पर्दा कहानी यशपाल (Prdaa khaanii

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About This Presentation

PPT for students of Hindi Literature and also for those preparing for competitive exams.


Slide Content

श्री शंकराचार्य महाविद्यालय भिलाई (छ.ग.) हिंदी विभाग परदा (कहानी ) कहानीकार - यशपाल द्वारा डॉं.अर्चना झा विभागाध्यक्ष श्री शंकराचार्य महाविद्यालय जुनवानी भिलाई (छ.ग .)

कहानी की रूपरेखा यशपाल की परदा कहानी हिंदी सहित्य की एक श्रेष्ठ सामाजिक कहानी है जिसमें उन्होंने एक ऐसे मध्यवर्ग के एक परिवार की कहानी को प्रस्तुत किया है जो समाज के सामने अपनी पुरानी ख़ानदानी इज्जत को बनाए रखना चाहता है।   अब यह परिवार पहले की तरह अमीर नहीं रहा , घर-परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर्ज लेना पड़ता है। लाख कोशिश करने के बाद भी कर्ज की रकम बढ़ाती जाती है लेकिन पीरबख्श अब भी यही चाहता है कि घर की औरतें घर की दहजीज के भीतर ही रहें क्योंकि उनके यहाँ घर की औरतों का बाहर निकलना अच्छा नहीं माना जाता। लेखक ने झूठी इज्ज़त   के नाम पर दिखावा करने और सफेद पोशी के परदे के पीछे छिपी दीनता और दरिद्रता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।

कथानक             इसके कथानक की जब हम बात करते हैं तो यह कहानी चौधरी पीरबख्श के परिवार की है जिनके दादा अपने समय में चुंगी के दरोगा थे और उन्होंने अपना मकान भी बनवाया था , किंतु दो ही पीढ़ियों में उनके वंशज पीरबख्श अत्यंत निर्धन हो गए। कहानी का आरंभ पीर बख्श के परिवार से होता है। उसके पश्चात जीवन की विषम परिस्थितियों से जूझते हुए पीरबख्श के चरित्र के रूप में कथानक का विकास होता है। खान से लिया गया उधार न चुका सकने के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जो भयानक    का रूप धारण करती है।   इसे कहानी के विकास की अवस्था की दृष्टि से   संघर्ष की अवस्था कहा जा सकता है। परदा कहानी में चरम सीमा की अवस्था तब आती है जब पीरबख्श के द्वारा कर्ज का पैसा न लौटाने पर   खान क्रोध से पीरबख्श के घर की ड्योढ़ी पर लटका हुआ टाट का फटा पुराना , गला हुआ पर्दा तोड़कर आंगन में फेंक देता है। उस समय का मार्मिक और प्रभावशाली दृश्य पाठक पर गहरे अवसाद की अमिट छाप छोड़ देता है। इस प्रकार कहानी का कथानक अत्यंत संक्षिप्त है।

चौधरी पीरबख्श एक अच्छे घराने के आदमी है पर धीरे धीरे बहुत तंगी   में आ जाते हैं घर की इज्जत ढकने के लिए किवाड़ों   पर पर्दा लगाए रखते हैं , एक बार मुसीबत में आकर वे एक खान से थोड़े से रुपए कर्ज ले लेते हैं , लेकिन वे समय पर कर्ज चुका नहीं पाते क्योंकि परिवार के बढ़ने से धीरे-धीरे पीरबख्श की आर्थिक हालत बहुत   माली हो जाती है। घर में खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। घर की   मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु धीरे धीरे   घर के गहने और दूसरी बहुमूल्य वस्तुओं को बेचा जाने लगा। घर की महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी। इसलिए आसपास के लोगों को पीरबख्श की माली हालत की कोई खबर नहीं थी। पीरबख्श की खानदानी इज्ज़त को घर की ड्योढ़ी पर पड़ा परदा बचाये रखता है। लेकिन जब खान क्रोध से किवाड़ों पर टंगे परदे को खिंचता है जैसे ही परदे की डोर टूटती है वैसे ही चौधरी जमीन पर गिर पड़ते है ।परदा हटने पर वहाँ उपस्थित सभी लोग शर्म से अपनी नजरे झुका लेते है ।पंजाबी खान का कठोर हृदय भी पिघल जाता है और परदा वहीं छोड़े वहाँ से " लाहौल बिला ..." कहकर लौट जाता है। स्त्रियां घर के भीतर अर्धनग्न अवस्था में सिकुड़कर खड़ी रहती है।

