दर्शन और शिक्षा का सम्बन्ध मार्गदर्शक . प्रस्तुतकर्ता डॉ.रितेश मिश्रा . धनेश्वरी ध्रुव। प्रगति कॉलेज रायपुर एम.एड.1 st सेमेस्टर
विषय-वस्तु 1)दर्शन का अर्थ एवं परिभाषा। 2) शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा। 3) दर्शन और शिक्षा का संबंध। 4) उपसंहार।
दर्शन का अर्थ दर्शन शब्द “ दृश धातु” से बना है। जिसका अर्थ है देखना “ दृश्यते अनेन इती दर्शनम “अर्थात जिसके द्वारा देखा जाय अथवा जिसके द्वारा सत्य के दर्शन किए जाए वह दर्शन है| दर्शन शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर जीवन जगत और जगदीश्वर से संबंधित प्रश्नों का सही और सत्य उत्तर प्राप्त करने का प्रयास ज्ञान की जिस शाखा में किया जाता है वह दर्शन है|. हिंदी का “ दर्शन ” शब्द अंग्रेजी भाषा के philosophy शब्द का पर्याय है। अंग्रेज़ी भाषा के “ philosophy ”शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दो “ फिलास ”तथा “ सोफिया “से हुई है| “ फीलास ”का अर्थ है प्रेम या अनुराग और “ सोफिया “का अर्थ है विद्या का ज्ञान | इस प्रकार फिलासफी शब्द का अर्थ हुआ ज्ञान के प्रति प्रेम।
परिभाषाएं अरस्तु के अनुसार:- “दर्शन एक ऐसा विज्ञान है जो परम तत्व के यथार्थ स्वरूप की जांच करता है|”. प्लेटो के अनुसार:- “ पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।”
शिक्षा का अर्थ “ शिक्षा ”शब्द संस्कृत की शिक्ष धातु से बना है,जिसका अर्थ है सीखना , सीखाना या आरंभ करना । इस प्रकार शिक्षा का अर्थ हुआ – सीखने और सिखाने कि प्रक्रिया अथवा एक ऐसी प्रक्रिया जिससे व्यक्ति अभ्यास द्वारा सीखता है। हिंदी का “ शिक्षा ”शब्द अंग्रेजी भाषा के एजुकेशन शब्द का पर्याय है। अंग्रेजी भाषा के एजुकेशन शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के “ एडूकेटम ” शब्द से हुई है,जिसका अर्थ है शिक्षित करना,पढ़ाना सिखाने की क्रिया आदि।
परिभाषाएं सुकरात के अनुसार :-“ शिक्षा ” का अर्थ प्रत्येक मानव मस्तिष्क से अदृश्य रूप में विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारो को प्रकाश में लाना है।” अरस्तू के अनुसार:-“ शिक्षा मानवीय शक्ति का विशेष रूप से मानसिक शक्ति का विकास करती है जिससे मानव परम सत्य, शिव और सुंदर का चिंतन करने के योग्य बन सके।”
दर्शन और शिक्षा के बीच संबंध 1) दर्शन और शिक्षा का उद्देश्य :- शिक्षा के उद्देश्य जीवन के उद्देश्यों पर आधारित होते हैं परंतु जीवन के उद्देश्य में एकरूपता नहीं होती उनमें व्यक्तिगत भिन्नता होती है इसके परिणाम स्वरूप शिक्षा के उद्देश्यों में भी अंतर होता है देश काल समय परिस्थिति विचारों के अनुसार जो जीवन जीवन के उद्देश्य होते हैं वहीं शिक्षा के उद्देश्य भी बन जाते हैं| परंतु जीवन के उद्देश्यों का निर्धारण दर्शन के द्वारा ही किया जाता है। 2) दर्शन और पाठ्यक्रम :- शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यक्रम का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है यदि पाठ्यक्रम का नियोजन व्यवस्थित रूप से होता है तो शिक्षा अपने उद्देश्य में प्राप्त करने में सफल होती है| पाठ्यक्रम के निर्धारण में दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है ।दर्शन विभिन्न दार्शनिक विचार धाराओं का संतुलित अध्ययन कर एक संतुलित विचारधारा की खोज करता है और पाठ्यक्रम का निर्माण करता है|
