्कुल क्लियर था, मुझे अपना बेस्ट देना था, आम लोगों को बेस्ट ट्रीटमेंट मुहैया
कराना था। मेरा वहार हमेशा से लोगों के हितार्थ रहा। इससे लोग मुझसे जुड़ते चले गए। 
फिर मैंने वहां पर मेडिकल चेकअप स्टार्ट कर दिया। स्कूल हेल्थ प्रोग्राम उस टाइम
नया-नया आया था। स्कूल हेल्थ प्रोग्राम में नॉर्मली लोग क करते थे कि पहले से
रिपोर्टिंग कर देते थे। लेकिन वास्तव में चेकअप करने नहीं जाते थे। लेकिन मेरा फंडा
बिल्कुल क्लियर था। माँ ने जो मुझे सिखाया था, वह मैं भूला नहीं था। ‘अर्ली डायग्नोसिस
बेस्ट फॉर ट्रीटमेंट’ के मं त्र को मैंने हमेशा याद रखा। मैंने सोचा कि अगर स्कूलों में जाकर
मैं पहले से ही डायग्नोसिस कर लूं तो मैं बेटर तरीके से उनका ट्रीटमेंट कर सकता
हूं। इसलिए ए टू जेड स्कूलों में जाकर खुद टीम बनाई, सभी स्कूलों में मैं खुद गया। सभी
बच्चों की स्क्रीनिं ग मैंने खुद की। आपको विश्वास नहीं होगा जब मैंने यह अभियान शुरू
किया, तब मुझे कम से कम 200 कंजेनाइटल हार्ट डिजीज (जन्मजात हृदयरोग) के बच्चे
मिले। उसी तरीके से कुछ क्लेफ़्ट प्लेट एंड क्लेफ़्ट लीप के थे तो कुछ बच्चों की आंखें
ख़राब थीं और किसी को मेजर ट्यूमर जैसा था। इन बच्चों का जब ट्रीटमेंट करने की
बात आई तो नेचुरली बच्चों का जब ट्रीटमेंट आप फ्री करवाते हैं तो यह भी एक बड़ा
चैलेंज आ गया था। कोंकि कागजों में प्रोग्राम चलाना बड़ा आसान होता है, लेकिन जब
आप रियलिटी में जाते हो, तब बड़ा चैलेंजिंग हो जाता है। अब हमने 200-250 बच्चों
को आइडेंटिफाई कर लिया था तो मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज उनका मुफ्त उपचार
कराना था, कोंकि उपचार हमारे सेंटर पर नहीं था। उनका सीधा ट्रीटमेंट अहमदाबाद
में था।

34डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
बच्चों को अहमदाबाद ले जाना भी एक बड़ा चैलेंज था। उस समय लीमडी से
अहमदाबाद जाने में चार से पांच घंटे लगते थे। तो चार से पांच घंटे लगने के लिए उनको
अर्ली मॉर्निंग में लाना था। यह भी एक चैलेंज था। ऐसे में हमने वहां पर जो रोटरी क्लब
है, लायंस क्लब है, एनजीओ हैं, उनको इकट्‾ किया, कोंकि इन सब चीजों के लिए
हमारे पास तो फंड होता नहीं है। उनको मैंने कहा कि भैया, आप क-क काम करते
हो? पहले वे लोग सिर्फ फोटो खिंचा लेते थे, इधर-उधर पल्स पोलियो में जाकर। मेरी
काउंसलिंग के बाद उनको बात समझ में आई। वे भी हमारी मुहिम में जुड़ गए। हमारे
पी.एच.सी. के अंदर ही एक बड़ा हॉल था। वहां पर गद्दे डलवा दिए गए। शाम को सभी
बच्चों को पैरेन्ट्स के साथ बुला लेते थे और सुबह-सुबह वहां से जो हमारी एंबुलेंस थी,
कुछ जिला से मंगा लेते थे, में उन्हें लेकर अहमदाबाद के लिए निकल पड़ते थे। कभी-
कभी तो 15-20 बच्चों को एक साथ लेकर गए, कभी 25 को लेकर गए। उस तरीके से
हम वहां से लेकर जाते थे। अहमदाबाद से पहले मेरे एक जानने वाले का फॉर्म हाउस
था। मैं उनसे कहकर बच्चों के लिए नाश्ते एवं नहाने-धोने की व करा देता था।
वहां पर हमारे पहुंचने के पहले ही खाट लग जाती थी और सबके लिए नाश्ते का भरपूर
इंतजाम हो जाता था। 10 बजते-बजते हम अहमदाबाद पहुंच जाते थे। जब फर्स्ट टाइम
मैं एक साथ 20 बच्चों को लेकर गया अहमदाबाद कार्डिक इंस्टिट्यूट में तो वहां का
प्रबंधन अचंभित था। स्कूल हेल्थ प्रोग्राम अभी स्टार्ट ही हुआ था। 20 बच्चों को लाना
अपने आप में चैलेंज था और सबका फ्री में उपचार करना था। यह सोचकर वहां का
प्रबंधन आनाकानी करने लगा था।
अहमदाबाद के लिए मैं तो अननोन था, लेकिन मेरे एक जो स्टाफ थे, वे काफी
एक्टिव थे। लाख कोशिश करने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन फ्री में उपचार करने के लिए
तैयार नहीं था। वे इको का पैसा मांग रहे थे। मेरे लिए दोहरी मुसीबत थी। इको का इतना
पैसा मैं अपनी जेब से कहां से दूं और यदि बच्चों के पैरेंट्स से मां गू तो यह भी ठीक नहीं
था, उनको तो मैं फ्री में उपचार कराने का वादा करके लाया था। वैसे भी लीमडी एक
ट्राइबल एरिया था।
इसी बीच हमारे स्टॉफ ने मुझे यह सूचना दी कि अपने किसी रिश्तेदार को देखने के
लिए स्वास्थ मंत्री साहब आए हुए हैं। यदि उनसे संपर्क हो सके तो शायद कुछ बात बने।
यह
खबर हमारे
लिए किसी संजीवनी से कम नहीं थी। कहते हैं न कि डूबते काे तिनका का
सहारा। हम बिना इधर-उधर देखे, सीधे मंत्री जी के पास पहुंचे और मैंने उनको सारी बात
बताई। साथ ही यह भी जोड़ दिया कि यदि आपको यह योजना कागजों में लॉन्च करना
था तो कागज में ही रहने देते। यह सब सुनकर मंत्री जी बहुत नाराज हुए। तब तक हमें यह
पता चल चुका था कि हम जिनसे बात कर रहे हैं, वे अब मिनिस्टर नहीं हैं। लेकिन इस

35डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
प्रोग्राम को शुरू करने वाले वही थे।
उन्होंने ऊपर अस्पताल प्रबंधन से बात की, लेकिन बात नहीं बनी। इस बात पर वे
और
भी
नाराज हुए। उन्होंने मुझे आश्वासन देते हुए कहा कि डॉ. मीना, आप आधे घंटे
इंतजार करो। वे वहां से निकल कर सीधे माननीय मुखमंत्री जी के पास गए और जैसे ही
माननीय मुखमंत्री जी के यहां से डायरेक्टर को फोन आया, सारा परिदृश ही बदल गया।
अब वे लोग डॉ. मीना को ढूंढ़ने लगे। सभी बच्चों का उपचार फ्री में हुआ। इस घटना ने यह
सिद्ध कर दिया कि यदि पॉलिि‍टकल विल हो तो कुछ भी किया जा सकता है। मुखमंत्री
जी के लिए तो मैं कुछ भी नहीं था, एक पी.एच.सी. का मेडिकल ऑफिसर था। लेकिन
यह उनके गुड गवर्नेंस का कमाल था कि उन्होंने तुरंत संज्ञान लिया। उसके बाद मैं जब
तक पी.एच.सी. पर रहा, बच्चों को लेकर आता रहा और उनका उपचार फ्री में हुआ। यह
2000 से 2003 की बात है। उस बीच तकरीबन 250 बच्चों का ऑपरेशन मैंने करवाया
था। उस दौरान मेरे पास दूसरे एरिया के लोग भी अपने बच्चों की स्क्रीनिं ग करवाने आने
लगे थे। मेरे सिर्फ यही धय था कि मैं सबका उपचार फ्री में ससमय करा पाऊं। इसके
लिए कई बार जिला में मुझे बाकी सीनियर की नाराजगी भी झेलनी पड़ती थी। लेकिन
बच्चों के उपचार कराने के बाद जो संतुष्टि मिलती थी, उसके आगे किसी की नाराजगी
बहुत मायने नहीं रखती है। बच्चे जब ऑपरेशन कराकर मेरे पास आते थे और आशीर्वाद
लेने के लिए मेरे पैर छूते थे तो ऐसा लगता था, मानो मेरा दिल धक से बाहर आ गया। मैं
आनं द और स्नेह के भाव से भावविभोर हो जाता था। बच्चों के परिवार वालों का जो स्नेह
व आशीर्वाद मुझे मिला, वह प्राइसलेस था।
आशुतोष- और कोई ाद, जो आप साझा करना चाहें...।
डॉ. मीना- मुझे अपने पी.एच.सी. में गार्डन बनाने के लिए कुछ धन की जरूरत
थी। मैंने सोचा क्राउड फंडिंग करके कुछ धन जमा करूं। यह बात जब हमारे यहां के एक
ताल्लुका प्रमुख को पता लगी तो उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि डॉ. मीना, आप इतना
अच्छा काम कर रहे हो, इसके लिए किसी से चंदा मत मां गो। गार्डन बनाने में जितना खर्च
लगेगा, वह मैं दे दूंगा। उन्होंने ब्लैंक चेक दे दिया और कहा कि कितना खर्च है, सो भर
लो। उनकी मदद से गार्डन बहुत अच्छा बन गया। उसके उद्घाटन में मैंने उन्हें अतिथि के
रूप में बुलाया और सबसे पहले उन्हें गार्डन में हुए खर्च की खाता-बही थमाई। उन्होंने
पूछा कि यह क है? मैंने कहा-आपके द्वारा दिए गए पैसे का खर्च-विवरण। उन्होंने गार्डन
की ओर इशारा करते हुए कहा कि इतना अच्छा गार्डन तो मुझे दिख ही रहा है और मुझे
भी मालूम है कि इसको बनाने में कितना खर्च आया होगा। उसी समय उन्होंने उस खाता-
बही को फाड़ दिया। इसी तरह एक बार उनका बेटा बीमार पड़ा। वे मेरे पास लेकर आए।
मैंने कहा कि आपका बेटा सीरियस है, इसे आप कहीं और ले जा सकते हैं। उन्होंने कहा

36डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
कि मुझे प पर पूरा भरोसा है, आप इसका उपचार कीजिए। उनके इस भरोसे का मैं
कायल हो गया था।
इसी तरह एक और घटना याद है। लीमडी के सरपंच जो वहां के राजघराने के थे,
वे कभी पी.एच.सी. पर नहीं आए थे। उन्होंने जब पी.एच.सी. का दौरा किया तो उन्हें उसे
देखकर बहुत सुकून मिला, अच्छा लगा। उसी बीच मेरे बेटे का बर्थ डे था। वे अपने परिवार
के साथ बेटे के बर्थडे में आए थे। मैं तो अपने काम में व था, लेकिन उनकी जो पत्नी
यानी रानी साहिबा थीं, वे मेरी पत्नी से बातचीत कर रही थीं। उन्होंने पत्नी से पूछा कि
डॉक्टर साहब का मन तो क्लिनिक में मरीज देखकर बहल जाता है। आप दिन भर क
करती हैं? आपका मन कैसे लगता है? आपका टाइम पास कैसे होता है? आपके पास
तो टेलीविजन भी नहीं है। पत्नी ने जवाब दिया कि जब पैसा होगा, हम ले लेंगे। मेरे घर से
निकल कर दोनों राजा-रानी वापस सीधे शो रूम में गए। शो रूम वाला सीधा नया टीवी
लेके घर पर आ गया और बोला-सर, यह टीवी आपको सरपंच साहब ने भेजा है। मैं तो
अचरज से अचंभित था। मैंने सरपंच साहब को बाद में कहा कि मैं फ्री में यह टीवी नहीं ले
सकता।
कम से कम आधे
पैसे तो आपको लेने पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि ठीक है, कहां भागे
जा रहे हैं आप। जब आपके पास होगा, तब दे दीजिएगा।
आशुतोष- पी.एच.सी. में रहते हुए आपने और भी बहुत प्रोग किए?
डॉ. मीना- जी, बिल्कुल। माँ की प्रेरणा से हमारे प्रयोग सफल भी हुए। हम उपचार
के साथ-साथ प्रीवेंटिव हेल्थकेयर पर भी बहुत काम कर रहे थे। आसपास में लोगों को
जागरूक करने के लिए आइइसी यानी सूचना, शिक्षा एवं संचार के विविध माधमों का
उपयोग कर रहे थे। हमारे लिए सबसे आसान था, कनिटी से डायरेक्ट संवाद करना।
हमने स्कूल में जाकर छात्रों को सेंसटाइज करने से लेकर कनिटी में जाकर सास-बहू
सम्मेलन तक सब कुछ किया।
आशुतोष- सास-बहू सम्मेलन! ह क था? इस सम्मेलन का उद्देश्य क था?
डॉ. मीना- यह सम्मेलन दरअसल इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के प्रति लोगों को
जागरूक करने के लिए था। इसमें हम समाज के सभी तबके के लोगों को बुलाकर
सास-बहुओं को सेंसटाइज करने की कोशिश करते थे, कोंकि उस समय सास-बहू के
बीच में इस बात को लेकर खींचतान तो रहती ही थी कि डिलीवरी घर पर ही कराई
जाए या अस्पताल ले जाया जाए। अमूमन सास लोग यह कहती थीं कि हमने भी तो
बच्चों को जन्म दिया है, हम कहां अस्पताल गए? लेकिन वे इस बात से अनजान थीं
कि उनके समय और आज के समय में बहुत कुछ बदल गया है। ऐसे में जब सास-बहू
साथ में हों और इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के फायदे के बारे में चर्चा होती थी तो निश्चित
ही इससे सास का जो अप्रोच था, वह बदला और हम अपनी योजना में सफल हुए।

37डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
इसके साथ-साथ बहुत सारे स्कूल हेल्थ प्रोग्राम, प्रजनन और बाल स्वास्थ, जेंडर
बेस वायलेंस, एडोलेसेंट हेल्थ, कनिकेबल डिजीज, बाल मृत, मातृ मृ त, संस्थागत
प्रसव, चिकित्सा जांच, फ़ैमिली प्लानिंग, क्वालिटी हेल्थ एजुकेशन इत के प्रोग्राम
भी हर एरिया में किए।
आज भी एक घटना याद है। एक बड़ा फंक्शन था हमारे सास-बहू सम्मेलन का।
उस समय 400 से 500 लोग आए हुए थे। गवर्नमेंट में नॉर्मली यह होता है कि पहले जो
जूनियर होते हैं, वे अपनी बात रखते हैं और धीरे-धीरे जूनियर से सीनियर अपनी बात
रखते चले जाते हैं। हमारे डिस्ट्रिक्ट हेल्थ ऑफिसर आए हुए थे। मैंने उनसे कहा कि
पहले आप कनिटी को संबोधित कर लीजिए, बाद में मैं करूंगा। मैंने उनसे साफ-
साफ कहा कि अगर मैंने पहले बोल लिया, फिर आपको सुनने के लिए यहां पर कोई
रुकेगा नहीं। वे इस बात पर बहुत ही गुस्सा हुए। जूनियर होने के नाते मुझे उनकी बात
तो माननी ही थी। उनकी बात मानकर मैंने पहले अपनी बात रखी। आप विश्वास नहीं
करेंगे, जैसे ही मेरी स्पीच खत्म हुई, पूरा हॉल खाली हो गया। डीएचओ को सुनने के
लिए कोई नहीं बचा।
दरअसल, वहां पर कनिटी में मेरी पकड़ बहुत अच्छी हो गई थी। मैं कनिटी
के साथ मिलकर रहता था। उनके शादी-विवाह के आमंत्रण पर उनके घर जरूर जाता
था। ऐसे ही मैं किसी भी आदिवासी या अन घरों में जाता था तो उनके घर की चाय
या पानी अवश पी लेता था। इससे कनिटी में मेरा बड़ा सम्मान था। वहां लोगों के
सुख-दुःख में मेरे शामिल होने से मैं भी उन्हीं का बनकर रह गया था। यही कारण था
कि जिस पी.एच.सी. पर तीन मरीज भी नहीं आ पाते थे, वहां मेरे समय में 300 तक
ओपीडी पहुंच गई थी।

39डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- आप भारत के पहले क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर बने, इसके पीछे
की क कहानी है?
डॉ. मीना- उन दिनों आइपीडी प्रोजेक्ट बना था। उस प्रोजेक्ट के तहत पूरे इंडिया
में चार डिस्ट्रिक्ट क्वालिटी हेल्थ एशरेंस ऑफिसर की बहाली होनी थी, जिसमें दो
गुजरात के लिए और दो महाराष्ट्र के लिए पद सृजित किए गए। गुजरात में दाहोद एवं
बनासकाठा के लिए और महाराष्ट्र में चंद्रपुर एवं गढ़चिरौली के लिए बहाली होनी थी। इन
चारों में सबसे पहले मेरी बहाली हुई। इस बहाली को लेकर मुझे सूचना मिली कि गुजरात
के तत्कालीन मुखमंत्री एवं आज के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था
कि सबसे पहले उस ऑफिसर को इस पद पर रखना, जो हमारे यहां की पी.एच.सी. में
महज ढाई साल में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया है। जाहिर है, वे मेरे बारे में बात कर
रहे थे।
आशुतोष- डिस्ट्रिक्ट क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर के रूप में आपकी क
भूमिका थी?
डॉ. मीना- उस समय ग ुजरात में मेरी ही बहाली हुई थी, दूसरे डिस्ट्रिक्ट या यूं कहें
कि पूरे गुजरात की जिम्मेदारी प्रत-अप्रत रूप से मेरे पास ही थी। यह काम बहुत
चैलेंजिग था। मैं पी.एच.सी. से सीधे जिला में बहाल होकर आ गया था। पहले जो हमारे
सीनियर थे, अब उनके समकक्ष या उनसे बड़े ओहदे पर मैं था। ऐसे में जिला के बाकी
अधिकारियों के लिए मेरा होना अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए काम में सहयोग जितना
मिलना चाहिए था, वह मिलने में शुरू में दिक्कत आई थी। एक संघर्ष एवं द्वंद्व की स्थिति
उत्पन्न हो गई थी। लेकिन हमारे काम से जिला स्तर पर पारदर्शिता आने लगी थी।
स्वास्थ सेवा डिलीवरी सिस्टम की क्वालिटी में सुधार होने लगा था।
आशुतोष- े जो क्वालिटी वाली आप बात कर रहे हैं, इस पर हम आगे चर्चा
करेंगे।
एक बात छू
ट रही है, आपने स्कूलों में जो हेल्थ स्क्रीनिंग शुरू की थी, वह आज
होती है कि नहीं?
जिला क्वालिटी हेल्थ एशरेंस ऑफिसर के
रूप में बहाली और उसके बाद का संघर्ष
खण्ड - 2

40डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
डॉ. मीना- जी, अभी भी यह स्क्रीनिंग होती है। एक डॉक्टर होने के नाते मैं कह
सकता हूं कि अगर स्क्रीनिं ग रियल में हो तो आप बहुतों की लाइफ सेव कर सकते हैं। मेरे
को आज भी याद है, कंजेनाइटल हार्ट डिजीज एक ऐसी बीमारी है कि अगर टाइमली पता
नहीं लगा तो नॉर्मली 17 और 18 वर्ष की उम्र में भी डेथ होती है। आप खुद ही सोचिए,
अगर किसी भी फैमिली में 17 से 18 वर्ष के बीच में कोई सडन डेथ हो तो उसे एक्सेप्ट
करना इजी टास्क नहीं होता। किसी घर में जब जवान बच्चे की मौत होती है तो कितनी
प्रॉब्लम होती है, यह कहने की बात नहीं है। ऐसे में अगर आपने अर्ली डिटेक्शन कर लिया
तो आप तमाम बीमारियों को फैलने से पहले रोक सकते हैं। आप एनीमिया को कंट्रोल
कर सकते हैं, क्रेमी को कंट्रोल कर सकते हैं, वर्म को कंट्रोल कर सकते हैं, कंजेनाइटल
हार्ट डिजीज है, उसको कंट्रोल कर सकते हैं। अननेसेसरी के ट्यूमर हैं, वे आप स्टार्टिंग
में
निक
लवा सकते हैं, लेकिन उसमें रियल स्क्रीनिं ग जरूरी है। फॉर्मेलिटी से एवं सिर्फ
कागज में रिपोर्ट कर देने भर से काम नहीं चलने वाला।
आशुतोष- मतलब अभी भी जो स्कूलों में स्क्रीनिंग होती है तो उसमें भी पी.एच.
सी. का ोगदान वैसे ही है?
डॉ.
मीना-
पी.एच.सी. के जो डॉक्टर हैं, वे जाते ही हैं। अब सब कुछ लाइव भरना
होता है। लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे मामले देखने को मिलते हैं, जहां पर डॉक्टर खुद
न जाकर अपने स्टॉफ को स्क्रीनिं ग के लिए भेज देते हैं।
आशुतोष- ानी आप ह कह रहे हैं कि जिस डॉक्टर की जिम्मेवारी है, उसे
जरूर जाना चाहिए?
डॉ. मीना- जी, डॉक्टर खुद जाकर देखेंगे तो डायग्नोसिस और बेहतर तरीके से
हो सकेगा। इससे वास्तव में स्क्रीनिं ग के पीछे का जो थॉट प्रोसेस है, वह साकार होगा।
यही कारण है कि जब मैं स्क्रीनिं ग के लिए जाता था, तब एक पूरी टीम बनाता था। एक
रजिस्ट्रेशन काउंटर होता था, उसके बाद कुछ पैरामीटर मापने के लिए नर्सिंग स्टाफ,
फ्री आंख देखने के लिए एक काउंटर, फिर लेप्रोसी टेक्नीशियन, उसके बाद लास्ट में
वह मरीज डॉक्टर के पास पहुंचता था। मेरे पास आने से पहले कई पैरामीटर की जां च
हो जाती थी।
आशुतोष- कंजेनाइटल हॉर्ट डिजीज (जन्मजात हृद संबंधी विकार) को आप
कैसे डाग्नोस करते थे?
डॉ. मीना- स्टेथोस्कोप से अंदाजा लग जाता है कि बच्चे के हॉर्ट में कोई गड़बड़ी है
कि नहीं। साथ ही कुछ मामूली से प्राथमिक प्रश्न होते हैं, पूछने पर पता चल जाता है कि
किसी गड़बड़ी की आशंका है कि नहीं। और स्क्रीनिंग में चार से पां च लोगों से होकर वति
डॉक्टर के पास आता है, ऐसे में डायग्नोस और आसान हो जाता है।

41डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- एक सवाल और है, थोड़ा क्लिनिकल है। एक डॉक्टर होने के नाते
आपको क लगता है कि स्क्रीनिंग ीक से हो जैसा आपने सुझाा तो क दे श
के डिजीज बर्डन को कम किा जा सकता है?
डॉ. मीना- जी बिल्कुल। मैं आज भी कहता रहता हूं कि जो प्राइमरी हेल्थ सेंटर
हैं, अगर उन पर विशेष ध दिया जाए तो बहुत सारी बीमारियों को हम निचले स्तर
यानी प्राथमि‍क व ‍जिला स्तर पर रिजॉल्व कर सकते हैं। प्रिवेंटिव हेल्थ केयर की दृष्टि
से प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों की अहम् भूमिका है। ये केन्द्र डायरेक्ट कनिटी के टच में
रहते हैं, वे चाहें तो आसानी से कनिटी का विहैवियर चेंज कराने में मदद कर सकते हैं
और कर भी रहे हैं। बहुत ही छोटी-छोटी बातों को, जिनका हमारे स्वास्थ से सीधा संबंध
है, को कनिटी तक पहुंचाने में ये केन्द्र सहायक रहे हैं। जैसे हमने सास-बहू स म्मेलन
अगर
कराया तो इस
लिए, कोंकि सरकार की ओर से हमें गाइड लाइन मिली थी कि हमें
इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी को प्रोमोट करना है। हमें यह जानना था कि मातृ मृत दर जदा
कों है? इसको लेकर कनिटी में जो स्टिग्मा थी, उसकी भी पहचान करनी थी और उसे
दूर करने के लिए लोगों को जागरूक करना था। इसलिए सास-बहू जैसे स्टेक होल्डर्स को
हमने अपने साथ जोड़ा और सम की जड़ में गए, फिर उसका समाधान निकाला। हमने
पंचायतों से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स को इस अभियान से जोड़ने का काम किया, जिसमें
पंचायती राज सद, सरपंच, मुखिया सबको जोड़ा। सबको जागरूक किया और सबसे
जागरूकता अभियान में शामिल होने का आग्रह भी किया। इसका सकारात्मक असर हुआ।
एक चीज और हमने ऑब्जर्व किया। जब घर की महिलाएं घर में रहती हैं तो बेशक आपस
में झगड़ा कर लें, लेकिन जब वे साथ में बाहर निकलती हैं तो बहुत ही पर एवं स्नेह से
रहती हैं। सास-बहू स म्मेलन में जब सास-बहू एक साथ बाहर आने लगीं, तब उनके बीच
में घनिष्टता और मजबूत हुई और साथ ही स म्मेलन में जब हम लोग उन्हें इंस्टीट्य़ूशनल
डिलीवरी के फायदे बताते थे तो उसका भी असर उन पर पड़ा। ऐसे में सास-बहू के संबंधों
में अगर कहीं कड़वाहट का भाव होता भी होगा तो इस स म्मेलन के बाद वह भाव खत्म
हो जाता था।
ऐसा ही एक और उदाहारण है। हमारे यहां यह सुनने को आता था कि सासें अक्सर
बहुओं को यह ताना देती हैं कि “मायके में तो काली थी, यहां आकर गोरी हो गई।” यह
बोलते समय सासों को यह गुमान होता था कि उनके यहां आने से उनकी बहू गोरी हो
गई। लेकिन जब हम उन्हें यह बताते थे कि जिस गोराई का आप गुणगान कर रही हैं,
दरअसल वह इसलिए है कि आपके यहां आकर बहू का हीमोग्लोबिन कम हो गया है। जब
हीमोग्लोबिन कम होगा तो त्वचा सफेद पड़ने लगती है। जब यह सच्चाई सासों को पता
चलती थी तो फिर उनके ताने खुद-ब-खुद बंद हो जाते। इस दौरान हमने एनिमिया की

42डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
सम को बहुत कंट्रोल किया और इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी को भी बढ़ाया।
मैं भी पब्लिक में अगर कोई काम करता था तो सबसे पहले वहां की स्थानीय
भाषा में गीत गवाता था। स्थानीय लोगों से स्थानीय भाषा में गीत गवाने से माहौल थोड़ा
फ्रेंडली हो जाता था।
लोकल गानों पर मैं भी अपना मुं ह हिला लेता था, लोगों को लगता था कि डॉ. मीना
को भी स्थानीय गाने आते हैं। इससे उनमें मेरे प्रति और विश्वास जगता था। पब्लिक को
डील करना आसान काम नहीं होता है। उसके लिए आपको उनके बीच में उतरना पड़ता
है। उनके लेवल पर जाना पड़ता है। इसके लिए लोकल गाने का मेरा फंडा बहुत ही कारगर
था, कोंकि वहां के स्थानीय लोगों को लगता था कि मैं तो राजस्थान का हूं, फिर भी मुझे
उनका स्थानीय गाना आता है। इस संदर्भ में एक और मजेदार घटना है। मेरे यहां की एक
नर्सिंग स्टॉफ ने जब देखा कि मैं भी स्थानीय भाषा के गीतों पर गुनगुना रहा हूं तो उसने
मुझसे पूछ लिया-अरे डॉक्टर साहब, आपने कब हमारे यहां के गीत सीख लिए? इसके
लिए उसने मुझे कम्पलिमेंट भी दिए। लेकिन उसे मैंने जब सच्चाई बताई तो यह जानकर
वह मेरे प्रबंधकीय कौशल की मुरीद हो गई।
आशुतोष- इस बातचीत को फिर से क्वालिटी हेल्थ केर की ओर ले चलते
हैं। जैसा कि आप जिला क्वालिटी हेल्थ एशरेंस ऑफिसर बन चुके थे। पूरे स्टेट
की क्वालिटी स्वास्थ्य के लिए कहीं न कहीं आपने एक ब्लू प्रिंट भी बनाा होगा।
क्वालिटी ऑफिसर के रूप में आपका सफर कैसा रहा?
डॉ. मीना- जी, आपने बिल्कुल सही कहा। राज की स्वास्थ गुणवत्ता को मापने
हेतु

पैमाना हो, इस विषय पर हमने काम किया था। बहुत ही कम समय में पी.एच.सी.
के गुणवत्ता मानकों को अंगीकार कर, उसे इंप्लीमेंट करने का अनुभव था। शायद यही
कारण था कि जिला में मुझे क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर के रूप में बुलाया गया। इतना
ही नहीं, मेरे पास ऊपर से दबाव था कि मैं पी.एच.सी. में बिना सूचना दिए, पहले जिला
मुखय जाकर अपने नए पद को ग्रहण करूं, कोंकि सीनियर्स को इस बात का डर था
कि डॉ. मीना के तबादले की बात सुनकर कहीं गांव वाले मुझे रोकने का दबाव न बनाने
लगें। ज्वाइन करने के बाद मैंने अपने पी.एच.सी. पर इसकी सूचना दी। वहां गया तो मेरे
जिला में ज्वाइन करने की खबर आग की तरह फैल चुकी थी। लोग नहीं चाह रहे थे कि
मैं जिला में जाऊं। लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि जिस तरह मैं यहां पर सिर्फ एक पी.एच.
सी. परिक्षेत्र के हितार्थ का कर रहा था, ठीक उसी तरह अब जिला में जाकर पूरे जिले
के लिए का कर सकूंगा। यह सब बातें सुनकर गांव वाले राजी हुए।
आशुतोष- जब आपने क्वालिटी हेल्थ एशरेंस ऑफिसर के रूप में ज्वाइन
किा, उस सम क्वालिटी हेल्थ केर की क अवधारणा थी, क पैमाने थे?

43डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
डॉ. मीना- सबस े पहले उस टाइम की मैं बात करूं तो 2003 में ऐसा कोई भी
स्पेसफिक पैरामीटर नहीं था। हमने एक चेकलिस्ट बनाई थी। आम लोगों के नजरिए
से आप देखेंगे तो लोग सबसे पहले जिन बिन्दुओं पर ध देते हैं, वे हैं- अस्पताल की
साफ-सफाई, अस्पताल के स्टॉफ का वहार एवं ससमय उपचार। उपरोक्त तीन प्रमुख
बिन्दु थे, जिनके आधार पर हम किसी अस्पताल को प्राथमिक स्तर पर एसेस कर रहे थे।
लोग कभी यह नहीं पूछते थे कि डॉक्टर साहब आप अपनी डिग्री दिखाइए, तभी उपचार
लेंगे। उसी तरह हमने इन्फ्रास्ट्रक्चर की दृष्टि से भी चेकलिस्ट बनाई, जिसमें हम देखते थे
कि अस्पताल में उपयोग किए जाने वाले इक्विपमेंट ठीक हैं कि नहीं, जरूरी इक्विपमेंट
हैं कि नहीं? इन्फ्रा के हिसाब से मैनपावर की स्थिति क है? जो मैनपावर है, वह वेलट्रेंड
है कि नहीं है? जो भी मैनपावर है, उसकी कैपिसिटी बिल्डिंग हुई है कि नहीं? साथ ही
उपचार के जिस प्रोसेस को फॉलो किया जा रहा है, वह ठीक है कि नहीं है? साथ ही जो
आउटकम आना चाहिए, वह आ रहा है कि नहीं? मरीजों का सटिस्फेक्शन लेबल क
है? इन तमाम बिन्दुओं को ध में रखकर हमने शुरू में चेकलिस्ट बनाई थी। इस तरह
शुरू में हमने काम करना शुरू किया था और इसका असर भी अगले 6 महीने में दिखना
शुरू हो गया था। इस का में भी कम संघर्ष नहीं थे।
आशुतोष-
आपने बता
ा था कि आइ.पी.डी. प्रोजेक्ट बंद कर दिा गा
और आर.सी.एच. (री-प्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ) प्रोजे क्ट शुरू हुआ, जिसमें जिला
क्वालिटी हेल्थ एशरेंस ऑफिसर का पद ही खत्म कर दिा गा। फिर क हुआ?
डॉ. मीना- जी, जब आर.सी.एच. प्रोजेक्ट आया तो डिस्ट्रिक्ट क्वालिटी हेल्थ
एशरेंस ऑफिसर की पोस्ट समाप्त कर दी गई। केन्द्र सरकार ने यह पोस्ट समाप्त कर दी
थी। ऐसा कों किया गया, यह तो मुझे नहीं पता। अब मेरे लिए भी धर्म-संकट की स्थिति
थी, अब क करूं? कैसे काम करूं? फिर से एक नया संघर्ष मेरे दरवाजे पर दस्तक दे
चुका था। इसी बीच हमारे यहां एक ट्राइवल डेवलपमेंट ऑफिसर थे, उन्होंने कहा कि
ट्राइवल में मेरे पास फंड है, आप उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन आप डिस्ट्रिक्ट
में जिस प्रकार से क्वालिटी हेल्थ के लिए काम कर रहे हैं, वैसे ही करते रहेंगे? मैंने अपना
काम जिले के एक सबसे खराब हालत वाले पी.एच.सी. से पुन: शुरू किया। जिस पी.एच.
सी. को मैंने चुना था, उसे लोग भूतबंगला कहते थे, कोंकि वहां पर लोगों का आना-जाना
न के बराबर था। रात्रि में कोई रुकता नहीं था। उस पी.एच.सी. को मैंने डेवलप किया और
महज 6 महीने में फर्स्ट पर लेकर आया।
इसी
बीच में भारत सरकार को एक प्
रेजेंटेशन देने के लिए एक गैर-सरकारी संस्था ने
मुझसे
अप्
रोच किया। वे चाहते थे कि डिस्ट्रिक्ट हेल्थ एशरेंस ऑफिसर पोस्ट के कारण
जो बदलाव आए हैं, उसे भारत सरकार को बताया जाए। मैंने पीपीटी तैयार किया। फिर

44डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
उन्होंने कि चूंकि आपने काम किया है, आपके पास अनुभव है, अतः सेक्रेट्ररी हेल्थ,
भारत सरकार को यह पीपीटी आप ही प्रेजेंट करें। आप हमारे साथ दिल्ली चलिए। इस
बात पर मुझे अंदर से डर लगा, कोंकि मैं एक जिला स्तर का अधिकारी था और मुझे
राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के स्वास्थ सचिव के सामने अपनी बात रखनी थी।
लेकिन कहा जाता है न, जो होना होता है वह होकर रहता है। और दिल्ली जाना मेरे लिए
नियति ने तय कर रखा था, सो मुझे दिल्ली जाना था, सो गया भी।
सुबह की फ्लाइट थी। मैं दाहोद से शाम को ही अहमदाबाद आ गया, इस डर से कि
कहीं फ्लाइट छूट न जाए। पूरी रात एयरपोर्ट में बैठा रहा। मैं पहली बार फ्लाइट में बैठ
रहा था। 2005 की यह बात है। सुबह फ्लाइट की टिकट चेकिंग के समय मुझसे पूछा गया
कि आपको कौन-सा टिकट दें। विंडो या कोई अन। उस समय मुझे तो यह पता ही नहीं
था कि विंडो सीट का क मतलब होता है। मैंने हाँ कर दिया, कोंकि ट्रेनों में हम अक्सर
विंडो सीट पर ही बैठते थे। लेकिन उस समय हवाई जहाज में डर के कारण कोई विंडो
सीट पर बैठना नहीं चाहता था। आज उसी विंडो सीट के लिए अलग से पैसे देने पड़ते हैं।
दिल्ली तो हम पहुंच गए, लेकिन प्रेजेंटेशन को लेकर दिल में एक डर बना रहा।
स्वास्थ सचिव, भारत सरकार के सामने जब मैं अपना प्रेजेंटेशन प्रस्तुत कर रहा था, तब
मुझसे सबसे पहला प्रश्न यह हुआ कि डॉ. मीना, हम लोगों ने इस पोस्ट को बंद कर दिया
था, आपने उसे चालू कों रखा? मैंने जवाब दिया-देखिए सर, अगर आपको लगता है कि
यह पोस्ट डॉ. मीना के लिए चालू है तो आप बंद कर दीजिए, लेकिन इसका सकारात्मक
प्रभाव देखकर आपको लगता है कि यह आम लोगों के भले के लिए है तो आप...इसी बीच
में हमारे स्टेट के कमिश्नर थे अमरजीत सिंह जी, जिन्होंने वहां पर मुझे पहली बार देखा
था, वे बोल पड़े, तुमने बहुत अच्छा प्रेजेंटेशन दिया है। डॉ. मीना गवर्नमेंट ऑफ इंडिया
इस पद को चालू करे या ना करे, गुजरात इसको कंटिन रखेगा। 
गुजरात में मुखमंत्री नरेन्द्र मोदी साहब स्वास्थ के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर
वास्तविक बदलाव लाना चाहते थे। इस बात को अमरजीत सिंह जी भी आगे बढ़ाना
चाहते थे। वहां से मैं गुजरात लौट आया। मैं यह सोच रहा था कि अमरजीत सिंह जी ने
कहने के लिए कह तो दिया है, लेकिन क पता इस दिशा में कब क हो? बात आगे बढ़े
भी कि न बढ़े?
आशुतोष- तो बात आगे बढ़ी कि‍ नहीं?
डॉ.
मीना- बात आगे ही
नहीं बढ़ी, बल्कि दौड़ी भी। मैं साली की शादी में जा रहा
था। रेलवे स्टेशन पर आ गया था। ट्रेन आने वाली थी। सीधा गां धीनगर से मुझे फोन
आया कि डॉक्टर मीना आप जहां कहीं भी हों, गां धी नगर पहुंचिए। दरअसल, मुखमंत्री
साहब से अमरजीत जी ने क्वालिटी हेल्थ ऑफिसर संबंधित बात पर सहमति ले ली थी।

45डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
उन्होंने था कि उसे जिला से सीधे स्टेट में लेकर आओ, कोंकि वहां पर उन्होंने
चीफ मिनिस्टर साहब से परमिशन ले ली थी। लेकिन उस समय मुझे यह समझ में नहीं
आ रहा था कि गां धीनगर जाकर ज्वाइन करूं तो क ज्वाइन करूं, कहां ज्वाइन करूं? मैं
यह भी सोच रहा था कि आखिर मुझे अपने जिला इकाई को इसके बारे में बताना पड़ेगा,
वहां जाना पड़ेगा, उसके बाद न मैं गां धीनगर जा पाउंगा। लेकिन यहां तो अगले दिन ही
ज्वाइन करने की बात की जा रही है। वैसे भी मैं रिश्तेदार की शादी में जा रहा था। मैंने
हिम्मत करके कहा कि जिला में भी इस निर्देश की कॉपी पहुंचानी होगी। उन्होंने कहा कि
तुम्हारे जिले में इसकी कॉपी जा चुकी है। फिर मैंने कहा कि मुझे अपने साली की शादी तो
एटेंड कर लेने दीजिए। उन्होंने कहा कि तुम्हारे पास एक दिन का समय है। आप विश्वास
नहीं करेंगे, मैं उसी नियत समय में साली की शादी अटेंड कर सीधे गां धीनगर जा पहुंचा।
स्वास्थ क्वालिटी पर पूरे राज के लिए बन रहे क्वालिटी प्रोजेक्ट में मुझे जोड़ लिया
गया। मेरे लिए सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि राज स्तर पर एक टीम कैसे बने। उसका प्रारुप
क हो। सिर्फ मेरे अकेले से मामला बनने वाला तो था नहीं। मैंने सर को बोला-आपने मेरे
को तो बुला लिया, मैं आ गया, ज्वाइन कर लिया, लेकिन प्रश्न यह है कि जब तक सिस्टम
नहीं बनेगा, तब तक इंप्रूवमेंट नहीं हो सकेगा। आगे जब मैं और आप, दोनों में से कोई इस
सिस्टम में नहीं रहेंगे तब कैसे काम चलेगा? उन्होंने कहा कि तो आप ही बताएं क किया
जाए? मैंने उन्हें प्रतक जिले में कुछ पोस्ट क्रिएट करने का सुझाव दिया। इसके लिए मेरे
पास एक पुराने जीआर का रेफरेंस था, जिसमें एक्चुअल में क्वालिटी की एक सेल बनाने
की
बात कही गई
थी और यह सभी राजों को गया था, पर किसी ने बनाई नहीं थी। हमारे
दफ्तर में एक प्रशासनिक अधिकारी मिस्टर झाला भाई थे, उन्होंने इस जीआर के बारे
में मुझे अवगत कराया था।
मैंने कहा कि जो पोस्ट क्रिएट करना चाहूंगा, वह स्टेट की होनी चाहिए, मैं प्रोजेक्ट
के आधार पर पोस्ट नहीं चाहता। कोंकि जिस तरह से केन्द्र सरकार ने क्वालिटी हेल्थ
ऑफिसर वाली चार पोस्ट खत्म की है, वैसे राज सरकार भी प्रोजेक्ट खत्म होते ही या
बीच में कभी भी पोस्ट खत्म कर सकती है। मेरे सुझाव को सर ने मान लिया। उस जीआर
के आधार पर मैंने सबसे पहले डिस्ट्रिक्ट हेल्थ क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर की रेगुलर
पोस्ट सृजित की और उसी में स्टेट हेल्थ क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर की रेगुलर पोस्ट
और बाकी के जो पी.एच.सी., सी.एच.सी., डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेजों में
गैप्स थे, आई.पी.एच.एस. स्टैंडर्ड के आधार पर वे गैप्स भी निकाले। कुल 2200 पोस्ट
सृजित करवानी थी। यह एक बड़ा काम था। हमें अपने सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी, फाइनेंस
सेक्रेटरी, रेवेन सेक्रेटरी, लीगल सेक्रेटरी समेत करीब सात सचिव स्तरीय अधिकारियों
के सामने अपना प्रेजेंटेशन देना था। जब ओखल में सि‍र दे ही दिया था, तो मूसल से डरने

46डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
की बात भी नहीं थी। प्रेजेंट करना था तो किया। फाइनेंस सेक्रेटरी ने सीधे कहा कि डॉ.
मीना, आप इन पदों की संख 1100 कर दीजिए, हम मंजूर कर देते हैं। मेरे लिए अह-जह
की स्थिति थी कि अगर ये पोस्ट अप्रूव हो भी गर्इं तो भी जैसा आउटपुट हम चाह रहे हैं,
नही आएगा। क्वालिटी इंप्रूवमेंट कैसे हो सकेगी? मैंने थोड़ी सी हिम्मत की और कहा कि
सर एक काम कीजिए, जो हॉस्पिटल हैं, उनको आधा कर दीजिए तो हो जाएगा काम। यह
सुनकर वे हंसने लगे। चीफ सेक्रेटरी की सहमति मिल चुकी थी। यह भारत के क्वालिटी
हेल्थ की दिशा में एक सबसे बड़ी पहल थी। क्रांतिकारी बदलाव का बीजारोपण था। भारत
में ऐसा पहली बार हुआ, जब क्वालिटी हेल्थ को मॉनिटर करने के लिए 2200 पोस्ट
किसी राज ने सृजित की हो। यह 2007 की बात है।
आशुतोष- 2200 पद सृजित करवा कर आपने निश्चित ही एक क्रांतिकारी का
किा। लेकिन इस पद पर लोगों को निुक्त करना, ह भी चैलेंजिंग रहा होगा?
डॉ. मीना- जी बिल्कुल, चैलेंज तो था ही। नियुक्ति के मापदंड तय करना अपने
आप में एक लंबी प्रक्रिया थी। जहां पर डॉक्टरों के लिए पद था, वहां तो दिक्कत नहीं थी,
लेकिन डिस्ट्रि‍क्ट हेल्थ क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर, स्टेट हेल्थ क्वालिटी एशरेंस
ऑफिसर को कैसे रखा जाए, इसके लिए सोचना पड़ रहा था। सरकार में सीनियरिटी
के आधार पर काम चल जाता है, लेकिन मैंने अपने सर को सीधे बोला था कि जिस
तरीके से सीएम साहब ने बिना सीनियरिटी देखे मुझे बुलाया था, उसी तरह हम प्रतक
जिलाधिकारी को यह अधिकार दे दें कि वे अपने हिसाब से अपने यहां के बेस्ट रिसोर्स के
नाम सजेस्ट करें। सीनियर हो या जूनियर, जिसकी परफॉर्मेंस अच्छी हो, उसे वे नामित
करें। तभी जाकर वास्तव में हम क्वालिटी में इम्प्रूवमेंट ला पाएंगे। उन्होंने मेरे सुझाव को
मान लिया और हमने जिलाधिकारि‍यों से इसके लिए नाम मं गा लिए। वैसे तो मुझे स्टेट
हेल्थ
क्
वालिटी एशरेंस ऑफिसर के रूप में लाया गया था, लेकिन इस रेगर पोस्ट
के लिए जो नाम फाइनल हुए थे, उसमें मैंने सारे पदों के सामने नाम भर लिए थे, लेकिन
स्टेट क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर के पद के सामने नाम नहीं डाला था। इस फाइल को
जब मैंने सर को सबमिट किया तो कमिश्नर सर ने पूछा कि यह वाला पद खाली कों रखा
है? मैंने कहा कि इस पद पर तो नाम आप ही सेलेक्ट करेंगे। आप कमिश्नर हैं, स्टेट में
किसने बेस्ट परफॉमेंस किया है, यह तो आप ही बेहतर जानते हैं। फिर उस खाली जगह
पर उन्होंने मेरा नाम लिखा। इस तरह यह नियुक्ति प्रक्रिया संपन्न हुई।

47डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- स्वास्थ्य सेवा में क्वालिटी एशरेंस की हम चर्चा कर रहे हैं। अगर हम
भारत के परिप्रेक् में देखें तो सबसे पहले चार पोस्ट क्रिएट हुई थीं, लेकिन आई.पी.
डी. प्रोजे क्ट बंद कर दिा गा और रिप्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ ानी आर.सी.एच.
प्रोजे क्ट के अन्तर्गत केन्द्र सरकार ने उस पद को खत्म कर दिा। उसके बाद गुजरात
में रेगलर पोस्ट 2007 में क्रिएट की गई, जहां पर 2200 पद सृजित किए गए। लेकिन
क 2007 के बाद अभी तक किसी अन्य राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार ने इस
तरह के किसी पद को सृजित करने और इस पर काम करने की कोशिश की है क?
डॉ. मीना- जहां तक मुझे जानकारी है, गुजरात को छोड़कर किसी भी राज सरकार
ने अभी तक क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर की रेगर पोस्ट नहीं निकाली है, अतिरिक्त
प्रभार जरूर दिए गए होंगे।
आशुतोष- 2007 में जो आपने इंप्लीमेंट किा और आज 2024 है तो ीक-
ाक सम हो गा है। इन वर्षों में आपने क बदलाव देखा है?
डॉ. मीना- अगर आपको रियल में क्वालिटी लानी है तो क्वालिटी कल्चर पैदा
करना पड़ता है और क्वालिटी कल्चर के लिए सबसे जरूरी तीन स्तंभ हैं, पहला राजनेता,
दूसरा

रोक्रेट्स और तीसरा टेक्नोक्रेट्स। तीनों के बीच सार्थक, सकारात्मक समन्वय
से ही एक क्वालिटी कल्चर को विकसित करने में सहूलियत मिलती है।
राजनेता को सिर्फ यह चाहिए कि जब वह विजिट करे तो वहां का माहौल साफ-
सुथरा हो। इस संदर्भ में मैंने एक मुहिम चलाई थी स्वच्छता को लेकर। मैं क्वालिटी चेक
के पहले के अस्पताल एवं उसके बाद के अस्पताल की तस्वीरों को सीनियर्स को प्रस्तुत
करता था, ताकि क्वालिटी चेक की दृष्टि से क्लिननेस ड्राइव के महत्त्व को समझा जा
सके। यह कॉन्सेप्ट हमारे समय के नेताओं को खूब भाया, जिनमें एक खुद स्वास्थ मंत्री
जय नारायण वस जी भी थे। 
इस संदर्भ में एक और पहल हमने की थी। सरकारी दफ्तरों में जो अननेसेसरी स्क्रैप
पड़ा रहता था, उसे साफ करवाया एवं कबाड़ में बेचवा दिया। आपको विश्वास नहीं होगा,
भारत में क्वालिटी हेल्थ केर की स्थिति
और डॉ. मीना का दिल्ली जाना
खण
्ड - 3

48डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मैंने पने मिश्नर ऑफिस से 20 ट्रक कचरा निकलवाया और सिर्फ हेल्थ डिपार्टमेंट से
करोड़ों रुपये का कचरा निकला था। यह बात जब तत्कालीन मुखमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
जी को बताई गई, तो वे बहुत खुश हुए और कहा कि तुम तो कबाड़ से भी करोड़ों रुपये
ले आए। ऐसा करो, सभी मंत्रालयों के सभी विभागों में इसी तरह की क्लिननेस ड्राइव
चलाओ आप लोग। फिर हमने सभी विभागों को इस संबंध में ट्रेनिंग दी। हम लोगों ने यह
तय कर दिया था कि हर 6 तारीख को स्वच्छता मिशन ऑडिट चलेगा। सभी राजनेताओं
को भी इस
से
जोड़ा गया। वे अपने-अपने विभाग, क्षेत्र में जाकर स्वच्छता मिशन ऑडिट का
हिस्सा बनते, वे अपनी तस्वीर अपने सोशल मीडिया पर डालते और उनकी इस पोस्ट
को
हम
ने सीएम डै शबोर्ड से लिंक कर दिया था। इससे पूरे राज में हो रही गतिविधियों की
मॉनिटरिंग सीएम डै शबोर्ड से की जा सकती थी। ऐसा नहीं था कि नेताओं को सिर्फ फोटो
डालना था, उन्हें अपनी अगली विजिट में क इम्प्रूवमेंट हुआ, यह भी बताना होता था।
दूसरा काम हमने यह किया कि जो अस्पताल अच्छा काम कर रहे थे, उन्हें प्रोत्साहित
करने लगे। हमने प्रोत्साहन सर्टिफिकेट शुरू किया। 15 अगस्त एवं 26 जनवरी के फंक्शन
में
हम
वह पुरस्कार देने लगे। यह पुरस्कार जिला में, ताल्लुका में यहां तक कि सी.एच.सी.
एवं पी.एच.सी. तक पर होने लगा। इसका असर यह हुआ कि सभी जगह पर स्वच्छता को
लेकर एक कल्चर विकसित हुआ। सर्टिफिकेट सार्वजनिक रूप से मिलने पर, जिन्हें नहीं
मिलता वे अगली बार मिले, इसके लिए प्रयास करने लगे। यह एक सकारात्मक बदलाव था,
कोंकि एक ही दिन अगर इतने लोगों को सर्टिफिकेट मिले, किसी ना किसी चीज में और
उसकी चर्चा अखबारों में होने लगे तो निश्चित रुप से इसका असर पड़ना ही था और पड़ा
भी।
ऐसा हो गया
था कि 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को जो गेस्ट पोलिटिशयंस आते थे, वे
हेल्थ डिपार्टमेंट के इस पुरस्कार को देने के लिए सबसे पहले कहते थे, कोंकि इससे एक
इवेंट लाइव बन जाता था और अखबारों में भी इसकी खूब चर्चा होती थी।
हमने अपने आरोग केंद्रों को स्वच्छता मिशन ऑडिट, कायाकल्प, एनक्वास,
लक् और एन.ए.बी.एच. इत सर्टिफिकेट देना शुरू कर दिया था। इस प्रकार हर
लेवल पर प्रोत्साहन दिया जाने लगा। सबसे पहले स्वच्छता मिशन ऑडिट हुआ, जो हर
महीने होता था। उसके बाद कायाकल्प प्रोत्साहन सर्टिफिकेट था, उसके बाद एनक्वास
सर्टिफिकेट के लिए और भी जदा मानकों को पार करना पड़ता था। एन.ए.बी.एच.
(NABH) में जाना है तो और हायर लेवल पर काम करना पड़ता था। इसके बाद मरीजों
के सेटिस्फेक्शन एवं काम करने वालों के सटिस्फेक्शन का भी ध रखना पड़ता था।
इस पूरी प्रक्रिया में बरोक्रेसी भी सहयोगी बन गई थी, कोंकि जाहिर है, डीएम साहब यह
चाहेंगे कि स्वच्छता के मामले में उनके एरिया को भी सम्मान मिले। उनके एरिया में कितने
लोगों को सर्टिफिकेट मिले, यह माननीय सीएम साहब को बताना पड़ता था। इस प्रकार

49डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
उनकी भी सहभागिता सुनिश्चित हो गई।
सम आ रही थी, टेक्नोक्रेट यानी डाॅक्टर्स की सहभागिता सुनिश्चित करने में,
कोंकि कई डॉक्टर्स को यह लगता है कि इस इकोसिस्टम में उनसे बड़ा कोई नहीं है। एक
घटना मुझे याद है, एन.ए.बी.एच. से जुड़े हुए कुछ डॉक्टर्स एक अस्पताल में गए थे। वहां
के जो डॉक्टर थे, वे बोले कि डॉ. मीना, आप एन.ए.बी.एच. के बारे में हमें क बतलाएंगे,
मैं तो माननीय राजाल महोदय एवं माननीय मुखमंत्री महोदय का उपचार करता हूं।
मैंने उनसे आग्रह किया कि आप सिर्फ कोड व्लू (यह किसी भी हृदय संबंधी मरीज की
आपात स्थिति के लिए उपयोग किया जाता है) लागू कर दीजिए। वे मान गए। फिर इस
कोड के लागू होने से जो लाभ उन्हें दिखा तो उन्हें एहसास हुआ कि यह कितना जरूरी
है। आपको यदि सडन कार्डियक अरेस्ट आ जाए, उस समय सीपीआर देने वाली पूरी
टीम
एक
जुट होकर समय पर जब सीपीआर देती है, तब बचने के चां सेस बढ़ जाते हैं, यह
गोल्डन टाइम होता है।
इसी तरह हम लोगों ने बायोमेडिकल वेस्ट में भी काम किया। जब सभी स्तर पर
हमने काम किया तो एक क्वालिटी का स्टैंडर्ड व माहौल बनता चला गया। इसी तरह हमने
एटोमिक एनर्जी बोर्ड (ए.इ.आर.बी.) सर्टिफिकेट को लेकर भी का किया। धीरे-धीरे हम
लोगों ने हर लेवल पर काम शुरू कर दिया। हमारे यहां के पी.एच.सी. नेशनल क्वालिटी
एशरेंस स्टैंडर्ड के मानकों को पूरा करने लगे, उन्हें एनक्वास सर्टिफिकेट मिलने लगे।
एन.ए.बी.एच. सर्टिफिकेट पाने वाला पहला पी.एच.सी., पहला सी.एच.सी., पहला जिला
अस्पताल भी गुजरात से ही है। सरकारी मेडिकल कॉलेज की बात करें तो उनकी लैब को
एन.ए.बी.एल. एक्रिडिएशन कराया गया। ब्लड बैंक को एन.ए.बी.एच. कराया गया, स्पाइन
इंस्टिट्यूट को एन.ए.बी.एच. कराया गया, मेंटल में भी एन.ए.बी.एच. किया, फिर डेंटल
कॉलेज, उनको भी एन.ए.बी.एच. किया। इस कंटि‍नटी के कारण गुजरात की स्वास्थ
सेवाओं में क्वालिटी कल्चर विकसित हो गया।
आशुतोष- अब मैं गुणवत्ता प्रमाणन ानी क्वालिटी सर्टिफिकेशन के बारे में
जानना चाहता हूं। मसलन, हेल्थ केर क्वालिटी की दृष्टि से े सर्टिफिकेशन कब
से शुरू हुए और अभी इसका स्वरूप क है? और इसमें आपका क रोल रहा?
डॉ. मीना- जहां तक स्वास्थ सेवा के क्षेत्र में क्वालिटी की बात है, सन् 2000
से हम लोगों ने क्वालिटी संबंधी पहल शुरू की थी। उस समय पर कोई स्टैंडर्ड नहीं थे,
हम लोगों ने जिस तरीके से पी.एच.सी. को डेवलप किया, उसी के आधार पर डिस्ट्रिक्ट
क्वालिटी एशरेंस ऑफिसर के लिए चेकलिस्ट बनाई थी।
इनपुट (इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन पावर, इंस्ट्रूमेंट, इक्विपमेंट, फर्नीचर, इत),
प्रोसेस (मानक संचालन प्रक्रिया, कैपिसिटी बिल्डिंग इत) और आउटपुट (पेशेंट

50डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
सेटिस्फेक्शन, स्टाफ सटिस्फेक्शन इत) ये बिन्दु ऐसे थे, जिसके इर्द-गिर्द हमारी
क्वालिटी की सूई घूमती थी। जब हमने स्टेट लेवल हेल्थ क्वालिटी चेक लिस्ट बनाई,
तब हमारे पास रेफरेंस के लिए जिले के लिए बनाई गई क्वालिटी चेकलिस्ट थी। इस तरह
एक रेफरेंस चेक लिस्ट तो हमारे पास थी ही।
2007 में स्वास्थ क्षेत्र में क्वालिटी को लेकर एक इंटरनेशनल काॅन्फ्रेंस हुई थी,
उसमें मेरा भी प्रेजेंटेशन हुआ था। एन.ए.बी.एच. स्टैंडर्ड को लेकर चर्चा चल रही थी,
अपोलो और मैक्स जैसे अस्पताल एन.ए.बी.एच. में जाने की बात कर रहे थे, उस समय
मेरा प्रेजेंटेशन सबसे लास्ट में आया था।
मैंने पी.एच.सी. में हुए बदलाव, अपने पहले के आउटकम और उसके प्रभाव को
ध में रखकर अपना प्रेजेंटेशन तैयार किया था। अंत में मैंने यह जरूर बोला था कि
ठीक है, इस पहली काॅन्फ्रेंस में तो मेरा प्रेजेंटेशन इस तरीके का रहा, अगली कॉन्फ्रेंस में
मेरे अस्पताल एक्रिडेटेड होकर आएंगे। मेरे इस तरह कहने का मतलब था कि मीडि‍या ने
मुझे
घेर
लिया, “डॉक्टर मीना, यू आर स्पीकिंग इन इंटरनेशनल काॅन्फ्रेंस।” मैंने कहा, जी
मुझे पता है कि मैं कहां बोल रहा हूं और ऐसी कौन-सी बात मैंने बोल दी, जो संभव नहीं
है। मीडि‍या का प्रश्न था, आप पब्लिक हॉस्पिटल में एन.ए.बी.एच. लाने की बात कर रहे
हैं। कैसे लेकर आएंगे? नेचुरल था, तीर कमान से निकल चुका था। पीछे हटने का सवाल
ही नहीं था। यह मेरे लिए एक चैलेंज था कि सरकारी अस्पतालों को कैसे एन.ए.बी.एच.
सर्टिफिकेट दिलाया जाए। वहीं पर क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के गिरधर ज्ञानी
जी भी थे। वे क.सी.आई. में सेक्रेटरी जनरल थे। उन्हें भी यह पता था कि गुजरात में
क्वालिटी में बहुत अच्छा काम हो रहा है। उन्होंने ही आइडिया दिया- बोले कि गुजरात
और क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया मिलकर एक एम.ओ.यू. साइन कर लें, अगर
पब्लिक अस्पतालों में एन.ए.बी.एच. लाना ही है और हम संकल्प ले ही चुके थे। उनका
प्रस्ताव व सुझाव हमें अच्छा लगा। हमारे लिए तो यह सोने पर सुगंध वाली स्थिति थी।
क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ अगर हमारा एम.ओ.यू. साइन हो जाएगा तो
हमें एक सपोर्टिंग एजेंसी मिल जाएगी।
कॉन्फ्रेंस से लौटने के बाद मैंने इस बात को विस्तार से अपने कमिश्नर सर को
बताया। वे इन मामलों में बहुत ही दूरदर्शी थे। उन्होंने आगे बढ़ने के लिए हामी भर दी।
इसी बीच अचानक एक दिन वे सुबह-सुबह गार्डन में मिल गए। उन्होंने कहा कि जो
एम.ओ.यू. वाली फाइल है, अगले एक घंटे में लेकर मेरे पास पहुंचिए, मुझे 9 बजे कहीं
निकलना है। मैं अचंभित था, इतने कम समय में मुझे फाइल बनाकर ले जानी थी। पूरी
फाइल तैयार की, सभी एडिशनल डायरेक्टर से साइन लिए, फिर कमिश्नर साहब के
पास गया, साइन लिया और फिर अपनी सेक्रेटरी मैडम से साइन लिया। फाइनली हमारी

51डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
फाइल अप्रूवल हो गई। इसके बाद एम.ओ.यू. साइन करने के लिए सेक्रेटरी मैडम के
साथ मैं भी आया। जब हम दिल्ली आए तो मैडम का पहला प्रश्न था- डॉ. मीना हम लोग
क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ एम.ओ.यू. साइन करके ठीक कर रहे हैं न?
पब्लिक हेल्थ सेक्टर में क्वालिटी मानकों को पूरा करना आसान तो नहीं है! मैंने उनसे
एक ही बात कही- हम अपने लिए तो कर नहीं रहे हैं, पब्लिक के लिए कर रहे हैं। इसमें
हार-जीत दोनों हो सकती है। लेकिन हमारा इंटेशन बिल्कुल साफ है। हमें सुधार करना
है। उन्होंने कहा कि तुम इतने विश्वास से बोल रहे हो तो ठीक है। फिर भारत का इस तरह
का पहला एम.ओ.यू. गुजरात राज एवं क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के बीच साइन
हुआ। एम.ओ.यू तो साइन हो गया, अब क्रियान्वयन की बारी थी। उस समय पी.एच.सी.
का कोई स्टैंडर्ड तो था नहीं। अस्पतालों में बेशक कुछ मानकों पर ध दिया जाता था।
पी.एच.सी. के स्टैंडर्ड हम लोगों ने बनाए थे, फिर क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के
साथ में मिलकर पी.एच.सी. के एन.ए.बी.एच. के जो स्टैंडर्ड हैं, उसे हम लोगों ने गुजरात
में बनवाने में अहम् भूमिका निभाई। हमने कई पहलुओं पर अपने सुझाव दिए। इस दिशा में
हम पहले से ही काम कर रहे थे, चेक लिस्ट बनाई हुई थी। फिर एक स्टैंडर्ड तैयार हुआ,
उसी तरह सी.एच.सी. के लिए भी स्टैंडर्ड निर्धारित किए गए, फिर उप जिला अस्पताल,
जिला अस्पताल आदि के लिए स्टैंडर्ड बनते चले गए।
एन.ए.बी.एच. के लिए सबसे पहले हमने 7 जिला अस्पतालों को उसके मानकों
के अनुरूप तैयार किया। हालांकि एन.ए.बी.एच. में अस्पतालों को लाना आसान काम
नहीं था। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर, इंस्ट्रूमेंट, इक्विपमेंट, मैन पावर, फर्नीचर, मानक संचालन
प्रक्रिया, कैपिसिटी बिल्डिंग इत तमाम बिन्दुओं पर काम करना था। हमने सबसे
जदा कैपिसिटी बिल्डिंग के तहत ट्रेनिंग पर ध दिया था। गुजरात में उस समय
स्वच्छता मिशन ऑडिट चल ही रहा था, कायाकल्प प्रोत्साहन प्रमाण पत्र हम दे ही रहे
थे। क्वालिटी को लेकर एक कल्चर पहले से ही विकसित हो रहा था। अब हमें अपने मैन
पावर को सशक्त करना था। इसके लिए उनकी ट्रेनिं ग की जानी थी। ट्रेनिं ग कहां कराई
जाए, इसे लेकर भी हमारे पास सम थी, कोंकि जिस ट्रेनिं ग इंस्टीट्यूट में अमूमन
ट्रेनिं ग होती रहती थी, उसका इंफ्रास्ट्रक्चर खुद ही इतना अच्छा नहीं था कि वहां पर
ट्रेनिं ग लेने वालों में मोटिवेशन आए।
इस सम के समाधान के लिए हमने होटल्स के साथ बार्गेनिंग स्टार्ट किया और
फाइनली रहने, खाने और काॅन्फ्रेंस तीनों का खर्च प्रति प्रतिभागी करीब 1300 रुपये
प्रतिदिन में तय हुआ। करीब 1300 रुपये वैसे तो बहुत जदा राशि नहीं थी, होटल्स
वाले से इस रेट पर सहमति इसलिए बन पाई थी, कोंकि हमने कहा था कि कॉन्फ्रेंस
खत्म होते ही हम पेमेंट कर देंगे। पेमेंट टाइमली एवं अपेक्षाकृत जल्दी मिलने की गारंटी

52डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
के कारण उसने ेट इतना कम किया था। इसी तरह ट्रेनिंग के लिए हमने एक मिनिमम
रेट तय कर दिया। होटल्स के अच्छे माहौल में ट्रेनिंग होने का हमें फायदा मिला। देश
के जिस भी कोने में हम गए, वहां पर ट्रेनिंग शानदार रही। दिन में कॉन्फ्रेंस और रात
में उससे सबंधित असाइनमेंट हम दे देते थे, जिससे प्रतिभागियों की इन्वॉल्वमेंट शत-
प्रतिशत रहता था। सिर्फ गुजरात-गुजरात के तकरीबन 25,000 मैन पावर को हमने
प्रशिक्षित किया। इसमें प्रशासनिक विभाग हो, चिकित्सक हों, नर्स हों या फार्मासिस्ट,
स्वास्थ इकोसिस्टम से जुड़े सभी तरह के मानव संसाधन को क्वालिटी हेल्थकेयर
की दृष्टि से हमने ट्रेनिंग दिलाई। इससे भी गुजरात में एक क्वालिटी केयर का कल्चर
डेवलप हुआ।
आशुतोष-
एन.ए.बी.एच.
सर्टिफिकेट के लिए आपने जिन सात अस्पतालों को
शुरू में तैार किा था, क उन्हें ह सर्टिफिकेट मिला?
डॉ. मीना- गुजरात में क्वालिटी केयर को लेकर एक कल्चर विकिसित किया गया
था। इसका हमें फायदा मिला। और जिन सात सरकारी अस्पतालों को एन.ए.बी.एच. के
मानकों के अनुरूप हमने ढालने का प्रयास किया था, उसमें दो को सबसे पहले एक्रीडेशन
मिला। गांधीनगर सिविल हॉस्पिटल भारत का पहला सरकारी हॉस्पिटल था जिसे
एन.ए.बी.एच. का प्रमाण-पत्र मिला और बाद में सिविल हॉस्पिटल सोला, अहमदाबाद
सरकारी अस्पतालों को एन.ए.बी.एच. एक्रीडेशन मिला ।
इसी तरह हमने पी.एच.सी. को भी एक्रीडेट कराने की कोशिश की थी। हमने गां धीनगर
से करीब 250 किमी दूर बड़ोदा जिला में एक प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र, गड़बोरियाद को
एन.ए.बी.एच. एक्रीडेशन कराने के लिए कोशिश शुरू की थी। बहुत लोगों को यह लगा कि
मैंने इतने दूर के प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र को कों चुना है? लोगों ने मना भी किया था।
लेकिन हमने देखा था कि वहां पर मैक्सिमम डिलीवरी होती थी और वहां के डॉक्टर बहुत
डेडिकेटेड थे, वहां का इन्फ्रा बेशक थोड़ा कमजोर था, लेकिन क्वालिटी केयर बेहतर
थी। भारत की पहली पी.एच.सी. जिसे एक्रीडेशन मिला, वह हमारा सेलेक्ट किया हुआ
प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र गड़बोरियाद ही था। यह हमारे लिए गौरव की बात थी।
आशुतोष- आपने शुरू में बताा था कि आपने क्वालिटी के ऊपर आोजित
पहले इंटरनेशनल कान्फ्रेंस में सरकारी अस्पतालों को एन.ए.बी.एच. कराने का
संकल्प लिा था, जब ह संकल्प पूरा हुआ, तब आप उस कॉन्फ्रेंस में दोबारा गए
कि नहीं!
डॉ. मीना- जी, जब दूसरा इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस थी, तब मैं गया था और तब तक
मेरे पास कुछ एन.ए.बी.एच. एक्रीडेटेड फैसलिटी ऑलरेडी थी। यह एक इतिहास बनाने
जैसा था। जो हमने संकल्प लिया था, उसकी सिद्धि की शुरुआत भर हुई थी। इतने से

53डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
हम संतुष्ट नहीं थे। ें क्वालिटी हेल्थकेयर में और उड़ान भरनी थी। उस समय एन.ए.बी.
एच. का जो मानक था, उसके अनुसार सभी अस्पतालों को शामिल कराना आसान काम
नहीं था। इसलिए हमने क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया से बातचीत की और उनसे
कहा कि हमें एन.ए.बी.एच. में एंट्री लेवल पर भी सर्टिफिकेशन करना चाहिए। वे मान गए।
इसी तरह एन.ए.बी.एच. का प्रोग्रेसिव लेवल और एन.ए.बी.एच. का फूल लेवल शुरू हुआ।
यानी एन.ए.बी.एच. की तीन श्रेणियों में अस्पतालों का वर्गीकरण किया गया। प्रतक श्रेणी
के लिए अलग-अलग मानक बनाए गए।
आशुतोष- एन.ए.बी.एच. सर्टिफिकेशन के वर्गीकरण से क्वालिटी हेल्थ केर
की दृष्टि से क बदलाव देखने को मिला?
डॉ. मीना- इसका बहुत लाभ मिला। अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ सुविधा प्रदान
करने की दिशा में एक आंतरिक प्रतियोगिता का भाव जागृत हुआ। हमने सबसे पहले
मेडिकल कॉलेजों के लैब को एन.ए.बी.एल. सर्टिफाइड करवाया। फिर ब्लड बैंक को
एन.ए.बी.एच. एक्रीडेट करवाया। इससे हेल्थ इकोसिस्टम में बड़ा बदलाव आया। मेडिकल
कॉलेजों में एन.ए.बी.एच. एंट्री लेवल लेकर आए। फिर उसमें जो अच्छा कर रहे थे,
प्रोग्रेसिव लेवल पर गए। जिन्होंने और बेहतर का किया, उन्होंने एन.ए.बी.एच. फूल
फ्लेज सर्टिफिकेट प्राप्त किए। फिर राष्ट्रीय स्तर पर हमारे कामों की चर्चा होने लगी।
गुजरात के स्वास्थ मॉडल की चर्चा क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपनी बुक में
की थी, जिसका शीर्षक था- ‘‘गुजरात इज द रोल मॉडल फॉर क्वालिटी।” फिर अखबारों
में भी इसकी खूब चर्चा हुई। राष्ट्रीय स्तर से भी दूसरे स्टेट को हेल्थ केयर में बेस्ट प्रैक्टिस
के रूप में गुजरात मॉडल को दिखाया-बताया जाने लगा।
आशुतोष- स्वास्थ्य में गुजरात मॉडल की चर्चा तो अंतरराष्ट्री स्तर पर भी
होती है। ऐसा कोई अनुभव, जब आपको भारत से बाहर क्वालिटी हेल्थ केर के बारे
में बात करने के लिए बुलाा गा हो?
डॉ. मीना- जापान इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन की ओर से अमेरिका में
आयोजित एक प्रशिक्षण काम में इंडिया से तीन लोगों को भेजा गया था, जिनमें
मैं गुजरात से भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। हमारे साथ दिनेश अरोड़ा सर
एवं गुरविंदर सिंह जी भी गए थे। हम तीनों को भारत सरकार ने वहां पर भेजा
था। वाशिंगटन में आयोजित इस काम में हमारा भी प्रेजेंटेशन था। भारत में
क्वालिटी हेल्थ केयर को कैसै चैनलाइज किया गया था, इस बात को मैंने अपने
प्रेजेंटेशन में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया था। हमने ‘पार्टिसेप्टरी रिस्पॉन्सबिलिटी’
(सहभागी उत्तरदात्व) के कॉन्सेप्ट को पूरी तरह से गुजरात में लागू किया था।
इससे स्वास्थ इकोसिस्टम से सभी स्टेक होल्डर्स जुड़ गए थे, सभी की जिम्मेवारी

54डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
फिक्स थी। सभी प्रक्रियाओं के ऑनलाइन होने एवं आउटकम की मॉनिटरिंग
सीएम डैशबोर्ड से होने से गुजरात में क्वालिटी केयर को क्रियान्वित करने में बहुत
मदद मिली। क्वालिटी को लेकर मेरा मानना रहा है, “क्वालिटी इज द टीमवर्क इट्स
नेवर अचीव बाइ सिंगल पर्सन” और “क्वालिटी कमिंग फ्रॉम योर हार्ट”। कोंकि कहते
हैं कि जब दो दिल मिलते हैं तो जिंदगी अच्छी चलती हैं इसलिए क्वालिटी से सिर्फ
दिल ️लगाने की जरूरत है। कोंकि हेल्थ सेक्टर में एक छोटी-सी भूल किसी की जिंदगी
और मौत का कारण बन सकती है, इसलिए हेल्थ सेक्टर में क्वालिटी हेल्थ केयर सर्विस
का बड़ा रोल हैं।
आशुतोष- क्वालिटी हेल्थ की दिशा में हुए बदलाव में सीएम ऑफिस में बने
अवार्ड गैलरी का भी कोई संबंध है?
डॉ.
मीना-
किसी भी विभाग को जब अवार्ड मिलता था तो उसकी तारीफ तत्कालीन
मुखमंत्री नरेन्द्र मोदी जी करते थे। स्वास्थ क्षेत्र में अच्छा काम होने से स्वास्थ टीम
को अलग-अलग समय पर अवार्ड मिलने शुरू हो चुके थे। इस बीच में सीएम ऑफिस को
विभागों को मिले अवार्ड के बारे में एक शॉर्ट नोट भेजा जाने लगा, जिसमें अवार्ड के बारे में
ब्रीफ इंट्रोडक्शन होता था, जिसे कैबिनेट की मीटिंग में रखा जाता, जिसे सीएम खुद चेयर
करते थे। इससे काम करने वालों में मोटिवेशन का संचार हुआ। उन्हें यह लगने लगा कि
अब उनके काम के बारे में सीएम साहब के साथ-साथ सभी मंत्रिपरिषद को पता चलता
है। हमें मिले अवार्ड को सीएम ऑफिस में बने अवार्ड गैलरी में लगा दिया जाता था। इससे
अवार्ड पाने वालों को और खुशी होती थी।
आशुतोष- मैं हां पर एक बात और जोड़ना चाहूंगा, ह सिर्फ हेल्थ केर का
मामला नहीं है, ह एक गुड गवर्नेंस की मिसाल भी तो है!
डॉ. मीना- वास्तव में यह गुड गवर्नेंस का ही मामला है। गुजरात के सीएम के इस
अप्रोच को देश के बाकी सीएम को भी अपनाना चाहिए। जब आप अपने लोगों के अच्छे
कामों
को प्
रोत्साहित करते हैं तो उनका मनोबल बढ़ता है। पहले भी अवार्ड मिलते थे,
लेकिन किस कोने में चले जाते थे, पता नहीं चलता था। लेकिन सीएम साहब ने एक
अवार्ड गैलरी ही बना दी, इससे आपको मिले अवार्ड की गरिमा और बढ़ जाती है। गुजरात
में उस समय कुल करीब 25 विभाग थे, लेकिन अवार्ड गैलरी में सबसे जदा अवार्ड हमारे
यानी स्वास्थ विभाग के ही दिखते थे। जब हम कभी कोई अवार्ड लेकर उनके पास जाते
तो वे बहुत खुश होते। लेकिन घर के अभिभावक के रूप में वे कहते कि इतने से काम
नहीं चलेगा और अच्छा काम कीजिए, और अवार्ड चाहिए। जब हम कभी सामूहिक फोटो
खि‍ंचवाते तो उसमें भी सीएम साहब गंभीर मुद्रा में ही रहते थे। साथ ही आपके अच्छे काम
को लेकर वे बहुत सपोर्टिव थे।

55डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- ऐसी कोई घटना आपको ाद हो, जिसमें गुजरात के तत्कालीन
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपको सपोर्ट किा हो?
डॉ. मीना- वे हम सब के अभिभावक थे। सिस्टम की बेहतरी के लिए उठाए गए
किसी भी सार्थक कदम में उनका सहयोग रहता था। जब बायोमेडिकल संबंधित मामले में
मैंने करीब 56 फैक्ट्री और हॉस्पिटल्स को सील करवाया या ए.ई.आर.बी. सर्टिफिकेशन
के संबंध में फिलिप्स के एशिया डायरेक्टर पर मैंने एफ.आई.आर. करवाई, यह बात मोदी
जी तक पहुंची, लेकिन उन्होंने कहा कि अगर डॉ. मीना का प्वाइंट वैलिड है तो वे उस
मामले में कुछ नहीं कहेंगे।
आशुतोष- फिलिप्स वाला क मामला था?
डॉ. मीना- बात 2007-2008 की है। हम लोग उन दिनों एन.ए.बी.एच. एक्रीडेशन के
लिए सभी अस्पतालों के मानकों को सही करने में लगे थे। उसी दौरान हमें एक्सरे मशीन
के क्वालिटी सर्टिफिकेट की आवशकता थी। चूंकि फिलिप्स ने ही एक्सरे मशीन दी थी,
इसलिए सर्टिफिकेट उसे देना था, लेकिन उसका प्रबंधन हमें घुमाए जा रहा था, जिसके
कारण एन.ए.बी.एच. सर्टिफिकेट मिलने में हमें अड़चन आ रही थी। अंत में हमें फिलिप्स
के खिलाफ एफ.आई.आर. करानी पड़ी भारत में फिलिप्स के खिलाफ अपने तरह की यह
पहली एफ.आई.आर. थी। इसकी चर्चा मीडिया में हुई। फिलिप्स की सप्लाई भी रुक गई
थी। उन लोगों ने स्वास्थ मंत्री को अप्रोच किया। उन्होंने कहा कि आप इस बारे में डॉ.
मीना से ही बात कीजिए। फिर बात सीएम साहब तक पहुंची, उन्होंने भी कहा कि अगर
डॉ. मीना ने कोई गलत काम किया है तो आप बताइए? अगर उसने सही किया है तो फिर
वो ही जाने। फाइनली वे लोग मेरे पास आए। फिर पूछा कि आप क चाहते हैं? मैंने कहा,
मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि आप हमारी एक्सरे मशीन को क्वालिटी सर्टिफिकेट प्रदान
कर दें। फिर उन्होंने न सिर्फ गुजरात की, बल्कि पूरे भारत में फिलिप्स की जितनी भी
एक्सरे मशीनें थीं, सबका क्वालिटी एशरेंस सर्टिफिकेट दिया।
आशुतोष- गुजरात में जिस तरह स्वास्थ्य गुणवत्ता को बेहतर करने में गुड
गवर्नेंस, खास तौर से तत्कालीन सीएम के विजन ने मदद की थी, क उसी तरह
नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, तो राष्ट्री स्तर पर स्वास्थ्य गुणवत्ता में कोई
बदलाव आपको दिखा?
डॉ. मीना- निश्चित रूप से चीजों में बदलाव आया। स्वास्थ की दृष्टि से देखा जाए
तो सबसे पहले स्वच्छ भारत अभियान, उज्ज्वला योजना, नई स्वास्थ नीति, राष्ट्रीय
स्वास्थ प्राधिकरण का गठन, एन.एम.सी. का गठन, राजों में भी एम्स खुलवाना, योग
को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानता दिलाना एवं अब आयुर्वेद के लिए वैश्विक मंच तैयार
करने सहित स्वास्थ के तमाम मोर्चों पर प्रधानमंत्री जी का विजन साफ-साफ दिखता है।

56डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
स्वच्छ भारत अभियान जब 2014 में लॉन्च हुआ, तब लोगों को लगा कि झाड़ू
लगाने एवं फोटो खि‍ंचाने का सुनहरा मौका है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश
यह नहीं था। हम लोगों ने गुजरात में एक चेक लिस्ट बनाई थी कि आखिर में स्वच्छ
भारत मिशन कैसे क्रियान्वित हो, इसको लेकर एक पूरी गाइडलाइन पुस्तिका बनी। उस
समय आनंदी बेन पटेल जी मुखमंत्री थीं। फिर उसी गाइडलाइन पुस्तिका को रेफरेंस
रखते हुए भारत सरकार के स्तर पर भी स्वच्छ भारत मिशन को लेकर एक गाइडलाइन
पुस्तिका बनी, जिसमें बताया गया कि अननेसेसरी स्क्रैप निकालना, बायोमेडिकल वेस्ट
निकालना, इंफेक्शन कंट्रोल प्रैक्टिसेस सहित तमाम बातों को इस पुस्तिका में शामिल
किया गया था। इसे स्वच्छता ऑडिट चेक लिस्ट में भी शामिल किया गया। इसलिए वहां
का कल्चर और अच्छा होता चला गय।
आशुतोष- स्वच्छता ऑडिट की बात आप बार-बार कर रहे हैं, क ह स्वच्छता
ऑडिट सिर्फ गुजरात में ही होता है ा पूरे भारत में?
डॉ. मीना- गुजरात ने सबसे पहले स्वच्छता ऑडिट को क्रियान्वित किया था।
स्वच्छ भारत मिशन के शुरू होने के बाद अब यह प्रतक राज में होता है। स्वच्छता
सर्वेक्षण भी इसी का पार्ट है। गुजरात में स्वास्थ को लेकर बहुत काम हुआ है। काइजन
हो या फाइव एस का सिद्धांत, एन.ए.बी.एच. हो या एनक्वास, कायाकल्प हो या स्वच्छता
मिशन ऑडिट, इन सबको समग्रता में देखा जाएगा, तभी गुजरात में स्वास्थ के क्षेत्र में
हुए क्वालिटी हेल्थ केयर को ठीक से समझा जा सकता है।
आशुतोष- 2018 तक आप गुजरात में रहे, उसके बाद आप स्वास्थ्य के केन्द्री
टीम का हिस्सा बने। राज्य से सीधे केन्द्र में आना, ह कैसा सफर रहा है?
डॉ. मीना- 2018 में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग योजना को क्रियान्वित
करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ एजेंसी, जो बाद में प्राधिकरण बना, का गठन हो रहा था।
मेरे पास फोन आया कि क आप राष्ट्रीय स्तर की एक योजना के साथ जुड़ेंगे। अभी
तक तो मैं यही सोच रहा था कि राष्ट्रीय स्तर की किसी बड़ी योजना में तो बड़े अफसरों
को डिपटेशन पर भेजा जाता है, मेरे जैसे स्टेट स्तर के डॉक्टर को कौन लेगा। लेकिन मैं
गलत था। मुझे बुलाया गया। हालांकि स्टेट छोड़कर केन्द्र में जाने को लेकर मेरे दोस्तों का
मत मुझसे भिन्न था। उनका मानना था कि स्टेट में आपके पास पावर है, सेंटर में जाकर
पावर सीमित हो जाएगा।
उस समय मैंने सोच-समझ कर यही निर्णय लिया कि जो होगा, देखा जाएगा और
मैं दिल्ली आ गया। यहां राष्ट्रीय स्वास्थ प्राधिकरण में मैंने ज्वाइन किया। मेरे जिम्मे
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग योजना के तहत देश के तमाम अस्पतालों को
सूचीबद्ध करने से लेकर इसकी गाइडलाइन बनाने, समझाने से लेकर क्रियान्वित करवाने

57डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
तक की जिम्मेदारी आ गई। अस्पतालों के पैकेज बनवाने की जिम्मेदारी भी मेरे पास
थी। राष्ट्रीय स्वास्थ प्राधिकरण के सी.ई.ओ. डॉ. इंदुभूषण सर थे एवं उनके बाद बड़े
अधिकारी में दिनेश अरोड़ा सर थे। डॉ. दिनेश अरोड़ा सर ने गुजरात में मेरे काम को देखा
था। उन्हें पता था कि मैं क कर सकता हूं। इसलिए मुझे अस्पतालों को सूचीबद्ध करने
में

दा परेशानी नहीं हुई। जो स्टेट आयुष्मान भारत पीएम-जय योजना से नहीं जुड़े थे,
वहां के अस्पतालों को डायरेक्ट सूचीबद्ध करना था। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं
तेलंगाना उस समय इस स्कीम से नहीं जुड़े थे। उस दौरान तकरीबन 25 हजार से जदा
अस्पतालों को हमने सूचीबद्ध किया। 2020 की शुरुआत में जब कोविड आया, तब भी
राष्ट्रीय स्वास्थ प्राधिकरण (एन.एच.ए.) ने बहुत काम किया। मुझे आज भी याद है कि
इस दौरान भी एन.एच.ए. का ऑफिस कभी बंद नहीं हुआ। अगर किसी को कोविड होता
भी था तो उसके चैंबर को स्टेरलाइजेशन करके दूसरा चेंबर यूज कर लेते थे। दो आई.सी.
यू. बेड हमने एन.एच.ए. के थर्ड फ्लोर ऑफिस में सेट कर दिया था। इस तरह कोविड
काल में हम लोगों ने बहुत मेहनत की थी।
इस योजना से जुड़े अस्पतालों के लिए भी हम एन.एच.ए. की ओर से क्वालिटी
प्रमाण-पत्र लेकर आए। पीएम-जय ब्रांज, सिल्वर एवं गोल्ड प्रमाणन भी देना शुरू किया।
जो अस्पताल फूल एन.ए.बी.एच. एक्रिडेटेड था उसको गोल्ड, उसके नीचे इंट्री लेबल
पर सिल्वर और उसके नीचे ब्रांज सर्टिफिकेट देना हमने जारी किया। सारा प्रोसेस
ऑनलाइन था। एविडेंस बेस्ड, सेल्फ असेसमेंट आधारित व को हमने अंगीकार
किया था। इस तरह एन.एच.ए. के अपने काकाल में मुझे बहुत ही शानदार का करने
का अनु भव हुआ।
आशुतोष- राष्ट्री स्वास्थ्य प्राधिकरण (एन.एच.ए.) से आप नेशनल मेडिकल
कमिशन (एन.एम.सी.) चले गए। ह कब की बात है?
डॉ. मीना- एन.एम.सी. जाना मेरे लिए अप्रतत था। एन.एम.सी. जाने से
पूर्व मेरे पास एक एसाइनमेंट आया था। एक इंस्पेक्शन करना था। इंस्पेक्शन के लिए
स्वास्थ मंत्रालय में यह चर्चा चल रही थी कि किसको भेजा जाए? मंत्रालय से किसी
ने मेरे नाम का सुझाव दिया था। मेरे इंस्पेक्शन की रिपोर्ट आई तो सभी लोग मेरे
काम से संतुष्ट थे। फिर यहां से एन.एम.सी. के लिए मेरे नाम की चर्चा शुरू हो गई
थी। एन.एम.सी. के लिए मेरा 360 डिग्री वेरिफिकेशन किया गया। फाइनली भारत
सरकार का गजट नोटिफिकेशन आया, जिसके तहत मुझे एन.एम.सी. के सद के
रूप में नई जिम्मेदारी मिली। आज भी मुझे याद है, 25 जुलाई, 2022 का वह दिन।
जब मुझे एन.एम.सी. की जिम्मेदारी मिली। यह मेरे जीवन के लिए सबसे बड़ा दिन
था, सबसे महत्त्वपूर्ण पल था।

58डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- एन.एम.सी. का आपका सफर कैसा रहा?
डॉ. मीना - एन.एम.सी. को ग‿त हुए अभी जदा समय नहीं हुआ था। मेडिकल
काउंसिल ऑफ इंडिया (एम.सी.आई.) को भंग करने के बाद एक नई व को
अंगीकार किया गया था। इसी बीच कोविड का दौर भी रहा था। ऐसे में जब मेरे पास
जिम्मेदारी आई, तो एन.एम.सी. में वर्क बर्डन बहुत था। मेडिकल कॉलेजों के अप्रूवल
से लेकर उनके असेसमेंट तक में तीन साल की पेंडेंसी थी। साथ ही एम.सी.आई.
जिन कारणों से भंग हुआ था, उन कारणों पर भी नज़र रखना था, ताकि एन.एम.सी.
में उस तरह की कोई बात न हो। जब मैंने ज्वाइन किया, उस समय 5000 से जदा
एप्लिकेशन पेंडिंग थे। उसे समय पर पूरा करना था। इतने एप्लिकेशन को एसेस करने
के लिए कम से कम 15000 एसेसर की जरूरत थी। किसी कॉलेज में एसेसर अकेले
भेजना भी क्वालिटी के संदर्भ में ठीक नहीं था। पूरी टीम जाती थी। हमने प्रतक
कॉलेज के सभी एप्लिकेशन को एक साथ लिया और सबके लिए अलग-अलग एसेसर
लगाए। यदि एक कॉलेज के 20 एप्लिकेशन हैं तो 20 एसेसर को लगाया। और जब एक
साथ सारी एसेसर टीम कॉलेजों में पहुंचती थी, तो कॉलेज के लिए किसी को बहकाना
आसान नहीं था। सही रिपोर्ट निकल कर आई। इस प्रक्रिया से बहुत से कॉलेज खुश
हुए, कोंकि उनका काम जल्द हो गया, लेकिन कुछ को दिक्कतें भी आई, कोंकि वे
इतनी बड़ी टीम विजिट को एक्सपेक्ट नहीं कर रहे थे। धीरे-धीरे एन.एम.सी. की टीम
विजिट की चर्चा चारों तरफ होने लगी। इसकी चर्चा एक सीरियल में भी दिखाई गई।
अस्पताल प्रबंधन अपने स्टॉफ से कह रहा है कि अभी छुट्टी नहीं देंगे, कोंकि एन.एम.
सी. का इंस्पेक्शन आने वाला है।
बात सिर्फ इंस्पेक्शन करवाने तक सीमित नहीं थी। रिपोर्ट बनवाना, उसका एक्सपर्ट
से

वेलएशन कराना, इवेलएशन के बाद समय पर रिजल्ट देना, यह एक बड़ा चैलेंजिंग
वर्क था। उस दौरान मुझे दिन-रात काम करना पड़ा। दफ्तर से आने के बाद भी घर पर
काम करना पड़ता था। कई बार तो रात को ही ऑर्डर पर साइन करके हम संबंधित
मेडिकल कॉलेजों को भेज देते थे। इससे पारदर्शिता आई। बहुत से कॉलेजों के डीन एवं
प्रिंसिपल तो यहां तक बोलते थे कि आपके फास्ट ट्रैक वर्क की वजह से हमें एन.एम.सी.
आने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। हमारे डाकमेंट हमें मेल पर ही मिल जाते हैं।
5000 एप्लि‍केशंस की पेंडेंसी को हमने स-समय खत्म किया। यह आसान काम
नहीं था। लोगों के काम जब जल्दी होने लगे, तो दो तरह की धारणाएं सामने आर्इं। कुछ
लोगों को तो यह बहुत अच्छा लगा और उन्होंने का को प्रोत्साहित भी किया। कुछ
लोगों को यह लगा कि आखिर इतना जल्दी काम कैसे हो रहा है। लेकिन मैंने यह देखा
है कि आपके जीवन में दोनों तरह के लोग होने भी चाहिए। वे आपको इंस्पायर भी करते

59डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
हैं और चैलेंज भी। दोनों ही स्थितियों में आपको आगे ही बढ़ना होता है। उस दौरान चार
वर्ल्ड रिकॉर्ड बने। एक साल में सबसे जदा मेडिकल कॉलेज हम लोगों ने खोला, यूजी
एवं पीजी की सीटों में जो इजाफा हुआ, वह भी एक रिकॉर्ड था। इतनी जल्दी 5000
एप्लिकेशन का एसेस कराना भी अपने आप में एक रिकॉर्ड था। साथ में ही वर्ल्ड फेडरेशन
मेडिकल एजुकेशन (डब.एफ.एम.ई.) मानता के लिए सफल अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत
और
निरी
क्षण किया गया। 10 वर्ष के लिए एन.एम.सी. को वर्ल्ड फेडरेशन मेडिकल
एजुकेशन (डब.एफ.एम.ई.) मानता मिली, नए नियमों के अनुसार, 2024 से आगे
ई.सी.एफ.एम.जी. (एजुकेशन कमीशन फॉर फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स) प्रमाणीकरण और
यू.एस.एम.एल.ई. (यूनाइटेड स्टेट्स मेडिकल लाइसेंसिंग एग्जामिनेशन) के लिए आवेदन
करने वाले वतियों को डब.एफ.एम.ई (वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेडिकल एजुकेशन) द्वारा
मानता प्राप्त एक एजेंसी द्वारा आधिकारिक तौर पर मानता प्राप्त मेडिकल स्कूल से
स्नातक होना आवशक है। इस नियम का मुख उद्देश यह सुनिश्चित करना है कि
विदेशी मेडिकल स्नातकों को अमेरिका में चिकित्सा अभस करने के लिए आवशक
प्रमाणीकरण और लाइसेंस प्राप्त करने के लिए एक मानकीकृत और मानता प्राप्त
मेडिकल शिक्षा प्राप्त हो। एन.एम.सी. (नेशनल मेडिकल कमीशन) को डब.एफ.एम.ई.
द्वारा मानता प्राप्त करने के परिणामस्वरूप, एन.एम.सी. द्वारा मानता प्राप्त मेडिकल
कॉलेजों से सभी मेडिकल छात्र ई.सी.एफ.एम.जी. प्रमाणीकरण और यू.एस.एम.एल.ई.
के लिए आवेदन करने के लिए पात्र हो जाएंगे। यह निर्णय भारतीय मेडिकल छात्रों के लिए
एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है, जो अमेरिका में चिकित्सा अभस करना चाहते हैं।
आशुतोष- एक सामान्य डॉक्टर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पी.एच.सी.) से
नेशनल
मे
डिकल कमिशन के बड़े ओहदे पर पहुँचता है। अपने करिर के इस ग्राफ
को दे खकर आप कितने संतुष्ट हैं?
डॉ.
मीना- मैं अ
पनी जिम्मेदारियों से बहुत संतुष्ट हूं। मुझे जो भी जिम्मेदारी मिली,
उसे शत-प्रतिशत निर्वहन करने की मैंने कोशिश की थी। जब एन.एम.सी. आया तो मुझे
लगा कि मैं अब एक ऐसी जगह पर आ गया हूं, जहां से अपनी माँ का सपना एवं भारत
के दूर-दराज क्षेत्रों में स्वास्थ सुविधा पहुंचाने के अपने संकल्प को पूरा कर सकता हूं।
कोंकि मैंने पहले भी बताया था कि एक समय था, जब क्वालिटी हेल्थ केयर के अभाव
में मैं अपने भाई का उपचार ठीक से नहीं करा पाया, वहीं माँ का भी ख उस स्तर पर
नहीं रखा जा सका, जितना रखा जाना चाहिए था। लेकिन आज मैं देश के तमाम क्षेत्रों में
मेडिकल कॉलेज खुलवाने का मार्ग प्रशस्त कर रहा हूं। क्वालिटी हेल्थ केयर के मानकों
को लागू करने वाले कारकों का निरीक्षण कर रहा हूं। मेरे जीवन के उत्तरार्ध एवं पूर्वार्ध
के दोनों सिरे ऐसे हैं, जहां एक ओर संघर्ष हैं, दर्द है, वहीं दूसरी ओर आशा है, आनं द है।

60डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
आशुतोष- और अंत में ह जानना चाहता हूं कि आप आज जिन बुलंदिों पर
हैं, हां तक पहुंचने में किन-किन लोगों, सहोगिों, दोस्तों का ोगदान रहा है?
डॉ. मीना- आपने बहुत ही जरूरी प्रश्न पूछा है। यह सच है कि हर किसी की
सक्सेस में जीवन के तमाम पड़ावों पर बहुत से लोगों का सहयोग, स्नेह एवं पर
शामिल होता है। मेरा भी जीवन इस लॉजिक से इतर नहीं रहा है। मु झे भी सबका
सहयोग, स्नेह एवं आशीर्वाद मिलता रहा है। जैसे कि बचपन से ही माता-पिता, भैया-
भाभी, बहन, भतीजे, भतीजी का और शादी के बाद सास-ससुर, साले-साली का और
स्कूल के आदरणीय गुरुजनों (श्री बाबू लाल जी, श्री घनशम जी, श्री महेंद्र कुमार
जी इत) और कॉलेज के आदरणीय गुरुजनों (डॉ. बनर्जी मैडम, डॉ. चतुर्वेदी सर,
डॉ. सचदेवा मैडम, बनारस वाले गुरुजी - मिश्रा जी, इत) का भरपूर सहयोग,
मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद मिला।
जब सर्विस में आया, तब तो मेरे सीनियर्स आर.जे. पटेल सर, मैडम रीता टियोटिया,
अमरजीत सिंह सर, प्रभाकर जी, दिनेश अरोड़ा सर आदि का खूब सहयोग एवं मार्गदर्शन
मिला। इस दौरान मुझे गुजरात एवं केन्द्र के तमाम राजनीतिज्ञों का भी मार्गदर्शन मिला।
उनके विजन एवं मार्गदर्शन के बिना भारत में क्वालिटी हेल्थ केयर में जितना काम हुआ
है, शायद नहीं हो पाता। ऐसे में तत्कालीन मुखमंत्री एवं वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र
मोदी जी, स्वास्थ मंत्री भारत सरकार श्री जगत प्रकाश नड्डा जी, पूर्व स्वास्थ मंत्री
मनसुख एल. मांडविया जी का जहां केन्द्र में मार्गदर्शन मिला, वहीं राज में पूर्व मुखमंत्री
एवं वर्तमान गवर्नर आदरणीय आनं दी बेन पटेल जी, पूर्व स्वास्थ मंत्री श्री जय नारायण
वस जी, श्री राठौड़ जी, श्री मगा भाई धारजी एवं पूर्व स्वास्थ मंत्री श्री अशोक भट्ट जी
सहित तमाम लोगों का स्नेह-पर एवं मार्गदर्शन मुझे मिलता रहा।
इसके अलावा जहां भी मैंने काम किया, मेरे सभी सहयोगी कर्मियों का भरपूर
सहयोग मिला। इतना ही नहीं, यदि सर्विस में मैं खुल कर काम कर पाया, तो इसके पीछे
मेरी जीवन संगि‍नी नम्रता जी और बच्चों (ज, दीपक) की भी अहम् भूमिका रही है।
कहते हैं कि दोस्तों के बिना जीवन अधूरा होता है। प्रकाश, धर्मेंद्र, सुरेश, महेंद्र,
हेमंत, गुंजन, हंसा, नीरज, गिरधर ज्ञानी, पवन कपूर, भंडारी, संदीप, आशुतोष, विशेषतः
राकेश जी आदि दोस्तों का मेरे जीवन को रचनात्मक बनाने में बहुत सहयोग रहा। ऐसी
ही एक दोस्त, जो सिर्फ मेरी ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के हर सुख-दुख की साथी हैं,
“परिवार की परी - स्वाति जी” और उनके परिवार का भी खूब सहयोग मिला।
कहते हैं, सर्वशक्तिमान की कृपा के बिना तो कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। मैं अपनी
अाराध उस ️शिवशक्ति माँ को बारम्बार प्रणाम करता हूं, जो मेरे जीवन के सभी कष्टों को
हरने वाली हैं।

61डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
“हृदय सिंधु मति सीप समाना।
स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।।”
“नम्रता से लीजिए ‘शिव-शक्ति’ का नाम ।
हँसी-ख़ुशी बन जायेंगे सारे बिगड़े काम ।।”
आशुतोष- बहुत-बहुत
धन
ाद, डॉ. मीना जी। उम्मीद है, इस साक्षात्कार को
पढ़कर पाठकों को जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

मार्गदर्शकों की नजर में
डॉ. जीतू लाल मीना
यादों के झरोखे से

63डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
देश-दुनिया में अपनी मेहनत और लगन से अपनी पहचान बना चुके डॉ. जीतू लाल
मीना के लिए कुछ लिखना मेरे लिए खुशी की बात है। गुजरात के स्वास्थ एवं परिवार
कलण मंत्री (2007-12) के मेरे काकाल के दौरान डॉ. मीना को बहुत नजदीक से
देखने का मौका मिला, उन्होंने स्वास्थ विभाग टीम के प्रमुख सदों में से एक के
रूप में का किया। एक पेशेवर के रूप में, डॉ. मीना बीमारों और वंचितों की सेवा करने
के
दृ
ष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्ध थे। उन्होंने 'सार्वजनिक संस्थानों में स्वास्थ देखभाल
गुणवत्ता' की परिभाषा को बदलने के लिए कड़ी मेहनत की, जिसमें 'का अनुशासन' और
'समय की पाबंदी' के महत्त्व पर जोर दिया गया।
उन्होंने गुजरात में एन.ए.बी.एच. और गुणवत्ता स्वास्थ में हुए प्राथमिक स्तर के
बदलावों का नेतृत्व किया। सच तो यह है कि गुणवत्ता के बारे में बात करना जितना
आसान है, उसे लागू करना उतना ही मुश्किल है। डॉ. मीना हमेशा से यह मानते रहे है कि
"सच्चाई के बिना गुणवत्ता में कभी सुधार नहीं होता।"
डॉ. मीना की दृष्टि एवं टीम स्पि‍र‍िट का नतीजा था कि गुजरात, प्राथमिक स्वास्थ
केंद्रों (पी.एच.सी.), सामुदाक स्वास्थ केंद्रों (सी.एच.सी), जिला अस्पतालों, ब्लड बैंकों
के नेटवर्क के माधम से सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं में गुणवत्ता सुधार (एन.ए.बी.
एच. / एन.ए.बी.एल.) करने वाला भारत का पहला राज बन गया। चाहे प्रयोगशालाएं हों,
औषधि प्रयोगशालाएं हों या मेडिकल कॉलेज सभी जगहों पर सकारात्मक सुधार दिखने
लगे।
यहां पर महत्त्वपूर्ण त यह है कि डॉ. मीना द्वारा स्थापित इको सिस्टम विभिन्न
मानकों के आधार पर एक क्वालिटी कल्चर स्थापित करने में सफल रहा, जिससे
टिकाऊ, किफायती, नयसंगत और विश्वसनीय स्वास्थ देखभाल के लक् को पूर्ण
करने में सहूलियत मिली। क्वालिटी हेल्थ केयर के जिस मॉडल को डॉ. मीना ने गुजरात
में लागू करने में सफलता पाई है, उसे आसानी से कोई भी उन मानकों को अपना कर
अपने यहां दोहरा सकता है।
गुजरात में क्वालिटी हेल्थ के ध्वजवाहक

64डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
अगर संक्षेप में मैं डॉ. मीना की उपलब्धियों पर बात करूं तो मुझे लगता है कि उन्होंने
किफायती लागत पर विशेष उपचार और निवारक स्वास्थ देखभाल को डिजाइन और
कान्वित करके स्वास्थ सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने का काम किया। स्वास्थ सेवा
गुणवत्ता मानकों के कान्वयन में सार्वजनिक स्वास्थ क्षेत्र में स्वास्थ देखभाल पेशेवरों
का एक प्रशिक्षित पूल विकसित करने में सफलता प्राप्त की, जिसमें स्वास्थ सेवा वितरण
प्रणाली में उत्पादकता को और प्रभावशाली बनाने के लिए सूचना प्की का भरपूर
उपयोग भी किया गया।
इसके अलावा उन्होंने लोगों को अतधुनिक तकनीक से लैस, गुणवत्तापूर्ण
चिकित्सा और निवारक स्वास्थ सेवाओं तक आम लोगों की पहुंच को बहेतर करने हेतु
बेहतरीन सार्वजनिक स्वास्थ देखभाल संस्थानों के नेटवर्क को विकसित करने में भी
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुजरात में डॉ. मीना द्वारा किए गए का सहित उनके सभी
सार्थक एवं सकारात्मक का हेतु उन्हें शुभकामना देते हुए उनके उज्ज्वल भविष की
कामना करता हूं।
– जनाराण व
पूर्व कैबिनेट मंत्री, गुजरात सरकार
व प्रभारी, स्वास्थ एवं परिवार कलण विभाग

65डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
आज जब डॉ. जे. ल. मीना के बारे में लिखने बैठा हूं तो मुझे उनके साथ बिताए गए
कामकाजी दिनों की याद आ रही है। डॉ. मीना का अपने का के प्रति समर्पण एवं जुनून
मुझे

ज भी प्रभावित करते हैं। जरूरतमंदो की सेवा करना उनकी दिनच का हिस्सा
था। उनकी इसी प्रतिबद्धता और समर्पण के हम सभी प्रशंसक थे ।
डॉ.
मी
ना के साथ काम करते हुए, मैंने देखा कि उन्होंने सरकारी संस्थानों में
"क्वालिटी हेल्थ केयर" की परिभाषा को बदलने का सार्थक, सकारात्मक एवं सफलतम
प्रयास किया। उन्होंने 'का अनुशासन' और 'नियमितता' के महत्त्व पर जोर दिया। उनके
ने तृत्व में , हमने गुजरात भर में एन.ए.बी.एच. और गुणवत्ता स्वास्थ की दिशा में एक
बदलाव की राह का पथ प्रशस्त किया।
डॉ. मीना की सबसे बड़ी विशेषता थी, उनकी सच्चाई और निष्पक्षता। वे हमे शा
सच्चाई के साथ खड़े रहते थे और निष्पक्षता के साथ निर्णय लेते थे । उनके सुझावों का मे रे
वतिगत जीवन पर भी सकारात्मक असर पड़ा, और मे री जिंदगी भी बदल गई।
डॉ. मीना के अनवरत कोशिशों एवं टीम समन्वय का कमाल था कि सरकारी स्वास्थ
सुविधाओं में गुणवत्ता सुधार कर इन्हें (एन.ए.बी.एच./एन.ए.बी.एल) प्रमाणिकृत कराया जा
सका। प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों (पी.एच.सी.), सामुदाक स्वास्थ केंद्रों (सी.एच.सी.),
जिला अस्पतालों, ब्लड बैंकों, प्रयोगशालाओं, खाद्य और औषध प्रयोगशालाओं और
मेडिकल कॉलेजों के ने टवर्क के माधम से हासिल किया गया है।
मुझे विश्वास है कि उन्होंने जिस इकोसिस्टम की स्थापना की है, वह विभिन्न मानकों
पर आधारित एक गुणवत्तायुक्त संस्कृति बनाएगी जो टिकाऊ, सस्ती, नयसंगत और
विश्वसनीय हैं और राज के अतधुनिक प्की का उपयोग करती हैं जो आसानी
से अनुसरण और प्रतिलिपि करने योग हैं। गुजरात ने सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं के
गुणवत्ता में सुधार के लिए एन.ए.बी.एच., एन.ए.बी.एल., एन.क.ए.एस. लक् और अन
मानकों को लागू करने में एक मॉडल राज के रूप में काम किया है।
– डॉ. अमरजीत सिंह (आई.ए.एस)
पूर्व कमिश्नर, हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर, गांधीनगर, गुजरात
बदलाव के वाहक

66डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. मीना की विनम्रता से हम सबसे जदा प्रभावित हुए थे। स्वास्थ सेवा के
क्षेत्र में जब क्वालि‍टी की बात आती है तो डॉ. मीना का नाम अनायास ही दृष्टिपटल
पर उभर कर सामने आ जाता है। मैंने क्वालिटी हेल्थकेयर के क्षेत्र में डॉ. जे.एल.
मीना की तरह जुनून के साथ काम करने वाले किसी दूसरे वति को नहीं देखा है। वे
जितने जुनूनी हैं, उतने ही भावनात्मक और तर्कसंगत भी, एक साथ इतने दुर्लभ गुण
एक वति में कम ही देखने को मिलता है! वे चाहे जिस भी पद पर रहे हों, लेकिन
हेल्थ
केयर में उ
नके योगदान को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। गुजरात
में सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों में गुणवत्ता के मानकों को क्रियान्वित करने की दृष्टि से
उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
मुझे आज भी याद है, जब उन्होंने मु झे क्वालिटी हेल्थ के प्रति प्रेरित किया था, मैं
इस संदर्भ में भावनगर गया और स्वास्थ सेवा में गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों को शुरू
करने के उनके प्रयासों का समर्थन भी किया। पहली बार तो मैं उनके दबाव में गया
था, लेकिन उसके बाद तो मैं खु द से अपनी मर्जी से गया। वे एक ऐसे वति हैं, जिन्हें
अनदेखा नहीं किया जा सकता है। बेशक, उन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान मिले होंगे,
लेकिन जिस स्तर पर उन्होंने स्वास्थ गुणवत्ता के क्षेत्र में काम किया है, उन कामों के
आगे उनको मिले पुरस्कार का महत्त्व बहुत कम है। मैं उनका बड़ा प्रशंसक रहा हूं, वे
काम
को कर
ने में विश्वास करते हैं। वे देश के जमीनी हकीकत एवं जरूरत को समझते
हैं। उनके पास प्रैक्टिकल अप्रोच है।
मु झे ऐसी बहुत सी घटनाएं याद आ रही हैं, जो उनके स्वास्थ सेवा में किए गए
का के गवाह हैं। मैं कई घटनाओं को याद कर सकता हूं जहां उन्होंने स्वास्थ सेवा के
क्षेत्र में गुणवत्ता के नए मानक स्थापित किए हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में चिकित्सा
मूलकन और रेटिंग बोर्ड के सद के रूप में भी उनका योगदान अतुलनीय रहा है।
जब मैं समिति का अध था, तब वे एन.ए.बी.एच. की मानता समिति के एक सक्रिय
सद थे। वे हमेशा सही और सीधा राय देते थे, भले ही वह दूसरों से अलग हो।
विनम्रता के प्रतीक

67डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
उन्होंने राथमिक स्वास्थ केंद्रों का मूलकन करने और कर्मचारियों को गुजरात और
महाराष्ट्र के पी.एच.सी. में सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हेतु एन.ए.बी.एच. मानकों को
अपनाने के लिए प्रेरित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राष्ट्रीय चिकित्सा
आय
ोग में रहते हुए उन
्होंने एन.एम.सी. के लिए डब.एफ.एम.ई. मानता प्राप्त करने
के लिए निरंतर प्रयास किए। साथ ही उन्होंने देश में मेडिकल कॉलेजों की रेटिंग के लिए
भी निरंतर प्रयास किए।
मैं जानता हूँ कि डॉ. मीना कभी भी अतिरिक्त जिम्मेदारियों से नहीं कतराते और
स्वास्थ सेवा के क्षेत्र में किसी भी क्षमता में योगदान देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,
चाहे उन्हें कोई भी पद या दर्जा दिया गया हो। डॉ. मीना को जानना एक सम्मान की
बात है, जिन्हें मैं विनम्रता का प्रतीक मानता हूँ। वह खुद के लिए नहीं बोलते, उनके
का और प्रदर्शन ही उनके लिए सब कुछ बोलते हैं।
– एर मार्शल (डॉ.) पवन कपूर (से.नि.)
पूर्व निदेशक, जनरल मेडिकल सेवाएं (भारतीय वायु सेना)
अध, स्टीयरिंग कमेटी, एन.ए.बी.एच.

68डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना के गुरु होने के नाते मैंने आपके जीवन के संघर्षों को बहुत
करीब से देखा हैं, जिसका वर्णन शब्दों में करना क‿न है। अपने धै और कड़ी मेहनत
से उत्कृष्ट चिकित्सा तथा चिकित्सा संस्थानों को निरंतर आगे बढ़ाने का जो प्रयास
डॉ. मीना ने किया है, वह बहुत ही सराहनीय एवं अनुकरणीय है। क‿न से क‿न
परिस्थितियों में भी आप अपने कर्तवों का निर्वहन करने से कभी पीछे नहीं हटे हैं।
अपने कर्म के प्रति निष्‾ एवं प्रतिबद्धता ने आपको हमेशा अग्रणी बनाए रखा है। मेरा
आशीर्वाद आपके साथ सदैव रहा है और रहेगा भी। गीता का एक श्लोक है जो आपके
वतित्व से पूर्णतया मेल खाता है- “कर्मणाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन...।” इस
श्लोक के अर्थानु रूप अपने जीवन को जीकर आपने अपने कर्म रूपी कर्तवों का निर्वहन
नि:स्वार्थ भाव किया है।
आपने कई पदों पर रहकर भारत के विभिन्न राजों में सुलभ और सस्ती
चिकित्सा शिक्षा के साथ-साथ उच्च नैतिक मानकों को बढ़ावा देने का प्रयास किया
है। उच्च संस्थानों में रहकर पारदर्शी तरीके से का को निष्पादित करने की दिशा में
आपका का सराहनीय रहा है।
मैं निरंतर आपके उज्ज्वल भविष की कामना करता हूं तथा बाबा विश्वनाथ से
प्रार्थना करता हूं कि आप निरंतर स्वस्थ रहें तथा अपने का से समाज को लाभान्वित
करें।
– डॉ. इंद्रबली मिश्रा (आधक गुरु)
काशी हिंदू विश्वय, वाराणसी
नि:स्वार्थ भावी शिष्य

69डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
दूरस्थ, जनजातीय क्षेत्रों में एक चिकित्सा अधिकारी के रूप में अपनी यात्रा शुरू
करते हुए, डॉ. मीना ने चुनौतीपूर्ण वातावरण में स्वास्थ सेवा वितरण की गहरी समझ
विकसित की है। इस प्रारंभिक अनुभव ने स्वास्थ सेवा के प्रति उनके वक दृष्टिकोण
को आकार दिया है और विविध क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता और सुलभता
में सुधार करने में उनकी विशेषज्ञता के लिए आधार तैयार किया है।
डॉ. जे.एल. मीना का करियर एक प्रेरणादायक यात्रा है, जो उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता
और सार्वजनिक स्वास्थ में उत्कृष्टता की खोज को प्रदर्शित करती है। उनकी यात्रा
की
शुरुआत दूर
स्थ, जनजातीय क्षेत्रों में एक चिकित्सा अधिकारी के रूप में हुई, जहां
उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर आबादी की सेवा में खुद को समर्पित किया।
स्वास्थ सेवा वितरण में प्रणालीगत सुधारों के महत्त्व को पहचानते हुए, डॉ.
मीना ने स्वास्थ सेवा की गुणवत्ता और प्रतयन पर केंद्रित भूमिकाओं में हस्तक्षेप
किया। चुनौतीपूर्ण वातावरण में गुणवत्ता मानकों को लागू करना आसान नहीं था,
लेकिन उन्होंने इसे क्रियान्वित कर के अपने वहारिक ज्ञान को और मजबूत किया।
उन्होंने गुणवत्ता आश्वासन के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करके स्वास्थ
सेवा प्रदाताओं को गुणवत्ता मानकों को पूरा करने और रोगी देखभाल में सुधार करने
में मदद की।
गुणवत्ता प्रतयन में एक विशेषज्ञ के रूप में, डॉ. मीना ने कई अस्पतालों को
कठोर प्रतयन प्रक्रियाओं के माधम से सफलतापूर्वक नेतृत्व किया है, जिससे
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनु रूप किया जा सके। उनकी रणनीतिक दृष्टि
और सहयोगात्मक दृष्टिकोण ने अस्पताल प्रणालियों को बदलने, सतत सुधार की
संस्कृति को बढ़ावा देने और रोगी देखभाल में उत्कृष्टता प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाई है। डॉ. मीना ने विभिन्न समु दायों के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों के प्रति
संवेदनशील गुणवत्ता सुधार ढांचे को एकीकृत करने के लिए एक मजबूत समर्थक
भी रहे हैं। उनका मानना है कि गुणवत्ता सुधार के प्रयासों को स्थानीय संदर्भों के

ंगत स्वास्थ्य सेवा के अगुवा

70डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
अनुस ैयार किया जाना चाहिए, ताकि वे प्रभावी और स्थायी हों। डॉ. मीना की
रणनीतिक दृष्टि और सहयोगात्मक दृष्टिकोण ने अस्पताल प्रणालियों को बदलने और
रोगी देखभाल में उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद की है।
डॉ. जे.एल. मीना नयसंगत स्वास्थ सेवा तक पहुंच और गुणवत्ता सुधार के
लिए एक समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि
स्वास्थ सेवा प्रणालियों में क्रांतिकारी बदलावों को लाने के लिए, हमें जमीनी स्तर
के चिकित्सा अनु भव को उच्च स्तरीय गुणवत्ता आश्वासन विशेषज्ञता के साथ जोड़ना
होगा।
डॉ. मीना का दृष्टिकोण स्वास्थ सेवा प्रणालियों में सुधार के लिए एक समग्र
दृष्टिकोण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जो स्वास्थ सेवा प्रणालियों में सुधार के लिए
एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
– डॉ. आर. आर. वैद्य, पूर्व उप निदेशक
परिवार कलण विभाग, गुजरात सरकार

71डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना ने गुजरात राज में राज गुणवत्ता नोडल अधिकारी के रूप
में
महत्
त्वपूर्ण योगदान दिया है। विभिन्न क्षेत्रों में उच्च मानकों को सुनिश्चित करने में
उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। सुधार और निरंतरता को बढ़ावा देने वाले गुणवत्ता
ढांचे को आकार देने और लागू करने में डॉ. मीना ने सराहनीय का किया है।
उन दिनों उनकी जिम्मेदारियों में राज के भीतर गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रियाओं
की देखरेख करना, विभिन्न विभागों के साथ समन्वय करना और राष्ट्रीय–
अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करना शामिल था। डॉ. मीना
ने गुजरात राज में गुणवत्ता मानकों को विकसित करने और सुधारने में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाई है, जो राज की विशिष्ट आवशकताओं के अनुसार तैयार किए गए
थे। प्रारंभ में उनके द्वारा शुरू किए गए ये पहल गुजरात राज में स्वास्थ सेवाओं की
गुणवत्ता में सुधार करने में आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
मुझे याद है उन दिनों डॉ. मीना गुणवत्ता प्रबंधन में शामिल पेशेवरों के लिए
प्रशिक्षण काम और काशालाओं का आयोजन करते थे ताकि एक गुणवत्ता की
दिशा में एक कुशल काबल तैयार किया जा सके, एक सुधारात्मक संस्कृति का
निर्माण हो सके। उनकी भूमिका में प्रभावी संचार और हितधारकों के साथ समन्वय
करना महत्त्वपूर्ण है। डॉ. मीना गुणवत्ता प्रबंधन हेतु सरकारी एजेंसियों, उग से जुड़े
विविध हितधारकों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच समन्वय स्थापित करने में भी
सफल रहे।
डॉ. मीना के नेतृत्व में, मुझे कई राजों में ऑफ-द-आर्ट गुणवत्ता प्रशिक्षण में
शामिल होने का मौका मिला। मेरे काकाल के दौरान सोला सिविल अस्पताल,
अहदाबाद को भारत की पहली "लक्" मानता मिली। 21 प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों
को
रा
ष्ट्रीय स्तर पर एन.क.ए.एस. मानता मिली। एक पी.एच.सी. को एन.ए.बी.
एच. मानता मिली। इस दौरान राज में गुणवत्ता प्रबंधन प्रथाओं में महत्त्वपूर्ण प्रगति
हुई
है,
जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में सुधार हुआ है और एन.ए.बी.एच.,
कुशल प्रबंधक

72डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
"लक्", न.क.ए.एस. आदि जैसे क्षेत्रों में प्रतिष्‾ में वृद्धि हुई है। डॉ. मीना गुणवत्ता
आश्वासन के प्रति प्रतिबद्धता और जमीनी मुद्दों को संबोधित करने में उनके प्रोएक्टिव
दृष्टिकोण ने उन्हें गुणवत्ता प्रबंधन के क्षेत्र में एक अग्रणी वति के रूप में मानता
दिलाई है।
– डॉ. स्वामी के. कपाड़िा,
क.एम. एंड ए.एच.ओ., पी.जी.डी.एच.एल.,
गुजरात मेडिकल सर्विस, अहमदाबाद, गुजरात

73डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मैं इस पुस्तक में अपने गिलहरी सरीखा योगदान को लेकर वास्तव में उत्साहित
हूं। मैं बहुत ही भागशाली हूं कि मुझे डॉ. जे.एल. मीना सर के साथ काम करने का
अवसर मिला। उनकी दृष्टि और अंतर्दृष्टि ने हमेशा उनके आसपास के लोगों को प्रेरित
किया है और मु झे विश्वास है कि यह पुस्तक उन पाठकों का मार्गदर्शन करेगी जो
मार्गदर्शन और प्रेरणा की तलाश में हैं।
स्वास्थ सेवा क्षेत्र में उनकी यात्रा का हम अवलोकन करें तो उनके जैसा वति
मिलना असंभव है। मैं उनके अविचलित प्रतिबद्धता के लिए धनाद व करना
चाहता हूं। उनके नेतृत्व ने स्वास्थ सेवा क्षेत्र को उत्कृष्टता का एक प्रतीक बनाने में
एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे असंख रोगियों और उनके परिवारों के जीवन
पर प्रभाव पड़ा है।
उनकी यात्रा की शुरुआत से ही, यह स्पष्ट है कि गुणवत्ता उनके मिशन के अग्रभाग
में थी। उन्होंने लगातार रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के महत्त्व पर जोर दिया है, यह सुनिश्चित
करते हुए कि हमारे द्वारा लिए गए प्रतक निर्णय हमारे द्वारा सेवा किए जाने वाले लोगों
के कलण में निहित हो। उनका मानना है कि "गुणवत्तापूर्ण देखभाल एक अधिकार है,
न कि एक विशेषाधिकार" हमारी टीम के नैतिकता में गहराई से प्रतिध्वनित होता है, जो
हम सभी को अपने काम में उच्चतम मानकों के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित
करता है।
डॉ. मीना सर ने एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा दिया है जहां निरंतर सुधार न
केवल प्रोत्साहित किया जाता है, बल्कि अपेक्षित भी है। मजबूत गुणवत्ता आश्वासन
कामों को लागू करके, उन्होंने एक ऐसी जिम्मेदारी की भावना को प्रसारित किया है
जो हमारे संगठन के हर स्तर पर वप्त है। परिणाम स्वयं बोलते हैं। सक्रिय रणनीतियों
ने चुनौतियों को अवसरों में बदल दिया है। यह प्रदर्शित करते हुए कि सही फोकस के
साथ, हम बाधाओं को दूर कर सकते हैं और लगातार अपने मानकों को बढ़ा सकते हैं।
उनकी साक्-आधारित प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता भी हमलोगों के लिए एक
रोगी-कें
द्रित दृष्टिकोण के अनुपालक

74डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
गेम-चेंजर साबित ुई। उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि हमारी प्रथाएं उपलब्ध
सर्वोत्तम विज्ञान के अनुरूप हैं। यह न केवल हमारे द्वारा प्रदान की जाने वाली देखभाल
की
गुण
वत्ता को बढ़ाता है, बल्कि स्वास्थ सेवा समु दाय के भीतर हमारी विश्वसनीयता
को भी बढ़ाता है।
उनकी दृष्टि ने कई लोगों को निरंतर शिक्षा और प्रशिक्षण की ओर प्रेरित किया
है, जिससे हम अपने क्षेत्र में वर्तमान और कुशल बने रहें। सर ने मानता दी है कि
गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ सेवा को एकांत में प्राप्त नहीं किया जा सकता है; इसके लिए
विभिन्न पेशेवरों के सामूहिक प्रयास की आवशकता होती है जो एक साझा लक् की
दिशा में काम करते हैं।
उनकी विभागों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की क्षमता प्रशंसनीय है और निश्चित
रूप से हमारी एक सुसंगत इकाई के रूप में सफलता में योगदान दिया है। अंत में,
धनाद सर आपके असाधारण नेतृत्व के लिए और स्वास्थ सेवा में गुणवत्ता के
लिए एक उत्साही प्रवक्ता के रूप में आपका प्रभाव अप्रतिम है, और यह हम सभी को
अपने दैनिक क्रिया-कलापों में उत्कृष्टता को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करता है।
हम एक साथ इस सुधार और नवाचार की यात्रा को आपके मार्गदर्शन में जारी रखने
की उम्मीद करते हैं।
– डॉ. ज़ैनाब अफ़ज़ल
परामर्शदाता, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग

सहकर्मिों और सहपा िों की
नजर में
डॉ.
जीतू लाल मीना
यादों के झरोखे से

77डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जीतू लाल मीना ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) में अपनी भूमिका के
माधम से भारत में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला है। 25 जुलाई, 2022
को एन.एम.सी. में चिकित्सा मूलकन और रेटिंग बोर्ड (एम.ए.आर.बी.) के पूर्णकालिक
सद के रूप में शामिल होने के साथ ही डॉ. मीना, देश में चिकित्सा शिक्षा के भविष को
आकार देने की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण वति बन गए।
2022-23 सत्र के दौरान, डॉ. मीना और एम.ए.आर.बी में उनकी टीम के सामने
उनके का से संबंधित आवेदनों का एक अंबार लगा हुआ था, जिसमें 1,475 पोस्ट ग्रेजुएट
पाठ्यक्रमों, 27 नए स्नातक चिकित्सा महायों की स्थापना, 37 मौजूदा चिकित्सा
महायों में सीटों की वृद्धि, और चल रहे एम.बी.बी.एस. पाठ्यक्रमों के लिए अनुमतियों
के नवीनीकरण के लिए 205 आवेदन शामिल थे। इतने बड़े पैमाने पर आवेदनों को संसाधित
करने की चुनौती के बावजूद, डॉ. मीना ने सुनिश्चित किया कि प्रतक आवेदन की व्थित
रूप से समीक्षा की जाए, जिससे समयबद्ध और पारदर्शी निर्णय लेने में मदद मिली।
इस प्रक्रिया में निर्धारित समय सीमा के भीतर आधिकारिक आदेश जैसे कि लेटर
ऑफ इंटेंट (एल.ओ.आई.) और शो कॉज नोटिस (एस.सी.एन.) जारी करना शामिल था।
डॉ. मीना की नेतृत्व क्षमता और उनकी टीम की कड़ी मेहनत ने सभी आवेदनों का समय पर
और पारदर्शी तरीके से निपटारे को सुनिश्चित किया। यह उनकी प्रतिबद्धता और चिकित्सा
शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता की दिशा में उनके योगदान को दर्शाता है।
डॉ. जीतू लाल मीना का राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) में काकाल कई
महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से भरा हुआ है। उनके नेतृत्व में, एन.एम.सी. ने चिकित्सा शिक्षा के
क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। जिनमें एक मेडिकल कॉलेज पर ऐतिहासिक 2 करोड़
का जुर्माना लगाना और गैर-अनुपालन के कारण 50 सीटों की वापसी करना था, जिसने
चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में ‘जिम्मेदारी’ सुनिश्चित करने के संदेश को स्थापित किया।
डॉ. मीना प्रतिबद्धता, पारदर्शिता और साक्-आधारित निर्णय लेने वालो में रहे हैं।
उनके नेतृत्व में, एम.ए.आर.बी. ने 2023-2024 सत्र में एक रिकॉर्ड 6,021 मूलकन किए,
एन.एम.
सी. में उल्लेखनी काकाल

78डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
जिसमें े 8,380 मूलककों (एसेसरों) ने भाग लिया। यह सत्र अपनी
कानूनी सफलताओं के लिए भी उल्लेखनीय था, जिसमें एन.एम.सी. ने पूरे भारत में दायर
21 मामलों में से 90% जीते थे।
डॉ. मीना ने ई-ऑफिस सिस्टम की शुरुआत में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे
से विभागीय फ़ाइल प्रबंधन को सुव्थित किया जा सका। उनका दूरदर्शी दृष्टिकोण को
एन.एम.सी. की प्रक्रियाओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और डिजिटलीकरण के एकीकरण
पर जोर दिए जाने की पहल के रूप में भी समझा जा सकता है। उनकी दूरदर्शिता एन.एम.
सी. को भविष की चुनौतियों के लिए तैयार करने में महत्त्वपूर्ण साबित हुई है।
डॉ. जीतू लाल मीना का राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) में काकाल कई
महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से भरा हुआ है। उनके नेतृत्व में, एन.एम.सी. ने चिकित्सा शिक्षा
के
क्
षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इनमें 54 नए अंडर ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेजों की
स्थापना, मेडिकल कॉलेजों के स्थापना के इतिहास (1835-2023) में सबसे अधिक है,
27 जुलाई, 2023 तक 9,135 अंडर ग्रेजुएट सीटों और 4,598 पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की
वृद्धि शामिल है।
इन उपलब्धियों के परिणाम स्वरूप, भारत में मेडिकल कॉलेजों की कुल संख 704
तक पहुंच गई है, जिसमें 108,598 अंडर ग्रेजुएट सीटें और 54,888 पोस्ट ग्रेजुएट सीटें
हैं। यह देश में चिकित्सा शिक्षा की उपलब्धता में महत्त्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है। डॉ. मीना के
प्रयासों ने न केवल चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया है, बल्कि देश में स्वास्थ
सेवाओं की उपलब्धता में भी वृद्धि की है।
डॉ. मीना के काम ने उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान दिलाए हैं, जिनमें एक ही वर्ष में
सबसे अधिक मेडिकल कॉलेज खोले जाने, एक ही वर्ष में सबसे अधिक मेडिकल कॉलेज
मू लकन किए जाने और देश में सबसे अधिक मेडिकल यूजी और पीजी सीटें जोड़ने
के

िकॉर्ड शामिल हैं। उनकी चिकित्सा शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को विभिन्न संगठनों से
उत्कृष्टता और सराहना के प्रमाण पत्रों के साथ मानता दी गई है, जिसमें विश्व चिकित्सा
शिक्षा मानकों के अनुसार 10 वर्षों के लिए एन.एम.सी. की मानता शामिल है।
डॉ. जीतू लाल मीना का एन.एम.सी. और भारत में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
अतक महत्त्वपूर्ण है, जो नियामक ढांचे में पारदर्शिता, कुशलता और नवाचार के लिए नए
मानक स्थापित कर रहा है। उनकी विरासत निःसंदेह आने वाले वर्षों में चिकित्सा शिक्षा की
दिशा को प्रभावित करेगी।
– डॉ. संजीव के. सिंह, मेडिकल सुपरिटेंडेंट
अमृता स्कूल ऑफ मेडिसीन, कोच्चि

79डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जीतू लाल मीना एक ऐसे वति हैं जिन्होंने पिछले 20 वर्षों से आम लोगों
के लिए गुणवत्तापूर्ण और सस्ती स्वास्थ सेवाओं के लिए निरंतर काम किया है। वह
वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ प्राधिकरण (आयुष्मान भारत) प्रधानमंत्री जन आरोग


जना (एबी पीएम-जय), भारत सरकार में एक डिवीजन हेड (एस.पी.ई.) और जॉइंट
डायरेक्टर (जे.डी.) के रूप में कारत हैं। इससे पहले, उन्होंने गुजरात सरकार में एक
राज गुणवत्ता आश्वासन अधिकारी के रूप में काम किया है।
डॉ. मीना क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के एन.ए.बी.एच. प्रतयन समिति के
सद हैं और स्वास्थ एवं परिवार कलण विभाग, भारत सरकार के गुणवत्ता सुधार
काम विशेषज्ञ समूह के सद हैं। उन्होंने मजबूत असाइनमेंट और प्रशासनिक,
अकादमिक, संपादकीय का के कारण अनुशासन और अच्छे शासन को लाया है।
उन्होंने भारत में प्राथमिक स्वास्थ केंद्र से लेकर अमेरिका में जॉन्स हॉपकिन्स
यूनिवर्सिटी तक नए अनु संधान, निदान और नए विकल्पों की शुरुआत की है।
हाल ही में, डॉ. मीना ने कसीआई की मदद से ब्रॉन्ज, सिल्वर, गोल्ड क्वालिटी
सर्टिफिकेट, बेहतर प्रदर्शन करने वाले अस्पतालों के लिए ग्रीन चैनल इनिशिएटिव,
निम्नतम प्रश्न और अस्वीकरण दर को लागू करने के लिए नए पहल की शुरुआत की
है। उनके इस प्रयास से स्वास्थ सेवाओं के गुणवत्ता में सुधार और आम लोगों के लिए
स्वास्थ सेवाओं की पहुंच में वृद्धि होगी।
डॉ. जीतू लाल मीना एक प्रतिष्‿त स्वास्थ विशेषज्ञ हैं जिन्होंने स्वास्थ सेवा
क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। डॉ. मीना को उनके उत्कृष्ट का के लिए कई पुरस्कार
और सम्मान मिले हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के केंद्रों, प्रयोगशालाओं, संस्थानों की
स्थापना और कमीशनिंग में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, जो प्रजनन और बाल स्वास्थ
काम में गुणवत्ता मानक तैयार करने के लिए हैं। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ केंद्र/
सामु दाक स्वास्थ देखभाल केंद्र के लिए राष्ट्रीय प्रतयन मानक और सार्वजनिक
स्वास्थ सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक तैयार करने में भी महत्त्वपूर्ण
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक प्रेरणा

80डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
भूमिका निभाई है।
उन्होंने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ क्षेत्र में गुणवत्ता स्वास्थ सेवा (एन.ए.बी.
एच./एन.ए.बी.एल.), स्वच्छता मिशन, कायाकल्प के बारे में जागरूकता का नेतृत्व
किया है। वह निष्पक्षता के उच्चतम मानक का पालन करते हैं और सभी का में
विश्वास, ईमानदारी और सम्मानपूर्वक का करते हैं।
डॉ.
मी
ना के नेतृत्व में, कई सरकारी सुविधाओं को एन.ए.बी.एच./एन.ए.बी.एल.
के अनुसार मानता प्राप्त हुई है और भारत में इतिहास रच दिया है। उनके प्रयासों से
27000 से अधिक अस्पताल एबी पीएम-जय के पैनल में शामिल हुए हैं। डॉ. मीना
गुणवत्ता स्वास्थ देखभाल सेवा के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं और
स्वास्थ सेवा क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए एक प्रेरणा हैं।
डॉ.
मी
ना को उनकी असाधारण उपलब्धियों, सेवाओं, उत्कृष्ट योगदान और
"विशिष्ट का" के लिए सबसे प्रतिष्‿त 'इंडियन अचीवर्स अवार्ड' (2021-22) से
सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें भारत के आम लोगों को गुणवत्तापूर्ण और
सस्ती स्वास्थ सेवाएं प्रदान करने के लिए उनके उत्कृष्ट का के लिए दिया गया है।
डॉ. मीना वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट से 2019 से जुड़े हुए हैं, और उनकी
समर्पित टीम के साथ, संस्थान को 2023 में राष्ट्रीय प्रतयन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल एंड
हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एन.ए.बी.एच.) से सम्मानित किया गया है। यह एक महत्त्वपूर्ण
उपलब्धि है, जो संस्थान की गुणवत्ता और उत्कृष्टता को दर्शाती है।
वी.पी. चेस्ट इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित 7वें डॉ. वी.के. विजयन वख के
दौरान, डॉ. मीना मु ख अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर, उन्होंने
स्वास्थ सेवा क्षेत्र में अपने अनु भव और ज्ञान को साझा किया और स्वास्थ सेवा
प्रदाताओं को गुणवत्तापूर्ण और सस्ती स्वास्थ सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रेरित
किया। डॉ. मीना का का और योगदान स्वास्थ सेवा क्षेत्र में एक प्रेरणा है।
– प्रो. (डॉ.) राज कुमार, डारेक्टर,
वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली

81डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मैं गर्व म्मानित महसूस कर रही हूं कि मैं डॉ. जीतू लाल मीना को पिछले 20
वर्षों से जानती हूं। अगर मैं उनके वतित्व के उन पक्षों की बात करूं, जिनकी चर्चा न के
बराबर हुई है तो उसमें उनकी विनम्रता एवं जमीन से उनका जुड़ाव है। उनकी दयालुता
एवं हेल्पिंग नेचर से तो सभी वाकिफ हैं। वे अतक मेहनती हैं और कभी भी किसी का
को पूरा करने से पहले हार नहीं मानते हैं।
मैंने उन्हें पी.एच.सी. से लेकर मेडिकल ऑफिसर तक, राज गुणवत्ता आश्वासन
अधिकारी से लेकर आयुष्मान भारत में वरीय पद से होते हुए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग
के सद तक की अपनी यात्रा में उत्कृष्टता हासिल करते हुए देखा है। मैंने उनके पेशेवर
जीवन के दौरान उनके जीवन के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक बात जो मैं निश्चित रूप
से उजागर करना चाहती हूं, वह यह है कि वह गुजरात सरकार की सार्वजनिक स्वास्थ
देखभाल प्रणालियों की गुणवत्ता यात्रा को एक मुकाम तक पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख
वतियों में से एक हैं।
उन्होंने आम लोगों को गुणवत्तापूर्ण और सस्ती स्वास्थ सेवाएं प्रदान करने का
लक् रखा। उनकी दृष्टि और प्रतिबद्धता ने गुजरात की स्वास्थ सेवा वितरण प्रणाली
में एक नए युग की शुरुआत की। उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने लक्
को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करें और अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए
दृढ़ प्रतिबद्धता दिखाएं।
मैंने गुजरात सरकार की सार्वजनिक स्वास्थ सेवा प्रणाली में डॉ. जीतू लाल मीना
के नेतृत्व में हुए परिवर्तन को देखा है। उनके कुशल नेतृत्व में सार्वजनिक स्वास्थ सेवा
प्रणाली में गुणवत्ता की दिशा में एक नए युग की शुरुआत हुई। मैंने बीजे मेडिकल कॉलेज
और सिविल हॉस्पिटल अहमदाबाद में प्रयोगशाला सेवाओं की गुणवत्ता की यात्रा में
उनके साथ काम किया है। उनकी दृष्टि और प्रतिबद्धता ने हमें एन.ए.बी.एल. प्रमाणन प्राप्त
करने में मदद की, जो देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक अस्पताल प्रयोगशाला के लिए एक
महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

सरकारी प्रणाली में
"गुणवत्ता स्वास्थ्य सेवा" के नाक

82डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
गुजरात सरकार के स्वास्थ और परिवार कलण विभाग द्वारा आयोजित
विभिन्न प्रशिक्षण कामों में भाग लेने के कारण हम गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों में
अपने ज्ञान को बढ़ाने और अपने अनुभव को समृद्ध बनाने में सक्षम हुए। डॉ. जीतू लाल
मीना के नेतृत्व में हमने गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की। उन्होंने हमें
गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों के महत्त्व को समझने और उन्हें वहारिक रूप से लागू
करने में मदद की।
मुझे

नके साथ बिताया हुआ वह पल आज भी याद है। अस्पताल प्रशासन में
एम.बी.ए. के दौरान दिल्ली में आयोजित एक संपर्क काम हुआ। उस दौरान उन्होंने
न सिर्फ मु झे प्रोत्साहित किया बल्कि मु झे परीक्षा हेतु उपस्थित होने के लिए प्रेरित भी
किया, मेरे जीवन की विषमताओं और चुनौतियों से बाहर निकलने में मेरी मदद की।
उनकी दृष्टि और प्रतिबद्धता ने हमें गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण प्रगति करने
में मदद की।
मैं

नके सभी भविष के प्रयासों हेतु सफलता की कामना करते हुए आगे के
जीवन में सुखी और स्वस्थ जीवन की शुभकामाना देती हूं।
– प्रो. (डॉ.) हंसा गोस्वामी (डीन)
विभागाध, पैथोलॉजी विभाग,
बी.जे. मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद, गुजरात

83डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मैं भागशाली था कि मुझे डॉ. जे.एल. मीना सर के नेतृत्व में काम करने का
अवसर मिला, जो बहुत लंबे समय (2008-2017) तक चलने वाला अनु भव था। मैं गर्व
से स्वीकार करता हूं कि वह एक रुझान सेंटर थे, जिन्होंने एक युग को जन्म दिया, जो
पिछले 15 वर्षों से गुजरात के सार्वजनिक स्वास्थ संस्थानों में जारी है।
उन्होंने सरकारी प्रणाली में "गुणवत्ता स्वास्थ सेवा" की अवधारणा को पेश
किया, जहां गुणवत्ता और सरकारी स्वास्थ सेवा प्रणाली दो विपरीत ध्रुवों की तरह
थीं। यह एक ऐसा समय था जब सार्वजनिक स्वास्थ संस्थानों में गुणवत्ता के लिए कोई
उम्मीद नहीं थी, लेकिन डॉ. मीना ने प्रणाली को बदलने और सुधारने का प्रयास किया।
डॉ. मीना की दृष्टि और नेतृत्व ने गुजरात के सार्वजनिक स्वास्थ संस्थानों में
एक नए युग की शुरुआत की। उन्होंने गुणवत्ता स्वास्थ सेवा के महत्त्व को बढ़ावा देने
और
सा
र्वजनिक स्वास्थ संस्थानों में गुणवत्ता मानकों को लागू करने के लिए कई
काशालाओं और प्रशिक्षण कामों का आयोजन किया।
मैं उनका परिचय कराते समय पर से उन्हें "द मैन ऑफ क्वालिटी" कहता हूं।
डॉ. मीना एक ऐसे वति हैं जिन्होंने अपने जीवन और का के माधम से हमें प्रेरित
किया है। उनकी विशेषताएं और गुण उन्हें एक आदर्श नेता बनाते हैं। आइए उनकी कुछ
विशेषताओं पर एक नज़र डालते हैं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती हैं।
पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है भ्रष्टाचार के प्रति उनकी जीरो टोलरेंस की
नीति। एक ऐसे समय में जब भ्रष्टाचार और पक्षपातपूर्ण वहार आम बात थी, डॉ. मीना
ने कभी भी ऐसे वहार को स्वीकार नहीं किया। उनकी ईमानदारी और नैतिकता ने
उन्हें एक आदर्श नेता बनाया है।
दूसरी विशेषता है संघर्ष और निडर दृष्टिकोण। एक सार्वजनिक का वातावरण
जहां चुनौतियां उनके धै और साहस को परख रही थीं। डॉ. मीना ने पेशेवर और
नैतिक रूप से इसका सामना किया।
तीसरी विशेषता है उनकी विनम्रता। एक ऐसे समय में जब लोग अपनी शक्ति और
द मैन ऑफ क
्वालिटी

84डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
प्रभाव का दुरुपय े थे, डॉ. मीना ने कभी भी अपनी शक्ति और प्रभाव का
दुरुपयोग नहीं किया।
चौथी विशेषता है उनकी नतम समर्थन के साथ अधिकतम उत्पादन की क्षमता।
एक ऐसे समय में जब उन्हें प्रणाली से बहुत सीमित समर्थन मिला, बावजूद इसके डॉ.
मीना ने शानदार प्रदर्शन किया।
इन विशेषताओं के अलावा, डॉ. मीना एक ऐसे वति हैं जिन्होंने अपने जीवन और
का के माधम से हमें प्रेरित किया है। मैं हमेशा महात्मा गांधी जी के एक उद्धरण का
उल्लेख करता हूं, "पहले, वे आपको अनदेखा करेंगे, फिर वे आपका मजाक उड़ाएंगे,
फिर वे आपके साथ लड़ेंगे, और फिर आप जीत जाएंगे!" यह उद्धरण डॉ. मीना के
जीवन की एक वास्तविकता थी, जहां उनकी दृष्टि को पहले अनदेखा किया गया, इसके
बाद, उन्हें स्वास्थ सेवाओं की गुणवत्ता पर जोर देने के लिए मजाक उड़ाया गया,
तत्पश्चात्, लोगों को उनके साथ लड़ना पड़ा। इन संघर्षों ने उन्हें एक सच्चे योद्धा के रूप
में उभारा। अंत में, उन्होंने सभी बाधाओं के खिलाफ जीत हासिल की।
प्रबंधन में, एक अवधारणा सिखाई जाती है, जिसे 'यू.एस.पी.' कहा जाता है। डॉ.
मीना के पास ऐसी ही एक 'यू.एस.पी.' थी, जिसने उनकी सफलता में योगदान दिया।
वे गुणवत्ता और सुधार के लिए अनुकूल वतियों की पहचान करने और उनसे का
करवाने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने मेरे जैसे और कई लोगों का मार्गदर्शन और
समर्थन दिया। समय के साथ, उन लोगों ने 'बदलाव के वाहक' बनकर गतिविधि को
एक जन आंदोलन में बदल दिया, जिसने गुजरात की स्वास्थ सेवा वितरण प्रणाली
को बदल दिया! उनकी ऐसी ही समर्पण और दृष्टि ने मेरे जैसे कई "बदलाव के वाहकों"
के उदय को बढ़ावा दिया।
अंत में, मैं एक अन उद्धरण देना चाहूंगा जो उन्हें उपयुक्त बनाता है: "एक विचार
बोओ, आप एक क्रिया काटोगे, एक क्रिया बोओ, आप एक आदत काटोगे, एक आदत
बोओ, आप एक चरित्र काटोगे, एक चरित्र बोओ और आप एक भाग काटोगे!" मेरे लिए,
डॉ. जे.एल. मीना केवल एक नाम नहीं है, यह एक विचार हैं, एक प्रेरणा और जीवन
का एक तरीका हैं!
– प्रो. (डॉ.) विज पांड्ा
एन.ए.बी.एच. असेसर, सीईओ,
स्वामीनारायण मेडिकल कॉलेज
एंड पीएसएम मल्टी-सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल,
कलोल, गांधीनगर, गुजरात

85डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना सर के साथ क्वालिटी हेल्थ केयर में मेरी यात्रा 2015 में एन.ए.बी.
एच. प्रशिक्षण के दौरान शुरू हुई। यह प्रशिक्षण मेरे लिए एक नए युग की शुरुआत थी,
जिसमें मैंने स्वास्थ सेवाओं में गुणवत्ता के महत्त्व को समझना शुरू किया।
इसके बाद, मैं एन.क.ए.एस. असेसर बन गया, जो मेरे लिए एक बड़ा सम्मान
था। मैंने कई राज-स्तरीय मूलकन के लिए भाग लिया और पूरे भारत से आमंत्रित
किया गया। यह अनुभव मेरे लिए बहुत मूलान था, कोंकि मैंने विभिन्न स्वास्थ सेवा
प्रदाताओं में गुणवत्ता के मानकों को समझने और लागू करने का अवसर प्राप्त किया।
मुझे आगे के प्रशिक्षण के लिए एक स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम के लिए
नामांकित किया गया है, जो मेरे लिए एक और बड़ा अवसर है। मैंने डॉ. जे.एल. मीना
सर के कई सत्रों में भाग लिया है, जिन्होंने मुझे स्वास्थ सेवा में गुणवत्ता की अवधारणा
और गुजरात के स्वास्थ सुविधाओं की गुणवत्ता की यात्रा के बारे में जानने का अवसर
प्रदान किया है।
मैं इस क्षेत्र में अपनी सीख और उपलब्धियों का श्रेय डॉ. जे.एल. मीना सर और
उनकी टीम द्वारा दी गई प्रशिक्षण को देता हूं। डॉ. मीना सर गुजरात में स्वास्थ सेवाओं
की गुणवत्ता में सुधार करने और अन राजों हेतु एक मॉडल प्रस्तुत करने में अग्रणी हैं।
– डॉ. रश्मि शर्मा
प्रोफेसर और विभागाध, समुदाय चिकित्सा विभाग,
जी.एम.ई.आर.एस. मेडिकल कॉलेज, सोला, अहमदाबाद
जिन्होंने स्वास्थ्य गुणवत्ता के
महत्त्व को समझाा

86डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जीतू लाल मीना एक ऐसे वति हैं जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत गुजरात
सरकार में एक मेडिकल ऑफिसर के रूप में की थी और अपनी मेहनत, ईमानदारी और
गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के प्रति समर्पण के आधार पर ऐसी ऊंचाइयों को छू लिया
कि वह भारत में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के प्रतीक बन गए हैं।
उनसे मेरी पहली बातचीत एक ई-मेल के माधम से हुई थी, जिसमें मुझे एन.एम.
सी. के निरीक्षण के लिए जाने के लिए कहा गया था। यह एक गोपनीय मिशन था कोंकि
मुझे केवल यह निर्देश दिया गया था कि मैं किसी राज के लिए एक औचक यात्रा के लिए
तैयार रहूं। जल्द ही, मुझे एन.एम.सी. के यात्रा डेस्क से एक फोन आया, जिसमें मुझसे मेरी
यात्रा योजना के बारे में पूछा गया था। रात 11 बजे तक मुझे यह नहीं पता था कि मुझे किस
मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण करना है। जल्द ही, मुझे एक ई-मेल मिला, जिसमें उल्लेख
किया गया था कि मुझे किसी विशिष्ट मेडिकल कॉलेज का दौरा करना है।
डॉ. जीतू ने हमेशा से साक्-आधारित नैदानिक अनुसंधान द्वारा समर्थित सुलभ
और सस्ती चिकित्सा शिक्षा के साथ-साथ उच्च नैतिक मानकों को बढ़ावा देने का प्रयास
किया है। वे बहुत उत्साही और ज़मीन से जुड़े हुए हैं। स्वभाव से विनम्र, सीधे-सरल होने
के बावजूद का को लेकर हमेशा स्पष्ट दृष्टि वाले एक कठोर प्रशासक रहे हैं।
डॉ. मीना की दृष्टि और नेतृत्व ने भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं
में सुधार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं उनके भविष के प्रयासों के लिए उन्हें
शुभकामनाएं देता हूं।
– डॉ. शांतनु शर्मा
वरिष्ठ प्रोफेसर और विभागाधविकि
रण ऑन्कोलॉजी विभाग
एस.एम.एस. मेडिकल कॉलेज, जयपुर
क ोर प्रशासक

87डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना का गुजरात स्वास्थ विभाग के गुणवत्ता कामों में योगदान
अस
ाधारण है। उन
्होंने अपने नेतृत्व में गुजरात में स्वास्थ सेवा के मानकों को आगे
बढ़ाया है, और पूरे राज में गुणवत्ता की दृष्टि से एक बेंचमार्क स्थापित किया है। उनकी
दृष्टि और नेतृत्व ने गुजरात में स्वास्थ सेवा के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की है
और आने वाले वर्षों में भी उनका प्रभाव देखा जाएगा।
उनकी गुणवत्ता कामों के प्रति प्रतिबद्धता ने न केवल गुजरात में स्वास्थ सेवा
के मानकों को आगे बढ़ाया, बल्कि पूरे देश में गुणवत्ता के लिए एक बेंचमार्क स्थापित
किया। उनकी सबसे बड़ी ताकत लोगों को साथ लाने एवं साथ लेकर चलने की क्षमता
है।
– डॉ. संज सोलंकी
मेडिकल रिकॉर्ड अधिकारी और आईटी सेल के प्रभारी,
सिविल हॉस्पिटल, अहमदाबाद

साधारण नेतृत्व क्षमता के धनी

88डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
एक ऐसे विश्व में जहां तों को अक्सर चुनौती दी जा सकती है, डॉ. जीतू लाल
मीना (मेरे 1990 बैच, जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज के सहपाठी) स्वास्थ सेवा में एक
परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का नेतृत्व कर रहे हैं। नवीनतम प्की को एक आशावादी
दृष्टि के साथ मिलाकर, वह भारत और उसके बाहर के लोगों के लिए स्वास्थ सेवा को
सस्ती, सुलभ और उच्च गुणवत्ता वाली बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं। कॉलेज के दिनों
को याद करके मैं नॉस्टॉलजिक हो रही हूं। पोर्स्टमाटम टेबल पर बिताया गया समय हो,
पिकनिक का समय हो या कक्षाओं में बिताए हुए पल, इनको याद करना अपनी पुराने
समय
में खो
जाने जैसा है। डॉ. मीना अपने व कामों के बावजूद अपनी जड़ों,
अपने कॉलेज और अपने गांव से गहराई से जुड़े हुए हैं। उनके जीवन के प्रतिमानों एवं
प्रतिबद्धता ने पूरे देश में लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
डॉ. जीतू ने चिकित्सा क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता हासिल की है, लेकिन वे
अभी
भी आ
क रूप से जमीनी रुप से जुड़े हुए हैं और सुलभ हैं। हमारे हाल के
एलुमनाई समारोह, जो राजस्थान के पुष्कर में मनाया गया था, मैं उनके वास्तविक
स्वभाव और दिल से निकले दृष्टिकोण से परिचित हुई और खुद को प्रभावित हुए बिना
नहीं रोक सकी। डॉ. जीतू एक ऐसे वति हैं जिन्होंने अपने जीवन और का के माधम
से हमें प्रेरित किया है।
डॉ. मीना की स्वास्थ सेवा यात्रा एक ऐसे समय में शुरू हुई जब गुजरात की
स्वास्थ सेवा वितरण प्रणाली में सुधार की आवशकता थी। उन्होंने इस चुनौती को
स्वीकार किया और अपने जीवन को स्वास्थ सेवा में सुधार के लिए समर्पित किया।
उनकी मेहनत और प्रतिबद्धता का परिणाम यह हुआ कि गुजरात की स्वास्थ सेवा
वितरण प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत हुई।
– डॉ. दीपिका शर्मा
एम.बी.बी.एस. की बैचमेट (1990 बैच)
जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज, अजमेर
जमीन से जुड़ा हुआ व्यक्तित्व

89डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
नवंबर ें एक शाम, मुझे एस.क.एम.ओ. गांधीनगर से एक फोन आया,
जिसमें मुझे बताया गया कि दिल्ली में 5 दिवसीय एन.क.ए.एस (एनक्वास) प्रशिक्षण के
लिए उड़ान टिकट भेजे गए हैं। उत्सुकतावश मैंने पूछा, "एनक्वास क है?" जवाब यह था
कि प्रशिक्षण में भाग लेने के बाद मुझे समझ आएगा। मेरी प्रारंभिक प्रतिक्रिया अस्वीकार
करने की थी, लेकिन फोन करने वाले ने जोर देकर कहा, "मैं पूछ नहीं रहा हूं, मैं आपको
सूचित कर रहा हूं।"
एक तरह से देखा जाए तो स्वास्थ क्षेत्र में गुणवत्ता को लेकर मेरी समझ को
वास्तविक रूप से विकसित करने की दृष्टि से मेरी यात्रा का यह प्रारंभ था। तभी मुझे पहली
बार डॉ. जे.एल. मीना से मिलने का सौभाग प्राप्त हुआ। मैंने बी.जे. मेडिकल कॉलेज,
अहमदाबाद से डॉ. जे.एल. मीना और डॉ. सुमिता सोनी के साथ प्रशिक्षण में भाग लिया।
गुणवत्ता, सुरक्षा और उत्कृष्टता के प्रति डॉ. मीना का समर्पण वास्तव में उल्लेखनीय
है। उनकी विशेषज्ञता और नेतृत्व ने गुजरात में स्वास्थ सेवा प्रणाली को काफी बढ़ाया है।
डॉ. जे.एल. मीना एन.एच.आर.सी. निदेशक को वचन देने वाले पहले वति थे कि
एन्क्वास काम 10 दिनों के भीतर गुजरात में लागू किया जाएगा - और उन्होंने अपना
वादा पूरा किया। गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ देखभाल के प्रति उनका जुनून अनवरत आगे की
ओर बढ़ने और निरंतर सुधार की संस्कृति को बढ़ावा देता है। वह रोगी-केंद्रित देखभाल
के चैंपियन और दूसरों के लिए एक आदर्श हैं।
मैं

नकी अटूट प्रतिबद्धता, विशेषज्ञता और करुणा के लिए बहुत आभारी हूं। डॉ.
जे.एल. मीना गुजरात के स्वास्थ सेवा समुदाय के लिए एक मूलान धरोहर रहे हैं, और
हम उनकी सेवा की सराहना करते हैं।
आप हमारे क्वालिटी गुरु हैं। आपका मार्गदर्शन हमें आगे भी मिलता रहेगा, ऐसा हमें
विश्वास है।
– डॉ. नना पटेल (डीन)
सरकारी डेंटल कॉलेज और अस्पताल, जामनगर, गुजरात
रोगी-कें
द्रित देखभाल के चैंपिन

90डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
गुजरात सरकार में, विशेषकर सार्वजनिक स्वास्थ क्षेत्र में कई वर्षों तक डॉ. जे.एल.
मीना के साथ काम करना एक बहुत बड़ा सौभाग रहा है। सरकारी स्वास्थ देखभाल में
गुणवत्ता सुधार और गुणवत्ता प्रबंधन के क्षेत्र में हमारी साझा यात्रा, विशेष रूप से ग्रामीण
और आदिवासी क्षेत्रों में, प्रेरणादायक रही है।
शुरू
से ही सबसे गरीब और सबसे कम
जोर समुदायों के लिए स्वास्थ परिणामों
को बढ़ाने के लिए मीना सर की अटूट प्रतिबद्धता सामने आई। वह हमेशा न केवल
गहरी विशेषज्ञता, बल्कि आदिवासी आबादी के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों का
समाधान करने के लिए एक बेजोड़ जुनून भी लेकर आए। साथ मिलकर, हमने जटिल
मुद्दों का समाधान निकाला और नवीन परियोजनाओं की एक श्रृंखला के माधम से,
गुजरात के सबसे दूर-दराज के इलाकों में भी बेहतर स्वास्थ सेवाएं प्रदान करने की
दिशा में काम किया।
डॉ. जे.एल. मीना का नेतृत्व विशेष रूप से गुजरात राज में प्राथमिक स्वास्थ
केंद्रों और सामुदाक स्वास्थ केंद्रों में बदलाव लाने में सहायक रहा है। उनके अद्वितीय
नेतृत्व क्षमता ने हमेशा समाधान-केंद्रित मानसिकता के साथ समओं का सामना
किया। किसी भी जनसरोकारी का के लिए लोगों को एक साथ लाने की उनकी क्षमता
अद्भुत थी। यहां पर उल्लेखनीय यह है कि चाहे वह कम संसाधन वाले क्षेत्रों में गुणवत्ता
मानकों को लागू करना हो या सेवा वितरण के नए मॉडल पेश करना हो, उन्होंने लगातार
नवाचार के लिए असाधारण क्षमता का प्रदर्शन किया। मैंने उनकी का नीति, सतनिष्‾
और दूरदर्शिता से बहुत कुछ सीखा है।
आदिवासी समुदायों के लिए "बारडोली सतह अस्पताल और सामुदाक
स्वास्थ केंद्र" में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए हमने जिन परियोजनाओं का
सह-नेतृत्व किया - चाहे वह फ्रंटलाइन स्वास्थ काकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण काम
स्थापित करना हो, रोगी देखभाल प्रोटोकॉल में सुधार करना हो, या सामुदाक स्वास्थ
आउटरीच को बढ़ाना हो - सभी परिवर्तनकारी थे। आपके मार्गदर्शन, समर्थन और प्रेरक
समाधान-केंद्रित दृष्टिकोण

91डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
नेतृत्व से हम भारत के पहले एन.ए.बी.एच. मानता प्राप्त सामुदाक स्वास्थ केंद्र,
बारडोली का खिताब हासिल कर सके। इन पहलों ने न केवल स्वास्थ सेवा वितरण में
सुधार किया है, बल्कि स्थानीय समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करके
उन्हें सशक्त बनाया है, जो एक उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण पहल है। सार्वजनिक निजी
भागीदारी मॉडल का यह एक आकर्षक उदाहरण है।
मैं पेशेवर और वतिगत रूप से आपके मार्गदर्शन और सहयोग व स्नेह के लिए बहुत
आभारी हूं। आप एक मार्गदर्शक, एक सहकर्मी और एक प्रिय मित्र रहे हैं। सार्वजनिक सेवा
के प्रति आपका समर्पण, विशेषकर ऐसे चुनौतीपूर्ण वातावरण में, मेरे सहित कई लोगों के
लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है।
जैसा कि आप राष्ट्रीय स्तर पर अपना महत्त्वपूर्ण मिशन जारी रखे हुए हैं, मुझे इसमें
कोई संदेह नहीं है कि स्वास्थ सेवा क्षेत्र में आप और बेहतर का करेंगे। मैं आपके साथ
बिताए हुए पलों को संजोकर रखी हूं।
मानवता और संपूर्ण राष्ट्र की सेवा में आपके सभी भावी प्रयासों में आपकी शानदार
सफलता के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
– डॉ. अमृता पटेल, एम.एस. (जनरल सर्जन)
पूर्व चिकित्सा अधीक्षक, उप जिला अस्पताल, बारडोली (सूरत)

92डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मुझे वह दिन आज भी याद है जब मैं पहली बार डॉ. जीतू लाल मीना से मिली थी।
वह मेरे हॉस्पिटल में एन.ए.बी.एच. फोकस असेसमेंट के लिए आए थे। मैंने पहले भी कई
असेसमेंट में हिस्सा लिया था, लेकिन यह पहली बार था जब मैंने किसी असेसर को
इतना प्रेरक और मोटिवेशनल पाया था।
डॉ. जीतू लाल मीना के बारे में पता लगाने पर मुझे पता चला कि वे एक अनुभवी
और कुशल असेसर हैं, जिन्होंने गुजरात में गुणवत्ता आरोग सेवाओं को लेकर बहुत काम
किया है। उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया है और अपने काम में हमेशा उत्कृष्टता
को बनाए रखा है। जब मैंने उन्हें गुलदस्ता दिया और उनका मोटिवेशनल स्पीच सुनी,
तो मैं और मेरा स्टाफ बहुत ही सहज और मोटिवेट हुए। उस एक दिन के असेसमेंट में
मुझे पहली बार महसूस हुआ कि असेसमेंट इतना सरल और मोटिवेशनल हो सकता है।
डॉ. जीतू लाल मीना के साथ मेरी यात्रा एक अविश्वसनीय अनुभव रही है। जब मैंने
उनकी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्रकाशित पुस्तक "क्वालिटी एशरेंस एंड एक्रि‍डिएशन
इन हेल्थकेयर" का लोकार्पण देखा, तो मुझे उनके जुनून और समर्पण को देखकर बहुत
प्रेरणा मिली। उनकी स्पीच सुनने के बाद, मैं उनकी फैन बन गई और जब भी कोई
क्वालिटी प्रोग्राम होता, मैं जरूर जाती थी। उनके परिवार के साथ मेरा अनुभव भी बहुत
ही खुशनुमा रहा। जब मैं उनके घर गई, तो मुझे उनके परिवार की सरलता और सहजता
देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। उनकी पुत्री की बर्थडे पार्टी में भी मुझे शामिल होने का मौका
मिला, जो बहुत ही सादगी और पर से मनाया गया था।
डॉ. मीना की धार्मिक प्रवृत्ति भी मुझे बहुत प्रभावित करती है। जब मैं उनके साथ
उनके गांव गई, तो मुझे उनके द्वारा "शिव-शक्ति माता जी" के मंदिर की नींव रखने का
अवसर मिला। आज जब मैं डॉ. मीना के बारे में लिख रही हूं, तो मुझे गर्व महसूस हो रहा
है और मैं उनके जीवन में हमेशा सफलता की कामना करती हूं। डॉ. मीना एक सच्चे प्रेरक
और
मा
र्गदर्शक हैं। मैं उनके जीवन और का से बहुत प्रेरित हूं और मुझे उम्मीद है कि
उनकी कहानी दूसरों को भी प्रेरित करेगी।
– डॉ. स्वाति सिंह रा ौर, गानोकोलॉजिस्ट
अजमेर, राजस्थान
एक
सच्चे प्रेरक और मार्गदर्शक

93डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जीतू लाल मीना से मेरी पहली मुलाकात 1990 में जे.एल.एन. मेडिकल
कॉलेज, अजमेर में हुई थी। उस समय वे डॉ. नहीं बल्कि सिर्फ जीतू लाल मीना थे,
और हमारे बैचमेट्स के लिए वे सिर्फ जीतू थे। जीतू का मतलब था एक सौ लड़का
जो हमेशा धीमे से मुस्कुराता था और अक्सर पीछे की बेंचों पर बैठता था। लेकिन उसे
शायद कभी भी पीछे रहने का डर नहीं था, या शायद उसे उस समय भी पता था कि
उसे इस
आगे
पीछे की रैट रेस में रहना ही नहीं है।
उनकी दुनिया अलग थी, और वे हमेशा विवादों से परे रहकर अपना काम करते
रहे। यह उनका नैसर्गिक गुण था, जो उस समय भी था और आज भी है। फिर एम.बी.
बी.एस. हो गई, और हम सब डॉक्टर बन गए। कुछ समय बाद, हमें पता चला कि डॉ.
जीतू गुजरात में क्वॉलिटी कंट्रोल में काफी अच्छा काम कर रहे हैं, और बड़े लेवल पर
काम कर रहे हैं।
उनके बड़े लेवल का साक्षात्कार तब हुआ जब उनके डिग्री लेने आने पर पूरे
जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज की तरफ से स्वयं प्रिंसिपल साहब ने उन्हें डिग्री मय
साफा प्रदान कर सम्मानित किया। लेकिन उस मौके पर वे हम सबसे मिलते समय फिर
पुराने जीतू हो गए, और उन्होंने दिखाया कि ऊंचाइयों को छूते हुए भी जमीन से जुड़े
हुए कैसे रहा जा सकता है।
फिर पता लगा कि वे नेशनल हेल्थ अथॉरिटी में काफी अच्छा काम कर रहे हैं,
और उसके बाद एन.एम.सी. में आने के बाद तो एम.ए.आर.बी. के तहत अभूतपूर्व काम
हुए। यूजी, पीजी सीटों एवं नए कॉलेजों में वृद्धि, ऑनलाइन काणाली, एन.एम.सी.
के का में पारदर्शिता आदि, ऐसे कितने ही का थे जिसमें डॉ. जीतू लाल मीना की
सहभागिता स्पष्ट रूप से दिखी। साथ ही दिखे उन्हें मिलने वाले उच्च पुरस्कार जिससे
इस बात की पुष्टि हुई कि उनका का राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा जा रहा है।
उनके अनुभव के आधार पर उनकी नियुक्ति फिर नेशनल हेल्थ अथॉरिटी में की
गई है। डॉ. जीतू अनु करणीय हैं सभी य ों के लिए, खासकर मेडिकल के छात्रों के
हमारे बैचमे
ट जीतू

94डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
लिए जो रैट रेस में फंस कर निराश हो जाते हैं। डॉ. जीतू सिखाते हैं कि बैक बेंचर पीछे
नहीं होते वे सिर्फ पीछे बैठते हैं कोंकि वे लोग अलग सोचने और अलग कर दिखाने
की क्षमता रखते हैं और जीवन में ऊंचाइयों को छूते हैं।
डॉ. जीतू लाल मीना की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने सपनों को पूरा
करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहना होगा। उनकी कहानी हमें यह भी सिखाती है कि
हमें

पने जीवन में ऊंचाइयों को छूने के लिए हमेशा प्रयासरत रहना होगा। उनकी
कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
और हमें हमेशा अपने लक् की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
– प्रो. (डॉ. ) रश्मि शर्मा, पैथोलॉजी विभाग
जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज, अजमेर (1990 बैच)

95डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना सहृदयी वहार वाले चिकित्सक हैं। दाहोद जिले के लोगों के
स्वास्थ सेवा भी आपने निष्‾पूर्वक की है। जब डॉ. मीना लिमड़ी सरकारी अस्पताल
में कारत थे तब उन्होंने हजारों बच्चों की स्वास्थ सक्रीनिंग की थी, जिससे समय
रहते उनके स्वास्थ संबंधी समओं को दूर किया जा सका था। इसी तरह डॉ. मीना
एक नवजात शिशु की जान बचाई, जो एक जोखिम भरे स्थिति में था। उन्होंने शिशु को
अपने स्वयं के खर्च पर गाड़ी में लेकर दाहोद, गोधरा और वड़ोदरा तक गए और उसकी
देखभाल की। यह एक अद्भुत और प्रेरक कहानी है जो डॉ. मीना की सेवा भावना और
उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
डॉ.
मी
ना को दाहोद के लोगो का स्नेह, सहयोग एवं पर ही निरंतर मिलता रहा।
लिमड़ी सरकारी अस्पताल में सुधार करने में स्थानीय लोगों का भी अहम योगदान था।
– प्रीतेश पंचाल
मेम्बर रोटरी क्लब, लिमड़ी, दाहोद, गुजरात
एक नव
जात शिशु की जान बचाई

96डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
चिकित्सा क्षेत्र े इतिहास में बहुत कम नाम डॉ. जीतू लाल मीना के समान श्रद्धा
और प्रशंसा से गूंजते हैं। साधारण शुरुआत से लेकर अनगिनत वतियों के लिए आशा
और उपचार की किरण बनने तक की उनकी यात्रा किसी प्रेरणा से कम नहीं है। इस
जीवनी का उद्देश उनके जीवन के सार, चिकित्सा के क्षेत्र में उनके अटूट समर्पण और
उनके द्वारा सेवा किए गए समुदायों पर उनके गहरे प्रभाव को समझना है। डॉ. मीना
की कहानी दृढ़ता, करुणा और उत्कृष्टता की निरंतर खोज में से एक है। एक जिज्ञासु
छात्र के रूप में उनके शुरुआती दिनों से लेकर एक प्रसिद्ध चिकित्सक के रूप में उनके
विशिष्ट करियर तक, उनका मार्ग एक मील के पत्थर और उल्लेखनीय उपलब्धियों से
युक्त है।
डॉ. जीतू लाल मीना के डॉक्टर बनने के सफर पर उनकी माँ का गहरा प्रभाव था,
जिनके अटूट स्नेह और प्रोत्साहन ने उनके करियर को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाई। एक साधारण परिवार में पले-बढ़े डॉ. मीना की माँ ने उन्हें कड़ी मेहनत, करुणा
और शिक्षा के महत्त्व और मूलों से परिचित कराया। वह अक्सर कहानियां सुनाती थीं कि
कैसे उनके समुदाय के डॉक्टरों ने लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाए और युवा
जीतू को चिकित्सा में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया।
उनकी क्षमता पर उनके विश्वास और उनकी निरंतर प्रेरणा ने उन्हें उनके रास्ते में
आने वाली हर चुनौती से निपटने में मदद की। वह उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा थीं, जो उन्हें
हमेशा
एक डॉक
्टर के रूप में उनके प्रभाव की याद दिलाती थीं। उनकी शिक्षा के प्रति
समर्पण और उनके बलिदानों ने यह सुनिश्चित किया कि उन्हें अपने सपनों को प्राप्त करने
के लिए आवशक संसाधनों और समर्थन की कभी कमी न हो।
डॉ. मीना की माँ का प्रभाव माता-पिता के समर्थन की शक्ति और बच्चे की आकां क्षाओं
और उपलब्धियों पर इसके गहरे प्रभाव का प्रमाण है। उनकी प्रेरणा उन्हें अपने क्षेत्र में
उत्कृष्टता हासिल करने और उसी करुणा और समर्पण के साथ अपने समुदाय की सेवा
करने के लिए प्रेरित करती है।
एक
साधारण बच्चे की प्रेरक कहानी

97डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
चिकित्सा विज्ञान, विशेषकर ग्रामीण स्वास्थ देखभाल और सामुदाक चिकित्सा
के क्षेत्र में उनके योगदान ने स्वास्थ सेवा परिदृश पर एक अमिट छाप छोड़ी है। ग्रामीण
क्षेत्रों में मरीजों का इलाज करते हुए डॉ. मीना अपनी मेहनत और लगन से नेशनल
मेडिकल कमीशन (एन.एम.सी.), नई दिल्ली के शिखर तक पहुंचे, जहां उन्होंने चिकित्सा
क्षेत्र को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए नीतियां बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके जीवन के
अनुभवों ने चिकित्सा शिक्षा, विज्ञान और पेशे को उत्कृष्ट बनाया।
यह पुस्तक डॉ. मीना के वतिगत और वसाक जीवन पर प्रकाश डालती है,
पाठकों को उनके सामने आने वाली चुनौतियों, उनके द्वारा मनाई गई जीत और अपने
पूरे करियर में जिन मूलों द्वारा निर्देशित किया गया, उनकी एक झलक प्रदान करती है।
यह दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने की उनकी प्रतिबद्धता, ज्ञान और सहानुभूति की
शक्ति में उनके विश्वास का प्रमाण है। जैसे ही आप इन पन्नों को पलटेंगे, आपको एक ऐसे
वति की कहानी पता चलेगी जिसने न केवल अपने पेशे में उत्कृष्टता हासिल की बल्कि
अपने आस-पास के लोगों के दिलों को भी छुआ। डॉ. मीना की विरासत प्रेरणा और आशा
की विरासत है। हमें उम्मीद है कि यह जीवन-कथा स्वास्थ पेशेवरों की भावी पीढ़ियों के
लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में काम करेगी। डॉ. जीतू लाल मीना के जीवन और विरासत में
आपका स्वागत है। उनकी कहानी आपको उसी जुनून और समर्पण के साथ अपने सपनों
को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करे।
– डॉ. एम. भंडारी, प्रबंध निदेशक
भंडारी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, मध प्रदेश