पात्र और चरित्र चित्रण कहानीकार कहानी की कथावस्तु को ध्यान में रखकर पात्रों को चित्रित करता है । ये पात्र कहानी में व्याप्त युगीन समस्याओं की और संकेत करते हुए कहानी को जीवंतता प्रदान करते है। संपूर्ण कहानी का केंद्रीय चरित्र पीर बख्श है। उसका दूसरा विरोधी चरित्र है- खान का , खान के माध्यम से लेखक ने चौधरी पीर बख्श के चरित्र की विषमताओं को अधिक उभारने का प्रयास किया है , खान की कठोरता , निर्भयता , सूदखोरी की आदत तथा वाणी की कटुता एक प्रकार से समाज के संपूर्ण शोषक , पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। चौधरी पीर बख्श का चरित्र चित्रण बहुत ही सजीव हुआ है , उनका चरित्र किस प्रकार अपने घर परिवार के संस्कार से प्रभावित होता है और वह अपनी इज्जत की झूठी भावना से परेशान होते हैं। इसका बहुत ही वैज्ञानिक चित्र यहां खींचा गया है। वस्तुतः पीर बख्श का चरित्र भारतीय समाज के करोड़ों निम्न मध्यवर्गीय लोगों की दीन-हीन दिशा की ओर संकेत करता है। परदा कहानी के पात्र व्यक्तिगत न होकर वर्गगत हैं। इस कहानी के चरित्र चित्रण की यह विशेषता है कि लेखक ने पात्रों के बाहरी व्यक्तित्व और स्वभाव के साथ-साथ अंतरग चित्र   को भी बड़ी सजीता से अंकित किया है |

कथोपकथन   परदा कहानी में कथा कल्पना का बहुत अल्प प्रयोग हुआ है। कहानी का अधिकांश भाग वर्णनात्मक है। वर्णनात्मक होने के कारण परदा कहानी के संवादों का भी कम विकास हुआ है ।परंतु जहां कहीं भी संवाद आए हैं वह अत्यंत स्वाभाविक और पात्र अनुकूल बन पड़े हैं। जैसे-   खान आग बबूला हो रहा था- "पैसा नहीं देने के वास्ते छिपता है......**** खान क्रोध में डंडा फटकार कर कह रहा था-   पैसा नहीं देना था, लिया क्यों?.... तनख्वाह किधर में जाता ....। इस तरह संवाद नाम मात्र के होते हुए भी रोचक और पात्रों के अनुकूल हैं।

देशकाल परिस्थिति और वातावरण देशकाल और वातावरण की दृष्टि से परदा कहानी में चित्रित चौधरी परिवार की आर्थिक दुर्दशा केवल उनकी ही नहीं है बल्कि समस्त मध्यम वर्गीय परिवार की है । आज सभी मध्यमवर्गीय परिवार में अभाव के कारण तनाव का माहोल बना रहता है । नये पुराने के बीच संघर्ष होता है , आपसी रंजिशे उत्पन्न होती है। पैसों के अभाव के कारण चौधरी का परिवार अलग -अलग स्थानों पर रहने चले जाते है , कहानी में पीरबख्श अपने परिवार के साथ गंदे से मुहल्ले में रहने के लिए बाध्य है । आर्थिक परिस्थिति खराब होने के घर के सामान बेचने पड़ते है। औरतो के शरीर पर नाम मात्र कपडे है। ऐसी दशा में दरवाजे पर लटका परदा ही पीरबख्श की आबरू बचाता है। " बैठक न रहने पर भी घर की इज्जत का ख्याल था इसलिए परदा बोरी के टाट का नही , बढ़िया किस्म का रहता।" इस प्रकार परदा की एक प्रतिक के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किया गया है ,

पूरी कहानी में हम देखते है कि किस प्रकार लेखक ने परदे के महत्व को शुरू से अंत तक बताया है।परदा टूटने का डर चौधरी परिवार में सभी को है। पूरी घटनाओं में सभी को है। पूरी घटनाओं का यदि मूल्यांकन करें तो हम पाते है कि लेखक ने परदा कहानी में जिस वातावरण को बताया है वह कहानी में सबसे महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है। पीरबख्श का गंदे मुहल्ले में रहना , वहाँ की गंदगी , बदबू आदि तरह की समस्याओं से कहानी के माध्यम से समाज का कड़वा सच सामने आता है। वर्तमान के मध्यमवर्गीय समाज की मजबूरी तनाव , दर्द की जो अभिव्यक्ती आर्थिक दुर्दशा के कारण हुई है वह युगानुरूप है। आज मँहगाई आसमान छू रही है , परिवार में एक कमानेवाला और पूरे परिवार को पालना इसकी सच्ची तस्वीर कहानी में दी गई है ।