3) दर्शन और शिक्षण विधियां:- दर्शन का शिक्षा विधियों से घनिष्ठ संबंध है| जीवन के आदर्शों की प्राप्ति के लिए किस विधि का प्रयोग किया जाए यह दर्शन का विषय है दर्शन शिक्षण का लक्ष्य भी बतलाताहै ।दर्शन प्राचीन प्रथा प्रचलित शिक्षण विधियों के गुण दोषों की खोज करता है ।और उनके गुण दोषों से बचने के लिए निर्देश देता है| नए शिक्षण विधियों का निर्माण भी करता हैं। 4) दर्शन और पाठ्य पुस्तकें:- दार्शनिक विचारों का प्रभावी पाठ्य पुस्तकों पर भी पड़ता है पुस्तकों के माध्यम से ही बालकों में वांछित आदर्शों के प्रति श्रद्धा की भावना उत्पन्न की जा सकती है| इसलिए पुस्तकों का चयन करते समय यह देखना आवश्यक है कि समकालीन विचारों और आदर्शों के अनुकूल है अथवा नहीं पाठ्य पुस्तकों का निर्माण दार्शनिक सिद्धांतों और आदर्शों पर ही आधारित है|
5) दर्शन और शिक्षक:- शिक्षा राष्ट्र की जड़ है और शिक्षक शिक्षा प्रणाली का प्रमुख अंग है शिक्षण की सफलता शिक्षक की योग्यता पर निर्भर करता है बालक के ऊपर शिक्षक का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है प्रत्येक शिक्षा के अपने निश्चित विचार सिद्धांत मान्यताएं और आदर्श होते हैं चाहे वह आदर्शवादी हो या निराशावादी सकारात्मक हो या नकारात्मक और भौतिकवादी हो या आदर्शवादी शिक्षक के इन आदर्शों का विद्यार्थी और शिक्षक समस्याओं शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण अनुशासन शिक्षा प्रणाली विद्यालय की सामाजिक व्यवस्था आदि पर गहरा प्रभाव पड़ता है शिक्षक की या विचारधारा और आदर्श दर्शन से ही निकलते हैं| इसलिए दर्शन की सहायता के अभाव में शिक्षक का कार्य नहीं चल सकता|
6) दर्शन और मापन:- जिस प्रकार दर्शनी शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम शिक्षण विधि आदि को प्रभावित किया है उसी प्रकार शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण अंग मापन को भी प्रभावित किया है| लिं डक्विस् ट ने मापन पर दर्शन के गहन प्रभाव को इन शब्दों में व्यक्त किया है ,:- यदि शैक्षिक मापन को अधिक प्रभावशाली कार्य करना है तो मैं आपको को केवल तकनीकी नहीं होना चाहिए जब तक मापन की प्रयत्न के पीछे दर्शन नहीं होगा तब तक उनका कार्य प्रभावपूर्ण और मूल्यवान नहीं होगा|. 7) दर्शन और विद्यालय :- विद्यालय के बाह्य रूप के विषय में भी दर्शन ही विचार करता है ।आदर्शवादी विद्यालय के बाह्य पक्ष की अपेक्षा आंतरिक रुप को सौंदर्य पूर्ण और सांस्कृतिक दृष्टि से उत्तम बनाने पर बल देता है प्रकृति वादी ईट और गारे से बने हुए सुसज्जित विद्यालय भवनों को महत्व न देकर प्रकृति के सुरम्य वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने पर बल देता है प्रयोजनवादी संपूर्ण सुविधाओं से युक्त विद्यालय भवनों का निर्माण करना चाहते हैं |
उपसंहार उपरोक्त विवरणों से हमे यह स्पष्ट होता है कि दर्शन और शिक्षा दोनों एक दूसरे पर आश्रित है। दोनों में घनिष्ठ संबंध हैं। रॉस का यह कथन पूर्ण सत्य है कि दर्शन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पक्ष है दर्शन का प्रभाव शिक्षा पर और शिक्षा का प्रभाव दर्शन पर प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता हैं। दर्शन की सहायता के बिना शिक्षा को पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती ।ठोस दार्शनिक आधार के बिना शिक्षा व्यवस्था या शिक्षा का ढांचा निर्मित नहीं किया जा सकता ।एक को दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता|