सरस्वती बालिका विद्या मंदिर रामबाग बस्ती प्रस्तुतीकरण:– आचार्य स्वामी नाथ त्रिपाठी विषय:– हमारा परिवार भारतीय संस्कृति का केंद्र कैसे बने?
हमारे परिवार भारतीय संस्कृति के केंद्र कैसे बने?
इस पर चिंतन करने से पहले हमें यह जानना निहायत जरूरी है कि परिवार क्या है ? इसकी संरचना , संगठन और कार्य क्या है ? और संस्कृति क्या होती है ? परिभाषा : – परिवार दो शब्दों से मिलकर बना है परि + वार । इसका शाब्दिक अर्थ है कुटुम्ब ।
परिवार समाज का सबसे महत्वपूर्ण संस्थान है जो हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । यह समाज में सभ्यता और संस्कृति के प्रति आदर्श विचारों का स्रोत होता है।परिवार एक ऐसा स्थान है जहां हम सीखते हैं , प्रेम करते हैं,और संघर्षों का सामना करते हैं । यह हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक विकास का मूल आधार बनता है ।
परंपरागत भारतीय परिवार में , परिवार के सदस्य संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतिनिधि होते हैं।परिवार के व्यक्ति अपने व्यवहार , भाषा , और रीति-रिवाजों के माध्यम से संस्कृति को आगे बढ़ाते हैं।वे अपने संबंधों और संवाद के माध्यम से संस्कृति के मूल्यों और धारणाओं को बचाते और प्रचारित करते हैं । परिवार के सदस्य अपने सामाजिक और पारिवारिक जीवन में संस्कृति के महत्व को साकार करते हैं । उनका संगठन , सहयोग , और साझेदारी संस्कृति के साथ जुड़े रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
परिवार ही संस्कृतियों,रूढ़ियों , परंपराओं , रीति – रिवा जो का वाहक होता है । वह परिवार ही होता है जो समाज से घनिष्ठता के साथ जुड़ा होता है । समाज रूपी जो परिवेश है परिवार उसी का एक अवयव है । किसी भी देश , समाज की जो मान्यताएं होती हैं वह परिवार रूपी बीज से ही जीवित रहती हैं अर्थात पुष्पित और पल्लवित होती रहती हैं ।
संस्कृति की परिभाषा :– किसी समाज के लोगों के विचारों , रीति रिवाजो , सामाजिक दृष्टिकोण और कार्यों को दर्श ना ही संस्कृति है । संस्कृति शब्द की उत्पत्ति कृ ( करना ) धातु से हुआ है ।
सारांश रूप में संस्कृति एक प्रवाह है जिसमें हर समाज , हर जाति , हर समुदाय के चिंतन धारणाएं , मान्यताएँ , विचार आदि एकाकार रूप में प्रवाहित होते हैं । संस्कृत सामाजिक होती है अगर उसमें यदि सामाजिकता नहीं तो हम उसे संस्कृति नहीं कह सकते ।
समाज में परिवार का क्या अर्थ है :– जिस प्रकार पदार्थ या द्रव का मूल गुण वाहक सबसे छोटी इकाई ‘ अणु ’ होता है । उसी प्रकार परिवार समाज का एक अणु होता है ।
परिवार को संस्कृति का केंद्र कैसे बनाएं :– यदि हमें परिवार को संस्कृति का केंद्र बनाना है तो हमें परिवार की अभिधारणा को पुष्ट करना पड़ेगा । देश के महापुरुषों , संतो , साधुओं के बारे में सम्यक जानकारी परिवार के सदस्यों को होनी चाहिए । जैसे :– वीर सावरकर , पंडित दीनदयाल उपाध्याय , डॉक्टर हेडगेवार , महर्षि वाल्मिकी , सती अनसूया , महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी महाराज,रानी लक्ष्मी बाई आदि ।
इन सभी महापुरुषों , महान स्त्रियों के चिंतन , कर्तव्यों , विचारों से परिवार को परिचित कराना पड़ेगा । विवेकानंद , रसखान , गुरु नानक , तुलसीदास के सर्व ग्राह्य विचारों को परिवार से परिचित कराना होगा । परिवारों को दयालु,विनम्र मानवतावादी , संस्कारी होना चाहिए तभी वह एक संस्कृति संवाहक हो सकता है ।
परिवार शिक्षित , सभ्य , खुले विचारों वाला होना चाहिए । परिवार में नारियों का सम्मान होना चाहि ए, बच्चियों को समानता का अधिकार मिलना चाहिए । समाज में ऊंच – नीच , जाति – पाति , छुआछूत आदि दुर्गुणों से रहित करके परिवार को उत्कृष्ट बनाना होगा ।