लेखक परिचय मंगलेश डबराल कवि मंगलेश डबराल का जन्म टिहरी गढ़वाल ( उत्तरांचल ) में काफलपानी नामक गाँव में सन 1948 में हुआ । देहरादून में इनकी शिक्षा-दीक्षा हुई । जीवन-निर्वाह के लिए इन्होंने हिंदी पेट्रियट , प्रतिपक्ष और आसपास नामक पत्रों में संपादन कार्य सँभाला । इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कार्य किया । जनसत्ता अखबार में साहित्य-संपादक का पद संभालने के बाद कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य किया । आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं । साहित्य अकादमी पुरस्कार , पहल सम्मान से सम्मानित इनकी प्रसिद्धि अनुवादक के रूप में भी है। इनकी कविताएं अंग्रेज़ी , रूसी , जर्मन , स्पानी , पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी प्रकाशित हुई हैं । रचनाएँ - ‘ पहाड़ पर लालटेन ’, ‘ घर का रास्ता ’, ‘ हम जो देखते हैं ’ और ‘ आवाज भी एक जगह ‘ ।
पाठ परिचय संगतकार’ कविता के माध्यम से कवि नाटक , संगीत , फ़िल्म तथा नृत्य आदि कलाओं में काम करने वाले सहायक कलाकारों तथा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत सहायक कर्मचारियों की ओर संकेत करता है। ये अपने मानवतावादी दृष्टिकोण से मुख्य व्यक्ति की भूमिका को विशिष्ट बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं ।
व्याख्या मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी वह मुख्य गायक का छोटा भाई है या उसका शिष्य या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार मुख्य गायक की गरज में वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से संदर्भ - जब भी कहीं संगीत का आयोजन होता है, तो मुख्य गायक के साथ संगत करने वाला संगतकार अक्सर देखा जाता है। ज्यादातर लोग संगतकार को महत्व नहीं देते हैं और वह पृष्ठभूमि का हिस्सा मात्र बनकर रह जाता है। वह हमारे लिए एक गुमनाम चेहरा रहता है। हम उसके बारे में तरह-तरह की अटकलें लगाते हैं , लेकिन मुख्य गायक की प्रसिद्धि के आलोक में हममें से बहुत कम ही लोग उस अनजाने संगतकार की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार कर पाते हैं । शब्दार्थ - संगतकार – मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या वाद्य बजाने वाला कलाकार : मुख्य गायक - वह गायक जिसकी आवाज़ सबसे अधिक सुनाई देती है । गरज - ऊंची गंभीर आवाज ।
जब मुख्य गायक अपने चट्टान जैसे भारी स्वर में गीत गाता है, तब संगतकार उसकी सहारा देकर संभाले रखता है। संगतकार की आवाज़ मुख्य गायक की अपेक्षा कमजोर एवं काँपती हुई , लेकिन सुंदर होती है। यह संगतकार गायक का छोटा भाई , उसका शिष्य या संगीत सीखने का इच्छुक व्यक्ति पैदल चलकर आया हुआ उसका दूर का कोई रिश्तेदार हो सकता है। अर्थात् कवि मुख्य गायक के साथ गायन करने वाले या वाद्य यंत्र बजाने वाले कलाकार की विशेषताओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहते हैं कि मुख्य गायक की चट्टान जैसी भारी भरकम आवाज़ को आनुपातिक लय प्रदान करने हेतु उसे बोझिलता से बचाने के लिए या भारीपन को कम करने के उद्देश्य से एक सुंदर , कमजोर तथा काँपती परपराती आवाज़ साथ में सुनाई देती है। कमजोर इसलिए कि मुख्य गायक की महानता की तुलना में वह संगतकार नया-नया आया है, डर-डर कर गाता है। यह या तो मुख्य गायक का छोटा भाई है या उसका शिष्य या दूर दराज के गाँव से पैदल चलकर संगीत की शिक्षा में पारंगत होने अर्थात अनुभवी गायकों से सीखने की लालसा से आया है। प्राचीन काल से ऐसा की कोई संगतकार मुख्य गायक की ऊंची गंभीर आवाज़ से अपने सुर मिलाता आ रहा है। भावार्थ
