मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्यो�...
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है।
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Added: Oct 11, 2014
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पौ�ष ग्रंि Prostate
मनुष्य के शरीर में पौ�ष ग्रंिथ या प्रोस्टेट ग्रंिथ ही एक मात्र अंग है िजसे पु�षा
माना जाता है, क्योंिक पु�ष क� परम श्रे� धातु शुक्र या वीयर् पौ�ष ग्रंिथ में ही बनती
क� सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीयर ् सबसे श्र े� मानी ज केवल वीयर् ही
शरीर का अनमोल आभूषण है, वीयर् ही शि� ह, वीयर् ही सुन्दरता है। शरीर में वीयर् ही प
वस्तु है। वीयर् ही आ ँखों का तेज, वीयर् ही �ा, वीयर् ही प्रकाश, वीयर् ही वेद हैं और वीर ह
ब्र� । वीयर् का स ंचय करना ही ब्र�चयर् वीयर् ही एक ऐसा त�व ह, जो शरीर के प्रत्य ेक अ
का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सु�ढ़ बनाता है। वीयर् ही आन-प्रमोद का सागर है। िज
मनुष्य में वीय र् का खजाना है वह दुिनया के सारे आ-प्रमोद मना सकता है और सौ वषर्
जी सकता है। वीयर् में नय ा शरीर पैदा करने क� शि� होती है। जब तक शरीर में वीयर् होता
तब तक शत्रु क� ताकत नहीं है िक वह िभड़ , रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीयर
बनने क� प्रिक्रया भी बड़ी लम्बी और जि, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न हो इस बारे में
श्री सु श्रुताचायर् ने िलख:
रसाद्र� ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजाय ।
मेदस्यािस्थः ततो मज्जा मज्: शुक्रसंभ ।।
कहते हैं िक वीयर् बनने में कर30 िदन व 4 घंटे ल ग जाते हैं। वै�ािनक लोग कहते हैं ि32 िकल ोग्राम भोजन स700 ग्राम र
बनता है और 700 ग्राम र� से लगभ20 ग्राम वीय र् बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलब"One who stands
before" यािन "Protector" या "Guardian" अथार्त यह पूरे शरीर का संर �क या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्
बात यह है िक सन् 2002 में फेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टिमर्नोलोजी ने ि�य ों क� पेरायूरीथ ्रल ग्लेंड्स या स्क ेनीज
(Female Paraurethral Glands or Skene's Glands) को प्रोस्टेट क� प्रित�प मान िल य ा है और इसे फ�मेल प्रोस
नाम दे िदया है। रित िनष्पि�(Orgasm) के समय ि�यों क� य ोिन से िनकलने वाले स्खलन क� संरचना भी प्रोस्टेट के स्
समान ही होती है। इसमें भी उसी मात्रा मे.एस.ए. और फ्रुक्टभी होते हैं।
संरचना
पौ�ष ग्रंिथ अखरोट के आकार क� बा�स्र(Exocrine) ग्रंि
होती है जो पु�ष शरीर क� मध्य रेखा में मूत्राशय के ठीक
िस् थत होती है। इसका वजन लगभग20 ग्राम और लम्ब3
सै .मी., चौड़ाई 4 सै .मी. तथा गहराई 2 सै .मी. होती है। यह ग्रंि
जघन सं घानक (Pubic Symphysis) के पृ� मे, पेरीिनयल
म ेम्ब्रेन के , मूत्रा (Urinary Bladder) के नीचे और
मलाशय (Rectum) के आ गे अविस्थत रहती है। इसका आधार
मू त्राशय के सम्पकर् में रहता है और यह नीचे (Apex) पर
खत्म होकररेशेदार बा� मूत्रमाग� संकोिचन(Striated
External Urethral Sphincter) से िमल जाती है। संकोिचनी
एक ल म्ब�प पेशी ऊतक से बनी एक नली होती है जो मूत्रन
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और पौ�ष ग्रंिथ को लपेटे रहती है।
पौ�ष ग्रंिथ कोले, ऐल ािस्टन और िस्नग्ध पेिशयों से बने आवरण में बंद रहती है। य , पीछे और पाष्वर् में तीन अलग अ
आवरणी (Fascia) से िल पटी रहती है। अग्र और अग्रपाष्व� आ(Anterior and Anterolateral Fascia) इसके खोल से
िचपक� रहती है। िश� (Penis) क� गहन पृ� िशरा (Deep Dorsal Vein) और उसक� शाखाएं यहीं से गुजरती है। पाष्वर्
आवरणी लेवेटर आवरण ी से जुड़ी रहती है। डेट् र�जर पेशी के बाहरी तथा लम्बे रेशे भी खोल के तं तुपेशीय ऊतकों म ें समा जाते
इसका िपछला िहस्सा �रट्रोवेजाइक(Denonvilliers) आवरण ी से िचपका रहता है।
�रट्रोवेजाइकल आवरण(RrectoVesical Fascia) पौ�ष ग्रंिथ क� पृ� सतह और मलाशय क� अग्र तरह के बीच एक संय
ऊतक (Connective Tissue) है। यह आवरणी पौ�ष ग्रंिथ और शुक्र पुिटseminal vesicles के पृ� सतह को भी ल पेटे
रहती है और नीचे जाकर मूत्रनली के नीचे बा� मूत्रमाग� संकोिचनी के स्तर पर मीिडयन फाइबर रेफे के �प में खत्म हो
ग्रंिथ के अग्र भाग को प्यूबाप्रोस्टे(PuboProstatic Ligaments) और अधो भाग को बा� मूत्रमाग� संकोिचनी तथ
पेरीिनयल म ेम्ब्रेन सहारा देते हैं। प्य ूबाप्रोस्टेिटक बंध प्यूबावेजाइकल बंध का ही ि
पौ�ष ग्रंिथ लेवेटर ऐनाई पेश(Levator Ani Muscle) के प् यूबोरेक्टल िहस्से से िघरी र हती है। शुक्र पुिटकाएँ मूत्राशय के आ
नीचे तथा पौ�ष ग्रंिथ के ऊपर अविस्थत रहती हैं6 सै.मी. लम्बी होती हैं। दोनों शुक्र पुिटकाओं क� निल(Ductus
Deferens) िमल कर स्खलन निलका( Ejaculatory Duct) बन ाती हैं जो पौ�ष ग्रंिथ में प्रवेश करत
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सू�म संरचना
सू�म संरचना के आधार पर पौ�ष ग्रंिथ को चार खण्डों में वग�कृत िकया गया
1- अग्र खण(Anterior lobe) क� सीमाओं में मोटे तौर पर अंत�रम मण्डल आता है
2- पृ� खण्ड(Posterior lobe) प�रधीय मण्डल में फैला रहता है
3- पाष्वर् खण(Lateral lobes) म ें सभी मण्डलों में फैला रहता है।
4- मध्य खण्( Median lobe) लगभग केन्द् रीय मण्डल से सम्बिन्धत
लेिकन सन् 1968 में ड. मेक नील ने रोग िव�ान क� �ि� से पौ�ष ग्रंिथ को न य े तरीके से चार मण्डलों में वग�कृत िकया
1- अंत�रम मण्डल(Transition zone)
2- केन्द्रीय मण( Central zone)
3- प�रधीय मण्डल(Peripheral
zone) और
4- अग्र तंतुपेशीय मण (Anterior
Fibromuscular Zone)
अंत�रम मण्डल में प्रोस्टेट के ग
ऊतकों (Glandular Tissue) का
10 % िहस्स होता है ल ेिकन
एडीनोकािसर्नोमा में यह ग्रंिथल ऊतको
20 % िहस्सा होता है । पौ�ष ग्रंिथ
लगभग 70% ग्रंिथल ऊतक औ30%
तंतु पेशीय ऊतक (Fibromuscular
Stroma) होते हैं।
अंत�रम मण्ड (Transition zone)
मूत्र िनस्सारक न(Urethra) पौ�ष ग्रंिथ में मूत्राशय क� ग्रीवा के स्तर से गुजरती ह�ई बाहर िनकलती है। पौ�ष ग्रंि
िस्थत मूत्र िनस्सारक नली के प्रोस्टेिटक (2.5 सै.मी.) और बाहरी िहस्से को(2 सै .मी.) को म ेम्ब्रेनस यू रेथ्रा कहते हैं।
दोनों िहस्सों को पृ� मूत्र िनस्सार(Posterior Urethera) कहते हैं। मूत्र िनस्सारक नली का प्रोस्टेिटक भा
महत्वपूणर् और फैला ह�आ होता है। प्रोस्टेिटक यूरेथ्रा क� आंत�रक परत या(Epithelium) मूत्राशय क� तरह ही अंत�र