भाषा शैली परदा कहानी की सफलता का रहस्य यह है उसकी सहज स्वाभाविक भाषा भाषा की स्वाभाविकता के कारण ही कहानी यथार्थ के अधिक निकट और मार्मिक बन पड़ी है कहानी की पृष्ठभूमि मुसलमानी जीवन से संबंधित है अतः लेखक में कथा का वर्णन करते समय और वातावरण का चित्रण करते समय स्थिति और पात्रों के अनुकूल ही मुसलमान परिवारों में प्रयोग होने वाली उर्दू शब्दावली का अर्थात् भाषा का प्रयोग किया है जैसे महकमा ओहदा माहवार कुनबा इज्जत आदि भाषा प्रयोग में यशपाल में पात्रों की अनुकूलता का भी विशेष ध्यान रखा है पीरबख्श की बातों में नम्रता और गंभीरता है जबकि खान की भाषा में पठानों के स्वभाव के अनुकूल अटपटी और बिगड़ी हुई शब्दावली की अधिकता है जिसमें कठोरता और उद्दंडता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है| कहानी की शैली वर्णनात्मक और चित्रात्मक है यद्यपि कथात्मक शैली नीरस होती है किंतु भाषा की सरलता स्वाभाविकता के कारण परदा कहानी की शैली मर्मस्पर्शी बन गई है|

कहानी का उद्देश्य परदा कहानी में लेखक ने आर्थिक विषमता गरीबी अभाव से ग्रस्त जीवन जीने के लिए असहाय व मजबूर लोगो का विश्लेषण है । पंजाबी खान जैसे शोषणवादी प्रवृत्ति वाले समाज के शोषक है , जो गरीबों को प्रताड़ित करते है । एक के बदले चार हिसाब लगाकर पूँजीवाद दिन-ब-दिन अमीर बनता जाता है। पीरबख्श जैसे लोग कर्ज चुकाते-चुकाते भिखारी बन जाते है। घर के सारे सामान बिक जाने पर भी ये उच्च वर्ग के लोगो को मानवता का भी ख्याल नही आता है । इस प्रकार लेखक का उद्देश्य गरीबो अभाव की जिन्दगी को दर्शाते हुए पूँजीपतियों और पंजाबी खान जैसे लोगों की शोषणवादी प्रवृत्ति के खिलाफ विद्रोह के व्यक्त किया है । अपने क्रांतिकारी विचारों से पाठकों के सामने समाज का कटु सत्य रखा है ।

निष्कर्ष कहानी में चौधरी पीरबख्स की आर्थिक परिस्थिति का चित्रण है । लेखक ने कहानी के माध्यम से समाज पर करारा व्यंग्य कसा है कि किस प्रकार पंजाबी खान और जमीदार और सभी उच्च वर्ग के व्यक्ति जो गरीबों पर शोषण करते है , और उपर से नकाब लगाकर रखा है कि कोई उसे पहचान न सके पंजाबी खान इसी तरह का व्यक्ति है। जो बिना किसी सामान के लोगों को उधार देता है। बाद में पैसे समय पर न मिलने पर किसी भी हद तक गुजरता है । इस प्रकार कहानी में चौधरी पीरबख्श के माध्यम से उच्च वर्ग की शोषणवादी प्रवृत्ति को बताया गया है।

संदर्भ ग्रंथ यशपाल के कथा-साहित्य में सामाजिक चेतना - सरोज बजाज यशपाल की कहानियाँ : कथ्य और शिल्प - चन्द्रभानु सीताराम सोनवणे यशपाल की कहानियाँ : समीक्षात्मक मूल्यांकन - वी. के. राजन यशपाल की कहानी-कला - कुमारी अनु विग https ://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/93217/9/09_chapter%205.pdf https ://old.mu.ac.in/wp-content/uploads/2020/10/FYBA-Paper-No.-I-Hindi-Ancillary.pdf http:// hindsaa.blogspot.com/2019/12/parada-kahani.html https://www.youtube.com/watch?v=KPkF7Xp2APA https://www.youtube.com/watch?v=bVSHY__ 5wy8-