खड़ी बोली का सुंदर प्रयोग है। भाषा सरल तथा भावानुकूल है। भाषा में तत्सम तद्भव और उर्दू शब्दों का मिला-जुला रूप नज़र आता है। कविता गद्यात्मकता के निकट है, किंतु भावों को लय उसे गीतिमयता का रूप प्रदान करती है ।
कवि को संगीत का सूक्ष्मातिसूक्ष्म ज्ञान है। काव्य सौंदर्य उपमा – चट्टान जैसे भारी स्वर । अनुप्रास –‘ भारी स्वर ’, सुंदर कमजोर , का कोई । संदेह अलंकार – वह मुख्य गायक का छोटा भाई है या उसका शिष्य या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार । अलंकार योजना
व्याख्या गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो चुका होता है। या अपने ही सरगम को लाँघकर चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है। जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन जब वह नौसिखिया था शब्दार्थ - • अंतरा -स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण ।
• तान -संगीत में स्वर का विस्तारः • अनहद - बिना आघात की गूंज , योग अथवा साधन की आनन्दायक स्थिति ,
• स्थायी -गीत का वह चरण जी बार-बार गाया जाता है, टेक ।
भावार्थ यह संगतकार प्राचीनकाल से अपनी भूमिका को पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से निभाता आया है। जब गायक अंतरे की जटिल तानों और आलापों में खो जाता है तथा सुर से कहीं भटककर अनहद में चला जाता है, तो ऐसे समय में संगतकार ही स्थायी को संभाले रहता है। उसकी भूमिका इस तरह की होती है जैसे वह आगे चलने वाले पथिक ( राहगीर ) का छूटा हुआ सामान बटोरकर अपने साथ लाता हो । साथ ही वह मुख्य गायक को उसके बीते दिनों की बाद भी दिलाता है, जब यह मुख्य गायक नौसिखिया हुआ करता था । कहने का अभिप्राय यह है कि जब कभी गायक अंतरा ( अंतरा गीत का चरण ) गाते हुए लंबी-लंबी तानों के जंगल में उलझ जाता है या फिर सरगम के सात स्वरों को लॉधकर गीत के अर्थात सरगम के पार अनहद ( असीम आनंद बहूमानंद ) में डूब जाता है, तब संगतकार ही गीत के चरण से उसे वापस लाता है। संगतकार पीछे छूटे सामान को समेटने वाले की भाँति गीत के स्थायी रूप को संभाले रहने वाले का दायित्व निभाता है।
काव्य सौंदर्य खड़ी बोली का सुंदर प्रयोग है।
कवि ने तान , सरगम , अनहद , संगतकार , स्थायी आदि शब्दों के प्रयोग से यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें संगीत से जुड़े सूक्ष्मातिसूक्ष्म शब्दों का ज्ञान है। अलंकार योजना - रुपक - जटिल तानों के जंगल में , उत्प्रेक्षा - जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान , जसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन , जब वह नौसिखिया था । रचना छंद मुक्त है।
कविता गद्यात्मकता के निकट है किंतु भावों की लय उसे संगीतात्मकता का जामा पहनाती है।
व्याख्या तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ तभी मुख्य गायक को ढाढ़स बंधाता कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है और वह कि फिर से गाया जा सकता है गाया जा चुका रोग और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए । शब्दार्थ - तारसप्तक - काफी ऊँची आवाज़। ढॉढस बँधाना - तसल्ली देना ।