(Transitional) कोिशकाओं से बनी होती है। िब नाइन प्रोस्टेिट क हाइपरप्लेि(Adenoma) इ सी अंत�रम स्थान पर होता ह
और यिद यह अितवधर्न काफ� बढ़ जाती है तो मूत्र मागर् में �कावट पैदा करता
अंत�रम मण्ड प्रायः दो पाष्वर् ख(Lateral Lobes) और मध्य खण्(Median Lobe) से बन ता है। प्रोस्टेिटक यूरेथ्र
िपछली सतह के मध्य में मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा तक एक लम्ब(Urethral crest) होती है िजन्हें मूत्रमागर् िशखर कह , इसके
दोनों तरफ उपवन( Sinus or Grove) होते है , िजनम ें अनेक िछद्र िस्थत होते हैं िजनसे वीयर् और अन-स्राव मूत्रनली
प्रवेश करते हैं। यूरीथ्रल क्रेस्ट सेमाइनल कोि(Seminal Colliculus या Verumontanum) पर आकर चौड़ा और
उभरा ह�आ हो जाता है, इसे शुक्र पवर्त क हते हैं। सेमाइनल कोिलकुलस के िशखर पर मध्यरेखा में एक िछद्र, िजसे पौ�ष
गुहा (Prostatic Utricle) कहते है , िजसके दोन ों तरफ छोटे लम्बे िछद्र होते हैं जहाँ स्खलन निलकाएँ खुलती
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केन्द्रीय मण(Central zone)
स्खलन निलकाओं के आसपास के �ेत्र को केन्द्रीय मण्डल कहते हैं। ग्रंथ25 % भाग इस मण्डल में आता है। लगभ
2.5% ऐडीनोकािसर्नोमा कैंसर इस मण्मे उत्पन्न होता , जो बह�त आ क्रामक होता है और प्रायः शुक्र पुिको सहज ही
िशकार बना लेता है।
प�रधीय मण्ड (Peripheral zone)
ग्रंथीय ऊतक क70% भाग इस मण्डल में आता है। पौ�ष ग्रंिथ का पृ� और पाष्वर ् िहस्सा इसक� सीमाओं में आते हैं।
इस मण्डल को अन्तर मलाशय अंगुली प�रस्पश(Per Rectal Examination) द्वारा टटोकर देख सक ते हैं। लगभग70%
ऐडीनोकािसर्नोमा इसी मण्डल से उत्पन्न होता है। प्रोस्टेट का का िचरकारी(Chronic Prostatitis) भ ी यहीं होता है।
अग्र तंतुपेशीय मण Anterior Fibro-muscular Zone (or Stroma)
इसक� सीमाओं में प्रोस्टेट के आगे के तंतुपेशीय ( 5%िहस्स) आ ते हैं। इसमें ग्रंथीय ऊतक नहीं होत
र� क� आपूितर्
प्रोस्टेट को र� क� आपूितर् मुख्यतः िनम्न म
धमनी (Inferior Vesical Artery) द्वारा होती , जो
आ ंत�रक श्रोिण धमनया Internal Iliac
(Hypogastric) Artery क� अग्र शाखा से िनकलती है
िनम्न मूत्राशय धमनी दो मुख्य धमिनयों में िव
होती है, जो मूत्राशय के आध, मूत्रनली के अंितम भा
और प्रोस्टेट को मुहैया करा ती है।
पहली शाखा को मूत िनस्सारणनली धमनी (Urethral
Artery) कहते है , जो प्रोस्टेट तथा मूत्राशय के संग
पृ�-पाष्व�य स्थान से यूरेथ्रा के लम्ब�प घड़5 और
7 बजने क� िदशा में मूत्राशय ग्रीवा क� तरफ जाती
िफर यह नीचे क� तरफ घ ूम कर अंत�रम मण्डल को र�
देती है। पौ�ष ग्रंिथ के सुदम ऐडीनोम(Benign
Prostatic Hyperplasia) को यही धमनी र� उपलब्ध करवाती है। केप्सूलर धमनी दूसरी मुख्य शाखा, यह पौ�ष ग्रंिथ के प-
पाष्व�य तल पर केवरनस नाड़ी के साथ िवचरण करती ह�ई लम्ब�प कोसे ग्रंिथ में प्रवेश कर ग्रंथीय ऊतकों को र� पह�ँच
शुक्र पुिटकाओं और शुक्रनिलयों को ऊध्वर् मूत्र(superior Vesical Artery) क� शाखा निलका धमनी (Artery of
the ductus) र� पहँचाती है।
र� का िनकास
प्रोस्टेट से र� का िनकास िश� क� पृ� िश(Deep Dorsal Vein) में होता ह , जो गहन िश� आवण� के दोनों कोप�रा केवन�ज़ा
के बीच जघन सं घानक के तोरण से िनकल कर श्रोिण में प्रवेश करती है। िफर यह पेरीिनयल मेम्ब्रेन को पार कर तीन
क्रमशः ऊप, दांई और बांई में िवभािजत होती है।
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ऊपरी शाखा प्यूब-प्रोस्टेिटक िलगामेंट्स के बीच िवचरण करती प्रोस्टेट और मूत्राशय ग्रीवा तक प्रवेश करती के
पीछे क� वसा में अग्र प्रोस्टेिटक आवण� को छेदते ह�ए पृ� ि शरा जाल से िमलती है। पृ� और पाष्वर् िशरा जालों क� मुख्य
प्रोस्टेिटक आव(Anterior Prostatic Fascia) और एंडोपेिल्वक आवण�(Endopelvic Fascia) से ढ क� रहती है। पाष्वर
िशरा जाल पीछे क� तरफ जाकर पुडेंड, ऑब्चुरेटर िशरा और मूत्राशय जाल से िमल जाती , जो अंततः इंटरनल आइिलयक
िशरा (Internal Iliac Vein) में सम जाता है।
नाड़ी और लिसका िनयंत्र
प्रोस्टेट क� स्वाय� नािड़याँ सेक्(S2-S4) से िनकल े पेरािसम्पेथेिट, इ फरेंट और िप्रगैंिग्लय ोिनक तंतुओं से बने पे
प्लेक्सस से िनकलती हैं। िसंपेथेिटक नाड़ी तं
थोरेकोमंबर (L1-L2) तल से िनकल ते हैं। पेिल्व
प्लेक्सस मलाशय के दोनो तरफ गुदा द्वार 7 सै.मी.
ऊपर अविस्थत रहता ह , इसका मध्य तल शु क्र ग्रं
के अंित म छ ोर के स्तर पर होता है।
पेिल्वक प्लेक्सस से िनक लने वाले नाड़ी तंतु केवन
प्लेक्सस से होते ह�ए प्रोस्ट ेट पह�ँचते हैं। पेरािसंपे
न ािड़यां ग्रंिथय ों का िनयंित्रत करती हैं और स्राव ब
िलए आ देश देती हैं। िस ं पेथेिटक नािड़यां प्रोस्टेट के
और स्ट्रोमा क� िस्नग्ध पेिशयों को संकुचन कर
आ देश देती हैं।
पुडेन्डल नाड़ी धार ीदार संकोिचनी पेिशयों और लेवेट
ऐनाई का िन यंत्रण करती है। िप्रप्रोस्टेिटक सं
(PreProstatic Sphincter) और मत्राशय ग्र(या
आंत�रक संकोिचनी) अल्फ-ऐड्रीनि जर्क िनयंत्रण में
है।
प्रोस्टेट का लि-िनकास ऑब्चुरेटर और लेवेटर
वािहकाओं द्वारा होता है। ये बाहरी आइिल, िप्रसेक
और पेराएओ िटर्क लिसका ग्रंिथयों से भी जुड़ी रहती हैं
मूत्राश
मूत्राशय उदरावरण से बाहर सघन जंघानक और प्यूिबक रेमाई के पीछे एक थैली के समान संरचना , जो िस्नग्ध पेिशय ों से ब
होती है और अन्दर क� सतह पर अंत�रम उपकला( Transitional Epithelium) से आच्छािदत रहती है। गुद � से िनकली दोनों मू
निलकाएं मू त्राशय में िमलती हैं और गुद� में बनने वाला मूत्र निलकाओं द्वारा यहाँ एकित्रत होता रहता है। मूत्र को भं
इसका मुख्य कायर् है। जब यह भर जाता है तो मूत्र िनस्सारक(Urethra) द्वारा मूत्र का ि वसजर्न हो जाता है। मूत्राशय
क� आपूितर् उध्, मध्य और िनम्न मूत् राशय धमिनयाँ करती हैं। र� का िनका स प्रोस्टेिटक िशरा जाल में होत
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मूत्र िनस्सारक न(Urethra)
इसके तीन खण्डों में िवभािजत िकया गया ह
प्रोस्टेिटक मूत्र िनस्सा (Prostatic Urethra) यह मूत्र िनस्सारक नली का सबसे िनकटस्थ भा, जो
मूत्राशय ग्रीवा में मूत्राशय(Trigone) से प्रोस्टेट का छेदन करते ह�ए यूरोजेनाइटल डायफ्राम के उध्वर् आवरणी प
होकर मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा में लीन हो जाता है। यह मूत्र िनस का सबसे महत्वपूण, जिटल और फैला ह�आ भ ाग है।
मेम् ब्रेनस मूत्र िनस्सा (Membranous Urethra) यह यूरोजेनाइटल डायफ्राम के उध्वर् आवरणी से
ट्रांसवसर् पेरीिनयल पेशी को छेदता ह�ई यूरोजेनाइटल डायफ्राम के िनम्न आवरणी पर खत्म होकर िपनाइल यूरेथ्रा में ली