परिवारीजनों की
नजर में
डॉ.
जीतू लाल मीना
यादों के झरोखे से

99डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना, जिन्हें हम पर से जीतू कहते हैं, ने हमारे परिवार में एक विशेष
स्थान बनाया है। जब हमने अपनी बेटी नम्रता मीना का हाथ उन्हें सौंपा था, तो वह केवल
बारहवीं कक्षा में पढ़ते थे। लेकिन उनकी पढ़ाई के प्रति लगन और दृढ़ संकल्प ने हमें यह
विश्वास दिलाया कि वह एक दिन एक सफल वति बनेंगे और हमारी बेटी को सुखी रखेंगे।
इतनी कम उम्र में शादी होने के बावजूद, जीतू ने अपनी मेहनत जारी रखी और आज
वह जो कुछ भी हैं, हमारे सामने हैं। उनका काम अपने आप में एक सेवा है, और वह हमेशा
यह कोशिश करते हैं कि सरकार एक आम आदमी को बेहतर से बेहतर स्वास्थ सुविधाएं
कैसे मुहैया करा सकती है। वह दिन- रात इसी में लगे रहते हैं।
जीतू की मेहनत और समर्पण ने हमें गर्व से भर दिया है। वह हमेशा अपने काम के
प्रति समर्पित रहते हैं और अपने परिवार के लिए भी समय निकालते हैं। उनकी ईमानदारी
और निष्‾ ने हमें यह विश्वास दिलाया है कि वह हमेशा सही रास्ते पर चलेंगे।
कभी-कभी
हमें
शिकायत रहती है कि वह अपने परिवार को प्त समय नहीं देते हैं,
लेकिन जब वह बताते हैं कि उन्होंने इतने लोगों के लिए इतना कुछ किया है, तो हमें गर्व
और प्रसन्नता महसूस होती है। सरकारी तंत्र में काम करने वाले कई लोग मिल जाते हैं,
लेकिन काम के साथ-साथ कट्टर ईमानदारी बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
इसलिए, हमारी दुआ है कि हर जन्म में हमें दामाद के रूप में जीतू ही मिलें। हमें
उम्मीद है कि वह हमेशा इसी तरह से काम करते रहेंगे। हम जीतू को अपने जीवन में एक
प्रेरणा स्रोत के रूप में देखते हैं और उनकी सफलता की कहानी को हमेशा याद रखेंगे।
– हरि बाई और देवी राम मीना
(डॉ. जे.एल. मीना के सास और ससुर)
जीतू पर हमें गर्व है

100डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
यह हमारे संयुक्त परिवार के सभी सदों के लिए गर्व का क्षण है कि डॉ. जे.एल.
मीना ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के सद के रूप में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर
हासिल किया है। वे बचपन से ही अपने का के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं। हम छह भाई और
एक बहन थे, लेकिन दुर्भाग से हमारे दो भाई हमें कम उम्र में छोड़कर चले गए और दोनों
की मृत समय पर चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण हुई। उसी दिन हम बड़े भाइयों
ने तय किया कि हम में से कम से कम एक को चिकित्सा पेशे में होना चाहिए।
हमारे दादा जी रेलवे में शामिल होने वाले पहले वति थे, फिर हमारे पिता जी गांव
में मैट्रिक पूरा करने वाले पहले वति थे। हमारे माता-पिता हमारी शिक्षा के प्रति बहुत
चिंतित थे, खासकर विज्ञान विषय में प्रवेश पाने के लिए। इसलिए, हम बड़े भाइयों ने
विज्ञान गणित में प्रवेश लिया, लेकिन जीतू ने जीव विज्ञान में प्रवेश लिया।
उच्च माधक शिक्षा तक, उन्हें किरोड़ी लाल ने बड़े भाई के रूप में देखभाल
की। और पूर्व परीक्षा तैयारी के लिए, मैंने उन्हें मेरे पोस्टिंग स्थान पर सूरत ले गया
और लगभग एक साल के तैयारी के लिए रखा, खासकर भौतिकी विषय के लिए। मैंने
राजस्थान विश्वय में भौतिकी में स्नातकोत्तर किया और फिर भारतीय वन सेवा
में शामिल हुआ। उस लगभग एक साल की अवधि के दौरान, उनकी भाभी जी ने उनके
आराम का ध रखा ताकि वह प्री-मेडिकल परीक्षा की तैयारी पर ध केंद्रित कर
सकें। उन्हें एम.बी.बी.एस. के लिए चुना गया और अजमेर के सरकारी मेडिकल कॉलेज
में प्रवेश मिला।
मुझे अभी भी याद है कि प्रवेश के समय, कुछ राजनीतिक आंदोलन के कारण, देश
में सभी परिवहन सुविधाएं बाधित हो गई थीं; मैंने उन्हें मोटरसाइकिल से 250 किमी की
दूरी तय करके हमारे गांव से अजमेर तक पहुंचाया। उन्होंने अपनी एम.बी.बी.एस. पूरी की
और राजस्थान स्वास्थ विभाग में पी.एच.सी. में शामिल हुए, उसके बाद मकराना में एक
निजी अस्पताल में। लेकिन वह थोड़ा असहज थे। उन्होंने मुझसे गुजरात स्वास्थ विभाग
में शामिल होने के लिए कहा। फिर उन्होंने गुजरात स्वास्थ विभाग में आवेदन किया और
जब मैं 250 किमी मोटरसाइकिल से गा...

101डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
दाहोद जिले के लीमडी में पी.एच.सी. में उनकी पोस्टिंग हुई।
उनके कर्त्तवनिष्‾ से उस समय के डी.डी.ओ. बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने
पी.एच.सी. को उन्नत करने के लिए प्त धन प्रदान किया था। डी.डी.ओ. मुझे भी
जानते थे। डॉ. जीतू ने ईमानदारी से धन का उपयोग किया और पी.एच.सी. को उच्चतम
स्तर पर उन्नत किया ताकि आपातकालीन रोगियों, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं की
देखभाल की जा सके।
उसकी प्रतिबद्धता और निष्‾वान प्रयासों ने गुजरात राज के स्वास्थ विभाग
के तत्कालीन सचिव का ध आकर्षित किया, और उन्हें गांधीनगर में राज गुणवत्ता
आश्वासन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया, जो गुजरात राज के स्वास्थ विभाग
में सभी बुनियादी ढां चागत सुविधाओं और प्रशिक्षण पहलुओं की देखभाल कर रहे थे।
उनकी कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता के कारण, उन्हें सभी वरिष्⁋ं और राजनेताओं,
जिनमें तत्कालीन स्वास्थ मंत्री और गुजरात के मुखमंत्री भी शामिल थे, से सराहना
मिली। इसके बाद, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत जारी रखी और भारत सरकार के सद,
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) के स्तर तक पहुंच गए।
हमारे परिवार के सभी सद अपने माता-पिता के आभारी हैं कि उन्होंने इतनी
बड़ी उपलब्धि हासिल की। हमारे परिवार में एम.ए., एम.एस.सी., पी.एच.डी., एम.टेक,
एम.बी.ए, बी.टेक, सी.ए, सी.एस, एम.बी.बी.एस. और एम.डी. जैसी प्रोफेशनल डिग्रीधारी
हैं, लेकिन उनकी उपलब्धि हमारी युवा पीढ़ी के लिए एक रोल मॉडल है। हम सभी उनके
उज्ज्वल भविष की कामना करते हैं और देश की सेवा करते रहने की कामना करते हैं।
– आर.एल. मीना
से.नि. आई.एफ.एस. अधिकारी
(डॉ. जे.एल. मीना के बड़े भाई)

102डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
पारिवारिक संबंध ें डॉ. जे.एल. मीना मेरे जीजा जी लगते हैं। उनकी सरकारी
नौकरी और सामाजिक योगदान ने मुझे बचपन से ही प्रेरित किया है। मैं एक किसान का
बेटा हूँ, इसलिए मुझे सरकारी नौकरी की सुविधाओं के बारे में जानने का मौका नहीं मिला
था, लेकिन मेरे जीजा जी के माधम से मुझे इसका अनुभव हुआ।
जब मैं गुजरात से बी.एस.सी. (एग्रीकल्चर) कर रहा था, तो मेरे जीजा जी क्वालिटी
इंशरेंस ऑफिसर के पद पर कारत थे। मैं अक्सर उनके घर जाता था और उनकी
सरकारी सुख-सुविधाओं और काशैली को देखता था। इससे मुझे प्रेरणा मिलती थी कि
मैं भी एक दिन जीजा जी की तरह अफसर बनूंगा और देश की सेवा में लगा रहूंगा।
मेरे जीजा जी की काशैली और समर्पण ने मुझे सिखाया कि कैसे एक वति अपने
काम
के
प्रति समर्पित होकर देश की सेवा कर सकता है। उनके लिए परिवार बाद में होता
है, पहले ऑफिस का काम। यही कारण है कि भगवान की कृपा से आज उनका परिवार
भी सुखी और समृद्ध है।
मैं अपने जीजा जी को धनाद देता हूँ कि उन्होंने मुझे जीवन में आगे बढ़ने के लिए
प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन ने मुझे जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद
की है। मैं उनकी सफलता की कहानी को हमेशा याद रखूं गा और उनकी तरह बनने की
कोशिश करूंगा।
– डॉ. ओम प्रकाश मीना (वैज्ञानिक)
काज़री, जोधपुर, राजस्थान
(डॉ. जे.एल. मीना के साले)
प्रेरणापुंज जीजाजी

103डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मेरे पति एक अद्भुत वति हैं, जिन्होंने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है।
उनकी दयालुता, सहानुभूति और पर ने मुझे हमेशा मजबूत और समर्थित महसूस
कराया है। वह एक सच्चे साथी हैं, जो मेरी खुशियों और दुखों में हमेशा मेरे साथ रहते हैं।
उनकी उपस्थिति में सुकून और सुरक्षा की भावना महसूस होती है, जो मुझे जीवन की
चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है।
वह हमेशा मुझसे खुलकर बात करते हैं, और मुझे उनकी इस आदत पर बहुत गर्व है।
वह एक सच्चे दोस्त हैं, जो मुझे हमेशा सही सलाह देते हैं और मेरी भलाई के लिए हमेशा
चिंतित रहते हैं। उनकी सलाह और मार्गदर्शन ने मुझे जीवन के कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने
में मदद की है, और मैं उनके लिए हमेशा आभारी रहूंगी।
मेरे पति एक अद्भुत पिता भी हैं। वह हमारे बच्चों के साथ बहुत पर और धै से पेश
आते
हैं, और उन
्हें हमेशा सही मूलों और आदर्शों की शिक्षा देते हैं। मैं अपने पति से बहुत
पर करती हूं और उनके साथ बिताए गए हर पल को संजो कर रखती हूं। वह मेरे जीवन
का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और मैं उनके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती।
– नम्रता मीना
(डॉ. जे.एल. मीना की पत्नी)
मेरे हम
सफर

104डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
मेरे पिता एक असाधारण वति हैं। उनकी अनुपस्थिति में भी उनकी उपस्थिति
हमेशा महसूस होती है और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने की प्रेरणा हमें हमेशा
मिलती रहती है। उन्होंने हमेशा हमें सच्चाई और निष्‾ के महत्त्व के बारे में सिखाया है,
और उनके द्वारा दिखाए गए उदाहरण ने हमें भी इन मूलों को अपनाने के लिए प्रेरित
किया है।
मेरे पिता एक अद्भुत पति और पिता हैं। उन्होंने हमेशा हमारी माँ का सम्मान और
पर किया है, और उनके द्वारा दिखाए गए पर और स्नेहभाव ने हमें भी अपने रिश्तों
में पर और सम्मान के महत्त्व के साथ ही अपने परिवार के प्रति निष्‾ और समर्पण के
महत्त्व के बारे में भी सिखाया है।
मेरे पिता ने हमेशा हमें अपने सपनों को पूरा करने और अपने लक् को हासिल
करने के लिए प्रेरित किया है।
– ज और दीपक मीना
(डॉ. जे.एल. मीना की पुत्री और पुत्र)
मेरे पिता एक आदर्श व्यक्ति

105डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
राष्ट्री चिकित्सा आोग (नेशनल मेडिकल काउंसिल) (एन.एम.सी.):
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) की स्थापना संसद के एक अधिनियम द्वारा
की गई है, जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के रूप में जाना जाता
है। यह अधिनियम 24.9.2020 को राजपत्र अधिसूचना के माधम से 25.9.2020 से
लागू हुआ था।
राष्ट्री चिकित्सा आोग का मिशन और दृष्टिकोण:
• गुणवत्तापूर्ण और सस्ती चिकित्सा शिक्षा की पहुंच में सुधार करना।
• देश के सभी हिस्सों में प्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की
उपलब्धता सुनिश्चित करना।
• देश के सभी नागरिकों के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ सेवाएं प्रदान करना और
समुदाक स्वास्थ दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
• ᨉ㼉ᔉ?त्सा पेशेवरों को नवीनतम् चिकित्सा अनुसंधान को अपनाने और अनुसंधान
में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करना।
• ᨉ㼉ᔉ?त्सा संस्थानों का निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से मूलकन करना।
• भारत के लिए एक चिकित्सा रजिस्टर बनाए रखना।
• ᨉ㼉ᔉ?त्सा सेवाओं के सभी पहलुओं में उच्च नैतिक मानकों को लागू करना।
प्रमुख का:
• आयोग को चिकित्सा शिक्षा में उच्च गुणवत्ता और मानकों को बनाए रखने के लिए
नीतियां और नियम बनाने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को चिकित्सा संस्थानों, चिकित्सा अनुसंधान और चिकित्सा पेशेवरों को
विनियमित करने के लिए नीतियां और नियम बनाने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को स्वास्थ सेवाओं की आवशकताओं का मूलकन करना और
महत्
त्वपूर्ण शब्दावलिां एवं जरूरी तथ्य
परिशिष्ट-1

106डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
आवशकताओं पूरा करने के लिए एक रोडमैप विकसित करने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को आयोग, स्वायत्त बोर्ड और राज चिकित्सा परिषदों के उचित का-
नियोजन हेतु दिशानिर्देश और नीतियां बनाने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को स्वायत्त बोर्डों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को राज चिकित्सा परिषदों द्वारा दिशा-निर्देशों और नियमों का पालन
सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को स्वायत्त बोर्डों के निर्णयों के संबंध में अपीलीय अधिकार क्षेत्र का प्रयोग
करने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को चिकित्सा पेशेवरों द्वारा पेशेवर नैतिकता के पालन को सुनिश्चित करने के
लिए नीतियां और कोड बनाने की जिम्मेदारी है।
• आयोग को निजी चिकित्सा संस्थानों और विश्वयों में शुल्क और अन शुल्कों
के निर्धारण के लिए दिशा-निर्देश बनाने की जिम्मेदारी है।
• (ोटः दिनां क 24.12.2024 तक आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 750+ मेडिकल
कॉलेज जिसमें एम.बी.बी.एस. की कुल 1,15,000+ सीटें और पी.जी. में कुल
70,000+ सीटें हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पी.एच.सी.)
भारत में सरकारी स्तर पर त्रीस्तरीय स्वास्थ सेवाएं प्रदान की जाती है। प्राथमिक
देखभाल, द्वितीयक देखभाल एवं तृतीयक देखभाल। प्राथमिक स्तर पर उप स्वास्थ केन्द्र
एवं प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र, द्वितीय स्तर पर सामुदाक स्वास्थ केन्द्र (कनिटी
हेल्थ
सेंटर) (सी.एच.सी.) ए
वं तृतीय स्तर पर जिला अस्पताल या मल्टीस्पेशियालिटी
मेडिकल कॉलेज। भारत की आजादी के बाद प्राथमिक स्तर पर स्वास्थ सुविधाओं को
पहुंचाने की दृष्टि से भोर समिति की सिफारिशें बहुत महत्त्वपूर्ण मानी गईं, जिसका गठन
सन् 1946 में किया गया था। भारत के पहले प्राथमिक स्वास्थ केंद्र (पी.एच.सी.) 1952
में नजफगढ़ (दिल्ली), सिंगुर (पश्चिम बंगाल) और पूनमल्ले (तमिलनाडु) में स्थापित किए
गए थे। इन पी.एच.सी. की स्थापना सामुदाक विकास काम के तहत की गई थी।
इसी क्रम में 1978 अल्मा-अता घोषणा, जो कजाकिस्तान में की गई थी, उसकी भी
अहम् भूमिका रही है। वर्तमान में भारत में 30,000 से जदा प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र
कारत हैं, प्राथमिक उप स्वास्थ केन्द्र या वेलनेस सेंटर या जिनका नाम बदलकर अब
‘आरोग मंदिर’ कर दिया गया है, इनकी संख 1 लाख 70 हजार से जदा है। भारत
के स्वास्थ इकोसिस्टम में प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र एक मजबूत स्तंभ हैं। जिनका मुख
का निम्नवत है-

107डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
• सुलभ और सस्ती स्वास्थ सेवाएं प्रदान करना।
• प्राथमिक स्वास्थ केंद्र प्राथमिक स्वास्थ देखभाल सेवाएं जैसे कि नियमित जांच,
टीकाकरण, स्क्रीनिं ग परीक्षण और पुरानी बीमारी प्रबंधन प्रदान करते हैं।
• प्राथमिक स्वास्थ केंद्र स्वास्थ शिक्षा और जागरूकता फैलाने में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं।
• प्राथमिक स्वास्थ केंद्र स्वास्थ सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं।
• 8्वास्थ सेवाओं की पहुंच बढ़ाना
राष्ट्री स्वास्थ्य प्राधिकरण (नेशनल हेल्थ ऑथोरिटी) (एन.एच.ए.): भारत की
प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ बीमा/आश्वासन योजना “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन
आरोग योजना” एवं आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन को क्रियान्वित करने वाली शीर्ष
निकाय है राष्ट्रीय स्वास्थ प्राधिकरण।
राष्ट्रीय स्वास्थ एजेंसी का गठन 23 मई, 2018 को एक पंजीकृत सोसायटी के
रूप में हुआ, जिसे पूर्ण कात्मक स्वायत्तता के लिए कैबिनेट के निर्णय के अनुसार, 2
जनवरी, 2019 को राजपत्र अधिसूचना पंजीकृत संख डीएल-(एन) 04/0007/2003-
18 के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ प्राधिकरण के रूप में पुनर्ग‿त किया गया।
राष्ट्री प्रतन बोर्ड (एन.ए.बी.एच.)- एन.ए.बी.एच. का पूरा नाम नेशनल
एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स है। यह भारतीय गुणवत्ता
परिषद् का एक घटक बोर्ड है, जिसे अस्पतालों और स्वास्थ सेवा प्रदाताओं हेतु
प्रतयन काम स्थापित करने और संचालित करने के लिए स्थापित किया गया
है। बोर्ड का गठन उपभोक्ताओं की वांछित आवशकताओं को पूरा करने और स्वास्थ
उग की प्रगति के लिए मानक स्थापित करने के लिए किया गया है। बोर्ड को उग,
उपभोक्ताओं, सरकार सहित सभी हितधारकों का समर्थन प्राप्त है, तथा इसे संचालन में
पूर्ण कात्मक स्वायत्तता है।
एन.ए.बी.एच. मानकों के प्रमुख घटक
• एक्सेस असेसमेंट एंड कंटिनी ऑफ केर (ए.ए.सी.): यह घटक अस्पतालों में
रोगियों की पहुंच और उनकी देखभाल की निरंतरता को सुनिश्चित करने पर केंद्रित
है। इसके लिए अस्पतालों को रोगियों की पहुंच को आसान बनाने, उनकी देखभाल
की निरंतरता को सुनिश्चित करने, और उनकी सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर बनाने
के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• केर ऑफ पेशेंट्स (सी.ओ.पी.): यह घटक अस्पतालों में रोगियों की देखभाल

108डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को रोगियों
की देखभाल की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, उनकी देखभाल की गुणवत्ता को बेहतर
बनाने, और उनकी सेवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाएं
स्थापित करनी चाहिए।
• मैनेजमेंट ऑफ मेडिकेशन (एम.ओ.एम.): यह घटक अस्पतालों में दवाओं के
प्रबंधन को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को दवाओं के
प्रबंधन की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, दवाओं के उपयोग को नियंत्रित करने, और
दवाओं के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• पेशेंट राइट्स एंड एजुकेशन (पी.आर.ई.): यह घटक अस्पतालों में रोगियों के
अधिकारों और शिक्षा को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को
रोगियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने, रोगियों को शिक्षित करने, और रोगियों
की सेवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी
चाहिए।
• हॉस्पिटल इंफेक्शन कंट्रोल (एच.आई.सी.): यह घटक अस्पतालों में संक्रमण
नियंत्रण को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को संक्रमण
नियंत्रण की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, संक्रमण के जोखिम को कम करने, और
संक्रमण के मामलों को रोकने के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• पेशेंट सेफ्टी एंड क्वालिटी (पी.एस.क.): यह घटक अस्पतालों में रोगी सुरक्षा
और
गुण
वत्ता को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को रोगी
सुरक्षा की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, गुणवत्ता को बेहतर बनाने, और रोगी सेवाओं
की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• रिस्पॉन्सिबिलिटी ऑफ मैनेजमेंट (आर.ओ.एम.): यह घटक अस्पतालों में
प्रबंधन की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को
प्रबंधन की जिम्मेदारी को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना, प्रबंधन की प्रक्रियाओं को
स्थापित करना, और प्रबंधन की जिम्मेदारी को निरंतर मूलकन करने के लिए
प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• फैसिलिटी मैनेजमेंट एंड सेफ्टी (एफ.एम.एस.): यह घटक अस्पतालों में सुविधाओं
के प्रबंधन और सुरक्षा को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को
सुविधाओं के प्रबंधन की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, सुरक्षा की प्रक्रियाएं स्थापित
करनी, और सुविधाओं के प्रबंधन और सुरक्षा को निरंतर मूलकन करने के लिए
प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• ह्मन रिसोर्स मैनेजमेंट (एच.आर.एम.): यह घटक अस्पतालों में मानव संसाधन

109डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
प्रबंधन को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को मानव संसाधन
प्रबंधन की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण की
प्रक्रियाएं स्थापित करनी, और मानव संसाधन प्रबंधन को निरंतर मूलकन करने
के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
• इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (आई.एम.एस.): यह घटक अस्पतालों में सूचना
प्रबंधन प्रणाली को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके लिए अस्पतालों को सूचना
प्रबंधन प्रणाली की प्रक्रियाएं स्थापित करनी, सूचना की गोपनीयता और सुरक्षा की
प्रक्रियाएं स्थापित करनी, और सूचना प्रबंधन प्रणाली को निरंतर मूलकन करने
के लिए प्रक्रियाएं स्थापित करनी चाहिए।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
• एन.ए.बी.एच. प्रमाणित, भारत का पहला पी.एच.सी. गड़बोरियाद, जिला वडोदरा,
गुजरात है।
• एन.ए.बी.एच. प्रमाणित भारत का पहला यू.एच.सी. शहरी स्वास्थ केंद्र नाना मौवा,
जिला राजकोट, गुजरात है।
• भारत का पहला सामुदाक स्वास्थ केंद्र (सी.एच.सी.) बारडोली, जिला सूरत,
गुजरात।
• एन.ए.बी.एच. प्रमाणित भारत का पहला सरकारी जिला अस्पताल, गांधीनगर,
गुजरात है।
• एन.ए.बी.एच. प्रमाणित भारत का पहला सरकारी ब्लड बैंक बीजे मेडिकल कॉलेज
ब्लड बैंक, अहमदाबाद, गुजरात है।
• एन.ए.बी.एच. प्रमाणित भारत का पहला सरकारी सुपर स्पेशलिस्ट, सरकारी
स्पाइन इंस्टीट्यूट अहमदाबाद, गुजरात है।
• एन.ए.बी.एच. प्रमाणित भारत का पहला सरकारी मानसिक अस्पताल, मानसिक
अस्पताल, वडोदरा, गुजरात है।
राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रतयन बोर्ड (एन.ए.बी.एल.) -
एन.ए.बी.एल. का पूरा नाम नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन
लेबोरेटरीज। यह एक प्रतयन निकाय है, जिसकी प्रतयन प्रणाली आईएसओ/
आईईसी 17011 के अनुसार स्थापित की गई है। विश्व की अग्रणी प्रतयन संस्था
बनना और अपनी सेवाओं में हितधारकों का विश्वास बढ़ाना इसका विजन है। उच्च
गुणवत्ता, मूल आधारित सेवाएं प्रदान करके, ए.पी.ए.सी./आई.एल.ए.सी. एम.आर.ए.
को बढ़ावा देकर, सक्षम मूलकनकर्ताओं को सूचीबद्ध करके, हितधारकों के बीच

110डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
जागरूकता पैदा े, प्रतयन गतिविधियों का समर्थन करने वाले नए काम शुरू
करके और संगठनात्मक उत्कृष्टता को आगे बढ़ाकर दुनिया भर में स्वीकृत प्रतयन
प्रणाली को मजबूत करने की दृष्टि से इसका गठन क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया के
एक घटक के रूप में हुई है।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
• एन.ए.बी.एल. प्रमाणित भारत का पहला सरकारी मेडिकल कॉलेज प्रयोगशाला,
सरकारी मेडिकल कॉलेज प्रयोगशाला, भावनगर, गुजरात है।
• एन.ए.बी.एल. प्रमाणित भारत का पहला सरकारी खाद्य और औषधि प्रयोगशाला,
सरकारी खाद्य और औषधि प्रयोगशाला, वडोदरा, गुजरात है।
लक् (Laqshya)- यह एक गुणवत्ता सुधार पहल है, जिसका उद्देश प्रसव कक्ष
और प्रसूति ओटी में प्रसव के दौरान और प्रसव के तुरंत बाद की अवधि में देखभाल
की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है। यह सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों, जिला
अस्पतालों और समकक्ष स्वास्थ सुविधाओं, नामित एफ.आर.यू. के साथ-साथ उच्च
केस भार वाले सी.एच.सी. को लक्षित करता है। 24 मार्च,2023 तक के पी.आई.बी. से
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार लक् काम के अंतर्गत 2,660 प्रसव कक्षों और 1989 प्रसूति
ऑपरेशन थियेटरों में नवीनतम प्रसव कक्ष प्रोटोकॉल के बारे में जागरूकता/अभिविनस
काम आयोजित किए जा चुके थे। भारत का पहला लक् प्रमाणित अस्पताल, सिविल
अस्पताल, गांधीनगर, गुजरात है।
राष्ट्री गुणवत्ता आश्वासन मानक (एन.क.ए.एस.)– एन.क.ए.एस. पूरा नाम
नेशनल क्वालिटी एशरेंस स्टैंडर्ड है। यह सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं के साथ-साथ
वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के लिए विशिष्ट आवशकताओं को ध में रखते हुए विकसित
किए गए हैं। एन.क.ए.एस. वर्तमान में जिला अस्पतालों, सी.एच.सी., पी.एच.सी. और
शहरी पी.एच.सी. के लिए उपलब्ध हैं। यह मानक मुख रूप से प्रदाताओं के लिए पूर्व
निर्धारित मानकों के माधम से सुधार के लिए अपनी स्वयं की गुणवत्ता का आंकलन
करने और प्रमाणन हेतु अपनी सुविधाओं को लाने के लिए हैं। राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन
मानकों को मोटे तौर पर 8 “चिंता के क्षेत्रों” के तहत व्थित किया गया है- सेवा
प्रावधान, रोगी अधिकार, इनपुट, सहायता सेवाएं, नैदानिक देखभाल, संक्रमण नियंत्रण,
गुणवत्ता प्रबंधन और परिणाम। ये मानक आई.एस.क.यू.ए. द्वारा मानता प्राप्त हैं और
वकता, निष्पक्षता, साक् और विकास की कठोरतम कसौटियों के मामले में वैश्विक
मानदंडों को पूरा करते हैं। एन.क.ए.एस. प्रमाणित भारत का पहला अस्पताल, जनरल
अस्पताल वरा, गुजरात सरकार है।

111डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
स्वच्छता मिशन ऑडिट: गुजरात एकमात्र राज है जहां नियमित स्वच्छता मिशन
ऑडिट हर महीने की 6 तारीख को सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं में गुणवत्ता संस्कृति
बनाने के लिए आयोजित किया जाता है। यह ऑडिट सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं में
स्वच्छता और गुणवत्ता के मानकों को बनाए रखने में मदद करता है।
कााकल्प: कायाकल्प एक पहल है जो सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं में गुणवत्ता
में सुधार करने के लिए शुरू की गई है। इस पहल के तहत, सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं
में गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जाते हैं।
5-एस : 5-एस और काइज़ेन एक पहल है, जो गुजरात में सार्वजनिक स्वास्थ
सुविधाओं में गुणवत्ता में सुधार करने के लिए शुरू की गई है। इस पहल के तहत,
सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाओं में गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विभिन्न कदम उठाए
जाते हैं। 5 एस एक जापानी प्रबंधन तकनीक है, जिसका उद्देश का्थल में उत्पादकता
और गुणवत्ता में सुधार करना है।
5 एस का अर्थ है “शॉर्टआऊट”, “सेट इन ऑर्डर”, “शाइन”, “स्टैंडर्डाइज़” और
“सस्टेन”। पहला “एस” शॉर्टआऊट सेवन का अर्थ है कि का्थल में अनावशक
वस्तुओं को हटा देना चाहिए। इससे का्थल में जगह की बचत होती है और काम
करना आसान हो जाता है। दूसरा “एस” सेट इन ऑर्डर का अर्थ है का्थल में सभी
जरूरी व उपयोगी वस्तुओं को एक निश्चित स्थान पर रखना चाहिए। इससे का्थल में
व बनी रहती है और काम करना आसान हो जाता है। तीसरा “एस” शाइन का अर्थ
है कि का्थल में सभी वस्तुओं को साफ और स्वच्छ रखना चाहिए। इससे का्थल में
स्वच्छता बनी रहती है और काम करना आसान हो जाता है। चौथा “एस” स्टैंडर्डाइज़ का
अर्थ है कि का्थल में सभी प्रक्रियाओं और का को मानकीकृत करना चाहिए। इससे
का्थल में व बनी रहती है और काम करना आसान हो जाता है। पां चवां “एस”
सस्टेन का अर्थ है कि का्थल में सभी प्रक्रियाओं और का को निरंतर बनाए रखना
चाहिए। इससे का्थल में व बनी रहती है और काम करना आसान हो जाता है।
इस प्रकार, 5 एस एक प्रभावी तकनीक है जो का्थल में उत्पादकता और
गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करती है। इसका उपयोग विभिन्न उगों और संगठनों
में किया जा सकता है।
काइज़ेन: काइज़ेन एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है ‘निरंतर सुधार’। यह एक
प्रबंधन दर्शन है जो का्थल में निरंतर सुधार और उत्कृष्टता की दिशा में काम करने पर
जोर देता है। काइज़ेन का उद्देश का्थल में उत्पादकता, गुणवत्ता, और प्रभावशीलता
में सुधार करना है। और इसके लिए कर्मचारियों की भागीदारी और साझा जिम्मेदारी की
आवशकता होती है।

112डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
काइज़ेन के मुख्य सिद्धांत है-
• निरंतर सुधार: काइज़ेन का मुख सिद्धांत है निरंतर सुधार। इसका अर्थ है कि
का्थल में हमेशा सुधार के अवसरों की तलाश की जानी चाहिए।
• कर्मचारी भागीदारी: काइज़ेन में कर्मचारी भागीदारी को बहुत महत्त्व दिया जाता है।
कर्मचारियों को अपने विचारों और सुझावों को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया
जाता है।
• टीमवर्क: काइज़ेन में टीमवर्क को बहुत महत्त्व दिया जाता है। कर्मचारियों को एक-
दूसरे के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
• निरंतर शिक्षा और प्रशिक्षण: काइज़ेन में निरंतर शिक्षा और प्रशिक्षण को बहुत महत्त्व
दिया जाता है। कर्मचारियों को नई तकनीकों और प्रक्रियाओं के बारे में निरंतर शिक्षा
और प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
इस प्रबंधन सिद्धांत को अपनाने से उत्पादकता में वृद्धि, गुणवत्ता में सुधार, लागत
में कमी और कर्मचारी संतुष्टि में वृद्धि होती है। इस प्रकार, काइज़ेन एक प्रभावी प्रबंधन
दर्शन है जो का्थल में निरंतर सुधार और उत्कृष्टता की दिशा में काम करने पर जोर
देता है।

113डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
फोटो गैलरी
सास बहू सम्मेलन
किशोर स्वास्थ शिक्षा के तहत जागरुकता अभियान
परिशिष्ट-2

114डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
किशोर स्वास्थ शिक्षा के तहत जागरुकता अभियान
स्कूल हेल्थ प्रोग्राम के अंतर्गत हेल्थ स्क्रीनिंग करते डॉ. मीना

115डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
स्कूल हेल्थ प्रोग्राम के अंतर्गत हेल्थ स्क्रीनिंग
पल्स पोलियो अभियान के अंतर्गत आयोजित काम

116डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
गुणवत्ता स्वास्थ के प्रति जागरुकता फैलाने हेतु विविध आयोजन

117डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय वर्कशॉप

118डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय वर्कशॉप

119डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
गुजरात के तत्कालीन मुखमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी हेल्दी गुजरात अभियान का उद्घाटन करते हुए
कायाकल्प पुरस्कार समारोह में गुजरात की तत्कालीन मुखमंत्री आनंदी बेन पटेल पुरस्कार वितरण करते हुए

120डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
कायाकल्प पुरस्कार समारोह में गुजरात की तत्कालीन मुखमंत्री आनंदी बेन पटेल पुरस्कार वितरण करते हुए

121डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
कायाकल्प पुरस्कार समारोह में गुजरात की तत्कालीन मुखमंत्री आनंदी बेन पटेल पुरस्कार वितरण करते हुए
कायाकल्प अवार्ड वितरित करते हुए तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री जे.पी. नड्डा

122PvKt>a]mWkYm>Igmgt>W>]gmSD

123डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
पुरस्कार, प्रमाण पत्र एवं प्रशस्ति पत्र

124डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
पुरस्कार, प्रमाण पत्र एवं प्रशस्ति पत्र

125डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
पुरस्कार, प्रमाण पत्र एवं प्रशस्ति पत्र

126डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
पुरस्कार, प्रमाण पत्र एवं प्रशस्ति पत्र
अपने संयुक्त परिवार के साथ डॉ. जे.एल. मीना

127डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना की आधक यात्रा

128डॉ. िे. एि. मीिा : ्ी.एच.सी. से एि.एम.सी. तक
डॉ. जे.एल. मीना की आधक यात्रा

129डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
Dr. Jitu Lal Meena, 53 yrs, MBBS, MBA – Hospital Administration,
Doctor of Science (D. Sc.) in Quality Assurance, Post-Graduation
certificate in Quality Management & Accreditation of Healthcare
Organization (PGQM & AHO), Post-Graduation Diploma in Public
Health Management (PGDPHM), Post-Graduation Diploma in Health and
Law (PGDHL) & Principal NABH Assessor, Principal NQAS Assessor
and NABL Internal Assessor Course.
Educational Qualifications (starting from graduation):
 1996
Bachelor of Medicine & Bachelor of Surgery (MBBS)
completed from J L N Medical College Ajmer, University of Rajasthan, Jaipur - India

 2008 Study tour for Quality Management in Healthcare to
Washington & Baltimore, United States of America (USA).
 2008 - National Accreditation Board for Hospital and
Healthcare Providers (NABH) Assessor course completed from Quality Council of India, New Delhi – India
 2009 -
Post-Graduation in Quality Management &
Accreditation of Healthcare Organization (PGQM & AHO) completed from Academy of Hospital Administrative, Noida, Uttar Pradesh – India
 2010 -
Internal audit training for Quality Management in
Laboratories completed from Quality Council of India, New Delhi –
India
 2015 - National Quality Assurance Standards (NQAS)
Assessor completed from Ministry of Health and Family
Welfare, Govt of India, New Delhi – India
Dr. J. L. Meena’s Profile
परिशिष्ट-3

130Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
 2016 - MBA (Hospital Administration) completed from Swami
Vivekanand Subharti University, Meerut, Uttar Pradesh – India
 2017 - Post – Graduation Diploma Programme in Health & Law
(PGDPHL) completed from Academy of Hospital Administrative,
Noida, Uttar Pradesh – India
 2018 - Post-Graduation Diploma in Public Health Management (PGDPHM) completed from Indian Institute of Public Health (IIPH), Gandhinagar – Gujarat, India
 2019 - Leadership Development Programme (LDP) NUS Initiative to Improve Health in Asia (NIHA), completed from Singapore

 2023 - Doctor of Science (D.Sc.) in Quality Assurance with
Specialization in Medical Education & Health Care Services.
European International University, Paris – France.
Professional Experience:  1st Aug 97 – 31st Jan 2000 - Resident Medical Officer (RMO), Private trust Langan shah Memorial hospital, Makrana
,
Rajasthan – India
 19th April 2000- 14th May 2000 - Medical Officer, Mobile Health
Unit Mandor – Dahod, Gujarat – India
 15th May 2000 – 2nd Feb. 2002 - Medical Officer, Primary Health Centre, Limdi-Dahod, Gujarat – India
 3rd Feb. 2002 – 30th June 2005 - District Quality Assurance Officer (1st District Quality Assurance Officer in India), Dahod, Gujarat – India as a leader, Planning, Implementation & Monitoring of the Quality Improvement Programme.
 1st July 2005 to 20th Feb. 2006 - Medical Officer, Primary Health Centre, Chilakota, Gujarat – India
 20th Feb 2006 – 12th Oct 2018 - State Quality Assurance Officer, Gandhinagar (1st State Quality Assurance Officer in India), Gandhinagar – Gujarat, India as a leader, Planning, Implementation & Monitoring of the Quality Improvement Programme in the Gujarat, India
 12th Oct 2018 – 30th June 2020 - General Manager, National Health Authority as a leader of Hospital Networking and Quality Assurance in Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana

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(AB PM-JAY), New Delhi – India
 1st July 2020 – 15th March 2021 - Joint Director, National Health
Authority as a leader of Hospital Networking and Quality Assurance
in Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana (AB PM-
JAY), New Delhi – India
 16th March 2021 – 25th July 2022 - Division Head & Joint
Director, National Health Authority as a leader of Service Provider
Engagement (Provider Empanelment, Provider Operation, IC/TPA/
ISA Engagement) in Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya
Yojana (AB PM-JAY). New Delhi – India
 25th July 2022 - Member, Medical Assessment & Rating Board,
National Medical Commission
As a leader of Medical Assessment
& Rating Board, National Medical Commission - Govt of India, New Delhi – India
“NMC focused on quality education, transparency, zero tolerance to corruption and timely results”
Other relevant experience including contributions to health
field (e.g. standards body membership; experience as a trainer in the area of accreditation):
Formation of RCH Standards, Swachhata Mission Audit, Kayakalp,
NABH Standards for PHC & CHC, AB PM-JAY (Bronze, Silver & Gold) Quality Standards, etc.
Training and certification in Healthcare Quality:-
 Study Mission to Non-member Countries on the Application of
Quality Management in Healthcare at Washington - United State of
America (USA) organized by Asian Productivity Organisation –
Japan.
 WC – The 2nd Annual Leadership Submit on Process Improvement
and Business Excellence in Healthcare at Chicago - United State of
America (USA) organized by Asian Productivity Organisation –
Japan.
 Master of Business Administration – Hospital Administration
(MBA-HA).
 Post-Graduation certificate in Quality Management & Accreditation

132Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
of Healthcare Organization (PGQM & AHO).
 National Accreditation Board for Healthcare organisation (NABH)
Assessor.
 National Quality Assurance Standards (NQAS) Assessor.
 Quality Management System and Certified Internal Auditor course as
per ISO 15189:2007 & ISO 15189:2012.
 Training on Data Analysis, Monitoring and Evaluation of Health
Programmes by IIM, Ahmedabad.
 Result Based Management training by IIHMR – Jaipur.
 Specialised Training for e-Governance Programme.
 Training for Preparation of Action Plan by National Institute of
Administrative Research Lal Bahadur Shastri National Academy of
Administration, Mussoorie.
 Quality Evaluation of Healthcare Organisations the JCI Methodology.
 JCI Standards & their Application.
 Training of Trainers for Gender Mainstreaming.
 Training of Trainers for Adolescent Sexual Reproductive Health
using Life Skills Approach.
 Training on Establishment of Directorate of Radiation Safety in the
State by AERB, Govt. of India.
 Training on Kaizen Implementation.
 Training on 5 – S Implementation.
 Post-Graduation Diploma in Public Health Management (PGDPHM).
 Post-Graduation Diploma in Health and Law (PGDHL).
 NUS Initiative to Improve Health in Asia (NIHA) Leadership
Development Programme (LDP), Date:- 24-28th June 2019 at
Singapore, future health leaders and International experts from 18
Countries.
 Doctor of Science (D. Sc.) in Quality Assurance
Pride movement during tenure
 Appreciation awarded by QCI to Ministry of Health and Family
Welfare Government of Gujarat for establishing Quality Assurance
framework in providing quality healthcare to the people of Gujarat
in 5th National Quality Conclave, New Delhi – India
 Appreciation awarded to Department of Health and Family Welfare

133Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
Government of Gujarat for their pioneering effort to spearhead the
Quality and Accreditation Programme in health care organization. In
3rd International Health Care Quality Conclave on “Role of Quality
in Globalization of Indian Healthcare”. Place: - Gurgaon, Haryana –
India Date: 30th August 2010.
 FICCI Health care Excellence Award for Quality Healthcare Service
to Dist Hospital Gandhinagar & PHC Gadboriad, Govt of Gujarat in
FICCI Heal 2010, New Delhi – India Date: 6th Sept 2010
 FICCI Health care Excellence Award for Quality Healthcare Service
to Dist Hospital Gandhinagar, Govt of Gujarat in FICCI Heal 2011,
New Delhi - India Date: 8th Sept 2011
 FICCI Health care Excellence Award for Quality Healthcare Service
to Community Health Centre Bardoli, Govt of Gujarat in FICCI Heal
2013, New Delhi - India Date: 2nd Sept 2013
 Operational excellence award in IndiZen 2014 to Govt. of Gujarat-
department of health and family welfare was achieved.
 FICCI Health care Excellence Award for Quality Healthcare Service
to Community Health Centre Bardoli, Govt of Gujarat in FICCI Heal
2014, New Delhi – India Date: 1st Sept 2014
 FICCI Health care Excellence Award for Quality Healthcare Service
to Paraplegia Hospital- Ahmedabad, Govt of Gujarat in FICCI Heal
2014 New Delhi – India Date: 1st Sept 2014
 FICCI Healthcare Excellence Award for Quality Healthcare Service to
Laboratory Information System, B J Medical College – Ahmedabad,
Govt of Gujarat in FICCI Heal 2016 New Delhi – India Date: 31st
August 2016.
 High Achievement Award – 2016 at AFMC – Pune by Academy of
Hospital Administration, Noida – India
 Appreciation award by Government of India.
 India’s Young Quality Achiever Award 2017 in 3rd International
Conference of Consortium of Accredited Healthcare Organizations
(CAHO) at Vivanta by Taj, Dwarka – New Delhi, India
 “Man of Excellence Award 2020 & 2022” in Recognition Outstanding
Professional Achievement & Contribution in Nation Building by
Indian Achiever Forum, New Delhi – India
 “Proud Maker of India Award” for his outstanding work in the field

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of health. The award was presented to him by Mr Anurag Singh
Thakur, Union Information and Broadcasting - Govt of India, New
Delhi – India
 Bhartiya Seva Ratna Award 2022 by Global Scholars Foundation.
 Lifetime Healthcare Leadership Award 2022 by Magic Book of
Record.
 International Brilliance Award 2022 by Hyedge Media Group, etc
 Certificate of Excellence by Ministry of Health and Family Welfare –
Govt of India in his exemplary commitment and devotion to medical
education in India.
 Certificate of Appreciation by National Board of Examinations in
Medical Science, Govt of India, New Delhi – India
 Study Mission to Non-member Countries on the Application of
Quality Management in Healthcare at Washington - United State of
America (USA) by Asian Productivity Organisation – Japan.
 ISO certificated National Medical Commission, New Delhi – India
 Maximum Medical Colleges Approved & Opened in the Country in
the World Year 2023
 Highest Number of Medical Colleges Assessments in a single year the
Country in the World
 Highest Number of Medical UG & PG Seats in the Country in the
World Year 2023
 National Medical Commission (NMC) Accredited as per World
Federation Medical Education Standards for 10 years: - https://wfme.
org/download/nmc-press-release/
Experience and details as faculty in Healthcare Quality Healthcare
Services:
 Healthcare Quality Training given at Facility level to Top level
management of Government Participants in Gujarat, Maharashtra,
Haryana, Kerala, Karnataka, Rajasthan, Delhi, MP & UP Government
etc.
 Academic Lectures on various topics in Quality Healthcare
Management and Medical Education Healthcare Services in various
Medical colleges and Universities since 2005
 Faculties in Various National & International Quality Workshop.

135Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
 Faculties in Various National Quality Conclave organised by Quality
Council of India.
 Resource person in “2nd & 3rd International Public Health
Management Development Program” (Only Foreign Participants) on
Quality Concepts and developing/monitoring Quality Management
system in Hospitals and “Accreditation of Health care Facilities”
Details of Publications:
 Article on Quality Assurance & Accountability in Health care
Delivery System in Journal of Academy of Hospital Administration
Vol. 28, No.2 July - December 2016 NLM UID - 9109129 : ISSN 0970-
9452
 Quality assurance & accountability in health; Indian Journal of
Community and Family Medicine - Volume 1
 Breathed Life in to ailing Health Centre, Limdi in times of India
 “Gujarat Model Take off” In QCI Publication Quality India.
 “Quality Healthcare Service to Poorest of the Poor” In QCI Publication
Quality India.
 Quality Assurance and Accreditation in Healthcare Chapter in
Management of Healthcare Systems book published from Oxford
University.
 National Doctors’ Day 2021: “My Mother Motivated Me To Work For
Quality Healthcare”
 Improving the quality of healthcare in resource-constrained settings
in India.
Innovations:
 Gujarat is the first state in India which initiated for actively pursuing
quality improvements in the public healthcare facilities through the
network of Primary Health Centres (PHCs), Community Health
Centres (CHCs), Sub District Hospitals, District Hospitals, Blood
Banks, Medical College Laboratories, Food & Drug Laboratories,
Dental Colleges, Mental Colleges, Paraplegia Hospital & Medical
Colleges. In order to institutionalize Quality Assurance, Gujarat
is the only state which has set up the District Quality Assurance
cell & State Quality Assurance cell for implementation of Quality

136Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
Management System and Accreditation.
 NABH / NABL Implementation in Public Health Facilities in various
State Govt. (e.g. Gujarat, Maharashtra, Haryana, Kerla, Karnataka,
Rajasthan, Delhi, MP & UP Government etc.)
 India’s 1st PHC NABH Accredited, Primary Health Center
Gadboriayad, Dist.:- Vadodara, Gujarat.
 India’s 1st UHC NABH Accredited, Urban Health Center Nana Mauva,
Dist.:- Rajkot, Gujarat.
 India’s 1st CHC NABH Accredited, Community Health Center Bardoli,
Dist.- Surat, Gujarat.
 India’s 1st District hospital NABH Accredited, District Hospital,
Gandhinagar – Gujarat
 India’s 1st Govt Blood Bank NABH Accredited, B J Medical College
Blood Bank, Ahmedabad– Gujarat
 India’s 1st Govt Super specialist NABH Accredited, Govt Spine
Institute Ahmedabad – Gujarat
 India’s 1st Govt Mental Hospital NABH Accredited, Mental Hospital,
Vadodara - Gujarat.
 India’s 1st Govt Medical College Laboratory NABL Accredited, Govt
Sir T Medical College Laboratory, Bhavnagar– Gujarat
 India’s 1st Govt Food and Drug Laboratory NABL Accredited, Govt
Food and Drug Laboratory, Vadodara– Gujarat
 India’s 1st LAQSHYA certified Hospital, Civil Hospital, Gandhinagar
– Gujarat
 National Quality Assurance Standards (NQAS) in Public Healthcare
Facilities in India.
 India’s 1st NQAS Certified Hospital, General Hospital – Vyara, Govt
of Gujarat.
 Quality Awareness in Public Health Facilities in India.
 Swachhata Mission Audit in Healthcare Facilities, India (Gujarat is
the only State where regular Swachhata Mission Audit Conducted on
6th of Every Month to create quality culture in Public Health Facilities.
 Kayakalp in Public Health Facilities, India.
 Labour Room Quality Initiative (LaQshya) in Public Healthcare
facilities – India.
 5 – S and Kaizen Implementation, Gujarat.

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 Formation of RCH Quality Standards in Government with help of
Govt. of India.
 Formation of PHC / CHC NABH Standards with Help of Quality
Council of India.
 Biomedical Waste Management.
 Instrument and Equipment audit in Public Health Institute, Gujarat.
 Energy audit in Public Health Institute, Gujarat.
 Formation of Directorate Radiation Safety.
 Insuring Quality in imaging instrument after India’s 1st complaint
lodged against Philips.
 Detailed information related to Quality on https://gujhealth.gujarat.
gov.in/quality-assurance-program.htm for awareness generation in
India and beyond.
 AB PM-JAY Bronze, Silver & Gold Quality Standards for provide
Quality Healthcare service to needy people.
 Guideline on Star Rating of Ayushman Bharat Pradhan Mantri -Jan
Arogya Yojana (AB PM-JAY) Empanelled Hospitals
 Empanelment of Hospitals (Total – 27985, Private – 13427 & Public–
14558) with Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana
(AB PM-JAY)
 Special Hospital Empanelment Drive in Non PM-JAY State like
Delhi, Odisha & West Bengal, etc.
 Achieved Lowest Rejection % - 1.1% from 2.8% earlier which is lowest
in any Scheme.
 Achieved Lowest Query %- 18.9% from 23.5% earlier which is lowest
in any scheme.
 Highest Claims Settlement in May 2021 Month – 7,57,122 in AB PM-
JAY History.
 Highest Claims Approval in Dec 2021 Month- 10,04,822 in AB PM-
JAY History.
 Lowest Claim Settlement TAT (Submission basis)- 35 Days.
 Missing Middle- Universal Health Coverage: Empanelment of 11
insurance companies to carry out pilot for project.
 Auto Adjudication of Claims- Proof of concept is completed.
Standardization & Digitalization of documents is in Progress.
 Green Channel Payment- Initiative for instant partial payments to

138Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
selected hospitals at the time of claim submission.
 Finalization of Operational Manual for empanelled healthcare
providers (EHCPs) which will serve as a ready reckoner and guide
the empanelled healthcare providers about various processes and
activities of AB PM-JAY.
 In addition, welcome kit is being developed which will be disseminated
to EHCPs to orient them about the scheme and processes.
 Started providing Recognition and Appreciation certificate
(Ayushman Sarthi Certificate) to good performing EHCPs to boost
their motivation level and further improve their engagement under
AB PM-JAY.
 “NMC focused on quality education, transparency, zero tolerance to
corruption and timely results”
 ISO certification and a proud moment for India that the National
Medical Commission has been accredited by the World Federation
Medical Education (WFME) for 10 years, significant miles achieved
during this session to maintain standardization and quality work-
culture.
 The success of the session can be marked by establishment of 54 new
undergraduate medical colleges and addition of 9435 seats making
it a total of 706 medical colleges and 108898 UG seats respectively
across India. Also, the total PG seats have increased by 4606 thus
making the total of 68142 PG seats (including DNB) as on 22nd
September, 2023.
 Maximum Medical Colleges Approved & Opened in the Country in
the World Year 2023
 Highest Number of Medical Colleges Assessments in a single year the
Country in the World
 Highest Number of Medical UG & PG Seats in the Country in the
World Year 2023
 NMC Accredited as per World Federation Medical Education Standards
for 10 years: - https://wfme.org/download/nmc-press-release/
 Detailed work done in Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya
Yojana (AB PM – JAY) on :- https://pmjay.gov.in/node/3033 &
https://pmjay.gov.in/resources/documents
 Detailed information, Presentation and Experience Sharing Videos

139Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
for Quality Healthcare Awareness on https://www.youtube.com/
channel/UCvVu2d_uXiYxEE2-0f1QfVw which is seen by people of
about 190 Countries.
 Quality Awarness “Quality Improvement Program in Healthcare
sector on All India Radio ??????, Ahmedaba
d – Gujarat”
 Quality Awareness “Satcom for Quality Improvement Programme Online training and monitoring”.
 Implementation of Quality Standards is not limited by Language barriers – Use of technology & universal language of Pictorial Communication. (Pictorial live presentation with evidence based:-
 “How to Implement Quality Improvement Programme (NABH Standards) in PHC & CHC” https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/ pdf/How_to_acheive_NABH_Standards_for_PHC_and_CHC_Final.pdf
 “How to Implement Quality Improvement Programme (NABH Standards) in Hospital”:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/ pdf/How_to_Achieve_NABH_Standards_in_Hospital.pdf
 “How to change scenario after Quality in India’s 1st NABH Accredited Mental Hospital Ahmedabad” :- https://gujhealth.gujarat.gov.in/ images/pdf/How_to_Change_Scenario_after_Quality_Improvment_ Programme_NABH_in_Mental_Hospital_Ahmedabad.pdf
 “How to change scenario after Quality in Rural Health Facili- ties”:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/pdf/Roadmaptoattain- ingQualityinRuralHealthcareSectorthroughAccreditation_qip.pdf
 “How to Achieve AB PM-JAY Bronze Quality Certificate”:- https:// www.pmjay.gov.in/sites/default/files/2019-09/Guideline%20for%20 How%20to%20Achieve%20Bronze%20Quality%20Certificate.pdf
 “How to Achieve AB PM-JAY Silver & Gold Quality Certificate”:- https://www.pmjay.gov.in/sites/default/files/2019-10/Silver%20 Quality%20Certificate.pdf
“Provide Quality & Affordable Health Care Service in India &
beyond, Only Aim to improve the Quality Health Care Service &
Universal Health Care Service in India”
=================

140डॉ. िे. एल. मीना : पी.एच.िी. िे एन.एम.िी. तक
yyImplementation of Quality Standards is not limited by Language barriers
– Use of technology & universal language of Pictorial Communication.
(Pictorial live presentation with evidence based:-
yy“How to Implement Quality Improvement Programme (NABH
Standards) in PHC & CHC” https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/ pdf/How_to_acheive_NABH_Standards_for_PHC_and_CHC_Final.pdf
yy“How to Implement Quality Improvement Programme (NABH
Standards) in Hospital”:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/ pdf/How_to_Achieve_NABH_Standards_in_Hospital.pdf
yy“How to change scenario after Quality in India’s 1st NABH
Accredited Mental Hospital Ahmedabad”:- https://gujhealth. gujarat.gov.in/images/pdf/How_to_Change_Scenario_after_Quality_ Improvment_Programme_NABH_in_Mental_Hospital_Ahmedabad.pdf
yy“How to change scenario after Quality in Rural Health Facili-
ties”:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/pdf/Roadmaptoattain- ingQualityinRuralHealthcareSectorthroughAccreditation_qip.pdf
yy“How to Achieve AB PM-JAY Bronze Quality Certificate”:-
https://www.pmjay.gov.in/sites/default/files/2019-09/Guideline%20 for%20How%20to%20Achieve%20Bronze%20Quality%20Certificate.pdf
yy“How to Achieve AB PM-JAY Silver & Gold Quality Certificate”:-
https://www.pmjay.gov.in/sites/default/files/2019-10/Silver%20 Quality%20Certificate.pdf
yyhttp://www.pmjay.qcin.org/assets/img/nha-img/docs/Guide-
line%20for%20How%20to%20Achieve%20Bronze%20Quality%20 Certificate.pdf
yyhttp://www.pmjay.qcin.org/assets/img/nha-img/docs/Silver%20
Quality%20Certificate.pdf
संदर्भ (References)
परिशिष्ट-4

141Pv Kt >a ]mWk Ym>Igm gt >W>]gm SD
yyQuality Manual Part – 1:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/
pdf/QA-Manual-PART-1-Final.pdf
yyQuality Manual Part – 2:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/
pdf/QA-Manual-PART-2-Final.pdf
yyMahatma Gandhi Swachhata Mission:- https://gujhealth.gujarat.
gov.in/images/pdf/Swachhata-Shapath.pdf
yyInfection Prevention and Control – Gujarati:- https://gujhealth.gujarat.
gov.in/images/pdf/Infection-Prevention-and-Control-Gujarati.pdf
yyInfection Prevention and Control – English:- https://gujhealth.
gujarat.gov.in/images/pdf/Infection-Prevention-Control-Guideline-
Engligh.pdf
yyNABH PHC/CHC standards :- https://gujhealth.gujarat.gov.in/
images/pdf/75_1_NABH-PHC-CHC-Standards.pdf
yyKayakalp Award Gujarati :- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/
pdf/Award-of-Kayakalp-Gujarati-28-7-2015.pdf
yyQuality Initiative by Govt. of Gujarat:- https://gujhealth.gujarat.gov.
in/images/pdf/QIP_Progress_Gujarat.pdf
yyRoadmap to attaining Quality in Rural Healthcare Sector through
Accreditation:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/images/pdf/Roadmap- to-attaining-Quality-in-Rural-Healthcare-Sector.pdf
yyRoadmap to implement Kaizen for Quality Improvement:- https://
gujhealth.gujarat.gov.in/road-map-to-attaining-quality-in-healthcare- centers.htm
yyhttps://gujhealth.gujarat.gov.in/images/pdf/ACaseStudyonImplimenta-
tionofKAIZENinHealthcarecentres.pdf
yyQuality and Safety Indicators:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/
images/pdf/Quality-Safety-Indicator.pdf
yyArea Specific audit check list for Quality Improvement: - https://
gujhealth.gujarat.gov.in/images/pdf/AreawiseAuditChecklistforQIP-
DrJLMeena.pdf
yyQuality Improvement Programme in Public Healthcare System
Gujarat:- https://gujhealth.gujarat.gov.in/quality-assurance-program.htm
yy“Provide Quality & Affordable Health Care Service in India & beyond,
Only Aim to improve the Quality Health Care Service & Universal Health Care Service in India”

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144PvKt>a]mWkYm>Igmgt>W>]gmSD
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