भावार्थ जब तारसप्तक पर जाने के दौरान गायक का गला बैठने लगता है और उसकी हिम्मत जवाब देने लगती है, तभी संगतकार अपने स्वर से उसे सहारा देता है। कभी-कभी संगतकार इसलिए भी गाता है ताकि मुख्य गायक को ये न लगे कि वह अकेला ही गा रहा है। कभी-कभी वह इसलिए भी गाता है ताकि मुख्य गायक किसी राग को दोबारा गा सके । इन सारी प्रक्रियाओं के दौरान संगतकार की आवाज हमेशा दबी हुई होती है। ज्यादातर लोग इसे उसकी कमजोरी मान लेते हैं , लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो गायक की आवाज को प्रखर बनाने के लिए स्वयं त्याग करता है और जानबूझकर अपनी आवाज को दबा लेता है। इस प्रकार , मुख्य गायक के उत्साह को बढ़ाते समय उसकी आवाज़ में हिचक होती है, हिचकिचाहट होती है। यह हिचक जान-बूझकर संगतकार के द्वारा अपनायी जाती है ताकि मुख्य गायक का महत्त्व कम नहीं हो । वास्तव में यह संगतकार की असफलता नहीं , बल्कि उसकी मानवीयता है, मनुष्यता है। वह अपनी तुलना में मुख्य गायक को अधिक महत्त्व देता है।
भावार्थ यह कविता संगतकार के बारे में है, लेकिन यह हर उस व्यक्ति की तरफ इशारा करती है जो किसी सहायक की भूमिका में होता है। दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में किसी एक व्यक्ति की सफलता के पीछे कई लोगों का योगदान होता है। हम और आप एक खिलाड़ी या अभिनेता या नेता के बारे में जानते हैं जो सफलता के शिखर पर होता है। लेकिन हम उन लोगों के बारे में नहीं जानते , जो उस खिलाड़ी या अभिनेता या नेता की सफलता के लिए परदे के पीछे रहकर अथक परिश्रम करते हैं । वास्तव में , संगतकार लगातार यह कोशिश करता है कि उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से कहीं ऊंचा न हो जाए । यह उसकी असफलता नहीं हैं , न ही कमज़ोरी और न ही हीनता है, अपितु यह तो उसकी मनुष्यता है, जिसके पीछे मानवीय भावना छिपी रहती है। दूसरे को हीन या दबाकर अपनी महानता प्रदर्शित करना मनुष्यता नहीं है। उसकी इस स्थिति या उसके स्वार्थरहित साथ को इसी दृष्टि से मूल्यांकित किया जाना चाहिए ।
काव्य सौंदर्य कविता में खड़ी बोली का प्रयोग है। शैली-कथात्मक और चित्रात्मक शैलियों का सौंदर्य देखने योग्य है । भाषा में प्रवाहमयता और गंभीरता है । अलंकार योजना - मानवीकरण अलंकार - प्रेरणा साथ छोड़ती हुई , उत्साह अस्त होता हुआ । उपमा अलंकार - आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ । पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार – कभी-कभी ।
QUIZ TIME!
प्रस्तुत कविता किसकी ओर संकेत करती है ? मुख्य अभिनेता की ओर मुख्य गायक की ओर मुख्य अभिनेत्री की ओर किसी भी क्षेत्र में कार्यरत सहायक कर्मचारियों की ओर
मोहल्ले से घर से सरगम के पार अनहद से सभागार से संगतकार मुख्य गायक को कहाँ से वापस गीत के चरण में लाता है ?
संगतकार मुख्य गायक का स्वर कब सँभालता है ? जब गायक गुम हो जाता है । जब गायक घबराने लगता है । जब वह मस्त हो सो जाता है । जब तारसप्तक गाते समय गायक का गला बैठने लगता है ।
मुख्य गायक के समक्ष संगतकार के स्वर का काँपना उसकी कमज़ोरी नहीं है , अपितु यह तो - उसके मानवतावादी विचारों को प्रकट करता है । उसके अज्ञानी होने का बोध कराता है उसके अबोध होने का बोध कराता है । उसके बुद्धूपन को दर्शाता है ।
संगतकार मुख्य गायक का सच्चा मित्र और सहायक कब बनता है ? जब वह उसके मनोबल और आत्मविश्वास को बढ़ाता है जब वह उसके रहने , खाने-पीने की व्यवस्था करता है । जब वह उसका मनोबल तोड़ता है । जब वह उसके आत्मविश्वास को कम करता है ।
जीवन हर क्षेत्र में सफल व्यक्ति की सफलता में किसका हाय होता है ? उसकी माँ की झिड़कियाँ होती हैं उसके साथ काम करने वालों का सहयोग होता है उसके साथियों की घृणा होती है उसके साथियों की डाँट होती है
कवि ने मुख्य गायक की आवाज़ के लिए ‘ चट्टान ’ उपमान को क्यों चुना ? कठोरता दर्शाने के लिए उसकी मजबूरी बताने के लिए भारीपन तथा गंभीरता दर्शाने के लिए रूखापन दर्शाने के लिए
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी ।‘ कवि किसकी आवाज़ के विषय में बात कर रहे हैं ? मुख्य गायक की संगतकार की स्वयं की मित्र की