है।
िपनाइल मूत्र िनस्सारक (Penile (Cavernous) Urethra) यह यूरोजेनाइटल डायफ्राम के िनम
आवरण ी से शु� होकर िश� में प्रवेश करती है और िश� के साथ चल कर अग्रस्थ भाग के िसरे में िस्थत (External
Urethral Meatus) पर खत्म होती है।
शुक ्र पुिटका
शुक्र पुिटकाए3 सै. मी. लम्बी होती हैं तथा मूत्राशय के पीछे दोनों तरफ अविस्थत र हती हैं9 सै.मी. लम्बी शुक्र ग्रंिथयाँ
रहती हैं। यह वास डेफरेन्स से िमलती है और व हीं से ऐम्पुला स्खलन नि लका बन जाती है। इनका मुख्य कायर् शुक्र द्रव
शुक्र निलया
शुक्र निलया30 सै.मी. लम्बी िस्नग्ध पेशी ऊतक से बनी निलय ाँ होती हैं जो शुक्राणओं को अिधवृषण से स्खलन नि
पह�ँचाती हैं। पेशी ऊतक से बनी होने के कारण ये डोरी क� तरह कठोर लगती ह ैं। इन्हें स्पम�िटक कोडर् भी क हते हैं। इनक�
पर िविश� तरह क� कोिशकाएँ स्टी�रयोसीिलया (Stereocilia) होती हैं। इन्हे चार भागों क्रमशः , आंत�रक, एम्प्यूला औ
स्खलन निलका में बांटा गया ह ै। शुक्र धमनी इसे र� प्रदान करत
नाड़ी िनयंत्र
पेरािसम ्पेथेिटक– शुक्राणुओं को ऐम्प्यूला तक पह�ँचाने का कायर् करते हैं। पेरािसम्पेथेिटक प्रभाव से शुक्र नली म
क� क्रमाकुंचन क� लह(Peristaltic Waves) चल ती है िजससे शुक्राणु अिधवृष(Epididymis) से ऐम्प्यूल(Ampulla) तक
पह�ँचते है , जहाँ वे स्खलन से पहले थोड़ी देर िवश्राम क रते ह
िसम ्पेथेिटक– शुक्र निलय ों में प्रचण्ड क्रमाकुंचन क� लहर उत्पन्न करते हैं िजससे शुक्राणु और वीयर् क
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पौ�ष ग्रंिथ क� कायर् प्र
प्रोस्टेट के ग्रंिथ ऊतकों मे20 निल काएँ होती हैं िजनके िसरे पर अंगूर क� शक्ल के प्र(Acini) होते हैं। इन निलकाओं
क� भीतरी सतह पर स्रावी कोिशकाएँ होती , जो वीयर् क� ितहाई मात्रा का स्राव करती हैं। ये निलकाएँ और प्रको� प
स्पेिसिफक एन्टीज(PSA) नाम का एक एंजाइम बन ाते हैं। प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) को गामा-से माइनोप्रोटीन य
केलीक्रे-3 या kallikrein-3 (KLK3) भ ी कहते हैं। यह एक ग्लाइकोप्रोटीन है िजसका कूटलेखन के-3 जीन (KLK3 gene)
द्वारा होता है इसका प्रमुख काय र् वीयर् को तरल बनाये रखना है। पौ�ष ग्रंिथ लैंिगक (Arousal) और रित-िनष्पि या
चरमोत्कषर(Orgasm) के परम आन ंद को बढ़ाती है। पु�ष में मूत्र िनस्सारण (Urethra) दो कायर् क्रमशः मूत्र िवसजर
ल ैंिगक सम्भोग के अंत में वीयर् स्खलन करती है। वीयर् स्खलन में लाखों शुक्राणु मूत्र िनस्सारण नली के प्रोस्टेिटक
हैं। शुक्राणुओं का ि नमार्ण वृषण ग्रंिथयों में होता है। शुक्र ाणु वृषण से िनकल कर अिधवृषण पह�ँचते हैं और उसक(Coiled)
शुक्र निलयों में कुछ िदनों तक िवश ्राम करते हैं और प�रपक्व होते हैं तािक सम्भोग के बाद गभार्शय पह�ँच कर िडम्
गभार्धान क� प्रिक्रय ा को सहजता से संपन्न कर सकें। अ(Greek: upon + testicle) मोर के िसर क� कलंगी क� तरह
ल गता है। यहाँ से शुक्राणु शुक्र(Vas Deferens) द्वारा स्खलन नि लका तक पह�ँचते ह
सम्भोग के समय जब उ�ेजना चरम अवस्था को प्रा� करती है तब शुक्रनली क� पेिशयों में क्रमाकुंचन लहर उत्पन्न हो
शुक्राणु तीव्र आवेग से शुक्रनली से गुजरते ह�ए ऐम(शुक्रनली का फूला ह�आ अंितम िहस) म ें पह�ँचते ह ैं। प्रोस्टेट में पेश
भी होते हैं और जब शुक्राणु मूत्र िनस्सारण नली के प्रोस्टेिटक संभाग में , तब प्रोस्टेट क� पेिशयों का संकुचन होता
िजससे मू त्राशय से िनकलने वाली िनस्सारण नली बंद हो जाती है और शुक्राणुओं का मूत्र से सम्पकर् संभव नहीं हो पाता ह
के संकुचन से प्रोस्टेट के स्राव भी मूत्र िन स्सारण नली में आ जाते हैं और वीय र् के स्खलन को भी गित िमलत, शुक्
पुिटकाओ ं और कॉपसर् ग्रंिथ के स्राव िमल कर वीयर् बनाते हैं। जो सम्भोग के अंत में िश� में िस्थत मूत्र िनस्सारण
कर योिन में प्रवेश कर जाते ह
वीयर् के भौितक गु
भौितक गुण िववरण
रंग सफेद अल्-पारदश�
आपेि�क घनत् 1.028
�ारता (pH) 7.35-7.50
आयतन 3 एमएल
वीयर् के िविभन्न घ
ग्रंिथ स् स्खलन का आयतन रासायिनक सं रचना
वृषण और अिधवृषण 0.15 एमएल (2-5%) शुक्राण- लगभग 200-500 िमिलयन
शुक्र पुिटकाए 1.5-2 एमएल ( 65-75%)
फ्रुक् (1.5-6.5 िमली/एमएल),अमाइनो एिसड्स, साइट्र, फोस्फो�रलकोली,
अग�थायनीन, ऐस्कोिबर्क एि, फ्लेिवन, प्रोस्टाग्ल, बाइकाब�नेट
प्रोस् 0.6-0.9 एमएल (25-30%)
प्रोस्टेट स्पेिसिफक एंट(PSA), स्पम�, साइिट्रक एि, कॉलेस्ट्,
फोस्फोिलिप, प्रोिटयोलाइिटक एंजा, फाइिब्रनोलाइि, फाइिब्रनोिजन, िजंक
(135±40 माइक्रोग/एमएल) और एिसड फोस्फेटेज प्रोस्टेिटक स्पेिस
बल ्बोयूरेथ्रल ग < 0.15 एमएल (<1%) �ेष्म, गेलेक्टो, िप्रऐजाकुल, सायिलक एिसड
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वीयर् का एक महत्वपूणर् कायर् शुक्राणुओं के चारो तरफ एक सुर�ात्मक समुद्र बनाना और योिन के तीखे अम्(लेिक्टक
एिसड के कारण) से उनक� र�ा करना भ ी है। योिन क� अम्लताpH लगभग 4 होती है क्य ोंिक इतने अम्लीय माध्यम में अिध
रोगकारी जीवाणु का जीिवत रहना संभव नहीं होता है। लेिकन शुक्राणु अम्ल के प्रित बह�त संवेदनशील ह ोते हैं। वीयर् �ारीय
और सम्भोग के बाद घंटों तक योिन क� अम्लता को िनिष्क्रय करता र हता है। यिद ऐसा नहीं हो तो योिन के अम्लीय माध्य
ही सेकण्ड में सारे शुक्राणु मर जायेंगे।
कॉपसर् ग्रंिथ के स्राव का मुख्य काम मूत्र िनस्सारण नली का स्ने हन करता है। शुक्र पुिटकाओं के स्राव में पयार्�(जो
शुक्राणुओं को ऊजार् देती), प्रोस्टा ग्लें( जो वसीय अम्ल से बनते ह ) और प्रोटीन होते हैं जो �ी क� योिन में वीयर् को जमान
मदद करता है। प्रोस्टेट के स्राव में क, साइिट्रक एि, एिसड फोस्फेटे, एलब्यूिम, और प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एन्
(PSA) बह�तायत म ें होते हैं। वीयर् का दूिधयापन प्रोस्टेट के स्राव के कारण ही होता है। प्रोस्टेट के स्राव में िजंक
होता है। यह संक्रमणर ोधी है और जीवाणुओं के संक्र मण से लड़ने में प्रोस्टेट क� मदद कर
पी.एस.ए. एंजाइम उपयु� समय पर शुक्र पुिटकाओं से स्रािवत होने वाले वी यर् को जमने में सहायक ए (Clotting enzyme)
को िनिष्क्रय करता है। यह एंजाइम वीयर् को जमा कर ग ( gel) रखता है और गभार्शय क� ग् रीवा से िचपका देता है। कुछ िमन
तक शुक्राणु इस गाढ़े द्रव्य में सुरि�त र हते .एस.ए. का मुख्य कायर् सेमाइनोजेिलन और फाइब्रोनेिक्टन से बने गाढ़े कोए
का द्रवीकरण कर शुक्राणुओं को मु� करना पी.एस.ए. प्रोटीन का िवघटन कर इस िक्रया को अंजाम देता है। प्रोस्पी.एस.ए.
िनिष्क्रय �प में रहता है िजसे के -2 (एक अन्य केलीक्रेइन पेप्टा) सिक्रय कर देता ह ै। प्रोस्टेट में िजंक का स्तर श
अन्य द्रव्यों क � अपे�ा दस गुना अिधक होता है। पी.एस.ए. क� सिक्रयता पर दमनकारी या नकारात्मक प्रभाव डालता
हालांिक पीएच के बढ़ने पर पी.एस.ए. क� सिक्रयता भी बढ़ती , साथ ही पीएच बढ़न े पर िजंक का दमनकारी असर भी बढ़ता है।
स्खलन के15-30 िमनट बाद योिन का पीएच बढ़ कर 6 -7 हो जाता है। पीएच के इ स स्तर पर िजंक का दमनकारी असर कम होने
के कारण पी.एस.ए. क� कम ह�ई सिक्रयता धी-धीरे बढ़ाने ल गती है और पी.एस.ए. कोएगुलम का द्र वीकरण कर देता है और शुक्र
मौका पाते ही ज ल ्दी से गभार् शय में चले जाते ह
गभार्धान का जीवरसायन शा
रितक्र�ड़ा के आरंभ में िलंगदेव संतानोत्पि� क� आशा लेकर योिन द्वार पर
देता है और कहता है, हे देवी योि न, हे समस्
मृत्यु लोक क� जनन, मैं शि�शाली
और उत्सािहत शुक्राणुओं क� बारात लेकर तुम्हारे द्वार पर आ पह�ँचा ह�ँ। मेरे
शुक्राणु िकसी भी तरह के शि� परी�ण को तैयार ह ैं। तुम इन्हें अपने रंग महल म
जाकर स्वागत सत्कार क� तैया�रयां करो। लेिकन आरंभ में योिन िशविलंग क� प
याचना को अनदेखा कर देती है। तब िल ंगदेव अचेत और शांत पड़ी योि न क� खुशामद
करता है, बहलाता है, फुसलाता है, सहलाता है, घषर्ण करता ह, आघ ात करता है।
आिखरकार िशव िलंग के मनु हार और प्रेम िनवेदन से योिन िपघल ही जाती है। और उसक� कामािग्न भड़क उठती, वह उत्सािहत
और उ�ेिजत हो ही जाती है और रितक्र�ड़ा शु� कर देती है। रित िनष्पि� के साथ ही क्रमाकुंचन क� लहर के साथ सारे नाचते
नन्हे बाराती दौड़ कर योिन म ें प्रवेश कर जाते हैं। रि तिक्रड़ा का आिखरी आिलंगन लेते ह�ए योिन अपनी पूरी ताकत और
सारे युवा शुक्राणुओं को अपने दामन में खींच लेती है। लेिकन इसके बाद भी शुक्राणुओं क� गभार्शय तक क� -पग पर
किठनाइ यों और बाधाओं से भ र ी होती है। यह यात्रा अमरनाथ क� यात्रा क� तरह ही एक किठन और रोमांचक यात्रा मानी जा
सबसे पह ल े तो योिन में बहती अम्ल क� धाराएं शुक्राणुओं को न� करना चाहत, तो दूसरी तरफ योिन क� भ�ी कोिशकाएं
शुक्राणुओं को िवदेशी घुसपेठ समझ कर हमला करना चाहती हैं। इसिलए तुरंत वीयर् गभार्शय ग्रीवा के समीप शुक्राणुओं
तरफ एक चक्रव्यूह क� रचना करता, िजसे भ ेद ना अम्लीय धाराओं के बस का काम नहीं है। कुछ ही िमनटों में �ारीय वीयर्
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क� अम्लता को िनिष्क्रय क र देता है। अम्लता कम होने पर िजंक भी मदद क ो आगे आ जाता है। इसके प�ात वीयर् में िवद्
वीर पी.एस.ए. (Prostate Specific Antigen) वीयर् द्वारा ही बनाये ह�ए चक्रव्यूह को एक ही तीर से ध्वस्त कर देत
शुक्राणुओं का कारवां मु� होकर चुपचाप रंग महल में प्रवेश कर जा, जहां िडम्ब वरमाला िलए सबसे शि�शाली और परमवीर
शुक्र कुमार क� प्रती�ा में खड़ी होती है। रंग महल में संपन्न शि� परी�ण में जो शुक्र क ुमार सबसे ताकतवर साि, उसे
िडम्ब कुमारी वरमाला पहनाती है और गंधवर् िववाह क रती ह ै। इस तरह दोनों के तेईस तेईस क् रोमोजोम से िमल कर िछय
क्रोमोजोम का एक स्वस्थ और संप ू णर् भ्रूण बनता है। भ्रूण के िलंग िनधार्रण का िनणर्य भी शुक्र कुमार के पास ही होता ह
के समय उसे Y से क्स क्रोमोजोम िमलता है तो नर और यिद उX सेक्स क्रोमोजोम िमलता है तो मादा जन्म लेती
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पौ�ष ग्रंिथ का कै
पौ�ष ग्रंिथ का कैंसर एक दुदर्म अबुर्(Malignant Tumor) जो इसक� कोिशकाओं से उत्पन्न होता ह ै। प्रायः यह धीरे बढ़ता
और कई वष� तक अपने दायरे में ही िसिमत रहता है। इस अविध म ें इससे रोगी को कोई िवशेष ल�ण या बाहरी संकेत नहीं होते ह
लेिकन पौ�ष ग्रंिथ के सभी कैंसर का व्यवहार एक जैसा नहीं होता है। कुछ आक्रामक प्रजाित के कैंसर बड़ी तेजी से फै
रोगी के जीवन को आ�यर् जनक ढंग से छोटा और क�प्रद बन ा देते हैं। इस कैंसर क� आक्रामकता अनुमान ग्लेसन स्कोर
पर लगाया जाता है। अनुभवी रोगिव�ानी अबुर्द के नमूनों क� जीवोित जांच के आधार पर ग्लेसन स्कोर क� गणना करते
जब कैंसर बढ़ने लगता है तो कैंसर कोिशकाएं प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के, अंगो और लिसका पव� में अपना
िवस्तार करने लगती हैं। इसका दूरस्थ स्थलांतर प्रायः, यकृत और अिस्थ में होता है। इसका स्मृित सूत्र लम्बू लाल ब
(Lungs, Liver and Bones) है।
पौ�ष ग्रंिथ का कैंसर पु�षों में सबसे व्यापक कैंसर है और फेफड़े के कैंसर के बाद कैंसर से होने वाली मृत्यु का दूसरा
कारण है। अमे�रकन कैंसर सोसाइटी के आंकड़ों के अनुसार सन2009 में अमे�रका में पौ�ष ग्रंिथ के कैंस192,280 नये रोगी
पाये गये और 27,360 रोिगयों क� मृत्यु इस कैंसर के कारण ह�ई। इस कैंसर का जोिखम गोरे लोगो17.6% और अफ्र�क� नस
के काल े लोगों मे20.6% रहता है तथा इ स कैंसर से होने वाली मृत्यु दर क्र2.8% और 4.7% रहती है। इन आ ंकड़ों से स्प
होता है िक आज स्वस्थ जीवन जी रहे अमे�रका के लोगों को इस कैंसर का ि कतना खतरा है। आज वहाँ इस कैंस20 लाख
रोगी इस गं भ ीर रोग से ल ड़ रहे हैं। हाँ िपछले कुछ वष� म ें इस कैंसर से होने वाली मृत्यु दर में कम ी अवश्य आई है। हालां
िवषय बह�त िववादास्पद बना ह�आ है लेिकन िफर भी कई िचिकत्-शा�ी यह मान ते हैं िक40 वषर् क� उम्र के बाद इस कैंसर
िलए हर व्यि� क� िनयिमत अनुवी�ण जांच(Screening Test) होन ी चािहये।
कारण
िचिकत्सा शाि�यों के अनुसार पौ�ष ग्रंिथ का कारण अभी तक अ�ात है और इसका प्रोस्टेट के सुदम अ(Benign
Prostatic Hyperplasia) BPH से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके जोिखम घटक वृद्ध, आनुवंिशक, हाम�न और पयार्वरण
घटक जैसे टॉि क्सन, रसायन, औद्योिगक अपिश� ह ैं। इस कैंसर का जोिखम उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता जाता है। अतः
आघटन 40 वषर् से पहले यह बह�त कम है लेिकन80 वषर् क� उ म्र में यह बह�त सामान्य है। कुछ अनुसंधानकतार्ओं के अ80
वषर् से अिधक उम्र के लोगों में 50%-80% इस कैंसर के रोगी िमल जाते हैं। िनदान के समय इस कैंसर 80% से अिधक
रोिगयों क� उम65 वषर् से अिधक होती है।
प्रोस्टेट कैंसर के रोगी के प�रवार के दूसरे सदमे इस रोग का जोिखम दो से तीन गुन ा अिधक रहता है। यिद िपता, ताऊ या बड़े
भाई को कम उम्र में यह कैंसर ह�आया प�रवार म ें एक से अिधक लोग इस कैंसर का िशकार बने हैं तो इस प�रवार के पु�षों
इस कैंसर का जोिखमअिधक रहता है। ताजा अ ध्ययन के अनुसार ऐसे संक ेत िमले हैं िक लैंिगक संभोग से फैलने वाले संक्रम
प्रोस्टेट कैंसर का जो1.4 गुना बढ़ाते हैं।
पु�ष हाम�न टेस्टोस्टीर, जो वृषण में स्रािवत होता , प्रोस्टेट क� स्वस्थ और कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध को प
करता है। इसी िलए ऐसा माना जाता है िक प्रोस्टेट कैंसर क� उत्पि� और िवकास में टेस्टोस्टीरोन अहम भूिमका िनभाता
हाम�न क� भूिमका इस बात से भी सािबत होती है िक इसका स्तर कम करने से कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध बािधत होती
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हालांिक अभ ी तक िसद्ध नहीं हो सका है लेिकन िसगरेट और संत्र� वसा का अत्यिधक सेवन भी इस कैंसर का जोिखम बढ़ा
मोटापा भी आक्रामक और बड़े कैंसर का जोिखम बढ़ाता है और उपचार के बाद भी फलानुमान अच्छा नहीं रहता है। औद
अपिश� और वातावरण में व्या� कुछ पदाथर् भी इस कैंसर क� उत्पि� के कारक माने गये हैं। इस कैंसर के आघटन में
िस्थित क� भूिमका भी महत्व रखती है। मसलन एिशया क� तुलना में उ�री अमे�रका और स्केंिडनेिवयन देशों में इस क
आघटन अिधक है। अ भ ी तक यह िसद्ध नहीं हो सका है िक ज्य ादा संभोग करने वाले पु�षों को इस कैंसर के होने का खतरा
रहता है।
ल�ण और संकेत
प्रारंिभक अवस्था में प्रायः कई वष� तक प्रोस्टेट कैंसर के रोगी को कोई ल�ण न हीं होते हैं। अिधकांश रोिगयों में प
