जूझ - आनंद यादव.pptx a great ppt about study supe r cool
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Aug 29, 2025
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Added: Aug 29, 2025
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जूझ - आनंद यादव पुस्तक – वितान ,हिंदी कक्षा -12 वीं , NCERT जन्म : 30 नवम्बर 1935 जन्म स्थान : कागल, महाराष्ट्र आनंद रतन यादव मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास झोंबी के लिए उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।जूझ इनका बहुचर्चित आत्मकथात्मक उपन्यास है।(मूलतः मराठी)। निधन – 2016
पाठ का सार मराठी भाषा के जाने-माने कथाकार डॉ. आनंद यादव के अत्यंत प्रसिद्ध एवं चर्चित उपन्यास से यह अंश लिया गया है। उन्होंने अपना उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में लिखा है। इसमें लेखक ने अपनी किशोरावस्था में जिस ग्रामीण जीवन को देखा और जिया है, उसके यथार्थ को ही अपने उपन्यास में प्रस्तुत किया है।
आनंद पढ़ना चाहता था, परंतु उसके पिता को पढ़ाने में कोई रुचि न थी। आनंद के पिता ने उसे स्कूल जाने से मना कर दिया। लेकिन पढ़ने की तीव्र इच्छा ने उसे जीवन का एक उद्देश्य दे दिया। उसने विद्यालय जाने के लिए माँ के मदद से पिता पर वहां के एक प्रतिष्ठित जमींदार से दबाव उलवाया। पिता की सभी शर्तें मानी और उनका पालन किया। वह विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में जाता और पानी देता। वह ढोर भी चराता। स्कूल में उसे कुछ लड़के तंग करते पर वह उनसे डरकर स्कूल से भागा नहीं। परेशानियों का सामना करता रहा। उसने हिम्मत नहीं हारी, पूरे आत्मविश्वास के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा और सफल हुआ।
लेखक को मराठी के अध्यापक बड़े आनंद के साथ पढ़ाते था। वह भाव छंद और लय के साथ कविताओं का पाठ करता था। बस तभी लेखक के मन में भी यह विचार आया कि क्यों न वह भी कविताएँ लिखना शुरू करें। खेतों में काम करते-करते और भैंसे चराते-चराते उसे बहुत-सा समय मिल जाता था। इस कारण लेखक ने कविताएँ लिखनी आरंभ कर दी और अपनी सारी कविताओं को वह मराठी के अध्यापक को दिखाता था ताकि उसकी कमियों को दूर किया जा सके। लेखक बताता है कि पढ़ाते समय वे स्वयं में रम जाते थे। उनका कविता पढ़ाने का अंदाज बहुत अच्छा था। सुरीला गला, छद की बढ़िया लय-ताल और उसके साथ ही रसिकता थी उनके पास। पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अनेक अंग्रेजी कविताएँ भी कंठस्थ थीं। पहले वे एकाध कविता गाकर सुनाते थे-फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते। उसी भाव की किसी अन्य की कविता भी सुनाकर दिखाते। वे स्वयं भी कविता लिखते थे।
लेखक बताता है कि कविताएँ पढ़ते हुए अथवा कविताओं के साथ खेलते हुए उसे दो बड़ी शक्तियाँ प्राप्त हुई। पहले लेखक को पशु चराते व खेत पर काम करते हुए अकेलापन और ऊबाऊपन महसूस होता था लेकिन कविताएँ पढ़ने से लेखक का यह ऊबाऊपन बिलकुल दूर हो गया। लेखक अपने आप ही खेलने लगा। लेखक को ऐसा लगने लगा कि यदि वह अकेला रहे तो ही अच्छा है क्योंकि अकेले रहने से वह ज्यादा कविताएँ कर सकता था। उसे कविता गाना आ गया। अब वह काव्य पाठ करते-करते नाचने-गाने लगता। उसे लय तुकबंदी और छंद का ज्ञान होने लगा। गाने के साथ-साथ अभिनय करना भी लेखक सीख गया। कविता पाठ ने लेखक को न केवल श्रेष्ठ कवि बना दिया बल्कि उसकी काव्य प्रतिभा को कई लोगों ने पहचाना।
