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UtkarshTiwari969355 8 views 25 slides Sep 21, 2025
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ग्रिध्रसी : आयुर्वेदिक दृष्टिकोण यह प्रस्तुति "ग्रिध्रासी" की गहरी समझ प्रदान करती है, जिसे आधुनिक विज्ञान में सायटिका के रूप में जाना जाता है। हम इसके आयुर्वेदिक दृष्टिकोण, कारणों, लक्षणों और प्रभावी उपचार पद्धतियों पर प्रकाश डालेंगे।

गृध्रसि की परिभाषा और महत्व गिद्ध पक्षी से प्रेरित नाम 'ग्रिध्रासी' नाम गिद्ध पक्षी के चलने से प्रेरित है, क्योंकि इस रोग में रोगी का चलना उसी के समान हो जाता है। वात दोष का कंडरा/स्नायु में विकार यह वात दोष के असंतुलन के कारण कंडरा (टेंडन) और स्नायु (नस) में होने वाला विकार है। तीव्र दर्द और अन्य लक्षण इसके मुख्य लक्षणों में तीव्र दर्द, सुई चुभने जैसा अनुभव, अकड़न और झुनझुनी शामिल हैं।

निदान / हेतु

गृध्रसि के कारण (निदान) वात विकार के कारण रूक्ष (सूखा), शीत (ठंडा) आहार अल्प (कम), लघु (हल्का) आहार तिक्त (कड़वा), कटु (तीखा), कषाय (कसैला) आहार अधिक उपवास या असंतुलित भोजन शारीरिक और जीवनशैली के कारण अत्यधिक शारीरिक श्रम अधिक देर तक बैठना या खड़ा रहना धातुक्षय (ऊतकों का क्षय) अतिमैथुन (अत्यधिक यौन संबंध) अमोत्पत्ति (अजीर्ण के कारण आमा का बनना)

आयुर्वेदिक वर्गीकरण और प्रकार केवल वातज ग्रिध्रसी यह शुद्ध वात दोष के कारण होती है, जिसमें तीव्र दर्द, अकड़न और झुनझुनी प्रमुख लक्षण होते हैं। वात-कफज ग्रिध्रसी इसमें वात और कफ दोनों दोषों का मिश्रण होता है, जिसके कारण भारीपन, सुस्ती और भोजन में अरुचि जैसे अतिरिक्त लक्षण दिखाई देते हैं। पीडने लभते सौख्यम्

लक्षण

ग्रिध्रसी के लक्षण (लक्षण) कमर, नितम्ब, जांघ, घुटना, पिंडली और पैर में विकिरण वाला दर्द। तंद्रा (नींद का अधिक आना) और गौरव (शरीर में भारीपन)। अरुचि (भोजन में अरुचि)। प्रभावित पैर को उठाने में कठिनाई और चलने में विकृति या लंगड़ापन।

आयुर्वेदिक उपचार पद्धतियाँ निदान परिहार (कारणों का त्याग) उपचार का पहला कदम उन कारणों का त्याग करना है जो वात दोष को बढ़ाते हैं। शोधन चिकित्सा (शरीर की शुद्धि ) इसमें विरेचन (औषधीय जुलाब), बस्ती (एनीमा), और सिरावेदन (वेनिसेक्शन) जैसे पंचकर्म उपचार शामिल हैं। शमन चिकित्सा (रोग शांत करने वाले उपाय) पाचन (पाचन में सुधार), स्नेहन (मालिश), स्वेदन (पसीना निकालना), और अग्निकर्म (हीट थेरेपी) लक्षणों को शांत करने में मदद करते हैं।

चिकित्सा सूत्र अन्तराकण्डरागुल्फ़ सिरा बस्त्यग्निकर्म च | गृध्रसीषु प्रयुञ्जीत खल्या तुष्णोपनाहनम् || 101 केवलं निरुपस्तम्भमादौ स्नेहेरुपाचरेत् | वायुम् सर्पिवसामज्जतैलपानैर्नरं तत : ||1|| स्नेहक्लान्तं समाखस्य पयोभि:स्नेहयेत्पुनः । युषे र्ग्राम्योदकानूपरसैर्वा स्नेहसंयुतैः ॥ पायसैः कृसरेः साम्ललवणैः सानुवासनै : । नावनैस्तर्पणैश्चान्नैः सुस्निग्धेः स्वेदयेत्तः स्वभ्यक्तं स्नेहसंयुक्तं सङ्गाराध्धे पुनःपुनः

1. स्नेहन स्वेदन 2. विरेचन 3. वातानुलोमन 4. दीपन पाचन 5. निरुहण

विशेष उपचार और आधुनिक अनुसंधान रक्तमोक्षण (लीच थेरेपी या घटी यंत्र द्वारा) से दर्द में उल्लेखनीय कमी देखी गई है। पंचकर्म उपचार जैसे कटिबस्ति, पिंडस्वेदन, और अग्निकर्म ग्रध्रसी के प्रबंधन में बहुत प्रभावी पाए गए हैं। अश्वगंधा, रसायन और रसना चूर्ण जैसी औषधियाँ सूजन कम करने और तंत्रिका कार्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

औषधी योजना 1. त्रयोदशाङ्ग गुग्गुल 2 प्रातः साय कोष्ण जलेन 2 महारस्नादि काढा 3 tsf two times 3 वातगजान्कुश रस 8 tab अश्वगन्धा शतावरी बला सारिवा कुकुतटाण्डत्वक भस्म शङ्खभस्म गोदन्ति भस्म अविपत्तिकर चूर्ण आमलकी त्रिफ़ला चूर्ण मुस्ता चूर्ण हरीतकी चूर्ण प्रातःसाय 1/2 tsf कोष्णजलेन

SWEDAN

BASTI

RAKTAMOKSHAN

KATIBASTI

Rasayana chikitsa ( apunarbhav chikitsa) Rason ksheerpak 2-3 1 cup milk Water 1 cup प्रातःकाल सेवन
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