पता ही तब चलता है जब िकसी अन्य कारण से रोगी का प.एस.ए. करवाया जाता है तथा उसका स्तर बढ़ा ह�आ आता है या
िचिकत्सक को रोगी के सामान्य �प से िक ये ग य े अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्Digital (done with the finger) Rectal
Examination में प्रोस्टेट , असामान्य और िगल्टीदार महसूस होती ह ै। प्रोस्टेट मलाशय के ठीक आग े अविस्थत होती
कालान्तर में जब कैंसर बढ़ने लगता है तो मूत्र िनस्सरण नली पर दबाव पड़ता है और फलस्व�प मूत्र क� धार पतली होने
और मूत्र िवसजर्न में तकलीफ होती है। रोगी को मूत्र त्यागते समय जलन या म ूत्र में खून भी आ सकता है। यिद अबुर
बढ़ जाता है तो मूत्र के प्रवाह को पूरी तरह रोक देत , िजससे असहनीय तथा तीव्र वेदना होती ह ै। मूत्र का िनकास �क जाने
कारण मूत्राशय फूल कर बड़ा हो जाता है और तेज ददर् भी करता है। लेिकन ये ल�ण भी प्रोस्टेट कैं सर क� पुि� नहीं,
क्योंिक प्रोस्टेट के सुदम अितवधर्न में भी यही ल�ण ह ोते हैं। लेिकन इस िस्थित में कैंसर क� संभावना को ध्यान में
परी�ण करवाने चािहये।
िवकासशील अवस्था में कैंसर आसपास के ऊतकों और लिसका(श्रोिण यPelvic) में फैलता है। कैंसर का दूरस्थ अं
(यकृत, फेफड़ा और हड्डी) में स्थलांतर भी होता है। स्थलान्तर कैंसर के शु�वाती ल�ण ब, थकावट, वजन कम होना आिद
होते हैं। अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्न में िचिकत्सक को प्रोस, िस् थर और बढ़ी ह�ई महसूस होती है। दूरस्थ स्थलां
सबसे पहले मे�दण्ड के िनचले िहस्से और श्रोिण क� हड्ि (Pelvic Bones) म ें होता है िजसके कारण पीठ क े िनचले िहस्स
और श्रोिण में ददर् होता है। इसके बाद दूरस्थ स्थलान ्तर का यकृत और फेफड़े पर आक्रम ण होता है। यकृत में स्थलान्त
ददर् और पीिलया हो सकता है। फेफड़े में स्थलान्तर होने से छाती में ददर् और खांसी होत
प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी�ण जांच (Screening Tests)
िकसी भी रोग ( जैसे प्रोस्टेट कैंसर को ही ले लेत ) को प्रारंिभ
अवस्था में ही पकड़ने के िलए समय समय पर क� जाने वाली जां
को अनुवी�ण जांच (Screening Tests) कहते हैं। इन जांचों क
नतीजे सा मान्य होना यह दशार्ता हैं िक कोई िचंताजनक बात न
है। ल ेिकन यिद अनुवी�ण जांच के न तीजे असामान्य और
संदेहास्पद हों तो अंितम और िनि�त िनदान तक पह�ँचने हेतु अन
बड़े परी�ण िकये जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर को शु�वाती अवस्
पकड़ने के िलए प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट( PSA) और
अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर( Digital Rectal
Examination) िकये जाते हैं। अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पश
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में िचिकत्सक रबर के दस्तानें पहन कर अंगुली को मलद्वार में घुसा क र प्रोस्टेट को टटोलता है। यिद प्रोस्टेट क�
अिनयिमत लगे या कोई अबुर्द महसूस हो तो संदेह क� सुई कैंसर क� तरफ इंिगत करती ह ै। िवशेष� सामान्य40 वषर् क� उम्र
बाद इस परी�ण करने क� सलाह देते हैं।
प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA)
प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) एक सरल और अपे�ाकृत
िव�सनीय र� क� जांच है। इसके िलए र� में एक िविश� प्रो
(PSA)
क� मात्रा को नापा जाता है। यह प्रोटीन प्रोस्टेट में, िजसका थोड़ा
अंश र� म ें भी पह�ँचता है। प्रोस्टेट कैंसर में इसका स्त4 ने नोग्रा
प्रित िमिललीटर से अिधक होता है। ध्य ान रहे लेिकन इसका स्तर प्र
क� संवृिद, संक्रमण और प्रदाह में भी बढ़ता
िवशेष� पी.एस.ए. को प्रोस्टेट कैंसर िनदान के िलए महत्वपूणर् अन
जांच मान ते हैं। हालांिक प.एस.ए. जांच को िववादास्पद माना जाता ह ,
क्य ोंिक अनुवी�ण जांच के बाद भी प्रोस्टेट कैंसर से होने वाली मृत्यु
कोई फकर् नहीं देखा गया है। साथ में अितिनद(Over Diagnosis),
अनावश्यक जीवोित जां (Biopsy) और क�प्रउपचार के झमेल े रोगी और िचिकत्सक दोनों को उलझन और िचंता मे ं डाल दे
हैं।अमे�रका क� िप् रवेंिटव सिवर्सेज टास्क (U.S. Preventive Services Task Force
) ने अपनी �रपोटर् जारी क� है िजसमे
प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी�ण हेत.एस.ए. क� जांच को अनावश्यक और व् यथर् बताया है। िवक�पीि डया में इसका स्प� उल्ल
लेिकन िफर भी अिधकांश िवशेष� प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी�ण हेतु िन यिमत जांच करवाने क� देते हैं। अमेरीकन
यूरोलोजीकल एसोिसयेशन ने इस सम्बन्ध में स2009 में ताजा िदशा-िनद�श जारी िकये हैं। इन िनद�शों के अनुसार प्रा40
वषर् या अिधक उम्र मे.एस.ए. क� जांच और अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर (Digital Rectal Examination) करन े क�
सलाह दी गई है। इसके बाद िचिकत्सक जोिखम घटक( जैसे नस्, प्रजा, पा�रवा�रक, आघटन आिद), शु�आती अनुवी�ण जांच
के न तीजों और अपने अनुभव के आधार पर समय समय पर जांच करवाता है। जैसे िक व्यि� के प�रवार में यिद िकसी को यह कै
हो चुका हो या उसका शु�वाती पी.एस.ए. बढ़ा ह�आ आया हो तो उसक� अनुवी�ण जांच जल्दी जल्द(प्रायः हर स) क� जानी
चािहये। अमूमन िवशेष� उन लोगों म ें अनुवी�ण जांच करने क� सलाह देते हैं जो कम से 10 वषर् औरतो और जीयेंगे। ऐसे लोगो
क� प्रायः सालाना जांच होनी चािहये। लेिक 75 वषर् क� उम्र के बाद जांच क रने का कोई औितच्य नहीं रहता है।
पी.एस.ए. का सामान्य स्त4 नैन ोग्राम प्रित िमिललीटर माना गया है। आजकल कुछ िवशेष� त.एस.ए. का स्तर2.5 नैनोग्रा
प्रित िमिललीटर भी हो तो भी प्रोस्टेट क� जीवोित जांच करने क� अि भशंसा करने लगे हैं तािक कैंसर को बह�त पहले ही पक
जाये तािक इसका पूणर् उपचार संभव हो सके। बाय ोप्सी के िलए अमेरीकन यूरोलोजीकल एसोिसयेशन ने िनि�त माप दण्ड तय न
िकये है , ल ेिकन सल ाह दी है िक जोिखम घटकों को ध्यान में रखते ह�ए बायोप्सी का िनणर्य लेना चाि
पी.एस.ए. गित (PSA velocity) - सबसे अहम और ध्यान रखने योग्य पहलू य ह है िक .एस.ए. का स्तर िकस गित
(PSA velocity) से बढ़ रहा है। यिद पी.एस.ए. का स्तर4 से 10 नै न ोग्राम प्रित िमिललीटर है तो यह संदेह के घेरे(Borderline)
आता है। इस िस्थित में रोगी क� , ल�ण, संकेत, पा�रवा�रक इितहास और पी.एस.ए. के स्तर क े आधार पर िनणर्य लेना चािहये
पी.एस.ए. का 10 से ज् यादा होना असामान्य है और प्रोस्टेट कैंसर क� संभावना को इंिगत करता .एस.ए. का स्तर िजतना
अिधक हो कैंसर क� संभावना उतनी ही अिधक रहती है। जब प्रोस्टेट कैंसर फैल कर आसपास के, लिसकापव� या दूरस्थ
अंगों म ें फैलता है तब भी .एस.ए. का स्तर एक दम बढ़ता है। प.एस.ए. का स्तर30 या 40 या अिधक होना कैंसर का स्प� संके
होता है।
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पी.एस.ए. बढ़ने के अन्य कारण- कई बार पी.एस.ए. का स्तर कैंसर के अलावा अन्य िवकारों के कार ण भी बढ़ता है ज
सुदम प्रोस्टेट अितव, िकसी भी कारण से ह�आ प्रद (Prostatitis ) या संक्रमण में भी.एस.ए. स्तर बढ़ सकता है। िविदत रहे
िक प्रोस्टेट के अंगुली प�रस्पशर्न या वीयर् स्खलन 48 घंटे तक पी.एस.ए. का स्तर बढ़ सकता है। उपरो� िस्थितयों
पी.एस.ए. का स्तर प्रा4 से 10 के बीच रहता है , ल ेिकन 20 से 25 तक भ ी जा सकता है। इन प�रिस्थितयों में नतीजों
िवष्लेषण बह�त िववेकतापूवर्क िकया जाना चािहये। यह भी ध्यान रखें िक प्रोस्टेट के अलावा अन्य अंगों, भोजन, दवा,
धूम्रपान या मिदरापान .एस.ए. के स्तर को प्रभािवत नहीं करते प्रोस्टेट क के िनदान हेतु पी.एस.ए. जांच िव�सनीय मानी
जाती है क्योंिप्रोस्टेट क के अिधकांश रोिगयों में .एस.ए. का स्तर असामान्य या संदेहास्पद सीमा में रहता
पी.एस.ए. अनुपात PSA Ratio - हाल ही पी.एस.ए. क� जांच के स्व�प में कुछ संशोधन िकये ग ये हैं। इनका उद्
संदेह सी मा में या बढ़े ह�ए प.एस.ए. के स्तर का बेहतर िवष्लेषण कर, प्रोस्टेट कैंसर का सही सही आंकलन करना औ.एस.ए.