दत्ता जी राव देसाई एक प्रभावशाली चरित्र के रूप में हैं तर्कशील – दत्ता जी राव तर्क के माहिर हैं। लेखक की पढ़ाई के संबंध में वे लेखक के पिता से तर्क करते हैं। जिसके कारण वह उसे पढ़ाने की मंजूरी देता है। मददगार – दत्ता जी राव लोगों की मदद करते हैं। वे लेखक की पढ़ाई का खर्च भी उठाने को तैयार हो जाते हैं। प्रेरक – दत्ता साहब का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है। वे अच्छे कार्यों के लिए दूसरों को प्रोत्साहित भी करते हैं। इसी की प्रेरणा से लेखक का पिता बेटे को पढ़ाने को तैयार होता है। समझदार – दत्ता बेहद सूझबूझ वाले व्यक्ति थे। लेखक उसकी माँ की बात का अर्थ वे शीघे ही समझ जाते हैं। वे लेखक के पिता को बुलाकर उसे समझाते हैं कि वह बेटे की पढ़ाई करवाए। वह माँ-बेटे की बात को भी गुप्त ही रखता है।
कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक ढोर ले जाते समय, खेत में पानी डालते और अन्य काम करते समय अकेलापन बुरा लगता था। कविता के प्रति लगाव हो जाने के बाद वह खेतों में पानी देते समय, भैंस चराते समय कविताओं में खोया रहता और चाहता कि वह अकेला ही रहे। अकेलेपन से उसे ऊब न होती। अब उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा था। वह अकेले में कविता गाता, अभिनय व नृत्य करता था।
शब्दार्थ गड्ढे में धकेलना – पतन की ओर ले जाना। कोल्हू – गन्ने का रस निकालने वाला यंत्र। कंडे –पशुओं के गोबर से बने उपले। तड़पन – पीड़ा। बाड़ा – अहाता। जीमने – खाना खाने। जिरह –बहस। हजामत बनाना – फटकारना। नापास – अनुत्तीर्ण। बालिस्टर – बैरिस्टर, वकील। रोते-धोते – जैसे-तैसे। खिल्ली उड़ाना – मजाक बनाना। मटमैली – गंदी। मैलखाऊ – जिसमें मैल दिखाई न दे दहशत – डर, भय। ठोंक देना – पिटाई करना। भान – आभास। यति-गति – कविता में रुकने व आगे बढ़ने के नियम। आरोह-अवरोह – स्वर को भावानुसार कम या ज्यादा करना।
प्रश्न परिचर्चा 1 – ‘जूझ’ का क्या अर्थ है ? उत्तर-संघर्ष 2 उपन्यास 'जूझ' किस तरह का उपन्यास है ? उत्तर- आत्मकथात्मक 3 लेखक ने पाठ का शीर्षक "जूझ" क्यों रखा? उत्तर-क्योंकि लेखक बचपन से ही पग-पग पर समस्याओं से जूझ रहा था 4 आनंदा किस कक्षा में दुबारा पढ़ता है ? उत्तर- पांचवीं में 5 आनंदा की माँ किसे ‘बरहेला सूअर’ की उपमा देती है ? उत्तर-लेखक के पिता को
6 आनंदा की कक्षा का मॉनीटर कौन था ? उत्तर – वसंत पाटिल 7 सौंदलगेकर किस विषय के शिक्षक थे ? उत्तर- मराठी 8 इस पाठ में दादा' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उत्तर- लेखक के पिता के लिए 9 दादा के सामने लेखक को क्या कहने की हिम्मत नहीं होती थी? उत्तर- कि मैं पढ़ने जाऊँगा | 10 लेखक को पढ़ाने के लिए किसने दादा से सिफारिश की ? उत्तर- दत्ताजी राव देसाई सरकार ने
11 लेखक किसकी प्रेरणा से कवि बन गए? उत्तर- मराठी मास्टर सोंद्लगेकर की 12 लेखक के सर्वप्रिय अध्यापक कौन थे? उत्तर-मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर 13 लेखक के पिता ने उसे विद्यालय भेजने के लिए क्या शर्त रखी ? पाठशाला जाने से पहले ग्यारह बजे तक खेत में काम करना होगा तथा पानी लगाना होगा। ख. अगर किसी दिन खेत में ज्यादा काम होगा तो उसे पाठशाला नहीं जाना होगा। ग. छुट्टी होने के बाद घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटा भर ढोर चराना होगा। घ. ये सभी उत्तर- ये सभी 15 गणित पढ़ाने वाले शिक्षक का क्या नाम था ? उत्तर – मंत्री 14 अपनी ही पाठ शाला मुझे ‘चोंच मार रही थी का अर्थ है - उत्तर- तिरस्कार/उपेक्षा करना