के स्तर को बढ़ाने वाले अन्य िवकारों को िचिन्हत करना है। तािक इस जांच क� संवेदनशीलता और िव�सनीयता में सुधार
इस जांच का एक नया स्व�पपी.एस.ए. अनुपात PSA Ratio है। पी.एस.ए. अनुपात क� गणना र� में प्रवािहत हो रहे म
पी.एस.ए. क� मात्रा में प्रोटीन से बं.एस.ए. क� मात्रा का भाग देकर क� जाती ह ै। शोधकतार् मानते हैं ि क र� में मु� �
प्रवािहत .एस.ए. का सुदम प्रोस्टेट अितवधर्न से सीधा सम्बन्ध ह , जबिक प्रोटीन से जुड़ा .एस.ए. कैंसर से सम्बिन्
होता है। इस तरह पी.एस.ए. अनुपात बढ़ा ह�आ हो तो कैंसर क� संभावना कम रहती है जबिक इस अनुपात का कम होना कैंसर क
उपिस्थित को प्रबल बनाता ह
पी.एस.ए. का सामान्यस्तर उम्र पर िनभ–
शोधकतार्ओं ने यह भी देखा है िक जैसे जैसे पु�ष क�
उम्र बढ़ती है उसका .एस.ए. भ ी बढ़ता है भल े उसे
कैंसर न ह�आ हो। इसिलए प.एस.ए. का सामान्य स्त
हर उम्र में अलग होता है। िचिकत्सक क.एस.ए. का
िवष्लेषण करते समय ध्यान रखना चािह ये िक रोग
क� उम्र के िहसाब से .एस.ए. का सामान्य स्त
िकतना होन ा चािहये। उम्र के चौथे दशक में.एस.ए.
का सामान्य स्त0 से 2.5, पांचवें दशक मे0 से 3.5,
छठे दशक में0-4.5 और 70 वषर् से बड़े पु�षों म0 से
6.5 होता है। उदाहरण के तौर पर पी.एस.ए. का स्तर
4 होना तीसरे और चौथे दशक के िलए संदेह सीमा में
आयेगा ल ेिकन पांचवे, छठे और सातवें दशक के
रोिगयों के िलए यह सामान्य स्तर है
Age(in years) PSA Range (measured in ng/ml)
40 0–2.0
42 0–2.2
44 0–2.3
46 0–2.5
48 0–2.6
50 0–2.8
52 0–3.0
54 0–3.2
56 0–3.4
58 0–3.6
60 0–3.8
62 0–4.1
64 0–4.4
66 0–4.6
68 0–4.9
70 0–5.3
74 0–6.0
78 0-6.8
पी.एस.ए. गित या स्लोप- पी.एस.ए. क� जांच में एक संशोधन और ह�आ ह, िजसे पी.एस.ए. गित या स्लोप कहते हैं। इसक
गणना पी.एस.ए. के स्तर में ह�ई बढ़ोतरी में समय का भाग देकर क� जाती है।.एस.ए. गित िजतनी तेज होती है अथार्त प.एस.ए.
िजतना जल्दी बढ़ता ह, कैंसर क� संभावना उतनी ही अिधक रहती है। और यिद प.एस.ए. धीरे धीरे बढ़ता है तो कैंसर क� संभावना
उतनी ही कम रहती है।
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प्रोस्टेट कैंसर 3 (PCA3) - प्रोस्टेट कैंसर 3
(PCA3) एक नया जीन है िजसके िलए मूत्र का परी�ण िकया जाता है। जी
3 (PCA3) अित िविश� जीन है और िसफर् कैंसर प्रोस्टेट में ही उ
होता है। प्रोस्टेट के अन्य रोग जैसे िवविधर्त प्रोस्टेट या संक्रमण
जीन अनुपिस्थत होता है। प.एस.ए. स्तर के साथ जीन3 क� मूत्र जां
प्रोस्टेट कैंसर िनदान हेतु जीवोित जांच करने के ि लए बेहतर संकेत देती
िनदान
प्रोस्टेट कैंसर का चरण िनधार्रण कैंसर कोिशकाओं के प्रोस्टेट और
अन्य िहस्सों में िवस्तार और फैलाव के आधार पर िकया जाता है। जी
जांच द्वारा कैंसर का िन दान होने के बाद कई तरह के परी�ण िकये जाते ,
तािक स्प� तौर पर मालूम हो सके िक कैंसर शरीर में कहाँ कहाँ फैल चु
है।
रेिडयोन्युक्लाइड अिस्थ स्- यिद हड्िडयों म ें कैंसर का स्थलांतर हो चुका है तो रेिडयोन्युक्लाइड स्केन से
जाता है। इस जांच में एक रेिडयोधम� पदाथर् शरीर में छोड़ा जाता , जो हड्िडयों में कैंसर ऊतकों को िचिन्हत कर देता है। यिद
को िकसी हड्डी में गहरा ददर् , कोई हड्डी टूट गई हो या पी.एस.ए. स्तर बह�त ज्याद(>10-20 ng/ml) हो तब यह जांच िवशेष
तौर पर क� जाती है।
छाती का एक्सरे और सोनोग्रा- छाती के एक्सरे से फेफड़े म ें कैंसर के स्तलांतर का पता चल जाता है। सोनोग्रा
मूत्रपथ में आई �कावट के संकेत िमल जाते हैं। प्रोस्टेट के बढ़ जाने से मूत्र िवसजर्न में आई �कावट के कारण मूत्राश
म ोटाई बढ़ जाती है और मूत्र िवसजर्न करने के बाद भी मूत्राशय में कुछ मूत्र भरा (अवशेष मूत) है। सोनोग्राफ� से ये सार
जानकारी भी िमल जाती है।
सी.टी. स्केन और ए.आर.आई. - इनके अित�र� सी.टी. स्केन और ए.आर.आई. क� जाती है। िजससे मालूम हो
जाता है िक कैंसर आसपास के ऊतक, लिसकापव� (Lymph Nodes) और शरीर के अन्य अंगों जैसे मूत्, मलाशय, यकृत या
फेफड़े में फैला है या नहीं। कई बार .ई.टी. स्केन भी िकया जाता ह , जो शरीर में कुछ छुपे ह�ए कैंसर के ऊतकों को भी िचिन्हत
देता है।
मूत्राशयदश� जां(Cystoscopy) - कुछ रोिगयों में मूत्राशयदश� यंत्र द्वारा (Cystoscopy) क� जाती है। इस
जांच में एक पतल, लचील ी और प्रकाश स्रोत लगी नली को मूत्राशय में डाल कर अन्दर देखा जाता है। इस यंत्र के बाहर
केमरा अविस्थत रहता ह , जो अंदर के �श्यों को बाहर लगे पटल पर प्रदिशर्त करता है। इस जांच से मूत्राशय और मूत्
नली का अवलोकन िकया जाता है और कैंसर को िचिन्हत कर िलया जाता है। साथ ही संदेह होने पर जीवोित जांच हेतु मूत्राश य
नमून े भी ल े िल ए जाते हैं।
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चरण िनधार्रण– (Staging) –
सं�ेप में िचिकत्सक प्रोस्टेट कैंसर का चरण िनधार्रण प्रोस्टेट तथा अन्य ऊतकों क� जीवोित जांच और छायांकन पर
पर करते हैं। चरण के आधार पर कैंसर के उपच, फ लानुमान और अन्य कई िनणर्य िलए जाते हैं। इस कैंसर को िनम्न चरण
वग�कृत िकया गया है।
चरण I – इस चरण में अन्तरमलाशय अंगुली पर ी�ण द्वारा कैंसर के कोई संकेत नहीं िमलते हैं और प्रोस्टेट के बाहर कै
सा�य भी नहीं होते हैं। इस चरण का प्रायः अितविधर्त प्रोस्टे-िक्रया के बाद जीवोित जांच में कैंसर का पता चलता ह
चरण II – इस चरण में अबुर्द चरI से बड़ा होता है और प्राय ः अन्तरमलाशय अंगुली परी�ण से महसूस हो जाता है। प्रोस्ट
बाहर कैंसर के कोई सा�य भी नहीं होते हैं। यह चरण प्रा.एस.ए. का स्तर बढ़ा होने के कारण क� गई जीवोित जांच से िचिन्ह
होता है।
चरण III – इस चरण में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के ऊतकों में फैल चुका हो
चरण IV - इस चरण में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के लिसकापव� और दूरस्थ अंगों में फैल चुका ह
आजकल अिधकांश िवशेष� 2002 में बने ट.एन.एम. (Tumor, Node, Metastases) वग�करण पद्धित को प्रयोग करते हैं
तीन पहलुओं (T stage) मूल अबुर्द के िवस्त, (N stage) लिसकापव� में कैंसर के फैलाव औ(M stage) दूरस्थ अंगों में कै
के स्थलांतर क� िस्थित पर आधा�रत होता है। प्रोस्टेट कैंसर.एन.एम. वग�करण इस प्रकार है
प्राथिमक कैंसर का आंक("T")
Tx: प्राथिमक कैंसर देखा नहीं जा सका
T0: प्राथिमक कैंसर के कोई सा�य नहीं िमले
T1: प्रोस्टेट कैंसरग्रस्त हो चुका है लेिकन अबुर्द को िचिकत्सक�य परी�ण या छायांकन िवधाओं द्वारा पकड़ना सं
T1a: िकसी अन्य कारण से िनकाली गई प्रोस्टेट के ऊतको5% िहस्से में कैंसर का पाया जाना
T1b: िकसी अन्य कारण से िनकाली गई प्रोस्टेट के ऊतको5% से अिधक िहस्से में कैंसर का पाया जाना
T1c: पी.एस.ए. का स्तर बढ़ने के कारण क� गई जीवोित जांच में कैंसर का पाया जान
T2: कैंसर अंगुली प�रस्पशर्ण द्वारा पकड़ना संभव है लेिकन कैंसर प्रोस्ट ेट से बाहर नहीं
T2a: कैंसर प्रोस्टेट के दोनों तरफ के खण्डों में से िकसी एक खण्ड के आधे या कम िहस्से में उ
T2b: कैंसर प्रोस्टेट के िकसी एक खण्ड क े आधे से अिधक िहस्से में उप , लेिकन दोनों खण्डों में नह
T2c: कैंसर प्रोस्टेट के दोनों खण्डों में उपिस्
T3: कैंसर प्रोस्टेट के आवरण क ो भेद कर बाहर आ चुका
T3a: कैंसर एक या दोनों तरफ आवरण को भेद कर बाहर आ चुका है
T3b: कैंसर एक या दोनों शुक्र पुिटकाओं पर आक्रमण कर चुका
T4: कैंसर आसपास क� संरचनाओं पर आक्रमण कर चुका ह
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ध्यान रहेT2c चरण में ज�र ी है िक प्रोस्टेट के दोनों खण्डों में प�रस्पशर्ण द्वारा कैंसर को पकड़ा गया हो। यिद दोनों
को प�रस्पशर्ण द्वारा पकड़ पाना संभव नहीं है तोT2c चरण देना गलत होगा भले दोनों खण्डों क� जीवोित जांच में क
उपिस्थत हो।
स्थानीय लिसकापव� का आंकलन ("N")
NX: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर का आंकलन संभव नहीं है
N0: स्थानीय लिसकापव� म ें कैंसर नहीं फैला ह
N1: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर फैल चुका है
दूरस्थ स्थलांतर का आंकलन("M")
MX: दूरस् थ अंगों में स्थलांतर का आंकलन संभव नहीं ह
M0: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर नहीं ह�आ ह
M1: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर हो चुका है
M1a: कैंसर स्थानीय लिसकापव� से आगे के लिसकापव� पर आक्रमण कर चुका है
M1b: कैंसर अिस्थय ों में फैल चुका ह
M1c: कैंसर अन्य अंगों में फैल चुक, भले कैंसर अिस्थयों फैला हो या न फैला हो।
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उपचार
प्रोस्टेट कैंसर हेतु सही और उपयु� उपचार का चुनाव करना भी किठन कायर् है। क्योंिक आज हमारे पास पहले से कहीं ब
कई उपचार उपलब ्ध है। लेिकन उनके खतरों और फायदों पर पूरी तरह शोध नहीं हो पा, इसिलए िविभन्न उपचार िवधाओंमेंसे
रोगी के िलए सही उपचार चुनना मुिश्कल होता है।
प्रोस्टेट कैंसर के उपचार हेतु िचिकत्सकों ने कैंसर को इन तीन वग� में बा1- वह स्थानीय कैंसर जो प्रोस्टेट में ही िसि2-
स्थानीय िवकिसत कैंस(बड़ा प्रोस्टेट कैंसर या कैंसर िजसका प्रसार आसपास के ऊतकों और लिसकावव� में हो चु3-
दूरस्थ स्थलांतर कैंसर। पहले और दूसरे वगर् मे-िक्र, रेिडयेशन, हाम�नल उपचार, क्रायोथेरे, और सतकर्तापूवर्क प्रत
आ िद उपचार िदये जाते हैं। दुभार्ग्यवश दूरस्थ स्थलांतर कैंसर में रोग का पूणर् उपचार संभ , लेिकन प्रशामक उपचार के �
में क�मोथेरेपी और रेिडयोथेरेपी दी जाती है। प्रशामक उपचार का उद्देश्य कैंसर क� संवृिद्ध को धीमा करना और रोगी
और क� कम करना होता है।
शल्-िक्रय
मौिलक पौ�ष ग्रंिथ उच्छे
प्रोस्टेट कैंसर के शल्य उपचार हेतु मौिलक पौ�ष ग्रंिथ उच्छेदन या रेडीकल प्रोस्टेक्टोमी क� जाती है। इस शल्य
प्रोस्, शुक्र पुिटकाएं और शुक्रनली के ऐम्प्यूला का उच्छेदन िकय ा जाता है तथा मूत्राशय के मुख को मेम्ब्र ेनस यूरेथ्र
जाता है, तािक मूत्र िवसजर्न भली भांित होता रहे।
अमे�रका में मौिलक पौ�ष ग्रंिथ उच्छेदन प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैंसर और स्थानीय िवकिसत कैंसर का
उपचार है। प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैं36% रोिगयों में यह श-िक्रया क� जाती है। अमे�रकन कैंसर सोसाइटी
अनुसार प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैंसर में यिद प्रोस्टेट पूरी तरह ि नकाल दी जाती है तो90 % है। इस शल्य क�
जिटलताओं में िन�ेतन के खतर, र�स्र, नपु ंसकता (30%-70%रोिगयों म) और मूत्र असंयमता(3%-10%रोिगयों म) मुख्य हैं।
प्रोस्टेट के उच्छेदन क� जिटलताओं को कम करने के िदशा में बह�त प्रगित ह�ई है। पहले क� अपे�ा आज िन�ेतन प्रि
िवकिसत और सु रि�त ह�ई है। आ ज िचिकत्साशा�ी मूत्र संयमता और पौ�ष ग्रंिथ क� संरचना और कायर् प्रणाली को बेहत
हैं। और इस कारण शल-िक्रया में कई क्रांितकारी बह�त प�रवतर्न ह�ए हैं। आज प्रोस्टेट के दोनों तरफ ि स्थत स्नायुज
ह�ए शल् यिक्रया क� जाती है। इस तरह के शल् य से मूत ्र अस( Incontinence of Urine) व स्तंभनदोष(Impotence) होन े का
जोिखम बह�त कम रहता है। 98% रोिगयों को मूत्र असंयमता 60% रोिगयों को लैंिगक संसगर् में कोई परेशानी नहीं आती
रोबोिटक मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छे
मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन खुली शल्य , दूरबीन या यंत्रमानव शल्य द्वारा िकया जाती है। यंत्रमानव क� सहायता
नायाब तकनीक है। आज अमे�रका में70 % पौ�षग्रंिथ उच्छेदा िवं सी यं त्रमानक� म दद से िकये जाते हैं। इस शल्य िक्रया
उदर में पांच छोटे िछद्र िकये जाते , िजनम ें छोटे से केमरे समेत शल्य उपकरण पेट में घुसाये जाते हैं। क ेमरे से ली गई अंदर
ित्रआया, स्प� औरदस गुनी अिभविधर्त तस्वीरें एक -पटल और रोगीशैया से द ूर एक खटोले के पटल पर िदखाई देती हैं।
शल्य उपकरण रोबोट के हाथों से जोड़ िद य े जाते ह ैं। रोबोट के सारे िनयंऔर घुिण्डयांखटोल े में लगी होती हैं। खटोले में ब
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कर शल्यकम� पटल म ें देखते ह�ए अपने हाथों से शल् यिक्रया को अंजाम देततस्वीरें ित्रआयामी होने के कारण शल्यकम� को
लगता है जैसे वह रोगी के शरीर के भीतर जाकर शल्य कर रहा ह , जबिक वह रोगी से 8 फुट दूर होता है। रोबोट शल्य उपकरणो
को सभी िदशाओं में अिधक सू�मता और स्प�ता से घुमा िफरा सकता है। इसिलए रोबोट क� मदद से जिटल और उत्कृ� श
करना आसान हो जाता है।
स्तंभनदोष के उपचार हेतु िसलडेनािफल(िवयाग्), िश� में ऐल्प्रोस्ट(केवरजेट) क� सुई या िविभन्न तरह के पम्प प्रयोग ि
जाते हैं। इन सबसे भी काम न चले तो आपका िचिकत्सक अपने िपटारे में कृित्रम िलंग प्रत्यार ोपण का सामान भी लेकर बैठा
असंयमता प्रायः धी- धीरे ठीक हो जाती है। इसके उपचार हेतु कुछ व्याया, दवाएं भी दी जाती है। कई बार रोगी के शरीर से ही ली
गई पेशी या अन्य पदाथर् से कृित्रम संकोिचन ी बनानी पड़ती
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रेिडयेशन थे रेपी
यिद िकसी कारणवश रोगी का मौिल क पौ�षग्रंिथ उच्छेदन करना संभव नहीं हो या अबुर्द बह�त बड़ा हो तो रेिडयेशन थेरेपी दो
से दी जाती है। पहली परम्परागत बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरे (Conventional External Beam Radiotherapy EBRT) 6
या 7 हफ्तों तक दी जाती है और दूसरी ब्रेक�थेर( Brachytherapy) िजसमें रेिडयोधम� बीज प्रोस्टेट में रोिपत कर िदये जाते
बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरेप में शि�शाली एक्स िकरणें अबुर्द और आसपास के �ेत्र में केिन्द्रत करके उपचार िदया
ब्रेक�थेरेपी में अल्ट्रासाउंड के िदशा िनद�श में सुईयों को घुसा कर प्रोस्टेट में रेिडयोधम� बीज रोिपत कर िदय े जाते हैं। ब
रेिडयोधम � बीज प्रोस्टेट में ही अविस्थत होने क� वजह से आसपास के ऊतकों और अंगों में रेिडयेशन के कुप्रभाव अप
होते हैं।
रेिडयेशन के कु प्रभाव से प्रोस्टेट में थोड़े समय के िलए सूजन आ स, िजसके कारण मू त्र पथ में �कावट हो सकती है। य
रोगी को िवविधर्त प्रोस्टेट के कारण पहले से ही मूत्र पथ में �कावट के कुछ ल�ण हैं तो वे अचानक बढ़ सकते हैं। त्वचा
पीड़ा, बाल झड़ना आिद बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरेप के कुप्रभाव हैं। थक, दस्त लगना और पेशाब में जलन दोनों से हो सक
हैं। ये सब ल�ण अस्थाई होते ह ैं। रेिडयेशन के कारण वष� बाद कुछ दूरगामी कुप्रभाव भी देखे ग य े हैं जैसे मूत्राशय या म
कैंसर। यिद रेिडयेशन उपचार से लाभ नहीं हो तो श-िक्रया क� जा सकती , लेिकन मूत्र संयतता और स्तंभन दोष के आघ
का खतरा बह�त अिधक रहता है।
होम�न उपचार
टेस्टोस्टीरोन पु�(Androgenic) होम�न है। यह प्रोस्टेट में कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध को प्रोत्साि हत करता है।
प्रोस्टेट कैंसर क� संवृिद्ध के िलए ईंधन का काम करता है। हाम�न (औषिध या शल्) का उद्देश्य टेस्टोस्टीरोन द्वार
कोिशकाओं के प्रोत्साहन के बािधत करना है। टेस्टोस्टीरोन का िनमार्ण वृषLH-RH ल् युिटनाइिजंग �रलीिजंग हाम�न
(Luteinizing Hormone-Releasing Hormone) से संकेत िमलन े पर होता है। इ से गोन ेडोट्रोिफन �र लीिजंग हाम�न भी कहत
हैं। यह हाम�न मिस्तष्क के िनयंत्रण क� में बनता है और र� में प्रवािहत होकर वृषण में पह�ँचता है और टेस्टोस्टीरोन क
उत्प्रे�रत करता ह
हाम�न उपचार शल्-िक्रया य ा दवाओं द्वारा िकया जाता है। शल्य उपचार उपचार में दोनों वृषणों का उच्छेदन कर िदया ज
इस शल्य कोओिकर्येक्टो या वंध्यकरण कहते हैं। अथार्त इस शल्य में टेस्टोस्टीरोन के स्रोत को ही शरीर से िन
जाता है। औषधीय हाम�न उपचार म ें दो श्रेिणयों क� औषिधयां दी जाती हैं। पहली शLH-RH ऐगोिनस्ट कहते हैं। ये मिस्त
मेंLH-RH के स्राव को बािधत करती हैं। दूसरी श्रेणी-ऐंड्रोजिनक है। यह पु�ष होम�न टेस्टोस्टीरोन के िव�द्ध काम करत
अथार्त यह प्रोस्टेट में टेस्टोस्टीरोन के असर को िनिष्क्रय
आजकल अिधकांश पु�ष शल्-िक्रया क� अपे�ा औषधीय हाम�न उपचार पसन्द क रते हैं। क्योंिक पु�ष को स्थाई �प स
वंध्यकरण करवाना मनोवै�ािनक और शारी�रक सुन ्दरता दोनों ही �ि� से नागवार लगता है। सच्चाई यह भी है िक शल्य वंध
और औषधीय हाम�न उपचार के प्रभाव और खतरे भी बराबर से ही हैं। दोनों ही तरह के हाम�न उपचार टेस्टोस्टीरोन के अ
िनिष्क्रय क रने में समथर् हैं। लेिकन हारमोन उपचार से प्रोस्टेट के कुछ प्रजाित के कैंसर में कोई फायदा नहीं होता ह-
इ ंिडपेंडेन्ट प्रोस्टेट कैंसर क हते हैं। हारमोन उपचार के प्रमुख कुप्रभाव स्तन( Gynecomastia) और नपु ंसकता है।
स्तन में अक्सर पीड़ा या शरीर में तमतम(Hot Flashes) होती है।
LH-RH ऐगोिनस् ल्युप्रोला(Lupron) या गोसरेिलन (Zoladex) के इंजे क ्शन हर महीने िदये जाते हैंएन्ट-एन्ड्रोजि
दवाएं फ्लुटामाइड(Eulexin) या बाईकेल्युटेमाइड(Casodex) के केप्स्यूल अकेले यLH-RH ऐगोिनस्ट क े साथ िदये जाते हैं
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LH-RH ऐगोिनस्ट क े इंजेक्शन प्रायः अकेले ही िदये जात , लेिकन इसके बाद भी यिद अबुर्द बढ़ता है तो एन्-एन्ड्रोजिनक द
भी शु� कर दी जाती है। कुछ रोिगयों को हाम�न उपचार क े साध रेिडयेशन थेरेपी भी दी जाती है। हाम�न उपचार रेिडयोथेरेपी के
असर को प्रोत्सािहत करता ह
आमतौर पर हाम�न उपचार िवकासशील प्रोस्टेट कै(िजनमें स्थानीय या दूरस्थ स्थलांतर हो चुक) में िदया जाता है। प्रोस्
में ही िसिमत स्थानीय कैंसर के उपचार हेतु हाम�न उपचार ही ि दया जाता है यिद र ोगी को कोई गंभीर रोग हो या वह रेिडये
अथवा शल्य उपचार लेने से मना कर देता है। इस तरह प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कै10% रोिगयों को हाम�न उपचार
िदया जाता है। यह भी ध् यान रहे िक हाम�न उपचार का मकसद िसफर् रोगी के क� और ल�णों में राहत द(प्रशा) ही है।
शीतिचिकत्सा(Cryotherapy)
प्रोस्टेट कैंसर क� प्रारंिभक अवस्था के उपचार में शीत(Cryotherapy) एक नया सोपान है। इस उपचार में कैंस
कोिशकाओं को ठंडा करके मार िदया जाता है। अबुर्द को ठंडा करने के िलए अल्ट्रासाउण्ड के िदशा िनद�श में प्रोस्टेट में
तरल नाइट्रोजन या अरगोन छोड़ी जाती है। शीतिचिकत्सा का प्रयोग आठवें दशक में आमाशय के छालों को ठीक करने के
िकया जाता था। ल ेिकन कुछ दुष्प्रभावों के कार ण इसका प्रयोग बंद हो
यिद प्रोस्टेट कैंसर स् थानीय संरचनाओं में फैल चुका है और अन्य अच्छा उपचार देना संभव नहीं हो तो क्रायोथेरेपी
है। इस िवषय पर भी शोध क� जा रही है िक क्या क्रायोथेर ेपी अपने आवरण में िसिमत प्रोस्टेट कैंसर के प्राथिमक उपचार
अच्छा िवकल्प ह ै। कई बार इस उपचार से कैंसर कोि शकाएं नहीं मरती हैं। इस उपचार क� प्रमािणकता पर अभी िवस्तृत
ज�रत है। मूत्र िनस्सारण नली और मूत्राशय का �ितग्रस्त होना इसके कुप्रभाव हैं। इसके फलस्व�प , गंभ ीर संक्रम
या भ गंदर (Fistula) हो सकता है और उससे मू त्र �रसता रहता ह( अथार्त मूत्र िनस्सारण नली और मूत्राशय के �ितग्रस्त
कारण मू त्र अपने िलए एक अलग माग(नली) बना लेता है िजसका दूसरा िसरा त्वचा या मलाशय में जा खुलता )।
HIFU अथार्त हाई इंटेिन्सटी अल्ट्रास
HIFU अथार्त हाई इंटेिन्सटी अल्ट्रासाउण्ड का प्रयोग अितविधर्त पौ�षग्रंिथ के उपचार में िकया जाता था। लेिक
प्रोस्टेट कैंसर के उपचार हेतु कैंसर कोिशकाओं में मारने के िलए भी ि कया जाने लगा है। इस प्रिक्रया में मलाशय क
अल्ट्रासाउण्ड तरंगों को अबुर्द पर कैंिद्रत िकय , िजससे अबुर्द का तापमान 80
0
-100
0
C पह�ँच जाता है। फलस्व�प कैंस
कोिशकाएं म र जाती हैं। अभी इस उपचार पर पयार्� शोध नहीं ह�ई है।.डी.ए. ने भी इसे अनुमोिदत न हीं िकया है।
क�मोथेरेपी
यिद िवकासशील प्रोस्टेट कैंसर में पूणर् उपचार संभव नहीं हो और हाम�न उपचार भी काम नहीं करे तो प्रशामक उ
क�म ोथेरेपी दी जाती है। प्रशामक उपचार का उद् देश्य अबुर्द क� संवृिद्ध को कम करना और रोगी के ल�ण और क� कम कर
है। अपन े आवरण में िसिमत या स्थानीय सं रचनाओं में फैले प्रोस्टेट कैंसर के उपचार में प्रायः क�मोथेरेपी नहीं दी जात
अन्य बेहतर उपचार उपलब्ध हैं। आजकल क�मोथेरेपी िवकासशील प्रोस्टेट कैंसर के उन रोिगयों को ही दी , िजनमें अन्
उपचार काम नहीं कर पाते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के प्रशामक उपचार हेतु कई दवाए ं प्रयोग में ली जाती हैं। इनमें इ(Emcyt) प्रचिलत है। एक अन्य द
माइ टोजेंट्रोन प्रेडिनसोलोन के साथ प्रोस्टेट कैंसर के एन्ड्रोजन(Castrate-Resistant Prostate Cancers) रोिगयों
को दी जाती है। नई दवा डोसटेक्सेल(Taxotere) िवकासशील कैंसर रोिगयों का जीवन बढ़ा सकती है। ये दवाएं ददर् में कुछ र
भी िदलाती है, ल ेिकन कई कुप्रभावों के �प में बड़ी क�मत भी चुकानी पड़ती ह
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क�मो के प्रमुख कुप्रभाव कम, उबकाई, बाल झड़ना, अिस्थमज्जा का �ितग्रस्त होना आिद हैं। अि स्थमज्जा �ितग्रस
लाल र�-कण कम होना (र� अल्पत), �ेत र�-कण कम होना (संक्र) और िबंबाणु कम होना (र� स्र) स् वाभािवक है।
http://www.virtualmedicalcentre.com/treatment/cryotherapy-for-prostate-cancer/93